संवेग, किसी वस्तु में, किसी वस्तु पर बल आरोपित करने की क्षमता है जो वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल के बराबर होता है। यह वस्तु में वेग के कारण उत्पन्न होता है। इसे अक्षर ‘P’ से प्रदर्शित करते हैं। यह एक सदिश (vector) राशि है।*
P = m.v
• मात्रक – किग्रा. मीटर/सेकेण्ड
संवेग संरक्षण का नियम (Law of conservation of Momentum)
यदि दो या अधिक वस्तुओं के संकाय (system) पर कोई बाह्य बल कार्य न करे तो संकाय का संयुक्त संवेग अपरिवर्तित रहता है। इसे संवेग संरक्षण का नियम कहते हैं। उदाहरणस्वरूप, यदि दो वस्तुएं m1 व m2 द्रव्यमानों की है व u1 व u2 वेग से गति करती हुई आपस में टकराती हैं तो उनके वेग क्रमशः v1 व v2 हो जाते हैं तो ऐसी दशा में टक्कर पूर्व निकाय का संवेग (m1u1 + m2 u2 ) टक्कर के बाद निकाय का संवेग (m1 v1 + m2 v2) के बराबर होता है।
➤ बल का आवेग (Impulse of Force)
यदि कोई बल किसी वस्तु पर बहुत कम समय तक कार्यरत रहे तो बल और समय के गुणनफल को उस वस्तु का आवेग कहते हैं। यह संवेग परिवर्तन (ΔP) के बराबर होता है।
ΔP = F. Δt
यह एक सदिश राशि है जिसका मात्रक किग्रा-मीटर/सेकेंड होता है।*
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण (Universal Gravitation)
किसी वस्तु के गुरुत्व (Gravity) के कारण अन्य पिण्डों को अपनी तरफ आकर्षित करने के गुण को ‘गुरुत्वाकर्षण’ कहते हैं। चूँकि वस्तु का यह गुण ब्रह्माण्ड में प्रत्येक जगह उपस्थित रहता है व कभी समाप्त नहीं होता, इसीलिए इसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। दृष्टव्य है, कि पूरे ब्रह्माण्ड की छोटी-बड़ी सभी वस्तुओं को आपस में बाँधकर रखने वाली शक्तियाँ हैं यथा : गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force), विद्युत-चुंबकीय बल (Electro-magnetic Force), प्रबल या दृढ़ बल (Strong Force) एवं कमजोर या क्षीण बल (Weak Force)।
गुरुत्वाकर्षण बल से आप और हम भली-भाँति परिचित हैं। इस बल के कारण ही ऊपर फेंका गया पत्थर धरती पर वापस आता है। उपग्रह और ग्रह, सूर्य के चक्कर लगाते हैं और इसके कारण ही आकाशगंगा के 150 अरब से भी ज्यादा तारे एक व्यवस्था में बँधे रहते हैं। गैलीलियो (1564-1642) ने मुक्त रूप से गिरते पिंडों का अध्ययन करके जड़त्व (Inertia) का नियम दिया है। जड़त्व सभी कणों और पिण्डों का अभिन्न गुण है। इसके बाद न्यूटन (1642- 1727) ने गुरुत्वाकर्षण के लिए एक गणितीय नियम की प्रस्तुति कर बताया कि विशाल पिण्डों के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अनंत दूरियों तक रहता है। लेकिन, न्यूटन गुरुत्वाकर्षण का केवल मापन ही कर पाये थे। दो आकाशीय पिण्डों के बीच यह बल किस साधन से, किस माध्यम से और किस वेग से काम करता है, न्यूटन ने इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में आइंस्टीन ने गुरुत्वाकर्षण को एक नये ढाँचे में प्रस्तुत कर यह जानकारी दी। आइंस्टीन के अनुसार इस बल के माध्यम के लिए गुरुत्वीय तरंगों और इस बल के प्रसारण के लिए एक विशेष किस्म के सूक्ष्म कणों, ग्रेविटोन’ (Graviton) का अस्तित्व होना चाहिए। हालाँकि, इसके बाद भी गुरुत्वाकर्षण की गुत्थी सुलझी नहीं और अभी भी गुरुत्वीय तरंगों व ग्रेविटोन की खोज जारी है।
इस प्रसंग में इवॉल्व्ड लेजर इंटरफेरोमीटर स्पेस एंटेना (eLISA) अर्थात् ‘विकसित लेजर व्यतिकरणमापी अंतिरक्ष एंटेना’ एक परियोजना है। जिसके तहत तीन भिन्न-भिन्न परन्तु एक दूसरे से जुड़े हुए अंतरिक्ष यान शामिल हैं। ये तीनों अंतिरक्ष यान एक त्रिकोणीय विन्यास में सूर्य की परिक्रमा करते हुए संयुक्त रूप से एक परिशुद्ध इंटरफेरोमीटर’ की रचना करेंगे। ध्यातव्य है कि ये इंटरफेरोमीटर 0.1 मेगा हर्ट्ज से 1 हर्ट्ज की आवृत्तियों की रेंज में गुरुत्वीय तरंगों का पता लगा सकेगा।
गुरुत्वीय त्वरण (Gravitational Acceleration)
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के अधीन अर्थात् ऊर्ध्वाधर दिशा में जब कोई वस्तु गति करती है तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण उसके वेग में परिवर्तन होता है अर्थात् त्वरण उत्पन्न होता है, जिसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं। इसका मान GMe/Re² होता है। जहाँ ‘G’ सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक (6.67 × 10-11 Nm²/Kg²) ‘Me’ = पृथ्वी का द्रव्यमान (6.0 × 1024 Kg) तथा ‘Re’ = पृथ्वी की त्रिज्या (6.4 × 106 मी.) है। इन मानों को प्रतिस्थापित करने पर हमें ge का मान 9.8 मी/से.2 प्राप्त होता है।*
➤ गुरुत्वीय त्वरण `g’ के मान में परिवर्तन (Change in gravitational Acceleration)
1. पृथ्वी के आकार के कारण (Due to shape of Earth)
चूँकि ge = G Me / Re2
अर्थात् गुरुत्वीय त्वरण का मान G, Me व Re पर निर्भर करता है। चूंकि G व Me का मान नियत है परन्तु Re के मान में परिवर्तन संभव है क्योंकि पृथ्वी पूरी तरह गोल (Spherical) न होकर ध्रुवों (Poles) पर चपटी है। अतः पृथ्वी की त्रिज्या (Re) स्थान परिवर्तन के साथ बदल जाती है। ध्रुवों पर Re का मान न्यूनतम तथा भूमध्य रेखा पर अधिकतम होता है। चूंकि g ∝ 1/Re2,
अतः भूमध्य रेखा पर ge का मान सबसे कम व ध्रुवों पर सर्वाधिक होता है।* ge का मान 9.8 मी./से.² 45 अक्षांश (Latitude) तथा समुद्रतल (Sea level) पर निकाला गया है।*
2. पृथ्वी का अपने अक्ष के चारों ओर घूमना (Rotation of Earth along its Axis)
पृथ्वी एक निश्चित कोणीय वेग ‘ω’ से अपने अक्ष के चारों ओर घूमती है जिससे पृथ्वी तल पर स्थित प्रत्येक वस्तु वृत्तीय पथ पर घूमती रहती है। जब कोई वस्तु कोणीय वेग से R त्रिज्या के वृत्तीय पथ पर घूमती है तो इसको ω2 R अभिकेंद्र त्वरण की आवश्यकता होती है जिसकी दिशा वृत्तीय पथ के केंद्र की ओर होती है। यह आवश्यक त्वरण पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण ‘ge‘ से ही प्राप्त होता है। अतः गुरुत्वीय त्वरण का प्रभावी मान घटकर ‘ge – ω2 Re’ रह जाता है। चूँकि भूमध्य रेखा (equator) पर Re (Radius of earth) सबसे अधिक होता है। अतः प्रभावी गुरुत्वीय त्वरण ge– ωRe का मान विषुवत रेखा (equator) पर सबसे कम व ध्रुवों पर सबसे अधिक होता है।
कैपलर का नियम (Kaplar’s Law)
कैपलर ने खगोलीय प्रेक्षणों के आधार पर ग्रहों की गति के बारे में निम्नलिखित तीन नियम प्रतिपादित किये। यथा –
(i) प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारो ओर एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा (Elliptical Orbit) में परिक्रमण (Revolution) करता है जिसके एक फोकस पर सूर्य होता है।*
(ii) प्रत्येक ग्रह की क्षेत्रीय चाल नियत रहती है अर्थात् सूर्य से ग्रह को मिलाने वाली रेखा बराबर समय में बराबर क्षेत्रफल तय (Sweep) करती है।
(iii) किसी ग्रह के परिक्रमण काल (T) का वर्ग उस ग्रह की सूर्य से औसत दूरी (r) के घन (cube) के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात् T² ∝ r³
न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (Gravitational Law of Newton)
कैपलर के नियमों के आधार पर न्यूटन ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले –
(1) प्रत्येक ग्रह पर एक अभिकेंद्र बल ‘F’ [= mv2/r] or (ω2r) कार्य करता है। जिसकी दिशा सदैव सूर्य की ।
(2) यह बल सूर्य तथा ग्रह के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती (Inversely proportional) होता है। अर्थात्, F ∝ 1/r2
(3) यह बल ग्रह के द्रव्यमान के अनुक्रमानुपाती होता है। F ∝ m. साथ ही न्यूटन ने उक्त निष्कर्षों का सर्वव्यापीकरण (Universalisation) कर यह कहा कि ये निष्कर्ष आकाश में स्थित किन्हीं दो पिण्डों के लिए सत्य हैं। इसी आधार पर न्यूटन ने नियम प्रतिपादित किया कि, “ब्रह्माण्ड में स्थित किन्हीं दो पिण्डों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल (F), उनके द्रव्यमानों (m1 व m2) के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।”*
अर्थात् F ∝ m1m2/r2 या, F = G * m1m2/r2
यहाँ G, एक नियतांक है। इसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं जिसका मान 6.67 * 10-11 * N m2 / kg2 होता है।*
➤ ग्रह तथा उपग्रह (Planet and Satellite)
वे आकाशीय पिण्ड (Celestial Bodies) जो किसी तारे (Star) (जैसे सूर्य) के चारों ओर अपनी निश्चित कक्षा (Orbit) में चक्कर लगाते हैं, ग्रह कहलाते हैं। ग्रहों का चक्कर लगाने वाले आकाशीय पिण्डों को उपग्रह कहते हैं। मानव निर्मित उपग्रहों को कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite) कहते हैं।
➤ तारा (Star)
वे आकाशीय पिण्ड जिनका अपना प्रकाश होता है और वे अपनी मंदाकिनी (Galaxy) के केंद्र के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, तारा कहलाते हैं।*
नोट – विस्तृत अध्ययन के लिए हमारे प्रकाशन की पुस्तक ‘विश्व भूगोल’ पढ़ें।
➤ पलायनवेग (Escape Velocity)
वह न्यूनतम वेग जिससे किसी वस्तु को फेंकने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर अंतरिक्ष में चला जाता है और लौटकर पृथ्वी पर नहीं आता, पलायन वेग कहते हैं। *
किसी ग्रह के लिए इसका मान (VE) = √(2gR) सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है जहाँ g उपग्रह का गुरुत्वीय त्वरण व R उस ग्रह की त्रिज्या है।
पृथ्वी के लिए इसका मान 11.2 किमी./से. होता है।*
➤ उपग्रह का कक्षीय वेग व परिक्रमणकाल (Orbital Velocity and Revolution Period of a Satellite)
उपग्रह का कक्षीय वेग (V) सूत्र Re √{ge/(Re+h)} से निकाला जाता है तथा परिक्रमण काल (T) निकालने के लिए 2π(Re+h)3/2 /Re√ge सूत्र का प्रयोग करते हैं। इससे हमें निम्न निष्कर्ष प्राप्त होते हैं –
(i) उपग्रहों का कक्षीय वेग व परिक्रमण काल उनके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता।
(ii) ऊँचाई बढ़ने के साथ कक्षीय वेग का मान कम व परिक्रमण अवधि बढ़ती जाती है।
(iii) पृथ्वी तल के अति निकट (h = 0) चक्कर लगा रहे उपग्रह का कक्षीय वेग लगभग 8 मीटर/सेकेंड व परिक्रमण अवधि लगभग 84 मिनट होता है।*
➤ उपग्रहों में भारहीनता (Weightlessness in satellite)
कोई भी मनुष्य अपना भार तभी अनुभव करता है जबकि वह तल (Surface) जिस पर वह खड़ा है, उस पर प्रतिक्रिया बल लगाये। चूँकि अंतरिक्ष यात्री का त्वरण तथा पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले अंतरिक्ष यान का त्वरण बराबर होता है। अतः यात्री का यान के सापेक्ष त्वरण शून्य होता है। इसीलिए यान की सतह द्वारा यात्री पर कोई प्रतिक्रिया बल नहीं लगाया जाता तथा यान में यात्रा कर रहा व्यक्ति भारहीनता का अनुभव करता है।*
➤ लिफ्ट में व्यक्ति का भार (Weight of a man in a lift)
किसी लिफ्ट के साथ जब कोई व्यक्ति ऊर्ध्वाधर दिशा में गति कर रहा होता है, तो उसके भार में परिवर्तन हो सकता है जिसकी अधोलिखित दशाएँ होती हैं। यथा –
(i) जब लिफ्ट a त्वरण से ऊपर जाती है तो व्यक्ति पर प्रतिक्रिया बल ma लगाती है। इस स्थिति में व्यक्ति पर आरोपित कुल प्रतिक्रिया बल = पृथ्वी द्वारा आरोपित प्रतिक्रिया बल (mg)+ लिफ्ट द्वारा आरोपित प्रतिक्रिया बल (ma)। अतः व्यक्ति को अपना भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।* (mg+ma) अर्थात् ma के बराबर भार में वृद्धि हो जाती है।
(ii) जब लिफ्ट a त्वरण से नीचे आती है तो इस दशा में व्यक्ति पर लिफ्ट द्वारा आरोपित प्रतिक्रिया बल ‘-ma’ के बराबर होता है। अतः व्यक्ति के भार में `’ma’ के बराबर कमी हो जाती है व उसका कुल भार (w-mg-ma) के बराबर होता है।
(iii) जब लिफ्ट शून्य त्वरण (a=0) अर्थात् समान वेग से ऊपर या नीचे जाती है तो लिफ्ट द्वारा कोई प्रतिक्रिया बल (i.е. mx0=0) नहीं लगाया जाता। अतः व्यक्ति के भार में कोई परिवर्तन का आभास नहीं होता।*
(iv) यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण,
गुरुत्वीय त्वरण `g’ से अधिक हो (i.e. a > g), तो लिफ्ट में खड़ा व्यक्ति उठकर लिफ्ट की छत से टकरायेगा क्योंकि व्यक्ति का आभासी भार ‘w’ = mg – ma का मान ऋणात्मक हो जायेगा।
(v) यदि नीचे आते वक्त या ऊपर जाते वक्त लिफ्ट की डोरी टूट जाय तो वह मुक्त वस्तु की भाँति नीचे गिरेगी। अतः a = g तथा आभासी भार ‘w’ = mg – mg = 0 अर्थात् व्यक्ति को अपना भार शून्य प्रतीत होगा।*
यह भी पढ़ें: बल (FORCE)
“Simply extraordinary! ✨ Your in-depth analysis and crystal-clear explanations make this a must-read. The amount of valuable information you’ve packed in here is amazing.”