राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) का गठन अगस्त, 1952 में किया गया था। इसका गठन प्रथम पंचवर्षीय योजना (प्रारूप रूपरेखा) में भारत सरकार की कार्यकारिणी की सिफारिश के बाद किया गया। योजना आयोग की तरह ही यह न तो संवैधानिक निकाय है न ही कोई सांविधिक निकाय ।’
गठन
राष्ट्रीय विकास परिषद में निम्नलिखित सदस्य होते हैं:
1. भारत का प्रधानमंत्री (इसके अध्यक्ष या प्रमुख के रूप में)
2. सभी केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (1967 से)
3. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री
4. सभी केंद्रशासित राज्यों के मुख्यमंत्री/प्रशासक
5. योजना आयोग के सदस्य
योजना आयोग का सचिव, राष्ट्रीय विकास परिषद के सचिव के रूप में कार्य करता है। इसे कार्यालय हेतु योजना आयोग द्वारा प्रशासनिक एवं अन्य सहायक उपलब्ध कराए जाते हैं।
उद्देश्य
राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थापना निम्नलिखित उद्देश्यों के तहत की गई है:
1. योजना के कार्यान्वयन में राज्यों के सहयोग को प्राप्त करना।
2. योजना के सहयोग के लिए राष्ट्र के संसाधनों एवं प्रयासों को बढ़ाने एवं विस्तारित करना।
3. सभी अहम क्षेत्रों में सामूहिक आर्थिक नीतियों को प्रोन्नत करना।
4. देश के सभी हिस्सों में संतुलित एवं तीव्र विकास को सुनिश्चित करना।
कार्य
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एनडीसी को निम्नलिखित कार्य दिए गए हैं:
1. राष्ट्रीय योजना को बनाने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करना।
2. योजना आयोग द्वारा बनायी गयी राष्ट्रीय योजना पर विचार करना।
3. योजना के क्रियान्वयन में संसाधनों का अनुमान लगाना और सुझाव देना।
4. राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण सामाजिक एवं आर्थिक नीतियों पर विचार करना।
5. समय-समय पर राष्ट्रीय योजना के कार्यों की समीक्षा करना।
6. राष्ट्रीय योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपायों का सिफारिश करना।
योजना आयोग द्वारा पंचवर्षीय योजना के खाके को पहले यूनियन कैबिनेट के सम्मुख प्रस्तुत किया है। इसकी संस्तुति के बाद इसे राष्ट्रीय विकास परिषद के पास इसकी स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। फिर इसे संसद में पेश किया जाता है और फिर इसकी संस्तुति के बाद इसे आधिकारिक रूप से सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है।
इस प्रकार राष्ट्रीय विकास परिषद, संसद के नीचे सबसे बड़ा निकाय है, जो सामाजिक एवं आर्थिक विकास से संबंधित नीति मामलों के प्रति उत्तरदायी है। यद्यपि इसे योजना आयोग की सलाहकार निकाय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और इसकी सिफारिशें बाध्यकारी नहीं है। यह अपनी सिफारिशों को केंद्र एवं राज्य सरकारों को भेजती है। वर्ष में दो बार इसकी बैठक होना आवश्यक है।
आलोचनात्मक मूल्यांकन
राष्ट्रीय विकास परिषद का पहला एवं प्रमुख कार्य है- केंद्र, राज्य सरकार और योजना आयोग के बीच सेतु की तरह कार्य करना। खासतौर पर योजना के क्षेत्र में योजना कार्यक्रमों की नीतियों में समन्वय स्थापित करना। इस संबंध में इसे काफी सफलता मिली है। इसके अलावा यह केंद्र राज्य फोरम की तरह भी कार्य करती है और राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर सतर्कता बरतते हुए संघीय राजनीतिक व्यवस्था में उत्तरदायित्वों का बंटवारा करती है।
यद्यपि इसकी कार्य व्यवस्था पर दो तरह के विपरीत मत उभरकर सामने आते हैं। एक तरफ इसके विस्तृत एवं शक्तिशाली संयोजन के चलते, इसे ‘सुपर कैबिनेट’ के रूप में बताया जाता है तथापि इसकी सिफारिशें केवल सलाह के रूप में हैं, न कि बाध्य, किंतु इसकी सिफारिशों के पीछे राष्ट्रीय मत होने के कारण इन्हें बहुत मुश्किल से ही नकारा जा सकता है। दूसरी ओर इसे सिर्फ ‘रबड़ की मुहर’ बताया जाता है। नीति संबंधी निर्णय केंद्र सरकार द्वारा पहले ही ले लिए जाते हैं। यह खासतौर पर तब हुआ जब लंबे समय तक केंद्र एवं राज्यों में कांग्रेस का शासन रहा। हालांकि विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के उभरने के बाद एनडीसी ने अपना संघीय चरित्र ग्रहण किया है और राज्यों के साथ राष्ट्रीय योजना के निर्माण की व्यवस्था’ की राष्ट्रीय विकास परिषद के कार्यकलाप को लेकर निम्नलिखित प्रसिद्ध लोगों का विश्लेषण इस प्रकार है:
1. एम ब्रेकरः नेहरू की जीवनी के लेखक टिप्पणी करते हैं- योजना पर एक सर्वोच्च प्रशासनिक एवं सलाहकार निकाय के रूप में ‘एनडीसी’ की स्थापना की गई। कैबिनेट द्वारा मंजूर नीति निर्देशिकाओं को स्थाई रूप से यह लागू करती है। अपने उद्भव के समय से एनडीसी एवं इसकी स्थायी समिति ने वास्तव में योजना आयोग की भूमिका को केवल एक शोध शाखा के रूप में परिवर्तित कर दिया है।
2. एच.एम. पटेलः पूर्व वित्त मंत्री ने महसूस किया योजना आयोग की सलाहकार इकाइयों में समिमलित है। राष्ट्रीय विकास परिषद यह गलत है, जैसा कि इसकी संरचना से स्पष्ट होता है। राष्ट्रीय विकास परिषद वास्तव में योजना आयोग से श्रेष्ठ निकाय है। इसे एक नीति निर्धारक निकाय बनाया गया है लेकिन इसकी सिफारिशें केवल सलाह ही नहीं हैं, वरन नीतिगत निर्णयों में भी शामिल होती हैं।
3. के. संथानमः सुप्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ की राय में राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थिति संघीय भारत में सुपर कैबिनेट की तरह है। यह भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच कैबिनेट की तरह काम करता है।
4. ए.पी. जैनः पूर्व खाद्य मंत्री ने विचार व्यक्त किए कि एनडीसी ने केंद्र एवं राज्य सरकार स्तर के मंत्रिपरिषद से संबंधित कार्यों पर अतिक्रमण किया है। कभी-कभी उल्लिखित लक्ष्यों को बिना मंत्रालय से विचार-विमर्श किए स्वीकृत कर दिया जाता है। एनडीसी विधिक या अपनी संरचना की प्रकृति के अनुसार राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए सक्षम निकाय नहीं है। यह बात, वाद-विवाद और सलाह देता है। लेकिन इसे अपने निर्णयों को केंद्र या राज्य कैबिनेट पर छोड़ देना चाहिए।
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