द्रव स्थैतिकी (Hydrostatics)

द्रव स्थैतिकी भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत द्रवों के सामान्य गुण-धर्म व द्रवों के अंदर बल व दाब तथा तरल पदार्थों (liquids) के बलों के कारण संतुलन अवस्था का अध्ययन किया जाता है।

➤ पदार्थ (Matter)

प्रत्येक वस्तु जिसमें द्रव्यमान होता है, वह स्थान घेरती है और उसका अनुभव हम अपनी ज्ञानेंद्रियों से कर सकते हैं, द्रव्य कही जाती है। यथा लोहा, हवा, पानी, लकड़ी, दूध इत्यादि। द्रव्य की मुख्यतः तीन अवस्थाएँ पायी जाती हैं ठोस (Solid), द्रव (Liquid) व गैस (Gas)। परन्तु द्रव्य की एक और अवस्था पायी जाती है जिसे प्लाज्या (Plasma) कहा जाता है। यह द्रव्य की सामान्य अवस्था नहीं है और केवल उच्च्च ताप व दाब पर ही प्राप्त की जा सकती है। यह प्रायः सूर्य व पृथ्वी के केंद्रीय भाग में उपस्थित होती है।

➤ पदार्थों के सामान्य गुण (General Properties of Matter)

पदार्थों के सामान्य गुण निम्नवत् हैं –

(1) अवस्था परिवर्तन (Change of State)

(2) प्रत्यास्थता (Elasticity)

(3) दाब (Pressure)

(4) प्लवन (Floating)

(5) पृष्ठ तनाव (Surface Tension)

(6) केशिकत्व (Capillarity)

(7) श्यानता (Viscosity)

यहाँ हम द्रव्य के उक्त गुणों का अध्ययन द्रवों (Liquids),

ठोसों (Solids) व गैसों (Gasses) में अलग-अलग करेंगे।

➤ ठोस (Solid)

ठोस पदार्थ की वह अवस्था है जिसमें सामान्य दशाओं में पदार्थ का आयतन व आकार दोनों निश्चित होते हैं। ठोस अपने आयतन व आकार दोनों ही तरह के परिवर्तनों का विरोध करता है।

➤ द्रव (Liquid)

द्रव पदार्थ की वह विशेष अवस्था है जिसमें पदार्थ या द्रव्य (matter) अपने आकार (Shape) में परिवर्तन का विरोध नहीं करता और जिस पात्र में रखा जाता है, उसी का आकार धारण कर लेता है, परन्तु आयतन स्थिर रहता है।

➤ गैस (Gas)

गैस, पदार्थ की वह अवस्था है जिसमें पदार्थ का आयतन व आकार दोनों ही अनिश्चित होते हैं। गैस को जिस पात्र में रखा जाता है उसी का आकार व आयतन ग्रहण कर लेता है।

दाब (Pressure)

यदि किसी सतह पर उसके लम्बवत् कोई बल लग रहा हो तो कहा जाता है कि सतह पर दाब लग रहा है। पृष्ठ या सतह पर लगने वाला दाब उस पर आरोपित बल तथा पृष्ठ के क्षेत्रफल के अनुपात के बराबर होता है। अतः एकांक (unit) क्षेत्रफल (area) पर कार्यरत बल दाब कहलाता है। यह एक अदिश राशि है।*

अतः दाब (P) = पृष्ठ के लंबवत् बल (F) / पृष्ठ का क्षेत्रफल (A)

• मात्रक – (a) न्यूटन/मीटर² (N / (m2)) या पास्कल (Pa) * (b) पारे का सेंटीमीटर – यह वह दाब है जो किसी तल पर स्थित पारे के 1 सेमी. ऊँचे स्तम्भ द्वारा आरोपित होता है। इसका उपयोग द्रवों तथा गैसों के दाब को प्रदर्शित करने में किया जाता है।

1 सेमी. पारा = 1.33 * 103 न्यूटन/मी.2

व, 76 सेमी. पारा = 1.013 * 10 5 N / (m 2)

= 1 वायुमण्डलीय दाब

सामान्यतः दाब को सेमी पारा में न लिखकर केवल सेमी. में ही लिखा जाता है परन्तु इसका अर्थ होता है- सेमी. पारा। वायुदाब (atmospheric pressure) को जब 76 सेमी. या 760 मिमी. कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है वायुमण्डल का दाब सतह पर 76 सेमी. ऊँचे पारे के स्तम्भ के बराबर है।

(c) बार तथा मिली बार – ऋतु विज्ञान (Weather Science) में वायुमण्डल के दाब को प्रायः बार (bar) अथवा मिलीबार (milibar) में प्रदर्शित करते हैं। वायुमण्डल का दाब पारे के स्तम्भ में 76 सेमी. से व्यक्त होता है, जो 1.013 बार अथवा 1013 मिलीबार से प्रदर्शित किया जाता है।

1 बार = 105 न्यूटन/मी² = 105 P a* 
1 मिलीबार = 102 न्यूटन/मी.2 = 102 Pa
1 टॉर (torr) = 1 मिमी पारा (= 133.8Pa )*

➤ द्रवदाब (Pressure In Liquids)

द्रवों के अणु (molecules of liquids) इतने स्वतंत्र होते हैं कि द्रव की सीमा के अंदर विभिन्न दिशाओं में अनियमित गति (Ran- dom Motion) करते रहते हैं। इस प्रकार वे आपस में तथा बर्तन की दीवारों से टकराते रहते हैं। जिससे द्रव के अंदर सभी दिशाओं में एक बल आरोपित होता है। प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले इसी बल को द्रव का दाब कहते हैं। चूँकि अणु सभी दिशाओं में समान रूप से गति करते हैं। अतः किसी बिंदु पर द्रव का दाब भी सभी दिशाओं में समान रूप से लगता है।

द्रव के अंदर किसी बिंदु पर द्रव दाब की गणना सूत्र P = h x d x g से करते हैं। जहाँ h = द्रव की सतह से उस बिंदु की गहराई, d = द्रव का घनत्व (density) व g = गुरुत्वीय त्वरण होता है।

द्रव का दाब द्रव के घनत्व, सतह से गहराई तथा गुरुत्वीय त्वरण पर निर्भर करता है परन्तु द्रव की आकृति (जो कि बर्तन की आकृति ही होती है) पर नहीं।

यदि द्रव के स्वतंत्र तल पर लगने वाले वायुमण्डलीय दाब को भी शामिल कर लिया जाय, तो द्रव में कुल दाब = वायुमण्डलीय दाब + hdg

➤ द्रव दाब के नियम (Laws of Liquid Pressure)

(1) द्रव के भीतर किसी बिन्दु पर द्रव का दाब द्रव के स्वतंत्र तल से बिंदु की गहराई पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे गहराई बढ़ती है, द्रव का दाब भी बढ़ता है।

चित्रानुसार जैसे-जैसे गहराई बढ़ रही है पात्र के छिद्र से निकलने वाली धारा अधिक दूर (a के द्वारा) जाकर गिर रही है अर्थात् गहराई बढ़ने पर दाब बढ़ रहा है।

(2) एक ही गहराई पर द्रव का दाब चारों ओर समान होता है।*

चित्रानुसार, यदि किसी बर्तन में चारों तरफ छेद कर दिया जाय तो चारों ओर पानी समान दाब से निकलता प्रतीत होता है क्योंकि पानी की धारा पृथ्वी पर बराबर दूरी पर जाकर गिरती है।

(3) किसी द्रव के एक ही क्षैतिज तल में स्थित सभी बिंदुओं पर दाब समान होता है।*

चित्र – बिंदु A, B, C व D पर दाब समान है अर्थात् द्रव पात्र में द्रव का दाब सिर्फ उसकी ऊर्ध्वाधर गहराई (h) पर निर्भर करता है यह नली के आकार या चौड़ाई पर निर्भर नहीं करता।

(4) समान गहराई पर द्रव का दाब द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है। यदि अनेक बर्तनों में समान गहराई तक भिन्न-भिन्न द्रव भरे जायें तो जिस बर्तन में भरे द्रव का घनत्व अधिक होगा उसकी पेंदी पर द्रव का दाब भी अधिक होगा।

➤ पास्कल का नियम (Pascal’s Law)

(a) यदि गुरुत्वीय प्रभाव को शून्य माना जाय तो संतुलन की अवस्था में द्रव के भीतर प्रत्येक बिन्दु पर दाब समान होता है। गुरुत्व बल को प्रभावी मानने पर गहराई के साथ द्रवदाब बढ़ता जाता है, परन्तु समान गहराई पर द्रव दाब तब भी समान होता है।

(b) किसी बर्तन में बन्द द्रव के किसी भाग पर आरोपित बल, द्रव द्वारा सभी दिशाओं में समान मात्रा (quantity) में वितरित कर दिये जाते हैं।

(c) बर्तन का आकार द्रव दाब को प्रभावित नहीं करता।

➤ गलनांक तथा क्वथनांक पर दाब का प्रभाव (Effect of Pressure on Melting and Boiling Point)

(1) गलनांक पर प्रभाव (Effect on Melting Point)- गर्म करने पर जिन पदार्थों के आयतन में वृद्धि होती है, दाब बढ़ने पर उनका गलनांक भी बढ़ जाता है। जैसे मोम, घी आदि।

विपरीततः गर्म करने पर जिन पदार्थों के आयतन में कमी आती है, दाब बढ़ने पर उनका गलनांक भी कम हो जाता है। जैसे- बर्फ, बिस्मथ व ढलवा लोहा इत्यादि।

(2) क्वथनांक पर प्रभाव (Effect on Boiling Point)- दाब बढ़ने पर सभी द्रवों का क्वथनांक बढ़ जाता है। यथा – 1 वायुमण्डलीय दाब पर साधारण जल 100°C पर उबलता है परन्तु यदि दाब बढ़ाकर 2 वायुमण्डलीय दाब के बराबर कर दिया जाय तो अब वह लगभग 125°C पर उबलेगा।

प्लवन (Floatation)

किसी वस्तु के किसी द्रव में तैरने को प्लवन कहते हैं। प्लवन वस्तु के भार व द्रव के उत्क्षेप पर निर्भर करता है।

जब किसी वस्तु को किसी द्रव में डुबाते हैं या डुबाने का प्रयास करते हैं, तो द्रव द्वारा भी उस पर ऊपर की तरफ बल लगाया जाता है जिसका आभास हम उसके भार (weight) में आई कमी अथवा उसको छोड़ देने पर स्वतः ऊपर आने से कर सकते हैं। इस बल को हम उत्प्लावन बल (Buoyant force) कहते हैं व द्रव के इस गुण को जिसके कारण वह वस्तुओं पर ऊपर की ओर बल लगाता है, उत्क्षेप (Upthrust) कहते हैं। जल के उत्क्षेप का अध्ययन सर्वप्रथम आर्किमिडीज ने किया और एक सिद्धान्त दिया जिसे आर्किमिडीज का सिद्धान्त कहते हैं।

➤ आर्किमिडीज का सिद्धान्त (Archimede’s Principle)

किसी ठोस (Solid) वस्तु को किसी द्रव में पूर्णतः या अंशतः डुबाने पर ठोस के भार में कमी प्रतीत होती है तथा ठोस के भार में यह कमी (i.e. आभासी कमी) उसके द्वारा विस्थापित (हटाई गई) द्रव के भार के बराबर होती है। इस प्रकार, उत्प्लावन बल = भार में आभासी कमी = हटाये गये द्रव का भार

चित्रानुसार, यदि ठोस का भार W हो तथा हटाये गये द्रव का भार या उत्प्लावन बल W1 हो तो द्रव में ठोस पर कार्यरत परिणामी बल = W ~ W1 [i.e. W व W1 का अंतर] इस दशा में तीन स्थितियाँ (conditions) संभव है –

(1) यदि, W > W1 → परिणामी बल नीचे की तरफ होगा। (अर्थात् वस्तु का भार उत्प्लावन बल से अधिक है) तो वस्तु द्रव में डूब जायेगी। ऐसा तब होता है जब वस्तु के पदार्थ (matter) का घनत्व, द्रव के घनत्व से अधिक होता है।

(2) यदि, W = W1

तो वस्तु, पूरी तरह डूबी हुई तैरती रहेगी क्योंकि परिणामी बल शून्य होगा। ऐसा तब होता है जब वस्तु के पदार्थ का घनत्व तथा द्रव का घनत्व बराबर होता है।

(3) यदि W < W1

(अर्थात् महत्तम उत्प्लावन बल वस्तु के भार से अधिक है।) तो वस्तु को पूरी तरह द्रव में डुबाकर छोड़ने से वस्तु धीरे-धीरे ऊपर की ओर आना प्रारम्भ कर देगी और उसका कुछ हिस्सा द्रव के बाहर निकल आयेगा और W1 का मान महत्तम उत्प्लावन (जब पूरी तरह डूबी है) से कम होना शुरू हो जायेगा और वस्तु का कुछ अंश द्रव के तल से तब तक ऊपर निकलता रहेगा जब तक W तथा W1 के बराबर न हो जाये। इस अवस्था में वस्तु का कुछ अंश द्रव की सतह से ऊपर तथा कुछ अंश द्रव की सतह के अंदर रहेगा और वस्तु तैरेगी।

अतः संतुलित अवस्था में तैरने पर वस्तु अपने भार के बराबर द्रव विस्थापित करती है। इस नियम को उत्प्लावन या प्लवन का नियम (Law of floatation) कहते हैं। अतः तैरने की अवस्था में वस्तु द्वारा हटाये गये द्रव का भार उत्प्लावन बल वस्तु का भार।

अतः द्रव में आंशिक रूप से डूबकर तैरने वाली वस्तु के लिए-

वस्तु का घनत्व (ds)/द्रव का घनत्व (dL)

= वस्तु का द्रव में डूबा हुआ आयतन (v1) / वस्तु का कुल आयतन (v)
= द्रव के सापेक्ष ठोस का आपेक्षिक घनत्व (Relative Density) इसी सिद्धान्त से निम्न निष्कर्ष भी प्राप्त होते हैं

(a) किसी ठोस का आपेक्षिक घनत्व

= ठोस का वायु में भार / जल में ठोस के भार में कमी

(b) किसी द्रव का आपेक्षिक घनत्व

द्रव में ठोस के भार में कमी / जल में ठोस के भार में कमी

➤ द्रव दाब व आर्किमिडीज सिद्धान्त पर आधारित विभिन्न उपकरण (Equipments based on the principle of Archimedes and Pressure of Liquid)

(1) मैनो मीटर (Manometer)- इसे दाबान्तर मापी कहते हैं जिसका उपयोग किसी बर्तन में भरी गैस का दाब ज्ञात करने के लिए किया जाता है। यह काँच की एक ‘U’ आकार की नली होती है जिसके दोनों सिरे खुले होते हैं। नली के निचले भाग में पारा (Hg) या अन्य कोई द्रव भर देते हैं। चूँकि दोनों नालियों में समान वायुमण्डलीय दाब कार्य करता है। अतः दोनों तरफ द्रव का तल समान रहता है। जिस बर्तन के अंदर भरी गैस के दाब की गणना करनी होती है उसे नली के एक सिरे से सम्बद्ध कर दिया जाता है। अब यदि गैस का दाब वायुमण्डलीय दाब में अधिक होता है तो गैस की तरफ वाली नली में द्रव का तल व दूसरी तरफ ऊपर चला जाता है व विपरीततः भी।

(2) सरल वायुदाबमापी (Simple Barometer)- यदि एक छोर (end) पर बंद (close) व दूसरे छोर पर खुले 1 मीटर लंबी, मोटी दीवार वाली कांच की नली (tube) में पारा भर कर उसे पारे से भरे एक टब में उल्टा करके ऊर्ध्वाधर (Verticle) खड़ा किया जाय तो नली में पारा नीचे उतर कर एक स्थिति में रुक जाता है। नली में पारे के स्तम्भ की ऊँचाई वायुमण्डलीय दाब के अनुक्रमानुपाती होता है अर्थात् जैसे-जैसे वायुमण्डलीय दाब अधिक होगा नली में पारा ऊँचा होगा (कम गिरेगा) और विपरीततः भी (Vice-versa)। साधारणतः समुद्र तल पर यह ऊँचाई 76 सेमी. पारे के बराबर होती है और जैसे-जैसे ऊपर जाते हैं यह कम होती जाती है। इसे सरल वायुदाबमापी कहते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि वायुमण्डलीय दाब, पारे के 76 सेमी. स्तम्भ के बराबर होता है।

इस ऊँचाई का स्तम्भ 1.013 × 105 न्यूटन/मी.2 या 1.013 बार के बराबर दाब व्यक्त करता है। इसमें पारे के स्थान पर अन्य द्रवों का प्रयोग भी किया जा सकता है परन्तु घनत्व कम होने के साथ-साथ नली की लम्बाई बढ़ानी पड़ेगी। जैसे पार के स्थान पर जल का प्रयोग करने पर नली की लम्बाई कम से कम 10.33 मीटर रखनी होगी।

➤ पनडुब्बी (Submarine)

जल के अंदर डूबकर तैर सकने वाले जलयान को पनडुब्बी (Submarine) कहते हैं। यह भी प्लवन के नियम व आर्किमिडीज के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसमें आगे व पीछे दो बड़ी-बड़ी पानी की टंकियाँ होती हैं जिनमें पम्पों की सहायता से समुद्री जल भरा व निकाला जा सकता है। जरूरत के अनुसार इनमें इस तरह जल भरा जाता है कि ये जल के अंदर डूबकर तैर सके। ऐसी अवस्था में पनडुब्बी द्वारा हटाये गये जल का भार पनडुब्बी के भार के बराबर होता है। यदि हटाये गये द्रव का भार, पनडुब्बी के भार से कम होता है तो पनडुब्बी नीचे जाती है। इस प्रकार प्लवन के नियम का प्रयोग कर पनडुब्बी इच्छानुसार जल के अंदर या सतह पर चलाई जा सकती है।

➤ द्रव घनत्वमापी (Hydrometer)

यह आर्किमिडीज के सिद्धान्त पर कार्य करने वाला एक यंत्र है जिससे द्रवों का विशिष्ट गुरुत्व निकाला जाता है व उनकी शुद्धता (Purity) की परीक्षा की जाती है। चूँकि द्रव में डालने पर कोई वस्तु उतना ही द्रव विस्थापित करती है जितना उसका भार होता है। अतः अधिक घनत्व वाले द्रव में अधिक मात्रा में डूबती है। अतः आर्किमिडीज के सिद्धान्त का प्रयोग कर विभिन्न द्रवों के घनत्व की गणना की जा सकती है। इसके लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है –

किसी वस्तु का आपेक्षिक घनत्व

= वस्तु का वायु में भार / पानी में वस्तु के भार में कमी

यदि किसी वस्तु का आपेक्षिक घनत्व 1 आता है तो उसका घनत्व पानी के घनत्व (1) ग्राम/घन सेमी. या 1.0 × 103 किग्रा/घन मी. होगा) के बराबर होगा।

दुग्ध घनत्वमापी (Lactometer) भी एक प्रकार का हाइड्रोमीटर ही है जिससे दूध का घनत्व माप, उसमें पानी की मिलावट का पता लगाया जाता है।

द्रव गतिकी (Hydrodynamics)

द्रव गतिकी (Hydrodynamics) भौतिक विज्ञान (Physics) की वह शाखा है जिसमें गतिशील द्रव पर कार्य करने वाले बल, दाब एवं उसकी ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है।

➤ ससंजक तथा आसंजक बल (Cohesive and Adhesive Force)

हम जानते हैं कि प्रत्येक पदार्थ अणुओं से मिलकर बना होता है जो आपस में एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। एक ही पदार्थ के अणुओं के बीच लगने वाले आकर्षण बल को ससंजक बल तथा भिन्न-भिन्न पदार्थों के अणुओं के बीच लगने वाले आकर्षण बल को आसंजक बल कहते हैं। इन बलों की प्रकृति गुरुत्वाकर्षण बलों से अलग होती है तथा ये व्युत्क्रम वर्ग नियम (F α 1/r2) का पालन भी नहीं करते। अतः ये गुरुत्वीय बलों से भिन्न है। जैसे – गिलास में पानी रखा है तो पानी के अणुओं के बीच ससंजक (Cohesive) बल तथा पानी व गिलास के अणुओं के बीच आसंजक (Adhesive) बल लगता है।

ठोसों (Solids) में ससंजक बल का मान बहुत अधिक होता है। अतः वे एक दूसरे से दृढ़तापूर्वक बंधे रहते हैं। इसीलिए उनका आकार व आयतन दोनों नियत रहता है। गैसों में ससंजक बल का मान नगण्य होता है। इसीलिए उनका न तो आकार (shape) नियत होता है और न ही आयतन (volume) साथ ही इसी कारण उनमें विसरण (Diffusion) का गुण पाया जाता है। द्रवों के अणुओं (Molecules) के बीच ससंजक बल, ठोसों से कम व गैसों से ज्यादा लगता है। इसीलिए इनका आयतन तो निश्चित रहता है परन्तु आकार नहीं और इनमें बहनीयता का गुण (nature of flowing) भी इसी कारण पाया जाता है।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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