प्रकाश  : अध्याय 13

संसार को हम मुख्य रूप से अपनी ज्ञानेन्द्रियों से जानते हैं। ज्ञानेन्द्रियों में से दृष्टि एक सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रिय है। इसकी सहायता से हम पर्वतों, नदियों, पेड़-पौधों, कुर्सियों, मनुष्यों तथा अपने चारों ओर की अन्य अनेक वस्तुओं को देखते हैं। हम आकाश में बादल, इन्द्रधनुष तथा उड़ते पक्षियों को भी देखते हैं। रात्रि में हम चन्द्रमा तथा तारों को देखते हैं। दृष्टि द्वारा ही आप इस पृष्ठ पर छपे शब्दों तथा वाक्यों को देख पाते हैं। क्या आप जानते हैं कि ये सब देखना कैसे सम्भव हो पाता है?

13.1 वस्तुओं को दृश्य कौन बनाता है?

क्या कभी आपने सोचा है कि हम विभिन्न वस्तुओं को कैसे देख पाते हैं? आप कह सकते हैं कि हम वस्तुओं को नेत्रों से देखते हैं। लेकिन, क्या आप अंधेरे में किसी वस्तु को देख पाते हैं? इसका अर्थ है कि केवल नेत्रों द्वारा हम किसी वस्तु को नहीं देख सकते। किसी वस्तु को हम तब ही देख पाते हैं जब उस वस्तु से आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करे। यह प्रकाश वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित अथवा उनसे परावर्तित हुआ हो सकता है।

आपने कक्षा VII में सीखा है कि कोई पॉलिश किया हुआ या चमकदार पृष्ठ दर्पण की भांति कार्य कर सकता है। दर्पण अपने ऊपर पड़ने वाले प्रकाश की दिशा को परिवर्तित कर देता है। क्या आप बता सकते हैं कि किसी पृष्ठ पर पड़ने वाला प्रकाश किस दिशा में परावर्तित होगा? आइए ज्ञात करें।

13.2 परावर्तन के नियम

क्रियाकलाप 13.1

किसी मेज या ड्राइंग बोर्ड पर सफेद कागज की एक शीट लगाइए। एक कंघा लीजिए और इसके बीच के एक दाँते को छोड़कर सभी खुले स्थानों को बंद कर दीजिए। इस कार्य के लिए आप काले कागज़ की एक पट्टी प्रयोग कर सकते हैं। कंघे को कागज़ की शीट के लम्बवत पकड़िए। एक टॉर्च की सहायता से कंघे के खुले स्थान पर एक ओर से प्रकाश डालिए (चित्र 13.1)। टॉर्च तथा कंघे के थोड़े से समायोजन के पश्चात आप कंघे के दूसरी ओर कागज़ की शीट के अनुदिश प्रकाश की एक किरण देखेंगे। कंघे तथा टॉर्च को इस स्थिति में स्थिर रखिए। प्रकाश-किरण के गमन पथ के सामने समतल दर्पण की एक पट्टी रखिए (चित्र 13.1)। आप क्या देखते हैं?

दर्पण से टकराने के पश्चात, प्रकाश-किरण दूसरी दिशा में परावर्तित हो जाती है। किसी पृष्ठ पर पड़ने वाली प्रकाश-किरण को आपतित किरण कहते हैं। पृष्ठ से परावर्तन के पश्चात वापस आने वाली प्रकाश-किरण को परावर्तित किरण कहते हैं।

प्रकाश किरण का अस्तित्व एक आदर्शीकरण है। वास्तव में, हमें प्रकाश का एक संकीर्ण किरण-पुंज प्राप्त होता है जो अनेक किरणों से मिल कर बना होता है। सरलता के लिए हम प्रकाश के संकीर्ण किरण-पुंज के लिए किरण शब्द का उपयोग करते हैं।

अपने मित्रों की सहायता से कागज़ पर समतल दर्पण की स्थिति तथा आपतित एवं परावर्तित किरणों को दर्शाने वाली रेखाएँ खींचिए। दर्पण तथा कंघे को हटाइए। दर्पण को निरूपित करने वाली रेखा के जिस बिन्दु पर आपतित किरण दर्पण से टकराती है, उस पर दर्पण से 90 का कोण बनाते हुए एक रेखा खींचिए। यह रेखा परावर्तक पृष्ठ के उस बिन्दु पर अभिलम्ब कहलाती है (चित्र 13.2)।

आपतित किरण तथा अभिलम्ब के बीच के कोण को आपतन कोण (∠i) कहते हैं। परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब के बीच के कोण को परावर्तन कोण (∠r) कहते हैं (चित्र 13.3)। आपतन कोण तथा परावर्तन कोण को मापिए। इस क्रियाकलाप को आपतन कोण परिवर्तित करके कई बार दोहराइए। प्रेक्षणों को सारणी 13.1 में लिखिए।

सारणी 13.1 : आपतन कोण तथा परावर्तन कोण

क्रम संख्याआपतन कोण ( ∠i)परावर्तन कोण (∠r)
1.
2.

क्या आप आपतन कोण तथा परावर्तन कोण के बीच कोई संबंध देखते हैं? क्या ये दोनों लगभग बराबर हैं? यदि यह क्रियाकलाप सावधानीपूर्वक किया जाए तो यह देखा जाता है कि आपतन कोण सदैव परावर्तन कोण के बराबर होता है। यह परावर्तन के नियमों में एक है। आइए परावर्तन से संबंधित एक और क्रियाकलाप करें।

क्रियाकलाप 13.2

क्रियाकलाप 13.1 को दोबारा कीजिए। इस बार किसी सख्त कागज़ की शीट अथवा चार्ट पेपर का उपयोग कीजिए। शीट मेज के किनारे से थोड़ी बाहर निकली हुई होनी चाहिए (चित्र 13.4)। शीट के बाहर निकले भाग को बीच में से काटिए। परावर्तित किरण को देखिए। सुनिश्चित कीजिए कि परावर्तित किरण कागज़ के बाहर निकले भाग पर भी दिखाई दे। कागज़ के बाहर निकले उस भाग को मोड़िए जहाँ पर परावर्तित किरण दिखाई दे रही है। क्या आप अब भी परावर्तित किरण देख पाते हैं? कागज़ को पुनः प्रारंभिक अवस्था में लाइए।

क्या आप फिर से परावर्तित किरण को देख पाते हैं? इससे आप क्या निष्कर्ष निकालते हैं?

जब मेज पर कागज़ की पूरी शीट फैलाते हैं तो यह एक तल को निरूपित करती है। आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण ये सभी इसी तल में होते हैं। जब आप कागज़ को मोड़ देते हैं, तो आप एक नया तल बना देते हैं जो उस तल से भिन्न होता है जिसमें आपतित किरण तथा अभिलम्ब स्थित हैं। तब आप परावर्तित किरण नहीं देख पाते। यह क्या निदर्शित करता है? यह दर्शाता है कि आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण-ये सभी एक तल में होते हैं। यह परावर्तन का एक अन्य नियम है।

पहेली तथा बूझो ने उपरोक्त क्रियाकलाप टॉर्च के स्थान पर सूर्य को प्रकाश स्रोत के रूप में उपयोग करके कक्ष के बाहर किए। आप भी प्रकाश स्रोत के रूप में सूर्य का उपयोग कर सकते हैं।

इन क्रियाकलापों को किरण वर्णरेखा उपकरण का उपयोग करके भी किया जा सकता है (यह उपकरण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) द्वारा निर्मित किट में उपलब्ध है)।

बूझो को याद आया कि उसने कक्षा VII में समतल I दर्पण द्वारा बने किसी वस्तु के प्रतिबिम्ब के कुछ लक्षणों का अध्ययन किया था। पहेली ने उससे उन लक्षणों का स्मरण करने के लिए पूछा

(i) क्या प्रतिबिंब सीधा था अथवा उलटा ?

(ii) क्या प्रतिबिंब का साइज़ वस्तु के साइज के बराबर था?

(iii) क्या प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर दिखाई दिया था जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी थी?

(iv) क्या प्रतिबंब को पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता था? आइए निम्नलिखित क्रियाकलाप से समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब बनने के बारे में कुछ और अधिक समझें।

क्रियाकलाप 13.3

समतल दर्पण PG के सामने एक प्रकाश स्रोत O रखा गया है। दर्पण पर दो किरणें OA तथा OC आपतित हो रही हैं। (चित्र 13.5)। क्या आप – परावर्तित किरणों की दिशा ज्ञात कर सकते हैं? समतल दर्पण PQ के पृष्ठ के बिन्दुओं A तथा C पर अभिलंब खींचिए। फिर बिंदुओं A तथा C पर परावर्तित किरणें खींचिए। आप इन किरणों को कैसे खींचेगे? परावर्तित किरणों को क्रमशः AB तथा CD से निरूपित कीजिए। इन्हें आगे की ओर बढ़ाइए। क्या ये मिलती हैं? अब इन्हें पीछे की ओर बढ़ाइए। क्या अब ये मिलती हैं? यदि ये मिलती हैं तो इस बिन्दु पर 1 अंकित कीजिए। क्या परावर्तित किरणें E पर स्थित (चित्र 13.5) पर स्थित किसी दर्शक के नेत्र को बिन्दु I से आती प्रतीत होंगी? क्योंकि परावर्तित किरणें वास्तव में I पर नहीं मिलती, बल्कि मिलती हुई प्रतीत होती हैं, इसलिए हम कहते हैं कि बिन्दु O का आभासी प्रतिबिंब I पर बनता है। आप कक्षा VII में पढ़ चुके हैं कि इस प्रकार के प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता।

आप स्मरण कर सकते हैं कि दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब में वस्तु का बायाँ भाग दाईं ओर तथा दायाँ भाग बाईं ओर दिखाई पड़ता है। इस परिघटना को पार्श्व-परिवर्तन कहते हैं।

13.3 नियमित तथा विसरित परावर्तन

क्रियाकलाप 13.4

कल्पना कीजिए कि चित्र 13.6 में दर्शाए अनुसार किसी अनियमित पृष्ठ पर समान्तर किरणें आपतित होती हैं। याद रखिए, पृष्ठ के प्रत्येक बिंदु पर परावर्तन के नियम मान्य हैं। विभिन्न बिंदुओं पर परावर्तित किरणों की रचना करने के लिए इन नियमों का उपयोग कीजिए। क्या ये परावर्तित किरणें एक दूसरे के समान्तर है? आप पाएँगे कि ये किरणें भिन्न-भिन्न दिशाओं में परावर्तित होती है (चित्र 13.7)।

जब सभी समान्तर किरणें किसी खुरदुरे या अनियमित पृष्ठ से परावर्तित होने के पश्चात् समान्तर नहीं होतीं, तो ऐसे परावर्तन को विसरित परावर्तन कहते हैं। याद रखिए कि विसरित परावर्तन में भी परावर्तन के नियमों का सफलतापूर्वक पालन होता है। प्रकाश का विसरण गत्ते जैसे विषय परावर्ती पृष्ठ पर अनियमितताओं के कारण होता है।

इसके विपरीत दर्पण जैसे चिकने पृष्ठ से होने वाले परावर्तन को नियमित परावर्तन कहते हैं। (चित्र 13.8) में नियमित परावर्तन द्वारा प्रतिबिंब बनते हैं।

क्या हम सभी वस्तुओं को परावर्तित प्रकाश के फारण ही देखते हैं?

आपके चारों ओर की लगभग सभी वस्तुएँ आपको परावर्तित प्रकाश के कारण दिखाई देती है। उदाहरण के लिए एचन्द्रमा, सूर्य से प्राप्त प्रकाश को परावर्तित करता है। इस प्रकार हम चन्द्रमा को देखते हैं। जो पिण्ड दूसरी वस्तुओं के प्रकाश में चमकते हैं उन्हें प्रदीप्त पिण्ड कहते हैं। क्या आप कुछ ऐसे अन्य पिण्डों के नाम बता सकते हैं?

कुछ अन्य पिण्ड हैं जो स्वयं का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं, जैसे सूर्य, मोमबत्ती की ज्वाला तथा विद्युत लैम्प। इनका प्रकाश हमारे नेत्रों पर पड़ता है। इस प्रकार हम इन पिण्डों को देखते हैं। जो पिण्ड स्वयं का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं वे दीप्त पिण्ड कहलाते हैं।

13.4 परावर्तित प्रकाश को पुनः परावर्तित किया जा सकता है

स्मरण कीजिए जब पिछली बार आप किसी केश प्रसाधक के यहाँ गए थे। उसने आपको एक दर्पण के सामने बैठाया था। बाल कट चुकने के पश्चात उसने आपके पीछे की ओर एक दर्पण रखा था। इस दूसरे दर्पण की सहायता से आप सामने वाले दर्पण में यह देख सकते थे कि आपके बाल कैसे कटे हैं (चित्र 13.9)।

क्या आप बता सकते हैं कि अपने सिर के पीछे के बालों को आप कैसे देख पाए थे?

पहेली को याद आया कि कक्षा VI में विस्तारित क्रियाकलाप के रूप में उसने एक परिदर्शी बनाया था। परिदर्शी में दो समतल दर्पण उपयोग किए जाते हैं। क्या आप बता सकते हैं कि दो दर्पणों से परावर्तन द्वारा आप उन वस्तुओं को देखने योग्य कैसे बना पाते हैं जिन्हें आप सीधे नहीं देख पाते? परिदर्शियों का उपयोग पनडुब्बियों, टैंकों तथा बंकरों में छिपे सैनिकों द्वारा बाहर की वस्तुओं को देखने के लिए किया जाता है।

13.5 बहु प्रतिबिंब

आप जानते हैं कि समतल दर्पण किसी वस्तु का केवल एक ही प्रतिबिंब बनाता है। यदि दो समतल दर्पणों को  संयोजनों में उपयोग करें तो क्या होगा? आइए देखें।

क्रियाकलाप 13.5

दो समतल दर्पण लीजिए। उन्हें एक दूसरे से समकोण बनाते हुए इस प्रकार रखिए कि इनके किनारे आपस में मिले रहें (चित्र 13.10)। इन्हें जोड़ने के लिए आप किसी टेप का उपयोग कर सकते हैं। दर्पणों के बीच एक सिक्का रखिए। आपको इस सिक्के के कितने प्रतिबिंब दिखाई देते है (चित्र 13.10)?

अब टेप का उपयोग करके दर्पणों को विभिन्न कोणों, जैसे 45, 60, 120, 180 आदि पर जोड़िए। दर्पणों के बीच में कोई वस्तु (जैसे मोमबत्ती) रखिए। प्रत्येक प्रकरण में वस्तु के बनने वाले प्रतिबिंबों की संख्या नोट कीजिए। अन्त में दोनों दर्पणों को एक दूसरे के समान्तर खड़े कीजिए। देखिए अब मोमबत्ती के कितने प्रतिबिंब बनते हैं (चित्र 13.11)।

क्या अब आप यह स्पष्ट कर सकते हैं कि केश प्रसाधक की दुकान पर आप अपने सिर के पीछे के भाग को कैसे देख पाते हैं?

एक दूसरे से किसी कोण पर रखे दर्पणों द्वारा अनेक प्रतिबिबों के बनने की धारणा का उपयोग बहुमूर्तिदर्शी (कैलाइडोस्कोप) में भांति-भांति के आकर्षक पैटर्न बनाने के लिए किया जाता है। आप स्वयं भी एक कैलाइडोस्कोप बना सकते हैं।

बहुमूर्तिदर्शी

क्रियाकलाप 13.6

कैलाइडोस्कोप बनाने के लिए दर्पण की लगभग 15 cm लम्बी, 4 cm चौड़ी तीन आयताकार पट्टियाँ लीजिए। इन्हें चित्र 13.12 (a) में दर्शाए अनुसार एक प्रिज़्म की आकृति में जोड़िए। इन्हें गत्ते या मोटे चार्ट पेपर की बनी एक बेलनाकार ट्यूब में दृढ़ता से लगाइए। सुनिश्चित कीजिए कि ट्यूब दर्पण की पट्टियों से थोड़ी लम्बी हो। ट्यूब के एक सिरे को गत्ते की एक ऐसी डिस्क से बंद कीजिए जिसमें भीतर का दृश्य देखने के लिए एक छिद्र बना हो [चित्र 13.12 (b)]। डिस्क को टिकाऊ बनाने के लिए इसके नीचे पारदर्शी प्लास्टिक की शीट चिपका दीजिए। ट्यूब के दूसरे सिरे पर समतल काँच की एक वृत्ताकार प्लेट दर्पणों को छूते हुए दृढ़तापूर्वक लगाइए [चित्र 13.12 (c)]। इस प्लेट पर छोटे-छोटे रंगीन काँच के कुछ टुकड़े (रंगीन चूड़ियों के टुकड़े) रखिए। ट्यूब के इस सिरे को घिसे हुए काँच की प्लेट से बन्द कीजिए। रंगीन टुकड़ों की हलचल के लिए पर्याप्त जगह रहने दीजिए।

आपका कैलाइडोस्कोप तैयार है। जब आप छिद्र से झाँकते हैं तो आपको ट्यूब में भांति-भांति के पैटर्न दिखाई देते हैं। कैलाइडोस्कोप की एक रोचक विशेषता यह है कि आप कभी भी एक पैटर्न दोबारा नहीं देख पाएँगे। प्रायः दीवारों वाले कागजों तथा वस्त्रों के डिज़ाइन बनाने वाले तथा कलाकार कैलाइडोस्कोप का उपयोग नए-नए पैटर्न की कल्पना करने के लिए करते हैं। अपने खिलौने को आकर्षक बनाने के लिए आप इस पर रंगीन कागज चिपका सकते हैं।

13.6 सूर्य का प्रकाश – श्वेत या रंगीन

कक्षा VII में आपने सीखा कि सूर्य के प्रकाश को श्वेत प्रकाश के रूप में जाना जाता है। आपने यह भी सीखा है कि इसमें सात रंग होते हैं। यह दर्शाने के लिए कि सूर्य के प्रकाश में अनेक रंग होते हैं एक और क्रियाकलाप (13.7) करते हैं।

क्रियाकलाप 13.7

उपयुक्त साइज़ का एक समतल दर्पण लीजिए। इसे चित्र 13.13 में दर्शाए अनुसार एक कटोरी में रखिए। कटोरी में जल भरिए। इस व्यवस्था को किसी खिड़की के पास इस प्रकार रखिए कि दर्पण पर सूर्य का प्रकाश सीधा पड़ सके। कटोरी की स्थिति को इस प्रकार समायोजित कीजिए कि दर्पण से परावर्तित होने वाला प्रकाश किसी दीवार पर पड़े।

यदि दीवार सफेद न हो तो इस पर सफेद कागज़ की शीट चिपकाइए। परावर्तित प्रकाश में आपको अनेक रंग दिखाई देंगे। आप इसकी व्याख्या किस प्रकार करेंगे? दर्पण एवं जल संयुक्त रूप से एक प्रिज़्म बनाते हैं। यह प्रकाश को इसके रंगों में विभक्त कर देता है, जैसा कि आपने कक्षा VII में अध्ययन किया है। प्रकाश के अपने रंगों में विभाजित होने को प्रकाश का विक्षेपण कहते हैं। इन्द्रधनुष विक्षेपण को दर्शाने वाली एक प्राकृतिक परिघटना है।

13.7 हमारे नेत्रों की संरचना क्या है?

हम वस्तुओं को केवल तभी देख पाते हैं जब उनसे आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करता है। नेत्र हमारी सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रियों में से एक है। इसीलिए इसकी संरचना तथा कार्यविधि को समझना हमारे लिए विशेष महत्त्व रखता है।

हमारे नेत्र की आकृति लगभग गोलाकार है। नेत्र का – बाहरी आवरण सफेद होता है। यह कठोर होता है ताकि यह नेत्र के आंतरिक भागों की दुर्घटनाओं से बचाव कर सके। इसके पारदर्शी अग्र भाग को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं (चित्र 13.14)। कॉर्निया के पीछे हम एक गहरे रंग की पेशियों की संरचना पाते हैं जिसे परितारिका (आइरिस) कहते हैं। आइरिस में एक छोटा सा द्वार होता है जिसे पुतली कहते हैं। पुतली के साइज़ को परितारिका से नियंत्रित किया जाता है। परितारिका नेत्र का वह भाग है जो इसे इसका विशिष्ट रंग प्रदान करती है। जब हम कहते हैं कि किसी व्यक्ति के नेत्र हरे हैं तो वास्तव में हम परितारिका के रंग की ही बात कर रहे होते हैं। परितारिका नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है। आइए देखें यह कैसे होता है।

चेतावनीः इस क्रियाकलाप के लिए कभी भी लेजर टॉर्च का प्रयोग न करें।

क्रियाकलाप 13.8

अपने मित्र की आँख में देखिए। पुतली के साइज़ का अवलोकन कीजिए। एक टॉर्च से उसकी आँख पर प्रकाश डालिए। अब पुतली का अवलोकन कीजिए। टॉर्च को बन्द कीजिए तथा उसकी पुतली का एक बार पुनः अवलोकन करें। क्या आप पुतली के साइज़ में कोई परिवर्तन देख पाते हैं? किस स्थिति में पुतली बड़ी थी? क्या आप बता सकते हैं कि ऐसा क्यों हुआ।

किस स्थिति में आपको आँख में अधिक प्रकाश भेजने की आवश्यकता है, मंद प्रकाश में या तीव्र प्रकाश में?

पुतली के पीछे एक लेंस है जो केन्द्र पर मोटा है। किस प्रकार का लेंस केन्द्र पर मोटा होता है? स्मरण करिए, कक्षा VII में लेंसों के बारे में क्या पढ़ा है? लेंस प्रकाश को आँख के पीछे एक परत पर फ़ोकसित करता है। इस परत को रेटिना (दृष्टि पटल) कहते हैं (चित्र 13.14)। रेटिना अनेक तंत्रिका कोशिकाओं का बना होता है। तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा अनुभव की गई संवेदनाओं को दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिया जाता है। तंत्रिका कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं।

(i) शंकु, जो तीव्र प्रकाश के लिए सुग्राही होते हैं तथा
(ii) शलाकाएँ, जो मंद प्रकाश के लिए सुग्राही होती हैं। इसके अतिरिक्त, शंकु रंगों (वर्णों) की सूचनाएँ भी भेजते हैं। दृक् तंत्रिकाओं तथा रेटिना की संधि पर कोई तंत्रिका कोशिका नहीं होती। इस बिंदु को अंध बिंदु कहते हैं। इसके अस्तित्व को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है।

क्रियाकलाप 13.9

किसी कागज्ज की शीट पर एक गोल चिह्न तथा एक क्रॉस बनाइए। गोल चिह्न क्रॉस के दाईं ओर होना चाहिए। दोनों चिह्नों के बीच 6-8 cm की दूरी होनी चाहिए। कागज की शीट को नेत्र से भुजा की दूरी पर पकड़े रखिए। अपने बाएँ नेत्र को बन्द कीजिए। क्रॉस को कुछ देर तक लगातार देखिए। अपने नेत्र को क्रॉस पर स्थिर रखते हुए, शीट को धीरे-धीरे अपनी ओर लाइए। आप क्या देखते हैं? क्या गोल चिह्न शीट के किसी दूरी तक आने पर अदृश्य हो जाता है? अब अपना दायाँ नेत्र बन्द कीजिए। अब गोल चिह्न पर देखते हुए उपरोक्त क्रियाकलाप को दोहराइए। क्या इस बार क्रॉस अदृश्य हो जाता है? क्रॉस अथवा गोल चिह्न का अदृश्य होना यह दशर्शाता है कि रेटिना पर कोई ऐसा बिन्दु है जो प्रकाश गिरने पर इसकी सूचना मस्तिष्क तक नहीं पहुँचाता।

रेटिना पर बने प्रतिबिंब का प्रभाव, वस्तु को हटा लेने पर, तुरन्त ही समाप्त नहीं होता। यह लगभग 1/16 सेकंड तक बना रहता है। इसलिए, यदि नेत्र पर प्रति सेकंड 16 या इससे अधिक दर पर किसी गतिशील वस्तु के स्थिर प्रतिबिंब बनें, तो नेत्र को वह वस्तु चलचित्र की भाँति चलती-फिरती अनुभव होगी।

क्रियाकलाप 13.10

6-8 cm भुजा का गत्ते का एक वर्गाकार टुकड़ा लीजिए। चित्र 13.16 में दर्शाए अनुसार इसमें दो छिद्र बनाइए। इन दोनों छिद्रों में एक धागा पिरोइए। गत्ते के एक ओर एक पिंजरा तथा दूसरी ओर एक पक्षी बनाइए या इनके चित्र चिपकाइए। मरोड़कर उसमें ऐंठन डालिए। अब धागे के दोनों सिरों को खींचिए ताकि धागे की ऐंठन खुले व गत्ता तेजी से घूमने लगे। गत्ते के घूमते समय क्या आपको पक्षी पिंजरे के अन्दर दिखाई देता है?

हम जो चलचित्र देखते हैं वह वास्तव में कुछ-कुछ भिन्न अनेक चित्रों का उपयुक्त क्रम में परदे पर प्रक्षेपण है। उन्हें नेत्र के सामने प्रायः 24 प्रतिबिंब प्रति सेकंड (16 प्रति सेकंड की दर से अधिक) की दर से परिवर्तित होते दिखाया जाता है। इस प्रकार हम चलचित्र देख पाते हैं।

नेत्रों को बाहरी वस्तुओं के प्रवेश से सुरक्षा देने के लिए प्रकृति ने पलकें प्रदान की हैं। पलकें बंद होकर अनावश्यक प्रकाश को भी नेत्रों में प्रवेश करने से रोक देती है।

नेत्र एक ऐसा अद्भुत यंत्र है कि सामान्य नेत्र दूर स्थित वस्तुओं के साथ-साथ निकट की वस्तुओं को भी स्पष्टतया देख सकता है। वह न्यूनतम दूरी जिस पर नेत्र वस्तुओं को स्पष्टतया देख सकता है, आयु के साथ परिवर्तित होती रहती है। सामान्य नेत्र द्वारा पढ़ने के लिए सर्वाधिक सुविधाजनक दूरी लगभग 25 cm होती है।

कुछ मनुष्य पास रखी वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं परन्तु दूर की वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाते। इसके विपरीत, कुछ मनुष्य निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते परन्तु दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं। उचित संशोधक लेंसों के उपयोग द्वारा नेत्र के इन दृष्टि दोषों का संशोधन किया जा सकता है।

कभी-कभी, विशेष रूप से वृद्धावस्था में नेत्रदृष्टि धुँधली हो जाती है। यह नेत्र लेंस के धुँधला हो जाने के कारण होता है। ऐसा होने पर यह कहा जाता है कि नेत्र में मोतियाबिंद विकसित हो रहा है। इसके कारण दृष्टि कमजोर हो जाती है जो कभी-कभी अत्यधिक गंभीर रूप ले लेता है। इस दोष की चिकित्सा सम्भव है। अपारदर्शी लेंस को हटा कर नया कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है। आधुनिक प्रौद्योगिकी ने इस प्रक्रिया को और सरल एवं सुरक्षित बना दिया है।

13.8 नेत्रों की देखभाल

यह आवश्यक है कि आप अपने नेत्रों की उचित देखभाल करें। यदि कोई भी समस्या है तो आपको किसी नेत्र विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए। नेत्रों की नियमित जाँच कराइए।

• यदि परामर्श दिया गया है तो उचित चश्मे का उपयोग कीजिए।

• नेत्रों के लिए बहुत कम या बहुत अधिक प्रकाश हानिकारक है। अपर्याप्त प्रकाश से नेत्र खिंचाव तथा सरदर्द हो सकता है। सूर्य या किसी शक्तिशाली लैम्प का अत्यधिक तीव्र प्रकाश, अथवा लेज़र टार्च का प्रकाश रेटिना को क्षति पहुँचा सकता है।

क्या आप जानते हैं?

जन्तुओं के नेत्र विभिन्न आकृतियों के होते हैं। केकड़े के नेत्र बहुत छोटे होते हैं परन्तु इनके द्वारा केकड़ा चारों ओर देख सकता है। इसलिए यदि शत्रु पीछे से भी उसकी ओर आता है तब भी उसे पता लग जाता है। तितली के बड़े नेत्र होते हैं जो सहस्रों छोटे नेत्रों से मिलकर बने प्रतीत होते हैं (चित्र 13.17)। यह केवल सामने अथवा पार्श्व में ही नहीं बल्कि पीछे का भी देख सकती है।

उल्लू रात में भली भाँति देख सकता है परन्तु दिन में नहीं देख पाता। इसके विपरीत दिन के प्रकाश में सक्रिय पक्षी (चील, गरुड़) दिन में अच्छी प्रकार देख सकते हैं लेकिन रात में ठीक से नहीं देख पाते। उल्लू के नेत्र में बड़ा कॉर्निया तथा बड़ी पुतली होती है, ताकि नेत्र में अधिक प्रकाश प्रवेश कर सके। इसी के साथ-साथ इसके रेटिना में बड़ी संख्या में शलाकाएँ होती है तथा केवल कुछ ही शंकु होते हैं। इसके विपरीत दिन के पक्षियों के नेत्रों में शंकु अधिक तथा शलाकाएँ कम होती है।

• सूर्य या किसी शक्तिशाली प्रकाश स्त्रोत को कभी भी सीधा मत देखिए।

• अपने नेत्रों को कभी मत रगड़िए। यदि आपके नेत्रों में कोई धूल का कण गिर जाए तो नेत्रों को स्वच्छ जल से धोइए। यदि कोई सुधार न हो तो डॉक्टर के पास जाइए।

• पठन सामग्री को सदैव दृष्टि की सामान्य दूरी पर रखकर पढ़िए। अपनी पुस्तक को नेत्रों के बहुत समीप लाकर अथवा उसे नेत्रों से बहुत दूर ले जाकर मत पढ़िए।

कक्षा VI में आपने संतुलित आहार के बारे में सीखा था। यदि भोजन में किसी अवयव का अभाव है तो इससे नेत्रों को भी क्षति हो सकती है। भोजन में विटामिन A का अभाव नेत्रों के अनेक रोगों के लिए उत्तरदायी होता है। इनमें सबसे अधिक सामान्य रोग रतौंधी है।

इसलिए हमें अपने आहार में विटामिन A युक्त अवयवों को सम्मिलित करना चाहिए। कच्ची गाजर, फूलगोभी तथा हरी सब्जियाँ (जैसे पालक) तथा कॉड-लीवर तेल में विटामिन A की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। अंडे, दूध, दही, पनीर, मक्खन एवं फल जैसे जैसे आम आम तथा तथा पतीता भी विटामिन A से भरपूर होते हैं।

13.9 चाक्षुष-विकृति वाले व्यक्ति पढ़-लिख सकते हैं

कुछ व्यक्ति जिनमें बच्चे भी सम्मिलित हैं, चाक्षुषी (दृष्टि सम्बंधी)-अक्षमता से पीड़ित होते हैं। उनकी वस्तुओं को देखने के लिए सीमित दृष्टि होती है। कुछ व्यक्ति जन्म से ही बिलकुल नहीं देख पाते। कुछ व्यक्ति किसी बीमारी या किसी चोट के कारण अपनी दृष्टि खो देते हैं। ऐसे व्यक्ति स्पर्श द्वारा अथवा ध्वनियों को ध्यानपूर्वक सुनकर वस्तुओं को पहचानने का प्रयत्न करते हैं। वे अपनी दूसरी ज्ञानेन्द्रियों को अधिक विकसित कर लेते हैं। तथापि, अतिरिक्त संसाधन उन्हें अपनी क्षमताओं को और अधिक विकसित करने में सक्षम बना सकते हैं।

चाक्षुष- विकृति वाले व्यक्तियों के लिए अप्रकाशिक साधन तथा प्रकाशिक साधन अप्रकाशिक साधनों में चाक्षुष साधन, स्पर्श साधन (स्पर्श की ज्ञानेन्द्रिय का उपयोग करके), श्रवण साधन (श्रवण की ज्ञानेन्द्रिय का उपयोग करके) तथा इलेक्ट्रॉनिक साधन सम्मिलित हैं।

चाक्षुष साधन शब्दों को आवर्धित कर सकते हैं, उचित तीव्रता का प्रकाश प्रदान कर सकते हैं तथा सामग्री को उचित दूरी पर जुटा सकते हैं। स्पर्श साधन जिनमें बैल लेखन पाटी तथा शलाका सम्मिलित हैं, चाक्षुष विकृति युक्त व्यक्तियों को पढ़ने तथा लिखने में सहायता करते हैं। श्रवण साधनों में कैसेट, टेपरिकोर्डर, बोलने वाली पुस्तकें तथा ऐसे अन्य साधन सम्मिलित हैं। बोलने वाले कैलकुलेटर तथा कम्प्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक साधन भी उपलब्ध हैं जिनसे अनेक संगणना कार्य किए जा सकते हैं। बंद परिपथ टेलीविज़न भी एक इलेक्ट्रॉनिक साधन है जो मुद्रित सामग्री को उचित विपर्यास (कंट्रास्ट) तथा प्रदीप्ति के साथ आवर्धित करता है। आजकल श्रवण सीडी (CD) तथा कम्प्यूटरों के साथ वाक्यंत्र भी वांछित विषय को सुनने तथा लिखने में अत्यधिक सहायक हैं।

प्रकाशिक साधनों में द्वि-फ़ोकसी लेंस, संस्पर्श लेंस, रजित लेंस, आवर्धक तथा दूरबीनी साधन सम्मिलित हैं। जबकि लेंसों के संयोजन चाक्षुष सीमावन्धन के संशोधन के लिए उपयोग किए जाते हैं। दूरबीनी साधन चॉक बोर्ड तथा कक्षा प्रदर्शनों को देखने के लिए उपलब्ध हैं।

13.10 बैल पद्धति क्या है?

चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्तियों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय साधन ब्रैल कहलाता है।

लुई ब्रेल जो स्वयं एक चक्षुषविकृति युक्त व्यक्ति थे, ने चक्षुषविकृति युक्त व्यक्तियों के लिए एक पद्धति विकसित की तथा इसे 1821 में प्रकाशित किया।

वर्तमान पद्धति 1932 में अपनाई गई। सामान्य भाषाओं, गणित तथा वैज्ञानिक विचारों के लिए ब्रैल कोड है। ब्रैल पद्धति का उपयोग करके अनेक भारतीय भाषाओं को पढ़ा जा सकता है।

बैल पद्धति में 63 बिंदुकित पैटर्न अथवा छाप हैं। प्रत्येक छाप एक अक्षर, अक्षरों के समुच्चय, सामान्य शब्द अथवा व्याकरणिक चिह्न को प्रदर्शित करती है। बिंदुओं को ऊर्ध्वाधर पंक्तियों के दो कक्षों में व्यवस्थित किया गया है। प्रत्येक पंक्ति में तीन बिंदु हैं।

अंग्रेजी वर्णमाला के कुछ अक्षरों तथा कुछ सामान्य शब्दों को प्रदर्शित करने के लिए बिंदुकित पैटर्न नीचे दर्शाया गया है।

इन पैटर्न को जब ब्रैल शीट पर उभारा जाता है तो ये चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्तियों को छूकर शब्दों को पहचानने में सहायता करते हैं। स्पर्श को आसान बनाने के लिए बिंदुओं को थोड़ा सा उभार दिया जाता है।

चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्ति ब्रैल पद्धति को अक्षरों से सीखना प्रारम्भ करता है। इसके पश्चात विशेष छापों एवं अक्षरों के संयोजनों को पहचानता है। सीखने की विधियाँ स्पर्श से पहचान करने पर निर्भर होती हैं।

प्रत्येक छाप को स्मरण करना पड़ता है। ब्रैल पाठों को हाथ या मशीन से तैयार किया जा सकता है। आजकल टाइपराइटर जैसी युक्तियाँ तथा मुद्रण मशीनें विकसित की गई हैं।

कुछ चाक्षुषविकृति युक्त भारतीयों को महान उपलब्धियाँ प्राप्त करने का श्रेय है। दिवाकर नामक एक प्रतिभासम्पन्न बालक ने गायक के रूप में आश्चर्यजनक प्रदर्शन दिए हैं।

जन्म से पूर्णतया चाक्षुषविकृति युक्त श्री रविन्द्र जैन ने इलाहाबाद से अपनी संगीत प्रभाकर की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने एक गीतकार, संगीतकार तथा गायक के रूप में अपनी श्रेष्ठता को दर्शाया है। श्री लाल आडवाणी जो स्वयं चाक्षुषविकृति युक्त हैं, ने भारत में विकलांगों के पुनर्वास तथा विशिष्ट शिक्षा के लिए एक संस्था की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने यूनेस्को में बैल समस्याओं पर भारत का प्रतिनिधित्व किया।

अमेरिका की एक लेखिका एवं प्राध्यापिका हेलन ए. केलर सम्भवतः सर्वविदित तथा प्रेरक चाक्षुष विकृति युक्त महिला हैं। 18 महीने की आयु में उन्होंने दृष्टि खो दी थी। लेकिन उनके संकल्प तथा साहस के कारण वह एक विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ग्रहण कर सकी। “स्टोरी ऑफ माई लाइफ” (1903) सहित उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी।

आपने क्या सीखा है

• प्रकाश सभी पृष्ठों से परावर्तित होता है।

• जब प्रकाश किसी चिकने, पॉलिश किए हुए तथा नियमित पृष्ठों पर आपतित होता है तो नियमित परावर्तन होता है।

• विसरित या अनियमित परावर्तन खुरदरे पृष्ठों से होता है।

• परावर्तन के दो नियम हैं :

(i) आपतन कोण, परावर्तन कोण के बराबर होता है।

(ii) आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा परावर्तक पृष्ठ पर आपतन बिंदु पर खींचा गया अभिलंब एक ही तल में होते हैं।

• दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब में पार्श्व-परिवर्तन होता है।

• किसी कोण पर झुके दो दर्पण अनेक प्रतिबिंब बना सकते हैं।

• बहुलित परावर्तन के कारण कैलाइडोस्कोप में सुन्दर पैटर्न बनते हैं।

• सूर्य का प्रकाश जो श्वेत प्रकाश कहलाता है, सात रंगों से मिलकर बना है।

• प्रकाश के अपने घटक रंगों में विभक्त होने को विक्षेपण कहते हैं।

• हमारे नेत्र के महत्त्वपूर्ण भाग हैं कॉर्निया (स्वच्छ मंडल), आइरिस (परितारिका), पुतली, लेंस, रेटिना (दृष्टि पटल) तथा दृक् तंत्रिकाएँ।

• सामान्य नेत्र समीप तथा दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं।

• बैल पद्धति का उपयोग करके चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्ति पढ़ तथा लिख सकते हैं।

• चाक्षुषविकृति युक्त व्यक्ति अपने पर्यावरण से संपर्क के लिए अपनी दूसरी ज्ञानेन्द्रियों को अधिक तीक्ष्णता से विकसित कर लेते हैं।

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अभ्यास

1. मान लीजिए आप एक अंधेरे कमरे में है। क्या आप कमरे में वस्तुओं को देख सकते हैं? क्या आप कमरे के बाहर वस्तुओं को देख सकते हैं। व्याख्या कीजिए।
Ans.
नहीं, हम अंधेरे कमरे में वस्तुओं को नहीं देख सकते, इसका कारण यह है कि कमरे में उस समय कोई प्रकाश नहीं होता। हम किसी वस्तु को तब ही देख पाते हैं जब उस वस्तु से आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करें। यह प्रकाश वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित अथवा उनसे परावर्तित हुआ हो सकता है।

2. नियमित तथा विसरित परावर्तन में अन्तर बताइए। क्या विसरित परावर्तन का अर्थ है कि परावर्तन के नियम विफल हो गए हैं?
Ans.

नियमित परावर्तनविसरित परावर्तन
यह प्रकाश के चिकनी जगह पर आपतित होने से होता है।यह प्रकाश के खुरदरी सतह पर आपतित होने से होता है।
परावर्तन के पश्चात सभी किरण एक विशेष दिशा में परावर्तित हो जाती है।परावर्तन के बाद परावर्तित किरणें अनियमित रूप से अनेक दिशाओं में बिखर जाती है।
समतल दर्पण से परावर्तन इसका एक उदाहरण है।उदाहरण के लिए सड़क की सतह से परावर्तन।

नहीं, विसरित परावर्तन का अर्थ है ऐसा बिल्कुल नहीं है कि परावर्तन के नियम विफल हो गए हैं। विसरित परावर्तन में भी परावर्तन के सभी नियमों का पालन होता है।

3. निम्न में से प्रत्येक के स्थान के सामने लिखिए, यदि प्रकाश की एक समान्तर किरण-पुंज इनसे टकराए तो नियमित परावर्तन होगा या विसरित परावर्तन होगा। प्रत्येक स्थिति में अपने उत्तर का औचित्य बताइए।

(क) पॉलिश युक्त लकड़ी की मेज  (ख) चॉक पाउडर

(ग) गत्ते का पृष्ठ  (घ) संगमरमर के फर्श पर फैला बल

(ङ) दर्पण  (च) कागज का टुकड़ा

Ans. (क) पॉलिश युक्त लकड़ी की मेजः नियमित परावर्तन ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लकड़ी की मेज का पृष्ठ पॉलिश होने के साथ साथ समतल भी है।

(ख) चॉक पाऊडरः विसरित परावर्तन क्योंकि चाक पाऊडर रुक्ष पृष्ठ प्रदान करता है।

(ग) गत्ते का पृष्ठः विसरित परावर्तन, पृष्ठ पर उपस्थित अनियमितताओं के कारण।

(घ) संगमरमर के फर्श पर फैला जलः नियमित परावर्तन क्योंकि जल से समतल पृष्ठ बन जाता है।

(ङ) दर्पण: नियमित परावर्तन क्योंकि इसका पृष्ठ समतल है।

(च) कागज़ का टुकड़ाः नियमित यदि कागज समतल है और विसरित यदि कागज रुक्ष है।

4. परावर्तन के नियम बताइए।
Ans.
परावर्तन के दो नियम हैं जो नीचे दिए गए हैं।

• परावर्तन का पहला नियमः आपतित किरण, आपतन बिंदु पर लम्ब और परावर्तित किरण, ये तीनों एक ही तल में होते हैं।

• परावर्तन का दूसरा नियमः आपतन कोण और परावर्तन कोण आपस में बराबर होते हैं। दिए गए चित्र में आपतन कोण को नीले रंग से और परावर्तन कोण को लाल रंग से दिखाया गया है।

5. यह दर्शाने के लिए कि आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा आपतन बिंदु पर अभिलंब एक ही तल में होते हैं, एक क्रियाकलाप का वर्णन कीजिए।
Ans.
जब हम मेज पर कागज की पूरी शीट फैलाते हैं तो यह एक तल को निरूपित करती है। आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलम्ब तथा परावर्तित किरण ये सभी इसी तल में होते हैं। जब हम कागज को मोड़ देते हैं तो एक नया तल बन जाता है जो उस तल से भिन्न होता है जिसमें आपतित किरण तथा अभिलम्ब स्थित है। तब आप परावर्तित किरण नहीं देख पाते। यही दर्शाता है कि आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभितंब तथा परावर्तित किरण ये सभी एक एक तल में होते हैं।

अथवा

इसके लिए एक चार्ट पेपर, टॉर्च और समतल दर्पण लीजिए। टॉर्च के अगले हिस्से पर एक काला कागज चिपका कर उसके बीच एक छोटा छेद कर दीजिए। इससे प्रकाश की एक पतली बीम मिल जाएगी।

• चार्ट पेपर को टेबल पर इस तरह रखें कि उसका कुछ हिस्सा टेबल के किनारे से आगे रहे। अब दर्पण को चार्ट पेपर पर लंबवत रखिए।

• दर्पण पर टॉर्च से प्रकाश की बीम इस तरह डालिए ताकि आपतित किरण चार्ट पेपर के तल के साथ चले। अब चार्ट पेपर पर आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब और परावर्तित किरण को मार्क कीजिए।

• अब चार्ट पेपर के उस भाग को नीचे की तरफ मोड़ दीजिए जो टेबल के बाहर है। उसके बाद पिछले चरण को

• दोहराइए और आपतित किरण तथा परावर्तित किरण का अवलोकन कीजिए।

• आप देखेंगे कि चार्ट पेपर के मुड़े हुए हिस्से पर परावर्तित किरण दिखाई नहीं देती है। ऐसा इसलिए होता है कि चार्ट पेपर का मुड़ा हुआ हिस्सा उसके बाकी हिस्से से अलग तल में है। इससे सिद्ध होता है कि आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब और परावर्तित किरण एक ही तल में रहते हैं।

6 नीचे दिए गए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(a) एक समतल दर्पण के सामने 1 m दूर खड़ा एक व्यक्ति अपने प्रतिबिंब से 1 m दूर दिखाई देता है।

(b) यदि किसी समतल दर्पों के सामने खड़े होकर आप अपने दाएँ हाथ से अपने बांए कान को छुएँ तो दर्पण में ऐसा लगेगा कि आपका दायाँ कान बांए हाथ से हुआ गया है।

(c) जब आप मंद प्रकाश में देखते हैं तो आपकी पुतली का साइन विस्तृत हो जाता है।

(d) रात्रि पक्षियों के नेत्रों में शलाकाओं की संख्या की अपेक्षा शकुओं की संख्या अधिक होती है।

प्रश्न 7 तथा 8 में सही विकल्प छाँटिए

7. आपतन कोण परावर्तन कोण के बराबर होता है:

(क) सदैव

(ख) कभी-कभी

(ग) विशेष दशाओं में

(घ) कभी नहीं

Ans. (क) सदैव

8. समतल दर्पण द्वारा बनाया गया प्रतिबिंब होता है

(क) आभासी, दर्पण के पीछे तथा आवर्धित ।

(ख) आभासी, दर्पण के पीछे तथा बिंब के साइज़ के बराबर।

(ग) वास्तविक, दर्पण के पृष्ठ पर तथा आवर्धित ।

(घ) वास्तविक, दर्पण के पीछे तथा बिंब के साइज़ के बराबर।

Ans. (ख) आभासी, दर्पण के पीछे तथा बिंब के साइज़ के बराबर।

9. कैलाइडोस्कोप की रचना का वर्णन कीजिए।
Ans.
एक दूसरे से किसी कोण पर रखे दर्पणों द्वारा अनेक प्रतिबिंबों के बनने की धारणा का उपयोग बहुमुर्तिदर्शी में भांति-भांति के आकर्षक पैटर्न बनाने के लिए किया जाता है। इसे बनाने के लिए दर्पण की लगभग 15cm लम्बी, 4 cm चौड़ी तीन आयताकार पट्टी लीजिए। हमें इन्हें एक प्रिज्म की आकृति में जोड़ना है। इन्हें गत्ते या मोटे चार्ट पेपर की बनी एक बेलनाकार ट्यूब के एक सिरे को गत्ते की एक

10. मानव नेत्र का एक नामांकित रेखाचित्र बनाइए।

Ans.

    11. गुरमीत लेजर टॉर्च के द्वारा क्रियाकलाप 13.8 को करना चाहता था। उसके अध्यापक ने ऐसा करने से मना किया। क्या आप अध्यापक की सलाह के आधार की व्याख्या कर सकते हैं?
    Ans.
     अध्यापक ने ऐसा करने से इसलिए मना किया क्योंकि तेजर टॉर्च की किरणों की वजह से रेटिना पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अधिक प्रकाश होने के कारण आँखें खराब हो सकती हैं।

    12. वर्णन कीजिए कि आप अपने नेत्रों की देखभाल कैसे करेंगे।
    Ans.
    यह आवश्यक होता है कि हमें नेत्रों की उचित देखभाल करनी चाहिए। यदि कोई समस्या है तो आपको किसी नेत्र विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए। यदि परामर्श दिया जाए तो उचित चशमे का उपयोग कीजिए। नेत्रों के लिए बहुत कम या बहुत अधिक प्रकाश हानिकारक है। अपर्याप्त प्रकाश से नेत्र खिंचाव तथा सरदर्द हो सकता है। सूर्य या किसी शक्तिशाली प्रकाश स्त्रोत को सीधा नहीं देखना चाहिए। अपनी आँखों को कभी भी मत रगडिए। यदि आपके आँखों में किसी प्रकार से धूल के कण चते जाते हैं तो उसको स्वच्छ पानी से धोना चाहिए। अगर तब भी धूल के कण न निकले तो, डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

    अथवा

    निम्रतिखित तरीको से हम अपनी आँखों की देखभाल कर सकते है-

    (i) तीव्र प्रकाश स्तोतों जैसे सूर्य का प्रकाश, लेजर या अन्य शक्तिशाली प्रकाश स्त्रोत को लगातार और सीधा नहीं देखना चाहिए।

    (ii) आँखों में धूत या कुछ चला जाए तो उन्हें साफ पानी से धोना चाहिए। उन्हें रगड़ना नहीं चाहिए।

    (ⅲ) पढ़ते समय वस्तु के बहुत पास जाकर नहीं पढ़ना चाहिएण्उन्हें सामान्य दूरी पर रखकर ही पढ़ना चाहिए।

    (iv) आँखों को हमेशा स्वच्छ पानी से ही धोना चाहिए

    13. यदि परावर्तित किरण आपतित किरण से 90° का कोण बनाए तो आपतन कोण का मान कितना होगा?
    Ans.
    हम जानते हैं कि
    आपतन कोण = परावर्तन कोण
    दिया गया है: ∠i + r = 90°
    इसलिए, ∠i + ∠i = 90°
    या, 2∠i = 90°
    या, ∠i = 45°

    14. यदि दो समान्तर समतल दर्पण एक-दूसरे से 40 cm के अन्तराल पर रखे हों तो इनके बीच रखी एक मोमबत्ती के कितने प्रतिबिंब बनेंगे?

    Ans. यदि दो समांतर समतल दर्पण एक दूसरे से 40cm के अंतराल पर रखे हो तो इनके बीच रखी एक मोमबत्ती के अनंत प्रतिबिंब बनेगे।

    मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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