दोलनी अथवा कांपनिक गति (Oscillatory or Vibratory Motion)

यदि कोई पिण्ड, अपनी साम्य स्थिति (equilibrium state) के दोनों ओर इधर-उधर गति करती है तो पिण्ड की गति को दोलनी अथवा कांपनिक गति कहते हैं। जैसे- दीवार घड़ी के लोलक (Pendulum) की गति, सिलाई मशीन में सूई की गति, झूला झूलती लड़की, ठोस पदार्थों में अणुओं की गति आदि।

विशेष-

• प्रत्येक दोलनी गति, आवर्ती गति होती है परन्तु प्रत्येक आवर्ती गति, दोलनी गति नहीं होती।

• दोलन या कम्पन करती वस्तु पर एक ऐसा बल कार्य करता है जिसकी दिशा सदैव साम्य स्थिति (equilibrium) की ओर होती है, जिसे प्रत्यानयन बल (Restoring Force) कहते हैं। इसके कारण वस्तु में त्वरण उत्पन्न होता है तथा वह कंपन करती है।

➤ आवर्त गति (Periodic Motion)

एक निश्चित पथ पर गतिमान वस्तु जब एक निश्चित समय अंतराल के पश्चात् बार-बार अपनी पूर्व गति को दुहराती है तो इस प्रकार की गति को आवर्त गति कहते हैं। जैसे- पृथ्वी का सूर्य की परिक्रमा करना, घड़ी के सूइयों की गति व घड़ी के पेण्डुलम की गति इत्यादि।

➤ सरल आवर्त गति (Simple Harmonic Motion)

सरल आवर्त गति, एक विशेष प्रकार की दोलनी गति (Oscillatory Motion) हैं। जिसमें गति करते हुए पिण्ड पर कार्यरत प्रत्यानयन बल (restoring force) तथा इसका त्वरण साम्य स्थिति से कण के विस्थापन (displacement) के अनुक्रमानुपाती होता है।

सरल आवर्त गति से संबंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएं (Important Definitions Related to S.H.M.)

• आयाम (Amplitude)

सरल आवर्त गति करता हुआ कोई कण अपनी माध्य या साम्य स्थिति के दोनों ओर जितना अधिक से अधिक विस्थापित होता है, उसे उस कण का आयाम कहते हैं। इसका मात्रक सेमी० अथवा मीटर है।

• आवर्त काल (Periodic Time)

आवर्त गति/कम्पन करता हुआ कोई पिण्ड जितने समय में एक चक्कर/कम्पन पूरा करता है उसे उसका आवर्त काल कहते हैं। इसे T से प्रदर्शित करते हैं। इसका मात्रक सेकेण्ड है।

T = 2π/w

• आवृत्ति (Frequency)

दोलन/कंपन करने वाली वस्तु एक सेकेण्ड में जितने दोलन / कंपन/चक्कर पूरे करती है उसे उसकी आवृत्ति कहते हैं। इसे n से प्रदर्शित करते हैं।

n= 1/Τ = ω/2π

आवृत्ति का मात्रक चक्कर प्रति सेकेण्ड (Cycle/second) या हर्ट्ज (n) होता है।

* सरल आवर्त गति करते हुए पिण्ड का

वेग u = ω√(a2 – y2)

इस समीकरण से पता चलता है कि सरल आवर्त गति करते हुए किसी कण का वेग u, कण के विस्थापन y के साथ-साथ बदलता है।

जब विस्थापन शून्य होता है, (y = o) अर्थात् जब कण अपनी साम्य स्थिति में पहुँचता है तब वेग अधिकतम (U max =aw) होता है तथा जब विस्थापन अधिकतम होता है (y = a) होता है (v = o)

स्प्रिंग से लटके पिंड की गति (Motion of a body suspended through a spring)

यदि एक हल्के स्प्रिंग जिसका बल नियतांक k है से एक m द्रव्यमान का पिण्ड लटकाकर साम्यावस्था से थोड़ा नीचे खींच कर छोड़ दिया जाय तो पिंड सरल आवर्त गति करने लगता है जिसकी दिशा उर्ध्वाधर (Verticle) होती । ऐसे में पिण्ड का आवर्त काल

(T) = 2π√(m/K) सेकेण्ड होता है।

तरंग गति (Wave Motion)

किसी माध्यम में उत्पन्न विक्षोभ (Disturbance) को तरंग (wave) या लहर कहते हैं। जैसे- जब हम किसी तालाब के शांत या स्थिर जल में पत्थर का टुकड़ा फेंकते हैं तो जिस स्थान पर पत्थर का टुकड़ा गिरता है, उस स्थान पर एक विक्षोभ (Disturbance) उत्पन्न होता है जिससे उस स्थान का जल ऊपर नीचे गति करने लगता है। धीरे-धीरे यह विक्षोभ आगे बढ़ता है क्योंकि ऊर्ध्वाधर दिशा (Vertical Direction) में गतिमान जल के अणु अपने समीपवर्ती जल के अणुओं को भी अपने प्रभाव में लेकर गतिमान बना देते हैं और इस प्रकार श्रृंखलाबद्ध रूप में यह विक्षोभ आगे बढ़ता है जो हमें लहरों की श्रृंखला के रूप में दिखाई देता है। इस प्रकार विक्षोभ के आगे बढ़ने की प्रक्रिया को तरंग गति (Wave Motion) कहते हैं।

इसी प्रकार यदि एक रस्सी AB के एक सिरे को हाथ में लेकर ऊपर-नीचे झटका दिया जाय तो रस्सी में भी विक्षोभ उत्पन्न हो जाता है जो हमें श्रृंग (crest) व गर्त (trough) के रूप में दिखाई पड़ते हैं। इसमें भी विक्षोभ धीरे-धीरे तरंग रूप में आगे बढ़ता है।

➤ तरंग दैर्ध्य (Wave Length)

माध्यम के किसी भी कण के एक पूरे चक्कर या कंपन के समय में तरंग (या विक्षोभ) जितनी दूरी तय करता है, उसे तरंग दैर्ध्य कहते हैं, इसे ” से प्रदर्शित करते हैं।

अनुप्रस्थ तरंग (Transverse Waves) में जहाँ दो पास-पास वाले श्रृंगों (crests) अथवा गर्तों (troughs) के बीच की दूरी तरंग दैर्ध्य कहलाती है, वहीं अनुदैर्ध्य तरंग (Longitudinal Waves) में किन्हीं दो पास-पास वाले अधिकतम संपीडन अथवा अधिकतम विरलन वाले कणों के बीच की दूरी तरंग दैर्ध्य कहलाती है।

➤ तरंग चाल (Speed of Wave)

तरंग द्वारा आगे बढ़ने की दर को तरंग चाल कहते हैं। इसे v से प्रदर्शित करते हैं।

v = ηλ या, v = λ/T

जहाँ n, तरंग की आवृत्ति, T तरंग का आवर्त काल, व λ तरंग की लंबाई (Wave Length) है।

तरंग के प्रकार (Kinds of Waves)

(A) तरंग गति की दिशा तथा माध्यम के कणों के दोलन की दिशा के आधार पर तरंग दो प्रकार की होती हैं-

(1) अनुप्रस्थ तरंग (Transverse Waves)- वह तरंग, जिसमें माध्यम के कण तरंग के चलने की दिशा के लम्बवत् कम्पन करते हैं, अनुप्रस्थ तरंग (Transverse Wave) कहते हैं। जैसे- जल की सतह पर उत्पन्न तरंगें तथा रस्सी के एक सिरे को झटका देने पर उत्पन्न तरंग।

(2) अनुदैर्ध्य तरंग (Longitudinal Wave)- वह तरंग, जिसमें माध्यम के कण तरंग के चलने की दिशा के समान्तर कम्पन करते हैं, उन्हें अनुदैर्ध्य तरंग कहते हैं। जैसे जब एक स्प्रिंग से एक लोहे के टुकड़े या बाट को लटका कर थोड़ा नीचे खींचकर छोड़ देते हैं तो बाट के ऊपर-नीचे दोलन करने पर स्प्रिंग में उत्पन्न सम्पीडन एवं विरलन (Compression and rarefaction) के माध्यम से विक्षोभ या तरंग आगे बढ़ता है। बाट के दोलन की दिशा तथा विक्षोभ के संचरण की दिशा समानान्तर होती हैं। वायु में ध्वनि तरंगों का संचरण भी इसी प्रकार होता है।

(B) संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता के आधार पर भी तरंगें दो प्रकार की होती हैं-

(1) यांत्रिक तरंगें (Mechanical Waves)- वे तरंगें, जिनके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है, यान्त्रिक तरंगें कहलाती हैं। जैसे- जल की तरंगें, ध्वनि की तरंगें, स्प्रिंग की तरंगें आदि। ये अनुप्रस्थ भी हो सकती हैं और अनुदैर्ध्य भी। जल की तरंगें अनुप्रस्थ तरंगें हैं जबकि वायु में संचरित ध्वनि तरंगें व स्प्रिंग में उत्पन्न तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगे हैं। ध्यातव्य है कि प्रत्यास्थता (elasticity) तथा जड़त्व (inertia) के कारण यांत्रिक तरंगों का किसी माध्यम में संचरण संभव होता है।*

(2) विद्युत-चुम्बकीय तरंगें (Electro-Magnetic Waves)- “वे तरंगें, जिनके संचरण के लिए भौतिक माध्यम आवश्यक नहीं होता, विद्युत-चुम्बकीय तरंगें कहलाती हैं।” जैसे- प्रकाश तरंगें, रेडियो तरंगें, गामा किरणें, अवरक्त किरणें (Infrared rays) तथा एक्स-किरणें (x-rays) आदि। विद्युत-चुम्बकीय तरंगों में विद्युत क्षेत्र तथा चुम्बकीय क्षेत्र परस्पर लम्बवत् तलों में कम्पन करते हैं तथा निर्वात में प्रकाश की चाल से आगे बढ़ते जाते हैं। इस प्रकार विद्युत- चुम्बकीय तरंग सदैव अनुप्रस्थ (Transverse) होती है तथा सभी तरंगों की चाल, प्रकाश की चाल के बराबर होती है।

यांत्रिक तरंगों का वर्गीकरण (Classification of Mechanical Waves)

यांत्रिक तरंगों के उत्पन्न होने पर ध्वनि (Sound) भी उत्पन्न होती है जो तरंग के साथ ही संचरित (move) होती है और हमारे कानों से टकराकर उसकी अनुभूति कराती है। इसीलिए इन्हें प्रायः ध्वनि तरंगें (Sound Waves) भी कहा जाता है। उत्पन्न ध्वनि की तीव्रता तंरग की आवृत्ति (Frequency) पर निर्भर करती हैं तथा आवृत्ति के बढ़ने पर बढ़ती और घटने पर घटती है। परन्तु सभी आवृत्ति की यांत्रिक तरंगों से उत्पन्न ध्वनियों को हम नहीं सुन पाते अर्थात् हमारे श्रव्यता (audibility) की एक सीमा (Limit) है। इसी आवृत्ति या श्रव्यता की सीमा के आधार पर यांत्रिक तरंगों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है। यथा-

(i) श्रव्य ध्वनि तरंग (Audible Sound Waves)- जिन यांत्रिक तरंगों की आवृत्ति 20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज (20 Hz to 20 KHz) तक होती है, उनसे उत्पन्न ध्वनि को हम सुन सकते हैं। अतः इस परास (Range) की आवृत्ति वाली यांत्रिक तरंगों (Mechanical Waves) को हम श्रव्य ध्वनि तरंगें (Audible sound waves) कहते हैं।*

नोट – ध्वनि तरंगों की विस्तृत व्याख्या इसी अध्याय के भाग- 2 में दी गई है।

(ii) अपश्रव्य तरंगें (Infrasonic Waves)- 20 चक्कर प्रति सेकेण्ड (या हर्ज) से कम आवृत्ति वाली यांत्रिक तरंगों से उत्पन्न ध्वनि की अनुभूति हमारे कानों द्वारा नहीं होती (अर्थात् हम इसे सुन नहीं सकते)। इसे ही हम अपश्रव्य तरंगें (Infrasonic Waves) कहते हैं। * इस प्रकार की तरंगें बहुत बड़े आकार की वस्तुओं या ध्वनि स्रोतों से उत्पन्न होती हैं। भूकंप के समय पृथ्वी से ऐसी ही तरंगें उत्पन्न होती हैं। * यदि हम अपश्रव्य ध्वनि को सुन सकते थे, तो हम किसी लोलक (bob) के कंपनों को उसी प्रकार सुन पाते जैसे कि हम किसी मक्खी के पंखों के कंपनो को सुन पाते हैं। गैंडा (Rhinoserous) 5 हर्ज तक की आवृत्ति के अपश्रव्य तरंगों को सुन व उत्पादित कर सकता है। हाथी तथा वेल भी इस प्रकार की कुछ ध्वनियाँ उत्पादित (Produce) करने में सक्षम होती हैं और इसकी सहायता से संपर्क स्थापित करती हैं या आने वाले खतरे को भाँप लेती हैं। देखा गया है कि कुछ जीव भूकंप या सुनामी से पहले ही परेशान हो जाते हैं क्योंकि भूकंप या सुनामी, की मुख्य प्रघाती तरंगों से पूर्व निम्न आवृत्ति की अपश्रव्य यांत्रिक तरंगें उत्पन्न होती हैं। जिससे उत्पन्न ध्वनियों को सुनकर वे खतरा पहले ही भाँप जाते हैं।

(iii) पराश्रव्य तरंगें (Ultrasonic Waves)-20 किलो हर्ज (KHz) (या 20,000 हर्ट्ज) से अधिक आवृत्ति वाली यांत्रिक या ध्वनि तरंगों को पराश्रव्य तरंगें कहते हैं। मानव कर्ण (Human Ear) इस परास (Range) की ध्वनियों के लिए भी सुग्राही नहीं होते अर्थात् हम इस आवृत्ति की आवाज भी नहीं सुन सकते। पराश्रव्य तरंगें सर्वप्रथम गाल्टन ने एक प्रकार की सीटी द्वारा उत्पन्न की थी। इस सीटी को गाल्टन सीटी के नाम से ही पुकारते हैं। आजकल इतनी अधिक आवृत्ति की तरंगें प्रायः क्वार्ट्ज क्रिस्टल को दोलित या कंपित कराके उत्पन्न की जाती हैं। वायु में पराश्रव्य तरंगों का तरंग दैर्ध्य 1.6 सेमी से भी कम होता है। अधिक आवृत्ति व कम तरंग दैर्ध्य होने के कारण इनमें अत्यधिक ऊर्जा संचित होती है। इनसे ऐसे अनेक कार्य किये जाते हैं जो कि साधारण तरंगों द्वारा संभव नहीं। ये विवर्तन (Diffraction) की क्रिया से अधिक नहीं फैलती तथा कम तरंग दैर्ध्य की होने के कारण इन्हें एक पतले किरण पुंज के रूप में दूर तक दिशात्मक संकेत (Directional Direction) के रूप में भेजा जा सकता है।

पराश्रव्य तरंगों के उपयोग (Usage of Ultra Sonic Waves)

(i) संकेत भेजने में (In Giving singals)- पराश्रव्य तरंगों को पतले किरण पुंज के रूप में प्राप्त कर दूर तक संकेत भेजा जाता है। नेवीगेशन में यह बहुत उपयोगी है।

(ii) उद्योगों में (In Industrial Sector)- उद्योगों में इन तरंगों का उपयोग कीमती कपड़ों, मशीनों के पुर्जे व चिमनियों में जमी कालिख साफ करने में किया जाता है। इसके अलावा किसी द्रव को गरम करने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

(iii) समुद्र की गहराई व उसमें डूबी वस्तुओं की स्थिति का पता लगाने में (Measurement of Depth of Ocean and Detection of things in it)- सोनार (SONAR → Sound Navigation and Ranging) एक ऐसी युक्ति है जिससे जल में स्थित पिण्डों की दूरी, दिशा तथा स्थिति व चाल मापने के लिए पराध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है। इससे समुद्र, नदी या झील की गहराई भी माप सकते हैं। इसके लिए इसमें एक प्रेषित्र (Transmiter) लगा होता है। प्रेषित पराध्वनि तरंगें उत्पन्न कर जल में भेजता है जो मार्ग में किसी ठोस पिण्ड या तल से टकराकर वापस अता है जिसे संसूचक (adopter) ग्रहण कर उसे विद्युत संकेतों में बदल कर प्रतिबिंब बना देता है। जल में ध्वनि की चाल तथा प्रेषण व अभिग्रहण में लगे समय की सहायता से पिण्ड या तल की गहराई ज्ञात कर ली जाती है।

(iv) कृषि में (In Agriculture)- कुछ पौधों पर इन तरंगों का बहुत सकारात्मक प्रभाव देखा गया है। इसके अलावा इसका प्रयोग कीड़ों को नष्ट करने के लिए भी किया जाता है।

(v) चिकित्सा विज्ञान में (In Medical Science)- पराध्वनि तरंगों को हृदय के विभिन्न भागों से परावर्तित करा कर हृदय का प्रतिबिंब बनाया जाता है। इसे इको कार्डियो ग्राफी (ECG) कहते हैं।

• पराश्रव्यध्वनि संसूचक (Ultrasound Detecter)- एक ऐसा यंत्र है, जिसमें पराध्वनि तरंगों का उपयोग करके मानव शरीर के आंतरिक अंगों का प्रतिबिंब (image) प्राप्त किया जाता है। इससे यकृत (Lever), पित्ताशय (Gallblader), गर्भाशय (overy), गुर्दे (kidney) आदि का प्रतिबिंब प्राप्त किया जा सकता है। इससे शरीर के किसी व्याधि, पथरी, अर्बुद (Tumur) आदि का पता लगाया जाता है। इस तकनीक को अल्ट्रासोनोग्राफी कहते हैं। इससे गर्भ काल (Gestation Period) में भ्रूण (Embryo) की जांच तथा उसके जन्मजात दोषों व विकृतियों तथा उसकी वृद्धि की अनियमितताओं का पता लगाया जाता है। रुधिर रहित शल्य क्रिया (Operation with out bleading) व दांत आदि निकालने में भी इसका प्रयोग होता है।

• पराश्रव्यध्वनि का उपयोग गुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए भी किया जा सकता है। ये कण बाद में मूत्र के सहारे बाहर निकल जाते हैं।

• इन तरंगों का उपयोग जीवाणुनाशक के रूप में भी किया जा सकता है तथा गठिया (Artharitis) रोग का उपचार भी किया जाता है।

(vi) कुछ जन्तु यथा- कुत्ते, चमगादड़, डाल्फिन आदि इन तरंगों (ध्वनियों) को सुन लेते हैं। विशेष रूप से प्रशिक्षित किये गये कुत्ते गाल्टन सीटी बजाने पर किया गया इशारा समझ लेते हैं जबकि और कोई इसे भाँप भी नहीं पाता। चमगादड़ (Bat) तो इन तरंगों (ध्वनियों) को उत्पन्न भी कर लेते हैं और इसकी सहायता से अपना शिकार व रास्ता भी खोज लेते हैं। चमगादड़ द्वारा उत्पन्न उच्च तारत्व के पराश्रव्यध्वनि स्पंद अवरोधों या कीटों से परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों तक पहुँचते है। इन परावर्तित स्पंदों की सहायता से चमगादड़ अवरोध या शिकार की स्थिति (दिशा व दूरी) तथा आकार जान लेते हैं।

(vii) पराध्वनियों का उपयोग धातु के ब्लॉकों (पिण्डों) में दरारों तथा अन्य दोषों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। धात्विक घटकों को प्रायः बड़े-बड़े भवनों, पुलों, मशीनों तथा वैज्ञानिक उपकरणों को बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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