1950 में भारत सरकार (यानि केंद्रीय मंत्रिमंडल) के कार्यकारी प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग का गठन किया गया था। इसका गठन 1946 में के.सी. नियोगी की अध्यक्षता में स्थापित सलाहकार योजना बोर्ड की सिफारिश के बाद किया गया। इस तरह योजना आयोग न तो संवैधानिक निकाय है और न ही विधिक। दूसरे शब्दों में, यह गैर-संवैधानिक एवं अतिरिक्त संवैधानिक इकाई (जिसे संविधान द्वारा निर्मित नहीं किया गया) या सांविधिक निकाय (जिसे संसद के अधिनियम द्वारा नहीं बनाया गया) है। यह आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए नियोजन का सर्वोच्च अंग है।
कार्य
योजना आयोग के कार्य निम्नलिखित हैं:
1. देश के पदार्थ, पूंजी और मानव संसाधनों का आंकलन करना और उनके संवर्धन की संभावनाओं को तलाशना ।
2. देश के संसाधनों का संतुलित उपयोग करते हुए सबसे प्रभावी योजना को बनाना।
3. वरीयताओं का निर्धारण एवं उन स्तरों को परिभाषित करना जिनमें इन योजनाओं को लागू किया जा सकता है।
4. उन कारकों को चिह्नित करना जिससे आर्थिक विकास अवरुद्ध हो रहा हो।
5. प्रत्येक स्तर पर योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए चीजों का निर्धारण।
6. योजना के निष्पादन में प्राप्त प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन और आवश्यक परिवर्तनों के संबंध में सिफारिश करना।
7. अपने कर्तव्यों के निर्वहन या केन्द्रीय या राज्य सरकारों द्वारा परामर्श हेतु संदर्भित किसी मामले के लिए उपर्युक्त सिफारिशें करना।
कार्यवाही नियमावली का आवंटन (Allocation of Buisness Rules) द्वारा योजना आयोग को उपरोक्त के अतिरिक्त निम्नलिखित मामले सौंपे गए हैं:
1. राष्ट्रीय विकास में जन-सहयोग
2. समय-समय पर अधिसूचित क्षेत्रों के विकास के लिए विशेष कार्यक्रम
3. परिप्रेक्ष्य आयोजना
4. इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लायड मैन पॉवर रिसर्च
5. भारतीय विशेष पहचान प्राधिकरण (Unique Iden- tification Authority of India, UIDAI)
6. नेशनल रेन फेड एरिया ऑथिरिटी (NRAA) से संबंधित सभी मामले
पहले नेशनल इंफॉरमैटिक्स सेन्टर योजना आयोग के अधीन था। बाद में इसे सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत लाया गया।
UIDAI का गठन योजना आयोग के सम्बद्ध कार्यालय के रूप में जनवरी, 2009 में किया गया था।
NRAA को कृषि मंत्रालय से स्थानांतरित कर योजना आयोग के अधीन करने से अब उससे संबंधित सभी मामले योजना आयोग द्वारा ही देखे जाएँगे।
यह उल्लेखनीय है कि, योजना आयोग केवल एक स्टाफ अधिकरण, एक सलाहकार निकाय है। इसका कोई कार्यकारी उत्तरदायित्व नहीं है। यह किसी निर्णय के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी नहीं है। यह उत्तरदायित्व राज्य एवं केंद्र सरकार दोनों पर है।
संरचना
योजना आयोग की संरचना (सदस्यता) के संबंध में निम्न बिंदु उल्लेखनीय हैं:
योजना आयोग की संरचना (सदस्यता) के संबंध में निम्न बिंदु उल्लेखनीय हैं:
1. आयोग का अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता है। वह आयोग की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
2. आयोग का एक उपाध्यक्ष भी होता है। वह इसका कार्यकारी प्रमुख होता (पूर्णकालिक कार्यकारी प्रमुख) है। वह केंद्रीय मंत्रिमंडल को प्रारूप पंचवर्षीय योजना बनाने एवं इसे प्रस्तुत करने का उत्तरदायी होता है। उसकी नियुक्ति केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा निश्चित कार्यकाल के लिए की जाती है। उसे मंत्रिमंडल के मंत्री के समान दर्जा प्राप्त होता है यद्यपि वह केंद्रीय मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं होता है। उसे (बिना मताधिकार के) इसकी सभी बैठकों में आमंत्रित किया जाता है।
3. कुछ केंद्रीय मंत्रियों को आयोग के अंशकालिक सदस्यों के रूप में नियुक्त किया जाता है। वित्त मंत्री एवं योजना मंत्री आयोग के पदेन सदस्य होते हैं।
4. आयोग के पास चार से सात पूर्णकालिक विशेषज्ञ सदस्य होते हैं। उन्हें राज्य मंत्री के समान दर्जा प्राप्त होता है।
5. आयोग का एक सदस्य सचिव होता है। जो कि सामान्यतया वरिष्ठ आईएएस अधिकारी होता है। राज्य सरकारें आयोग में प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। इस तरह योजना आयोग पूर्णरूपेण केंद्र निर्मित निकाय होती है।
आंतरिक संगठन
योजना आयोग के निम्नलिखित तीन अंग हैं:
1. तकनीकी प्रभाग।
2. देख-रेख शाखाएं।
3. कार्यक्रम सलाहकार।
तकनीकी प्रभाग
तकनीकी प्रभाग, योजना आयोग की मुख्य क्रियात्मक इकाई है। यह मुख्यतः योजना निर्धारण, योजना निगरानी एवं योजना मूल्यांकन में शामिल रहता है। इसकी दो विस्तृत श्रेणियां हैं – सामान्य प्रभाग (संपूर्ण अर्थव्यवस्था के मुद्दों से संबंधित) एवं विषय प्रभाग (विकास के विशेष क्षेत्रों से संबंधित) ।’
देख-रेख शाखाएं- योजना आयोग की निम्नलिखित देख-रेख शाखाएं होती हैं:
1. सामान्य प्रशासन शाखा ।
2. स्थापना शाखा।
3. सतर्कता शाखा।
4. लेखा शाखा।
5. वैयक्तिक प्रशिक्षण शाखा।
कार्यक्रम सलाहकार योजना आयोग में कार्यक्रम सलाहकार के पद का सृजन 1952 में किया गया। इसका सृजन इस उद्देश्य से किया गया कि योजना के क्षेत्र में भारत के राज्यों एवं योजना आयोग के बीच संपर्क बना रहे।
उनके कार्य निम्नलिखित हैं:
(i) राज्यों में विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का आकलन
(ii) योजना आयोग तथा केन्द्रीय मंत्रालयों को केन्द्र समर्थित तथा केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के बारे में सूचित करना
(iii) राज्यों की पंचवर्षीय योजनाओं तथा वार्षिक योजनाओं से संबंधित प्रस्तावों पर योजना आयोग को सलाह देना
कार्मिक
योजना आयोग के आंतरिक संगठन में दोहरा पदानुक्रम होता है, प्रशासनिक तथा तकनीकी। प्रशासनिक पदानुक्रम में शीर्ष पर योजना आयोग का सचिव होता है जिसकी सहायता के लिए संयुक्त सचिव, उप-सचिव, अवसर सचिव तथा अन्य प्रशासनिक एवं लिपिकीय स्टाफ होते हैं। यह सभी कार्मिक भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय राजस्व सेवा, केन्द्रीय सचिवालय सेवा, भारतीय अंकेक्षण एवं लेखा सेवा तथा अन्य गैर-तकनीकी केन्द्रीय सेवाओं से लिए जाते हैं। दूसरी ओर तकनीकी पदानुक्रम में शीर्ष पर सलाहकार होते हैं जिनकी सहायता के लिए निदेशक, संयुक्त निदेशक तथा अन्य तकनीकी स्टाफ होते हैं। इन कार्मिकों को भारतीय आर्थिक सेवा, भारतीय सांख्यिकी सेवा, भारतीय अभियंत्रण सेवा तथा अन्य केन्द्रीय तकनीकी सेवाओं से लिया जाता है। सलाहकार तकनीकी प्रभाग का प्रमुख होता है और अतिरिक्त सचिव अथवा संयुक्त सचिव के समकक्ष होता है।
कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन
कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन की स्थापना 1952 में योजना आयोग की एक स्वतंत्र इकाई के रूप में किया गया था। तथापि यह योजना आयोग के ही सामान्य मार्गदर्शन एवं निर्देशों के अनुसार ही कार्य करता है।
इस संगठन का प्रमुख निदेशक/प्रमुख (Chief) होता है जिसकी सहायता के लिए संयुक्त निदेशक, उप-निदेशक, सहायक निदेशक तथा अन्य स्टाफ होते हैं।
कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन के सात कार्यालय चेन्नई, हैद्राबाद, मुंबई, लखनऊ, चंडीगढ़, जयपुर तथा कोलकाता में हैं। प्रत्येक क्षेत्रीय मूल्यांकन कार्यालय एक उप-निदेशक के अधीन होता है।
कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन पंचवर्षीय योजनाओं में उल्लिखित कार्यक्रमों एवं योजनाओं के कार्यान्वयन का समय-समय पर आकलन करता है और योजना आयोग तथा इसकी कार्यकारी एजेन्सियों को इस बारे में वापस सूचनाएँ देता है। यह राज्य मूल्यांकन संगठनों को तकनीकी सलाह भी प्रदान करता है।
आलोचनात्मक मूल्यांकन
योजना आयोग का गठन मूल रूप से सलाहकार की भूमिका में स्टाफ एजेंसी की तरह हुआ था लेकिन समय के साथ केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा इसकी संस्तुतियों को मानने के बाद यह एक शक्तिशाली एवं निदेशक प्रधिकरण की तरह हो गया। आलोचक इसे ‘सुपर मंत्रिमंडल’ कहकर पुकारते हैं। इसके अलावा इसे ‘आर्थिक मंत्रिमंडल” समानांतर मंत्रिमंडल’ एवं ‘गाड़ी का पांचवां पहिया’ कहकर भी पुकारा जाता है।
योजना आयोग की प्रभुत्व वाली भूमिका पर निम्नलिखित टिप्पणियां की गई हैं:
1. भारत का प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) प्रशासनिक सुधार आयोग ने टिप्पणी की- ‘संविधान के अंतर्गत केंद्र या राज्य के मंत्री वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी हैं। दुर्भाग्यवश कई बार कुछ परिमाणों में योजना आयोग की स्थिति समानांतर मंत्रिमंडल या कभी सुपर मंत्रिमंडल जैसी हो जाती है।’
2. डी.आर. गाडगिल आयोग योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ने आयोग की भूमिका की आलोचना की और टिप्पणी की कि आयोग अपने नियत कार्य में असफल रहा है। उन्होंने कहा, “जिस प्रक्रिया के तहत मूलतः योजना आयोग का गठन किया गया था, वह थी एक सलाहकार निकाय का रूप अपने इस रूप को भूलकर आयोग विकास से हटकर सार्वजनिक नीतियों के वास्तविक निर्माण में जुट गया। प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री की सदस्यता के कारण इसका गलत निर्देशन होने से ऐसा लगने लगा कि योजना आयोग एक प्रकार की अस्वाभाविक प्रतिष्ठा एवं महत्ता का निर्णायक बनने लगा है।
3. अशोक चंदा प्रमुख प्रशासनिक विश्लेषक कहते हैं, “आयोग की अपरिभाषित स्थिति और इसके व्यापक संदर्भ से इसकी स्थिति केंद्र और राज्यों के लिए आर्थिक मंत्रिमंडल की तरह बनती गई।”
उन्होंने आगे कहा, “आयोग अपनी इस स्थिति पर कायम है और अपनी गतिविधियों का दायरा बढ़ाकर गठित सरकार से संबंधित उन कार्यों एवं दायित्वों को भी शामिल करता है जो कि पारंपरिक रूप से तथा अन्य तरीके से भी सरकार से संबंधित माने जाते हैं।” उन्होंने पुनः विचार व्यक्त किया, “योजना आयोग को प्रदान की गई पूर्व प्रमुखता की स्थिति मंत्रिमंडलीय स्वरूप की सरकार की अवधारणा से मेल नहीं खाती।”
4. के. संथानम प्रमुख संविधान विशेषज्ञ कहते हैं, “योजना ने संघ का उल्लंघन किया और हमारा देश कई मामलों में केंद्रीय व्यवस्था की तरह कार्य करता रहा।”
5. पी.वी. राजमन्नार चौथे वित्त आयोग के अध्यक्ष राजमन्नार ने योजना आयोग एवं वित्त आयोग के संघीय स्फीतिक स्थानांतरण पर कार्यों के अच्छादन के बारे में बताया है।
6. पी.पी. अग्रवाल उन्होंने कहा “हालाँकि योजना आयोग सरकार का एक सलाहकारी अंग है, सार्वजनिक नीतियाँ के निर्माण में इसने महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है-
विकास से इतर मामलों में भी, और इसकी सलाहकारी भूमिका एक तरीके से समूचे प्रशासन तक विस्तारित होती है।'”
7. प्राक्कलन समिति समिति ने विचार व्यक्त किया कि “समय आ चुका है जबकि योजना आयोग के साथ केन्द्र सरकार के कैबिनेट मंत्रियों के औपचारिक जुड़ाव से संबंधित स्थिति की समीक्षा की जाए”
तालिका 48.1 योजना आयोग के तकनीकी प्रभाग
सामान्य प्रभाग | विषय प्रभाग |
1. विकास नीति एवं परिप्रेक्ष्य आयोजना प्रभाग | 1. कृषि प्रभाग |
2. वित्तीय संसाधन प्रभाग | 2. सामाजिक न्याय एवं समाज कल्याण विभाग |
3. अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र प्रभाग | 3. संचार, सूचना तकनीक एवं सूचना प्रभाग |
4. श्रम, रोजगार एवं मानव शक्ति प्रभाग | 4. मानव संसाधन विकास प्रभाग |
5. योजना समन्वय प्रभाग | 5. पर्यावरण एवं वन प्रभाग (जलवायु परिवर्तन सहित) |
6. परियोजना मूल्यांकन एवं प्रबंधन प्रभाग | 6. स्वास्थ्य परिवार कल्याण एवं पोषाहार प्रभाग |
7. सामाजिक-आर्थिक शोध इकाई | 7. आवासीय एवं शहरी मामला प्रभाग |
8. राज्य योजना प्रभाग (द्वीप विकास प्राधिकार सेल सहित) | 8. उद्योग प्रभाग |
9. विकेन्द्रित योजना प्रभाग, पंचायती राज एवं विशेष क्षेत्र कार्यक्रम (पश्चिमी घाट सचिवालय सहित) | 9. खनिज प्रभाग |
10. आधारभूत संरचना प्रभाग | 10. बिजली एवं उर्जा प्रभाग |
11. ग्रामीण विकास प्रभाग | |
12. विज्ञान एवं प्राद्यौगिकी प्रभाग | |
13. महिला एवं बाल विकास प्रभाग | |
14. परिवहन एवं पर्यटन प्रभाग | |
15. ग्राम्य एवं लघु उद्यम प्रभाग | |
16. स्वैच्छिक कार्य सेल | |
17. जल संसाधन प्रभाग |
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