ऊष्मा (Heat) वह भौतिक कारक (Physical factor) है जो हमें गर्मी (Hotness) व ठण्डक (coldness) का आभास (Feel) कराता है। वास्तव में ऊष्मा (Heat) एक प्रकार की ऊर्जा (energy) है जिसमें विभिन्न कार्य संपादित करने की क्षमता होती है।
ऊष्मा को अन्य प्रकार की ऊर्जाओं के रूप में तथा अन्य ऊर्जाओं को ऊष्मा में बदला जा सकता है। जैसे- विद्युत हीटर का प्रयोग करके हम विद्युत ऊर्जा (Electrical energy) को ऊष्मीय ऊर्जा (Thermal energy) में बदलते हैं व भाप इंजन (Steam engine) का प्रयोग करके हम ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) में बदलते हैं।
ऊष्मा के मात्रक (Units Of Heat)
ऊष्मा (Heat), ऊर्जा (Energy) का ही एक रूप है, अतः ऊष्मा का S.I. मात्रक भी ऊर्जा के S.I. मात्रक की तरह जूल (Joule) ही है। परन्तु व्यवहार में कैलोरी, किलो कैलोरो, ब्रिटिश ऊष्मीय मात्रक (British Thermal Unit-1B.Th.U) आदि मात्रक (Units) भी प्रयुक्त होते हैं।
➤ कैलोरी (Calorie)
एक ग्राम शुद्ध जल का ताप (Temperature) 14.5 °C से 15.5 °C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा एक कैलोरी कहलाती है। इसे अंतर्राष्ट्रीय (International) कैलोरी या 15 °C कैलोरी भी कहते हैं।
➤ ब्रिटिश ऊष्मीय इकाई (British Thermal Unit)
एक पौण्ड जल का ताप 1 °F (1 डिग्री फारेनहाइट) बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को एक ब्रिटिश ऊष्मीय इकाई (1 B.Th.U.) कहते हैं।
➤ ताप (Temperature)
ताप वह भौतिक राशि (Physical Quantity) है जिससे यह पता चलता है कि कोई वस्तु कितनी गर्म (Hot) या ठण्डी (Cold) है। अर्थात् ताप वस्तु की ऊष्णता (Hotness) व शीतलता (Cold- ness) की माप (measurement) है। ताप किसी वस्तु की ऊष्मीय अवस्था (Thermal State) का सूचक (Indicator) है। एक वस्तु से दूसरी वस्तु में ऊष्मा का प्रवाह (Flow of Heat) तापान्तर (Difference of Temperature) के कारण ही होता है, जो उच्च ताप (High Temperature) से निम्न ताप (Low Temperature) की तरफ होता है। उच्च ताप से निम्न ताप की तरफ ऊष्मा के प्रवाह से दोनों वस्तुओं का ताप बराबर हो जाता है। इस अवस्था को ऊष्मीय संतुलन (Thermal Equilibrium) भी कहते हैं।
➤ ताप के मात्रक (Units of Temperature)
ताप के मुख्यतः तीन मात्रक (Units) हैं-डिग्री सेल्सियस, डिग्री फारेनहाइट व केल्विन। इन मात्रकों के आधार तीन पैमाने (Scales) हैं जो निम्नवत् हैं-
• सेल्सियस या सेण्टीग्रेट पैमाना (Celsius or Centigrade Scale)
इस पैमाने को स्वीडन निवासी सेल्सियस ने सन् 1742 में बनाया था। इसमें शुद्ध जल (Pure Water) के हिमांक (Freezing Point) अर्थात् जमने के ताप (Temperature of Freezing) को शून्य डिग्री सेल्सियस (O °C) तथा क्वथनांक (Boiling Point) अर्थात् उबलने के ताप (Temperature of boiling) को सौ डिग्री सेल्सियस (100 °C) मानकर इन दो तापों के बीच के अंतराल को 100 बराबर भागों में बाँटा गया है। इसका प्रत्येक भाग 1 °C का ताप व्यक्त करता है। 0 °C से निम्न व 100 °C से उच्च ताप के मापन हेतु इस पैमाने का विस्तार भी किया जा सकता है।
• फारेनहाइट पैमाना (Fahrenheit Scale)
जर्मनी के फारेनहाइट नामक वैज्ञानिक ने सन् 1717 में इस पैमाने का निर्माण किया था। इसमें पानी के हिमांक (Freezing Point) को 32 डिग्री फारेन हाइट (°F) तथा क्वथनांक (Boiling Point) को 212 डिग्री फारेनहाइट (°F) मानकर बीच के अंतराल को 180 भागों में बांटते हैं। इसका प्रत्येक भाग 1 °F को व्यक्त करता है।
• केल्विन पैमाना या परम पैमाना (Kelvin Scale or Absolute Scale)
ताप का यह पैमाना लार्ड केल्विन द्वारा सन् 1852 में प्रस्तुत किया गया था। इसमें जल के हिमाँक (Freezing Point) को 273 केल्विन (K) या डिग्री ऐब्सल्यूट (A) तथा क्वथनांक (Boiling Point) को 373 केल्विन (K) या डिग्री ऐब्सल्यूट (A) माना गया। इन दोनों के बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बांटा गया है। इसका प्रत्येक भाग 1 K (One Kelvin) कहलाता है। अंतर्राष्ट्रीय पद्धति (SI) में इसी पैमाने की मान्यता है अर्थात् ताप का S.I. मात्रक केल्विन ही है।*
➤ तीनों पैमानों में संबंध (Relation Among scales)
चूँकि तीनों ही पैमानों (Scales) को शुद्ध जल के हिमांक व क्वथनांक के आधार पर बनाया गया है। अतः इनकी आपस में तुलना की जा सकती है व एक मात्रक (पैमाने की माप) को दूसरे मात्रक (पैमाने की माप) में बदला जा सकता है। इसके लिए निम्न सूत्र का प्रयोग करते हैं। यथा-
C/100 = (F – 32)/180 = (K – 273)/100
या, C/5 = (F – 32)/9 = (K – 273)/5
जहाँ C = सेल्सियस पैमाने पर ताप
F = फारेनहाइट पैमाने पर ताप, तथा
K = केल्विन पैमाने पर ताप है।
➤ परम शून्य ताप (Absolute Zero Temperature)
अभी तक अधिकतम ताप कितना हो सकता है इसकी सीमा नहीं है। परन्तु न्यूनतम संभव ताप की अभिपुष्टि (Confirmation) हो चुकी है और वह है- (Zero Kelvin) (OK) या (ϕ) – 273.15 °C ।
अतः परम शून्य ताप को – 273.15 °C मानना अधिक तर्कसंगत है।*
➤ ताप व ऊष्मीय ऊर्जा में संबंध (Relation between Temperature and Thermal Energy)
किसी पदार्थ के ताप व ऊष्मीय ऊर्जा में धनात्मक संबंध पाया जाता है। अर्थात् किसी वस्तु का ताप बढ़ाने से उसकी ऊष्मीय ऊर्जा में वृद्धि होती है।
तापमापी (Thermometer)
ताप मापने वाले यंत्र को तापमापी कहते हैं। प्रायः तापमापियों में किसी तरल (Fluid) पदार्थ के उष्मीय प्रसारगुण (Thermal Expansion Property) का उपयोग किया जाता है। तापमापी कई प्रकार के होते हैं। यथा-
➤ द्रवतापमापी (Liquid Thermometer)
द्रव तापमापी में प्रायः पारा (Mercury-Hg) या ऐल्कोहॉल (Alcohol- C2H5OH) का प्रयोग करते हैं। * दोनों पदार्थों द्वारा मापनीय ताप परास (Measurable Temperature Range) अलग- अलग होता है। पारा – 39°C पर ही जम जाता है और 357° सेल्सियस पर उबलता है। इसलिए पारद तापमापी का तापमान परास (Range) लगभग 30° सेल्सियस से 350° सेल्सियस होता है। ऐल्कोहल – 115°C पर जमता है। इसीलिए ऐल्कोहॉल तापमापी का प्रयोग निम्नताप के मापन (- 40°C से – 110°C तक) के लिए प्रयुक्त होता है।
➤ डॉक्टरी तापमापी (Clinical Thermometer)
मानव व अन्य जानवरों (Animals) के शरीर का ताप ज्ञात करने के लिए एक विशेष प्रकार का पारद तापमापी बनाया गया है जिसका ताप परास काफी कम रखा गया है जो कि 35 °C से 43 °C तक अथवा 95 °F से 110 °F तक होता है। चूँकि इसका प्रयोग प्रायः ज्वर (Fever) मापने के लिए होता है इसलिए इसे ज्वरमापी या डॉक्टरी तापमापी (Clinical thermometer) कहते हैं। इसमें 37° सेल्सियस या 98.6° फारेनहाइट पर लाल निशान बना होता है जो मानव का सामान्य तापक्रम व्यक्त करता है और यदि पारा इससे ऊपर तक चढ़ जाता है तो यह ज्वर का सूचक है।*
➤ गैस तापमापी (Gas Thermometer)
गैस तापमापी में प्रायः हाइड्रोजन या नाइट्रोजन गैस का प्रयोग किया जाता है। हाइड्रोजन का प्रयोग करने पर इसकी क्षमता 500 °C तक के ताप के मापन की होती है जबकि नाइट्रोजन का प्रयोग करने पर यह 1500 °C तक का ताप माप सकती है।
➤ ताप युग्म तापमापी (Thermo-couple Thermometer)
सीबेक प्रभाव पर आधारित इस तापमापी से – 200 °C से 1600 °C तक के ताप का मापन किया जा सकता है।
• सीबेक प्रभाव (Seebeck Effect)
जब दो अलग-अलग धातुओं (metals) के तारों (wires) के सिरों (heads) को जोड़कर एक बंद परिपथ (Closed Circuit) बनाते हैं तथा इस परिपथ की संधियों (Joints) को अलग-अलग ताप पर रखते हैं तो परिपथ में एक धारा (current) बहने (flow) लगती है जिसे ताप विद्युत धारा (Thermo-Electric Current) कहते हैं। इस संयोजन में धारा बहने के इस प्रभाव को सीबेक प्रभाव कहते हैं।
➤ प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी (Platinum-Resistant Thermometer)
प्लेटिनम के तार का वैद्युत प्रतिरोध (Electric Resistant), ताप के बढ़ने के साथ-साथ समान दर से बढ़ता है। इसके इसी गुण का प्रयोग करके प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी बनाया गया है जो प्रतिरोध ताप गुणांक (Resistant Temperature Coeficient) के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसका परास -200°C से 1200°C है।
➤ पूर्ण विकिरण उत्तापमापी (Total Radiation Pyrometer)
यह तापमापी (Thermometer) स्टीफॅन के नियम पर आधारित है, जिसके अनुसार, उच्चताप पर किसी वस्तु से उत्सर्जित विकिरण की मात्रा (Intensity of Radiation) उसके परमताप (Absolute Temperature) के चतुर्थ घात के अनुक्रमानुपाती होती है। वस्तु द्वारा उत्सर्जित (emitted) विकिरण ऊर्जा (Radiation Energy) को मापकर उस वस्तु के ताप की गणना कर ली जाती है। इस तापमापी की सहायता से अत्यन्त दूर स्थित वस्तुओं का ताप मापा जाता है। ध्यातव्य है कि इससे 800°C या इससे अधिक ताप वाली वस्तुओं का ही ताप मापा जा सकता है क्योंकि 800°C से कम ताप पर वस्तुएं ऊष्मीय विकिरण उत्सर्जित नहीं करती हैं।
➤ ताप के प्रभाव (Effects of Temperature)
• किसी वस्तु का ताप बढ़ाने से उसके अंदर ऊष्मा का संचय होता है जिससे पदार्थ पहले की अपेक्षा अधिक गर्म प्रतीत होती है।
• ताप बढ़ाने से सामान्यतः पदार्थों का आयतन बढ़ता है।*
• ताप बढ़ाने से किसी पदार्थ का अवस्था परिवर्तन (Change in State) भी हो सकता है।
• कुछ पदार्थों का ताप बढ़ाने पर वे अपने अवयवों (Components) में विभाजित (Divide) हो जाते हैं।
• वायु में ध्वनि का वेग ताप घटने से घटता है व बढ़ने से बढ़ता है।*
यह भी पढ़ें : गैसों का अणु गति सिद्धान्त
1 thought on “ऊष्मा (Heat)”