आपने अपने आस-पास के स्थानों पर पौधों एवं जंतुओं सहित अनेक सजीव देखे हैं। परन्तु कुछ जीव ऐसे भी हैं जिन्हें हम बिना यंत्र की सहायता से केवल आँखों से नहीं देख सकते। इन्हें सूक्ष्मजीव कहते हैं। उदाहरण के लिए, आपने देखा होगा कि वर्षा ऋतु में नम ब्रेड/रोटी सड़ने लगती है तथा इसकी सतह सफेद-काले धब्बों से ढक जाती है। इन धब्बों को आवर्धक लेंस की सहायता से देखिए। आपको काले रंग की गोल सूक्ष्म संरचनाएँ दिखाई देंगी। क्या आप जानते हैं कि यह संरचनाएँ क्या है? यह कहाँ से आई हैं?
2.1 सूक्ष्मजीव
क्रियाकलाप 2.1
बगीचे अथवा मैदान से एक बीकर में थोड़ी सी गीली मिट्टी लीजिए तथा इसमें जल डालिए। मिट्टी के कण बैठ जाने के पश्चात् जल की एक बूँद स्लाइड पर लेकर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से I इसका प्रेक्षण कीजिए। आप क्या देखते हैं?
क्रियाकलाप 2.2
एक तालाब/पोखर से जल की कुछ बूँदें लीजिए। काँच की स्लाइड पर फैला कर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इनका प्रेक्षण कीजिए।
क्या आपको सूक्ष्मजीव गति करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
इन प्रेक्षणों से पता चलता है कि मिट्टी एवं पानी में अनेक छोटे-छोटे (सूक्ष्म) जीव उपस्थित रहते हैं।
सूक्ष्मजीव इतने छोटे होते हैं कि उन्हें बिना यंत्र की सहायता से नहीं देखा जा सकता। इनमें से कुछ, जैसे कि ब्रेड पर उगने वाले कवक, को आवर्धक लेंस की सहायता से देखा जा सकता है जबकि अन्य बिना सूक्ष्मदर्शी की सहायता से दिखाई नहीं देते। यही कारण है कि इन्हें सूक्ष्मजीव कहते हैं।
सूक्ष्मजीवों को चार मुख्य वर्गों में बाँटा गया है। यह वर्ग है, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ एवं कुछ शैवाल। जीवाणु, शैवाल, प्रोटोजोआ एवं कवक के कुछ सामान्य सूक्ष्मजीव चित्र 2.1 से 2.4 में दर्शाए गए हैं।
विषाणु (वायरस) भी सूक्ष्म होते है परन्तु वे अन्य सूक्ष्मजीवों से भिन्न हैं। वे केवल परपोषी में ही गुणन करते हैं अर्थात् जीवाणु, पौधे अथवा जंतु कोशिका में गुणन करते हैं। विषाणु चित्र 2.5 में दर्शाए गए हैं। कुछ सामान्य रोग जैसे कि जुकाम, इन्फ्लुएंजा (फ्लू) एवं अधिकतर खाँसी विषाणु द्वारा होते हैं। कुछ विशेष रोग जैसे कि पोलियो एवं खसरा भी विषाणु (वाइरस) द्वारा होते हैं।
अतिसार एवं मलेरिया प्रोटोजोआ द्वारा होते हैं। टायफाइड एवं क्षयरोग (TB) जीवाणु द्वारा होने वाले रोग हैं।
इनमें से कुछ सूक्ष्मजीवों के विषय में आप कक्षा VI एवं VII में पढ़ चुके हैं।
2.2 सूक्ष्मजीव कहाँ रहते हैं?
सूक्ष्मजीव एककोशिक हो सकते हैं जैसे कि जीवाणु, कुछ शैवाल एवं प्रोटोजोआ, अथवा बहुकोशिक जैसे कि कई शैवाल एवं कवक। यह बर्फीली शीत से ऊष्ण (गर्म) स्रोतों तक हर प्रकार की परिस्थिति में जीवित रहे हैं। यह मरुस्थल एवं दलदल में भी पाए जाते हैं। यह मनुष्य सहित सभी जंतुओं के शरीर के अंदर भी पाए जाते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव दूसरे सजीवों पर आश्रित होते हैं जबकि कुछ अन्य स्वतंत्र रूप से पाए जाते हैं। अमीबा जैसा सूक्ष्मजीव अकेले रह सकेता है, जबकि कवक एवं जीवाणु समूह में रहते हैं।
2.3 सूक्ष्मजीव और हम
सूक्ष्मजीवों की हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें से कुछ हमारे लिए लाभदायक हैं तथा कुछ अन्य हानिकारक तथा जीवों में रोग के कारक हैं। आइए हम विस्तार से इसका अध्ययन करें।
मित्रवत सूक्ष्मजीव
सूक्ष्मजीव विभिन्न कार्यों में उपयोग किए जाते हैं। इनका उपयोग दही, ब्रेड एवं केक बनाने में किया जाता है।
प्राचीन काल से ही सूक्ष्मजीवों का उपयोग एल्कोहल बनाने में किया जाता रहा है।
पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, कार्बनिक अवशिष्ट (सब्ज़ियों के छिलके, जंतु अवशेष, विष्ठा इत्यादि) का अपघटन जीवाणुओं द्वारा किया जाता है तथा हानिरहित पदार्थ बनते हैं। स्मरण कीजिए, जीवाणुओं का उपयोग औषधि उत्पादन एवं कृषि में मृदा की उर्वरता में वृद्धि करने में किया जाता है जिससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण होता है।
दही एवं ब्रेड का बनाना
आप कक्षा VII में पढ़ चुके हैं कि जीवाणु दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं।
दही में अनेक सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जिनमें लैक्टोबैसिलस नामक जीवाणु प्रमुख है जो दूध को दही में परिवर्तित कर देता है। वह दूध में जनन कर उसे दही में परिवर्तित कर देते हैं। जीवाणु पनीर (चीज़ ), अचार एवं अनेक खाद्य पदार्थों के उत्पादन में सहायक हैं। रवा (सूजी), इडली एवं भटूरे का एक महत्त्वपूर्ण संघटक दही है। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि ऐसा क्यों है? जीवाणु एवं यीस्ट चावल के आटे के किण्वण में सहायक होते हैं जिससे इडली एवं डोसा बनता है।
क्रियाकलाप 2.3
एक बर्तन में ½ कि.ग्रा. आटा अथवा मैदा लेकर उसमें थोड़ी सी चीनी डालकर गर्म जल से मिलाइए।
इसमें थोड़ी मात्रा (एक चुटकी) यीस्ट पाउडर मिलाकर गूँथ लीजिए। आप दो घंटे बाद क्या देखते हैं? क्या आपने गुँथे हुए मैदे को उठा हुआ (फुला हुआ) पाया?
यीस्ट तीव्रता से जनन करके श्वसन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादित करते हैं। गैस के बुलबुले खमीर वाले मैदे का आयतन बढ़ा देते हैं (चित्र 2.6)। यह बेकिंग उद्योग में यीस्ट के उपयोग का आधार है जिसमें ब्रेड, पेस्ट्री एवं केक बनाए जाते हैं।
सूक्ष्मजीवों का वाणिज्यिक उपयोग
बड़े स्तर पर एल्कोहल, शराब एवं एसिटिक एसिड के उत्पादन में सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है। जौ, गेहूँ, चावल एवं फलों के रस में उपस्थित प्राकृतिक शर्करा में यीस्ट द्वारा एल्कोहल एवं शराब का उत्पादन किया जाता है।
क्रियाकलाप 2.4
500 mL का बीकर लेकर इसमें 3/4 भाग तक जल भरिए। इसमें 2-3 चम्मच चीनी घोलिए। इसमें ½ चम्मच यीस्ट पाउडर डालिए। इसे 4-5 घंटों के लिए ऊष्ण स्थान पर ढक कर रखिए। अब विलयन को सूँघ कर देखिए।
यह गंध एल्कोहल की है जो चीनी के एल्कोहल में परिवर्तित होने के कारण बना है। चीनी के एल्कोहल में परिवर्तन की यह प्रक्रिया किण्वन अथवा फर्मेंटेशन कहलाता है।
लुइ पाश्चर ने किण्वन की खोज 1857 में की।
सूक्ष्मजीवों के औषधीय उपयोग
जब कभी आप बीमार पड़ते हैं तो डॉक्टर आपको पेनिसिलिन का इंजेक्शन देते हैं अथवा कोई अन्य प्रतिजैविक की गोली अथवा कैप्सूल देते हैं। इन औषधियों का स्रोत सूक्ष्मजीव हैं। ये बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देती हैं अथवा उनकी वृद्धि को रोक देती हैं। इस प्रकार की औषधि को प्रतिजैविक अथवा एंटीबायोटिक कहते हैं। आजकल जीवाणु और कवक से अनेक प्रतिजैविक औषधियों का उत्पादन हो रहा है। स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन और एरिथ्रोमाइसिन सामान्य रूप से उपयोग की जाने वाली प्रतिजैविक हैं जिन्हें कवक एवं जीवाणु से उत्पादित किया जाता है। किसी विशिष्ट प्रकार के सूक्ष्मजीव का संवर्धन करके प्रतिजैविक का उत्पादन किया जाता है जिन्हें अनेक रोगों की चिकित्सा में उपयोग में लाते हैं।
*सन् 1929 में अलेक्जेंडर फ्लैमिंग जीवाणु रोगों से बचाव हेतु एक संवर्धन पर प्रयोग कर रहे थे। अचानक उन्होंने संवर्धन तश्तरी पर हरे रंग की फफूँद के छोटे बीजाणु देखे। उन्होंने पाया कि यह फफूँद जीवाणु की वृद्धि को रोकते हैं। यह तथ्य पाया कि बहुत सारे जीवाणु फफूँद द्वारा मारे गए। इस प्रकार फफूँद से ‘पेनिसिलिन’ बनाई गई।*
पशु आहार एवं कुक्कुट आहार में भी प्रतिजैविक मिलाए जाते हैं जिसका उपयोग पशुओं में सूक्ष्मजीवों का संचरण रोकना है। प्रतिजैविक का उपयोग कुछ पौधों के रोग नियंत्रण के लिए भी किया जाता है।
ध्यान रखना चाहिए कि डॉक्टर की सलाह पर ही प्रतिजैविक की दवाएँ लेनी चाहिए तथा उस दवा का कोर्स भी पूरा करना चाहिए। यदि आप प्रतिजैविक उस समय लेंगे जब उसकी आवश्यकता नहीं है तो अगली बार जब आप बीमार होंगे और आपको प्रतिजैविक की आवश्यकता होगी तो वह उतनी प्रभावी नहीं होगी। इसके अतिरिक्त अनावश्यक रूप से ली गई प्रतिजैविक शरीर में उपस्थित उपयोगी जीवाणु भी नष्ट कर देती है। सर्दी-जुकाम एवं फ्लू में प्रतिजैविक प्रभावशाली नहीं हैं क्योंकि यह रोग विषाणु द्वारा होते हैं।
वैक्सीन (टीका)
जब रोगकारक सूक्ष्मजीव हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं तो उनसे लड़ने के लिए हमारा शरीर प्रतिरक्षी उत्पन्न करता है। शरीर को यह भी स्मरण रहता है कि वही सूक्ष्मजीव अगर हमारे शरीर में पुनः प्रवेश करता है तो उससे किस प्रकार लड़ा जाए। अतः यदि मृत अथवा निष्क्रिय सूक्ष्मजीवों को स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट कराया जाए तो शरीर की कोशिकाएँ उसी के अनुसार लड़ने के प्रतिरक्षी उत्पन्न करके रोगकारक को नष्ट कर देती हैं। यह प्रतिरक्षी हमारे शरीर में सदा के लिए बनी रहती हैं तथा रोगकारक सूक्ष्मजीव से हमारी सदा के लिए सुरक्षा होती है। इस प्रकार टीका (वैक्सीन) कार्य करता है। हैजा, क्षय, चेचक तथा हैपेटाइटिस जैसी अनेक बीमारियों को वैक्सीन (टीके) द्वारा रोका जा सकता है।
एडवर्ड जेनर ने चेचक के लिए 1798 में चेचक के टीके की खोज की थी।
आपके बचपन में आपको भी अनेक रोगों से रक्षा करने के लिए टीके (वैक्सीन) दिए गए होंगे। क्या आप इन रोगों की सूची तैयार कर सकते हैं? इसके लिए आप अपने माता-पिता की मदद ले सकते हैं।
सभी बच्चों को इन रोगों से सुरक्षा की आवश्यकता है। आवश्यक टीके निकट के अस्पताल में उपलब्ध होते हैं। बच्चों को पोलियो से बचाने के लिए आपने टेलिविज़न एवं समाचार पत्रों में पोलियो के टीकाकरण के विज्ञापन (पल्स पोलियो) देखे होंगे। पोलियो ड्रॉप बच्चों को दिया जाने वाला वास्तव में एक टीका (वैक्सीन) है।
चेचक के विरुद्ध विश्वव्यापी अभियान चलाया गया जिसके परिणामस्वरूप विश्व के अधिकांश भागों से चेचक का उन्मूलन हो गया।
आजकल सूक्ष्मजीवों से टीके का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाता है जिसमें मनुष्य एवं अनेक जंतुओं को अनेक रोगों से बचाया जाता है।
मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि
कुछ जीवाणु एवं नीले-हरे शैवाल (चित्र 2.7) वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर सकते हैं। इस प्रकार मृदा में नाइट्रोजन का संवर्धन होता है तथा उसकी उर्वरता में वृद्धि होती है। इन्हें सामान्यतः जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकारक कहते हैं।
पर्यावरण का शुद्धिकरण
अपने विद्यालय के माली को देखने के पश्चात् पहेली, बूझो और दूसरे विद्यार्थियों ने घरों व बगीचों से पत्तियाँ एवं फल-सब्जियों का कचरा एकत्र करके उसके निपटान के लिए बनाए गए गढ्ढे में डाला। कुछ समय बाद इसका विघटन होने से यह खाद में परिवर्तित हो गया। पहेली और बूझो जानना चाहते हैं कि यह किस प्रकार हो सकता है?
क्रियाकलाप 2.5
दो गमले लेकर प्रत्येक को मिट्टी से आधा भर दीजिए। इन्हें ‘A’ एवं ‘B’ चिह्नित कीजिए। ‘A-गमले’ में पौधों का कचरा भर दीजिए तथा दूसरे गमले ‘B’ में पॉलिथीन की थैली. काँच की खाली बोतलें तथा प्लास्टिक के टूटे खिलौने इत्यादि भर दीजिए। उन्हें एक ओर रख दीजिए। 3-4 सप्ताह बाद उनका प्रेक्षण कीजिए।
क्या आपको दोनों गमलों की वस्तुओं में कोई अंतर दिखाई देता है? यदि हाँ, तो क्या अंतर परिलक्षित होता है? आप देखेंगे कि ‘गमला-A’ के पादप अवशिष्ट का अपघटन हो गया है? यह कैसे हुआ? सूक्ष्मजीवों द्वारा पादप अपशिष्ट का अपघटन कर उसे खाद में बदल दिया गया। इस प्रक्रिया में बने पोषक, पौधों द्वारा पुनः उपयोग किए जाते हैं। क्या आपने ध्यान दिया कि ‘गमला-B’ के पॉलिथीन की थैली, काँच की खाली बोतलों एवं खिलौनों के टूटे हुए टुकड़ों में इस प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ। सूक्ष्मजीव उन पर क्रिया करके खाद में परिवर्तित नहीं कर सकते।
आप अक्सर बड़ी मात्रा में मृत जीवों को, सड़ते हुए पादप व कभी-कभी सड़ते हुए जन्तुओं के रूप में देखते हैं। आप देखते हैं कि कुछ समय बाद वह विलुप्त हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण है कि सूक्ष्मजीव, मृत जैविक अवशिष्ट का अपघटन करके उन्हें सरल पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं। यह पदार्थ अन्य पौधों एवं जंतुओं द्वारा पुनः उपयोग कर लिए जाते हैं।
इस प्रकार हानिकारक एवं दुर्गंधयुक्त पदार्थों का निम्नीकरण करने के लिए हम सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके पर्यावरण का शुद्धिकरण कर सकते हैं।
2.4 हानिकारक सूक्ष्मजीव
सूक्ष्मजीव अनेक प्रकार से हानिकारक हैं। कुछ सूक्ष्मजीव मनुष्य, जंतुओं एवं पौधों में रोग उत्पन्न करते हैं। रोग उत्पन्न करने वाले ऐसे सूक्ष्मजीवों को रोगाणु अथवा रोगजनक कहते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव भोजन, कपड़े एवं चमड़े की वस्तुओं को संदूषित कर देते हैं। आइए उनकी हानिकारक गतिविधियों के विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करें।
मनुष्य में रोगकारक सूक्ष्मजीव
मनुष्य में रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीव श्वास द्वारा, पेय जल एवं भोजन द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। संक्रमित व्यक्ति अथवा जंतु के सीधे संपर्क में आने पर भी रोग का संचरण हो सकता है। सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले ऐसे रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में वायु, जल, भोजन अथवा कायिक संपर्क द्वारा फैलते हैं, संचरणीय रोग कहलाते हैं। इस प्रकार के रोगों के कुछ उदाहरण हैं हैजा, सामान्य सर्दी-जुकाम, चिकनपॉक्स एवं क्षय रोग।
जब जुकाम से पीड़ित कोई व्यक्ति छींकता है तो सूक्ष्म बूँदों के साथ हजारों रोगकारक वायरस (विषाणु) भी वायु में आ जाते हैं। यह वायरस श्वास के साथ ली जाने वाली वायु के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
कुछ कीट एवं जंतु ऐसे भी हैं जो रोगकारक सूक्ष्मजीवों के रोग-वाहक का कार्य करते हैं। घरेलू मक्खी इसका एक उदाहरण है। मक्खी कूड़े एवं जंतु अपशिष्ट पर बैठती है। रोगाणु उसके शरीर से चिपक जाते हैं। जब मक्खी बिना ढके भोजन पर बैठती है तो रोगाणु का स्थानान्तरण संभव है। जो भी व्यक्ति ऐसा संदूषित भोजन करेगा उसके बीमार पड़ने की संभावना है। अतः यह सलाह दी जाती है कि भोजन को सदा ही ढककर रखा जाए। बिना ढके भोजन को खाने से बचना चाहिए। मादा एनॉफ्लीज़ (चित्र 2.8) मच्छर इसका अन्य उदाहरण है। मच्छर प्लैज्मोडियम (मलेरिया परजीवी) का वाहक है। मादा एडीस मच्छर डेंगू के वायरस का वाहक है। हम मलेरिया अथवा डेंगू का नियंत्रण किस प्रकार कर सकते हैं।
सभी मच्छर जल में उत्पन्न होते हैं। हमें पानी को कहीं भी रुका नहीं रहने देना चाहिए। कूलर, टायरों एवं फूलदानों इत्यादि में कहीं भी जल को एकत्र न होने दें। अतः अपने आस-पास के स्थानों को स्वच्छ एवं शुष्क रखकर हम मच्छरों को पैदा होने से रोक सकते हैं। ऐसे उपायों की सूची बनाने का प्रयास कीजिए जिसे अपनाकर मलेरिया को फैलने से रोका जा सके।
सारणी 2.1: मनुष्य में सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले सामान्य रोग
मानव रोग | रोगकारक सूक्ष्मजीव | संचरण का तरीका | बचाव के उपाय (सामान्य) |
क्षयरोग खसरा चिकनपॉक्स पोलियो | जीवाणु वायरस वायरस वायरस | वायु वायु वायु/सीधे संपर्क वायु/जल | रोगी व्यक्ति को पूरी तरह से अन्य व्यक्तियों से अलग रखना। रोगी की व्यक्तिगत वस्तुओं को अलग रखना। उचित समय पर टीकाकरण। |
हैजा टाइफायड | जीवाणु जीवाणु | जल/भोजन जल | व्यक्तिगत स्वच्छता एवं अच्छी आदतों को अपनाना। भलीभांति पके भोजन, उबला पेयजल एवं टीकारण। |
हैपेटाइटिस-ए | वायरस | जल | उबले हुए पेय जल का प्रयोग, टीकाकरण। |
मलेरिया | प्रोटोजोआ | मच्छर | मच्छरदानियों का प्रयोग, मच्छर भगाने वाले रसायन का प्रयोग, कीटनाशक का छिड़काव एवं मच्छर के प्रजनन रोकने के लिए जल को किसी भी स्थान पर एकत्र न रहने देना। |
मनुष्य में होने वाले कुछ सामान्य रोग, उनके फैलने तथा रोकने के कुछ उपाय तालिका 2.1 में दर्शाए गए हैं।
जंतुओं में रोगकारक जीवाणु
अनेक सूक्ष्मजीव केवल मनुष्य एवं पौधों में ही रोग के कारक नहीं हैं वरन् वे दूसरे जंतुओं में भी रोग उत्पन्न करते हैं। उदाहरण के लिए, एंथ्रेक्स, मनुष्य एवं मवेशियों में होने वाला भयानक रोग है जो जीवाणु द्वारा होता है। गाय में खुर एवं मुँह का रोग वायरस द्वारा होता है।
पौधों में रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीव
अनेक सूक्ष्मजीव गेहूँ, चावल, आलू, गन्ना, संतरा, सेब इत्यादि पौधों में रोग के कारक हैं। रोग के कारण फसल की उपज में कमी आ जाती है। तालिका 2.2 में कुछ पादप रोग दर्शाए गए हैं। कुछ रसायनों का प्रयोग करके इन सूक्ष्मजीवों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
सारणी 2.2 : सूक्ष्मजीवों द्वारा पौधों में होने वाले कुछ सामान्य रोग
पादप रोग | सूक्ष्मजीव | संचरण का तरीका |
नींबू कैकर | जीवाणु | वायु |
गेहूँ की रस्ट | कवक | वायु एवं बीज |
भिंडी की पीत | वायरस | कीट |
खाद्य विषाक्तन
बूझो के एक मित्र ने उसे एक पार्टी में आमंत्रित किया। वहाँ उसने अनेक प्रकार के व्यंजन खाए। घर आने पर उसे वमन (उल्टी) होने लगी। उसे अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने बताया कि यह खाद्य विषाक्तन के कारण होने वाली स्थिति है।
सूक्ष्मजीवों द्वारा संदूषित भोजन करने से खाद्य विषाक्तन हो सकता है। हमारे भोजन में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्मजीव कभी-कभी विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं। यह भोजन को विषाक्त बना देते हैं जिसके सेवन से व्यक्ति भयंकर रूप से रोगी हो सकता है अथवा कभी-कभी उसकी मृत्यु भी हो सकती है। अतः यह आवश्यक है कि हम भोजन को संदूषित होने से बचाएँ।
2.5 खाद्य परिरक्षण
अध्याय एक में हमने खाद्य बीजों के परिरक्षण एवं भण्डारण के उपायों के विषय में पढ़ा था। हम पके हुए भोजन का घर पर परिरक्षण किस प्रकार कर सकते हैं? आप जानते हैं कि खुले एवं नम स्थान पर रखी ब्रेड पर कवक आक्रमण कर देते हैं। सूक्ष्मजीव हमारे भोजन को संदूषित कर देते हैं। संदूषित भोजन से दुर्गंध आने लगती है, इसका स्वाद भी खराब हो जाता है तथा रंग-रूप में भी परिवर्तन आ सकता है। क्या भोजन का संदूषण एक रासायनिक अभिक्रिया है?
पहेली ने कुछ आम खरीदे, परन्तु कई दिनों तक वह उन्हें नहीं खा पाई। बाद में उसने देखा कि वे सड़ गए है। परन्तु वह जानती है कि उसकी दादी द्वारा बनाया गया आम का अचार काफी समय तक संदूषित नहीं होता। वह भ्रमित है। आइए हम खाद्य परिरक्षण के कुछ सामान्य तरीकों का अध्ययन करें जिनका उपयोग हम अपने घरों में करते हैं। हमें इन्हें सूक्ष्मजीवों से बचाव के उपाय करना चाहिए।
रासायनिक उपाय
नमक एवं खाद्य तेल का उपयोग सूक्ष्मजीवों की वृद्धि रोकने के लिए सामान्य रूप से किया जाता है। अतः इन्हें परिरक्षक कहते हैं। हम नमक अथवा खाद्य अम्ल का प्रयोग अचार बनाने में करते हैं जिससे सूक्ष्मजीवों की वृद्धि नहीं होती। सोडियम बेंजोएट तथा सोडियम मेटाबाइसल्फाइट सामान्य परिरक्षक हैं। जैम एवं स्क्वैश बनाने में इन रसायनों का उपयोग उन्हें संदूषित होने से बचाता है।
नमक द्वारा परिरक्षण
सामान्य नमक का उपयोग मांस एवं मछली के परिरक्षण के लिए काफी लम्बे अरसे से किया जा रहा है। जीवाणु की वृद्धि रोकने के लिए मांस तथा मछली को सूखे नमक से ढक देते हैं। नमक का उपयोग आम, आँवला एवं इमली के परिरक्षण में भी किया जाता है।
चीनी द्वारा परिरक्षण
जैम, जेली एवं स्क्वैश का परिरक्षण चीनी द्वारा किया जाता है। चीनी के प्रयोग से खाद्य पदार्थ की नमी में कमी आती है जो संदूषण करने वाले जीवाणुओं की वृद्धि को नियंत्रित करता है।
तेल एवं सिरके द्वारा परिरक्षण
तेल एवं सिरके का उपयोग अचार को संदूषण से बचाने में किया जाता है क्योंकि इसमें जीवाणु जीवित नहीं रह सकते। सब्जियाँ, फल, मछली तथा मांस का परिरक्षण इस विधि द्वारा करते हैं।
गर्म एवं ठंडा करना
आपने अपनी माँ को दूध उबाल कर रखते हुए देखा होगा। उबालने से अनेक सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं।
इसी प्रकार हम अपना भोजन रेफ्रीजरेटर में रखते हैं क्योंकि कम ताप सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोकता है।
पॉश्चरीकृत दूध को बिना उबाले इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह सूक्ष्मजीवों से मुक्त होता है। इसके लिए दूध को 70°C पर 15-30 सेकंड के लिए गर्म करते हैं फिर एकाएक ठंडा कर उसका भण्डारण कर लेते हैं। ऐसा करने से सूक्ष्मजीवों की वृद्धि रुक जाती है। इस प्रक्रिया की खोज लुई पॉश्चर नामक वैज्ञानिक ने की थी, इसीलिए इसे पॉश्चरीकरण कहते हैं।
भण्डारण एवं पैकिंग
आजकल मेवे तथा सब्जियाँ भी वायुरोधी सील किए गए पैकेटों में बेचे जाते हैं। जिससे सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा होती है।
2.6 नाइट्रोजन स्थिरीकरण
आपने कक्षा VI और VII में राइजोबियम जीवाणु के बारे में पढ़ा है जो लैग्यूम पौधों (दलहन) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होते हैं। स्मरण कीजिए, राइजोबियम लैग्यूम पौधों की ग्रंथिकाओं में रहते हैं जैसे सेम और मटर जो एक सहजीवता है। कभी-कभी तड़ित विद्युत द्वारा भी नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है। परन्तु आप जानते हैं कि नाइट्रोजन की मात्रा वायुमण्डल में स्थिर रहती है। आपको आश्चर्य होगा कि यह कैसे संभव है? आइए, इसके विषय में अगले भाग में समझते हैं।
2.7 नाइट्रोजन चक्र
हमारे वायुमण्डल में 78% नाइट्रोजन गैस है। नाइट्रोजन सभी सजीवों का आवश्यक संघटक है जो प्रोटीन, पर्णहरित (क्लोरोफिल) न्युक्लिक एसिड एवं विटामिन में उपस्थित होता है। पौधे एवं जंतु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का उपयोग सीधे नहीं कर सकते। मिट्टी में उपस्थित जीवाणु व नीले-हरे शैवाल वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके नाइट्रोजन यौगिकों में परिवर्तित कर देते हैं। जब नाइट्रोजन इस प्रकार उपयोगी यौगिकों में परिवर्तित हो जाती है, पौधे इसका उपयोग मिट्टी में से जड़ तंत्र द्वारा करते हैं। इसके पश्चात् अवशोषित नाइट्रोजन का उपयोग प्रोटीन एवं अन्य यौगिकों के संश्लेषण में करते हैं। पौधों पर निर्भर करने वाले जंतु उनसे प्रोटीन एवं अन्य नाइट्रोजनी यौगिक प्राप्त करते है (चित्र 2.10)।
पौधों एवं जंतुओं की मृत्यु के बाद, मिट्टी में उपस्थित जीवाणु एवं कवक नाइट्रोजनी अपशिष्ट को नाइट्रोजनी यौगिकों में परिवर्तित कर देते हैं जो पौधों द्वारा पुनः उपयोग होता है। कुछ विशिष्ट जीवाणु नाइट्रोजनी यौगिकों को नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित कर देते हैं जो वायुमण्डल में चली जाती है। परिणामतः वायुमण्डल में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग स्थिर रहती है।
यह भी पढ़ें : फसल उत्पादन एवं प्रबंध : अध्याय 1
आपने क्या सीखा
• सूक्ष्मजीव अत्यंत छोटे होते हैं तथा बिना यंत्र की सहायता से अकेली आँखों से दिखाई नहीं देते।
• यह बर्फीले शीत मौसम से ऊष्ण झरनों तथा मरुस्थल से दलदल तक हर प्रकार के पर्यावरण में जीवित रह सकते हैं।
• सूक्ष्मजीव वायु, जल, मिट्टी, पौधों एवं जंतुओं के शरीर में पाए जाते हैं।
• ये एककोशिक एवं बहुकोशिक होते हैं।
• जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ एवं कुछ शैवाल सूक्ष्मजीवों के अंतर्गत आते हैं। विषाणु इनसे अलग हैं लेकिन फिर भी इसी वर्ग में सम्मिलित किए जाते हैं।
• विषाणु केवल परपोषी जैसे जीवाणु, पादप या जन्तु में गुणन करते हैं।
• कुछ सूक्ष्मजीव औषधि एवं एल्कोहल के वाणिज्यिक उत्पादन में उपयोगी हैं।
• कुछ सूक्ष्मजीव जैविक कचरे जैसे कि मृत पौधे एवं जंतु अपशिष्ट को अपघटित कर सरल पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं तथा वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं।
• प्रोटोजोआ अतिसार तथा मलेरिया जैसे रोग उत्पन्न करते हैं।
• कुछ सूक्ष्मजीव हमारे भोजन को विषाक्त कर देते हैं।
• कुछ सूक्ष्मजीव लैग्यूम पौधों की जड़ों तथा ग्रंथिकाओं में पाए जाते हैं। ये वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिरीकृत कर देते हैं जिससे मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि होती है।
• मिट्टी में उपस्थित कुछ जीवाणु और नीले-हरे शैवाल, वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर, नाइट्रोजनी यौगिकों में परिवर्तित कर देते हैं।
• विशेष जीवाणु, मिट्टी में उपस्थित नाइट्रोजनी यौगिकों को नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित कर देते हैं जिसका निर्मोचन वायुमण्डल में होता है।
अभ्यास
1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) सूक्ष्मजीवों को सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है।
(ख) नीले-हरे शैवाल वायु से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं जिससे मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि होती है।
(ग) एल्कोहल का उत्पादन यीस्ट नामक सूक्ष्मजीव की सहायता से किया जाता है।
(घ) हैजा बैक्टीरिया के द्वारा होता है।
2. सही शब्द के आगे (√) का निशान लगाइए
(क) यीस्ट का उपयोग निम्न के उत्पादन में होता है:
(i) चीनी
(ii) एल्कोहल
(iii) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल
(iv) ऑक्सीजन
Ans. एल्कोहल
(ख) निम्न में से कौन सा प्रतिजैविक है?
(i) सोडियम बाइकार्बोनेट
(ii) स्ट्रेप्टोमाइसिन
(iii) एल्कोहल
(iv) यीस्ट
Ans. स्ट्रेप्टोमाइसिन
(ग) मलेरिया परजीवी का वाहक है:
(i) मादा एनॉफ्लीज मच्छर
(ii) कॉकरोच
(iii) घरेलू मक्खी
(iv) तितली
Ans. मादा एनॉफ्लीज मच्छर
(घ) संचरणीय रोगों का सबसे मुख्य कारक है:
(i) चींटी
(ii) घरेलू मक्खी
(iii) ड्रेगन मक्खी
(iv) मकड़ी
Ans. घरेलू मक्खी
(ङ) ब्रेड अथवा इडली फूल जाती है इसका कारण है:
(i) ऊष्णता
(ii) पौसना
(iii) यीस्ट कोशिकाओं की वृद्धि
(iv) माढ़ने के कारण
Ans. यीस्ट कोशिकाओं की वृद्धि
(च) चीनी को एल्कोहल में परिवर्तित करने के प्रक्रम का नाम है:
(i) नाइट्रोजन स्थिरीकरण
(ii) मोल्डिंग
(iii) किण्वन
(iv) संक्रमण
Ans. किण्वन
3. कॉलम A के जीवों का मिलान कॉलम-II में दिए गए उनके कार्य से कीजिए
कॉलम A | कॉलम B |
जीवाणु | नाइट्रोजन स्थिरीकरण |
राइजोबियम | दही का जमना |
लैक्टोबेसिलस | ब्रेड की बेकिंग |
यीस्ट | मलेरिया का कारक |
एक प्रोटोजोआ | हैजा का कारक |
एक विषाणु | AIDS का कारक |
प्रतिजैविक उत्पादित करना |
Ans.
कॉलम A | कॉलम B |
जीवाणु | हैजा का कारक |
राइजोबियम | नाइट्रोजन स्थिरीकरण |
लैक्टोबेसिलस | दही का जमना |
यीस्ट | ब्रेड की बेकिंग |
एक प्रोटोजोआ | मलेरिया का कारक |
एक विषाणु | AIDS का कारक |
4. क्या सूक्ष्मजीव बिना यंत्र की सहायता से देखे जा सकते हैं। यदि नहीं, तो वे कैसे देखे जा संकते हैं?
Ans. सूक्ष्मजीव बिना यंत्र की सहायता से नहीं देखे जा सकते हैं। उन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी का इस्तेमाल करना पड़ता है।
5. सूक्ष्मजीवों के मुख्य वर्ग कौन-कौन से हैं?
Ans. सूक्ष्मजीवों के मुख्य वर्ग हैं:
• जीवाणु (बेक्टीरिया)
• कवक (फेजाई)
• शैवाल (एल्गी)
• प्रोटोजोआ
• विषाणु (वायरस)
6. वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का मिट्टी में स्थिरीकरण करने वाले सूक्ष्मजीवों के नाम लिखिए।
Ans. वायुमण्डलीय नाईट्रोजन का मिट्टी में स्थिरीकरण करने वाले सूक्ष्मजीव राइजोबियम जीवाणु मिट्टी में उपस्थित जीवाणु एवं नीले-हरे शैवाल।
7. हमारे जीवन में उपयोगी सूक्ष्मजीवों के बारे में 10 पंक्तियाँ लिखिए।
Ans. 1. प्राचीन काल से ही सूक्ष्मजीवों का उपयोग एल्कोहल बनाने में किया जाता है।
2. दही, ब्रेड एवं केक बनाने में।
3. पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए।
4. औषधि उत्पादन एवं कृषि में मृदा की उर्वरता में वृद्धि करने में।
5. पनीर, आचार एवं अनेक खाद्य पदार्थों के उत्पादन में।
6. बड़े स्तर पर एसिटिक एसिड के उत्पादन में सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है।
7. औषधियों का स्त्रोत सूक्ष्मजीव है।
8. मिट्टी को उपजाऊ बनाने में।
9. चारा बनाने में सहायक।
10. चमड़े को साफ करने के लिए।
8. सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले हानिकारक प्रभावों का संक्षिप्त विवरण कीजिए।
Ans. सूक्ष्मजीवों से कई नुकसान भी होते हैं। कई सूक्ष्मजीव हमारे शरीर में रोग पैदा करते हैं। मलेरिया, डेंगू, हैजा, पोलियो, टीबी, इत्यादि ऐसे रोग हैं जो ऐसे ही रोगाणुओं के कारण होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव हमारे भोजन को विषाक्त कर देते हैं। ऐसा भोजन खाने से आदमी गंभीर रूप से बीमार पड़ सकता है। कुछ सूक्ष्मजीवों से खाद्य पदार्थ सड़ जाता है और खाने लायक नहीं रहता है।
अथवा
सूक्ष्मजीव अनेक प्रकार से हानिकारक है। कुछ सूक्ष्मजीव मनुष्य, जंतुओं एवं पौधों में रोग उत्पन्न करते हैं। रोग उत्पन्न करने वाले ऐसे सूक्ष्मजीवों को रोगाणु अथवा रोगजनक कहते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव भोजन, कपड़े एवं चमड़े की वस्तुओं को संदूषित कर देते हैं। मनुष्य में रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीव श्वास द्वारा पेय जल एवं भोजन द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। संक्रमित व्यक्ति अथवा जंतु के सीधे संपर्क में आने पर भी रोग का संचारण हो सकता है। सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले ऐसे रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में वायु, जल, भोजन द्वारा फैलते है। इस प्रकार के कुछ रोग जैसे:- हैजा, सामान्य सर्दी-जुकाम, चिकनपॉक्स एवं क्षय रोग। जब जुकाम से पीड़ित कोई व्यक्ति छींकता है तो सूक्ष्म बूंदों के साथ हज़ारों रोगकारक वायरस भी वायु में आ जाते। हमें भोजन को सदा ही ढककर रखना चाहिए।
9. प्रतिजैविक क्या है? प्रतिजैविक लेते समय कौन-सी सावधानियाँ रखनी चाहिए?
Ans. जो पदार्थ बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है या बेक्टीरिया को मारता है उसे प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक कहते हैं। कभी भी डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक नहीं लेना चाहिए। डॉक्टर की सलाह के अनुसार एंटीबायोटिक की खुराक पूरी करनी चाहिए और उसे बीच में छोड़ना नहीं चाहिए।
अथवा
यह वह औषधि है जो बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देती है तथा उनकी वृद्धि को रोक देती है। जीवाणु और कवक से अनेक प्रतिजैविक औषधियों का उत्पादन हो रहा है। स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासाइक्लिन और एरिथ्रोमाइसिन सामान्य रूप से उपयोग की जाने वाली प्रतिजैविक है जिन्हें कवक एवं जीवाणु स उत्पादित किया जाता है। किसी विशिष्ट प्रकार के सूक्ष्मजीव का संवर्धन करके प्रतिजेविक का उत्पादन किया जाता है जिन्हें अनेक रोगों की चिकित्सा में उपयोग में लाते हैं। सन् 1929 में अलेक्जेंडर फ्लेमिंग जीवाणु रोगों से बचाव हेतु एक संवर्धन पर प्रयोग कर रहे थे और अंत में ‘पेनिसिलिन नामक औषधि का अविष्कार किया। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि डॉक्टर की सलाह पर ही प्रतिजैविक की दवाई लेनी चाहिए तथा उस दवाई का कोर्स भी पूरा करना चाहिए।
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