अग्नि पथ : अध्याय 9

अग्नि पथ ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत !
अग्नि पथ ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! – कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ !
अग्नि पथ ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

यह महान दृश्य है-
चल रहा मनुष्य है।
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ !
अग्नि पथ! अग्नि पथ ! अग्नि पथ !

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प्रश्न-अभ्यास

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) कवि ने ‘अग्नि पथ’ किसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है?
Ans.
कवि ने ‘अग्नि पथ’ जीवन के कठिनाई भरे रास्ते के लिए प्रयुक्त किया है। कवि का मानना है कि जीवन में पग-पग पर संकट हैं, चुनौतियाँ हैं और कष्ट हैं। इस प्रकार यह जीवन संघर्षपूर्ण है।

(ख) ‘माँग मत’, ‘कर शपथ’, ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है?
Ans.
 “माँग मत’, ‘कर शपथ’ तथा ‘लथपथ’ शब्दों का बार-बार प्रयोग करके कवि मनुष्य को कष्ट सहने के लिए तैयार करना चाहता है। वह चाहता है कि मनुष्य आँसू, पसीने और खून से लथपथ’ होने पर भी राहत और सुविधा न माँगे। वह कष्टों को रौंदता हुआ आगे बढ़ता जाए और संघर्ष करने की शपथ ले।

(ग) ‘एक पत्र-छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
Ans.
इस पंक्ति का आशय है-मनुष्य जीवन के कष्ट भरे रास्तों पर चलते हुए थोड़ा-सा भी आराम या सुविधा न माँगे। वह निरंतर कष्टों से जूझता रहे।

2. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) तू न थमेगा कभी
       तू न मुड़ेगा कभी
Ans.
इन पंक्तियों का भाव यह है कि हे मनुष्य! जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, पर तू उनसे हार मानकर कभी रुकेगा नहीं और संघर्ष से मुँह मोड़कर तू कभी वापस नहीं लौटेगा बस आगे ही बढ़ता जाएगा।

(ख) चल रहा मनुष्य है
      अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
Ans.
 कवि देखता है कि जीवन पथ में बहुत-सी कठिनाइयाँ होने के बाद भी मनुष्य उनसे हार माने बिना आगे बढ़ता जा रहा है। कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए वह आँसू, पसीने और खून से लथपथ है। मनुष्य निराश हुए बिना बढ़ता जा रहा है।

3. इस कविता का मूलभाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।
Ans.
इस कविता का मूलभाव है-निरंतर संघर्ष करते हुए जियो। कवि जीवन को आग-भरा पथ मानता है। इसमें पग-पग पर चुनौतियाँ और कष्ट हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह इन चुनौतियों से न घबराए। न ही इनसे मुँह मोड़े। बल्कि वह आँसू पीकर, पसीना बहाकर तथा खून से लथपथ होकर भी निरंतर संघर्ष करता रहे।

हरिवंशराय बच्चन (1907-2003)

हरिवंशराय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में 27 नवंबर 1907 को हुआ। ‘बच्चन’ इनका माता-पिता द्वारा प्यार से लिया जानेवाला नाम था, जिसे इन्होंने अपना उपनाम बना लिया था। बच्चन कुछ समय तक विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहने के बाद भारतीय विदेश सेवा में चले गए थे। इस दौरान इन्होंने कई देशों का भ्रमण किया और मंच पर ओजस्वी वाणी में काव्यपाठ के लिए विख्यात हुए। बच्चन की कविताएँ सहज और संवेदनशील हैं। इनकी रचनाओं में व्यक्ति-वेदना, राष्ट्र-चेतना और जीवन-दर्शन के स्वर मिलते हैं। इन्होंने आत्मविश्लेषणवाली कविताएँ भी लिखी है। राजनैतिक जीवन के ढोंग, सामाजिक असमानता और कुरीतियों पर व्यंग्य किया है। कविता के अलावा बच्चन ने अपनी आत्मकथा भी लिखी, जो हिंदी गद्य की बेजोड़ कृति मानी गई।

बच्चन की प्रमुख कृतियाँ हैं मधुशाला, निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, आरती और अंगारे, टूटती चट्टानें, रूप तरंगिणी (सभी कविता संग्रह) और आत्मकथा के चार खंड : क्या भूलूँ क्या याद करू, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।

बच्चन साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार और सरस्वती सम्मान से सम्मानित हुए।

प्रस्तुत कविता में कवि ने संघर्षमय जीवन को ‘अग्नि पथ’ कहते हुए मनुष्य को यह संदेश दिया है कि राह में सुख रूपी छाँह की चाह न कर अपनी मंजिल की ओर कर्मठतापूर्वक बिना थकान महसूस किए बढ़ते ही जाना चाहिए। कविता में शब्दों की पुनरावृत्ति कैसे मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, यह देखने योग्य है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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