क्या आपने कभी अपने स्कूल, घर या आसपास ‘के मैदानों में भाँति-भाँति के वृक्ष, झाड़ियाँ, घास तथा पक्षियों को देखा है? क्या वह एक ही प्रकार के हैं या अलग-अलग तरह के हैं? भारत एक विशाल देश है। अतः इसमें आप अनेक प्रकार की जैव रूपों की कल्पना कर सकते हैं।
हमारा देश भारत विश्व के मुख्य 12 जैव विविधता वाले देशों में से एक है। लगभग 47,000 विभिन्न जातियों के पौधे पाए जाने के कारण यह देश विश्व में दसवें स्थान पर और एशिया के देशों में चौथे स्थान पर है। भारत में लगभग 15,000 फूलों के पौधे हैं जो कि विश्व में फूलों के पौधों का 6 प्रतिशत है। इस देश में बहुत से बिना फूलों के पौधे हैं जैसे कि फर्न, शैवाल (एलेगी) तथा कवक (फंजाई) भी पाए जाते हैं। भारत में लगभग 90000 जातियों के जानवर तथा विभिन्न प्रकार की मछलियाँ, ताजे तथा समुद्री पानी की पाई जाती है।
प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ है कि वनस्पति का वह भाग, जो कि मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है और लंबे समय तक उस पर मानवी प्रभाव नहीं पड़ता। इसे अक्षत वनस्पति कहते हैं। अतः विभिन्न प्रकार की कृषिकृत फसलें, फल और बागान, वनस्पति का भाग तो हैं परंतु प्राकृतिक वनस्पति नहीं है।
वनस्पति-जगत शब्द का अर्थ किसी विशेष क्षेत्र किसी समय में पौधों की उत्पत्ति से है। इस तरह प्राणि जगत जानवरों के विषय में बतलाता है।
वनस्पति के प्रकार
हमारे देश में निम्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पाई जाती है (चित्र 5.1)।
(i) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन
(ii) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
(iii) उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ
(iv) पर्वतीय वन
(v) मैंग्रोव वन
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
ये वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों तथा तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं। ये उन क्षेत्रों में भली-भाँति विकसित हैं जहाँ 200 से०मी० से अधिक वर्षा के साथ एक थोड़े समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है। इन वनों में वृक्ष 60 मी० या इससे अधिक ऊँचाई तक पहुँचते हैं। चूँकि ये क्षेत्र वर्ष भर गर्म तथा आर्द्र रहते हैं अतः यहाँ हर प्रकार की वनस्पति – वृक्ष, झाड़ियाँ व लताएँ उगती हैं और वनों में इनकी विभिन्न ऊँचाईयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं। वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता। अतः यह वन साल भर हरे-भरे लगते हैं।
इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्त्व के कुछ वृक्ष आबनूस (एबोनी), महोगनी, रोज़वुड, रबड़ और सिंकोना हैं।
इन वनों में सामान्य रूप से पा, जाने वाले जानवर हाथी, बंदर, लैमूर और हिरण हैं। एक सींग वाले गैंडे, असम और पश्चिमी बंगाल के दलदली क्षेत्र में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त इन जंगलों में कई प्रकार के पक्षी, चमगादड़ तथा कई रेंगने वाले जीव भी पाए जाते हैं।
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
ये भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में फैले हुए वन हैं। इन्हें मानसूनी वन भी कहते हैं और ये उन क्षेत्रों में विस्तृत हैं जहाँ 70 से०मी० से 200 से०मी० तक वर्षा होती है। इस प्रकार के वनों में वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छः से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।
जल की उपलब्धि के आधार पर इन वनों को आर्द्र तथा शुष्क पर्णपाती वनों में विभाजित किया जाता है। इनमें से आर्द्र या नम पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 100 से०मी० 200 से०मी० तक वर्षा होती है। अतः ऐसे वन देश के पूर्वी भागों, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, झारखंड, पश्चिमी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों में पाए जाते है। सागोन इन वनों की सबसे प्रमुख प्रजाति है। बाँस, साल, शीशम, चंदन, रवैर, कुसुम, अर्जुन तथा शहतूत के वृक्ष व्यापारिक महत्त्व वाली प्रजातियाँ है।
शुष्क पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 70 से०मी० से 100 से०मी० के बीच होती है। ये वन प्रायद्वीपीय पठार के ऐसे वर्षा वाले क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदानों में पाए जाते हैं। विस्तृत क्षेत्रों में प्रायः सागोन, साल, पीपल तथा नीम के वृक्ष उगते हैं। इन क्षेत्रों के बहुत बड़े भाग कृषि कार्य में प्रयोग हेतु साफ कर लिए गए हैं और कुछ भागों में पशुचारण भी होता है।
इन जंगलों में पाए जाने वाले जानवर प्रायः सिंह, शेर, सूअर, हिरण और हाथी हैं। विविध प्रकार के पक्षी, छिपकली, साँप और कछुए भी यहाँ पाए जाते हैं।
कंटीले वन तथा झाड़ियाँ
जिन क्षेत्रों में 70 से०मी० से कम वर्षा होती है, वहाँ प्राकृतिक वनस्पति में कंटीले वन तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है जिनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा के अर्थ शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं। अकासिया, खजूर (पाम), यूफोरबिया तथा नागफनी (कैक्टाई) यहाँ की मुख्य पादप प्रजातियाँ है। इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं। इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में चारों ओर फैली होती हैं। पत्तियाँ प्रायः छोटी होती हैं जिनसे वाष्पीकरण कम से कम हो सके। शुष्क भागों में झाड़ियाँ और कंटीले पादप पाए जाते हैं।
इन जंगलों में प्रायः चूहे, खरगोश, लोमड़ी, भेड़िए, शेर, सिंह, जंगली गधा, घोड़े तथा ऊँट पाए जाते हैं।
पर्वतीय वन
पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है। वनस्पति में जिस प्रकार का अंतर हम उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों से टुंड्रा की ओर देखते हैं उसी प्रकार का अंतर पर्वतीय भागों में ऊँचाई के साथ-साथ देखने को मिलता है। 1000 मी० से 2,000 मी० तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती है। 1,500 से 3000 मी० की ऊँचाई के बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़ (पाइन), देवदार, सिल्वर-फर, स्प्रूस, सीडर आदि पाए जाते हैं। ये वन प्रायः हिमालय की दक्षिणी ढलानों, दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक ऊँचाई वाले भागों में पाए जाते हैं। अधिक ऊँचाई पर प्रायः शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं।
प्रायः 3,600 मी० से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है। सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं। जैसे-जैसे हिमरेखा के निकट पहुँचते हैं इन वृक्षों के आकार छोटे होते जाते हैं। अंततः झाड़ियों के रूप के बाद वे अल्पाइन घास के मैदानों में विलीन हो जाते हैं। इनका उपयोग गुज्जर तथा बक्करवाल जैसी घुमक्कड़ जातियों द्वारा पशुचारण के लिए किया जाता है। अधिक ऊँचाई वाले भागों में माँस, लिचन घास, टुंड्रा वनस्पति का एक भाग है।
इन वनों में प्रायः कश्मीरी महामृग, चितरा हिरण, जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बतीय बारहसिंघा, याक, हिम तेंदुआ, गिलहरी, रीछ, आइबैक्स, कहीं-कहीं लाल पांडा, घने बालों वाली भेड़ तथा बकरियाँ पाई जाती हैं।
मैंग्रोव वन
यह वनस्पति तटवर्तीय क्षेत्रों में जहाँ ज्वार-भाटा आते हैं, की सबसे महत्त्वपूर्ण वनस्पति है। मिट्टी और बालू इन तटों पर एकत्रित हो जाती है। घने मैग्रोव एक प्रकार की वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा भाग में यह वनस्पति मिलती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुंदरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनसे मजबूत लकड़ी प्राप्त होती है। नारियल, ताड़, क्योड़ा, वं ऐंगार के वृक्ष भी इन भागों में पाए जाते हैं।
इस क्षेत्र का रॉयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध जानवर है। इसके अतिरिक्त कछुए, मगरमच्छ, घड़ियाल एवं कई प्रकार के साँप भी इन जंगलों में मिलते हैं।
वन्य प्राणी
वनस्पति की भाँति ही. भारत विभिन्न प्रकार की प्राणी संपत्ति में भी धनी है। यहाँ जीवों की लगभग 90000 प्रजातियाँ मिलती हैं। देश में लगभग 2,000 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह कुल विश्व का 13 प्रतिशत है। यहाँ मछलियों की 2,546 प्रजातियाँ हैं जो विश्व की लगभग 12 प्रतिशत है। भारत में विश्व के 5 से 8 प्रतिशत तक उभयचरी, सरीसृप तथा स्तनधारी जानवर भी पाए जाते हैं।
स्तनधारी जानवरों में हाथी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। ये असम, कर्नाटक और केरल के उष्ण तथा आर्द्र वनों में पाए जाते हैं। एक सींग वाले गैंडे अन्य जानवर हैं जो पश्चिमी बंगाल तथा असम के दलदली क्षेत्रों में रहते हैं। कच्छ के रन तथा थार मरुस्थल में क्रमशः जंगली गधे तथा ऊँट रहते हैं। भारतीय भैंसा, नील गाय, चौसिंघा, छोटा मृग (गैजल) तथा विभिन्न प्रजातियों वाले हिरण आदि कुछ अन्य जानवर है जो भारत में पाए जाते हैं। यहाँ बंदरों की भी अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
औषधीय पावप
भारत प्राचीन समय से अपने मसालों तथा जड़ी बूटियों के लिए विख्यात रहा है। आयुर्वेद में लगभग 2,000 पादपों का वर्णन है और कम से कम 500 तो निरंतर प्रयोग में आते रहे हैं। ‘विश्व संरक्षण संघ’ ने लाल सूची के अंतर्गत 352 पादपों की गणना की है जिसमें से 52 पादप अति संकटग्रस्त हैं और 49 पादपों को विनष्ट होने का खतरा है। भारत में प्रायः औषधि के लिए प्रयोग होने वाले कुछ निम्नलिखित पादप हैं:
सर्पगंधा जामुन : यह रक्तचाप के निदान के लिए प्रयोग होता है और केवल भारत में ही पाया जाता है।
जामुन : पके हुए फल से सिरका बनाया जाता है जो कि वायुसारी और मूत्रवर्धक है और इसमें पाचन शक्ति के भी गुण हैं। बीज का बनाया हुआ पाउडर मधुमेह (Diabetes) रोग में सहायता करता है।
अर्जुन : ताजे पत्तों का निकाला हुआ रस कान के दर्द के इलाज में सहायता करता है। यह रक्तचाप को नियमिता के लिए भी लाभदायक है।
बबूल : इसके पत्ते आँख की फुंसी के लिए लाभदायक हैं। इससे प्राप्त गोद का प्रयोग शारीरिक शक्ति की वृद्धि के लिए होता है।
नीम: जैव और जीवाणु प्रतिरोधक है।
तुलसी पादप : जुकाम और खाँसी की दवा में इसका प्रयोग होता है।
कचनार : फोड़ा (अल्सर) व दमा रोगों के लिए प्रयोग होता है। इस पौधे की जड़ और कली पाचन शक्ति में सहायता करती है।
अपने क्षेत्र के औषधीय पादपों की पहचान करो। कौन से पौधे औषधि के लिए प्रयोग होते हैं और उस स्थान के लोग उनका कौन-सी बीमारियों के लिए प्रयोग करते हैं। प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र मनुष्य के जीवन के लिए अनिवार्य है। क्या यह संभव है कि प्राकृतिक पर्यावरण का निरंतर होता जा रहा विनाश रोका जा सके?
भारत विश्व का अकेला देश है जहाँ शेर तथा बाघ दोनों पाए जाते हैं। भारतीय शेरों का प्राकृतिक वास स्थल गुजरात में गिर जंगल है। बाघ मध्य प्रदेश तथा झारखंड के वनों, पश्चिमी बंगाल के सुंदरवन तथा हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। बिल्ली जाति के सदस्यों में तेंदुआ भी है। यह शिकारी जानवरों में मुख्य है।
हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले जानवर अपेक्षाकृत कठोर जलवायु को सहन करने वाले होते हैं जो अत्यधिक ठंड में भी जीवित रहते हैं। लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों में याक पाए जाते हैं जो गुच्छेदार सींगो वाला बैल जैसा जीव है जिसका भार लगभग एक टन होता है। तिब्बतीय बारहसिंघा, भारल (नीली भेड़), जंगली भेड़ तथा कियांग (तिब्बती जंगली गधे) भी यहाँ पाए जाते हैं। कहीं-कहीं लाल पांडा भी कुछ भागों में मिलते हैं।
नदियों, झीलों तथा समुद्री क्षेत्रों में कछुए, मगरमच्छ और घड़ियाल पाए जाते हैं। घड़ियाल, मगरमच्छ की प्रजाति का एक ऐसा प्रतिनिधि है जो विश्व में केवल भारत में पाया जाता है।
भारत में अनेक रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं। मोर, बत्तख, तोता, मैना, सारस तथा कबूतर आदि कुछ पक्षी प्रजातियाँ हैं जो देश के वनों तथा आर्द्र क्षेत्रों में रहती हैं।
हमने अपनी फसलें जैव-विविध पर्यावरण से चुनी है यानि खाने योग्य पौधों के निचय से। हमने बहुत से औषधि पादपों का प्रयोग कर उनका चुनाव किया है। दूध देने वाले पशु भी प्रकृति द्वारा दिए बहुत सारे जानवरों में से चुने गए हैं। जानवर हमें बोझा ढोने, कृषि कार्य तथा यातायात के साधन के रूप में मदद करते हैं। इनसे माँस, एवं अंडे भी प्राप्त होते हैं। मछली से पौष्टिक आहार मिलता है। बहुत से कीड़े-मकौड़े फसलों, फलों और वृक्षों के परागण में मदद करते हैं और हानिकारक कीड़ों पर जैविक नियंत्रण रखते हैं। प्रत्येक प्रजाति का पारिस्थितिक तंत्र में योगदान है। अतः उनका संरक्षण अनिवार्य है। जैसा पहले बताया गया है कि मनुष्यों द्वारा पादपों और जीवों के अत्यधिक उपयोग के कारण पारिस्थतिक तंत्र असंतुलित हो गया है। लगभग 1300 पादप प्रजातियाँ संकट में हैं तथा 20 प्रजातियाँ विनष्ट हो चुकी हैं। काफी वन्य जीवन प्रजातियाँ भी संकट में हैं और कुछ विनष्ट हो चुकी है।
पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन का मुख्य कारण लालची व्यापारियों का अपने व्यवसाय के लिए अत्यधिक शिकार करना है। रासायनिक और औद्योगिक अवशिष्ट तथा तेज़ाबी जमाव के कारण प्रदूषण, विदेशी प्रजातियों का प्रवेश, कृषि तथा निवास के लिए वनों की अंधाधुन कटाई पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन का कारण हैं।
अपने देश की पादप और जीव संपत्ति की सुरक्षा के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं :
(i) देश में अठारह जीव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र) स्थापित किए गए हैं। इनमें से बारह सुंदरवन, नंदादेवी, मन्नार की खाड़ी, नीलगिरी, नाकरेक, ग्रेट निकोबार, सिमलीपाल, पंचमढ़ी, अचनकमर-अमरकंटक, अगस्त्यमलाई, कंचनजंगा और पन्ना की गणना विश्व के जीव मंडल निचय में की गई है।
(ii) सन् 1992 से सरकार द्वारा पादप उद्यानों को वित्तीय तथा तकनीकी सहायता देने की योजना बनाई है।
(iii) शेर संरक्षण, गैंडा संरक्षण, भारतीय भैसा संरक्षण तथा पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन के लिए कई योजनाएँ बनाई गई हैं।
(iv) 106 नेशनल पार्क, 573 वन्य प्राणी अभयवन और कई चिड़ियाघर राष्ट्र की पादप और जीव संपत्ति की रक्षा के लिए बनाए गए हैं।
हम सभी को अपनी अति जीविता के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के महत्व को समझना चाहिए। यह तब संभव है जब प्राकृतिक पर्यावरण का अंधविनाश तत्काल समाप्त कर दिया जाए।
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अभ्यास
1. वैकल्पिक प्रश्न
(i) रबड़ का संबंध किस प्रकार की वनस्पति से है?
(क) टुंड्रा
(ख) हिमालय
(ग) मैग्रोव
(घ) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
Ans. (घ) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
(ii) सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं?
(क) 100 से०मी०
(ख) 70 से०मी०
(ग) 50 से०मी०
(घ) 50 से०मी० से कम वर्षा
Ans. (क) 100 से०मी०
(iii) सिमलीपाल जीव मंडल निचय कौन-से राज्य में स्थित है?
(क) पंजाब
(ख) दिल्ली
(ग) ओडिशा
(घ) पश्चिम बंगाल
Ans. (ग) ओडिशा
(iv) भारत के कौन-से जीव मंडल निचय विश्व के जीव मंडल निचयों में लिए गए हैं?
(क) मानस
(ख) मन्नार की खाड़ी
(ग) नीलगिरी
(घ) पन्ना
Ans. (क) मानस
2. संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न :
(i) भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्वों द्वारा निर्धारित होता है?
Ans. भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण निम्नलिखित तत्वों द्वारा निर्धारित होता है-
● भूभाग
● मृदा
● तापमान
● सूर्य का प्रकाश
● वर्षण
(ii) जीव मंडल निचय से क्या अभिप्राय है, कोई दो उदाहरण दो।
Ans. जीव मंडल निचय: एक संरक्षित जीव मंडल जिसका संरक्षण इस प्रकार किया जाता है कि न केवल इसकी जैविक भिन्नता संरक्षित की जाती है अपितु इसके संसाधनों का प्रयोग भी स्थानीय समुदायों के लाभ हेतु टिकाऊ तरीके से किया जाता है। उदाहरण, नीलगिरी, सुंदरबन।
(iii) कोई दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबंधीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं।
Ans. उष्ण कटिबंधीय वर्षा – इन वनों में सामान्य रूप से पाए जाने वाले जानवर हाथी, बंदर, लैमूर और हिरण हैं। एक सींग वाले गैंडे, असम और पश्चिमी बंगाल के दलदली क्षेत्र में मिलते हैं।
पर्वतीय वन – इन वनों में प्राय: कश्मीरी महामृग, चितरा हिरण, जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बती बारहसिंघा, याक, हिम, तेंदुआ, गिलहरी, रिछ, आईबैक्स, कहीं-कहीं लाल पांडा, घने बालों वाली भेड़ तथा बकरियां पाई जाती हैं।
3. निम्नलिखित में अंतर कीजिए:
(i) वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत
Ans.
वनस्पति जगत | प्राणी जगत |
पौधों को दो वर्गों फूल वाले पोथे तथा बिना फूल वाले पौधे के रूप में बाँटा जाता है। | भोजन की आदत के आधार पर प्राणियों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है – 1. शाकाहारी जीव, 2. मांसाहारी जीव। |
हमारे देश में विविध प्रकार की वनस्पति मिलती है। यहाँ उष्ण कटिबंधीय वनस्पति से लेकर ध्रुवीय वनस्पति तक के दर्शन होते हैं। | कुछ वन्यप्राणी विलुप्त होने की स्थिति में हैं, उनके संरक्षण के लिए विशेष प्रयत्न किए जा रहे है। |
किसी प्रदेश या क्षेत्र में स्वतः ही पैदा होने वाले हरित स्वरूप को वनस्पति जगत कहते हैं। | सूक्ष्म जीवाणु से लेकर विशालकाय ह्वेल तथा हाथी जीवों की श्रेणी प्राणी जगत कहलाती है। |
प्राकृतिक वनस्पति के आवरण में वन, झाड़ियों तथा घास भूमियों को शामिल किया जाता है। | प्राणियों को तीन वर्गों में बाँटा गया है (1) थल चर, (ii) जल-चर, (iii) नभ-चर। |
भारत में पौधों की 47,000 प्रकार की जातियाँ पाई जाती हैं। | हमारे देश के प्राणियों में भी विविधता पाई जाती है। यहाँ लगभग 89,000 जातियों के जीव-जन्तु पाए जाते हैं। |
पौधों की 5,000 जातियाँ तो ऐसी हैं जो केवल भारत में पाई जाती हैं। | 2,500 जातियों की मछलियाँ तथा 2,000 जातियाँ पक्षियों की पाई जाती हैं। |
(ii) सदाबहार और पर्णपाती वन
Ans.
सदाबहार वन | पर्णपाती वन |
ये उन क्षेत्रों में पाएजाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 200 से. मी. या इससे अधिक होती है। | ये उन क्षेत्रों में पाएजाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 200 से. मी. या के बीच होती है। |
इन वनों में पौधें अपने पत्ते वर्ष के अलग- अलग महीनों में गिरते हैं जिससे ये पुरे वर्ष हरे – भरे नजर आते हैं। | इन वनों में पौधें अपने पत्ते शुष्क गर्मी के मौसम में 6 से 8 सप्ताह के लिए गिरा देते हैं। |
इन वनों में प्रायः पाने जाने वाले पशुओं में हाथी, बंदर, लैमूर, एक सींग वाले गौंडे और हिरण हैं। | इन वनों में प्रायः पाने जाने वाले पशुओं में शेर और बाघ हैं। |
इन पशुओं के अतिरिक्त इन वनों में बहुत से पक्षी, चमगादड़, बिच्छु एवं धोंधे आदि पाए जाते हैं। | इन पशुओं के अतिरिक्त इन वनों में बहुत से पक्षी, छिपकली सांप, कछुए आदि पाए जाते हैं। |
ये वन पश्चिमी घाट की ढलनों, लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार अराम के ऊपरी भागों, तटीय तमिलनाडु, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा एवं भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में पाए जाते हैं। | ये वन भारत के पूर्वी भागों, उत्तर – पूर्वी राज्यों हिमालय के पारा की पहाड़ियों झारखंड, पश्चिम उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा पर्वी घाट के पूर्वी ढलानों मध्य प्रदेश तथा बिहार में पाए जाते हैं। |
इन वनों में प्रायः पाये जाने वाले वृक्षों में आबनूस, महोगनी, रोजवुड आदि हैं। | इन वनों में पाए जाने वाले पेड़ों में सागोन, बाँस, साल, शीशम चंदन, खेर नीम आदि प्रमुख हैं। |
4. भारत में विभिन्न प्रकार की पाई जाने वाली वनस्पति के नाम बताएँ और अधिक ऊँचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति का ब्यौरा दीजिए।
Ans. भारत में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की वनस्पति इस प्रकार है:
(क) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
(ख) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
(ग) उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ
(घ) पर्वतीय वन
(ङ) मैंग्रोव वन
उच्च प्रदेशों की वनस्पतिः
(क) पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है। वनस्पति में जिस प्रकार का अंतर हम उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों से टुंड्रा की ओर देखते हैं उसी प्रकार का अंतर पर्वतीय भागों में ऊँचाई के साथ-साथ देखने को मिलता है।
(ख) 1000 मी. से 2000 मी. तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आई शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती है।
(ग) 1500 से 3000 मी. की ऊँचाई के बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़, देवदार, सिल्वर–फर, स्पूस, सीडर आदि पाए जाते हैं।
(घ) ये वन प्रायः हिमालय की दक्षिणी ढलानों, दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक ऊँचाई वाले भागों में पाए जाते हैं।
(ङ) अधिक ऊँचाई पर प्रायः शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं। प्रायः 3600 मी. से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है। सिल्वर–फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं।
5. भारत में बहुत संख्या में जीव और पादप प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं उदाहरण सहित कारण दीजिए।
Ans. मनुष्य के लालच के कारण जीवों तथा पादपों को अति दोहन हो रहा है। मनुष्य पेड़ों को काटकर तथा पशुओं को मारकर पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन पैदा कर रहा है। इसके कारण बहुत से जीव और पादप प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं।
या
भारत में बहुत से संख्या में जीव जंतुओं की प्रजाति के संकटग्रस्त होने के निम्नलिखित कारण है-
(i) खाल, चिकित्सा उद्देश्य और ऊनी वस्र आदि के लिए जंतुओं का वध किया जाता हैं
(ii) वनोन्मूलन।
(iii) शिकार का अतिक्रमण।
(iv) रसायनिक और औद्योगिक अपशिष्टों ने जलीय जीवन को अव्यवस्थित कर दिया है।
भारत में बहुत संख्या में पादप प्रजातियाँ निम्नलिखित कारणों से संकटग्रस्त हैं-
(i) नगरीय विकास आदि के लिए जंगलो की कटाई।
(ii) सड़क, बांध निर्माण आदि के लिए पेड़ो की कटाई।
6. भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी क्यों है?
Ans. भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी है क्योंकि भारत एक विशाल देश है इसलिए यहां विभिन्न प्रकार की जलवायु तथा मिट्टी पाई जाती है । परिणाम स्वरुप यहां विभिन्न प्रकार के वनस्पति मिलती है। किसी प्रदेश की प्राकृतिक वनस्पति का स्वरूप वहां की जलवायु दशाओं तथा मृदा पर निर्भर करता है। कहीं घने वन दिखाई देते हैं तो कोई घास भूमियां और झाड़ियां। वनस्पति की इस विविधता ने विभिन्न प्रजातियों के वन्य प्राणियों को आश्रय दिया है।
या
भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धानी निम्नलिखित कारणों से हैं-
(i) पूर्वी तथा पश्चिम में भारत का विस्तार बहुत अधिक है।
(ii) रेगिस्तानी जलवायु से लेकर ठंडे हिमालय प्रदेश तक भारत की जलवायु की स्थिति बहुत विविधतापूर्ण है।
(iii) भारत में कुछ इलाके ऐसे हैं जहाँ कम वर्षा होती हैं वही दूसरी तरफ संसार का सबसे अधिक वर्षा वाला इलाका भी भारत में ही है।