विभवान्तर (Potential Difference)

दो बिन्दुओं के विभवों में जो अंतर होता है उसे ही उन दोनों बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर कहते हैं। इसका मान, वैद्युत क्षेत्र में एकांक आवेश के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किए गये कार्य के बराबर होता है जिसे हम किसी आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किए गये कार्य को आवेश की मात्रा से भाग देकर प्राप्त कर सकते हैं।

माना +qo एक अत्यल्प परीक्षण आवेश है जिसके कारण पूर्व से विद्यमान वैद्युत क्षेत्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यदि इस परीक्षण आवेश को (चित्रानुसार) बिंदु B से बिन्दु A तक ले जाने में किया गया कार्य W हो तो बिन्दुओं A व B के बीच वैद्युत विभवान्तर,

VA-VB = w/qo वोल्ट होगा।

जिस प्रकार तरल (Liquids) सदैव उच्च दाब से निम्न दाब की ओर, ऊष्मा उच्च ताप से निम्न ताप की ओर बहती है उसी प्रकार धन आवेश भी सदैव उच्च विभव से निम्न विभव की ओर बहता है। जिस प्रकार, ऊष्मा प्रवाह की दिशा का ऊष्मा की मात्रा से कोई संबंध नहीं है, तरल के प्रवाह की दिशा का तरल की मात्रा से कोई संबंध नहीं, उसी प्रकार आवेश के प्रवाह की दिशा का भी आवेश की मात्रा से कोई संबंध नहीं है। इस प्रकार यदि भिन्न-भिन्न वैद्युत विभवों वाली दो चालक वस्तुओं को परस्पर संपर्क में लाया जाय तो आवेश तब तक प्रवाहित होता है जब तक कि दोनों वस्तुओं के विभव समान न हो जायें। ध्यातव्य है कि धन आवेश सदैव उच्च विभव से निम्न विभव की ओर तथा ऋण आवेश सदैव निम्न विभव से उच्च विभव की ओर प्रवाहित होता है। चालक वस्तुओं को संपर्क में लाने पर ऋण आवेश अर्थात् इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह निम्न विभव से उच्च विभव की ओर तब तक होता रहता है जब तक कि दोनों वस्तुओं के विभव समान न हो जायें।

पृथ्वी का विभव (Potential of Earth)

किसी राशि के मापन (Measurment) हेतु कोई पैमाना व निर्देश बिंदु (शून्यांक) लिया जाता है। विद्युत विभव के मापन हेतु भी पृथ्वी के विभव को शून्य माना जाता है। कारण यह की पृथ्वी एक विशाल चालक है जिसे कोई आवेश देने या लेने पर इसके विभव में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस तरह किसी चालक को भूसम्पर्कित करने पर उसका विभव शून्य हो जाता है। इसीलिए पृथ्वी का विभव भी शून्य माना जाता है।

विद्युत धारिता (Electric Capacity)

किसी चालक के विभव (Potential) में एकांक वृद्धि हेतु जितने आवेश की आवश्यकता होती है, आवेश की उस मात्रा को उस चालक की वैद्युत धारिता (electric capacity) कहते हैं।

विद्युत धारिता (C) = आवेश (q)/विभव (v)

इसका S.I. मात्रक फैराडे (F) होता है। व्यवहार में माइक्रो फैराडे (µF) तथा पिको फैराडे (PF) का भी प्रयोग होता है।

1µF = 10-6F व 1PF = 10-12F । तात्पर्य यह कि यदि किसी चालक को एक कूलाम का आवेश दिया जाय तो उसका विभव एक वोल्ट बढ़ जाय तो उसकी धारिता एक फैराडे होगी। इसका मान चालक के पृष्ठीय क्षेत्रफल के अनुक्रमानुपाती होता है।

इसके अलावा इसका मान चालक के आसपास के माध्यम व अन्य चालकों की उपस्थिति पर भी निर्भर करता है। यदि हवा या निर्वात में स्थित किसी चालक का वैद्युत विभव V बोल्ट हो तो ‘ε’ (Epsilen) विद्युतशीलता वाले माध्यम में V/ε वोल्ट होगा। इसी E प्रकार किसी चालक के समीप दूसरा चालक लाने से प्रेरण (induction) के फलस्वरूप पहले चालक का विभव कम हो जाने से उसकी धारिता में वृद्धि हो जाती है। यदि समीप लाये गये चालक को भूसम्पर्कित कर दिया जाय तो पहले चालक के विभव में और कमी, फलस्वरूप धारिता में और वृद्धि हो जाती है।

संधारित्र (Capacitor)

संधारित्र एक ऐसी तकनीक है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किये बिना उस पर आवेश की अधिक मात्रा संचित की जा सकती है अर्थात् उसका विद्युत विभव बढ़ाया जा सकता है।

यदि किसी चालक को q आवेश देने पर उसका वैद्युत विभव V हो जाता है तो चालक की धारिता C = होती है। V यदि हम किसी प्रकार चालक के विभव को कम कर दें तो उसे पुनः उसी विभव V तक लाने के लिए और अधिक आवेश दिया जा सकता है। इस प्रकार चालक की धारिता (C) बढ़ाई जा सकती है।

संधारित्र का सिद्धान्त इस तथ्य पर आधारित है कि जब किसी आवेशित चालक के समीप एक अन्य अनावेशित चालक रख दिया जाता है तो आवेशित चालक का विभव कम हो जाता है। यदि अनावेशित चालक को भूसंपर्कित कर दिया जाय तो विभव और भी कम हो जाता है। फलस्वरूप आवेशित चालक की धारिता में और वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार संधारित्र किसी भी आकार के दो ऐसे चालकों का युग्म है जो कि एक-दूसरे के समीप हों तथा जिन पर बराबर व विपरीत आवेश हों।

यदि किसी संधारित की प्लेटों पर आवेश + q व -q हों तथा उनके बीच विभवान्तर v हो तो संधारित की धारिता C = q/v फैरड होती है।

संधारित्रों के उपयोग (Uses of Capacitors)

(i) आवेश का संचय (Storing of Charge)- संधारित्र का सबसे महत्वपूर्ण कार्य आवेश का संचयन करना है। यदि किसी विद्युत परिपथ में अल्प समय के लिए प्रबल वैद्युत धारा की आवश्यकता हो तो उसके एक सिरे पर आवेशित संधारित्र जोड़ देते हैं। स्पंदित (Pulsed) विद्युत चुम्बक (electromagnets) जिनके द्वारा क्षणिक किन्तु तीव्र चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न किये जाते हैं, इसी तरह प्राप्त किये जाते हैं।

(ii) ऊर्जा का संचय (Storage of Energy)- संधारित्रों में पर्याप्त ऊर्जा (वैद्युत ऊर्जा के रूप में) संचित रहती है। इलेक्ट्रान त्वरक यंत्र (Syncro Cyctotron) में कई संधारित्र लगे होते हैं जो विद्युत ऊर्जा का संचय किये रहते हैं। यंत्र इससे ऊर्जा लेता रहता है।

(iii) विद्युत उपकरणों में (In Electrical Instruments)- जब किसी प्रेरकीय (Induction) विद्युत परिपथ (Electric Circuit) को अचानक तोड़ा जाता है तो तोड़ने के स्थान पर चिंगारी उत्पन्न होती है परन्तु यदि परिपथ में एक संधारित्र इस प्रकार लगा हो कि परिपथ के टूटने (Breaking) पर उत्पन्न प्रेरित धारा संधारित्र की प्लेटों को आवेशित कर दे तो चिंगारी नहीं उत्पन्न होती। प्रेरण कुंडली तथा मोटर इंजन के ज्वलन तंत्र (ignition Comportment) में इसी कारण संधारित्र लगाये जाते हैं। विद्युत पंखे में भी संधारित्र प्रयुक्त होता है।

यह भी पढ़ें : विद्युत क्षेत्र (Electric Field)

FAQs

Q1. तड़ित चालक इमारतों को नष्ट होने से किस प्रकार बचाते हैं?
Ans.
ये आवेश को पृथ्वी तक भेज देते हैं।

Q2. किस वैज्ञानिक ने तड़ित चालक का आविष्कार किया?
Ans.
बेंजामिन फ्रैंकलिन

Q3. तड़ित चालक बनाने के लिए प्रायः किस धातु का प्रयोग किया जाता है?
Ans.
तांबा (Cu-Coper)

Q4. संवहन विसर्जन है?
Ans.
वायु कणों द्वारा किसी आवेशित पदार्थ की सतह से आवेश को बाहर ले जाना।

Q5. विद्युत पवन किसे कहते हैं?
Ans.
वायु कणों द्वारा किसी आवेशितपदार्थ की सतह से आवेश के विसर्जन के समय उत्पन्न संवहन धारा को विद्युत पवन कहते हैं।

Q6. विभव (Potential or Voltage) क्या निर्धारित करता है?
Ans.
आवेश प्रवाह की दिशा।

Q7. विद्युत विभव का SI मात्रक क्या होता है?
Ans.
जूल/कूलॉम या वोल्ट ।

Q8. एक आवेशित खोखले गोले के केन्द्र पर विद्युत विभव कितना होगा?
Ans.
शून्य।

Q9. कार से यात्रा करते समय यदि तड़िताघात (Lightening) की संभावना हो तो क्या करना चाहिए?
Ans.
कार के शीशे व दरवाजे सब अच्छी तरह बंद कर लेने चाहिए ताकि कार एक खोखले गोले की भांति कार्य करे और तड़िताघात होने पर आवेश कार के अंदर न आ सके।

Q10. संधारित्र को विद्युत परिपथ में किस लिए प्रयोग में लाया जाता है?
Ans.
विद्युत आवेश का संग्रह करने के लिए।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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