नए इलाके में, खुशबू रचते हैं हाथ : अध्याय 10

(1) नए इलाके में

इन नए बसते इलाकों में
जहाँ रोज बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ

धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
और जमीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था इकमंजिला

और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता

यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं

एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाजा खटखटाओ
और पूछो- क्या यही है वो घर?

समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।

(2) खुशबू रचते हैं हाथ

कई गलियों के बीच
कई नालों के पार
कूड़े-करकट
के ढेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ
जही की डाल से खशबदार हाथ

गंदे कटे-पिटे हाथ
जख्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

यहीं इस गली में बनती है
मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी
अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।

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प्रश्न-अभ्यास

(1) नए इलाके में

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है?
Ans.
कवि नए बसते इलाकों में रास्ता इसलिए भूल जाता है क्योंकि यहाँ नित नया निर्माण होता रहता है। नित नई घटनाएँ घटती रहती हैं। अपने ठिकाने पर जाने के लिए जो निशानियाँ बनाई गई होती हैं, वे जल्दी ही मिट जाती हैं। पीपल का पेड़ हो या ढहा हुआ मकान या खाली प्लाट, सबमें शीघ्र ही परिवर्तन हो जाता है। इसलिए वह प्रायः रास्ता भूल जाता है।

(ख) कविता में कौन-कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है?
Ans.
कविता में निम्नलिखित पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है

  • पीपल का पेड़
  • ढहा हुआ घर
  • जमीन का खाली टुकड़ा।
  • बिना रंग वाले लोहे के फाटक वाला इकमंजिला मकान।

(ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है?
Ans.
कवि एक घर पीछे या दो घर आगे इसलिए चल देता है क्योंकि उसे नए इलाके में उसके घर पहुँचने तक की जो निशानियाँ थी वे सब मिट चुकी थीं। उसने कई निशानियाँ बना रखी थी; जैसे – एक मंजिले मकान की निशानी बिना रंगवाला लोहे का फाटक। लेकिन इनमें से कुछ भी नहीं बचा था। प्रतिदिन आ रहे थे परिवर्तनों के कारण वह अपना घर नहीं ढूढ़ पाया। और आगे पीछे निकल जाता है।

(घ) ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’ से क्या अभिप्राय है?
Ans.
वंसत का गया पतझड़ और बैसाख का गया भादों को लौटा से अर्थ है कि ऋतु परिवर्तन में समय लगता है। कवि काफी समय बाद घर लौटा है। पहले जो परिवर्तन महीनों में होते थे, अब वह दिनों में हो जाते हैं और कवि तो काफी समय बाद आया है।

(ङ) कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी’ की ओर क्यों इशारा किया है?
Ans.
इस कविता में कवि ने समय की कमी की ओर इशारा किया है। लोग हरदम कुछ-न-कुछ करने, बनाने और रचने की जुगाड़ में लगे रहते हैं। इस अंधी प्रगति में उनकी पहचान खो गई है। वे स्वयं को भूल गए हैं। इसके कारण उनके भीतर एक डर समा गया है कि कहीं वे अकेले तो नहीं रह गए हैं। क्या कोई उन्हें पहचानने वाला मिल जाएगा या नहीं। लोगों के पास इतनी फुरसत नहीं है कि वे इस अंधे निर्माण से समय निकालकर एक-दूसरे के साथ आत्मीयता जोड़ सकें।

(च) इस कविता में कवि ने शहरों की किस विडंबना की ओर संकेत किया है?
Ans.
इस कविता में कवि ने शहरों की निरंतर गतिशीलता, कर्मप्रियता और निर्माण की अंधी दौड़ के कारण खोती आत्मीयता का चित्रण किया है। शहरों में नई-नई बस्तियाँ, नए-नए निर्माण तो रोज हो रहे हैं किंतु उनकी पहचान और आत्मीयता नष्ट हो रही है।

2. व्याख्या कीजिए-

(क) यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
       एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
Ans.
आज दुनिया में इतनी तीव्र गति से बदलाव हो रहा है कि साल भर का बदलाव एक दिन में हो जाता है। इस बदलाव को देखकर अपनी जानी-पहचानी वस्तुएँ भूलने का भ्रम होने लगता है। यहाँ तक कि सुबह का गया शाम को लौटने पर वह अपना मकान न ढूंढ़ पाने पर लगता है कि एक ही दिन में पुरानी पड़ गई है, क्योंकि कल तक तो कुछ न कुछ फिर नया बन जाएगा।

(ख) समय बहुत कम है तुम्हारे पास
      आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
      शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर
Ans.
कवि कहता है कि तेजी से बदलती दुनिया और उसके साथ तालमेल बिठाने के क्रम में लोगों के पास समय बहुत कम बचा है। कवि देखता है कि आकाश में काले बादल छाये चले आ रहे हैं। वर्षा की पूरी संभावना है। ऐसे में लोग छतों पर आएँगे। अब उनमें से कोई कवि को पहचानकर पुकार लेगा कि आ जाओ, तुम्हारा घर यहीं है, जिसे तुम खोज नहीं पा रहे हो।

(2) खुशबू रचते हैं हाथ

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) ‘खुशबू रचनेवाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में तथा कहाँ-कहाँ रहते हैं?
Ans.
 ‘खुशबू रचने वाले हाथ’ घोर गरीबी, अभावग्रस्त और अमानवीय परिस्थितियों में गंदे नाले के किनारे कूड़े-करकट के ढेर के पास छोटी-छोटी बस्तियों की तंग और गंदी गलियों में रहते हैं। वहाँ की बदबू से लगता है कि नाक फट जाएगी।

(ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है?
Ans.
कविता में निम्न प्रकार के हाथों की चर्चा हुई है – उभरी नसों वाले हाथ, पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ, घिसे नाखूनों वाले हाथ, जूही की डाल से खूशबूदार हाथ, जख्म से फटे हाथ आदि।

(ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’?
Ans.
‘खुशबू रचते हैं हाथ’ ऐसा कवि ने इसलिए कहा है जिन हाथों द्वारा दुनिया भर में खुशबू फैलाई जाती है, वे हाथ गंदे हैं, गंदी जगहों पर रहते हैं और अभावग्रस्त जीवन जीने को विवश हैं।

(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती है, वहाँ का माहौल कैसा होता है?
Ans.
जहाँ अगरबत्तियाँ बनती है वहाँ का वातावरण अत्यंत गंदा होता है। गंदे नाले से उठती बदबू, चारों ओर कूड़े के ढेर से उठती बदबू से दुर्गंध फैली होती है। इस बदबू से ऐसा लगता है जैसे नाक फट जाएगी।

(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
Ans.
इस कविता को लिखने है का उद्देश्य है-समाज के मजदूर वर्ग और अन्य लोगों के बीच घोर विषमता का चित्रण तथा दुनिया भर में अपनी बनाई अगरबत्तियों के माध्यम से सुगंध फैलाने वाले मजदूर वर्ग का घोर गरीबी में गंदगी के बीच जीवन बिताना तथा समाज द्वारा उनकी उपेक्षा की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कराना।

2. व्याख्या कीजिए-

(क) (i) पीपल के पत्ते से नए-नए हाथ
            जूही की डाल से खुशबूदार हाथ
Ans.
कवि अगरबत्तियाँ बनाने वाले मजदूरों के बारे में बताता है कि इस उद्योग में पीपल के नए पत्ते जैसे सुकोमल हाथ वाले लड़कों तथा जूही की डाल जैसे नव युवतियों के सुंदर हाथों को भी काम करना पड़ रहा है। अर्थात् बाल श्रमिक भी कार्यरत हैं।

      (ii) दुनिया की सारी गंदगी के बीच
           दुनिया की सारी खुशबू
           रचते रहते हैं हाथ
Ans.
कवि ने इन पंक्तियों में खुशबू बनाने वाले मजदूरों के बारे में बताया है कि ये मजदूरों को दुनिया की सारी गंदगी के बीच रहने को विवश हैं। ऐसे गंदे स्थानों पर रहकर वे सारी दुनिया में सुगंध बिखेरते हैं। ये मज़दूर गंदी जगहों पर रहकर गंदे हाथों से काम करके दुनिया को खुशी और सुगंध बाँट रहे हैं।

(ख) कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है? इसका क्या कारण है?
Ans.
इस कविता में कवि ने बहुवचन का प्रयोग इसलिए किया है, क्योंकि ऐसे उद्योगों में काम करना किसी एक जगह की नहीं बल्कि अनेक देशों की समस्या है और इनमें बहुत-से मज़दूर काम करने को विवश हैं।

(ग) कवि ने हाथों के लिए कौन-कौन से विशेषणों का प्रयोग किया है?
Ans.
कवि ने हाथों के लिए कई विशेषणों का प्रयोग किया है; जैसे-

  • उभरी नसों वाले
  • घिसे नाखूनों वाले
  • पीपल के पत्ते से नए-नए
  • जूही की डाल जैसे खुशबूदार
  • गंदे कटे-पिटे
  • ज़ख्म से फटे हुए

अरुण कमल (1954)

अरुण कमल का जन्म बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में 15 फरवरी 1954 को हुआ। ये इन दिनों पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं। इन्हें अपनी कविताओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इन्होंने कविता-लेखन के अलावा कई पुस्तकों और रचनाओं का अनुवाद भी किया है।

अरुण कमल की प्रमुख कृतियाँ हैं : अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में, पुतली में संसार (चारों कविता संग्रह) तथा कविता और समय (आलोचनात्मक कृति)। इनके अलावा अरुण कमल ने मायकोव्यस्की की आत्मकथा और जंगल बुक का हिंदी में और हिंदी के युवा कवियों की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जो ‘वॉयसेज’ नाम से प्रकाशित हुआ।

अरुण कमल की कविताओं में नए बिंब, बोलचाल की भाषा, खड़ी बोली के अनेक लय-छंदों का समावेश है। इनकी कविताएँ जितनी आपबीती हैं, उतनी ही जगबीती भी। इनकी कविताओं में जीवन के विविध क्षेत्रों का चित्रण है। इस विविधता के कारण इनकी भाषा में भी विविधता के दर्शन होते हैं। ये बड़ी कुशलता और सहजता से जीवन-प्रसंगों को कविता में रूपांतरित कर देते हैं। इनकी कविता में वर्तमान शोषणमूलक व्यवस्था के खिलाफ़ आक्रोश, नफ़रत और उसे उलटकर एक नयी मानवीय व्यवस्था का निर्माण करने की आकुलता सर्वत्र दिखाई देती है।

प्रस्तुत पाठ की पहली कविता ‘नए इलाके में’ में एक ऐसी दुनिया में प्रवेश का आमंत्रण है, जो एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है। यह इस बात का बोध कराती है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता। इस पल-पल बनती बिगड़ती दुनिया में स्मृतियों के भरोसे नहीं जिया जा सकता। इस पाठ की दूसरी कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ सामाजिक विषमताओं को बेनकाब करती है। यह किसकी और कैसी कारस्तानी है कि जो वर्ग समाज में सौंदर्य की सृष्टि कर रहा है और उसे खुशहाल बना रहा है, वही वर्ग अभाव में, गंदगी में जीवन बसर कर रहा है? लोगों के जीवन में सुगंध बिखेरनेवाले हाथ भयावह स्थितियों में अपना जीवन बिताने पर मजबूर हैं। क्या विडंबना है कि खुशबू रचनेवाले ये हाथ दूरदराज के सबसे गंदे और बदबूदार इलाकों में जीवन बिता रहे हैं। स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान करनेवाले ये लोग इतने उपेक्षित हैं। आखिर कब तक?

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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