खनिज तत्व (Mineral Elements)

जीव-शरीर में अल्प मात्रा में कई प्रकार के खनिज तत्वों की आवश्यकता होती है। इन्हें भोजन से प्राप्त किया जाता है। इन तत्वों को दो श्रेणियों में बाँटा जाता है- अधिभार तत्व (bulk or macro elements) जिनके कई-कई ग्रामों की प्रतिदिन खपत होती है जैसे Ca, P, S, K, Na, Cl, Mg तथा सूक्ष्ममात्रिक तत्व (trace elements) जिनकी केवल कुछ मिलिग्राम या माइक्रोग्राम मात्रा की ही प्रतिदिन खपत होती है। जैसे Fe, Cu, Zn, Mn, I, F, Co, B, Se, Cr, Mo

मानव शरीर संघटक अवयव
पदार्थ
% मात्रा
• जल*
57-65
• प्रोटीन *
14-17
• वसा
12
• कार्बोहाइड्रेटस
1
• खनिज एवं विटामिन्स
7

खनिज तत्वों के कार्य

• मानव शरीर में खनिज आयन कोशिकाद्रव्य तथा कोशिकाकला में विद्युत-रासायनिक चालकता (electro-chemical conductivity) उत्पन्न करके उत्तेजनशीलता (irritability) तथा प्रतिक्रियाशीलता (reactivity) का संचालन करते हैं। कुछ खनिज आयन उपापचयी अभिक्रियाओं में अणुओं को जोड़ने वाले बन्धों का काम करते हैं।, अस्थियों और दाँतों के प्रमुख घटक होते हैं, हृद्-स्पन्दन, पेशी संकुचन, रुधिर-जामन आदि के लिए आवश्यक होते हैं, कोशिकाकला की पारगम्यता को प्रभावित करते हैं, एन्जाइमों के सहघटकों (cofactors or prosthetic groups) का काम करते हैं तथा कुछ खनिज लवण शरीर के तरल अन्तः वातावरण में उपयुक्त परासरणीय सान्द्रण, pH तथा रुधिरदाब आदि का नियमन करते हैं।

ध्यातव्य है कि औसतन मनुष्य को प्रतिदिन 20-30 ग्राम अकार्बनिक तत्त्वों (खनिज-लवणों) का उपभोग करना चाहिए परीक्षोपयोगी खनिज तत्त्वों का विवेचन अधोलिखित है। यथा-

कैल्शियम (Calcium) – मानव शरीर के समस्त खनिज तत्त्वों में Ca की मात्रा सर्वाधिक (शरीर भार का 2%) होती है। सामान्यतः एक व्यक्ति को प्रतिदिन 0.5 से 0.9 ग्राम खनिज तत्त्व की आवश्यकता होती है। यद्यपि इसकी मात्रा अवस्था एवं आवश्यकता के अनसार घटती बढ़ती रहती है। इसके प्रमुख कार्य निम्न हैं। यथा-

• कैल्सियम अस्थि एवं दांतों का निर्माण करता है।
• यह रक्त के जमने में सहायता करता है।
• यह नाड़ियों को स्वस्थ बनाता है।
• यह एन्जाइम्स को स्स्रावित होने में सहायता करता है।
• इसका प्रमुख स्रोत दूध एवं उससे बनी वस्तुयें, हरी पत्तेदार सब्जियों, चावल को छोड़कर अन्य बहुत से अनाज जैसे- गेहूँ, बाजारा, रागी, मक्का इत्यादि में पाया जाता है।

• इसकी कमी से अस्थियों का ठीक से निर्माण नहीं होता तथा दांत विलम्ब से निकलते हैं एवं जल्दी टूट जाते हैं। वयस्क एवं गर्भवती स्त्रियों में हड्डियों में बनावट की प्रक्रिया रुक जाती है जिससे हड्डियों का विकास असंतुलित हो जाता है। इसके कमी से विटामिन- डी के निर्माण की प्रक्रिया बाधित होती है। अतः विटामिन-डी के कमी से होने वाले समस्त रोग इस खनिज की कमी से हो जाते हैं।

फास्फोरस (Phosphorus) – हड्डियों के विकास के लिए फास्फोरस आवश्यक है। एक सामान्य व्यक्ति को प्रतिदिन 0.5 से 0.9 ग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

• यह कैल्सियम के साथ संयुक्त होकर अस्थि एवं दांतों का निर्माण करता है।

• वसा एवं कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायता करता है।

• रक्त में इसकी उपस्थिति से शारीरिक अम्ल-क्षार संतुलन ठीक रहता है।

• कोशिका के ऊर्जा वाहक (energy Carrier) अणुओं तथा हाइड्रोजन ग्राही (Hydrogen Acceptor) अणुओं में फास्फोरस आवश्यक घटक होता है।

• सोयाबीन, सूरजमुखी, गाजर, दूध, मांस तथा अनाज फास्फोरस के अच्छे स्रोत होते हैं।

मैग्नीशियम (Magnesium) – एक सामान्य व्यक्ति के दैनिक आहार में 3.5 मिग्रा मैग्नीशियम की संस्तुति की गई है। यह मानव शरीर में कैल्शियम तथा फास्फोरस का उचित सन्तुलन एवं समन्वय बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। ग्लाइकोलाइसिस तथा वसा-उपापचय में

यह सह-कारक का कार्य करता है। तन्त्रिकाओं एवं पेशियों की उत्तेजनशीलता को कम करता है। यह राइबोसोम के संगठन तथा पृथकीकरण में महती भूमिका अदा करता है।

इसकी कमी से तन्त्रिका तन्त्र की कार्यिकी प्रभावित होती है। मांस पेशियों में ऐंठन तथा कम्पन्न (Convulsion) होने लगती है, जो तीव्रतम स्थिति में डेलीरियम (Delirum) की संज्ञा से अभिहित की जाती है।

गन्धक (Sulphur)- सल्फर प्रोटीन निर्माण का आवश्यक घटक है। यह विविध प्रकार के प्रोटीन में 0.2 से 7.0% तक के भाग का निर्माण करता है। सामान्यतः भोजन में इस तत्व की दैनिक आवश्यकता 3.0 मिग्रा निर्धारित की गई है। यह शरीर में अमीनों अम्ल के साथ संयुक्त रूप में पायी जाती है। इसमें सिस्टीन व मेथियोनीन प्रमुख हैं यह कुछ हार्मोन एवं विटामिन्स का भी घटक होता है। कोलैजन एवं किरैटिन प्रोटीन के संश्लेषण में सल्फर आवश्यक होता है। इसकी कमी से प्रोटीन मेटावोलिज्म में खामिया उत्पन्न हो जाता है।

लोहा (Iron)- लौह लवण की कमी अधिकांशतः बालकों एवं महिलाओं में पायी जाती है। लौह लवण से रक्त का हीमोग्लोबिन बनता है जो शरीर में आक्सीजन का संवाहक होता है। लोहे की कमी के परिणामस्वरूप रक्त की यह क्षमता कम हो जाती है, जिसे अरक्तता (Anaemia) कहते हैं। अरक्तता का कोई विशेष लक्षण दृष्टिगोचर नहीं होता। यह मायोग्लोबिन तथा साइटोक्रोम एन्जाइम का घटक है। इसकी कमी से शरीर में क्षीणता आती है तथा अत्यधिक थकान महसूस होती है। इसकी तीव्र अवस्था में आंखों के सामने अंधेरा आना, चक्कर आना, भूख न लगना, इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं।

यकृत इसका सर्वोत्तम स्त्रोत है। इसके अतिरिक्त मेथी पालक, पुदीना, धनिया पत्ता इत्यादि में लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

आयोडीन (Iodine)- वयस्क मानव के शरीर में लगभग 5 से 6 मिलाग्राम आयोडीन होती है जिसकी अधिकांश मात्रा थाइरॉइड ग्रन्थि में रहती है। इस प्रकार थाइरॉइड ग्रन्थि आयोडीन के भण्डारण (storage) का काम करती है। आयोडीनयुक्त हॉरमोन्स का सामान्य मात्राओं में स्त्रावण करते रहने के लिए थाइरॉइड ग्रन्थि लगभग 150 माइक्रोग्राम (Microgram- µg, अर्थात् 0.15 मिलीग्राम) आयोडीन का प्रतिदिन उपयोग करती है। अतः स्पष्ट है लगभग 150 µg आयोडीन भोजन से प्रतिदिन प्राप्त करना हमारे लिए आवश्यक है। यह हमें हरी सब्जियों, दुग्धउत्पादी पदार्थों (dairy products), पेयजल, समुद्री भोजन (seafood) आदि से प्राप्त होती है। इससे अधिक मात्रा में ग्रहण की गई आयोडीन का हम लोग मूत्र के साथ उत्सर्जन (excretion) कर देते हैं।

भोजन की आयोडीन का रुधिर में अवशोषण (absorption) तथा संचरण (circulation) आयोडीन आयनों (I-) के रूप में होता है। थाइरॉइड की अल्प क्रियाशीलता प्रायः भोजन में आयोडीन की कमी या मूत्र में आयोडीन के अधिक उत्सर्जन के कारण होती है। इससे शरीर में थाइरॉक्सिन की कमी हो जाती है। और मनुष्य में उपाचय की गति धीमी हो जाती है। इससे निम्नलिखित रोग हो जाते हैं-

(i) जड़वामनता (Cretinism) – यह बच्चों में थाइरॉक्सिन की कमी के कारण होता है। उपापचय की धीमी गति के कारण बच्चों की शारीरिक व मानसिक वृद्धि मंद हो जाती है। बच्चे बौने (dwarf) रह जाते हैं। उनके हांथ-पाँव बेमेल औ बहुत छोटे रहते हैं। त्वचा मोटी, सूखी-सी व लटकी हुई होती है। तोंद निकली हुई, होंठ मोटे, जीभ मोटी व लटकी हुई तथा चेहरा फूला-फूला होता है। जननांगों का विकास भी पूरा नहीं हो पाता। अतः ये लोग नपुंसक Sterile) होते हैं। इस दशा को जड़वामनता या क्रिटिनिज्म कहते हैं।

(ii) मिक्सीडिमा (Myxoedema) – वयस्क में थाइरॉक्सिन की कमी से न्यूनतम उपापचय गति कम हो जाती है जिससे शरीर का तापक्रम कम हो जाता है, हृदय की गति धीमी हो जाती है, रुधिर-दाब सामान्य से कम हो जाता है, मनुष्य सुस्त एवं थका-थका रहता है, किसी काम में मन नहीं लगता। त्वचा के नीचे ऊतक द्रव के एकत्रित हो जाने से शरीर मोटा व भद्दा हो जाता है तथा त्वचा, पलकें व होंठ मोटे हो जाते हैं। जनदों की क्रिया एवं यौन परिवर्धन की क्रिया भी धीमी हो जाती है। इस अवस्था को मिक्सीडिमा (myxoedema) कहते हैं।

(iii) सामान्य बेंघा या गलगण्ड (Simple goitre) – भोजन में आयोडीन की कमी से होने पर थॉइराइड ग्रन्थि बड़ी होकर फूल जाती है। इससे गर्दन भी फूलकर मोटी व कॉलर जैसे दिखाई देती है। इसे सामान्य घेघा रोग कहते हैं।

पहाड़ी क्षेत्र में जहाँ पानी में आयोडीन की कमी होती है अधिकांश लोगों में घेघा रोग पाया जाता है। ऐसे क्षेत्र घेघा क्षेत्र (goitre belt) कहलाते हैं।

(iv) हाशीमीमोटो का रोग (Hashimoto’s disease) – इस अवस्था में थाइरॉइड ग्रन्थिका स्राव इतना कम हो जाता है कि स्त्राव बढ़ाने के लिये दी गयी औषधियाँ शरीर में विष (antigens) का काम करने लगती हैं। इनको नष्ट करने के लिये शरीर में प्रतिविष (antibodies) बनने लगती हैं जो थाइरॉइड को नष्ट कर देते हैं। इसे anti-immune रोग या थाइरॉइड की आत्महत्या (suicide of thyroid) कहते हैं।

रोगोपचार – भोजन में आयोडीन की मात्रा बढ़ाकर तथा आयोडीनयुक्त नमक के प्रयोग से थाइरॉइड की अल्पक्रियाशीलता सम्बन्ध रोगों से बचा जा सकता है।

रेशा (Fibres)

रेशा मानव भोजन का एक प्रमुख अंग होता है, जो भोजन की मात्रा को बढ़ाता है। किन्तु ऊर्जा प्रदायक या संरक्षी आहार के रूप में इसका महत्त्व नहीं होता, अपितु यह हमारी आहारनाल की सफाई के लिए खुरदरे पदार्थ (Roughase) के रूप में एन्जाइम क्रिया के लिए अधिक सतह प्रदान करने के लिए तथा मल का शरीर से निष्कासन आदि के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।

रेशा पृथ्वी पर सर्वाधिक मात्रा में जाने वाला बायोपालीमर एवं पॉलीसैकेराइड है। संघटक के आधार पर इसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। यथा-

(i) पानी में घुलनशील रेशे (Water soluble fibre) जैसे- पेक्टिन, गम व म्यूसिलेज

(ii) पानी में अघुलनशील रेशे (Water Insoluble fibre) जैसे-सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज व लिग्निन।

• पानी आवशोषण की क्षमता रेशों में अपने वजन से 15 गुनी ज्यादें होती है। इसके कारण मल में जल की मात्रा अधिक बनी रहती है। जिससे कब्ज (Constipation) की शिकायत नहीं होने पाती।

• भोजन में रेशों के कारण भोजन की मात्रा अधिक होती है, फलतः पाचन मार्ग की गतिशीलता (Peristalris) बढ़ जाती है।

• भोजन में रेशों की उपस्थिति कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करती है।

• रेशा की अधिकता वाला भोजन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को कम कर देता है। आंतों में पौलिप (ट्यूमर) बनाने की सम्भावनाएँ कम हो जाती है।

• भोजन में पर्याप्त रेशा की उपस्थिति से गुर्दे की पथरी (Kidney stones) की सम्भावना क्षीण हो जाती है।

संतुलित आहार (Balance diet)

मानव स्वास्थ्य के लिए वही भोजन लाभदायक है जिसमें कोर्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण एवं विटामिन उचित मात्रा में उपस्थित हो। इस प्रकार के आहार को संतुलित आहार कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा संचालित विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) पोषण तत्वों तथा ऊर्जा के मानक को निर्धारित करती हैं।

• एक आराम से लेटे हुए व्यक्ति को अपने वजन के प्रति किलोग्राम के लिए प्रति घंटा एक कैलोरी ऊर्जा चाहिए।

• विभिन्न प्रकार के कार्य करने वाले व्यक्तियों को लगभग निम्नलिखित कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

कार्यानुसार कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता
कार्यक्षमतास्तर
स्त्री
पुरूष
बैठकर काम करने वाले
2100 कै. 
2500 कै.
साधारण काम करने वाले 
2500 के.*
3000 कै*
कठिन परिश्रम करने वाले 
3000 कै.
3600 कै.

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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