सवैया
पुर तें निकसी रघुबीर-बधू, धरि धीर दए मग में डग द्वै।
झलकीं भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
फिरि बूझति हैं, “चलनो अब केतिक, पर्नकुटी करिहौं कित है?”।
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै।।
“जल को गए लक्खनु, हैं लरिका परिखौ, पिय! छाँह घरीक है ठाढ़े।
पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिहौं भूभुरि-डाढ़े।।”
तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।
जानकीं नाह को नेह लख्यौ, पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।।
– तुलसीदास
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प्रश्न-अभ्यास
सवैया से
1. नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने के बाद सीता की क्या दशा हुई?
Ans. नगर से बाहर निकलकर दो पग अर्थात थोड़ी दूर चलने के बाद सीता जी के माथे पर पसीने की बूंदें झलकने लगीं। उनके कोमल ओठ सूख गए। वे शीघ्र ही थक गईं।
2. ‘अब और कितनी दूर चलना है, पर्णकुटी कहाँ बनाइएगा’ किसने किससे पूछा और क्यों?
Ans. ‘अब और कितना दूर चलना है, पर्नकुटी कहाँ बनाइएगा ये शब्द सीता जी ने श्रीराम से पूछे क्योंकि वे बहुत अधिक थक गई
3. राम ने थकी हुई सीता की क्या सहायता की?
Ans. राम ने जब देखा कि सीता थक चुकी हैं, तो वह देर तक बैठकर पैरों से कॉट निकालने का अभिनय करते रहे जिससे सीता को कुछ देर आराम करने का मौका मिल जाए और उनकी थकान कम हो जाए।
4. दोनों सवैयों के प्रसंगों में अंतर स्पष्ट करो।
Ans. पहले सवैये में वन जाते समय सीता जी की व्याकुलता एवं धकान का वर्णन है। वे अपने गंतव्य के बारे में जानना चाहती हैं। पत्नी सीता की ऐसी बेहाल अवस्था देखकर रामचंद्र जी भी दुखी हो जाते हैं। जब सीता नगर से बाहर कदम रखती हैं तो कुछ दूर जाने के बाद काफी थक जाती हैं। उन्हें पसीना आने लगता है और होंठ सूखने लगते हैं। वे व्याकुलता से श्रीराम से पूछती हैं कि अभी और कितना चतना है तथा पर्णकुटी कहाँ बनाना है? इस तरह सीता जी की व्याकुलता को देखकर श्रीराम की आँखों में आँसू आ जाते हैं। दूसरे सवैये में श्रीराम और सीता की दशा का मार्मिक चित्रण है। इस प्रसंग में श्रीराम व सीता जी के प्रेम को दशति हुए कहा गया है कि कैसे श्रीराम सीता के थक जाने पर अपने पैरों के कॉट निकालते हैं और सीता जी श्रीराम का अपने प्रति प्रेम देखकर पुलकित हो जाती है।
5. पाठ के आधार पर वन के मार्ग का वर्णन अपने शब्दों में करो।
Ans. वन का मार्ग अत्यंत कठिन था। यह मार्ग काँटों से भरा था। उस पर बहुत संभलकर चलना पड़ रहा था। रहने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं था। रास्ते में खाने की वस्तुएँ नहीं थीं। पानी मिलना भी कठिन था। चारों तरफ सुनसान तथा असुरक्षा का वातावरण था।
अनुमान और कल्पना
गरमी के दिनों में कच्ची सड़क की तपती धूल में नंगे पाँव चलने पर पाँव जलते हैं। ऐसी स्थिति में पेड़ की छाया में खड़ा होने और पाँव धो लेने पर बड़ी राहत मिलती है। ठीक वैसे ही जैसे प्यास लगने पर पानी मिल जाए और भूख लगने पर भोजन। तुम्हें भी किसी वस्तु की आवश्यकता हुई होगी और वह कुछ समय बाद पूरी हो गई होगी। तुम सोचकर लिखो कि आवश्यकता पूरी होने के पहले तक तुम्हारे मन की दशा कैसी थी?
Ans. किसी वस्तु की आवश्यकता पूरी होने से पहले मन उसके लिए बेचैन तथा व्याकुल रहता है। हम बार-बार उस वस्तु के विषय में सोचते रहते हैं तथा उसे पाने के अनेक प्रयास करते हैं। किसी दूसरे काम में मन नहीं लगता।
FAQs
प्रश्न 1. प्रथम सवैया में कवि ने राम-सीता के किस प्रसंग का वर्णन किया है?
उत्तर- प्रथम सवैया में कवि ने श्रीराम व सीता के अयोध्या से निकलकर वन गमन का वर्णन किया है।
प्रश्न 2. राम और सीता कहाँ जाने के लिए निकले थे?
उत्तर- राम और सीता वन जाने के लिए निकले थे।
प्रश्न 3. वन गमन के समय सीता ने राम से क्या पूछा?
उत्तर- वन गमन के समय सीता जी ने राम जी से पूछा कि कितना और चलना है? और पर्णकुटी कहाँ बनाइएगा?
प्रश्न 4. पर्नकुटी किस चीज़ से बनती है?
उत्तर- पर्नकुटी पत्तों से बनती है।
प्रश्न 5. राम ने रुककर क्या किया?
उत्तर- राम ने रुककर थोड़ा विश्राम किया और पैरों में चुभे काँटों को देर तक निकालते रहे।
प्रश्न 6. वन के मार्ग में सीता को होने वाली कठिनाईयों के बारे में लिखो।
उत्तर- सीता वन के मार्ग पर थोड़ी दूर चलने से ही थक गई। उनके माथे पर पसीना दिखाई देने लगा। उनके होठ सूख गए। वे बहुत बेचैन हो उठीं और पूछने लगीं कि अभी कितनी दूर जाना है। मार्ग काँटों से भरा था जिससे सीता का चतना मुश्किल हो रहा था।
प्रश्न 7. सीता जी बेचैन होकर श्रीराम से क्या बातें कही?
उत्तर- सीता जी अपने पति राम से पूछती हैं कि अब और हमें कितना अधिक चलना है तथा पर्नकूटी कहाँ बनाना है। अभी लक्ष्मण पानी लेने गए हैं। अतः आप किसी पेड़ की छाया में खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा कीजिए। जब तक लक्ष्मण पानी लेकर नहीं आ जाते तब तक पेड़ की छाया में रुककर हम लोग विश्राम कर लेते हैं।
प्रश्न 8. अपने प्रति राम का प्रेम देखकर सीता जी की क्या दशा हुई?
उत्तर- अपने प्रति राम का प्रेम देखकर सीता जी मन-ही-मन पुलकित हो जाती है।
प्रश्न 9. “धरि धीर दए का आशय क्या है?
उत्तर- धरि धीर दए का आशय है-धीरज धारण करके यानी मन में हिम्मत बाँधकर कोई काम करना।
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