ईसा से 600 वर्ष पूर्व एशिया माइनर के मैग्नीशिया नामक स्थान पर ऐसे पत्थर पाये गये जो लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर आकर्षित करते थे, जिसे मैग्नेट कहा गया (मैग्नीशिया नामक स्थान पर पाये जाने के कारण)। इसी को हिन्दी में चुम्बक कहा जाता है। ये पत्थर वास्तव में लोहे के मैग्नेटाइट नाम के एक आक्साइड (Fe3 O4) हैं जो पृथ्वी पर सभी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। आगे परीक्षणों में यह भी देखा गया कि इन्हें स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाने पर ये सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा के अनुदिश ठहरते हैं और अपने समान अन्य चुम्बकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करते हैं। चुम्बक के इन्हीं गुणों को चुम्बकत्व (Magnetism) कहते हैं।
चुम्बक के प्रकार (Types of Magnet)
(1) प्राकृतिक चुम्बक (Natural Magnet)- प्रकृति में स्वतंत्र रूप से प्राप्त चुम्बकों को प्राकृतिक चुम्बक कहते हैं। जैसे- मैग्नीशिया नामक स्थान पर पाये जाने वाले मैग्नेटाइट के पत्थर।
(2) कृत्रिम चुम्बक (Artificial Magnet)- कुछ वस्तुओं को कृत्रिम तरीके से चुंबक बनाया जाता है। ऐसे चुम्बकों को कृत्रिम चुम्बक कहते हैं। ये सामान्यतः लोहे या इस्पात से बनाये जाते हैं। ये विभिन्न आकृतियों के होते हैं। जैसे: छड़ चुम्बक (Bar Magnet), नाल चुम्बक (Horse Shoe Magnet), चुम्बकीय सुई चुम्बक (Magnetic Compass) इत्यादि।
(3) विद्युत चुम्बक (Electro magnet)- विद्युत धारा के प्रवाह (Flow) द्वारा निर्मित चुंबक को विद्युत चुम्बक कहते हैं। इसके लिए किसी अचालक पदार्थ जैसे-कार्ड बोर्ड अथवा मोटे कागज की नलिका के ऊपर ताँबे के विद्युत-रुद्ध (insulated) तार के कई फेरे (round) लपेटकर एक कुण्डली (coil) बनायी जाती है। जब इस कुण्डली में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो यह एक दण्ड चुम्बक (bar magnet) जैसा व्यवहार करने लगता है। इसे ही विद्युत चुम्बक कहते हैं।

• चुम्बक के गुण (Characteristics of Magnets)
(i) चुम्बक लोहे, निकिल, कोबाल्ट आदि धातुओं को अपनी तरफ आकर्षित करने का गुण रखता है।
(ii) चुंबक में दो ध्रुव (Poles) होते हैं। स्वतंत्रता पूर्वक लटकाने पर जो सिरा उत्तर की ओर रुकता है उसे उत्तरीध्रुव (North Pole) व जो सिरा दक्षिण दिशा में ठहरता है उसे दक्षिणी ध्रुव (South Pole) कहते हैं।
(iii) ध्रुवों के पास चुंबकत्व सर्वाधिक व मध्य में कम होता है। चुंबक के ठीक मध्य में चुम्बकत्व नहीं होता। इसे उदासीन बिंदु (Neutral Point) कहते हैं।
(iv) चुंबक को तोड़ने पर उसका प्रत्येक खंड पुनः एक नया चुंबक बन जाता है जिसमें पुनः दो ध्रुव होते हैं। अर्थात् ध्रुवों को चुम्बक से अलग नहीं किया जा सकता था।
(v) चुम्बक अनुचुम्बकीय पदार्थों (यथा-नर्म लोहा) में भी प्रेरण (Induction) द्वारा चुम्बक का गुण उत्पन्न कर देता है। यदि हम ऐसे पदार्थ को किसी शक्तिशाली चुम्बक के एक ध्रुव के पास ले जायें तो वह भी एक चुम्बक बन जाता है। छड़ के उस सिरे पर जो चुंबक के ध्रुव के समीप है, विजातीय (Opposit) ध्रुव व दूसरे सिरे पर सजातीय (Same) ध्रुव बन जाता है। इस घटना को चुंबकीय प्रेरण (Magnetic Induction) कहते हैं।

(vi) चुम्बकों के विजातीय ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित करते हैं व सजातीय ध्रुव एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं। चुंबक के दोनों ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा को चुम्बकीय अक्ष (Magnetic Axis) कहते हैं।
• पदार्थ में चुम्बकत्व का कारण (Explanation of Magnetism in Substances)
प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बना होता है। प्रत्येक परमाणु के केन्द्र पर एक धनावेशित नाभिक होता है। जिसके चारों ओर इलेक्ट्रान चक्कर लगाते हैं। ये इलेक्ट्रान साथ ही अपने स्थान पर चक्रण (spin) भी करते हैं। चूंकि इलेक्ट्रान ऋण आवेशित कण हैं अतः कक्षीय अथवा चक्रण गति करता हुआ इलेक्ट्रान एक धारा लूप या चुम्बकीय द्विध्रुव की भांति व्यवहार करता है। इसी कारण इसमें चुंबकीय आघूर्ण उत्पन्न हो जाता है जो चुम्बकीय गुण उत्पन्न करता है। चुम्बकीय आघूर्ण का अधिकांश भाग (= 90%) इलेक्ट्रान के चक्रण के कारण व अल्प भाग (10%) कक्षीय परिक्रमण के कारण होता है।

चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field)
जब हम किसी चुम्बक के समीप कोई अन्य चुम्बक ले जाते हैं तो, उस पर एक बल का आभास होता है जो आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण की प्रकृति का होता है। इसी प्रकार जब हम कोई चुम्बकीय सुई (Magnetic Compass) किसी चुम्बक के पास ले जाते हैं तो वह अपनी मूल अवस्था से विक्षेपित हो जाती है। अतः चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें किसी चुम्बक या चुम्बकीय पदार्थ पर कोई बल लगता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। चुम्बक के इस प्रभाव को ‘चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता’ से नापा जाता है जिसे संक्षेप में चुम्बकीय क्षेत्र भी कहा जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of Magnetic Field) चुम्बक से दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह एक सदिश राशि है। इसकी इकाई न्यूटन / एम्पियर-मीटर व वेबर/मीटर होती है। इसका CGS मात्रक गौस व SI मात्रक टेस्ला है तथा 1 गौस = 104 टेस्ला ।
चुम्बकीय सुई को चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर वह जिस दिशा में ठहरती है, वह चुंबकीय क्षेत्र की दिशा होती है।
यदि किसी चुम्बकीय क्षेत्र के प्रत्येक बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की दिशा व परिमाण समान हो तो वह क्षेत्र एक समान चुम्बकीय क्षेत्र (Uniform Magnetic Field) कहलाता है परन्तु यदि विभिन्न बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का परिमाण एवं दिशा भिन्न हो तो वह क्षेत्र असमान चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है। किसी सीमित स्थान विशेष पर पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र एक समान चुंबकीय क्षेत्र का उदाहरण है तथा छड़ चुम्बक या धारावाही परिनलिका का चुंबकीय क्षेत्र असमान चुंबकीय क्षेत्र होता है।
चुंबकीय बल रेखाएँ (Magnetic Lines of Force)
चुम्बकीय बल रेखाएँ किसी चुंबकीय क्षेत्र में वे काल्पनिक वक्र हैं जिनके किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता की दिशा को निरुपित करती है।

जब किसी चुंबकीय सुई को किसी चुंबक के पास रखा जाता है तो वह एक निश्चित दिशा में ठहरती है। जैसे-जैसे हम सुई को आगे बढ़ाते हैं उसके ठहरने की दिशा बदलती जाती है। इन सभी बिंदुओं को मिलाने पर एक वक्र रेखा प्राप्त होती है, जिसे हम चुंबकीय बल रेखा कहते हैं। ये रेखाएं चुम्बक के बाहर उत्तरी ध्रुव से निकल कर दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त होती है तथा चुम्बक के भीतर दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर चलती हुई पुनः उत्तरी ध्रुव पर वापस आ जाती हैं और एक बंद वक्र का निर्माण करती है।
चुंबकीय बल रेखाएँ न तो एक दूसरे के समान्तर होती हैं और न ही एक दूसरे को कभी काटती हैं। यदि दो रेखाएँ एक दूसरे को काटेंगी तो वे एक ही बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता की दो दिशाएं प्रदर्शित करेंगी जो कि असंभव है।
चुंबक के ध्रुवों के समीप जहां चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है वहां बल रेखाएँ काफी नजदीक होती है परन्तु ध्रुव से दूर जाने पर रेखाओं के बीच की दूरी भी बढ़ती है जो कि चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता की प्रबलता में कमी का द्योतक होता है।
यदि चुंबकीय क्षेत्र एक समान है तो बल रेखाएँ एक दूसरे के समान्तर व बराबर दूरियों पर होती हैं।
चुम्बकीय प्रेरण (Magnetic Induction)
जब किसी चुम्बकीय पदार्थ को किसी वाह्य चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो वह पदार्थ चुम्बकित हो जाता है। पदार्थ में इस प्रकार उत्पन्न चुम्बकत्व को प्रेरित चुम्बकत्व (Induced Magnetism) कहते हैं। तथा इस घटना को ‘चुम्बकीय प्रेरण’ कहते हैं।
भू-चुम्बकत्व (Terresterial Magnetism)
किसी चुम्बक का दैशिक गुण (Directional Quality) (अर्थात् उसको उसके गुरुत्व केन्द्र से लटकाने पर निश्चित दिशा में ठहरना) यह सिद्ध करता है कि उस पर कोई अन्य चुंबकीय बल अवश्य लग रहा है। यह चुंबकीय बल किसी अन्य चुम्बक का नहीं बल्कि स्वयं पृथ्वी का होता है। यह स्पष्ट करता है कि पृथ्वी भी एक विशाल चुम्बक की भांति कार्य करती है। अर्थात् इसमें भी चुंबकत्व का गुण है जिसे भू-चुम्बकत्व कहते हैं। हम पृथ्वी के भीतर एक विशाल चुंबक की परिकल्पना कर सकते हैं जिसका दक्षिणी ध्रुव, पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी ध्रुव की ओर व उत्तरी ध्रुव पृथ्वी के भौगोलिक दक्षिणी ध्रुव की ओर है। पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाएं एक समान दूरी पर तथा एक दूसरे के समान्तर होती है और उत्तर की ओर दिष्ट होती हैं।

पृथ्वी के भीतर कल्पित चुम्बक के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने पर पृथ्वी का चुंबकीय अक्ष प्राप्त होता है जोकि भौगोलिक अक्ष में लगभग 11.5° का कोंण बनाता है। किसी स्थान पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को तीन घटकों द्वारा व्यक्त किया जाता है
(i) दिक्यात कोंण (Angle of Declination)- किसी स्थान पर चुंबकीय याम्योत्तर (Magnetic Meridian) व भौगोलिक याम्योत्तर (Geographical Meridian) के बीच के कोंण को दिक्यात कोण कहते हैं।
उल्लेखनीय है कि किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर वह उर्ध्वाधर समतल (Vertical Plane) है जो पृथ्वी के चुम्बकीय अक्ष से गुजरता है और भौगोलिक याम्योत्तर वह ऊर्ध्वाधर समतल है जो पृथ्वी के भौगोलिक अक्ष से गुजरता है।
(ii) नमनकोंण (Angle of Dip)- किसी स्थान पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र क्षैतिज तल के साथ जितना कोण बनाता है, उसे उस स्थान का नमन कोंण कहते हैं। । पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुवों पर नमन कोंण का मान 90° व विषुवत रेखा (Equator) पर 0° होता है।
(iii) पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (Horizontal Component of Earth’s Magnetic Field)- पृथ्वी के संपूर्ण चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (H), भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है। परन्तु इसका औसत मान लगभग 0.4 गौस या 0.4 × 10-4 टेस्ला माना जाता है।
• भू-चुम्बकत्व का कारण (Reason of Geo-magnetism)
भू-चुम्बकत्व को लेकर अभी तक वैज्ञानिक किसी निश्चित नतीजे पर नहीं पहुँचे हैं, परन्तु ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के भीतर क्रोड में लोहा, निकिल जैसी भारी धातुएँ गलित अवस्था में मौजूद हैं। पृथ्वी के घूर्णन (Rotation) के कारण इन गलित धातुओं में संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं जो पृथ्वी के चुम्बकत्व का कारण बनती हैं।
• चुम्बकीय ध्रुवों के बीच पारस्परिक बल के नियम (Law of Force between Poles of Magnets)
चुम्बक के दो ध्रुवों के बीच आरोपित बल (F), दोनों ध्रुवों की प्रबलता के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती व दोनों ध्रुवों के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
अर्थात् F∝ (m1 m2)/r2
जहां m1, m2 क्रमशः दोनों ध्रुवों की प्रबलता व r उनके बीच की दूरी है।
यह भी पढ़ें : वैद्युत ऊर्जा (Electrical Energy)
FAQs
Q1. मुक्त रुप से निलंबित चुंबकीय सुई किस दिशा में रुकती है?
Ans. उत्तर-दक्षिण दिशा में।
Q2. विद्युत चुम्बक प्रायः किस धातु का बनाया जाता है?
Ans. नरम लोहे का।
Q3. किसी चुम्बक का अधिकतम चुम्बकत्व कहाँ होता है?
Ans. उसके ध्रुवों (Poles) पर।
Q4. चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक क्या होता है?
Ans. एम्पियर/मीटर, गौस, टेस्ला इत्यादि।
Q5. टेप रिकॉर्डर की टेप किससे लेपित रहती है?
Ans. फेरोमैग्नेटिक चूर्ण
Q6. विद्युत ऊर्जा को संचायक सेल में किस प्रकार संरक्षित रखा जाता है?
Ans. रासायनिक ऊर्जा में
Q7. आवेश की वह मात्रा जो किसी भी तत्व के एक किलोग्राम तुल्यांक को विद्युत विच्छेदन द्वारा मुक्त करने के लिए आवश्यक होती है, कहलाती है?
Ans. फैराडे की संख्या
1 thought on “चुम्बक एवं चुम्बकत्व (Magnet and Magnetism)”