हमारी बदलती पृथ्वी : अध्याय 3

स्थलमंडल अनेक प्लेटों में विभाजित है, जिन्हें स्थलमंडलीय प्लेट कहते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ये प्लेट हमेशा धीमी गति से चारों तरफ घूमती रहती हैं-प्रत्येक वर्ष केवल कुछ मिलीमीटर के लगभग। पृथ्वी के अंदर पिघले हुए मैग्मा में होने वाली गति के कारण ऐसा होता है। पृथ्वी के अंदर पिघला हुआ मैग्मा एक वृत्तीय रूप में घूमता रहता है, जैसा कि क्रियाकलाप में दिखाया गया है।

प्लेट की इस गति के कारण पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन होता है। पृथ्वी की गति को उन बलों के आधार पर विभाजित किया गया है जिनके कारण ये गतियाँ उत्पन्न होती हैं। जो बल पृथ्वी के आंतरिक भाग में घटित होते हैं उन्हें अंतर्जनित बल (एंडोजेनिक फोर्स) कहते हैं एवं जो बल पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होते हैं उन्हें बहिर्जनिक बल (एक्सोजेनिक फोर्स) कहते हैं (चित्र 3.1)। अंतर्जनित बल कभी आकस्मिक गति उत्पन्न करते हैं, तो कभी धीमी गति। भूकंप एवं ज्वालामुखी जैसी आकस्मिक गति के कारण पृथ्वी की सतह पर अत्यधिक हानि होती है।

ज्वालामुखी भू-पर्पटी पर खुला एक ऐसा छिद्र होता है, जिससे पिघले हुए पदार्थ अचानक निकलते हैं (चित्र 3.2)।

इसी प्रकार, स्थलमंडलीय प्लेटों के गति करने पर पृथ्वी की सतह पर कंपन होता है। यह कंपन पृथ्वी के चारों ओर गति कर सकता है। इस कंपन को भूकंप कहते हैं (चित्र 3.3)। भू-पर्पटी के नीचे वह स्थान जहाँ कंपन आरंभ होता है, उद्गम केंद्र कहलाता है। उद्गम केंद्र के भूसतह पर उसके निकटतम स्थान को अधिकेंद्र कहते हैं। अधिकेंद्र से कंपन बाहर की ओर तरंगों के रूप में गमन करती हैं। अधिकेंद्र के निकटतम भाग में सर्वाधिक हानि होती है एवं अधिकेंद्र से दूरी बढ़ने के साथ भूकंप की तीव्रता धीरे-धीरे कम होती जाती है।

यद्यपि, भूकंप की भविष्यवाणी संभव नहीं, लेकिन यदि हम पहले से तैयार हों, तो इसके प्रभाव को निश्चित रूप से कम किया जा सकता है।

स्थानीय लोग कुछ सामान्य तरीकों से भूकंप की संभावना का अनुमान लगाते हैं, जैसे-जानवरों के व्यवहार का अध्ययन, तालाब में मछलियों की उत्तेजना, साँपों का धरातल पर आना।

भूकंप से बचाव की तैयारी

भूकंप के दौरान कहाँ आश्रय लें –

सुरिक्षत स्थान-रसोई के काउंटर या मेज के नीचे, दीवार के अंदरूनी कोने में।

इनसे दूर रहें-आग वाले स्थान, चिमनी के आसपास तथा टूट सकने वाली खिड़कियों, दर्पण एवं तसवीर फ्रेम से।

पहले से तैयार रहें-अपने दोस्तों एवं पारिवारिक सदस्यों के बीच जागरूकता फैलाएँ एवं आपदा का सामना विश्वास से करें।

मुख्य स्थलाकृतियाँ

अपक्षय एवं अपरदन नामक दो प्रक्रमों द्वारा दृश्यभूमि लगातार विघटित होती रहती है। पृथ्वी की सतह पर शैलों के टूटने से अपक्षय की क्रिया होती है। भू-दृश्य पर जल, पवन एवं हिम जैसे विभिन्न घटकों के द्वारा होने वाले क्षय को अपरदन कहते हैं। वायु, जल आदि अपरदित पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं, और फलस्वरूप एक स्थान पर निक्षेपित करते हैं। अपरदन एवं निक्षेपण के ये प्रक्रम पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण करते हैं।

नदी के कार्य

नदी के जल से दृश्य भूमि का अपरदन होता है। जब नदी किसी खड़े ढाल वाले स्थान से अत्यधिक कठोर शैल या खड़े ढाल वाली घाटी में गिरती है, तो यह जलप्रपात बनाती है (चित्र 3.5)।

जब नदी मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है, तो वह मोड़दार मार्ग पर बहने लगती है। नदी के इन्हीं बड़े मोड़ों को विसर्प कहते हैं। इसके बाद विसर्पों के किनारों पर लगातार अपरदन एवं निक्षेपण शुरू हो जाता है। विसर्प लूप के सिरे निकट आते जाते हैं। समय के साथ विसर्प लूप नदी से कट जाते हैं और एक अलग झील बनाते हैं, जिसे चापझील भी कहते हैं।

कभी-कभी नदी अपने तटों से बाहर बहने लगती है। फलस्वरूप निकटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। बाढ़ के कारण नदी के तटों के निकटवर्ती क्षेत्रों में महीन मिट्टी एवं अन्य पदार्थों का निक्षेपण करती है। ऐसी मिट्टी एवं पदार्थों को अवसाद कहते हैं। इससे समतल उपजाऊ बाढ़कृत मैदान का निर्माण होता है। नदी के उत्थित तटों को तटबंध कहते हैं। समुद्र तक पहुँचते-पहुँचते नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है तथा नदी अनेक धाराओं में विभाजित हो जाती है, जिनको वितरिका कहा जाता है। यहाँ नदी इतनी धीमी हो जाती है कि यह अपने साथ लाए मलबे का निक्षेपण करने लगती है। प्रत्येक वितरिका अपने मुहाने का निर्माण करती है। सभी मुहानों के अवसादों के संग्रह से डेल्टा का निर्माण होता है (चित्र 3.7)।

समुद्री तरंग के कार्य

समुद्री तरंग के अपरदन एवं निक्षेपण तटीय स्थलाकृतियाँ बनाते हैं। समुद्री तरंगें लगातार शैलों से टकराती रहती हैं, जिससे दरार विकसित होती है। समय के साथ ये बड़ी और चौड़ी होती जाती हैं। इनको समुद्री गुफा कहते हैं। इन गुफाओं के बड़े होते जाने पर इनमें केवल छत ही बचती है, जिससे तटीय मेहराब बनते हैं। लगातार अपरदन छत को भी तोड़ देता है और केवल दीवारें बचती हैं। दीवार जैसी इन आकृतियों को स्टैक कहते हैं। समुद्री जल के ऊपर लगभग ऊर्ध्वाधर उठे हुए ऊँचे शैलीय तटों को समुद्र भृगु कहते हैं। समुद्री तरंगें किनारों पर अवसाद जमा कर समुद्री पुलिन का निर्माण करती हैं।

हिमनद के कार्य

हिमनद अथवा हिमानी बर्फ़ की नदियाँ होती हैं। हिमनद अपने नीचे की कठोर चट्टानों से गोलाश्मी मिट्टी और पत्थरों को अपरदित कर देती है और गोलाश्मी मिट्टी एवं पत्थरों से भूदृश्य का अपरदन करती है। हिमनद गहरे गर्तों का निर्माण करते हैं। पर्वतीय क्षेत्र में बर्फ पिघलने से उन गर्तों में जल भर जाता है और वे सुंदर झील बन जाते हैं। हिमनद के द्वारा लाए गए पदार्थ, जैसे-छोटे-बड़े शैल, रेत एवं तलछट मिट्टी निक्षेपित होते हैं। ये निक्षेप हिमनद हिमोढ़ का निर्माण करते हैं।

पवन के कार्य

क्या आपने कभी रेगिस्तान देखा है? बालू टिब्बे के कुछ चित्र एकत्र करने का प्रयास कीजिए।

रेगिस्तान में पवन, अपरदन एवं निक्षेपण का प्रमुख कारक है। रेगिस्तान में आप छत्रक के आकार के शैल देख सकते है, जिन्हें सामान्यतः छत्रक शैल कहते हैं। पवन शैल के ऊपरी भाग की अपेक्षा निचले भाग को आसानी से काटती है। इसलिए ऐसी शैल के आधार संकीर्ण एवं शीर्ष विस्तृत होते हैं। पवन चलने पर, यह अपने साथ रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती है। जब पवन का बहाव रुकता है तो यह रेत गिरकर छोटी पहाड़ी बनाती है। इनको बालू टिब्बा कहते हैं (चित्र 3.10)। जब बालू कण महीन एवं हल्के होते हैं, तो वायु उनको उठाकर अत्यधिक दूर ले जा सकती है। जब ये बालू कण विस्तृत क्षेत्र में निक्षेपित हो जाते है, तो इसे लोएस कहते हैं। चीन में विशाल लोएस निक्षेप पाए जाते हैं।

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अभ्यास

1. निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) प्लेटें क्यों घूमती है?
Ans.
पृथ्वी के अंदर पिघले हुए मैग्मा में होने वाली गति के कारण पृथ्वी के अंदर पिघला हुआ मेग्मा एक वृत्तीय रूप में घूमता रहता है। ये प्लेट हमेशा धीमी गति से चारों तरफ प्रत्येक वर्ष केवल कुछ मिलीमीटर के लगभग घूमती रहती है।

(ख) बहिर्जनिक एवं अंतर्जनित बल क्या है?
Ans.
अंतजीनेत बल-जो बल पृथ्वी के आंतरिक भाग में घटित होते हैं, उन्हें अंतर्जनित बल कहते हैं। अंतर्जनित बत कभी आकस्मिक गति उत्पन्न करते हैं तो कभी धीमी गति।। बहिर्जनित बल-जो बत पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होते हैं, उन्हें बहिर्जनित बल कहते हैं।

(ग) अपरदन क्या है?
Ans.
भूपृष्ठ पर बहता हुआ जल, पवन, हिम जैसे विभिन्न घटकों के द्वारा होने वाले कटाव-छटाँव को अपरदन कहते हैं। जैसे-नदियों द्वारा V आकार की घाटी का निर्माण करना। पवनों द्वारा बरखान एवं छत्रक शेल का निर्माण करना।

(घ) बाढ़कृत मैदान का निर्माण कैसे होता है?
Ans.
जब नदी अपने किनारे से बाहर बहने लगती है तो आस पास के इलाके में बाढ़ आ जाती है। बाढ़ के साथ नदी आस पास के इलाकों में अवसाद जमा करती है। अवसाद के जमा होने से बाढ़कृत मैदान बनता है।

(च) बालू टिब्बा क्या है?
Ans.
मरुस्थलीय भागों में पवनों के द्वारा रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बहाकर ले जाती है। जब पवन का बहाव रुकता है तो यह रेत गिरकर छोटी पहाड़ी बनाती है। इनको बालू टिब्बा कहते हैं।

(छ) समुद्री पुलिन का निर्माण कैसे होता है?
Ans
. जब समुद्री किनारों पर समुद्री अवसाद जमा हो जाते हैं और समुद्र का कुछ भाग समुद्र से कटकर एक झील का रूप ले लेता है, उसे पुलिन कहते हैं।

(ज) चापझील क्या है?
Ans.
जब नदी टेढ़ी-मेढ़ी साँप के आकार में बहती है और जब नदी का बहाव तेज हो जाता है तो कुछ स्थानों में नदी कठोर चट्टान को भी काटकर सीधी बहने लगती है, जिससे विसर्प लूप नदी से कटा जाते हैं और अलग झील बनाते हैं, जिसे चापझील या गोखुर झील कहते हैं।

2. सही (✓) उत्तर चिह्नित कीजिए-

(क) इनमें से कौन-सी समुद्री तरंग की विशेषता नहीं है?

(i) शैल

(ii) किनारा

(iii) समुद्री गुफा

Ans. शैल

(ख) हिमनद की निक्षेपण विशेषता है

(i) बाढ़कृत मैदान

(ii) पुलिन

(iii) हिमोढ़

Ans. हिमोढ़

(ग) पृथ्वी की आकस्मिक गतियों के कारण कौन-सी घटना होती है?

(i) ज्वालामुखी

(ii) वलन

(iii) बाढ़कृत मैदान

Ans. ज्वालामुखी

(घ) छत्रक शैलें पाई जाती है

(i) रेगिस्तान में

(ii) नदी घाटी में

(iii) हिमनद में

Ans. रेगिस्तान में

(च) चापझील यहाँ पाई जाती है

(i) हिमनद

(ii) नदी घाटी

(iii) रेगिस्तान

Ans. नदी घाटी

3. निम्नलिखित स्तंभों को मिलाकर सही जोड़े बनाइए-

कॉलम Aकॉलम B
हिमनदसमुद्री तट
विसर्पछत्रक शैल
पुलिनबर्फ़ की नदी
बालू टिब्बानदियाँ
जलप्रपातपृथ्वी का कंपन
भूकंपसमुद्र भृगु
कठोर संस्तर शैल
रेगिस्तान

Ans.

हिमनदबर्फ़ की नदी
विसर्पनदियाँ
पुलिनसमुद्री तट
बालू टिब्बारेगिस्तान
जलप्रपातकठोर संस्तर शैल
भूकंपपृथ्वी का कंपन

4. कारण बताइए-

(क) कुछ शैल छत्रक के आकार में होते हैं।
Ans.
कुछ शैलों का छत्रक के आकार में होने के कारण मरुस्थलीय भागों में पवनों के साथ चलने वाले रेत के कण मार्ग में पड़ने वाले चट्टानों के निचले हिस्से को अधिक घर्षित करते हैं और ऊपरी हिस्सों को इन पवनों से धर्षण काफी कम होता है, इसलिए निचले हिस्सों की चट्टानें काफ़ी घिस जाती हैं और ये चट्टानें छतरीनुमा आकार की बन जाती हैं, जिसे छत्रक शेल कहा जाता है।

(ख) बाढ़कृत मैदान बहुत उपजाऊ होते हैं।
Ans.
बाढ़कृत मैदान के बहुत उपजाऊ होने के कारण

1. बाढ़ के समय नदी अपने तटों को पारकर अपने आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देती है।

2. बाढ़ के समय नदी के साथ काफी मात्रा में मलबा या अवसाद बहते हैं, इन अवसादों या मलबों को नदी अपने आस- पास के क्षेत्रों में जमा कर देती है।

3. इन अवसादों या मलबों में काफी मात्रा में ह्यूमस होती है जो कि बाढकृत मैदान को अधिक उपजाऊ बना देती है।

(ग) समुद्री गुफा स्टैक के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
Ans.
समुद्री गुफा स्टैक के रूप में परिवर्तित होने के कारण समुद्री तरंग के अपरदन एवं निक्षेपण तटीय स्थलाकृतियाँ बनाते हैं। समुद्री तरंगें लगातार शैलों से टकराती रहती हैं, जिससे दरार विकसित होती है। समय के साथ ये बड़ी और चौड़ी होती जाती हैं। इनको समुद्री गुफा कहते हैं। इन गुफाओं के बड़े होते जाने पर इनमें केवल छत ही बचती है, जिससे तटीय मेहराब बनते हैं। लगातार अपरदन छत्त को भी तोड़ देता है और केवल दीवारें बचती हैं। दीवार जैसी इन आकृतियों को स्टेक कहते हैं।

(घ) भूकंप के दौरान इमारतें गिरती है।
Ans.
भूकंप के दौरान इमारतें गिरने के कारण –

1. भूकंप के दौरान पृथ्वी की सतह पर काफी कंपन होता है और इस कंपन से मकान या इमारतें हिलने लगती हैं और हिलने से मकान या इमारतें गिरने लगती है।

2. अधिकांश इमारतें भूकंपरोधी नहीं होती।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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