आपने अध्याय 1 में पढ़ा है कि पादप (पौधे) अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्वयं बना सकते हैं परन्तु प्राणी (जंतु) ऐसा नहीं कर सकते। प्राणी अपना भोजन प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पौधों से प्राप्त करते हैं। कुछ प्राणी सीधे ही पौधों का भक्षण करते हैं जबकि कई अन्य उन जंतुओं को अपना आहार बनाते हैं जो पौधे खाते हैं। कुछ जंतु, पौधों एवं जंतु दोनों को खाते हैं। याद रखिए, कि मानव सहित सभी जीवों को वृद्धि करने, शरीर को स्वस्थ एवं गतिशील बनाए रखने के लिए खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। प्राणियों के पोषण में पोषक तत्त्वों की आवश्यकता, आहार के अंतर्ग्रहण (भोजन ग्रहण करने) की विधि और शरीर में इसके उपयोग की विधि सन्निहित (सम्मिलित) हैं।
आप कक्षा 6 में पढ़ चुके हैं कि खाद्य (भोजन) के अनेक संघटक हैं। स्मरण कर उनके नाम लिखिएः
कार्बोहाइड्रेट जैसे कुछ संघटक जटिल पदार्थ हैं। अनेक जंतु इन जटिल पदार्थों का उपयोग सीधे इसी रूप में नहीं कर सकते। अतः उन्हें सरल पदार्थों में बदलना आवश्यक है, जैसा निम्न आरेख द्वारा दिखाया गया है।
जटिल खाद्य पदार्थों का सरल पदार्थों में परिवर्तित होना या टूटना विखंडन कहलाता है तथा इस प्रक्रम को पाचन कहते हैं।
2.1 खाद्य अंतर्ग्रहण की विभिन्न विधियाँ
भोजन के अंतर्ग्रहण की विधि विभिन्न जीवों में भिन्न-भिन्न होती हैं। मधुमक्खी एवं मर्मर पक्षी (हमिंग बर्ड) पौधों का मकरंद चूसते हैं। मानव एवं कुछ अन्य जंतुओं में शिशु माँ का दूध पीते हैं। अजगर जैसे सर्प वंश के प्राणी अपने शिकार को समूचा ही निगल जाते हैं। कुछ जलीय प्राणी अपने आस-पास पानी में तैरते हुए खाद्य कणों को छान कर उनका भक्षण करते हैं।
क्रियाकलाप क्रियाकलाप 2.1
सारणी 2.1 में दिए गए जंतुओं के भोजन के प्रकार एवं पोषण प्राप्त करने की विधि कौन-सी है? अपने
सारणी 2.1 अंतर्ग्रहण की विभिन्न विधियाँ
जंतु | आहार का प्रकार | आहार की विधि |
घोंघा | – | – |
चींटी | – | – |
चील | – | – |
मर्मर पक्षी | – | – |
जूँ | – | – |
मच्छर | – | – |
तितली | – | – |
मक्खी | – | – |
(आहार की विधि छीलना, चबाना, काटना (वेधन), पकड़ना तथा निगलना, साइफनी, स्पंजी, चूषण इत्यादि)
अद्भुत सत्य
स्टारफिश (तारा मछली चित्र 2.1) कैल्सियम कार्बोनेट के कठोर कवच वाले जंतुओं का आहार करती है। कवच खोलने के बाद यह अपने मुख से अपना आमाशय बाहर निकालती है तथा जंतु के कोमल भागों को खाती है। आमाशय वापस शरीर में चला जाता है तथा आहार धीरे-धीरे पचता है।
प्रेक्षण सारणी 2.1 में लिखिए। आप देखेंगे कि सारणी के नीचे लिखी गई खाद्य अंतर्ग्रहण की विधियाँ उन विधियों का विवरण लिखने में सहायक हैं, जिनसे जंतु भोजन का अंतर्ग्रहण करते हैं।
2.2 मानव में पाचन
हम अपने मुख द्वारा भोजन का अंतर्ग्रहण करते हैं, इसे पचाते हैं तथा फिर उसका उपयोग करते हैं। आहार का बिना पचा भाग मल के रूप में निष्कासित किया जाता है। क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि शरीर के अंदर भोजन का क्या होता है? भोजन एक सतत् नली से गुजरता है, जो मुख-गुहिका से प्रारम्भ होकर गुदा तक जाती है। इस नली को विभिन्न भागों में बाँट सकते हैं- (i) मुख-गुहिका; (ii) ग्रास-नली या ग्रसिका; (iii) आमाशय; (iv) क्षुद्रांत्र (छोटी आँत); (v) बृहदांत्र (बड़ी आँत) जो मलाशय से जुड़ी होती है तथा (vi) मलद्वार अथवा गुदा। क्या यह बहुत लंबा मार्ग नहीं है? ये सभी भाग मिलकर आहार नाल (पाचन नली) का निर्माण करते हैं। जैसे-जैसे भोजन विभिन्न भागों से गुजरता है, उसके विभिन्न घटकों का पाचन भी क्रमिक रूप से होता जाता है। आमाशय की आंतरिक भित्ति, क्षुद्रांत्र तथा आहार नाल से संबद्ध विभिन्न ग्रंथियाँ जैसे कि लाला-ग्रंथि, यकृत, अग्न्याशय पाचक रस स्स्रावित करती हैं। पाचक रस जटिल पदार्थों को उनके सरल रूप में बदल देते हैं। ग्रंथियाँ मिलकर पाचन तंत्र करते हैं। आहार नाल एवं संबद्ध (चित्र 2.2) का निर्माण करते हैं।
आइए, अब हम जानें कि आहार नाल के विभिन्न भागों में भोजन का क्या होता है।
मुख एवं मुख-गुहिका
भोजन का अंतर्ग्रहण मुख द्वारा होता है। आहार को शरीर के अंदर लेने की क्रिया अंतर्ग्रहण कहलाती है।
हम दाँतों की सहायता से भोजन चबाते हैं तथा यांत्रिक विधि द्वारा उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में पीस डालते हैं। प्रत्येक दाँत मसूड़ों के बीच अलग-अलग गर्तिका (सॉकेट) में धँसा होता है (चित्र 2.3)। हमारे दाँतों की आकृति भिन्न-भिन्न है तथा उनके कार्य भी भिन्न हैं। इसके अनुसार उन्हें अलग-अलग नाम दिए गए हैं (चित्र 2.3)।
क्रियाकलाप 2.2
अपने हाथ धोइए। दर्पण में देखते हुए अपने दाँतों की गणना कीजिए। अपनी तर्जनी से दाँतों को छूकर महसूस कीजिए। आपके मुख में कितने प्रकार के दाँत हैं? एक सेब अथवा रोटी का टुकड़ा लेकर उसे काटिए। आप उसे काटने (कर्तन) एवं दंशन के लिए किन दाँतों का उपयोग करते हैं। कौन-से दाँत खाद्य पदार्थों को चीरने (वेधन) और फाड़ने के काम आते हैं। उन दाँतों को भी पहचानिए, जो चबाने एवं पीसने के काम आते हैं? अपने प्रेक्षण सारणी 2.2 में लिखिए।
हमारे मुख में लाला-ग्रंथि होती है, जो लाला रस (लार) स्रावित करती है। क्या आप जानते हैं कि लाला रस का भोजन पर क्या प्रभाव पड़ता है? आइए इसका पता लगाएँ।
सारणी 2.2 दाँत के प्रकार एवं उनके कार्य
दाँत के प्रकार | निचला जबड़ा | ऊपरी जबड़ा | योग |
कर्तन एवं दंशन वाले | – | – | – |
चीरने एवं फाड़ने वाले | – | – | – |
चबाने एवं पीसने वाले | – | – | – |
दूध के तथा स्थायी | – | – | – |
क्या आपको याद है कि कुछ वर्ष पूर्व आपके दाँत गिरने लगे थे? हमारे दाँतों का प्रथम सेट शैशवकाल में निकलता है तथा लगभग 8 वर्ष की आयु तक ये सभी दाँत गिर जाते हैं। इन्हें दूध के दाँत कहते हैं। इन दाँतों के स्थान पर दूसरे दाँत निकलते हैं, जिन्हें स्थायी दाँत कहते हैं। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के स्थायी दाँत पूरे जीवन भर बने रहते हैं तथापि वृद्धावस्था में ये प्रायः गिरने लगते हैं।
क्रियाकलाप 2.3
दो परखनलियाँ लीजिए। उन्हें ‘A’ तथा ‘B’ चिह्नित कीजिए। परखनली ‘A’ में एक चम्मच उबले चावल डालिए। एक चम्मच उबले चावल मुख में लेकर 3-5 मिनट तक चबाइए तथा इन्हें दूसरी परखनली ‘B’ में लीजिए। दोनों परखनलियों में 3-4 mL जल डालिए (चित्र 2.4)। अब दोनों परखनलियों में आयोडीन विलयन की 2-3 बूंदे डालिए तथा उनका प्रेक्षण कीजिए। आप परखनली ‘A’ तथा ‘B’ में क्या अंतर देखते हैं? परखनली के रंग में परिवर्तन क्यों आता है? परिणामों की चर्चा अपने मित्रों एवं अध्यापक से कीजिए। लाला रस चावल के मंड को शर्करा में बदल देता है।
मिठाइयाँ और दंत क्षय
सामान्यतः हमारे मुख में जीवाणु पाए जाते हैं, परंतु उनसे हमें कोई हानि नहीं होती। फिर भी खाने के पश्चात् यदि हम दाँत एवं मुख साफ़ न करें, तो मुख में अनेक हानिकारक जीवाणु वास करके वृद्धि करने लगते हैं। ये जीवाणु दाँतों के बीच फँसे भोजन की शर्करा का विघटन कर अम्ल निर्मोचित करते हैं। (यह जानने के लिए कि अम्ल क्या हैं, अध्याय 4 देखिए।) यह अम्ल धीरे-धीरे दाँत को क्षति पहुँचाते हैं (चित्र 2. 5)। इसे दंत क्षय कहते हैं। यदि समय रहते इसका उपचार न किया जाए, तो दाँतों में असह्य पीड़ा होने लगती है तथा चरम अवस्था में टूट कर गिर जाते हैं। चॉकलेट, ठंडे पेय तथा चीनीयुक्त मिठाइयाँ व अन्य पदार्थ दंत क्षय के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी होते हैं।
अतः प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन कम-से-कम दो बार ब्रश अथवा दातुन करनी चाहिए तथा कुछ भी खाने के तुरंत बाद कुल्ला करना चाहिए। मुख के अंदर गंदी अँगुली अथवा बिना धुली वस्तु नहीं डालनी चाहिए।
जीभ एक माँसल पेशीय अंग है, जो पीछे की ओर मुख-गुहिका के अधर तल (चित्र 2.6) से जुड़ी होती है। इसका अग्र भाग स्वतंत्र होता है और किसी भी दिशा में मुड़ सकता है। क्या आपको जीभ के कार्य ज्ञात हैं? हम बोलने के लिए जीभ का उपयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त यह भोजन में लार को मिलाने का कार्य करती है तथा निगलने में भी सहायता करती है। जीभ द्वारा ही हमें स्वाद का पता चलता है। जीभ पर स्वाद-कलिकाएँ होती हैं, जिनकी सहायता से हमें विभिन्न प्रकार के स्वाद का पता चलता है। क्रियाकलाप 2.4 द्वारा हम स्वाद-कलिकाओं की स्थिति का पता लगा सकते हैं।
क्रियाकलाप 2.4
1. निम्न पदार्थों के अलग-अलग विलयन तैयार कीजिए-
(i) चीनी का विलयन; (ii) नमक का विलयन;
(iii) नींबू का रस; (iv) नीम की पत्ती अथवा करेले का रस ।
2. अपने किसी मित्र की आँखों पर पट्टी बाँधकर उससे अपनी जीभ बाहर निकालकर सीधी रखने को कहिए।
3. चित्र 2.6 में दिखाए गए जीभ के विभिन्न क्षेत्रों के ऊपर उपरोक्त में से किसी एक विलयन के नमूने की एक-दो बूँदें रखिए। विलयन रखने के लिए दाँत कुरेदने की सींक का उपयोग करें। इस प्रक्रिया को अन्य विलयनों के साथ दोहराइए। प्रत्येक विलयन के लिए पृथक-पृथक सींक का उपयोग कीजिए।
4. अपने मित्र से पूछिए कि जीभ के किस क्षेत्र से उसे मीठे, नमकीन, खट्टे एवं कड़वे स्वाद का अनुभव होता है।
5. अब अपने प्रेक्षण रिकॉर्ड करें तथा चित्र 2.6 में दिखाए गए प्रत्येक क्षेत्र में उस स्वाद का नाम लिखिए जिसका संवेदन (अनुभव) उसके द्वारा होता है।
अन्य सहपाठियों के साथ इस क्रियाकलाप को दोहराइए।
भोजन नली (ग्रसिका)
निगला हुआ ग्रास-नली अथवा ग्रसिका में जाता है। चित्र 2.2 देखिए। ग्रसिका गले एवं वक्ष से होती हुई जाती है। ग्रसिका की भित्ति के संकुचन से भोजन नीचे की ओर सरकता जाता है। वास्तव में, संपूर्ण आहार नाल संकुचित होती रहती है तथा यह गति भोजन को (चित्र 2.7) नीचे की ओर ध केलती रहती है। कभी-कभी हमारा आमाशय खाए हुए भोजन को स्वीकार नहीं करता, फलस्वरूप वमन द्वारा उसे बाहर निकाल दिया जाता है। ऐसी घटना याद कीजिए, जब भोजन के बाद आपने वमन किया हो तथा इसके कारण के विषय में सोचिए। अपने अभिभावकों एवं अध्यापक से इस विषय पर चर्चा कीजिए।
आमाशय
आमाशय मोटी भित्ति वाली एक थैलीनुमा संरचना है। यह चपटा एवं ‘J’ की आकृति का होता है तथा आहार नाल का सबसे चौड़ा भाग है। यह एक ओर ग्रसिका (ग्रास नली) से खाद्य प्राप्त करता है तथा दूसरी ओर क्षुद्रांत्र में खुलता है।
कभी-कभी जब आप जल्दी-जल्दी खाते हैं, अथवा खाते समय बात करते हैं, आपको खाँसी उठती है या हिचकी आती है अथवा घुटन का अनुभव होता है। यह खाद्य कणों के श्वास नली में प्रवेश करने के कारण होता है। श्वास नली नासिका से आने वाली वायु को फेफड़ों तक ले जाती है। यह ग्रसिका के साथ-साथ चलती है। परंतु, ग्रसनी में वायु एवं भोजन मार्ग एक ही होते हैं। फिर भोजन को श्वास नली में प्रवेश करने से किस प्रकार रोका जाता है? भोजन निगलने के समय एक माँसल रचना वाल्व का कार्य करती है, जो श्वासनली को ढक लेती है तथा भोजन को ग्रसनी में भेज देता है। संयोगवश यदि, भोजन के कण श्वास नली में प्रवेश कर जाते हैं, तो हमें घुटन का अनुभव होता है तथा हिचकी आती है या खाँसी उठती है।
आमाशय का आंतरिक अस्तर (सतह) श्लेष्मल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पाचक रस स्रावित करता है। श्लेष्मल आमाशय के आंतरिक अस्तर को सुरक्षा प्रदान करता है। अम्ल अनेक ऐसे जीवाणुओं को नष्ट करता है, जो भोजन के साथ वहाँ तक पहुँच जाते हैं। साथ ही यह माध्यम को अम्लीय बनाता है जिससे पाचक रसों को क्रिया करने में सहायता मिलती है। पाचक रस (जठर रस) प्रोटीन को सरल पदार्थों में विघटित कर देता है।
क्षुद्रांत्र
क्षुद्रांत्र लगभग 7.5 मीटर लंबी अत्यधिक कुंडलित नली है। यह यकृत एवं अग्न्याशय से स्त्राव प्राप्त करती है। इसके अतिरिक्त इसकी भित्ति से भी कुछ रस स्त्रावित होते हैं।
यकृत गहरे लाल-भूरे रंग की ग्रंथि है, जो उदर के ऊपरी भाग में दाहिनी (दक्षिण) ओर अवस्थित होती है। यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। यह पित्त रस स्त्रावित करती है, जो एक थैली में संग्रहित होता रहता है, इसे पित्ताशय (चित्र 2.2) कहते हैं। पित्त रस वसा के पाचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अग्न्याशय हल्के पीले रंग की बड़ी ग्रंथि है, जो आमाशय के ठीक नीचे स्थित होती है (चित्र 2.2)। ‘अग्न्याशयिक रस’, कार्बोहाइड्रेट्स एवं प्रोटीन पर क्रिया करता है तथा इनको उनके सरल रूप में परिवर्तित कर देता है। आंशिक रूप से पचा भोजन अब क्षुद्रांत्र के निचले भाग में पहुँचता है जहाँ आंत्र रस पाचन क्रिया को पूर्ण कर देता है। कार्बोहाइड्रेट सरल शर्करा जैसे कि ग्लूकोस में परिवर्तित हो जाते हैं। ‘वसा’, वसा अम्ल एवं ग्लिसरॉल में तथा ‘प्रोटीन’, ऐमीनो अम्ल में परिवर्तित हो जाती है।
एक विलक्षण दुर्घटना द्वारा आमाशय की कार्य प्रणाली की खोज हुई। सन् 1822 ई. में एलेक्सिस सेंट मार्टिन नामक व्यक्ति गोली लगने के कारण बुरी तरह से घायल हुआ। गोली से वक्ष क्षतिग्रस्त हो गया तथा आमाशय में एक छिद्र हो गया। उसे विलियम ब्यूमॉण्ट नामक अमरीकी सैनिक चिकित्सक के पास ले जाया गया। चिकित्सक ने उसकी जान तो बचा ली परन्तु वह आमाशय का छिद्र भली-भाँति बंद न कर सका तथा उसने छिद्र को पट्टी से (चित्र 2.8) ढक दिया। ब्यूमॉण्ट को छिद्र में से आमाशय के अंदर झाँकने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ। उसने कुछ रोचक प्रेक्षण किए।
ब्यूमॉण्ट ने देखा कि आमाशय भोजन का मंथन कर रहा था। इसकी भित्ति से तरल स्रावित हो रहा था, जो भोजन को पचा सकता था। उसने यह भी देखा कि आमाशय क्षुद्रांत्र में तभी खुलता है, जब आमाशय में भोजन का पाचन पूरा हो जाता है।
क्षुद्रांत्र में अवशोषण
पचा हुआ भोजन अवशोषित होकर क्षुद्रांत्र की भित्ति में स्थित रुधिर वाहिकाओं में चला जाता है। इस प्रक्रम को अवशोषण कहते हैं। क्षुद्रांत्र की आंतरिक भित्ति पर अँगुली के समान उभरी हुई संरचनाएँ होती हैं, जिन्हें दीर्घरोम अथवा रसांकुर कहते हैं। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि दीर्घरोम की आंत्र में क्या भूमिका है? दीर्घरोम पचे हुए भोजन के अवशोषण हेतु तल क्षेत्र बढ़ा देते हैं। प्रत्येक दीर्घरोम में सूक्ष्म रुधिर वाहिकाओं का जाल फैला रहता है। दीर्घरोम की सतह से पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है तथा यह रुधिर वाहिकाओं में चला जाता है। अवशोषित पदार्थों का स्थानांतरण रुधिर वाहिकाओं द्वारा शरीर के विभिन्न भागों तक होता है, जहाँ उनका उपयोग जटिल पदार्थों को बनाने में किया जाता है। इस प्रक्रम को स्वांगीकरण कहते हैं। कोशिकाओं में उपस्थित ग्लूकोस का विघटन ऑक्सीजन की सहायता से कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल में हो जाता है और ऊर्जा मुक्त होती है। भोजन का वह भाग, जिसका पाचन नहीं हो पाता अथवा अवशोषण नहीं होता, बृहदांत्र में भेज दिया जाता है।
बृहदांत्र
बृहदांत्र, क्षुद्रांत्र की अपेक्षा चौड़ी एवं छोटी होती है। यह लगभग 1.5 मीटर लंबी होती है। इसका मुख्य कार्य जल एवं कुछ लवणों का अवशोषण करना है। बचा हुआ अपचित पदार्थ मलाशय में चला जाता है तथा अर्धठोस मल के रूप में रहता है। समय-समय पर गुदा द्वारा यह मल बाहर निकाल दिया जाता है। इसे निष्कासन कहते हैं।
2.3 घास खाने वाले जंतुओं में पाचन
क्या आपने गाय, भैंस तथा घास खाने वाले (शाकाहारी) अन्य जंतुओं को देखा है? वे उस समय भी लगातार जुगाली करते रहते हैं, जब वे खा न रहे हों। वास्तव में वे पहले घास को जल्दी-जल्दी निगलकर आमाशय के एक भाग में भंडारित कर लेते हैं। यह भाग रूमेन (प्रथम आमाशय) कहलाता है। रूमिनैन्ट में आमाशय चार भागों में बँटा होता है (चित्र 2.9)। रूमेन में भोजन का आंशिक पाचन होता है, जिसे जुगाल (कड) कहते हैं। परंतु बाद में जंतु इसको छोटे पिंडकों के रूप में पुनः मुख में लाता है तथा जिसे वह चबाता रहता है। इस प्रक्रम को रोमन्थन (जुगाली करना) कहते हैं तथा ऐसे जंतु रूमिनैन्ट अथवा रोमन्थी कहलाते हैं।
घास में सेलुलोस की प्रचुरता होती है, जो एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है। किसी रूमिनैन्ट अथवा रोमन्थी पशु, हिरन आदि के रूमेन में सेलुलोस का पाचन करने वाले जीवाणु पाए जाते हैं। बहुत-से जंतु एवं मानव सेलुलोस का पाचन नहीं कर पाते।
जानवरों जैसे- घोड़ा, खरगोश आदि में क्षुद्रांत्र एवं बृहदांत्र के बीच एक थैलीनुमा बड़ी संरचना होती है जिसे अंधनाल कहते हैं (चित्र 2.9)। भोजन के सेलुलोस का पाचन यहाँ पर कुछ जीवाणुओं द्वारा किया जाता है, जो मनुष्य के आहार नाल में अनुपस्थित होते हैं।
अब तक आपने उन जंतुओं के विषय में पढ़ा, जिनमें पाचन तंत्र पाया जाता है। परंतु ऐसे बहुत-से सूक्ष्म प्राणी हैं, जिनमें न तो मुख होता है और न ही पाचन तंत्र। फिर वे, किस प्रकार भोजन का अंतर्ग्रहण करते हैं तथा उसका पाचन करते हैं? खंड 2.4 में आप भोजन ग्रहण करने की एक अन्य रोचक विधि का अध्ययन करेंगे।
दस्त
कभी-कभी आपको जलरूपी पतले मल के बार-बार निष्कासन की आवश्यकता होती है। इस स्थिति को दस्त कहते हैं। यह संक्रमण, खाद्य विषाक्तता अथवा अपच के कारण होता है। भारत में, विशेषकर बच्चों में यह अति सामान्य स्थिति है। चरमावस्था में यह घातक भी हो सकता है। इसका मुख्य कारण शरीर से जल एवं लवण की अत्यधिक क्षति होना है। इसे सहजता से नहीं टालना चाहिए। चिकित्सक के पास जाने से पूर्व ही रोगी को उबालकर ठंडा किए हुए जल में एक चुटकी नमक एवं चीनी घोलकर पिलाना चाहिए। इसे जीवन रक्षक घोल अथवा ओ.आर.एस. कहते हैं।
2.4 अमीबा में संभरण एवं पाचन
अमीबा जलाशयों में पाया जाने वाला एककोशिक जीव है। अमीबा की कोशिका में एक कोशिका झिल्ली होती है, एक गोल सघन केंद्रक एवं कोशिका द्रव्य में बुलबुले के समान अनेक धानियाँ होती हैं (चित्र 2.10)। अमीबा निरंतर अपनी आकृति एवं स्थिति बदलता रहता है। यह एक अथवा अधिक अँगुली के समान प्रवर्ध निकालता रहता है, जिन्हें पादाभ (अर्थात् कृत्रिम पाँव) कहते हैं, जो इन्हें गति देने एवं भोजन पकड़ने में सहायता करते हैं।
अमीबा कुछ सूक्ष्म जीवों का आहार करता है। जब इसे भोजन का आभास होता है, तो यह खाद्य कण के चारों ओर पादाभ विकसित करके उसे निगल लेता है। खाद्य पदार्थ उसकी खाद्य धानी में फँस जाते हैं (चित्र 2.10)।
खाद्य धानी में ही पाचक रस स्रावित होते हैं। ये खाद्य पदार्थ पर क्रिया करके उन्हें सरल पदार्थों में बदल देते हैं। पचा हुआ खाद्य धीरे-धीरे अवशोषित हो जाता है। अवशोषित पदार्थ अमीबा की वृद्धि, रख-रखाव एवं गुणन के लिए उपयोग किए जाते हैं। बिना पचा अपशिष्ट खाद्यधानी द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
भोजन के पाचन का आधारभूत प्रक्रम सभी प्राणियों में समान है, जिसमें खाद्य पदार्थ सरल पदार्थों में परिवर्तित किए जाते हैं एवं ऊर्जा मुक्त होती है। अगले अध्याय में आप आंत्र द्वारा अवशोषित खाद्य पदार्थों का शरीर के अन्य भागों में स्थानांतरण के विषय में पढ़ेंगे।
आपने क्या सीखा
• जंतु पोषण में पोषण आवश्यकताएँ, भोजन अंतग्रहण की विधियाँ एवं शरीर में इनका उपयोग सम्मिलित है।
• आहार नाल तथा स्रावी ग्रंथियाँ संयुक्त रूप से मानव के तंत्र पाचन का निर्माण करती हैं। इसमें (1) मुख-गुहिका; (1) ग्रसिका; (1) आमाशय; (iv) क्षुद्रांत्र; (v) बृहदांत्र, जो मलाशय में समाप्त होती है तथा (vi) गुदा सम्मिलित हैं। पाचक रस स्त्रावित करने वाली मुख्य ग्रंथियाँ है: (1) लाला ग्रंथि; (1) यकृत, एवं (1) अग्न्याशय । आमाशय की भित्ति एवं क्षुद्रांत्र की भित्ति भी पाचक रस स्त्रावित करती है।
• विभिन्न जीवों में भोजन ग्रहण करने की विधियाँ भी भिन्न है।
• पोषण एक जटिल प्रक्रम है, जिसमें (1) अंतर्ग्रहण; (11) पाचन; (iii) अवशोषण; (iv) स्वांगीकरण एवं (v) निष्कासन शामिल हैं।
• मंड जैसे कार्बोहाइड्रेट का पाचन मुख में ही प्रारंभ हो जाता है। प्रोटीन का पाचन आमाशय में प्रारंभ होता है। यकृत द्वारा स्रावित पित्त, अग्न्याशय से अग्न्याशयिक स्राव एवं क्षुद्रांत्र भित्ति द्वारा स्रावित पाचक रस की क्रिया से भोजन के सभी घटकों का पाचन क्षुद्रांत्र में पूरा हो जाता है।
• जल एवं कुछ लवण बृहदांत्र में अवशोषित होते हैं। अवशोषित पदार्थ शरीर के विभिन्न भागों को स्थानांतरित कर दिए जाते हैं।
• बिना पचे अपशिष्ट जिनका अवशोषण नहीं होता, मल के रूप में गुदा द्वारा शरीर के बाहर निकाल दिए जाते हैं।
• गाय, भैंस एवं हिरण जैसे घास खाने वाले जंतु रोमंथी (रूमिनैन्ट) कहलाते हैं। वे पत्तियों का अंतर्ग्रहण तीव्रता से करके उन्हें निगल लेते हैं तथा रूमेन में भंडारित कर लेते हैं। कुछ अंतराल के बाद भोजन पुनः मुख में आ जाता है और पशु धीरे-धीरे जुगाली कर उसे चबाते हैं।
• अमीबा में भोजन का अंतर्ग्रहण पादाभ की सहायता से होता है तथा इसका पाचन खाद्य धानी में होता है।
यह भी पढ़ें: पादपों में पोषण : अध्याय 1
अभ्यास
1. उचित शब्द द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(क) मानव पोषण के मुख्य चरण अंतर्ग्रहण , पाचन, अवशोषण, स्वंगीकरण एवं निष्कासन है।
(ख) मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि का नाम यकृत है।
(ग) आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं पाचक रसों का स्राव होता है, जो भोजन पर क्रिया करते हैं।
(घ) क्षुद्रांत्र की आंतरिक भित्ति पर अँगुली के समान अनेक प्रवर्ध होते हैं, जो दीर्घरोम (रसांकुर) कहलाते हैं।
(च) अमीबा अपने भोजन का पाचन खाद्य धानी में करता है।
2. सत्य एवं असत्य कथनों को चिह्नित कीजिए।
(क) मंड का पाचन आमाशय से प्रारंभ होता है। (असत्य)
(ख) जीभ लाला-ग्रंथि को भोजन के साथ मिलाने में सहायता करती है। (सत्य)
(ग) पित्ताशय में पित्त रस अस्थायी रूप से भंडारित होता है। (सत्य)
(घ) रूमिनैन्ट निगली हुई घास को अपने मुख में वापस लाकर धीरे-धीरे चबाते रहते हैं। (सत्य)
3. निम्न में से सही विकल्प पर (√) का चिह्न लगाइए।
(क) वसा का पूर्णरूपेण पाचन जिस अंग में होता है, वह है
(1) आमाशय
(11) मुख
(iii) क्षुद्रांत्र
(iv) बृहदांत्र
Ans. क्षुद्रांत्र
(ख) जल का अवशोषण मुख्यतः जिस अंग द्वारा होता है, वह है-
(1) आमाशय
(11) ग्रसिका
(iii) क्षुद्रांत्र
(iv) बृहदांत्र
Ans. बृहदांत्र
4. कॉलम A में दिए गए कथनों का मिलान कॉलम B में दिए गए कथनों से कीजिए।
कॉलम A | कॉलम B |
खाद्य घटक | पाचन के उत्पाद |
कार्बोहाइड्रेट्स | वसा अम्ल एवं ग्लिसरॉल |
प्रोटीन | शर्करा |
वसा | ऐमीनो अम्ल |
Ans.
कॉलम A | कॉलम B |
खाद्य घटक | पाचन के उत्पाद |
कार्बोहाइड्रेट्स | शर्करा |
प्रोटीन | ऐमीनो अम्ल |
वसा | वसा अम्ल एवं ग्लिसरॉल |
5. दीर्घरोम क्या है? वह कहाँ पाए जाते हैं एवं उनके कार्य क्या है?
Ans. दीर्घरोम, क्षुद्रांत्र की आंतरिक भित्ति पर अँगुली के समान उभरी हुई संरचनाएँ होती हैं, जिसे रसांकुर भी कहते हैं। दीर्घरोम पचे हुए भोजन के अवशोषण हेतु तल क्षेत्र बढ़ा देते हैं। दीर्घरोम की सतह से पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है तथा यह रुधिर वाहिकाओं में चला जाता है।
6. पित्त कहाँ निर्मित होता है? यह भोजन के किस घटक के पाचन में सहायता करता है?
Ans. पित्त रस का स्राव यकृत (मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि) करता है जिसे पित्ताशय नामक थैली में संग्रहित किया जाता है। पित्त वसा के पाचन में मदद करता है।
7. उस कार्बोहाइड्रेट का नाम लिखिए जिनका पाचन रूमिनैन्ट द्वारा किया जाता है परंतु मानव द्वारा नहीं। इसका कारण बताइए।
Ans. सेल्युलोस (एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट) के पाचन के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। रुमिनैन्ट की आहार नाल, मनुष्यों की आहार नाल से बड़ी होती है। इसलिए सेल्युलोज रुमिनैन्ट द्वारा पचाया जा सकता है लेकिन मनुष्यों द्वारा नहीं
8. क्या कारण है कि हमें ग्लूकोस से ऊर्जा तुरंत प्राप्त होती है?
Ans. हमें ग्लूकोस से उर्जा तुरंत प्राप्त होती है क्योंकि कोशिकाओं में, ग्लूकोज ऑक्सीजन की मदद से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी में आसानी से टूट जाता है और ऊर्जा निकल जाती है।
9. आहार नाल के कौन-से भाग द्वारा निम्न क्रियाएँ संपादित होती हैं
(i) पचे भोजन का अवशोषण क्षुद्रांत्र ( छोटी आंत )।
(ii) भोजन को चबाना मुख गुहिका।
(iii) जीवाणु नष्ट करना आमाशय।
(iv) भोजन का संपूर्ण पाचन क्षुद्रांत्र ( छोटी आंत )।
(v) मल का निर्माण बृहदांत्र ( बड़ी आंत )।
10. मानव एवं अमीबा के पोषण में कोई एक समानता एवं एक अंतर लिखिए।
Ans.
• समानताः भोजन के पाचन तथा उससे प्राप्त ऊर्जा की बुनियादी प्रक्रिया अमीबा के साथ-साथ इंसानों में भी समान है। अमीबा में, भोजन में पाचन रस स्रावित होता है जो भोजन पर कार्य करते हैं और इसे सरल पदार्थों में तोड़ देते हैं। धीरे-धीरे पचा हुआ भोजन अवशोषित होता है। इसी तरह, मानव में विभिन्न पाचक रस (मुंह, पेट, आंत आदि) भोजन में मिलकर काम करते हैं और इसे सरल पदार्थों में तोड़ देते हैं।
• अंतरः अमीबा में पाचन प्रक्रिया सरल है जबकि मनुष्य में यह एक जटिल प्रक्रिया है। अंतर्ग्रहण और उत्सर्जन की प्रक्रिया भी काफी भिन्न होती है। अमीबा अपने भोजन को पदाभ के माध्यम से पकड़ता है। अवशोषण के पश्चात् बिना पचा हुआ भोजन खाद्यधानी द्वारा बाहर निकल दिया जाता है। जबकि मनुष्यों में, भोजन (जो जटिल पदार्थ है) मुंह के अंदर ले जाया जाता है और पाचन और अवशोषण की एक जटिल प्रक्रिया से गुजरता है। अंत में बचा हुआ पदार्थ मल के रूप में निष्कासित कर देता है।
11. कॉलम A में दिए गए शब्दों का मिलान कॉलम B के उचित कथन से कीजिए।
कॉलम A | कॉलम B |
लाला-ग्रंथि | पित्त रस का स्रवण |
आमाशय | बिना पचे भोजन का भण्डारण |
यकृत | लाला रस स्त्रावित करना |
मलाशय | अम्ल का निर्मोचन |
क्षुद्रांत्र | पाचन का पूरा होना |
बृहदांत्र | जल का अवशोषण |
मल त्याग |
Ans.
कॉलम A | कॉलम B |
लाला-ग्रंथि | लाला रस स्त्रावित करना |
आमाशय | अम्ल का निर्मोचन |
यकृत | पित्त रस का स्रवण |
मलाशय | मल त्याग |
क्षुद्रांत्र | पाचन का पूरा होना |
बृहदांत्र | जल का अवशोषण, बिना पचे भोजन का भण्डारण |
12. चित्र 2.11 में दिए हुए पाचन तंत्र के आरेख को नामांकित कीजिए।
Ans.
13. क्या हम केवल हरी सब्जियों/घास का भोजन कर जीवन निर्वाह कर सकते हैं? चर्चा कीजिए।
Ans. कच्चे पत्तेदार सब्जियां और घास सेल्यूलोज (एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट) से समृद्ध हैं। मनुष्यों सहित कई जानवर सेल्यूलोज को पचा नहीं सकते, क्योंकि उनके पास विशेष एंजाइम और कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया नहीं होते हैं जो सेल्यूलोज को पचा सकते हैं। इसलिए हम उन सब्जियों को उबालते या पकाते हैं जो सेल्यूलोज को सरल कार्बोहाइड्रेट में तोड़ देती हैं। हम केवल सब्जियों को उबले हुए या पके हुए रूप में लेकर खाकर उसको पचा सकते हैं।
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