प्रकाश तरंगों का व्यतिकरण (Interference of Light Wave)

व्यतिकरण सभी प्रकार की तरंगों का एक गुण है। चूँकि प्रकाश तरंगों के रूप में चलता है, अतः प्रकाश तरंगे भी व्यतिकरण की घटना को दर्शाती हैं। ज्ञातव्य है कि सन् 1800 ई० में अंग्रेज भौतिकविद् थॉमसयंग ने प्रकाश के व्यतिकरण का सिद्धान्त दिया था।

जब किसी माध्यम में एक ही आवृत्ति (Frequency) की दो तरंगें एक साथ एक ही दिशा में चलती हैं तो उनके अध्यारोपण से माध्यम के विभिन्न बिंदुओं पर परिणामी तीव्रता उन तरंगों की अलग-अलग तीव्रताओं के योग से भिन्न होती है। माध्यम के कुछ बिंदुओं पर परिणामी तरंग की तीव्रता बहुत अधिक पायी जाती है जबकि कुछ बिंदुओं पर बहुत कम अथवा शून्य रहती है। इस घटना को व्यतिकरण (Interference) कहते हैं। जिन बिंदुओं पर तीव्रता (Intensity) अधिकतम होती है उन बिंदुओं पर हुए व्यतिकरण को संपोषी व्यतिकरण (Constructine in terference) कहते हैं। जिन बिंदुओं पर तीव्रता लगभग शून्य होती है, उन बिंदुओं पर हुए व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण (destructive interference) कहते हैं।

• संपोषी व्यतिकरण (Constructive Interference)

माध्यम के जिन बिंदुओं पर दो तरंगें समान कला (Same phase) में मिलती हैं, वहाँ परिणामी आयाम बहुत अधिक हो जाता है। चूँकि प्रकाश की तीव्रता (intensity), आयाम (amplitude) के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है, अतः ऐसे बिंदु पर प्रकाश की तीव्रता बहुत अधिक हो जाती है। ऐसे व्यतिकरण को संपोषी या रचनात्मक व्यतिकरण कहते हैं।

• विनाशी व्यतिकरण (Destructive Interference)

माध्यम के जिस बिंदु पर दो तरंगे विपरीत कला (opposite phase) में मिलती हैं, उस बिंदु पर परिणामी आयाम (amplitude) बहुत कम हो जाता है क्योंकि दोनों तरंगें एक दूसरे के प्रभाव को नष्ट कर देती हैं। अतः ऐसे बिंदु पर परिणामी तीव्रता न्यूनतम या शून्य प्राप्त होती है। इस प्रकार के व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण कहते हैं। व्यतिकरण के उदाहरण निम्नवत् हैं-

(i) गीली सड़क पर वाहनों से टपकी तेल (डीजल या पेट्रोल) की बूँदों का रंगीन दिखाई पड़ना*

(ii) साबुन के बुलबुले का रंगीन दिखाई पड़ना इत्यादि।*

➤ समतल दर्पण (Plane Mirror)

समतल दर्पण, कांच (Glass) की समान मोटाई की चिकनी पट्टी के एक तरफ किसी चमकीली धातु जैसे- पारा या चाँदी का लेप करके तथा उसके ऊपर सिल्वर नाइट्रेट का लेप करके बनाया जाता है जो कि प्रकाश किरणों को उस पार जाने से रोकता है और परावर्तित (Reflect) कर देता है। इससे प्रकाश की किरणों का परावर्तन, परावर्तन के नियम से ही होता है जिसकी व्याख्या इसी अध्याय में की जा चुकी है।

समतल दर्पण का उपयोग आईना (Looking glass) बहुरुपदर्शी (Kaleidoscope) तथा परिदर्शी (Persicope) इत्यादि बनाने में होता है।

➤ गोलीय दर्पण (Spherical Mirror)

किसी गोले का पृष्ठ गोलीय पृष्ठ कहलाता है। खोखले (Hollow) गोले के किसी खंड के दोनों पृष्ठ गोलीय होते हैं। इनमें एक तल उभरा हुआ (उत्तल-Convex) व दूसरा दबा हुआ (अवतल Concave) होता है। यदि गोलीय खंड पर पॉलिश इस प्रकार की जाय कि इसके अवतल तल से प्रकाश का परावर्तन हो, तो इस प्रकार बने दर्पण को अवतल दर्पण (Concave Mirror) या अभिसारी दर्पण कहते हैं। यदि गोलीय खंड पर पालिश इस प्रकार की जाय कि इसके उत्तल तल से प्रकाश का परावर्तन हो तो इस प्रकार बने दर्पण को उत्तल दर्पण या अपसारी दर्पण कहते हैं।

गोलीय दर्पण से संबंधित परिभाषाएँ (Definitions Related to spherical Mirror)

(1) दर्पण का ध्रुव (Pole of the Mirror)- गोलीय दर्पण के परावर्तक तल के मध्य बिंदु को दर्पण का ध्रुव (P) कहते हैं।

(2) वक्रता केन्द्र (Centre of Curvature)- गोलीय दर्पण जिस खोखले गोले का भाग होता है, उसके केन्द्र को दर्पण का वक्रता केन्द्र कहते हैं। ज्ञातव्य है कि दर्पण के किसी बिंदु को वक्रता केन्द्र (c) से मिलाने वाली रेखा दर्पण के उस बिंदु पर अभिलंब (Perpendicular) होती है।

(3) वक्रता त्रिज्या (Radius of Curvature)- गोलीय दर्पण जिस खोखले गोले का भाग होता है उसकी त्रिज्या को गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहते हैं। यह दर्पण पर स्थित किसी बिंदु और वक्रता केन्द्र के बीच की दूरी के बराबर होती है। चित्र में वक्रता त्रिज्या r = CP

(4) मुख्य अक्ष (Principal Axis)- गोलीय दर्पण के वक्रता केन्द्र तथा उस पर स्थित किसी बिंदु को मिलाने वाली रेखा को दर्पण का अक्ष कहते हैं, परन्तु दर्पण के ध्रुव और वक्रता केन्द्र को मिलाने वाली रेखा दर्पण का मुख्य अक्ष कहलाती है। अन्य शब्दों में दर्पण के ध्रुव में जाने वाला अक्ष मुख्य अक्ष कहलाता है। चित्र में CP

(5) फोकस (Focus)- गोलीय दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरणें दर्पण में परावर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष पर स्थित जिस बिंदु से होकर जाती हैं (अवतल दर्पण) अथवा जिस बिंदु से अपसरित या आती हुई प्रतीत होती हैं (उत्तल दर्पण), उस बिंदु को दर्पण का फोकस (F) कहते हैं।

(6) फोकस दूरी (Focal Length)- गोलीय दर्पण के ध्रुव से फोकस की दूरी को दर्पण की फोकस दूरी (f) कहते हैं। चित्र में f = PF

• फोकस दूरी तथा वक्रता त्रिज्या में संबंध

फोकस दूरी (f) = वक्रता त्रिज्या (r) / 2

➤ अवतल दर्पण से प्रतिबिंब का बनना (Image Formation through Concave Mirror): देखें बाक्स में।

अवतल दर्पण से बने प्रतिबिम्ब की स्थिति, आकार एवं प्रकृति

क्र.वस्तु की स्थितिप्रतिबिम्ब की स्थितिवस्तु की तुलना में प्रतिबिम्ब का आकारप्रतिबिम्ब की प्रकृतिकिरण आरेख
1.अनन्त परफोकस (F) परबहुत छोटाउल्टा व वास्तविकचित्र a
2.वक्रता-केन्द्र तथा अनन्त के बीचफोकस (F) तथा वक्रता-केन्द्र (C) के बीचछोटाउल्टा व वास्तविकचित्र b
3.वक्रता-केन्द्र (C) परवक्रता-केन्द्र (C) परसमान आकार परउल्टा व वास्तविकचित्र c
4.वस्तु AB को F से दूर की ओर
खिसकाओ
वक्रता-केन्द्र (C) और अनन्त के बीचबड़ाउल्टा व वास्तविकचित्र d
5.फोकस (F) परअनन्त परबहुत बड़ाउल्टा व वास्तविकचित्र e
6.फोकस (F) तथा ध्रुव (P) के बीचदर्पण के पीछेबड़ासीधा एवं आभासीचित्र f

उत्तल दर्पण से प्रतिबिंब का बनना (Image Formation at a Convex Mirror)

उत्तल दर्पण से प्रत्येक दशा में प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उसके ध्रुव व फोकस के बीच, वस्तु से छोटा, सीधा एवं आभासी बनता है। यदि किसी वस्तु की उत्तल दर्पण से दूरी धीरे- धीरे बढ़ाई जाय, तो दर्पण से बने आभासी एवं सीधे प्रतिबिंब का आकार छोटा होता जाता है तथा उसकी स्थिति दर्पण के पीछे ध्रुव से फोकस की ओर खिसकती जाती है। यदि वस्तु अत्यंत दूर (अनंत पर) हो तो प्रतिबिंब ठीक फोकस पर बिंदुवत् बनेगा।

• गोलीय दर्पणों की फोकस दूरी अधोलिखित सूत्र से ज्ञात की जा सकती है। यथा-

1/u +1/v = 1/f

जहां u = दर्पण से वस्तु की दूरी
v = दर्पण से प्रतिबिंब की दूरी व,
f = दर्पण की फोकस दूरी है।

• प्रतिबिंब का रेखीय आवर्धन (Linear Magnification of Image)

वस्तु के प्रतिबिंब की लंबाई तथा उस वस्तु की लंबाई के अनुपात को प्रतिबिंब का रेखीय आवर्धन कहते हैं और इसे m से प्रदर्शित करते है।

m = प्रतिबिंब की लंबाई (I)/वस्तु की लंबाई (O) = प्रतिबिंब की दूरी(v)/वस्तु की दूरी(u)
अर्थात् m = I/O = v/u

➤ अवतल दर्पण के उपयोग (Usages of Concave Mirror)

• बड़ी फोकस दूरी वाला अवतल दर्पण दाढ़ी बनाने (Shaving) के लिए उपयोगी होता है क्योंकि इससे मनुष्य के चेहरे का सीधा व बड़ा प्रतिबिंब प्राप्त होता है।*

• गाड़ी के हेड लाइट (Head Light) व सर्च लाइट (Search Light) में किरणों को अभिसरित (Converge) कर दूर तक भेजने में उपयोगी होता है।*

• आँख, नाक, कान, गले व दाँतों के डाक्टर इसकी सहायता से अंगों (Organ) के प्रत्यक्षतः ठीक से न दिखने वाले अंतः क्षेत्रों (internal parts) को ठीक से देख पाते हैं।

• सोलर कुकर (Solar Cooker) में इसकी सहायता से अधिक सौर ऊर्जा (Solar Energy) प्रवाहित की जाती है।

• इसकी सहायता से परावर्तक दूरबीन (Reflecting Telescope) बनाया जाता है।

• निकट दृष्टि दोष का निवारण भी इसी लेन्स से किया जाता है।

➤ उत्तल दर्पण के उपयोग (Usage of Convex Mirror)

• वाहनों में चालक सीट के बगल में लगाया जाता है, जिससे चालक को पीछे के विस्तृत क्षेत्र का प्रतिबिम्ब दिखता रहता है।* इससे उसे वाहन को ठीक तरह से चलाने में सहायता मिलती है।

• गाड़ियों व सड़कों पर लगे परावर्तक लैम्पों में उत्तल दर्पण का प्रयोग किया जाता है। इनमें प्रकाश को अपसरित (फैलाने) करने का गुण होता है। अतः प्रकाश अधिक क्षेत्र में फैल जाता है।

यह भी पढ़ें : प्रकाश का विसरण (Diffusion of Light)

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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