संसद तथा कानूनों का निर्माण : अध्याय 3

हम भारतीयों को इस बात का गर्व है कि हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा हैं। इस अध्याय में हम निर्णय प्रक्रिया में सहभागिता और लोकतांत्रिक सरकार के लिए नागरिकों की सहमति के महत्त्व जैसे विचारों के आपसी संबंधों को समझने की कोशिश करेंगे।

यही वे तत्त्व हैं जो सम्मिलित रूप से भारत में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं। इस बात की सबसे अच्छी अभिव्यक्ति संसद के रूप में मिलती है। इस अध्याय में हम यह देखेंगे कि किस तरह हमारी संसद देश के नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेने और सरकार पर अंकुश रखने में मदद देती है। इसी आधार पर संसद भारतीय लोकतंत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीक और संविधान का केंद्रीय तत्त्व है।

लोगों को फ़ैसला क्यों लेना चाहिए?

जैसा कि हम जानते हैं, भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ। इस आज़ादी के लिए पूरे देश की जनता ने एक लंबा और मुश्किल संघर्ष चलाया था। इस संघर्ष में समाज के बहुत सारे तबकों की हिस्सेदारी थी। तरह-तरह की पृष्ठभूमि के लोगों ने इसमें भाग लिया। वे स्वतंत्रता, समानता तथा निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदारी के विचारों से प्रेरित थे। औपनिवेशिक शासन के तहत लोग ब्रिटिश सरकार से भयभीत रहते थे। वे सरकार के बहुत सारे फ़ैसलों से असहमत थे। लेकिन अगर वे इन फ़ैसलों की आलोचना करते तो उन्हें भारी खतरों का सामना करना पड़ता था। स्वतंत्रता आंदोलन ने यह स्थिति बदल डाली। राष्ट्रवादी खुलेआम ब्रिटिश सरकार की आलोचना करने लगे और अपनी माँगें पेश करने लगे। 1885 में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने माँग की कि विधायिका में निर्वाचित सदस्य होने चाहिए और उन्हें बजट पर चर्चा करने एवं प्रश्न पूछने का अधिकार मिलना चाहिए। 1909 में बने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट ने कुछ हद तक निर्वाचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को मंजूरी दे दी। हालाँकि ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत बनाई गई ये शुरुआती विधायिकाएँ राष्ट्रवादियों के बढ़ते जा रहे दबाव के कारण ही बनी थीं, लेकिन इनमें भी सभी वयस्कों को न तो वोट डालने का अधिकार दिया गया था और न ही आम लोग निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते थे।

इस चित्र में एक मतदाता इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.) के इस्तेमाल की विधि पढ़ रहा है। 2004 के आम चुनावों में पहली बार पूरे देश में ई.वी.एम. का इस्तेमाल किया गया था। इस चुनाव में ई.वी.एम. के इस्तेमाल से लगभग 1,50,000 पेड़ों की रक्षा हुई क्योंकि मतपत्रों की छपाई के लिए इन पेड़ों को काट कर 8,000 टन कागज बनाना पड़ता।

जैसा कि आपने पहले अध्याय में पढ़ा था, औपनिवेशिक शासन के अनुभव और स्वतंत्रता संघर्ष में तरह-तरह के लोगों की हिस्सेदारी के आधार पर राष्ट्रवादियों को विश्वास हो गया था कि स्वतंत्र भारत में सभी लोग अपने जीवन को प्रभावित करने वाले फ़ैसलों में हिस्सा लेने की क्षमता रखते हैं। स्वतंत्रता मिलने पर हम एक स्वतंत्र देश के नागरिक बनने वाले थे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि सरकार जो चाहे कर सकती थी। इसका मतलब यह था कि अब सरकार को लोगों की जरूरतों और माँगों के प्रति संवेदनशील रहना होगा। स्वतंत्रता

संघर्ष के सपनों और आकांक्षाओं ने स्वतंत्र भारत के संविधान में ठोस रूप ग्रहण किया। इस संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाया। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का मतलब है कि देश के सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार है।

लोग और उनके प्रतिनिधि

सहमति का विचार लोकतंत्र का प्रस्थानबिंदु होता है। सहमति का मतलब है चाह, स्वीकृति और लोगों की हिस्सेदारी। लोगों का निर्णय ही लोकतांत्रिक सरकार का गठन करता है और उसके कामकाज के बारे में फ़ैसला देता है। इस तरह के लोकतंत्र के पीछे मूल सोच यह होती है कि व्यक्ति या नागरिक ही सबसे महत्त्वपूर्ण है और सैद्धांतिक स्तर पर सरकार एवं अन्य सार्वजनिक संस्थानों में इन नागरिकों की आस्था होनी चाहिए।

व्यक्ति सरकार को अपनी मंजूरी कैसे देता है? जैसा कि आपने पढ़ा है, मंजूरी देने का एक तरीका चुनाव है। लोग संसद के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। इन्हीं निर्वाचित प्रतिनिधियों में से एक समूह सरकार बनाता है। जनता द्वारा चुने गए सभी प्रतिनिधियों के इस समूह को ही संसद कहा जाता है। यह संसद सरकार को नियंत्रित करती है और उसका मार्गदर्शन करती है। इस लिहाज से अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से लोग ही सरकार बनाते हैं और उस पर नियंत्रण रखते हैं।

इस फोटो में चुनाव कर्मचारी एक दुर्गम इलाके में स्थित मतदान केंद्र तक मतदान सामग्री और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पहुँचाने के लिए हाथी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

प्रतिनिधित्व का यह विचार कक्षा 6 और 7 की सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन पाठ्यपुस्तकों का एक महत्त्वपूर्ण विषय था। आप इस बात से पहले ही परिचित हैं कि सरकार के विभिन्न स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव किस तरह किया जाता है। आइए निम्नलिखित अभ्यास के माध्यम से इन विचारों को एक बार फिर दोहरा लें।

1. विधायक (एमएलए) कौन होता है और उसका चुनाव कैसे किया जाता है इस बात को सासज्ञाने के लिए ‘निर्वाचन क्षेत्र’ और ‘प्रतिनिधित्व’ शब्दों का प्रयोग करें।

2. राज्य विधानसभा और संसद (लोकसभा) के बीच क्या फ़र्क है चर्चा कीजिए। इस बारे में अपने शिक्षक के साथ चर्चा कीजिए।

3. नीचे दिये गए विकल्पों में से कौन से काम राज्य सरकार के हैं और कौन से केंद्र सरकार के हैं?

(क) चीन के साथ शांतिपूर्ण संबंध रखा जाएगा।

(ख) मध्य प्रदेश में बोर्ड के तहत आने वाले सभी स्कूलों में कक्षा 8 को बोर्ड की परीक्षाओं से बाहर रखा जाएगा।

(ग) अजमेर और मैसूर के बीच एक नयी रेलगाड़ी चलाई जाएगी।

(घ) 1000 रुपये का नया नोट जारी किया जाएगा।

4. निम्नलिखित शब्दों को रिक्त स्थानों में भरें- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकारः विधायकों; प्रतिनिधियों; प्रत्यक्ष रूप से

हमारे समय में लोकतांत्रिक सरकारों को आमतौर पर प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र की संज्ञा दी जाती है। प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र में लोग …………हिस्सेदारी नहीं करते बल्कि चुनाव प्रक्रिया के जरिए अपने …………को चुनते हैं। ये……. पूरी जनता के बारे में मिलकर फैसले लेते हैं। आज के दौर में ऐसी किसी सरकार को लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता जो अपने लोगों को…… न देती हो। इसका मतलब यह है कि देश के सभी वयक नायकों को बोट देने का अधिकार होता है।

5. आप पढ़ चुके हैं कि पंचायत, राज्य विधायिका या संसद के लिए चुने जाने वाले ज्यादातर निर्वाचित प्रतिनिधियों को 5 साल की अवधि के लिए चुना जाता है। ऐसा क्यों है कि जनप्रतिनिधियों को केवल कुछ सालों के लिए ही चुना जाता है, जीवनभर के लिए नहीं?

6. आप यह पढ़ चुके हैं कि सरकार की कार्रवाइयों पर अपनी सहमति या असहमति व्यक्त करने के लिए लोग केवल चुनावों का ही इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि वे दूसरे रास्ते भी अख्तियार करते हैं। क्या आप छोटे से नाटक के जरिए इस तरह के तीन तरीके बता सकते हैं?

1. भारतीय संसद देश की सर्वोच्च कानून निर्मात्री संस्था है। इसके दो सदन हैं राज्य सभा और लोक सभा ।

2. राज्य सभा में कुल 245 सदस्य होते हैं। देश के उपराष्ट्रपति राज्य सभा के सभापति होते हैं।

3. लोक सभा में कुल 545 सदस्य होते हैं। इसकी अध्यक्षता लोक सभा अध्यक्ष करते हैं।

संसद की भूमिका

आज़ादी के बाद गठित की गई भारतीय संसद लोकतंत्र के सिद्धांतों में भारतीय जनता की आस्था का प्रतीक है। ये सिद्धांत हैं निर्णय प्रक्रिया में जनता की हिस्सेदारी और सहमति पर आधारित शासन। हमारी व्यवस्था में संसद के पास महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ हैं क्योंकि यह जनता का प्रतिनिधित्व करती है। लोक सभा के लिए भी उसी तरह चुनाव होते हैं जिस तरह राज्य विधानसभा के लिए चुनाव होते हैं। आम तौर पर लोक सभा के लिए हर पाँच साल में चुनाव करवाए जाते हैं। जैसा कि पृष्ठ संख्या 41 पर दिए गए नक्शे में दिखाया गया है, देश को बहुत सारे निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक व्यक्ति को संसद में भेजा जाता है। चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार आमतौर पर विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य होते हैं।

नीचे दी गई तालिका के माध्यम से आइए इस बात को और अच्छी तरह समझें।

सत्रहवीं लोक सभा के चुनाव का परिणाम (2019)

राजनीतिक दलनिर्वाचित सांसदों की संख्या
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)303
इंडियन नेशनल काँग्रेस (आईएनसी)52
द्रविड मुनेत्र कलकम (डीएमके)24
ऑल इंडिया तृणमूल काँग्रेस (एआईटीसी)22
युवा श्रम और किसान काँग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी)22
शिव सेना (एसएस)18
जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू)16
बीजू जनता दल (बीजेडी)12
बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा)10
तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस)9
लोक जन शक्ति पार्टी (एलजेएसपी)5
समाजवादी पार्टी (सपा)5
निर्दलीय4
नेशनलिस्ट काँग्रेस पार्टी (एनसीपी)4
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) (सीपीआईएम)3
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल)3
जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (जेएंडके एनसी)3
तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी)3
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम)2
अपना दल (अपना दल)2
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई)2
शिरोमणि अकाली दल (एसएडी)2
आम आदमी पार्टी (आप)1
एजेएसयू पार्टी (एजेएसयू)1
ऑल इंडिया अन्ना द्रविड मुन्नेत्र कलकम (एआईएडीएमके)1
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ)1
जनता दल (सेक्यूलर)1
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम)1
केरल काँग्रेस (एम) (केसी (एम))1
मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ)1
नागा पीपुल फ्रंट (एनपीएफ)1
नेशनल पीपुल पार्टी (एनपीपी)1
नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (पीडीपीपी)1
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी)1
रेवोल्यूशनरी सोशलिष्ट पार्टी (आरएसपी)1
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम)1
बिदुधलाई चिरुथाईगल कच्ची (बीसीके)1
कुल योग =  543

चुने जाने के बाद ये उम्मीदवार संसद सदस्य या सांसद (एम.पी.) कहलाते हैं। इन सांसदों को मिलाकर संसद बनती है। संसद के चुनाव हो जाने के बाद संसद को निम्नलिखित काम करने होते हैं-

(क) राष्ट्रीय सरकार का चुनाव करना

भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन होते हैं- राज्य सभा और लोक सभा। लोक सभा चुनावों के बाद सांसदों की एक सूची बनाई जाती है। इससे पता चलता है कि किस राजनीतिक दल के कितने सांसद हैं। यदि कोई राजनीतिक दल सरकार बनाना चाहता है तो उसे निर्वाचित सांसदों में बहुमत प्राप्त होना चाहिए। चूँकि लोक सभा में कुल 543 निर्वाचित सदस्य (और 2 मनोनीत सदस्य) होते हैं। इसलिए बहुमत हासिल करने के लिए लोक सभा में किसी भी दल के पास कम से कम 272 सदस्य होने चाहिए। संसद में बहुमत प्राप्त करने वाले दल या गठबंधन का अंग नहीं होने वाले सभी राजनीतिक दल विपक्षी दल कहलाते हैं।

कार्यपालिका का चुनाव करना लोक सभा का एक महत्त्वपूर्ण काम होता है। जैसा कि आपने पहले अध्याय में पढ़ा था, कार्यपालिका ऐसे लोगों का समूह होती है जो संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने के लिए मिलकर काम करते हैं। जब हम सरकार शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो हमारे जेहन में अकसर यही कार्यपालिका होती है।

भारत का प्रधानमंत्री लोक सभा में सत्ताधारी दल का मुखिया होता है। प्रधानमंत्री अपने दल के सांसदों में से मंत्रियों का चुनाव करता है जो प्रधानमंत्री के साथ मिलकर फ़ैसलों को लागू करते हैं। ये मंत्री स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्त इत्यादि विभिन्न सरकारी कार्यों का जिम्मा सँभालते हैं।

हाल के सालों में काफ़ी बार किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिल पाया है जो कि सरकार बनाने के लिए एकदम जरूरी है। ऐसी सूरत में कई राजनीतिक दल मिलकर एक गठबंधन सरकार बना लेते हैं और साझा मुद्दों पर काम करते हैं।

केंद्रीय सचिवालय की ये दो मुख्य इमारतें हैं। इनमें से एक का नाम साउथ ब्लॉक और दूसरी का नाम नॉर्थ ब्लॉक है। इनका निर्माण 1930 के दशक में किया गया था। बाई ओर साउय ब्लॉक का चित्र है जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के दफ्दर है। दाई ओर नॉर्थ ब्लॉक है जहाँ वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय स्थित है। केंद्र सरकार के अन्य मंत्रालय नई दिल्ली की विभिन्न इमारतों में स्थित हैं।

राज्य सभा मुख्य रूप से देश के राज्यों की प्रतिनिधि के रूप में काम करती है। राज्य सभा भी कोई कानून बनाने का प्रस्ताव पेश कर सकती है। किसी विधेयक को कानून के रूप में लागू करने के लिए यह जरूरी है कि उसे राज्य सभा की भी मंजूरी मिल चुकी हो। इस प्रकार राज्य सभा की भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। संसद का यह सदन लोक सभा द्वारा पारित किए गए कानूनों की समीक्षा करता है और अगर जरूरत हुई तो उसमें संशोधन करता है। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं। राज्य सभा में 233 निर्वाचित सदस्य होते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत किए जाते हैं।

(ख) सरकार को नियंत्रित करना, मार्गदर्शन देना और जानकारी देना

जब संसद का सत्र चल रहा होता है तो उसमें सबसे पहले प्रश्नकाल होता है। प्रश्नकाल एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है। इसके माध्यम से सांसद सरकार के कामकाज के बारे में जानकारियाँ हासिल करते हैं। इसके ज़रिए संसद कार्यपालिका को नियंत्रित करती है। सवालों के माध्यम से सरकार को उसकी खामियों के प्रति आगाह किया जाता है। इस तरह सरकार को भी जनता के प्रतिनिधियों यानी सांसदों के ज़रिए जनता की राय जानने का मौका मिलता है। सरकार से सवाल पूछना किसी भी सांसद की बहुत महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। लोकतंत्र के स्वस्थ संचालन में विपक्षी दल एक अहम भूमिका अदा करते हैं। वे सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की कमियों को सामने लाते हैं और अपनी नीतियों के लिए जनसमर्थन जुटाते हैं।

सांसदों के प्रश्नों से सरकार को भी महत्त्वपूर्ण फ़ीडबैक मिलता है। इसके चलते सरकार चुस्त रहती है। इसके अलावा वित्त से संबंधित सभी मामलों में संसद की मंजूरी सरकार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। यह उन कई तरीकों में से एक है जिसके माध्यम से संसद सरकार को नियंत्रित करती है, उसका मार्गदर्शन करती है और उसको सूचित करती है। जनप्रतिनिधियों के रूप में संसद को नियंत्रित, निर्देशित और सूचित करने में सांसदों की एक अहम भूमिका होती है और यह भारतीय लोकतंत्र का एक मुख्य आयाम है।

नए कानून किस तरह बनते हैं?

कानून बनाने में संसद की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह प्रक्रिया कई तरह से आगे बढ़ती है। आमतौर पर सबसे पहले समाज के विभिन्न समूह ही किसी खास कानून के लिए आवाज उठाते हैं। यह संसद की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के सामने आ रही समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो। आइए देखें कि घरेलू हिंसा का सवाल किस तरह संसद के सामने आया और घरेलू हिंसा की रोकथाम पर कानून बनने की प्रक्रिया क्या थी।


जब परिवार का कोई पुरुष सदस्य (आमतौर पर पति) घर की किसी औरत (आमतौर पर पत्नी) के साथ मारपीट करता है, उसे चोट पहुँचाता है, या मारपीट अथवा चोट की धमकी देता है तो सामान्यतः इसे घरेलू हिंसा कहा जाता है। औरत को यह नुकसान शारीरिक मारपीट या भावनात्मक शोषण के कारण पहुँच सकता है। यह शोषण मौखिक, यौन या फिर आर्थिक शोषण भी हो सकता है। घरेलू हिंसा कानून, 2005 में महिलाओं की सुरक्षा की परिभाषा ने ‘घरेलू’ शब्द की समझ को और अधिक व्यापक बना दिया है। अब ऐसी महिलाएँ भी घरेलू दायरे का हिस्सा मानी जाएँगी जो हिंसा करने वाले पुरुष के साथ एक ही मकान में ‘रहती हैं’ या ‘रह चुकी हैं।

जिन औरतों के साथ हिंसा या दुराचार होता है उन्हें आमतौर पर पीड़ित माना जाता है। इन हालात से उबरने के लिए औरतें तरह-तरह से संघर्ष करती हैं। इसलिए उन्हें पीड़ित की बजाय ‘सरवाइवर’ कहना ज्यादा बेहतर है। इस अंग्रेज़ी शब्द का अर्थ है जो बचा रहे।

इस उदाहरण से साफ़ हो जाता है कि नागरिकों की भूमिका कानून बनाने में कितनी अहम है। वे जनता की चिंताओं को कानून के दायरे में लाने के लिए संसद की मदद कर सकते हैं। इस प्रक्रिया के हर चरण में नागरिकों की आवाज़ बहुत मायने रखती है। यह आवाज़ टेलीविजन रिपोटों, अखबारों के संपादकीयों, रेडियो प्रसारणों और आम सभाओं के जरिए सुनी और व्यक्त की जा सकती है। इन सारे संचार माध्यमों के ज़रिए संसद का काम ठोस और पारदर्शी तरीके से जनता के सामने आता है।

अलोकप्रिय और विवादास्पद कानून

आइए अब एक और स्थिति पर विचार करें। कई बार संसद एक ऐसा कानून पारित कर देती है जो बेहद अलोकप्रिय साबित होता है। ऐसा कानून संवैधानिक रूप से वैध होने के कारण कानूनन सही हो सकता है। फिर भी वह लोगों को रास नहीं आता क्योंकि उन्हें लगता है कि उसके पीछे नीयत सही नहीं थी। इसीलिए लोग उसकी आलोचना कर सकते हैं, उसके खिलाफ़ जनसभाएँ कर सकते हैं, अखबारों में लिख सकते हैं, टीवी चैनलों में रिपोर्ट भेज सकते हैं। हमारे जैसे लोकतंत्र में आम नागरिक संसद द्वारा बनाए जाने वाले दमनकारी कानूनों के बारे में अपनी असहमति व्यक्त कर सकते हैं। जब बहुत सारे लोग यह मानने लगते हैं कि गलत कानून पारित हो गया है तो संसद के ऊपर भी उस कानून पर दोबारा विचार करने का दबाव पड़ता है।

उदाहरण के लिए, नगरपालिका की सीमाओं के भीतर जगह के इस्तेमाल से संबंधित विभिन्न नगरपालिका कानूनों में पटरी पर दुकान लगाने और फेरी लगाने को गैरकानूनी घोषित किया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सार्वजनिक स्थानों को साफ़-सुथरा और खुला रखने के लिए कुछ कानून जरूरी हैं। तभी लोग आसानी से फुटपाथों पर चल पाएँगे। लेकिन हम इस बात को भी नज़रअंदाज नहीं कर सकते कि पटरी वाले एवं फेरी वाले किसी भी बड़े शहर में रहने वाले लाखों लोगों को ज़रूरी चीजें और सेवाएँ बहुत सस्ती कीमत पर और कुशलतापूर्वक पहुँचाते हैं। इसी से उनकी रोजी-रोटी भी चलती है। लिहाजा अगर कानून किसी एक समूह की हिमायत करता है और दूसरे समूह की उपेक्षा करता है तो उस पर विवाद खड़ा होगा और टकराव की स्थिति पैदा हो जाएगी। जो लोग सोचते हैं कि संबंधित कानून सही नहीं है, वे इस मुद्दे पर फ़ैसले के लिए अदालत की शरण में जा सकते हैं। यदि अदालत को ऐसा लगता है कि वह कानून संविधान के विरुद्ध है तो वह उसमें संशोधन कर सकती है या उसे रद्द कर सकती है।

जैसा कि आपने कानून के शासन पर केंद्रित पिछले भाग में पढ़ा है, भारतीय राष्ट्रवादी खेमा अंग्रेजों द्वारा थोपे जा रहे मनमाने और दमनकारी कानूनों का विरोध व उनकी आलोचना करता था। इतिहास में हमें ऐसे बहुत सारे लोग और समुदाय दिखाई देते हैं जिन्होंने अन्यायपूर्ण कानूनों को खत्म करवाने के लिए संघर्ष किए हैं। कक्षा 7 की पुस्तक में आपने पढ़ा था कि रोजा पार्क्स नामक अफ्रीकी-अमेरिकी महिला ने 1 दिसंबर 1955 को एक श्वेत व्यक्ति के लिए बस में अपनी सीट छोड़ने से इनकार कर दिया था। रोजा पार्क्स उस कानून का विरोध कर रही थीं जो सभी सार्वजनिक स्थानों पर श्वेत नागरिकों और अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिकों के लिए अलग-अलग दायरे तय करता था। यहाँ तक कि सड़कों पर भी दोनों समुदायों की जगह अलग-अलग होती थी। रोजा पार्क्स का यह इनकार एक ऐतिहासिक घटना थी। इसी के बाद वहाँ नागरिक अधिकार आंदोलन शुरू हुआ जिसके फलस्वरूप 1964 में नागरिक अधिकार कानून पारित किया गया। इस कानून के जरिए संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्ल, धर्म या राष्ट्रीयता के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। उपरोक्त चित्र में रोजा पार्क्स बस में यात्रा करती हुई दिखाई दे रही हैं।

हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नागरिक के रूप में हमारी भूमिका प्रतिनिधियों के चुनाव के साथ खत्म नहीं होती। इसके बाद हम अखबारों और अन्य संचार माध्यमों के ज़रिए इस बात पर नज़र रखते हैं कि हमारे सांसद क्या कर रहे हैं। अगर हमें लगता है कि वे सही काम नहीं कर रहे हैं तो हम उनकी आलोचना करते हैं। इस प्रकार हमें इस बात को सदा ध्यान में रखना चाहिए कि लोगों की जितनी हिस्सेदारी होगी और जितने उत्साह से वे जुड़ेंगे, उतना ही संसद को अपना काम सही ढंग से करने में मदद मिलेगी।

शब्द संकलन

स्वीकृति : किसी चीज पर अपनी सहमति देना और उसके पक्ष में काम करना। इस अध्याय में यह शब्द संसद के पास उपलब्ध औपचारिक सहमति (निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से) और संसद में लोगों की आस्था बनाए रखने की जरूरत, दोनों संदों में इस्तेमाल किया गया है।

गठबंधन : इसका मतलब समूहों या दलों के तात्कालिक गठजोड़ से होता है। इस अध्याय में गठबंधन शब्द का इस्तेमाल चुनावों के बाद किसी भी दल को बहुमत न मिलने की स्थिति में बनने वाले गठजोड़ के लिए किया गया है।

अनसुलझे : इसका आशय ऐसी परिस्थितियों से है जहाँ समस्याओं का कोई आसान समाधान उपलब्ध नहीं होता है।

आलोचना : किसी व्यक्ति या चीत में कमियाँ निकालना या उसे अस्वीकार कर देना। इस अध्याय में आलोचना शब्द का इस्तेमाल सरकार के कामकाज पर नागरिकों की ओर से होने वाली आलोचना के लिए किया गया है।

विकासक्रम : सरल से जटिल रूप तक विकास की प्रक्रिया को विकासक्रम कहा जाता है। आमतौर पर इस शब्द का इस्तेमाल पौधों या पशुओं को किसी प्रजाति के विकास का वर्णन करने के लिए किया जाता है। इस अध्याय में विकासक्रम का मतलब इस बात से है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने का विचार किस तरह एक अखिल भारतीय कानून के रूप में विकसित हुआ।

राजद्रोह : जब सरकार को ऐसा लगता है कि उसके खिलाफ़ प्रतिरोध पैदा हो रहा है या विद्रोह किया जा रहा है तो उसे राजद्रोह कहा जाता है। ऐसी स्थिति में सरकार को किसी की गिरफ्तारी के लिए ठोस सुबूत की जरूरत नहीं होती। 1870 के राजद्रोह एक्ट के अंतर्गत अंग्रेज सरकार राजद्रोह की बहुत व्यापक परिभाषा का इस्तेमाल करती थी। लिहाजा वे इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करके जेल में डाल सकते थे। राष्ट्र‌वादी नेता इस कानून को मनमाना मानते थे क्योंकि बहुत सारे लोगों को गिरफ्तारी से पहले वजह भी नहीं बताई जाती थी। उन्हें बिना मुकदमा चलाए ही जेल में डाल दिया जाता था।

दमनकारी : स्वतंत्र और स्वाभाविक विकास या अभिव्यक्ति को रोकने के लिए सख्ती से नियंत्रण स्थापित करना। इस अध्याय में उन कानूनों को दमनकारी कहा गया है जो लोगों को बहुत निर्मम ढंग से नियंत्रित करते हैं और उन्हें सभा करने व अपनी बात कहने सहित मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल करने से भी रोक देते हैं।

यह भी पढ़ें : धर्मनिरपेक्षता की समझ : अध्याय 2

अभ्यास

1. राष्ट्रवादी आंदोलन ने इस विचार का समर्थन किया कि सभी वयस्कों को मत देने का अधिकार होना चाहिए?
Ans.
सन् 1885 में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने माँग की कि विधायिका में निर्वाचित सदस्य होने चाहिए और उन्हें बजट पर चर्चा करने एवं प्रश्न पूछने का अधिकार मिलना चाहिए। 1909 में बने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट ने कुछ हद तक निर्वाचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को मंजूरी दे दी। हालांकि ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत बनाई गई शुरुआती विधायिकाएँ राष्ट्रवादियों के बढ़ते जा रहे दबाव के कारण ही बनी थी। लेकिन इनमें भी सभी वयस्कों को न तो वोट डालने का अधिकार दिया गया था और न ही आम लोग निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते थे। क्योंकि राष्ट्रीय नेता इस एक्ट से संतुष्ट नहीं थे। 1919 एवं 1935 के एक्ट के अंतर्गत मतदाताओं की संख्या बढ़ी परन्तु वयस्क निर्माण मताधिकार लागू नहीं किया गया। भारतीय नेताओं ने वयस्क मताधिकार की मांग की ओर जब उन्हें संविधान निर्माण का अवसर मिला तो उन्होंने वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को लागू किया।

2. बगल में 2004 के संसदीय चुनाव क्षेत्रों का नक्शा दिया गया है। इस नक्शे में अपने राज्य के चुनाव क्षेत्रों को पहचानने का प्रयास करें। आपके चुनाव क्षेत्र के सांसद का क्या नाम है? आपके राज्य से संसद में कितने सांसद जाते हैं? कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को हरे और कुछ को नीले रंग में क्यों दिखाया गया है?


Ans. लोकसभा चुनाव क्षेत्र – करनाल – श्री अरविंद शर्मा (2004) (कांग्रेस सांसद) हरियाणा राज्य : लोकसभा सीटें – 10 हरे रंग के निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जनजातियों एवं नीले रंग के निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित है।

3. अध्याय 1 में आपने पढ़ा था कि भारत में प्रचलित ‘संसदीय शासन व्यवस्था’ में तीन स्तर होते हैं। इनमें से एक स्तर संसद (केंद्र सरकार) तथा दूसरा स्तर विभिन्न राज्य विधायिकाओं (राज्य सरकारों) का होता है। अपने क्षेत्र के विभिन्न प्रतिनिधियों से संबंधित सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित तालिका को भरें-

राज्य सरकारकेंद्र सरकार
कौन सा / से राजनीतिक दल अभी सत्ता में है?
आपके क्षेत्र में निर्वाचन प्रतिनिधि कौन है?
अभी कौन-सा राजनीतिक दल विपक्ष में है?
पिछले चुनाव कब हुए थे ?
अगले चुनाव कब होंगे ?
आपके राज्य से कितनी महिला प्रतिनिधि है ?

Ans.

राज्य सरकारकेंद्र सरकार
कौन सा / से राजनीतिक दल अभी सत्ता में है?भारतीय जनता पार्टीभारतीय जनता पार्टी
आपके क्षेत्र में निर्वाचन प्रतिनिधि कौन है?विजय कुमार दुबेप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
अभी कौन-सा राजनीतिक दल विपक्ष में है?समाजवादी पार्टीसमाजवादी पार्टी
पिछले चुनाव कब हुए थे ?20192019
अगले चुनाव कब होंगे ?20242024
आपके राज्य से कितनी महिला प्रतिनिधि है ?880

पाठ के बीच में पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर

1: सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार क्यों मिलना चाहिए, इसके पक्ष में एक कारण बताइए।
Ans. 
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से तात्पर्य यह है कि देश के सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार है। औपनिवेशिक शासन के अनुभव और स्वतंत्रता संघर्ष में तरह तरह के लोगों की हिस्सेदारी के आधार पर राष्ट्रवादियों को विश्वास हो गया था कि स्वतंत्र भारत में सभी लोग अपने जीवन को प्रभावित करने वाले फैसलों में हिस्सा लेने की क्षमता रखते है। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से लोग खुद की जरूरतों और मांगों के प्रति संवेदनशील रहेंगे।

2: क्लास मॉनीटर का चुनाव शिक्षक द्वारा किया जाता है या विद्यार्थियों द्वारा, आपकी राय में इस बात से कोई फर्क पड़ता है या नहीं? चर्चा कीजिए।
Ans.
 हमारे विचार से क्लास मॉनीटर का चुनाव विद्यार्थियों द्वारा होना चाहिए क्योंकि अगर यह चुनाव विद्यार्थी करेंगे तो वह उस मॉनीटर की हर बात मानेंगे भी और उनका सहयोग भी करेंगे। यह सहयोग की भावना मॉनीटर में भी रहेगी। अगर यह चुनाव शिक्षक करेंगे तो उनके मन में यह हीन भावना पैदा होगी कि यह शिक्षक को पसंद है और हम नहीं, हमें क्यों नहीं चुना गया।

3: आपको संसद में महिलाओं की कम संख्या का क्या कारण समझ में आता है? चर्चा करें।
Ans.
संसद में महिलाओं की कम संख्या का कारण है कि महिलाओं को सांसद से जुड़े रहने के लिए कम समझना, उन्हें पुरुषों के मुकाबले कमजोर मानना। महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं समझा जाता। कहीं तवा ये सोचा जाता है कि वे घर का काम करने में भी व्यस्त रहेगी और राजनीति में दिलचस्पी भी उनकी कम रहेगी।

4: विधायक (एमएलए) कौन होता है और उसका चुनाव कैसे किया जाता है। इस बात को समझाने के लिए निर्वाचन क्षेत्र और प्रतिनिधित्व शब्दों का प्रयोग करें।
Ans.
 राज्य की विधायिका के सदस्य को विधायक कहते हैं। हर राज्य को कई निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से चुनकर आया हुआ विधायक उस क्षेत्र के जनता का प्रतिनिधित्व करता है।

5: राज्य विधानसभा और संसद (लोकसभा) के बीच क्या फर्क है। इस बारे में अपने शिक्षक के साथ चर्चा कीजिए।
Ans.
राज्य की विधायिका को विधानसभा कहते हैं। हर राज्य की अपनी अलग विधायिका होती है। पूरे देश की विधायिका को संसद कहते हैं।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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