प्रधानमंत्री : 19

संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति केवल नाममात्र का कार्यकारी प्रमुख होता है (de jure executive) तथा वास्तविक कार्यकारी शक्तियां प्रधानमंत्री में (de facto executive) निहित होती हैं। दूसरे शब्दों में, राष्ट्रपति राज्य का प्रमुख होता है, जबकि प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है।

प्रधानमंत्री की नियुक्ति

संविधान के में प्रधानमंत्री के निर्वाचन और नियुक्ति के लिए कोई विशेष प्रक्रिया नहीं दी गई है। अनुच्छेद 75 केवल इतना कहता है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की नियुक्ति करेगा। हालांकि इसका अभिप्राय यह नहीं है कि राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने हेतु स्वतंत्र है। सरकार की संसदीय व्यवस्था के अनुसार, राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है परंतु यदि लोकसभा में कोई भी दल स्पष्ट बहुमत में न हो तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति में अपनी वैयक्तिक विवेक स्वतंत्रता का प्रयोग कर सकता है। इस स्थिति में राष्ट्रपति सामान्यतः सबसे बड़े दल अथवा गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है और उससे 1 माह के भीतर सदन में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहता है। राष्ट्रपति द्वारा इस विवेक स्वतंत्रता का प्रयोग प्रथम बार 1979 में किया गया, जब तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवन रेड्डी ने मोरारजी देसाई वाली जनता पार्टी के सरकार के पतन के बाद चरण सिंह (गठबंधन के नेता) को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। एक स्थिति और भी है जब राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के चुनाव व नियुक्ति के लिए अपना व्यक्तिगत निर्णय लेता है, जब प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाए और उसका कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी न हो। ऐसा तब हुआ जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त कर कार्यवाहक प्रधानमंत्री’ नियुक्त करने की प्रथा को अनदेखा किया। बाद में कांग्रेस संसदीय दल ने सर्वसम्मति से उन्हें अपना नेता चुना। हालांकि किसी निवर्तमान प्रधानमंत्री की मृत्यु पर यदि सत्ताधारी दल एक नया नेता चुनता है तो राष्ट्रपति के पास उसे प्रधानमंत्री नियुक्त करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होता है।

सन 1980 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान में यह आवश्यक नहीं है कि एक व्यक्ति प्रधानमंत्री नियुक्त होने से पूर्व लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करे। राष्ट्रपति को पहले प्रधानमंत्री की नियुक्ति करनी चाहिए और तब एक यथोचित समय सीमा के भीतर उसे लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना चाहिए। उदाहरण के लिए चरण सिंह (1979), वी.पी. सिंह (1989), चंद्रशेखर (1990), पी.वी. नरसिंम्हा राव (1991), अटल बिहारी वाजपेयी (1996), एच.डी. देवेगौड़ा (1996), आई.के. गुजराल (1997) और पुनः अटल बिहारी वाजपेयी (1998) इसी प्रकार प्रधानमंत्री नियुक्त हुए।

1997 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि एक व्यक्ति को जो किसी भी सदन का सदस्य न हो, 6 माह के लिए प्रधानमंत्री नियुक्त किया जा सकता है। इस समयावधि में उसे संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनना पड़ेगा; अन्यथा वह प्रधानमंत्री के पद पर नहीं बना रहेगा।

संविधान के अनुसार, प्रधानमंत्री संसद के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य हो सकता है। उदाहरण के लिए इंदिरा गांधी (1966), देवेगौड़ा (1996) तथा मनमोहन सिंह (2004 और 2009) में राज्यसभा के सदस्य थे। दूसरी और ब्रिटेन में प्रधानमंत्री को निम्न सदन (हाउस ऑफ़ कामन्स) का सदस्य होना ही चाहिए।

शपथ, शर्तें एवं वेतन

प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने करने से पूर्व राष्ट्रपति उसे पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलवाता है। पद एवं गोपनीयता की शपथ लेते हुये प्रधानमंत्री कहता है किः

1. मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा।

2. मैं भारत की प्रभुता एवं अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा।

3. मैं श्रद्धापूर्वक एवं शुद्ध अंतरण से अपने पद के दायित्वों का निर्वहन करूंगा।

4. मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा।

प्रधानमंत्री गोपनीयता की शपथ के रूप में कहता है मैं ईश्वर की शपथ लेता हूं कि जो विषय मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा, उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को तब तक के सिवाए जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के लिए ऐसा अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूंगा।

प्रधानमंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं है तथा वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बना रहता है। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रपति किसी भी समय प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा सकता है। प्रधानमंत्री को जब तक लोकसभा में बहुमत हासिल है, राष्ट्रपति उसे बर्खास्त नहीं कर सकता है। लोकसभा में अपना विश्वास मत खो देने पर उसे अपने पद से त्यागपत्र देना होगा अथवा त्यागपत्र न देने पर राष्ट्रपति उसे बर्खास्त कर सकता है।

प्रधानमंत्री के वेतन व भत्ते संसद द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए जाते हैं। वह संसद सदस्य को प्राप्त होने वाले वेतन एवं भत्ते प्राप्त करता है। इसके अतिरिक्त वह व्यय विषयक भत्ते, मुफ्त आवास, यात्रा भत्ते, स्वास्थ्य सुविधाएं आदि प्राप्त करता है। सन 2001 में संसद ने उसके व्यय विषयक भत्तों को 1500 से बढ़ाकर रु. 3000 प्रतिमाह कर दिया है।

प्रधानमंत्री के कार्य व शक्तियां

प्रधानमंत्री के कार्य व शक्तियां निम्नलिखित हैं:

मंत्रिपरिषद के संबंध में

केंद्रीय मंत्रिपरिषद के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री की शक्तियां निम्न हैं:

1. वह मंत्री नियुक्त करने हेतु अपने दल के व्यक्तियों की राष्ट्रपति को सिफारिश करता है। राष्ट्रपति उन्हीं व्यक्तियों को मंत्री नियुक्त कर सकता है जिनकी सिफारिश प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।

2. वह मंत्रियों को विभिन्न मंत्रालय आवंटित करता है और उनमें फेरबदल करता है।

3. वह किसी मंत्री को त्यागपत्र देने अथवा राष्ट्रपति को उसे बर्खास्त करने की सलाह दे सकता है।

4. वह मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता करता है तथा उसके निर्णयों को प्रभावित करता है।

5. वह सभी मंत्रियों की गतिविधियों को नियंत्रित, निर्देशित करता है और उनमें समन्वय रखता है।

6. वह पद से त्यागपत्र देकर मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर सकता है।

चूंकि प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता है, अतः जब प्रधानमंत्री त्यागपत्र देता है अथवा उसकी मृत्यु हो जाती है तो अन्य मंत्री कोई भी कार्य नहीं कर सकते। अन्य शब्दों में, प्रधानमंत्री की मृत्यु अथवा त्यागपत्र से मंत्रिपरिषद स्वयं ही विघटित हो जाती है और एक शून्यता उत्पन्न हो जाती है। दूसरी ओर किसी अन्य मंत्री की मृत्यु या त्यागपत्र पर केवल रिक्तता उत्पन्न होती है, जिसे भरने के लिए प्रधानमंत्री स्वतंत्र होता है।

राष्ट्रपति के संबंध में

राष्ट्रपति के संबंध में प्रधानमंत्री निम्न शक्तियों का प्रयोग करता है:

1. वह राष्ट्रपति एवं मंत्रिपरिषद के बीच संवाद की मुख्य कड़ी है। उसका दायित्व है कि वहः

(क) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय राष्ट्रपति को संसूचित करे,

(ख) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी, जो जानकारी राष्ट्रपति मांगे वह दे, और;

(ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन्तु मंत्रि-परिषद् ने विचार नहीं किया है, राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षा, किए जाने पर परिषद् के समक्ष विचार के लिए रखे।

2. वह राष्ट्रपति को विभिन्न अधिकारियों; जैसे – भारत का महान्यायवादी, भारत का महानियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष एवं उसके सदस्यों, चुनाव आयुक्तों, वित्त आयोग का अध्यक्ष एवं उसके सदस्यों एवं अन्य की नियुक्ति के संबंध में परामर्श देता है।

संसद के संबंध में

प्रधानमंत्री निचले सदन का नेता होता है। इस संबंध में वह निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग करता है:

1. वह राष्ट्रपति को संसद का सत्र आहूत करने एवं सत्रावसान करने संबंधी परामर्श देता है।

2. वह किसी भी समय लोकसभा विघटित करने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकता है।

3. वह सभा पटल पर सरकार की नीतियों की घोषणा करता है।

अन्य शक्तियां व कार्य

उपरोक्त तीन मुख्य भूमिकाओं के अतिरिक्त प्रधानमंत्री की अन्य विभिन्न भूमिकाएं भी हैं:

1. वह योजना आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद, राष्ट्रीय एकता परिषद अंतर्राज्यीय परिषद और राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद् का अध्यक्ष होता है।

2. वह राष्ट्र की विदेश नीति को मूर्त रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

3. वह केंद्र सरकार का मुख्य प्रवक्ता है।

4. वह आपातकाल के दौरान राजनीतिक स्तर पर आपदा प्रबंधन का प्रमुख है।

5. देश का नेता होने के नाते वह विभिन्न राज्यों के विभिन्न वर्गों के लोगों से मिलता है और उनकी समस्याओं के संबंध में ज्ञापन प्राप्त करता है।

6. वह सत्ताधारी दल का नेता होता है।

7. वह सेनाओं का राजनैतिक प्रमुख होता है इत्यादि।

इस प्रकार प्रधानमंत्री देश की राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था में अति महत्वपूर्ण एवं अहम् भूमिका निभाता है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा, “हमारे संविधान के अंतर्गत किसी कार्यकारी की यदि अमेरिका के राष्ट्रपति से तुलना की जाए तो वह प्रधानमंत्री है, न कि राष्ट्रपति ।”

भूमिका का वर्णन

कई प्रसिद्ध राजनीतिशास्त्रियों एवं संविधान विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री की भूमिका की, विशेष रूप से ब्रिटिश प्रधानमंत्री की भूमिका के संदर्भ में उसकी व्याख्या की है। इनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं:

लार्ड मॉर्ले: उन्होंने प्रधानमंत्री का वर्णन ‘समान के बीच प्रथम’ तथा ‘कैबिनेट रूपी चाप के मुख्य प्रस्तर’ के रूप में किया है। वे कहते हैं “कैबिनेट का प्रमुख समान लोगों के बीच श्रेष्ठ होता है तथा वह उस पद को धारित करता है, जो काफी दायित्वपूर्ण होता है, वह देश का सबसे प्रमुख प्राधिकारी होता है”।

हबर्ट मैरिसन : ‘सरकार के मुखिया के रूप में वह सबसे प्रमुख है ‘लेकिन आज उसके दायित्वों में काफी परिवर्तन आया है।

सर विलियम वर्नर हार्टकोर्टः उन्होंने प्रधानमंत्री को ‘तारों के बीच चंद्रमा’ की संज्ञा दी है।

जेनिंग्सः “वह सूर्य के समान है, जिसके चारों ओर गृह परिभ्रमण करते हैं।” वह संविधान का सबसे मुख्य आधार है। संविधान के सभी मार्ग प्रधानमंत्री की ओर ही जाते हैं।

एच. जे. लास्कीः प्रधानमंत्री एवं कैबिनेट के संबंधों पर वे कहते हैं कि प्रधानमंत्री ‘इसके निर्माण का केंद्र बिंदु, इसके जीवन का केंद्र बिंदु एवं इसकी मृत्यु का केंद्र बिंदु है।’ उन्होंने प्रधानमंत्री को ऐसी धुरी बताया जिसके ईद-गिर्द संपूर्ण सरकारी मशीनरी घूमती है।

एच.आर. जी. ग्रीव्सः “सरकार देश की प्रमुख है और वह (प्रधानमंत्री) सरकार का प्रमुख है।”

मुनरो ने प्रधानमंत्री के लिए कहा, “वह राज्य की नौका का कप्तान है।”

रैम्जे म्योर ने इसे “राज्य के जहाज का मल्लाह” कहा है।

ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था में प्रधानमंत्री की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण और अहम होती है कि देखने वाले इसे ‘प्रधानमंत्री सरकार’ कहते हैं। इस प्रकार आर.एच. क्रासमैन कहते हैं – “युद्ध के पश्चात कैबिनेट सरकार प्रधानमंत्री सरकार में पूर्णतः परिवर्तित हो गई है।” इसी प्रकार हम्फ्रे बर्कले कहते हैं, संसद प्रायोगिक रूप से संप्रभु नहीं है। संसदीय लोकतंत्र अब ढह चुका है। ब्रिटिश व्यवस्था का प्रमुख दोष प्रधानमंत्री की सुपर मिनिस्ट्रयल शक्ति है।” यही व्याख्या भारत के संदर्भ में भी सही है।

राष्ट्रपति के साथ संबंध

संविधान में राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री के संबंध में निम्नलिखित उपबंध हैं:

1. अनुच्छेद 74

राष्ट्रपति को सहायता एवं सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा। राष्ट्रपति इसकी सलाह के अनुसार कार्य करेगा हालांकि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल से उसकी सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। राष्ट्रपति इस पुनर्विचार के बाद दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।

2. अनुच्छेद 75

(अ) प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगा, (ब) मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहेंगे, और (स) मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।

3. अनुच्छेद 78

प्रधानमंत्री के कर्तव्य हैं:

(क) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय राष्ट्रपति को संसूचित करे,

(ख) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी, जो जानकारी राष्ट्रपति मांगे वह दे, और;

(ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन्तु मंत्रि-परिषद् ने विचार नहीं किया है, राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षा, किए जाने पर परिषद् के समक्ष विचार के लिए रखे।

वे मुख्यमंत्री, जो प्रधानमंत्री बने

पांच लोग-मोरारजी देसाई, चरण सिंह, वी.पी. सिंह, पी.वी. नरसिम्हा राव एवं एच.डी. देवगौड़ा अपने राज्यों के मुख्यमंत्री बनने के बाद देश के प्रधानमंत्री बने। मोरारजी देसाई तत्कालीन बम्बई राज्य के 1952-56 की अवधि तक मुख्यमंत्री थे, जो मार्च 1977 में देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। चरण सिंह अविभाजित उत्तर प्रदेश के 1967-68 तथा पुनः 1970 में मुख्यमंत्री थे, जो मोरारजी देसाई के बाद प्रधानमंत्री बने। वी.पी. सिंह भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, जो राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में प्रधानमंत्री बने (दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक)। पी.वी. नरसिम्हा राव, दक्षिण भारत से प्रधानमंत्री बनने वाले पहले नेता थे। ये 1971-1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, बाद में वे 1991-96 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। एच.डी. देवगौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे, जिन्हें जून 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार का मुखिया चुना गया था।

तालिका 19.1 प्रधानमंत्री से संबंधित अनुच्छेद, एक नजर में

अनुच्छेवविषय-वस्तु
74मंत्रिपरिषद का राष्टपति को सहयोग एवं परामर्श देना
75 मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान
77भारत सरकार द्वारा कार्यवाहियों का संचालन
78प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति को सूचनाएँ प्रदान करने संबंधी कर्तव्य

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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