पादप शरीर-क्रिया विज्ञान :अध्याय – 3

पादप शरीर-क्रिया विज्ञान वनस्पति-विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पौधों की विभिन्न जैविक-क्रियाओं (vital activities) का अध्ययन किया जाता है।

जैविक-क्रियाएँ (vital activities) क्या हैं?

पादप कोशा में होने वाले सभी रासायनिक एवं भौतिक परिवर्तन (chemical and physical changes) तथा पादप अथवा पादप कोशा (plant cell) एवं वातावरण (environment) के बीच सभी प्रकार के आदान-प्रदान जैविक-क्रियाओं के अन्तर्गत आते हैं।

प्रकाश-संश्लेषण (photosynthesis), पाचन (digestion), श्वसन (respiration), प्रोटीन तथा वसा पदार्थों का संश्लेषण (synthesis of proteins and fats), इत्यादि रासायनिक परिवर्तन हैं तथा विभिन्न प्रकार की गैसों [जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), ऑक्सीजन (O₂)] तथा वाष्प का विसरण (diffusion), परासरण (osmosis), वाष्पोत्सर्जन (transpiration), पौधों में रसारोहण (as- cent of sap), खनिज तत्वों एवं जल का अवशोषण इत्यादि, भौतिक क्रियाएँ हैं। कोशावृद्धि और विकास में रासायनिक और भौतिक दोनों प्रकार के परिवर्तन होते हैं। विभिन्न प्रकार के रासायनिक तथा भौतिक परिवर्तन पौधे की शरीर-रचना की इकाई, कोशा (cell) के द्वारा ही होते हैं। इसीलिए कोशा को पौधे की संरचना तथा कार्य की इकाई (unit of structure and functions) भी कहा गया है और इनमें होने वाले विभिन्न परिवर्तन ही कार्यिकी के अन्तर्गत आते हैं।

पादप कार्यिकी के ज्ञान से हम पौधे की वृद्धि और विकास का पूर्णरूप से नियन्त्रण करके मनुष्य के लिए उन्हें अधिक उपयोगी बना सकते हैं। वर्तमान समय में संसार की बढ़ती जनसंख्या एक प्रबलतम समस्या है जिसके लिये अधिक अन्न तथा खाद्य पदार्थों की उत्पादन हमारा ध्येय है, ऐसे में पादप कार्यिकी का विशेष महत्व है।

पौधों में खनिज लवण (Mineral Nutrition in Plants)

हरे पौधे स्वपोषी (autotrophic) होते हैं, ये कार्बनिक पदार्थों का निर्माण स्वयं करते हैं। इनकी आपूर्ति बाह्य स्त्रोत से नहीं होती। ये पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में CO₂ (वायु से) तथा जल (भूमि से) की सहायता से ऊर्जायुक्त कार्बनिक पदार्थ, मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट्स (C6H12O6) का निर्माण करते हैं। प्रायः सभी पौधे जल व अकार्बनिक तत्वों को भूमि से प्राप्त करते हैं। अकार्बनिक तत्व भूमि में खनिजों के रूप में उपस्थित रहते हैं। इन्हें खनिज तत्व या पोषण तत्व (Mineral elements or nutrient elements) तथा इनके पोषण को खनिज पोषण (mineral nutrition) कहते हैं।

पौधे के भस्म (Plant ash) में लगभग 60 विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व पाये जाते हैं। किन्तु सभी तत्व पौधे के लिए अनिवार्य नहीं होते हैं। 1938 में ऑर्नन नामक वैज्ञानिक ने किसी खनिज पोषक तत्व की अनिवार्यता की कसौटियाँ (criteria of essentiality) नामक सिद्धान्त प्रस्तावित किया। यथा-

1. अनिवार्य तत्व (essential element) की अनुपस्थिति में पौधे में विकार उत्पन्न हो जाते हैं तथा पौधा अपना जीवन-चक्र नियमित रूप से पूरा नहीं कर पाता।

2. उसी तत्व से विकार का निदान हो, जिससे विकार उत्पन्न हुआ हो।

3. वह तत्व उपापचय (Metabolism) में सीधे भाग लेता हो।

अनिवार्य तत्वों का वर्गीकरण (Classification of Essential Elements)

पौधों की वृद्धि तथा विकास के लिए 18 आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जिसे तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है।

(i) मुख्य पोषक तत्व (Major Nutreints)- ऐसे तत्व जिनकी आवश्यकता पौधों को अधिक मात्रा में होती है, मुख्य पोषक तत्व कहलाते हैं। जैसे-कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश।

(ii) द्वितीयक पोषक तत्व (Secondary Nutrients)- इस वर्ग के तत्वों की पौधों को आवश्यकता मुख्य पोषक तत्वों की अपेक्षा कम होती है, इसलिए इन्हें द्वितीयक पोषक तत्व की संज्ञा दी जाती है। यथा- Ca, Mg एवं S।

(iii) सूक्ष्म पोषक तत्व (Micro Nutrients)- वे पोषक तत्व जिनकी आवश्यकता पौधों को सूक्ष्म मात्रा में होती है, उनको ‘Micro’ या ‘Minor nutrients’ की संज्ञा दी जाती है। जैसे आयरन (Fe), मैंगनीज (Mn), ताँबा (Cu), जिंक (Zn), मोलिब्डीनम (Mo), क्लोरीन (CI), बोरॉन (B) तथा निकिल (Ni)।

(iv) 16 तत्वों के अलावा सोडियम, स्ट्रांन्शियम, बेनेडियस तथा एल्युमीनियम भी पौधों के लिए केवल उपयोगी, (लाभकारी) है तथापि ये आवश्यकता की सूची में नहीं आती है।

(v) अद्यतन अनुसंधान के अनुसार 17वाँ एवं 18वाँ आवश्यक पादप पोषक तत्व है- सोडियम (Na) एवं कोबाल्ट कुछ विद्वानों के अनुसार। (प्रवक्ता-06)

खनिज तत्वों के सामान्य कार्य (General Functions of Mineral Elements)

1. पादप शरीर का अंश (Framework elements)- कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन को आधार तत्व (Framework elements) कहा जाता है, क्योंकि ये कार्बोहाइड्रेट्स (C6H12O6)n का अंश हैं जिनसे कोशा-भित्ति (cell wall) बनती है।

2. जीवद्रव्यी तत्व (Protoplasmic elements)– नाइट्रोजन, सल्फर व फॉस्फोरस को जीवद्रव्यी तत्व कहा जाता है, क्योंकि ये C, H तथा O के साथ मिलकर जीवद्रव्य (protoplasm) का प्रमुख भाग बनाते हैं।

3. कैटालिटिक कार्य (Catalytic functions)- Fe, Mn, Zn, Cu आदि तत्व पौधों की विकरीय क्रियाओं (enzymatic reactions) में उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करते हैं।*

4. सन्तुलन कारी तत्व (Balancing elements)- कैल्सियम, मैग्नीशियम तथा पोटैशियम, दूसरे खनिजों के विषैले प्रभाव को समाप्त करके आयनिक सन्तुलन बनाते हैं।

5. कोशा के परासरण दाब पर प्रभाव (Influence on the osmotic pressure of the cells) – पादप कोशा के कोशा-रस (cell sap) में विभिन्न खनिज तत्व घुले रहते हैं और ये कोशा के परासरण दाब को नियन्त्रित करते हैं।

6. pH पर प्रभाव (Effect on pH)- भूमि से अवशोषित विभिन्न तत्व, कोशा रस में उपस्थित हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता को प्रभावित करके pH नियन्त्रित करते हैं।

7. खनिज तत्वों का विषैला प्रभाव (Toxic effect of mineral elements)- आर्सेनिक (As), Cu, Hg आदि तत्व कुछ विशेष अवस्थाओं में पौधों पर विषैला प्रभाव डालते हैं।

खनिज तत्वों की उपयोगिता (Significance of Mineral Elements)

पौधों में विभिन्न तत्त्वों की क्या उपयोगिता है, इसका अध्ययन मृदाविहीन संवर्धन (soilless culture) अथवा विलयन संवर्धन (solution culture) विधि द्वारा किया जाता है।

मृदाविहीन संवर्धन इस सिद्धान्त पर आधारित है कि वे सभी अनिवार्य खनिज पदार्थ जो पौधे मृदा से जड़ों द्वारा अवशोषित करते हैं उनके विलयन में पौधों को उगाया जाता है। यह पोषक विलयन (nutrient solution) कहलाता है। जिस पोषक विलयन में सभी अनिवार्य खनिज पदार्थ उपस्थित हों उसे सामान्य पोषक विलयन (normal nutrient solution) कहते हैं।

मृदाविहीन संवर्धन विशेष रूप से दो प्रकार का होता है-

1. बालू का संवर्धन (Sand Culture) : इस विधि में पौधों की जड़ों को शुद्ध बालू में रखा जाता है और बालू में पोषक विलयन डाला जाता है।

2. विलयन संवर्धन (Solution Culture) : इस विधि में पौधों की जड़ें तरल पोषक विलयन में रहती हैं।

उपरोक्त प्रकार से पौधों को तरल पोषक विलयन में उगाने की प्रणाली को हाइड्रोपोनिक्स (soilless cultivation = hydropon- ics) नाम दिया जाता है।

जब किसी विशेष तत्व की पौधे में उपयोगिता अथवा प्रभाव का अध्ययन करना होता है तो पौधे को ऐसे पोषक विलयन में उगाते हैं जिसमें वह विशेष तत्व न हो। ऐसे पोषक विलयन को न्यूनकृत पोषक विलयन (deficient nutrient solution) कहते हैं। इस विलयन में वृद्धि कराये गये पौधे में अनेक असामान्य लक्षण होते हैं। इस पौधे की तुलना सामान्य पोषक विलयन में उगे पौधे से की जाती है और जो भी असामान्य लक्षण दिखाई देते हैं, उन्हें उस तत्व विशेष की कमी के कारण ही मान लिया जाता है।

मुख्य पोषक तत्वों के कार्य : एक दृष्टि में
तत्व
मुख्य कार्य
N
वृद्धि एवं प्रोटीन उत्पादन *
P
जड़ो का विकास, ऊर्जा, शीघ्र फसल पकाने *
K
उच्च गुणवत्ता, पानी का उचित अवशोषण
S
प्रोटीन एवं तेल का निर्माण में सहायक, लहसुन एवं प्याज में गंध एवं स्वाद*
Ca
कोशिका संरचना एवं विभाजन, मध्य पटल का निर्माण*
Mg
ऊर्जा स्थानान्तरण, क्लोरोफिल का मुख्य तत्व*
Bo
कोशाभित्ति का विकास एवं बीज वृद्धि
Cu
एन्जाइम सक्रियता एवं क्लोरोफिल उत्पादन
Fe
श्वसन एवं क्लोरोफिल उत्पादन*
Mn
एन्जाइम सक्रियता एवं प्रकाश-संश्लेषण
Mo
दलहनों में N-fixation*
Zn
प्रोटीन संश्लेषण एवं एन्जाइम सक्रियता*
C I
प्रकाश-संश्लेषण में जल का विखण्डन

यह भी पढ़ें : पादप जगत : अध्याय – 2 , भाग -6

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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