लसिका (Lumph)

लसिका एक रंगहीन तरल पदार्थ है जो ऊतकों एवं रुधिर वाहिनियों के बीच के रिक्त स्थान में पाया जाता है। यह रुधिर प्लाज्मा का ही अंश है जो रक्त केशिकाओं (Blood capillaries) की पतली दीवारों से विसरण (diffusion) द्वारा बाहर निकलने से बनता है। इसके साथ श्वेत रक्त-कणिकाएँ (WBC) बाहर आ जाती हैं परन्तु इसमें लाल रक्त कणिकाएँ (RBC) नहीं होतीं, परन्तु इसमें रुधिर के ही समान लसिका-कणिकाएँ (lymphocytes) तथा सूक्ष्म मात्रा में कैल्शियम एवं फॉस्फोरस के आयन पाये जाते हैं। विभिन्न अंगों के ऊतकों के सम्पर्क में होने के कारण लसिका में ग्लूकोस, एमीनो अम्ल, वसीय अम्ल, विटामिन्स लवण तथा उत्सर्जी पदार्थ (CO2 यूरिया) भी इसमें पहुँच जाते हैं।

रुधिर एवं लसिका में अन्तर
रुधिर 
लसिका
• रुधिर सामान्य तरल संयोजी ऊतक हैं।
• लसिका छना हुआ रुधिर है।
• यह गहरे लाल रंग का तरल ऊतक है।
• यह रंगहीन तरल ऊतक है।
• R.B.C. उपस्थित होती है।
• R.B.C. अनुपस्थित होती है।
• W.B.C. उपस्थित होती हैं परन्तु कम मात्रा में।
• W.B.C. अधिक मात्रा में पायी जाती है।
• प्रोटीन्स की मात्रा अधिक होती है।
• प्रोटीन्स कम मात्रा में पायी जाती है।
• न्यूट्रोफिल की संख्या बहुत अधिक होती है।
• लिम्फोसाइट्स की संख्या बहुत अधिक होती है।
• रुधिर में O₂ व अन्य पोषक पदार्थ अधिक होते हैं।
• लसिका में O₂ व अन्य पोषक 2 पदार्थ कम मात्रा में पाये जाते हैं।
• रुधिर में CO₂ तथा उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा सामान्य होती है।
• लसिका में CO₂ , व उत्सर्जी पदार्थ अधिक मात्रा में होते हैं।

लसिका के कार्य

• लसिका ऊतकीय द्रव एवं उन पदार्थों को रुधिर तंत्र में वापस लाती है जो धमनी केशिका से विसरित हो जाते हैं।

• लसिका केशिका के मध्य भोज्य पदार्थ, गैस, हार्मोन,

विकर आदि के प्रसारण के माध्यम का कार्य करती है।

• लसिका गाँठों (lymph nodes) में लिम्फोसाइट्स का निर्माण होता है।*

• केशिका के चारों ओर जलीय वातावरण बनाकर केशिका के बाहर एवं भीतर रसाकर्षण सन्तुलन बनाये रखता है।

• केशिका ऊतक से CO₂ व अन्य उत्सर्जी पदार्थ को रक्त केशिकाओं तक पहुँचाता है।

• लसिका कणिकाएँ (lymphocytes) जीवाणुओं व अन्य बाहरी पदार्थ का भक्षण करके शरीर की रक्षा करती हैं।*

• लसिका में श्वेत कणिकाओं की मात्रा अधिक होने के कारण घाव भरने में सहायक होती हैं।

• छोटी आँत के रसांकुरों (villi) में उपस्थित लसिका वाहिनियाँ (lacteals) वसा का अवशोषण करके इसे काइलोमाइक्रान बूंदों के रूप में रक्त में पहुंचाती है।

• मनुष्य में लसिका गाँठें जैविक छलनी की तरह कार्य करतीहैं। हानिकारक जीवाणु, धूल-मिट्टी के कण, कैन्सर कोशिकाएं आदि इन गाँठों में रुक जाते हैं और अन्य आवश्यक पदार्थ रक्त परिसंचरण में पहुँच जाते हैं।

• लसिका तन्त्र रुधिर परिसंचरण तन्त्र का ही एक भाग है।

• लसिका सदैव एक दिशा में बहता है। ऊतकों से हृदय की ओर। अतः रक्त की मात्रा तथा गुणवत्ता को बनाये रखने का कार्य = करता है।

• हमारे शरीर में सबसे बड़ी लसिका ऊतक प्लीहा (splean) है।* यह आमाशय व डायफ्राम के बीच स्थित होती है। वयस्क मनुष्य में इसकी लम्बाई लगभग 12 सेमी होती है। इसका कार्य बैक्टीरिया – तथा मृत लाल रुधिराणुओं व रुधिर प्लेटलैट्स का भक्षण करना है। भ्रूणावस्था में प्लीहा में R.B.C. का, व्यस्क में लिम्फोसाइट का सक्रिय निर्माण होता है।* प्लीहा थोड़ी मात्रा में रक्त का भण्डारण भी करती है और रक्तस्त्राव (haemorrhage) की दशा में रुधिर की पूर्ति है।

• हाथी पांव (elephantiasis) रोग बूचेरेरिया नामक सूत्र- कृमि (threadworm) से होता है। * इसके संक्रमण से लसिका कोशिकाओं की, ऊतक कोशिकाओं के बीच उपस्थित द्रव को अवशोषित करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। फलस्वरूप ऊतक द्रव, ऊतक कोशिकएँ के बीच एकत्र होने लगता है और रोगी के पैर फूलने लगते हैं। *

लसिका एवं रुधिर में समानतायें

1. लसिका में रुधिर की भांति ग्लूकोज, यूरिया, एमीनो अम्ल, लवण एवं प्रतिरक्षी (antibodies) पाये जाते हैं।

2. रुधिर की भांति श्वेत रक्त कणिकाएँ पायी जाती हैं।

3. फाइब्रिनोजन प्रोटीन उपस्थित होने के कारण लसिका का भी थक्का बन सकता है।

4. लसिका रुधिर की भांति पोषक पदार्थों एवं O₂ को ऊतकों तक पहुँचाकर उनसे CO₂ एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थ एकत्रित करता है।

5. रुधिर की भाँति लसिका में भी प्रतिरक्षी प्रोटीनें (antibodies) तथा प्रतिविषाणु (antitoxin) होते हैं।*

लसिका तंत्र (Lymphatic system)

लसिका केशिकाएँ ऊतकों में कोशिकाओं के बीच अत्यन्त महीन सूक्ष्मदर्शीय शिराओं के रूप में विकसित होती हैं। ऊतक की कोशिकाओं के बीच उपस्थित लसिका को ये सूक्ष्म केशिकाएं अवशोषित कर लेती हैं। अनेक केशिकाएं आपस में मिलकर लसिका शिराएं बनाती हैं। ये पूरे शरीर से लसिका को हृदय की ओर ले जाती हैं।

लसिका शिराओं में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर वाल्व होते हैं जो लसिका का हृदय से विपरीत दिशा में बहाव रोकती है। हृदय के निकट लसिका शिराएं महाशिरा (vena cava) से जुड़ी होती हैं। इस प्रकार लसिका हृदय में महाशिरा द्वारा प्रवेश करता है।

धमनियों और शिराओं में रुधिर को पम्प करने का कार्य हृदय द्वारा किया जाता है परन्तु लसिका शिराओं में लसिका का बहाव मांसपेशियों के संकुचन एवं प्रकुंचन पर निर्भर करता है।* इसके कारण शरीर में लसिका का बहाव रुधिर की तुलना में मंद गति से होता है। परन्तु शारीरिक व्यायाम, शरीर की मॉलिश तथा गहरी व तेज सांस लेने से लसिका के बहाव को तीव्र किया जा सकता है।

• लसिका शिराओं की पूरी लम्बाई में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर गाँठें पायी जाती है जिन्हें लसिका गाँठें (lymph nodes) कहते हैं। इन गाँठों पर लसिका सिरा से अनेक महीन शाखाएं निकलती हैं। प्रत्येक लसिका गाँठ के अन्दर कोशिकाओं का एक जाल होता है। यहाँ पर लसिका में उपस्थित बाह्य पदार्थ छनकर अलग हो जाते हैं।

लसिका गाँठों में लिम्फोसाइट्स भी होते हैं जो अपनी भक्षकाणुक क्रिया से लसिका में उपस्थित बैक्टीरिया व अन्य बाह्य पदार्थों का भक्षण कर लेते हैं।

• मनुष्य के शरीर में लसिका गाँठें मुख्य रूप से गर्दन, बगल (armpits), जाँघ (groin) में पायी जाती हैं। इनका कार्य संक्रमण को स्थानीयित करना है। उदाहरण के लिए हाथ के किसी भाग में फुंसी या घाव होने पर बगल में उपस्थित लसिका गाँठें फूल जाती हैं और उनमें दर्द होने लगता है। कभी-कभी लसिका गाँठों में फंसे बैक्टीरिया भी इन्हें संक्रमित कर देते हैं जिसके कारण उनमें फोड़ा (abscess) बन जाता है।

• हमारे गले में उपस्थित टॉन्सिल भी लसिका गाँठों के समूह हैं जो एक श्लेष्मक झिल्ली से घिरे होते हैं। ये लिम्फोसाइट्स व एण्टीबॉडीज बनाती हैं जो शरीर में नाक, कान व गले से प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करती हैं।* बच्चों में अक्सर टॉन्सिल संक्रमित होकर फूल जाते हैं जिसके कारण ज्वर व गले में दर्द होने लगता है।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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