शुक्रतारे के समान : अध्याय 5

आकाश के तारों में शुक्र की कोई जोड़ नहीं। शुक्र चंद्र का साथी माना गया है। उसकी आभा-प्रभा का वर्णन करने में संसार के कवि थके नहीं। फिर भी नक्षत्र मंडल में कलगी-रूप इस तेजस्वी तारे को दुनिया या तो ऐन शाम के समय, बड़े सवेरे घंटे-दो घंटे से अधिक देख नहीं पाती। इसी तरह भाई महादेव जी आधुनिक भारत की स्वतंत्रता के उषाकाल में अपनी वैसी ही आभा से हमारे आकाश को जगमगाकर, देश और दुनिया को मुग्ध करके, शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए। सेवाधर्म का पालन करने के लिए इस धरती पर जनमे स्वर्गीय महादेव देसाई गांधीजी के मंत्री थे। मित्रों के बीच विनोद में अपने को गांधीजी का ‘हम्माल’ कहने में और कभी-कभी अपना परिचय उनके ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देने में वे गौरव का अनुभव किया करते थे।

गांधीजी के लिए वे पुत्र से भी अधिक थे। जब सन् 1917 में वे गांधीजी के पास पहुँचे थे, तभी गांधीजी ने उनको तत्काल पहचान लिया और उनको अपने उत्तराधिकारी का पद सौप दिया। सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जाते हुए गांधीजी को पलवल स्टेशन पर गिरफ़्तार किया गया था। गांधीजी ने उसी समय महादेव भाई को अपना वारिस कहा था। सन् 1929 में महादेव भाई आसेतुहिमाचल, देश के चारों कोनों में, समूचे देश के दुलारे बन चुके थे।

इसी बीच पंजाब में फ़ौजी शासन के कारण जो कहर बरसाया गया था, उसका ब्योरा रोज-रोज आने लगा। पंजाब के अधिकतर नेताओं को गिरफ़्तार करके फ़ौजी कानून के तहत जन्म कैद की सजाएँ देकर कालापानी भेज दिया गया। लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक पत्र ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सजा मिली।

गांधीजी के सामने जुल्मों और अत्याचारों की कहानियाँ पेश करने के लिए आने वाले पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे। महादेव उनकी बातों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करके उनको गांधीजी के सामने पेश करते थे और आनेवालों के साथ उनकी रूबरू मुलाकातें भी करवाते थे। गांधीजी बंबई के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक ‘बाम्बे क्रानिकल’ में इन सब विषयों पर लेख लिखा करते थे। क्रानिकल में जगह की तंगी बनी रहती थी।

कुछ ही दिनों में ‘क्रानिकल’ के निडर अंग्रेज संपादक हार्नीमैन को सरकार ने देश-निकाले की सजा देकर इंग्लैंड भेज दिया। उन दिनों बंबई के तीन नए नेता थे। शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास । इनमें अंतिम श्रीमती बेसेंट के अनुयायी थे। ये नेता ‘यंग इंडिया’ नाम का एक अंग्रेजी साप्ताहिक भी निकालते थे। लेकिन उसमें ‘क्रानिकल’ वाले हार्नीमैन ही मुख्य रूप से लिखते थे। उनको देश निकाला मिलने के बाद इन लोगों को हर हफ़्ते साप्ताहिक के लिए लिखनेवालों की कमी रहने लगी। ये तीनों नेता गांधीजी के परम प्रशंसक थे और उनके सत्याग्रह-आंदोलन में बंबई के बेजोड़ नेता भी थे। इन्होंने गांधीजी से विनती की कि वे ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन जाएँ। गांधीजी को तो इसकी सख्त जरूरत थी ही। उन्होंने विनती तुरंत स्वीकार कर ली।

गांधीजी का काम इतना बढ़ गया कि साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा। गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ को हफ्ते में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया। हर रोज का पुत्र-व्यवहार और मुलाकातें, आम सभाएँ आदि कामों के अलावा ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में छापने के लेख, टिप्पणियाँ, पंजाब के मामलों का सारसंक्षेप और गांधीजी के लेख यह सारी सामग्री हम तीन दिन में तैयार करते।

‘यंग इंडिया’ के पीछे-पीछे ‘नवजीवन’ भी गांधीजी के पास आया और दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलने लगे। छह महीनों के लिए मैं भी साबरमती आश्रम में रहने पहुँचा। शुरू में ग्राहकों के हिसाब-किताब की और साप्ताहिकों को डाक में डलवाने की व्यवस्था मेरे जिम्मे रही। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद संपादन सहित दोनों साप्ताहिकों की और छापाखाने की सारी व्यवस्था मेरे जिम्मे आ गई। गांधीजी और महादेव का सारा समय देश भ्रमण में बीतने लगा। ये जहाँ भी होते, वहाँ से कामों और कार्यक्रमों की भारी भीड़ के बीच भी समय निकालकर लेख लिखते और भेजते।

सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गांधीजी को पत्र लिखते और गांधीजी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गांधीजी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्ताहिक विवरण भेजा करते।

इसके अलावा महादेव, देश-विदेश के अग्रगण्य समाचार-पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गांधीजी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका-टिप्पणी करते रहते थे, उनको आड़े हाथों लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे-से-ऊँचे ब्रिटिश समाचार-पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गांधीजी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्यनिष्ठा में से उत्पन्न होनेवाली विनय विवेक-युक्त विवाद करने की गांधीजी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश-विदेश के सारे समाचार पत्रों की दुनिया में और एंग्लो-इंडियन समाचार-पत्रों के बीच भी व्यक्तिगत रूप से एम.डी. को सबका लाड़ला बना दिया था।

गांधीजी के पास आने के पहले अपनी विद्यार्थी अवस्था में महादेव ने सरकार के अनुवाद-विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता है। साहित्य और संस्कार के साथ इसका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरदचंद्र आदि के साहित्य को उलटना-पुलटना शुरू कर दिया था। ‘चित्रांगदा’ कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित ‘विदाई का अभिशाप’ शीर्षक नाटिका, ‘शरद बाबू की कहानियाँ’ आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन है।

भारत में उनके अक्षरों का कोई सानी नहीं था। वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस उसाँस लेते रहते थे। भले ही उन दिनों ब्रिटिश सल्तनत पर कहीं सूरज न डूबता हो, लेकिन उस सल्तनत के ‘छोटे’ बादशाह को भी गांधीजी के सेक्रेटरी के समान खुशनवीश (सुंदर अक्षर लिखने वाला लेखक) कहाँ मिलता था? बड़े-बड़े सिविलियन और गवर्नर कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सर्विसों में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कहीं खोजने पर भी मिलता नहीं था। पढ़ने वाले को मंत्रमुग्ध करने वाला शुद्ध और सुंदर लेखन ।

महादेव के हाथों के लिखे गए लेख, टिप्पणियाँ, पत्र, गांधीजी के व्याख्यान, प्रार्थना-प्रवचन, मुलाकातें, वार्तालापों पर लिखी गई टिप्पणियाँ, सब कुछ फुलस्केप के चौथाई आकारवाली मोटी अभ्यास पुस्तकों में, लंबी लिखावट के साथ, जेट की सी गति से लिखा जाता था। वे ‘शॉर्टहैंड’ जानते नहीं थे।

बड़े-बड़े देशी-विदेशी राजपुरुष, राजनीतिज्ञ, देश-विदेश के अग्रगण्य समाचार-पत्रों के प्रतिनिधि, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के संचालक, पादरी, ग्रंथकार आदि गांधीजी से मिलने के लिए आते थे। ये लोग खुद या इनके साथी संगी भी गांधीजी के साथ बातचीत को ‘शॉर्टहैंड’ में लिखा करते थे। महादेव एक कोने में बैठे-बैठे अपनी लंबी लिखावट में सारी चर्चा को लिखते रहते थे। मुलाकात के लिए आए हुए लोग अपनी मुकाम पर जाकर सारी बातचीत को टाइप करके जब उसे गांधीजी के पास ‘ओके’ करवाने के लिए पहुँचते, तो भले ही उनमें कुछ भूलें या कमियाँ-खामियाँ मिल जाएँ, लेकिन महादेव की डायरी में या नोट-बही में मजाल है कि कॉमा मात्र की भी भूल मिल जाए।

गांधीजी कहते : महादेव के लिखे ‘नोट’ के साथ थोड़ा मिलान कर लेना था न। और लोग दाँतों अँगुली दबाकर रह जाते।

लुई फिशर और गुंथर के समान धुरंधर लेखक अपनी टिप्पणियों का मिलान महादेव की टिप्पणियों के साथ करके उन्हें सुधारे बिना गांधीजी के पास ले जाने में हिचकिचाते थे।

साहित्यिक पुस्तकों की तरह ही महादेव वर्तमान राजनीतिक प्रवाहों और घटनाओं से संबंधित अद्यतन जानकारीवाली पुस्तकें भी पढ़ते रहते थे। हिंदुस्तान से संबंधित देश-विदेश की ताज़ी- से-ताज़ी राजनीतिक गतिविधियों और चर्चाओं की नयी-से-नयी जानकारी उनके पास मिल सकती थी। सभाओं में, कमेटियों की बैठकों में या दौड़ती रेलगाड़ियों के डिब्बों में ऊपर की बर्थ पर बैठकर, दूँस-दूँसकर भरे अपने बड़े-बड़े झोलों में रखे ताजे-से-ताजे समाचार-पत्र, मासिक-पत्र और पुस्तकें वे पढ़ते रहते, अथवा ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ के लिए लेख लिखते रहते। लगातार चलनेवाली यात्राओं, हर स्टेशन पर दर्शनों के लिए इकट्ठा हुई जनता के विशाल समुदायों, सभाओं, मुलाकातों, बैठकों, चर्चाओं और बातचीतों के बीच वे स्वयं कब खाते, कब नहाते, कब सोते या कब अपनी हाजतें रना करते, किसी को इसका कोई पता नहीं चल पाता। वे एक घंटे में चार घंटों के काम निपटा देते। काम में रात और दिन के बीच कोई फ़र्क शायद ही कभी रहता हो। वे सूत भी बहुत सुंदर कातते थे। अपनी इतनी सारी व्यस्तताओं के बीच भी वे कातना कभी चूकते नहीं थे।

बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, सोने की कीमत वाले ‘गाद’ के बने हैं। आप सौ-सौ कोस चल लीजिए रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं मिलेगा नहीं। इसी तरह महादेव के संपर्क में आने वाले किसी को भी ठेस या ठोकर की बात तो दूर रही, खुरदरी मिट्टी या कंकरी भी कभी चुभती नहीं थी। उनकी निर्मल प्रतिभा उनके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को चंद्र-शुक्र की प्रभा के साथ दूधों नहला देती थी। उसमें सराबोर होने वाले के मन से उनकी इस मोहिनी का नशा कई-कई दिन तक उतरता न था।

महादेव का समूचा जीवन और उनके सारे कामकाज गांधीजी के साथ एकरूप होकर इस तरह गुँथ गए थे कि गांधीजी से अलग करके अकेले उनकी कोई कल्पना की ही नहीं जा सकती थी। कामकाज की अनवरत व्यस्तताओं के बीच कोई कल्पना भी न कर सके, इस तरह समय निकालकर लिखी गई दिन-प्रतिदिन्न की उनकी डायरी की वे अनगिनत अभ्यास पुस्तकें,आज भी मौजूद हैं।

प्रथम श्रेणी की शिष्ट, संस्कार-संपन्न भाषा और मनोहारी लेखनशैली की ईश्वरीय देन महादेव को मिली थी। यद्यपि गांधीजी के पास पहुँचने के बाद घमासान लड़ाइयों, आंदोलनों और समाचार-पत्रों की चर्चाओं के भीड़ भरे प्रसंगों के बीच केवल साहित्यिक गतिविधियों के लिए उन्हें कभी समय नहीं मिला, फिर भी गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने किया, जो ‘नवजीवन’ में प्रकाशित होनेवाले मूल गुजराती की तरह हर हफ्ते ‘यंग इंडिया’ में छपता रहा। बाद में पुस्तक के रूप में उसके अनगिनत संस्करण सारी दुनिया के देशों में प्रकाशित हुए और बिके।

सन् 1934-35 में गांधीजी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद अचानक मगनवाड़ी से चलकर सेगाँव की सरहद पर एक पेड़ के नीचे जा बैठे। उसके बाद वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार हुए, तब तक महादेव भाई दुर्गा बहन और चि. नारायण के साथ मगनवाड़ी में रहे। वहीं से वे वर्धा की असह्य गरमी में रोज सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। वहाँ दिनभर काम करके शाम को वापस पैदल आते थे। जाते-आते पूरे 11 मील चलते थे। रोज-रोज का यह सिलसिला लंबे समय तक चला। कुल मिलाकर इसका जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, उनकी अकाल मृत्यु के कारणों में वह एक कारण माना जा सकता है।

इस मौत का घाव गांधीजी के दिल में उनके जीते जी बना ही रहा। वे भर्तृहरि के भजन की यह पंक्ति हमेशा दोहराते रहे :

‘ए रे जखम जोगे नहि जशे’ यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं।

बाद के सालों में प्यारेलाल जी से कुछ कहना होता, और गांधीजी उनको बुलाते तो उस समय भी अनायास उनके मुँह से ‘महादेव’ ही निकलता।

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प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

1. महादेव भाई अपना परिचय किस रूप में देते थे?
Ans.
महादेव भाई अपना परिचय गाँधी जी के ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देते थे।

2. ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी क्यों रहने लगी थी?
Ans.
अंग्रेजी संपादक हार्नीमैन ‘यंग इंडिया’ के लिए लिखते थे, जिन्हें देश निकाले की सजा देकर इंग्लैंड भेज दिया था। इस कारण ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी रहने लगी।

3. गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ प्रकाशित करने के विषय में क्या निश्चय किया?
Ans.
गाँधी जी ने ‘यंग इंडिया’ को सप्ताह में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया।

4. गांधीजी से मिलने से पहले महादेव भाई कहाँ नौकरी करते थे?
Ans.
गांधी जी से मिलने से पहले महादेव भाई भारत सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी करते थे।

5. महादेव भाई के झोलों में क्या भरा रहता था?
Ans.
महादेव भाई के झोलों में ताजी राजनीतिक घटनाओं, जानकारियों, चर्चाओं से संबंधित पुस्तकें, समाचार पत्र, मासिक पत्र आदि भरे रहते थे।

6. महादेव भाई ने गांधीजी की कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक का अनुवाद किया था?
Ans.
महादेव भाई ने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद किया।

7. अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताहिक निकलते थे?
Ans.
अहमदाबाद से निकलने वाले साप्ताहिक पत्र थे-‘यंग इंडिया’ तथा ‘नव जीवन’।

8. महादेव भाई दिन में कितनी देर काम करते थे?
Ans.
महादेव भाई लगातार चलने वाली यात्राओं, मुलाकातों, चर्चाओं और बातीचत में अपना समय बिताते थे। इस प्रकार वे 18-20 घंटे तक काम करते थे।

9. महादेव भाई से गांधीजी की निकटता किस वाक्य से सिद्ध होती है?
Ans.
महादेव भाई से गाँधी जी की निकटता इस बात से सिद्ध होती है कि वे बाद के सालों में प्यारेलाल को बुलाते हुए ‘महादेव’ पुकार बैठते थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30) शब्दों में लिखिए-

1. गांधीजी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था?
Ans.
महादेव भाई 1917 में गांधी के पास पहुँचे। गांधी जी ने उनको पहचानकर उन्हें उत्तराधिकारी का पद सौंपा था। 1919 में जलियाँबाग कांड के समय जब गांधी जी पंजाब जा रहे थे तब उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्होंने उसी समय महादेव भाई। को अपना वारिस कहा था।

2. गांधीजी से मिलने आनेवालों के लिए महादेव भाई क्या करते थे?
Ans.
महादेव भाई पहले उनकी समस्याओं को सुनते थे। उनकी संक्षिप्त टिप्पणी तैयार करके गाँधी जी के सामने पेश । करते थे तथा उनसे लोगों की मुलाकात करवाते थे।

3. महादेव भाई की साहित्यिक देन क्या है?
Ans.
महादेव भाई ने गांधी जी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी के अलावा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद किया। इसके अलावा ‘चित्रांगदा’, ‘विदाई का अभिशाप’, ‘शरद बाबू की कहानियाँ’ आदि का अनुवाद उनकी साहित्यिक देन है।

4. महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण क्या था?
Ans.
महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण उनकी व्यस्तता तथा विवशता थी। सुबह से शाम तक काम करना और गरमी की ऋतु में ग्यारह मील पैदल चलना ही उनकी मौत का कारण बने।

5. महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधीजी क्या कहते थे?
Ans.
महादेव भाई के द्वारा लिखित नोट बहुत ही सुंदर और इतने शुद्ध होते थे कि उनमें कॉमी और मात्रा की भूल और छोटी गलती भी नहीं होती थी। गांधी जी दूसरों से कहते कि अपने नोट महादेव भाई के लिखे नोट से ज़रूर मिला लेना।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

1. पंजाब में फ़ौजी शासन ने क्या कहर बरसाया?
Ans.
पंजाब में फ़ौजी शासन ने काफी आतंक मचाया। पंजाब के अधिकतर नेताओं को गिरफ्तार किया गया। उन्हें उम्र कैद की सज़ा देकर काला पानी भेज दिया गया। 1919 में जलियाँवाला बाग में सैकड़ों निर्दोष लोगों को गोलियों से भून दिया गया। ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सज़ा दी गई।

2. महादेव जी के किन गुणों ने उन्हें सबका लाड़ला बना दिया था?
Ans.
महादेव भाई गांधी जी के लिए पुत्र के समान थे। वे गांधी का हर काम करने में रुचि लेते थे। गांधी जी के साथ देश भ्रमण तथा विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लेते थे। वे गांधी जी की गतिविधियों पर टिप्पणी करते थे। महादेव जी की लिखावट बहुत सुंदर, स्पष्ट थी। वे इतना शुद्ध लिखते थे कि उसमें मात्रा और कॉमा की भी अशुधि नहीं होती थी। वे पत्रों का जवाब जितनी शिष्टता से देते थे, उतनी ही विनम्रता से लोगों से मिलते थे। वे विरोधियों के साथ भी उदार व्यवहार करते थे। उनके इन्हीं गुणों ने उन्हें सभी का लाडला बना दिया।

3. महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थीं?
Ans.
पूर्णत: शुद्ध और सुंदर लेख लिखने में महादेव भाई का भारत भर में कोई सानी नहीं था। वे तेज़ गति से लंबी लिखाई कर सकते थे। उनकी लिखावट में कोई भी गलती नहीं होती थी। लोग टाइप करके लाई ‘रचनाओं को महादेव की रचनाओं से मिलाकर देखते थे। उनके लिखे लेख, टिप्पणियाँ, पत्र और गाँधीजी के व्याख्यान सबके सब ज्यों-के-त्यों प्रकाशित होते थे।

(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

1. ‘अपना परिचय उनके ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।’
Ans.
आशय-महादेव भाई गांधी जी के निजी सचिव और निकटतम सहयोगी थे। इसके बाद भी उन्हें अभिमान छू तक न गया था। वे गांधी जी के प्रत्येक काम को करने के लिए तैयार रहते थे। वे गांधी जी की प्रत्येक गतिविधि, उनके भोजन और दैनिक कार्यों में सदैव साथ देते थे। वे स्वयं को गांधी का सलाहकार, उनका रसोइया, मसक से पानी ढोने वाला तथा बिना विरोध के गधे के समान काम करने वाला मानते थे।

2. इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।
Ans.
महादेव ने गाँधी जी के सान्निध्य में आने से पहले वकालत का काम किया था। इस काम में वकीलों को अपना केस जीतने के लिए सच को झूठ और झूठे को सच बताना पड़ता है। इसलिए कहा गया है कि इस पेशे में स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।

3. देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए।
Ans.
आशय- नक्षत्र मंडल में करोड़ों तारों के मध्य शुक्रतारा अपनी आभा-प्रभा से सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है, भले ही उसका चमक अल्पकाल के लिए हो। यही हाल महादेव भाई देसाई का था। उन्होंने अपने मिलनसार स्वभाव, मृदुभाषिता, अहंकार रहित विनम्र स्वभाव, शुद्ध एवं सुंदर लिखावट तथा लेखक की मनोहारी शैली से सभी का दिल जीत लिया था। अपनी असमय मृत्यु के कारण वे कार्य-व्यवहार से अपनी चमक बिखेर कर अस्त हो गए।

4. उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे।
Ans.
महादेव इतनी शुद्ध और सुंदर भाषा में पत्र लिखते थे कि देखने वालों के मुँह से वाह निकल जाती थी। गाँधी जी के पत्रों का लेखन महादेव करते थे। वे पत्र जब दिल्ली व शिमला में बैठे वाइसराय के पास जाते थे तो वे उनकी सुंदर लिखावट देखकर दंग रह जाते थे।

स्वामी आनंद (1887-1976)

संन्यासी स्वामी आनंद का जन्म गुजरात के कठियावाड़ जिले के किमड़ी गाँव में सन् 1887 में हुआ। इनका मूल नाम हिम्मतलाल था। जब ये दस साल के थे तभी कुछ साधु इन्हें अपने साथ हिमालय की ओर ले गए और इनका नामकरण किया स्वामी आनंद। 1907 में स्वामी आनंद स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। महाराष्ट्र से कुछ समय तक ‘तरुण हिंद’ अखबार निकाला, फिर बाल गंगाधर तिलक के ‘केसरी’ अखबार से जुड़ गए। 1917 में गांधीजी के संसर्ग में आने के बाद उन्हीं के निदेशन में ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ की प्रसार व्यवस्था सँभाल ली। इसी बहाने इन्हें, गांधीजी और उनके निजी सहयोगी महादेव भाई देसाई और बाद में प्यारेलाल जी को निकट से जानने का अवसर मिला।

मूलतः गुजराती भाषा में लिखे गए प्रस्तुत पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ में लेखक ने गांधीजी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई की बेजोड़ प्रतिभा और व्यस्ततम दिनचर्या को उकेरा है। लेखक अपने इस रेखाचित्र के नायक के व्यक्तित्व और उसकी ऊर्जा, उनकी लगन और प्रतिभा से अभिभूत है। महादेव भाई की सरलता, सज्जनता, निष्ठा, समर्पण, लगन और निरभिमान को लेखक ने पूरी ईमानदारी से शब्दों में पिरोया है। इनकी लेखनी महादेव के व्यक्तित्व का ऐसा चित्र खाँचने में सफल रही है कि पाठक को महादेव भाई पर अभिमान हो आता है।

लेखक के अनुसार कोई भी महान व्यक्ति, महानतम कार्य तभी कर पाता है, जब उसके साथ ऐसे सहयोगी हों जो उसकी तमाम इतर चिताओं और उलझनों को अपने सिर ले लें। गांधीजी के लिए महादेव भाई और भाई प्यारेलाल जी ऐसी ही शख्सियत थे।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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