उद्योग : अध्याय 4

क्या आपने कभी यह विचार किया है कि लिखने की अभ्यास पुस्तिका जो आप इस्तेमाल में लाते हैं, वह विनिर्माण की लंबी प्रक्रिया के बाद आपके पास पहुँचती है। इसके जीवन की शुरुआत वृक्ष से होती है। उसे काटा जाता है और लुगदी-मिल तक ले जाया जाता है। वहाँ वृक्षों की लकड़ी को संसाधित एवं काष्ठ-लुगदी में परिवर्तित किया जाता है। काष्ठ-लुगदी को रासायनिक द्रव्य के साथ मिलाया जाता है और अंततः मशीनों के द्वारा कागज के रूप में परिवर्तित किया जाता है। यह कागज़ प्रेस में जाता है जहाँ रसायनों से निर्मित स्याही का इस्तेमाल पृष्ठों पर रेखाएँ छापने में किया जाता है। इसके उपरांत पृष्ठों को अभ्यास पुस्तिका के रूप में बाँधकर व पैक करके बिक्री के लिए बाज़ार भेज दिया जाता है। अंत में यह आपके हाथों में पहुँचती है।

द्वितीयक क्रियाकलाप या विनिर्माण में कच्चे माल को लोगों के लिए अधिक मूल्य के उत्पादों के रूप में परिवर्तित किया जाता है, जैसा कि आपने देखा लुगदी कागज़ के रूप में और कागज़ अभ्यास पुस्तिका के रूप में। ये विनिर्माण प्रक्रिया के दो चरणों को प्रदर्शित करते हैं।

उद्योग का संबंध आर्थिक गतिविधि से है जो कि वस्तुओं के उत्पादन, खनिजों के निष्कर्षण अथवा सेवाओं की व्यवस्था से संबंधित है। इस प्रकार लोहा और इस्पात उद्योग वस्तुओं के उत्पादन से संबंधित है. कोयला खनन उद्योग कोयले को धरती से निकालने से संबंधित है तथा पर्यटन सेवा देने से संबंधित उद्योग है।

उद्योगों का वर्गीकरण

उद्योगों का वर्गीकरण कच्चा माल, आकार और स्वामित्व के आधार पर किया जा सकता है।

कच्चा माल : कच्चे माल के उपयोग के आधार पर उद्योग कृषि आधारित, खनिज आधारित, समुद्र आधारित और वन आधारित हो सकते हैं।

कृषि आधारित उद्योग कच्चे माल के रूप में वनस्पति और जंतु आधारित उत्पादों का उपयोग करते हैं। खाद्य संसाधन, वनस्पति तेल, सूती वस्त्र, डेयरी उत्पाद और चर्म उद्योग कृषि आधारित उद्योगों के उदाहरण हैं। खनिज आधारित उद्योग प्राथमिक उद्योग हैं जो खनिज अयस्कों का उपयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं। इन उद्योगों के उत्पाद अन्य उद्योगों का पोषण करते हैं। अयस्क से निर्मित लोहा खनिज आधारित उद्योग का उत्पाद है। यह कई अन्य उत्पादों के विनिर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है जैसे भारी मशीनों, भवन निर्माण सामग्री तथा रेल के डिब्बे बनाने में। समुद्र आधारित उद्योग सागरों और महासागरों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं। समुद्री खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और मत्स्य तेल निर्माण इसके कुछ उदाहरण हैं। वन आधारित उद्योग वनों से प्राप्त उत्पाद का उपयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं। लुगदी एवं कागज, औषध रसायन, फर्नीचर और भवन निर्माण वनों से संबंधित उद्योग हैं।

आकार : उद्योग के आकार का तात्पर्य निवेश की गई पूँजी की राशि, नियोजित लोगों की संख्या और उत्पादन की मात्रा से है। आकार के आधार पर उद्योगों को दो भागों में बाँटा जा सकता है लघु आकार के उद्योग और बृहत आकार के उद्योग। कुटीर या घरेलू उद्योग छोटे पैमाने के उद्योग हैं जिसमें दस्तकारों के द्वारा उत्पादों का निर्माण हाथ से होता है। टोकरी बुनाई, मिट्टी के बर्तन और अन्य हस्तनिर्मित वस्तुएँ कुटीर उद्योगों के उदाहरण हैं। बड़े पैमाने के उद्योग जो बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, उनकी तुलना में छोटे पैमाने के उद्योग कम पूँजी व प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं। बड़े पैमाने के उद्योगों में पूँजी का निवेश अधिक और प्रयुक्त प्रौद्योगिकी उच्चस्तरीय होती है। रेशम बुनाई और खाद्य प्रक्रमण उद्योग लघु पैमाने के उद्योग हैं (चित्र 4.1)। ऑटोमोबाइल और भारी मशीनों का उत्पादन बड़े पैमाने के उद्योग हैं।

स्वामित्व : स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को निजी क्षेत्र, राज्य स्वामित्व अथवा सार्वजनिक क्षेत्र, संयुक्त क्षेत्र और सहकारी क्षेत्र में वर्गीकृत किया जा सकता है। निजी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन या तो. एक व्यक्ति द्वारा या व्यक्तियों के समूह द्वारा किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन सरकार द्वारा होता है जैसे हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड और स्टील ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड। संयुक्त क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन राज्यों और व्यक्तियों अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा होता है। मारुति उद्योग लिमिटेड संयुक्त क्षेत्र के उद्योग का एक उदाहरण है। सहकारी क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन कच्चे माल के उत्पादकों या पूर्तिकारों, कामगारों अथवा दोनों द्वारा होता है। आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड एवं सुधा डेयरी सहकारी उपक्रम के उत्तम उदाहरण हैं।

उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक

वे कारक जो उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करते हैं, कच्चे माल की उपलब्धता, भूमि, जल, श्रम, शक्ति, पूँजी, परिवहन और बाजार हैं। उद्योग उन्हीं स्थानों पर केंद्रित होते हैं जहाँ इनमें से कुछ या ये सभी कारक आसानी से उपलब्ध होते हैं। कभी-कभी सरकार कम दाम पर विद्युत उपलब्धता, कम परिवहन लागत तथा अन्य अवसंरचना जैसे प्रोत्साहन प्रदान करती है ताकि पिछड़े क्षेत्रों में भी उद्योग स्थापित किया जा सके। औद्योगीकरण से प्रायः नगरों और शहरों का विकास एवं वृद्धि होती है।

औद्योगिक तंत्र

औद्योगिक तंत्र में निवेश, प्रक्रम और निर्गत शामिल हैं। निवेश में कच्चे माल, श्रम और भूमि की लागत, जल की उपलब्धता, परिवहन, विद्युत और अन्य अवसंरचना शामिल हैं। प्रक्रम में कई तरह के क्रियाकलाप शामिल हैं जो कच्चे माल को परिष्कृत माल में परिवर्तित करते हैं। निर्गत अंतिम उत्पाद और इससे अर्जित आय है। सूती वस्त्र उद्योग के संदर्भ में कपास, मानव श्रम, कारखाना और परिवहन लागत निवेश हो सकते हैं। प्रक्रमों में ओटाई, कटाई, बुनाई, रँगाई और छपाई शामिल है। कमीज़ जिसे आप पहनते हैं वह उत्पादन है।

औद्योगिक प्रदेश

औद्योगिक प्रदेश का विकास तब होता है जब कई तरह के उद्योग एक-दूसरे के निकट स्थित होते हैं और वे अपनी निकटता के लाभ आपस में बाँटते हैं। विश्व के प्रमुख औद्योगिक प्रदेश पूर्वोत्तर अमेरिका, पश्चिमी और मध्य यूरोप, पूर्वी यूरोप और पूर्वी एशिया हैं। मुख्य औद्योगिक प्रदेश अधिकांशतः शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों, समुद्री पत्तनों के समीप और विशेष तौर पर कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित होते हैं।

भारत में अनेक औद्योगिक प्रदेश हैं, जैसे मुंबई पुणे समूह, बंगलौर, तमिलनाडु प्रदेश, हुगली प्रदेश, अहमदाबाद-वडोदरा प्रदेश, छोटानागपुर औद्योगिक प्रदेश, विशाखापट्नम गुंटूर औद्योगिक प्रदेश, गुड़गाँव-दिल्ली-मेरठ औद्योगिक प्रदेश और कोल्लम-तिरुवनंतपुरम औद्योगिक प्रदेश।

औद्योगिक विपदा

उद्योगों में दुर्घटना/विपदा मुख्य रूप से तकनीकी विफलता या संकट उत्पन्न करने वाले पदार्थों के बेतरतीब उपयोग के कारण घटित होती है। भोपाल में 3 दिसंबर 1984 को लगभग 00.30 बजे घटित, अब तक की सबसे त्रासदपूर्ण औद्योगिक दुर्घटना है। यह एक प्रौद्योगिकीय दुर्घटना थी जिसमें यूनियन कार्बाइड के कीटनाशी कारखाने से हाइड्रोजन सायनाइट तथा प्रतिक्रियाशील उत्पादों के साथ-साथ अत्यंत विषैली मिथाइल आइसोसायनेट (एम.आई.सी.) गैस का रिसाव हुआ था। 1989 में सरकारी सूचना के अनुसार 35,598 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी। हजारों लोग जो बच गए वो आज भी एक या अधिक बीमारियों जैसे अंधापन, प्रतिरक्षा तंत्र विकृति, आंत्रशोथ विकृतियों आदि से पीड़ित हैं।

23 दिसंबर 2005 में चीन के गाओ कायो, चोंगगिंग में गैस कूप विस्फोट से 243 लोगों की मृत्यु तथा 9000 लोग दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे और इन स्थानों से 64,000 लोगों को विस्थापित किया गया था। कई लोग विस्फोट के बाद न भाग सकने के कारण मर गए। वे जो समय पर भाग पाए उनकी आँखें, त्वचा और फेफड़े गैस से क्षतिग्रस्त हो गए थे।

जोखिम कम करने के उपाय

1. घने बसे आवासीय क्षेत्रों को औद्योगिक क्षेत्रों से अलग बहुत दूर रखा जाना चाहिए।

2. उद्योगों के समीप बसने वाले लोगों को दुर्घटना होने की स्थिति में विषैले या खतरनाक पदार्थों के संग्रहण और उनके संभव प्रभावों का ज्ञान होना चाहिए।

3. आग की चेतावनी और अग्निशमन की व्यवस्था को उन्नत किया जाना चाहिए।

4. विषैले पदार्थों के भंडारण क्षमता की सीमा होनी चाहिए।

5. उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण के उपाय को उन्नत किया जाना चाहिए।

प्रमुख उद्योगों का वित्तरण

विश्व के प्रमुख उद्योग लोहा-इस्पात उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग हैं। लोहा-इस्पात उद्योग और वस्त्र उद्योग काफ़ी पुराने उद्योग हैं जबकि सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग एक नया उभरता उद्योग है।

वे देश जिसमें लोहा-इस्पात उद्योग अवस्थित हैं, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और रूस है। वस्त्र उद्योग भारत, हांगकांग, दक्षिण कोरिया, जापान और ताइवान में संकेंद्रित है। सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के मुख्य केंद्र मध्यवर्ती कैलिफोर्निया के सिलिकॉन घाटी में और भारत के बेंगलुरु प्रदेश में हैं।

लोहा-इस्पात उद्योग

अन्य उद्योगों की तरह लोहा-इस्पात उद्योग में भी बहुत से निवेश, प्रक्रम और निर्गत शामिल हैं। यह एक पोषक उद्योग है जिसके उत्पाद अन्य उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होते हैं। उद्योग के लिए निवेश में श्रम, पूँजी, स्थान और अन्य अवसंरचना के साथ-साथ लौह-अयस्क, कोयला और चूना पत्थर कच्चे माल के रूप में सम्मिलित हैं। लौह अयस्क से इस्पात निर्माण की प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं। कच्चे माल को झोंका भट्टी में रखा जाता है जहाँ यह प्रगलित होता है (चित्र 4.6)। इसके बाद यह परिशोधित होता है। प्राप्त उत्पाद इस्पात होता है जो अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। इस्पात कड़ा होता है और इसे आसानी से काटा और आकार दिया जा सकता है अथवा इससे तार बनाए जा सकते हैं। ऐलुमिनियम, निकल, तांबा जैसी अन्य धातुओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इस्पात में मिलाकर इसकी मिश्र धातुएँ बनाई जा सकती हैं। मिश्र धातु इस्पात को असामान्य कठोरता, दृढ़ता और जंग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है।

इस्पात प्रायः आधुनिक उद्योगों का मेरुदंड कहलाता है। लगभग सारी वस्तुएँ जिनका हम लोग उपभोग करते हैं वे या तो लोहा या इस्पात से बने हैं अथवा इन धातुओं से निर्मित औज़ारों और मशीनों से बने हैं। पोत, रेलगाड़ी, ट्रक और ऑटो अधिकांशतः इस्पात से बने हैं। यहाँ तक कि सेफ्टी पिन और सुईयाँ, जिनका उपयोग आप करते हैं वे भी इस्पात से बनती हैं। तेल-कूप इस्पात से बनी मशीनों से बेधित किए जाते हैं।

इस्पात की पाइपलाइन से तेल परिवाहित किया जाता है। खनिजों का खनन इस्पात के उपकरणों से होता है। कृषि के यंत्र प्रायः इस्पात के बने होते हैं। विशाल भवनों का ढाँचा इस्पात का बनाया जाता है। 1800 ई. के पूर्व इस्पात उद्योग वहाँ स्थित थे जहाँ कच्चा माल, विद्युत आपूर्ति और बहता जल आसानी से उपलब्ध थे। बाद में उद्योग के लिए आदर्श स्थिति कोयला क्षेत्र के समीप, नहरों और रेलवे के निकट थी। 1950 के बाद लोहा और इस्पात उद्योग समुद्रपत्तन के निकट सपाट भूमि के विशाल क्षेत्रों में केंद्रित होने शुरू हुए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस्पात निर्माण का कार्य इस समय तक बहुत विशाल हो गया और लौह अयस्क विदेशों से आयात करना पड़ता था।

भारत में लोहा-इस्पात उद्योग कच्चा माल, सस्ते श्रमिक, परिवहन और बाज़ार का लाभ लेते हुए विकसित हुए। सभी महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र, जैसे भिलाई, दुर्गापुर, बर्नपुर, जमशेदपुर, राउरकेला, बोकारो एक ही प्रदेश में स्थित हैं जो चार राज्यों में फैले हैं। वे चार राज्य हैं पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़। भद्रावती और विजयनगर कर्नाटक में, विशाखापट्नम आंध्र प्रदेश में, सलेम तमिलनाडु में अन्य महत्त्वपूर्ण इस्पात के केंद्र हैं जो स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं।

जमशेदपुरः 1947 से पूर्व भारत में केवल एक इस्पात का कारखाना था – टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (टिस्को)। यह निजी स्वामित्व में था। स्वतंत्रता के पश्चात् सरकार ने यह कार्य अपने हाथ में लिया और बहुत से लोहा-इस्पात संयंत्र स्थापित किए। झारखंड में स्वर्णरखा और खरकई नदियों के संगम के समीप साकची में सन् 1907 में टिस्को की शुरुआत की गई थी। बाद में साकची का नाम बदल कर जमशेदपुर रखा गया। भौगोलिक रूप से जमशेदपुर, देश में लोहा-इस्पात केंद्र के रूप में सर्वाधिक सुविधाजनक स्थान पर है।

साकची को कई कारणों से इस्पात संयंत्र स्थापित करने के लिए चुना गया। यह स्थान बंगाल-नागपुर रेलमार्ग पर कालीमाटी स्टेशन से मात्र 32 किमी. की दूरी पर था। यह स्थान लौह अयस्क, कोयला और मैंगनीज निक्षेपों के साथ-साथ कोलकाता के निकट भी था, जहाँ विशाल बाज़ार उपलब्ध था। टिस्को को झरिया कोयला क्षेत्रों से कोयला और ओडिशा तथा छत्तीसगढ़ से लौह अयस्क, चूना पत्थर, डोलोमाइट और मैंगनीज प्राप्त होता है। खरकई और स्वर्ण रेखा नदियों से पर्याप्त जल की आपूर्ति होती है। सरकारी प्रोत्साहनों से इसे प्रर्याप्त पूँजी उपलब्ध हुई।

जमशेदपुर में टिस्को की स्थापना के बाद कई अन्य औद्योगिक संयंत्र स्थापित किए गए। इनमें रसायन, इंजनों के पुर्जे, कृषि उपकरण, मशीनें, टिन की चादरें, केबल और तार का उत्पादन किया जाता है।

भारत में लोहा-इस्पात उद्योग के विकास से त्वरित औद्योगिक विकास आरंभ हुआ। भारतीय उद्योग के लगभग सभी क्षेत्र अधिकांशतः अपने आधारभूत अवसंरचना के लिए लोहा-इस्पात उद्योग पर निर्भर हैं। भारतीय लोहा-इस्पात उद्योग में बृहत् समाकलित इस्पात संयंत्रों के साथ-साथ लघु इस्पात मिल भी सम्मिलित हैं। इसमें द्वितीयक उत्पादक, रॉलिंग मिल और सहायक उद्योग भी शामिल हैं।

पिट्सबर्गः यह संयुक्त राज्य अमेरिका का एक महत्त्वपूर्ण इस्पात नगर है। पिट्सबर्ग के इस्पात उद्योग को स्थानीय सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कच्चा माल जैसे कोयला पिट्सबर्ग में ही उपलब्ध है जबकि लौह अयस्क मिनेसोटा की लोहे की खानों से प्राप्त होता है जो पिट्सबर्ग से लगभग 1500 किमी. दूर है। इन खानों और पिट्सबर्ग के बीच नौपरिवहन का सर्वोत्तम मार्ग, ग्रेट लेक्स जलमार्ग, आता है। यह अयस्क के नौपरिवहन हेतु सस्ता मार्ग है। ग्रेट लेक्स से पिट्सबर्ग क्षेत्र तक लौह अयस्क रेलगाड़ियों से लाया जाता है। ओहियो, मोनोगहेला और एल्घनी नदियों से पर्याप्त जल प्राप्त होता है।

आज पिट्सबर्ग में बहुत कम बड़ी इस्पात मिल हैं। ये मिल पिट्सबर्ग के ऊपर मोनोगहेला और एल्घनी नदी की घाटियों में तथा पिट्सबर्ग के नीचे ओहियो नदी के सहारे स्थित है। परिष्कृत इस्पात स्थल और जल दोनों मार्गों द्वारा बाज़ार में भेजा जाता है।

पिट्सबर्ग क्षेत्र में इस्पात मिलों के अतिरिक्त कई अन्य कारखाने हैं। ये रेल, रेल पटरी उपकरण और भारी मशीनों के उत्पादन में इस्पात का प्रयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं।

यह भी पढ़ें : कृषि : अध्याय 3

अभ्यास

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर वीजिए –

(i) ‘उद्योग’ शब्द का क्या तात्पर्य है?
Ans.
उद्योग का संबंध उस आर्थिक गतिविधि से है जो कि वस्तुओं के उत्पादन, खनिजों के निष्कर्षण अथवा सेवाओं की व्यवस्था से संबंधित है। इस प्रकार लोहा और इस्पात उद्योग वस्तुओं के उत्पादन से संबंधित है, कोयला खनन उद्योग कोयले को धरती से निकालने से संबंधित है तथा पर्यटन सेवा देने से संबंधित उद्योग है।

(ii) वे कौन-से मुख्य तथ्य हैं जो उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करते हैं?
Ans.
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक –

° कच्चे माल की उपलब्धता
• भूमि
• श्रम
• शक्ति के साधन
• परिवहन
• बाजार

(iii) कौन-सा उद्योग प्रायः आधुनिक उद्योग का मेरुदंड कहा जाता है और क्यों?
Ans.
तोहा इस्पात उद्योग को आधुनिक उद्योग का मेरुदंड कहा जाता है। ऐसा इसलिए है कि इस्पात कई उद्योगों के लिए कच्चा माल होता है। अन्य उद्योगों में इस्तेमाल होने वाली मशीनें और ओजार अक्सर इस्पात से ही बनते हैं।

अथवा

लोह और इस्पात प्रायः आधुनिक उद्योगों कारक मेरुदंड कहलाता है। लगभग सारी वस्तुएँ जिनका हम लोग उपभोग करते हैं वे या तो लोहा या इस्पात से बने हैं अथवा इन धातुओं से निर्मित औज़ारों और मशीनों से बने हैं। पोत, रेलगाड़ी, ट्रक और ऑटो अधिकांशतः इस्पात से बने हैं। यहाँ तक कि सेफ्टी पिन और सुईयाँ, जिनका उपयोग आप करते हैं वे भी इस्पात से बनती हैं। तेल-कूप इस्पात से बनी मशीनों से बोधित किए जाते हैं। इस्पात की पाइपलाइन से तेल परिवाहित किया जाता है। खनिजों का खनन इस्पात के उपकरणों से होता है। कृषि के यंत्र प्रायः इस्पात के बने होते हैं। विशाल भवनों का ढाँचा इस्पात का बनाया जाता है।

(iv) कपास उद्योग मुंबई में तेजी से क्यों विकसित हुआ है?
Ans.
  कपास उद्योग के मुंबई में तेजी से विकसित होने के कारण-

• कोष्ण और आर्द्र जलवायु
• मशीन आयात के लिए पत्तन की उपलब्धता
• कच्चे माल की उपलब्धता
• दक्ष श्रमिकों की उपलब्धता

अथवा

कपास उद्योग से अभिप्राय सूती वस्त्र उद्योग से है। भारत में सूती कपड़ा उद्योग की शुरुआत मुंबई से हुई थी। पहली मिल 1854 में स्थापित हुई। महाराष्ट्र की काली मिट्टी में कपास बहुत अधिक उत्पन्न होती है। महाराष्ट्र के विभिन्न नगर सूती वस्त की खपत की बड़ी मंडिया है। मंडियों की समीपता के कारण सूती वस्न उद्योग मुंबई में अधिक फल फूल रहा है। कपास उद्योग के संचालन में कुशल श्रमिकों का काफी हाथ होता है। मुंबई भारत का सर्वश्रेष्ठ बंदरगाह है। तैयार सूती कपड़ा इस बंदरगाह से विदेशों को भेजा जाता है।

2. अंतर स्पष्ट कीजिए-

(i) कृषि आधारित और खनिज आधारित उद्योग
Ans.
कृषि आधारित उद्योग कच्चे माल के रूप में वनस्पति और जंतु आधारित उत्पादों का उपयोग करते है। खाद्य संसाधन, वनस्पति तेल, सूती वस्त्र, डेयरी उत्पाद और चर्म उद्योग कृषि आधारित उद्योगों के उदाहरण है। ये कृषि आधारित उद्योग है। ये हलके उद्योग है।

खनिज आधारित उद्योग प्राथमिक उद्योग है जो खनिज अयस्कों का उपयोग कच्चे माल के रूप में करते है। ये उद्योग खनिज पर आधारित होते है। ये भारी उद्योग है।

(ii) सार्वजनिक क्षेत्र और संयुक्त क्षेत्र के उद्योग
Ans.
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन सरकार द्वारा होता है। जैसे: हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड और स्टीत ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड। इनमें लाभ या हानि हो दोनों की जिम्मेदार सरकार ही होती है।

संयुक्त क्षेत्र के उद्योगों का स्वामित्व और संचालन राज्यों और व्यक्तियों अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा होता है। मारुति उद्योग लिमिटेड संयुक्त क्षेत्र के उद्योग का उदाहरण है। इसमें लाभ हानि की जिम्मेदार संयुक्त स्वामित्व की होती है।

3. विए गए स्थानों में निम्नलिखित के वो वो उदाहरण दीजिए-

(i) कच्चा माल : ………और…….

(ii) अंतिम उत्पाद : ……..और……..

(iii) तृतीयक क्रियाकलाप : ……..और……

(iv) कृषि-आधारित उद्योग : ……..और……

(v) कुटीर उद्योग : ………और…….

(vi) सहकारिता : ………और…….

Ans.
(क) कपास और गन्ना
(ख) कमीज़ और जूते
(ग) बैंक और परिवहन
(घ) सूती वस्त्र और डेयरी उत्पाद
(ङ) टोकरी और मिट्टी के बर्तन बनाना
(च) सुधा डेयरी सहकारी उपक्रम और आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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