आनुवांशिकता : अध्याय 8

हमने देखा कि जनन प्रक्रमों द्वारा नए जीव (व्यष्टि) उत्पन्न होते हैं, जो जनक के समान होते हुए भी कुछ भिन्न होते हैं। हमने यह चर्चा की है कि अलैंगिक जनन में भी कुछ विभिन्नताएँ कैसे उत्पन्न होती हैं। अधिकतम संख्या में सफल विभिन्नताएँ लैंगिक प्रजनन द्वारा ही प्राप्त होती हैं। यदि हम गन्ने के खेत का अवलोकन करें तो हमें व्यष्टिगत पौधों में बहुत कम विभिन्नताएँ दिखाई पड़ती हैं। मानव एवं अधिकतर जंतु जो लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होते हैं, इनमें व्यष्टिगत स्तर पर अनेक भिन्नताएँ परिलक्षित होती हैं। इस अध्याय में हम उन क्रियाविधियों का अध्ययन करेंगे, जिनके कारण विभिन्नताएँ उत्पन्न एवं वंशागत होती हैं।

8.1 जनन के दौरान विभिन्नताओं का संचयन

पूर्ववर्ती पीढ़ी से वंशागति संतति को एक आधारिक शारीरिक अभिकल्प (डिज़ाइन) एवं कुछ विभिन्नताएँ प्राप्त होती हैं। अब ज़रा सोचिए, कि इस नई पीढ़ी के जनन का क्या परिणाम होगा? दूसरी पीढ़ी में पहली पीढ़ी से आहरित विभिन्नताएँ एवं कुछ नई विभिन्नताएँ उत्पन्न होंगी।

चित्र 8.1 उत्तरोत्तर पीढ़ियों में विविधता की उत्पत्ति। शीर्ष पर दर्शाए गए पहली पीढ़ी के जीव, मान लीजिए कि दो संतति को जन्म देंगे, जिनकी आधारभूत शारीरिक संरचना तो एकसमान होगी, परंतु विभिन्नताएँ भी होंगी। इनमें से प्रत्येक अगली पीढ़ी में दो जीवों को उत्पन्न करेगा। चित्र में सबसे नीचे दिखाए गए चारों जीव व्यष्टि स्तर पर एक दूसरे से भिन्न होंगे। कुछ विभिन्नताएँ विशिष्ट होंगी, जबकि कुछ उन्हें अपने जनक से प्राप्त हुई हैं जो स्वयं आपस में एक-दूसरे से भिन्न थे।

चित्र 8.1 में उस स्थिति को दर्शाया गया है जबकि केवल एकल जीव जनन करता है, जैसा कि अलैंगिक जनन में होता है। यदि एक जीवाणु विभाजित होता है, तो परिणामतः दो जीवाणु उत्पन्न होते हैं जो पुन पुनः विभाजित होकर चार (व्यष्टि) जीवाणु उत्पन्न करेंगे, जिनमें आपस में बहुत अधिक समानताएँ होंगी। उनमें आपस में बहुत कम अंतर होगा, जो डी. एन. ए. प्रतिकृति के समय न्यून त्रुटियों के कारण उत्पन्न हुई होंगी। परंतु यदि लैंगिक जनन होता तो विविधता अपेक्षाकृत और अधिक होती। इसके विषय में हम आनुवंशिकता के नियमों की चर्चा के समय देखेंगे।

क्या किसी प्रजातियों में इन सभी विभिन्नताओं के साथ अपने अस्तित्व में रहने की संभावना एकसमान है? निश्चित रूप से नहीं। प्रकृति की विविधता के आधार पर विभिन्न जीवों को विभिन्न प्रकार के लाभ हो सकते हैं। ऊष्णता को सहन करने की क्षमता वाले जीवाणुओं को अधिक गर्मी से बचने की संभावना अधिक होती है। उसकी चर्चा हम पहले कर चुके हैं। पर्यावरण कारकों द्वारा उत्तम परिवर्त का चयन जैव विकास प्रक्रम का आधार बनाता है, जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे।

8.2 आनुवंशिकता

जनन प्रक्रम का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम संतति के जीवों के के समान डिज़ाइन (अभिकल्पना) का होना है। आनुवंशिकता नियम इस बात का निर्धारण करते हैं, जिनके द्वारा विभिन्न लक्षण पूर्ण विश्वसनीयता के साथ वंशागत होते हैं। आइए, इन नियमों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें।

8.2.1 वंशागत लक्षण

वास्तव में समानता एवं विभिन्नताओं से ह हमारा क्या अभिप्राय है? हम जानते हैं कि शिशु में मानव के सभी आधारभूत लक्षण होते हैं। फिर भी यह पूर्णरूप से अपने जनकों जैसा दिखाई नहीं पड़ता तथा मानव समष्टि में यह विभिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है।

• अपनी कक्षा के सभी छात्रों के कान का अवलोकन कीजिए। ऐसे छात्रों की सूची बनाइए जिनकी कर्णपालि (ear lobe) स्वतंत्र हो तथा जुड़ी हो (चित्र 8.2)। जुड़े कर्णपालि वाले छात्रों एवं स्वतंत्र कर्णपालि वाले छात्रों के प्रतिशत की गणना कीजिए। प्रत्येक छात्र के कर्णपालि के प्रकार को उनके जनक से मिलाकर देखिए। इस प्रेक्षण के आधार पर कर्णपालि के वंशागति के संभावित नियम का सुझाव दीजिए।

चित्र 8.2 (a) स्वतंत्र तथा (b) जुड़े कर्ण पालि। कान के निचले भाग को कर्णपालि कहते हैं। यह कुछ लोगों में सिर के पार्श्व में पूर्ण रूप से जुड़ा होता है परंतु कुछ में नहीं। स्वतंत्र एवं जुड़े कर्णपालि मानव समष्टि में पाए जाने वाले दो परिवर्त हैं।

8.2.2 लक्षणों की वंशागति के नियम मेंडल का योगदान

मानव में लक्षणों की वंशागति के नियम इस बात पर आधारित हैं कि माता एवं पिता दोनों ही समान मात्रा में आनुवंशिक पदार्थ को संतति (शिशु) में स्थानांतरित करते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक लक्षण पिता और माता के डी.एन.ए. से प्रभावित हो सकते हैं। अतः प्रत्येक लक्षण के लिए प्रत्येक संतति में दो विकल्प होंगे। फिर संतान में कौन-सा लक्षण परिलक्षित होगा? मेंडल (बॉक्स में देखिए) ने इस प्रकार की वंशागति के कुछ मुख्य नियम प्रस्तुत किए। उन प्रयोगों के बारे में जानना अत्यंत रोचक होगा, जो उसने लगभग एक शताब्दी से भी पहले किए थे।

मेंडल ने मटर के पौधे के अनेक विपर्यासी (विकल्पी) लक्षणों का अध्ययन किया, जो स्थूल रूप से दिखाई देते हैं, उदाहरणतः गोल/झुर्रीदार बीज, लंबे बौने पौधे, सफेद बैंगनी फूल इत्यादि। उसने विभिन्न लक्षणों वाले मटर के पौधों को लिया जैसे कि लंबे पौधे तथा बोने पौधे। इससे प्राप्त संतति पीढ़ी में लंबे एवं बौने पौधों के प्रतिशत की गणना की।

प्रथम संतति पीढ़ी अथवा F1 में कोई पौधा बीच की ऊँचाई का नहीं था। सभी पौधे लंबे थे। इसका अर्थ था कि दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक जनकीय लक्षण ही दिखाई देता है, उन दोनों का मिश्रित प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता। तो अगला प्रश्न था कि क्या F1 पीढ़ी के पौधे अपने पैतृक लंबे पौधों से पूर्ण रूप से समान थे? मंडल ने अपने प्रयोगों में दोनों प्रकार के पैतृक पौधों एवं F1 पीढ़ी के पौधा को स्वपरागण द्वारा उगाया। पैतृक पीढ़ी के पौधों से प्राप्त सभी संतति भी लंब पौधों की थी। परंतु F1पीढ़ी क लंबे पौधा की दूसरी पीढ़ी अर्थात F2 पीढ़ी के सभी पोधे लंब नहीं थे वरन उनमें से एक चौथाई सतति बौन पाधे थे। यह इंगित करता है कि F1 पोधों द्वारा लंबाई एवं जीनपन दानां विशेषको (लक्षणा) की वशान्गति हुई। परंतु केवल लंबाई वाला लक्षण ही व्यक्त हा पाया। अतः लंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाल जीवों में किसी भी लक्षण की हा प्रतिकृतियों की (स्वरूप) वशानुगति हाती है। ये दाना एकसमान हा सकते है अथवा भिन्न हो सकत है. जा उनका जनक पर निर्भर करता है। इस परिकल्पना के आधार पर पशानति का तयार किया गया एक पटर्न चित्र 8.3 में दर्शाया गया है।

चित्र 8.3 में हम कौन सा प्रयोग करते हैं जिससे यह सुनिश्चित होता है कि F, पीढ़ी में वास्तव में TT, Tt तथा tt का संयोजन 1:2:1 अनुपात में प्राप्त होता है?

इस व्याख्या में ‘TT’ एवं ‘Tt’ दोनों ही लंबे पौधे हैं, जबकि केवल ‘tt’ बौने पौधे हैं। दूसरे शब्दों में, ‘T’ की एक प्रति ही पौधे को लंबा बनाने के लिए पर्याप्त है, जबकि बौनेपन के लिए ‘t’ की दोनों प्रतियाँ ‘t’ ही होनी चाहिए। ‘T’ जैसे लक्षण ‘प्रभावी’ लक्षण कहलाते हैं, जबकि जो लक्षण ‘१’ की तरह व्यवहार करते हैं ‘अप्रभावी’ कहलाते हैं। चित्र 8.4 में कौन-सा लक्षण प्रभावी है तथा कौन-सा अप्रभावी है।

क्या होता है जब मटर के पौधों में एक विकल्पी जोड़े के स्थान पर दो विकल्पी जोड़ों का अध्ययन करने के लिए संकरण कराया जाए? गोल बीज वाले लंबे पौधों का यदि झुर्रीदार बीजों वाले बौने पौधों से संकरण कराया जाए तो प्राप्त संतति कैसी होगी? F1 पीढ़ी के सभी पौधे लंबे एवं गोल बीज वाले होंगे। अतः लंबाई तथा गोल बीज ‘प्रभावी’ लक्षण हैं। परंतु क्या होता है जब F1 संतति के स्वनिषेचन से F2 पीढ़ी की संतति प्राप्त होती है? मेंडल द्वारा किए गए पहले प्रयोग के आधार पर हम कह सकते हैं कि F2 संतति के कुछ पौधे गोल बीज वाले लंबे पौधे होंगे तथा कुछ झुर्रीदार बीज वाले बौने पोधे। परंतु F2 की संतति के कुछ पौधे नए संयोजन प्रदर्शित करेंगे। उनमें से कुछ पौधे लंबे परंतु झुर्रीदार बीज तथा कुछ पौध बौने परंतु गोल बीज वाले होंगे। यहाँ आप देख सकते हैं कि किस तरह F2 पीढ़ी में नए लक्षणों का संयोजन देखने को मिला जब बीज के आकार व रंग को नियंत्रित करने वाले कारका के पुनर्संयोजन से युग्मनज बना जो F2 पीढ़ी में अग्रणी रहा। अतः लंब/बोने लक्षण तथा गोल/ झर्रीदार लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होत हैं। एक और उदाहरण चित्र 8.5 में दर्शाया गया है।

8.2.3 यह लक्षण अपने आपको किस प्रकार व्यक्त करते हैं?

आनुवंशिकता कार्य विधि किस प्रकार होती है? कोशिका के डी.एन.ए. में प्रोटीन संश्लेषण के लिए एक सूचना सोत होता है। डी.एन.ए. का वह भाग जिसमें किसी प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना होती है, उस प्रोटीन का जीन कहलाता है। प्रोटीन विभिन्न लक्षणों की अभिव्यक्ति को किस प्रकार नियंत्रित करती है, इसकी हम यहाँ चर्चा करते हैं? आइए, पौधों की लंबाई के एक लक्षण को उदाहरण के रूप में लेते हैं। हम जानते हैं कि पौधों में कुछ हार्मोन होते हैं, जो लंबाई का नियंत्रण करते हैं। अतः किसी पौधे की लंबाई पौधे में उपस्थित उस हार्मोन की मात्रा पर निर्भर करती है। पौधे के हार्मोन की मात्रा उस प्रक्रम की दक्षता पर निर्भर करेगी, जिसके द्वारा यह उत्पादित होता है। एंजाइम इस प्रक्रम के लिए महत्वपूर्ण है। यदि यह एंजाइम (प्रकिण्व) दक्षता से कार्य करेगा तो हार्मोन पर्याप्त मात्रा में बनेगा तथा पौधा लंबा होगा। यदि इस प्रोटीन के जीन में कुछ परिवर्तन आते हैं ता बनने वाली प्रोटीन की दक्षता पर प्रभाव पड़ेगा वह कम दक्ष होगी। अतः बनने वाले हार्मोन की मात्रा भी कम होगी तथा पौधा बौना होगा। अतः जीन लक्षणों (traits) को नियंत्रित करते हैं।

यदि मेंडल के प्रयोगों की व्याख्या जिसकी हम चर्चा कर रहे थे, ठीक है तो इसकी चर्चा हम पिछले अध्याय में कर चुके हैं। लैंगिक प्रजनन के दौरान संतति के डी.एन.ए. में दोनों जनक का समान रूप से योगदान होगा। यदि दोनों जनक संतति के लक्षण के निर्धारण में सहायता करते हैं तो दोनों जनक एक ही जीन की एक प्रतिकृति संतति को प्रदान करेंगे। इसका अर्थ है कि मटर के प्रत्येक पौधे में सभी जीन के दो-सेट होंगे, प्रत्येक जनक से एक सेट की वंशानुगति होती है। इस तरीके को सफल करने के लिए प्रत्येक जनन कोशिका में जीन का केवल एक ही सेट होगा।

जबकि सामान्य कायिक कोशिका में जीन के सेट की दो प्रतियाँ (copies) होती हैं, फिर इनसे जनन कोशिका में इसका एक सेट किस प्रकार बनता है? यदि संतति पौधे को जनक पौधे से संपूर्ण जीनों का एक पूर्ण सेट प्राप्त होता है तो चित्र 8.5 में दर्शाया प्रयोग सफल नहीं हो सकता। इसका मुख्य कारण यह है कि दो लक्षण ‘R’ तथा ‘y’ सेट में एक-दूसरे से संलग्न रहेंगे तथा स्वतंत्र रूप में आहरित नहीं हो सकते। इसे इस तथ्य के आधार पर समझा जा सकता है कि वास्तव में एक जीन सेट केवल एक डी.एन.ए. श्रृंखला के रूप में न होकर डी.एन.ए. के अलग-अलग स्वतंत्र रूप में होते हैं, प्रत्येक एक गुण सूत्र कहलाता है। अतः प्रत्येक कोशिका में प्रत्येक गुणसूत्र की दा प्रतिकृतियाँ होती हैं, जिनमें से एक नर तथा दूसरी मादा जनक से प्राप्त होती है। प्रत्येक जनक कोशिका (पैतृक अधवा मातृक) से गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े का केवल एक गुणसूत्र ही एक जनन कोशिका (युग्मक) में जाता है। जब दो युग्मकों का संलयन होता है तो बने हुए युग्मनज में गुणसूत्रों की संख्या पुनः सामान्य हो जाती है तथा संतति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है, जो स्पीशीज के डी.एन.ए. के स्थायित्व को सुनिश्चित करता है। वंशागति की इस क्रियाविधि से मेंडल के प्रयोगों के परिणाम की व्याख्या हो जाती है। इसका उपयोग लैंगिक जनन वाले सभी जीव करते हैं, परंतु अलैंगिक जनन करने वाले जीव भी वंशागति के इन्हीं नियमों का पालन करते हैं। क्या हम पता लगा सकते हैं कि उनमें वंशानुगति किस प्रकार होती है?

8.2.4 लिंग निर्धारण

इस बात की चर्चा हम कर चुके हैं कि लैंगिक जनन में भाग लेने वाले दो एकल जीव किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, जिसके कई कारण हैं। नवजात का लिंग निर्धारण कैसे होता है? अलग-अलग स्पीशीज इसके लिए अलग-अलग युक्ति अपनाते हैं। कुछ पूर्ण रूप से पर्यावरण पर निर्भर करते हैं। इसलिए कुछ प्राणियों में (जैसे कुछ सरीसृप) लिंग निर्धारण निर्वाचत अंडे (युग्मक) के ऊष्मायन ताप पर निर्भर करता है कि संतति नर होगी या मादा। घोंघे जैसे कुछ प्राणी अपना लिंग बदल सकते हैं, जो इस बात का संकेत है कि इनमें लिंग निर्धारण आनुवंशिक नहीं है, लेकिन, मानव में लिंग निर्धारण आनुवंशिक आधार पर होता है। दूसरे शब्दों में, जनक जीवों से वंशानुगत जीन ही इस बात का निर्णय करते हैं कि संतति लड़का होगा अथवा लड़की, परंतु अभी तक हम मानते रहे हैं कि दोनों जनकों से एक जैसे जीन सेट संतति में जाते हैं। यदि यह शाश्वत नियम है तो फिर लिंग निर्धारण वंशानुगत कैसे हो सकता है?

इसकी व्याख्या इस तथ्य में निहित है कि मानव के सभी गुणसूत्र पूर्णरूपेण युग्म नहीं होते। मानव में अधिकतर गुणसूत्र माता और पिता के गुणसूत्रों के प्रतिरूप होते हैं। इनकी संख्या 22 जोड़े हैं। परंतु एक युग्म जिसे लिंग सूत्र कहते हैं, जो सदा पूर्णजोड़े में नहीं होते। स्त्री में गुणसूत्र का पूर्ण युग्म होता है तथा दोनों ‘X’ कहलाते हैं। लेकिन पुरुष (नर) में यह जोड़ा परिपूर्ण जोड़ा नहीं होता, जिसमें एक गुण सूत्र सामान्य आकार का ‘X’ होता है तथा दूसरा गुणसूत्र छोटा होता है, जिसे ‘Y’ गुणसूत्र कहते हैं। अतः स्त्रियों में ‘XX’ तथा पुरुष में ‘XY’ गुणसूत्र होते हैं। क्या अब हम X और Y का वंशानुगत पैटर्न पता कर सकते हैं?

जैसा कि चित्र 8.6 में दर्शाया गया है, सामान्यतः आधे बच्चे लड़के एवं आधे लड़की हो सकते हैं। सभी बच्चे चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की, अपनी माता से ‘X’ गुणसूत्र प्राप्त करते हैं। अतः बच्चों का लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने पिता से किस प्रकार का गुणसूत्र प्राप्त हुआ है। जिस बच्चे को अपने पिता से ‘X’ गुणसूत्र वंशानुगत हुआ है वह लड़की एवं जिसे पिता से ‘Y’ गुणसूत्र वंशानुगत होता है, वह लड़का ।

आपने क्या सीखा

• जनन के समय उत्पन्न विभिन्नताएँ वंशानुगत हो सकती है।

• इन विभिन्नताओं के कारण जीव की उत्तरजीविता में वृद्धि हो सकती है।

• लैंगिक जनन वाले जीवों में एक अभिलक्षण (Trait) के जीन के दो प्रतिरूप (Copies) होते हैं। इन प्रतिरूपों के एकसमान न होने की स्थिति में जो अभिलक्षण व्यक्त होता है उसे प्रभावी लक्षण तथा अन्य को अप्रभावी लक्षण कहते हैं।

• विभिन्न लक्षण किसी जीव में स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं। संतति में नए संयोग उत्पन्न होते हैं।

• विभिन्न स्पीशीज में लिंग निर्धारण के कारक भिन्न होते हैं। मानव में संतान का लिंग इस बात पर निर्भर करता है कि पिता से मिलने वाले गुणसूत्र X’ (लड़कियों के लिए) अथवा ‘Y’ (लड़कों के लिए) किस प्रकार के हैं।

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अभ्यास

1. मॅडल के एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पीों में पुष्प बैंगनी रंग के थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बोने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्नलिखित थी-

(a) TTWW
(b) TTww
(c) TtWW
(d) TtWw

Ans. (c) TtWW

2. एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती है। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्क रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
Ans.
नहीं, यह बताना संभव नहीं है कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी जब तक कि दोनों प्रकार के विकल्पों का पता न हो। ऐसा भी संभव है कि जनक (माता-पिता) में दोनों ही विकल्प हल्के रंग की आँखों के हों, क्योंकि लक्षण की प्रतिकृति दोनों जनकों (माता-पिता) से वंशानुगत होती हैं, अप्रभावी तभी होंगे, जब दोनों से प्राप्त जीन अप्रभावी हों। अतः हम केवल अनुमान लगा सकते हैं।

3. कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
Ans.
काले रंग के नर और सफ़ेद रंग की मादा के संयोग से उत्पन्न यदि सारे पिल्ले काले रंग के हों तो कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग काला हो होगा। तीन कुत्ते और एक कुत्ता सफ़ेद होगा। यह दर्शाता है कि काला रंग प्रभावी रंग है।
कुत्तों के अलग-अलग रंगों का कारण अविकल्पी जीनों कि आपसी क्रिया के कारण होता है जसिमे F2 अनुपात 12:3:1 होता है। इसलिए शुद्ध नस्लों के बीच संकरण कराए बिना किसी सही-स्टिक निर्णय तक नहीं पहुंचा जा सकता।

4. संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है।
Ans.
लैंगिक जनन क्रिया में क्रोमोसोम (गुणसूत्र) अर्धसूत्री विभाजन द्वारा दो भागों में बँटे जाते हैं और जब निषेचन क्रिया होती है, तो युग्मनज में आधे गुणसूत्र पिता से और आधे गुणसूत्र माता से आकर आपस में संयोजित हो जाते हैं। अर्थात् नर से (23 गुणसूत्र) तथा मादा से (23 गुणसूत्र) मिलकर संतति में 46 गुणसूत्र होते हैं तथा बराबरी की भागीदारी होती है। यही कारण है कि प्रत्येक पीढी के लक्षणों में विभिन्न्ताएँ आती रहती हैं।

अन्य प्रश्न

1. वे कौन से विभिन्न तरीके हैं, जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?

Ans.  विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

(i) यदि लक्षण जीवित रहने में सहायता करता है, तो यह जनसंख्या में बढ़ेगा तथा प्रकृति इसका चयन कर लेगी।

(ii) इन परवाह-विभिन्न जनसंख्याओं के बीच संकरण से, एक ही गति के जीवों में जीनों का आदान-प्रदान होगा इससे विभिन्नताएँ व लक्षण बढ़ेंगे।

(iii) किसी जिन के विभिन्न विकल्प किसी जनसंख्या में अचानक परिवर्तित होते हैं।

अथवा

निम्नलिखित तरीकों द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है।

  1. प्राकृतिक चयन (Natural selection)-प्रकृति द्वारा लाभप्रद विविधताओं वाली समष्टि को सतत् बनाए रखना प्राकृतिक चयन कहलाता है। वे लक्षण जो किसी व्यष्टि जीव के उत्तर:जीविता तथा प्रजनन में लाभदायक होती हैं, अगली पीढ़ी (संतति) में हस्तान्तरित (passed on) हो जाती हैं। परंतु जिनसे कोई लाभ नहीं होता वे लक्षण संतति में नहीं जाते।
    उदाहरण-जितने अधिक कौए होंगे उतने अधिक लाल शृंग उनके शिकार बनेंगे तथा समष्टि में हरे भृगों की संख्या बढ़ती जाएगी, क्योंकि हरी पत्तियों की झाड़ियों में हरे भुंग को कौए नहीं देख पाते हैं।
  • आनुवंशिक विचलन (Genetic drift)-कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटना के कारण किसी समष्टि के ज्यादातर जीव मर जाते हैं ऐसी स्थिति में जीन सीमित रह जाते हैं इसके कारण उस समष्टि का रूप बदल जाता है तथा उनकी संतति में केवल जीवित सदस्यों के लक्षण ही दिखाई देते हैं। इसे आनुवंशिक विचलन (Genetic drift) कहा जाता है। जैसे-महामारी तथा परभक्षण (Predation) आदि की स्थिति में।
  • विभिन्नताएँ एवं अनुकूलन-विभिन्नताएँ एवं अनुकूलता पर्यावरण में जीवों की उत्तर:जीविता कायम रखने में सहायक होते हैं।

2. एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?

Ans. केवल वे ही लक्षण वंशानुगत होते हैं जो जनन कोशिकाओं के DNA द्वारा अगली पीढ़ी में जाते हैं। उपार्जित लक्षण का जनन कोशिका के जीन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, कायिक ऊतकों में होने वाले परिवर्तन, लैंगिक कोशिकाओं के DNA में नहीं जा सकते।

3. बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता की दृष्टि से चिंता का विषय क्यों है?

Ans. बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता की दृष्टि से इसलिए चिंता का विषय है, क्योंकि यदि बाघ विलुप्त (extinct) हो गए, तो इसके स्पीशीज़ का जीन भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा तथा बाघों के स्पीशीज़ को पुनः वापस ला पाना असंभव होगा। हमारी अगली पीढी बाघ को नहीं देख पाएगी।

4. वे कौन-से कारक हैं, जो नयी स्पीशीज़ के उद्भवे में सहायक हैं?

Ans. नयी स्पीशीज़ के उद्भव में सहायक कारक निम्न हैं
(a) जीन प्रवाह (genetic flow) का स्तर कम होना।
(b) प्राकृतिक चयन (वरण) (Natural selection)
(c) विभिन्नताएँ।
(d) भौगोलिक पृथक्करण के कारण जनन पृथक्करण (Reproductive isolation)
(e) आनुवंशिक विचलन (genetic drift)

5. क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?

Ans. नहीं, भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज़ के पौधों के जाति-उद्भव का प्रमुख कारण नहीं हो सकता, क्योंकि ये पौधे दूसरे पौधों पर आगे जनन प्रक्रिया के लिए निर्भर नहीं करते हैं।

अथवा

भौतिक लक्षण भौगोलिक पृथक्करण द्वारा प्रभावित होते है | और इनमें विभिन्नता जाति उद्र्भव का एक अन्य कारण हो सकता है परन्तु मुख्य कारण डी.एन.ए  प्रतिकृति के दौरान उनमें परिवर्तन आना होता है | स्वपरागित स्पीशीज में नई पीढियों में नए बदलाव या विभिन्नताएँ उत्पन्न होने की उम्मीद बहुत कम होती है |

6. क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?

Ans. नहीं, क्योंकि अलैंगिक जनन करने वाले जीवों को जनन के लिए किसी अन्य जीव की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

अथवा

अलैंगिक जनन में उत्पन्न जिव लगभग एक दुसरे के सामान होते है तथा उनमें बहुत थोड़ा अन्तर होता है | इस क्रिया में विभिन्नताएँ DNA प्रतिकृति के दौरान  ही होती है तथा ये विभिन्नताएँ बहुत कम होती है |  भौगोलिक पृथक्करण इनमें जाति उद्र्भव का प्रमुख कारक हो सकता है क्योंकि इसके कारण ही नए वातावरण में जीवित रहने वी जीव अपने अन्दर नए उत्पन्न करते है |

7. उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका हम दो स्पीशीज़ के विकासीय संबंध निर्धारण के लिए करते हैं?

Ans. समजात अंगों की उपस्थिति से हमें दो स्पीशीज़ के सदस्यों में विकासीय संबंध स्थापित करने में सहायता मिलती है। उदाहरण- पक्षियों, सरीसृप एवं जल-स्थलचर (Amphibians) की तरह स्तरधारियों के चार पैर (पाद) होते हैं। सभी में पैरों की आधारभूत संरचना एक समान होती है, परंतु कार्यों में भिन्न होते हैं। ऐसे अंग समजात अंग कहलाते हैं। ये अभिलक्षण ईंगित करते हैं कि वे समान जनक से वंशानुगत हुए हैं।

8. क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?

Ans. नहीं, वे अंग जिनकी आधारभूत संरचना समान परंतु कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। लेकिन तितली और चमगादड़ के पंखों की आधारभूत संरचना भिन्न हैं, परंतु ये कार्य में एक समान हैं। इसलिए इन्हें समरूप अंग कहते हैं।

9. जीवाश्म क्या है? वे जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं।

Ans.  मृत जीवों के अवशेष ,चट्टानों पर के चिन्ह या उम्नके साँचे व शरीर की छाप जो हजारों साल पूर्व जीवित थे | इस तरह के सुरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते है | ये जीवाश्म हमें जैव – विकास प्रकम के बारे में कई बातें बताते है जैसे कौन से जीवाश्म नवीन है तथा कौन से पुराने , कौन सी स्पीशीज विलुप्त हो गई है | ये जीवाश्म विकास विभिन्न रूपों तथा वर्गों कभी वर्णन करते गुणों को भी ज्ञात कर सकते है |

अथवा

कभी-कभी जीव अथवा उसके कुछ भाग भूपटल की कठोर सतहों के बीच दब जाती हैं, जिसके कारण उसका अपघटन नहीं होता है तथा वे परिरक्षित (Preserved) रूप में मिलती हैं, जिन्हें जीवाश्म कहते हैं। जीवाश्म जैव-विकास के लिए एक प्रमाण (evidence) प्रदान करता है, जो इसे समझने में सहायता करता है। उदाहरण के लिए-आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) एक पक्षी जीवाश्म जो पक्षी की तरह दिखते हैं, परंतु इसमें अनेक ऐसे लक्षण हैं जो सरीसृप में पाए जाते हैं। इस तरह यह पक्षी तथा सरीसृप के बीच एक जैव-विकास संबंध (evolutionary relation) की कड़ी स्थापित करता है तथा प्रमाणित करते हैं कि पक्षी बहुत निकटता से सरीसृप से संबंधित हैं।

10. क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज़ के सदस्य हैं?

Ans. आधुनिक मानव स्पीशीज़ ‘होमो सेपियंस” का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। कुछ हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने अफ्रीका छोड़ दिया, जबकि कुछ वहीं रह गए। वे अलग-अलग देश के वातावरण में फैल गए जिसके कारण उनका आकार, आकृति रंग-रूप भिन्न हो गए। इन विविधताओं के बावजूद वे परस्पर सफल लैंगिक जनन (interbreeding) करने में समर्थ हैं तथा बच्चे पैदा कर सकते हैं, जिसके आधार पर उन्हें एक स्पीशीज़ के सदस्य कहा जाता है।

11. विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर: की व्याख्या कीजिए।

Ans. जब पृथ्वी पर जीवन का विकास हुआ था तब जीवाणु सबसे पहले बनने वाले जिव थे। युगों बाद वे अभी भी अपना अस्तित्व कायम रखे हुए हैं। उन्होंने पर्यावरण में आने वाले सभी परिवर्तनों को सफलतापूर्वक झेला है और उनके अनुसार अनुकूलन किया है इसलिए वे विस्तार के आधार पर पूर्ण रूप से सफ़ल और समर्थ हैं। इसी प्रकार मकड़ी, मछली तथा चिंपैंज़ी ने भी अपने-अपने जीवन को विपरीत परिस्थितियों में ढालने के लिए अनुकूलन किया है। इसलिए सभी का शारीरिक अधिकल्प उत्तम है। किसी को भी शारीरिक अधिकल्प निकृष्ट नहीं कहा जा सकता।

अथवा

जैव विकास में यह प्रवृत्ति दिखाई देती है कि समय के साथ-साथ उसके शारीरिक अभिकल्प की जटिलता में वृद्धि होती है। इस आधार पर चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प उत्तम प्रतीत होता है, परंतु प्रतिकूल एवं अत्यंत कठिन परिस्थितियों में उत्तर जीविता की दृष्टि से सरलतम अभिकल्प वाला एक समूह-जीवाणु-विषम पर्यावरण जैसे ऊष्ण झरने, गहरे समुद्र के गर्म स्रोत तथा अंटार्कटिका की बर्फ में भी पाए जाते हैं। अतः यह आवश्यक नहीं कि जटिल शारीरिक अभिकल्प वाले जीव जैवविकासीय दृष्टि से सरल शारीरिक अभिकल्प वाले जीवों से उत्तम हों। क्योंकि ये कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रह पाते हैं।

12. समजात अंगों का उदाहरण है
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते के अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू एवं घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपरोक्त सभी

Ans. (d) उपरोक्त सभी।

13. विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किस से अधिक समानता है? ।
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी
(d) जीवाणु

Ans. (d) चीन के विद्यार्थी।

14. जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन आपस में किस प्रकार परस्पर संबंधित है।

Ans. विभिन्न जीवों के बीच समानताओं एवं विभिन्नताओं के आधार पर ही उनका वर्गीकरण करते हैं। दो स्पीशीज़ के बीच जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ होंगी, उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा।

15. समजात अंग एवं समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।

Ans. समजात अंग (Homologous organs) -विभिन्न जीवों में ऐसे अंग जिनकी समान आधारभूत संरचना होती है, परंतु कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। जैसे- मेंढक, पक्षी एवं मनुष्य के अग्रपादों में अस्थियों की समान आधारभूत संरचना होती है, परंतु इनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं।

समरूप अंग (Analogous organs) -ऐसे अंग जो एक-समान कार्य संपन्न करते हैं, परंतु संरचनात्मक रूप से भिन्न होते हैं, उन्हें समरूप अंग कहते हैं। उदाहरण के लिए, कीट के पंख तथा पक्षी के पंख।

अथवा

समजात अंग: अंग जो उत्पत्ति तथा संरचना में समान होते हैं तथा कार्य में भिन्न हो सकते हैं। समजात अंग कहलाते हैं।
उदाहरण: (i) पक्षी के पंख तथा घोड़े के अग्रपाद।
(ii) मनुष्य की बाजू तथा गाय के अग्रपाद।
(iii) मेंढ़क के अग्रपाद तथा पक्षी के पंख।

समरूप अंग: वे अंग जो समान कार्य करते हैं तथा देखने में भी समान हैं लेकिन उनकी उत्पत्ति और संरचना भिन्न है, समरूप अंग कहलाते हैं।
उदाहरण: (i) कीट के पंख तथा पक्षी के पंख।
(ii) कीट के पंख तथा चमगादड़ के पंख।
(iii) चने के पौधे तथा मटर के पौधे में प्रतान।
(iv) चने के पौधे तथा अंगूर की बेल में प्रतान।

16. विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?

Ans. विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्मे के निम्नलिखित महत्त्व हैं

  1. पृथ्वी की सतह के निकट वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए जाने वाले जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए हैं। इससे हमें यह ज्ञात होता है कि किस जीव का उद्भव पहले तथा किसका बाद में हुआ।
  2. “फॉसिल डेटिंग’ विधि से भी जीवाश्म का समय निर्धारण किया जाता है तथा जीव के समय-काल का पता चलता है।
  3. जीवाश्म-आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) दो भिन्न प्रकार के स्पीशीज़ के बीच एक कड़ी (link) दर्शाते हैं।
  4. जीवाश्मों से जीवों और उनके पूर्वजों के बीच विकासीय विशेषकों को स्थापित करने में सहायता मिलती है।

अथवा

विकासीय संबंध स्थापित करने में जीवाश्म अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। युगों पहले जो जीव ऐसे वातावरण में चले गए थे जहां उनका पूरा अपघटन नहीं हुआ था तो  उन के शरीर की छाप चट्टानों पर सुरक्षित रह गई। वे परिरक्षित जीवाश्म ही जीवाश्म कहलाते। हैं। जब जीवाश्मों की खुदाई से प्राप्ति की जाती है तो उनकी प्राप्ति की गहराई से पता लग जाता है कि वह लगभग कितना पुराना है। ‘फॉसिल डेटिंग’ इस काम में सहायक सिद्ध होती है। जो जीवाश्म जितनी अधिक गहराई से प्राप्त होगा वह उतना ही पुराना होगा। लगभग 10 करोड़ वर्ष पहले समुद्र तल में अकशेरुकी जीवों के जो जीवाश्म प्राप्त होते हैं वे सब से पुराने हैं। इस के कुछ मिलियन वर्ष बाद जब डायनोसौर मरे तो उनके जीवाश्म अकशेरुकी जीवों के जीवाश्मों से ऊपरी सतह में बने। इसके कुछ मिलियन वर्ष बाद जब घोड़े के समान जीव जीवाश्मों में बदले तो उन्हें डायनोसौरों के जीवाश्मों से ऊपर स्थान मिला। इसी से उनका विकासीय संबंध स्थापित होता है।

17. किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है?

Ans. अजैविक (अकार्बनिक) पदार्थों से जीवन की उत्पत्ति ये विचार सर्वप्रथम एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन ने 1929 में प्रस्तुत किए। उसके अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के ठीक पश्चात, इस तरह की परिस्थितियाँ उपलब्ध थीं जिन्होंने जीवन की उत्पत्ति में सहायता की। उन परिस्थितियों में अजैविक पदार्थों से सरल व जटिल प्रकार के कार्बनिक यौगिक बने।

प्रमाण: स्टेनले एल. मिलर तथा हेराल्ड सी. उरे ने 1953 में इसका प्रमाण प्रस्तुत किया।
उन्होंने अजैविक पदार्थों; जैसे H2O, CO2, NH3, HCN के मिश्रण में से विद्युत् गुजारी तथा स्पार्किंग करवाई। इसके पश्चात उन्होंने इसके उत्पादों को गर्म पानी में संघनित किया। उस मिश्रण का जब विश्लेषण किया गया तो उन्होंने उसमें एमिनो अम्ल, पॉलीपेप्टाइड, प्रोटीन, लिपिड, पॉलिसैकराइड; जैसे अनेकों यौगिकों को पाया। आज जीवों में पाए जाने वाले जटिल यौगिक भी इस प्रकार के जीवों से ही बने हैं।

अथवा

सन् 1929 में ब्रिटिश वैज्ञानिक जे .बी.एस. हाल्डेन ने बताया कि शायद कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेष्ण हुआ जो जीवो के लिए आवश्यक थे | प्राथमिक जीव अन्य रासायनिक संश्लेष्ण द्वारा उत्पन्न  हुए होगें | इसके आमेनिया , मीथेन , तथा हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु परन्तु ऑक्सीजन के नंही थे | 100० C से कम ताप पर गैसों के मिश्रण में चिंगारियां उत्पन्न  करने पर एक सप्ताह बाद 15 प्रतिशत कार्बन सरल कार्बनिक यौगिकों में बदल गए | इनमें एमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं को बनाते हैं | इस प्रकार अजैविक पदार्थो से जीवों की उत्पति हुई |

18. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं। व्याख्या कीजिए यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों में विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?

Ans. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थाई होती हैं। अलैंगिक जनन एक ही जीव से होने के कारण केवल उसी के गुण उसकी संतान में जाते हैं और वे बिना परिवर्तन हुए पीढ़ी दर पीढ़ी समान ही रहते हैं। लैंगिक जनन नर और मादा के युग्मकों के संयोग से होता है जिनमें भिन्न-भिन्न जीन होने के कारण संकरण के समय विभिन्नता वाली संतान उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए सभी मानव युगों पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे पर जब उनमें से अनेक ने अफ्रीका छोड़ दिया और धीरे-धीरे सारे संसार में फैल गए तो लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नताओं के कारण उनकी त्वचा का रंग, कद, आकार आदि में परिवर्तन आ गया।

अथवा

अलैंगिक जनन में केवल एक ही जनक से DNA प्रतिकृति होती है, जिसके कारण उनमें बहुत अधिक समानताएँ होती हैं; जैस- गन्ने के पौधे। इनमें थोड़ी बहुत विभिन्नताएँ प्रतिकृति बनने के दौरान त्रुटियों के कारण होती है, जो बहुत न्यून (कम) होती हैं। परंतु लैंगिक जश्न में दो जनक के युग्मकों से प्राप्त हुए DNA का संलयन होता है, जिसके कारण संतति में बहुत अधिक विभिन्नताएँ आ जाती हैं। विभिन्नताओं का प्राकृतिक चयन (natural selection) होता है। अनुकूल विभिन्नताएँ पीढ़ी-दर-पीढी संचित होती रहती हैं तथा एक नई प्रजाति के रूप में विकसित होती हैं। स्पष्टतः ये विभिन्नताएँ वंशानुगत होती हैं तथा जैव विकास को प्रभावित करती हैं।

अथवा

अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थाई होती हैं। अलैंगिक जनन एक ही जीव से होने के कारण केवल उसी के गुण उसकी संतान में जाते हैं और वे बिना परिवर्तन हुए पीढ़ी दर पीढ़ी समान ही रहते हैं। लैंगिक जनन नर और मादा के युग्मकों के संयोग से होता है जिनमें भिन्न-भिन्न जीन होने के कारण संकरण के समय विभिन्नता वाली संतान उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए सभी मानव युगों पहले अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे पर जब उनमें से अनेक ने अफ्रीका छोड़ दिया और धीरे-धीरे सारे संसार में फैल गए तो लैंगिक जनन से उत्पन्न विभिन्नतओं के कारण उसकी त्वचा का रंग, कद, आकार आदि में परिवर्तन आ गया।

प्रभावित करने के कारण/आधार:
(i) लैंगिक जनन में DNA की प्रतिकृति में हुई त्रुटियों के कारण विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(ii) नर और मादा के क्रॉसिंग ओवर के समय समजात गुणसूत्रों के समान भाग आपस में बदल जाते हैं।
(iii) संतान को अपने माता-पिता से बराबर आनुवंशिक पदार्थ प्राप्त होता है जिसमें जीन परस्पर क्रिया कर अनेक नए विकल्पों को जन्म दे सकती है।
(iv) संतान के लिंग और विभिन्नताएँ सदा इस संयोग पर निर्भर करती हैं कि माता-पिता का कौन-सा मादा युग्मक नर शुक्राणु के साथ संयोजित होगा।

19. केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं?

Ans. हाँ, वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। उत्तर जीविता में लाभ वाली विभिन्नताओं का ही प्राकृतिक चयन होता है। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है उदाहरण के लिए, प्रारंभ में केवल एक हरे भुंग थे। कौए हरी पत्तियों में हरे भुंग को नहीं देख पाते हैं। अतः इन्हें नहीं खा पाते हैं, जिससे शृंगों की समष्टि में लाल भूगों की समष्टि की अपेक्षा हरे भूगों की संख्या बढ़ती जाती है। अर्थात्, लाल भृग तथा नीले भृग की तुलना में हरे भुंग के लिए उत्तर जीविता (survival) के लिए लाभ है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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