जनसुविधाएँ : अध्याय 7

चेन्नई के लोग और पानी

श्री रामगोपाल जैसे आला सरकारी अफ़सर चेन्नई के अन्ना नगर में रहते हैं। भरपूर पानी के छिड़काव के कारण हरे-भरे बाग-बगीचों वाला यह इलाका खासा आकर्षक है। यहाँ के नलों में 24 घंटे पानी रहता है। जब पानी की आपूर्ति कम होती है तो श्री रामगोपाल नगर जल निगम में परिचित एक बड़े अफ़सर से बात करते हैं और फ़ौरन उनके लिए पानी के टैंकर का इंतजाम हो जाता है।

शहर के ज्यादातर इलाकों की तरह मैलापुर में सुब्रमण्यन के अपार्टमेंट में भी पानी की कमी है। यहाँ नगरपालिका दो दिन में एक बार पानी उपलब्ध कराती है। कुछ लोगों की ज़रूरतें निजी बोरवेल से पूरी हो जाती हैं। लेकिन बोरवेल का पानी खारा है। लोग उसे शौचालय और साफ़-सफ़ाई के लिए ही इस्तेमाल करते हैं। दूसरे कामों के लिए टैंकरों का पानी खरीदना पड़ता है। सुब्रमण्यन टैंकरों से पानी खरीदने के लिए हर महीने 500-600 रुपए खर्च करते हैं। पीने के पानी को साफ़ करने के लिए लोगों ने घरों में ही जलशोधन उपकरण लगवाए हुए हैं।

मडीपाक्कम के एक मकान में शिवा पहली मंजिल में किराए पर रहता है। उसे चार दिन में एक बार पानी मिलता है। पानी की कमी के कारण वह अपने परिवार को चेन्नई नहीं ला पा रहा है। पीने के लिए शिवा बाज़ार से पानी की बोतलें खरीदता है।

प‌द्मा घरेलू नौकरानी है। वह सैदापेट में काम करती है और पास ही एक झुग्गी बस्ती में रहती है। उसकी झुग्गी का किराया 650 रुपए माहवार है। उसकी झुग्गी में न तो शौचालय है और न ही पानी का अन्य स्रोत है। इस तरह की 30 झुग्गियों के लिए कोने में एक ही नल है। इस नल में रोज 20 मिनट के लिए एक बोरवेल से पानी आता है। इस दौरान एक परिवार को ज्यादा से ज्यादा 3 बाल्टियाँ भरने का मौका मिलता है। इसी पानी को लोग नहाने, धोने और पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं। गर्मियों में पानी इतना कम हो जाता है कि कई परिवारों को पानी ही नहीं मिल पाता। उन्हें टैंकरों का घंटों इंतजार करना पड़ता है।

जीवन के अधिकार के रूप में पानी

जीवन और स्वास्थ्य के लिए पानी आवश्यक है। न केवल यह हमारी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है, बल्कि पीने का साफ़ पानी बहुत सारी पानी से होने वाली बीमारियों को भी रोक सकता है। भारत की स्थिति यह है कि जिन देशों में दस्त, पेचिश, हैजा जैसी बीमारियों के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं, उनमें उसका स्थान काफ़ी ऊपर आता है। पानी से संबंधित बीमारियों के कारण हर रोज 1600 से ज्यादा भारतीय मौत के मुँह में चले जाते हैं। उनमें से ज्यादातर पाँच साल से भी कम उम्र के बच्चे होते हैं। अगर लोगों के पास पीने का पानी सहज रूप से उपलब्ध हो तो इन मौतों को रोका जा सकता है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत पानी के अधिकार को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है। इसका मतलब यह है कि अमीर-गरीब, हर व्यक्ति का यह अधिकार है कि उसे सस्ती कीमत पर दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मिले। कहने का मतलब यह है कि पानी तक सार्वभौमिक पहुँच होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में सबको पानी मिलना चाहिए।

उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने कई मुकदमों में यह कहा है कि सुरक्षित पेयजल का अधिकार भी मौलिक अधिकारों में से एक है। 2007 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने पानी में गंदगी के सवाल पर महबूब नगर जिले के एक किसान द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर चली सुनवाई में इस बात को फिर दोहराया है। पत्र भेजने वाले किसान की शिकायत थी कि एक कपड़ा बनाने वाली कंपनी गाँव के पास स्थित जलधारा में विषैले रसायन छोड़ रही है। उससे भूमिगत पानी दूषित हो गया है जो कि सिंचाई और पीने के पानी का स्त्रोत है। इस मुकदमे के आधार पर न्यायाधीशों ने महबूब नगर के जिला कलेक्टर को आदेश दिया कि वह गाँव के पानी उपलब्ध कराएँ। प्रत्येक व्यक्ति को हर रोज़ 25 लीटर  पानी उपलब्ध कराएं।

जनसुविधाएँ

पानी की तरह कुछ अन्य सुविधाएँ भी हैं जिनका हर व्यक्ति के लिए इंतजाम किया जाना चाहिए। पिछले साल आपने स्वास्थ्य और स्वच्छता, इन दो सुविधाओं के बारे में पढ़ा था। इसी तरह बिजली, सार्वजनिक परिवहन, विद्यालय और कॉलेज भी अनिवार्य चीजें हैं। इन्हें जनसुविधाएँ के नाम से जाना जाता है।

भारतीय संविधान 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है। इस अधिकार का महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि सभी बच्चों को समान रूप से स्कूली शिक्षा उपलब्ध हो। लेकिन शिक्षा पर अध्ययन करने वाले कार्यकत्ताओं एवं शोधार्थियों के निष्कर्षों से यह तथ्य सामने आया है कि भारत में स्कूली शिक्षा में हमेशा से काफ्नी असमानता रही है।

किसी जनसुविधा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि एक बार निर्माण हो जाने के बाद उसका बहुत सारे लोग इस्तेमाल कर सकते हैं। मसलन अगर गाँव में एक स्कूल बना दिया जाए तो उससे बहुत सारे बच्चों को शिक्षा मिलती है। इसी तरह किसी इलाके में बिजली की आपूर्ति बहुत सारे लोगों के लिए फ़ायदेमंद हो सकती है : किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए पंपसेट चला सकते हैं, लोग बिजली से चलने वाली छोटी-मोटी वर्कशॉप खोल सकते हैं, विद्यार्थियों को पढ़ने-लिखने में आसानी हो जाती है और किसी न किसी तरीके से गाँव के अधिकांश लोगों को फ़ायदा होता है।

सरकार की भूमिका

चूँकि जनसुविधाएँ इतनी महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिए उन्हें मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी भी किसी न किसी के ऊपर जरूर आनी चाहिए। जी हाँ, यह ज़िम्मेदारी सरकार के ऊपर आती है। सरकार की बहुत सारी महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों में से एक यह है कि वह सभी लोगों को इस तरह की जनसुविधाएँ मुहैया कराए। आइए, इस बात को समझें कि यह जिम्मेदारी सरकार (और केवल सरकार) को ही क्यों उठानी चाहिए।

हम देख चुके हैं कि निजी कंपनियाँ मुनाफ़े के लिए चलती हैं। कक्षा 7 की पुस्तक में ‘बाजार में एक कमीज़’ अध्याय को पढ़ कर आप यह समझ चुके होंगे। ज्यादातर जनसुविधाओं में मुनाफ़ की गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के लिए नालियों को साफ़ रखने या मलेरिया रोधी अभियान चलाने से किसी कंपनी को क्या मुनाफ़ा हो सकता है? फलस्वरूप कोई निजी कंपनी इस तरह के कामों में दिलचस्पी नहीं लेगी।

सरकार पूरी आबादी के लिए समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करने में अहम भूमिका निभाती है। पोलियो जैसी बीमारियों का उन्मूलन भी इसी तरह की योजनाओं के तहत आता है। इस चित्र में एक छोटे बच्चे को पोलियो की खुराक दी जा रही है।

लेकिन स्कूल और अस्पताल जैसी कुछ जनसुविधाओं में निजी कंपनियों को दिलचस्पी हो सकती है। हमारे पास इस आशय के बहुत सारे उदाहरण हैं। अगर आप शहर में रहते हैं तो आपने कई जगह निजी कंपनियों को टैंकरों या सीलबंद बोतलों के ज़रिए पानी की आपूर्ति करते हुए भी देखा होगा। ऐसी स्थितियों में निजी कंपनियाँ जनसुविधाएँ तो मुहैया कराती हैं, लेकिन उनकी कीमत इतनी ज्यादा होती है कि चंद लोग ही उसका खर्च उठा पाते हैं। यह सुविधा सस्ती दर पर सभी लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होती। जितना खर्च करेंगे लोग उसके मुताबिक ही सुविधाएँ पाएँगे, यदि यह सामान्य नियम बन जाए तो बड़ी मुश्किल होगी। इसका नतीजा यह होगा कि जो इन सुविधाओं के एवज में खर्च नहीं कर पाएँगे वे सम्मानजनक जीवन जीने से वंचित रह जाएँगे।

यह कोई अच्छा विकल्प नहीं है। जनसुविधाओं का संबंध लोगों की मूलभूत सुविधाओं से होता है। किसी भी आधुनिक समाज के लिए ज़रूरी है कि वहाँ इन सुविधाओं का इंतज़ाम हो ताकि लोगों की मूलभूत ज़रूरतें पूरी की जा सकें। संविधान में जीवन के अधिकार का जो आश्वासन दिया गया है वह देश के सभी लोगों को प्राप्त है। इसलिए जनसुविधाएँ मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी लाजिमी तौर पर सरकार के ऊपर ही आनी चाहिए।

सरकार को जनसुविधाओं के लिए पैसा कहाँ से मिलता है?

आप हर साल सुनते होंगे कि सरकार ने संसद में बजट पेश किया है। बजट के जरिए सरकार अपने नफ़े-नुकसान का ब्यौरा पेश करती है। इसमें सरकार पिछले साल के खर्चों का खाता पेश करती है और अगले साल के खर्चों की योजना सामने रखती है।

बजट में सरकार को इस बात का भी ऐलान करना पड़ता है कि अगले साल की योजनाओं के लिए पैसे की व्यवस्था कहाँ से की जाएगी। जनता से मिलने वाला कर सरकार की आमदनी का मुख्य जरिया होता है। जनता से कर वसूल करने और उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों पर खर्च करने का सरकार को पूरा अधिकार होता है। उदाहरण के लिए पानी की आपूर्ति के लिए सरकार को पानी निकालने, पानी को दूर तक पहुँचाने, पाइपों का जाल बिछाने, पानी को साफ करने और आखिर में गंदे पानी को ठिकाने लगाने पर खर्च करना पड़ता है। सरकार इन खर्चों को कुछ हद तक करों के जरिए और कुछ हद तक पानी की कीमत वसूल करके पूरा करती है। पानी की कीमत इस तरह तय की जाती है कि ज्यादातर लोग रोजाना एक निश्चित मात्रा में पानी का खर्च उठा सकें।

केन्द्रीय सरकार जिन पर धन व्यय करती है रुपया कहां जाता है

कम दूरी के लिए बसें ही सार्वजनिक परिवहन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन हैं। ज्यादातर कामकाजी लोग बसों से ही अपनी मंजिल तक पहुँचते हैं। तेज़ शहरीकरण के कारण बड़े शहरों में भी सार्वजनिक बस प्रणाली जरूरत के हिसाब से कम साबित होती जा रही है।

इस कमी को पूरा करने के लिए दिल्ली तथा अन्य महानगरों में सरकार ने मैट्रो रेल परियोजना के रूप में एक महत्त्वाकांक्षी योजना शुरू की है। दिल्ली में मैट्रो रेल के पहले खंड का निर्माण करने के लिए सरकारी बजट से 11,000 करोड़ रुपए का खर्चा किया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि अगर सरकार सार्वजनिक बस प्रणाली में सुधार पर ध्यान देती तो इतने भारी खर्चे की जरूरत न पड़ती और लोगों की जरूरत भी पूरी हो जाती। आपको क्या लगता है? आपकी राय में देश के दूसरे भागों के लिए क्या हल ढूँढ़ा जा सकता है?

कुमार- किसी झुग्गी बस्ती में तुम और क्या उम्मीद करोगी !

अमू- झुग्गी बस्तियाँ ऐसी क्यों होती है? क्या वहाँ जनसुविधाएँ नहीं होनी चाहिए?

कुमार- मेरे खयाल में जनसुविधाएँ उन लोगों के लिए होती हैं जो बस्तियों में ठीक-ठाक घरों में रहते हैं। वही लोग हैं जो कर चुकाते हैं।

अमू- सरकार की जिम्मेदारी है कि वह केवल ‘ठीक-ठाक’ बस्तियों को ही नहीं, बल्कि सभी को जनसुविधाएँ मुहैया कराए। तुम ऐसे क्यों कह रहे हो? क्या बस्ती के लोग देश के नागरिक नहीं हैं? उनके भी तो कुछ अधिकार हैं।

कुमार (गुस्से में) पर ऐसे तो सरकार दिवालिया हो जाएगी!

अमू- चाहे जो हो, उसे रास्ता तो निकालना पड़ेगा। क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि सड़क, पानी, बिजली के बिना झुग्गियों में जिंदगी कैसी होगी?

कुमार- अरे…!

अमू- हमारे संविधान में बहुत सारी जनसुविधाओं को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है। सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इन अधिकारों की अवहेलना न हो ताकि हर व्यक्ति एक सम्मानजनक जीवन जी सके।

चेन्नई में पानी की आपूर्ति : क्या सबको पानी मिल रहा है?

इसमें कोई शक नहीं कि जनसुविधाएँ सभी को मुहैया होनी चाहिए। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। बहुत सारे स्थानों पर ऐसी सुविधाओं का भारी अभाव है। इस अध्याय के अगले हिस्सों में आप पानी की व्यवस्था के बारे में पढ़ेंगे। यह जनसुविधा बहुत मायने रखती है।

जैसा कि इस अध्याय की शुरुआत में हमने देखा था, चेन्नई में पानी की भारी कमी है। नगरपालिका की आपूर्ति से शहर की लगभग आधी जरूरत ही पूरी हो पाती है। कुछ इलाकों में नियमित रूप से पानी आता है। कुछ इलाकों में बहुत कम पानी आता है। जहाँ पानी का भंडारण किया गया है उसके आसपास के इलाकों में ज़्यादा पानी आता है, जबकि दूर की बस्तियों को कम पानी मिलता है।

जलापूर्ति में कमी का बोझ ज़्यादातर गरीबों पर पड़ता है। जब मध्यम वर्ग के लोगों के सामने पानी की किल्लत पैदा हो जाती है तो इस वर्ग के लोग ज्यादा आसानी से इसका हल ढूँढ़ लेते हैं। वे बोरवेल खोद कर, टैंकरों से पानी खरीद कर या बोतलबंद पानी खरीद का अपना काम चला लेते हैं।

ग्रामीण इलाकों में मनुष्यों और मवेशियों, दोनों के लिए पानी की जरूरत पड़ती है। यहाँ कुआँ, हैंडपंप, तालाब और कभी-कभार छत पर स्थित टंकियों से पानी मिलता है। इनमें से ज्यादातर निजी स्वामित्व में हैं। शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक जलापूर्ति का और भी ज्यादा अभाव है।

पानी की उपलब्धता के अलावा कुछ ही लोगों की ‘सुरक्षित’ पेयजल तक पहुँच है। यह इस पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति कितना खर्च कर सकता है। इस तरह संपन्न तबके के पास ही ज़्यादा विकल्प होते हैं। वे बोतलबंद पानी और जलशोधक उपकरणों के सहारे साफ पानी का इंतज़ाम कर सकते हैं। इस मद में खर्च कर सकने के कारण उन्हें साफ़ पानी मिल जाता है। परंतु गरीब इस सुविधा से वंचित रह जाते हैं। लिहाजा ऐसा लगता है कि जिन लोगों के पास पैसा है उन्हीं के पास पानी का अधिकार है। यह स्थिति ‘पर्याप्त और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने’ के लक्ष्य से बहुत दूर है।

किसानों से पानी छीनना

पानी की कमी ने निजी कंपनियों के लिए मुनाफे के नए रास्ते खोल दिए हैं। बहुत सारी निजी कंपनियाँ शहर के आसपास के इलाकों से पानी खरीद कर शहरों में बेचती हैं। चेन्नई में मामंदूर, पालुर, कारुनगिझी जैसे कस्बों और शहर के उत्तर में स्थित गाँवों से पानी लाया जाता है। 13.000 से भी ज्यादा टैंकर इस काम में लगे हुए हैं। हर महीने पानी के व्यापारी किसानों को पेशगी रकम देते हैं ताकि वे किसानों की जमीन से पानी निकाल सकें। इस तरह न केवल खेती का पानी छिन जाता है, बल्कि गाँवों के लिए पीने के पानी की आपूर्ति भी कम पड़‌ने लगती है। नतीजा यह है कि इन सारे कस्बों और गाँवों में भूमिगत जल स्तर बहुत बुरी तरह गिर चुका है।

विकल्पों की तलाश

चेन्नई की स्थिति कोई अनूठी नहीं है। गर्मियों के महीनों में पानी की कमी का यह हाल देश के दूसरे शहरों में भी दिखाई देने लगता है। नगरपालिका की जलापूर्ति में कमी से निपटने के लिए निजी कंपनियाँ ज्यादा से ज्यादा इलाकों में फैलती जा रही हैं। ये कंपनियाँ अपने मुनाफ़े के लिए पानी बेचती हैं। पानी के इस्तेमाल में भी जबरदस्त गैर-बराबरी दिखाई देती है। शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति लगभग 135 लीटर पानी प्रतिदिन मिलना चाहिए। पानी की यह मात्रा लगभग 7 बाल्टी के बराबर है। शहरी जल आयोग ने यह मात्रा तय की है। लेकिन झुग्गी बस्तियों में लोगों को रोज़ाना प्रति व्यक्ति 20 लीटर पानी (एक बाल्टी) भी नहीं मिलता। दूसरी तरफ़ आलीशान होटलों में रहने वाले लोगों को रोजाना प्रति व्यक्ति 1600 लीटर (80 बाल्टी) तक पानी मिलता है।

नगरपालिका के जरिए जलापूर्ति में कमी को अकसर सरकार की नाकामयाबी माना जाता है। कुछ लोगों की दलील है कि चूँकि सरकार ज़रूरत के हिसाब से पानी मुहैया नहीं करवा पा रही है और बहुत सारे शहरी जल विभाग घाटे में चल रहे हैं, इसलिए जलापूर्ति का काम निजी कंपनियों को सौंप दिया जाना चाहिए। उन्हें लगता है कि निजी कंपनियाँ ज़्यादा बेहतर काम कर सकती हैं।

इस दलील की रोशनी में निम्नलिखित तथ्यों पर विचार कीजिए-

1. दुनिया भर में जलापूर्ति की ज़िम्मेदारी सरकार पर रही है। निजी जलापूर्ति व्यवस्था के उदाहरण बहुत कम हैं।

2. दुनिया में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ सार्वभौमिक जलापूर्ति सब लोगों तक पहुँच चुकी है (नीचे बॉक्स देखें)।

3. जहाँ जलापूर्ति की जिम्मेदारी निजी कंपनियों को सौंपी गई, ऐसे कुछ मामलों में पानी की कीमत में भारी इज़ाफ़ा हुआ। इस कारण वहाँ बहुत सारे लोगों के लिए पानी का खर्चा उठाना संभव नहीं हो पाया। ऐसे शहरों में लोगों के विशाल प्रदर्शन हुए। बोलीविया आदि देशों में तो दंगे भी फैल गए जिसके दबाव में सरकार को जलापूर्ति व्यवस्था निजी हाथों से छीन कर दोबारा अपने हाथों में लेनी पड़ी।

4. भारत में सरकारी जल विभागों की सफलता के कई उदाहरण रहे हैं। लेकिन ये उदाहरण कम हैं और उनकी सफलता कुछ क्षेत्रों में ही सीमित दिखाई देती है। मुंबई का जलापूर्ति विभाग अपने खर्चों को पूरा करने के लिए जल शुल्क के ज़रिए पर्याप्त पैसा जुटा लेता है। हाल ही की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि हैदराबाद में जल विभाग के दायरे में इज़ाफ़ा हुआ है और उसकी आमदनी बढ़ी है। चेन्नई में जल विभाग ने वर्षा जल संचय के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं ताकि भूमिगत जलस्तर में सुधार लाया जा सके। वहाँ पर पानी की ढुलाई और वितरण के लिए निजी कंपनियों की भी सेवाएँ ली जा रही हैं, लेकिन पानी के टैंकरों की दर सरकारी जलापूर्ति विभाग ही तय करता है और वही उन्हें काम करने की इजाजत देता है। इसलिए इन टैंकरों को ‘अनुबंधित’ कहा जाता है।

मुंबई की उपनगरीय रेलवे एक अच्छी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली है। यह दुनिया का सबसे घना यातायात मार्ग है। यह रेलवे हर रोख 65 लाख यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है। 300 किलोमीटर से भी व्यादा लंबे नेटवर्क पर चलने वाली इन स्थानीय ट्रेनों के जरिए दूर-दूर रहने वाले लोग भी शहर में काम ढूँढ़ने आते हैं। इस बात पर गौर करें कि शहरों में रहन-सहन की भारी लागत के कारण साधारण मेहनतकश लोग शहर में नहीं रह सकते।

पोर्तों एलेग्रे में सार्वजनिक जलापूर्ति

पोर्तो एलेये ब्राजील का एक शहर है। इस शहर में बहुत सारे लोग गरीब हैं, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया के दूसरे ज्यादातर शहरों के मुकाबले यहाँ शिशु मृत्यु दर बहुत कम है। यहाँ नगर जल विभाग ने सभी लोगों को स्वच्छ पेयजल मुहैया करा दिया है। शिशु मृत्यु दर में गिरावट के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। यहाँ पानी की औसत कीमत कम रखी गई है और गरीबों से केवल आधी कीमत ली जाती है। विभाग को जो भी फ़ायदा होता है उसका इस्तेमाल जलापूर्ति में सुधार के लिए किया जाता है। जल विभाग का काम पारदर्शी ढंग से चलता है। विभाग को कौन सी योजना हाथ में लेनी चाहिए, इस बारे में लोग मिलकर तय करते हैं। जनसभाओं में जनता प्रबंधकों का पक्ष सुनती है और जल विभाग की प्राथमिकताएँ तय करने में वोट के जरिए फैसला करती है।

स्वच्छता संबंधी सुविधाओं का विस्तार

“‘हमारे लिए पाखाने/ शौचालय ।’ उन्होंने हैरानी से कहा।

‘हम तो बाहर खुले में जाकर अपना काम निपटा लेते हैं।’

‘लैट्रीन तो तुम्हारे जैसे बड़े लोगों के लिए होती है।'”

‘अछूतों’ की शिकायतों को याद करते हुए महात्मा गांधी का वक्तव्य, राजकोट स्वच्छता समिति, 1896.

पीने के साफ पानी के अलावा यह भी जरूरी है कि पानी से फैलने वाली बीमारियों को रोकने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखा जाए। लेकिन भारत में स्वच्छता सुविधाओं का दायरा तो जलापूर्ति से भी छोटा है। 2011 के सरकारी आँकड़ों से पता चलता है कि भारत के 87 प्रतिशत परिवारों के पास पेयजल की सुविधा उपलब्ध है, जबकि स्वच्छता सुविधाएँ (घर के भीतर शौचालय) 53 प्रतिशत परिवारों में ही उपलब्ध हैं। यहाँ भी ग्रामीण और शहरी इलाकों के गरीबों की स्थिति ज्यादा कमजोर दिखाई देती है।।

गैर-सरकारी संगठन ‘सुलभ इंटरनेशनल’ पिछले लगभग पाँच दशक से निम्न जाति, निम्न आय वर्ग लोगों के सामने मौजूद स्वच्छता के अभाव की समस्या से निपटने के लिए कोशिश कर रहा है। इस संगठन ने 8.500 से ज्यादा सामुदायिक शौचालय इकाइयाँ और 15.00.000 से ज्यादा घरेलू शौचालय बनाए हैं जिससे दो करोड़ लोग इन सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। सुलभ की सुविधाओं का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर गरीब मेहनतकश वर्ग के लोग होते हैं।

सुलभ ने सरकारी पैसे से शौचालय इकाइयाँ बनाने के लिए नगरपालिकाओं या अन्य स्थानीय निकायों के साथ अनुबंध भी किए हैं। स्थानीय विभाग इन सेवाओं की स्थापना के लिए जमीन और पैसा मुहैया कराते हैं जबकि रख-रखाव की लागत कई बार प्रयोक्ताओं से मिलने वाले पैसे से पूरी की जाती है (शहरों में

शौचालयों के इस्तेमाल पर ₹2 शुल्क लिया जाता है)।

अगली बार जब आप सुलभ शौचालय को देखेंगे तो हो सकता है खुद यह जानना चाहें कि ये शौचालय कैसे होते हैं।

2001 की जनगणना के अनुसार 44 प्रतिशत ग्रामीण घरों में बिजली पहुँच चुकी है। इसका मतलब यह है कि लगभग 7 करोड़ 80 लाख परिवार अभी भी अँधेरे में हैं।

निष्कर्ष

जनसुविधाओं का संबंध हमारी बुनियादी जरूरतों से होता है। भारतीय संविधान में पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि अधिकारों को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है। इस प्रकार सरकार की एक अहम जिम्मेदारी यह बनती है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को पर्याप्त जनसुविधाएँ मुहैया करवाए।

लेकिन इस मोर्चे पर संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है। आपूर्ति में कमी है और वितरण में भारी असमानता दिखाई देती है। महानगरों और बड़े शहरों के मुकाबले कस्बों और गाँवों में तो इन सुविधाओं की स्थिति और भी खराब है। संपन्न बस्तियों के मुकाबले गरीब बस्तियों में सेवाओं की स्थिति कमज़ोर है। इन सुविधाओं को निजी कंपनियों के हाथों में सौंप देने से समस्या हल होने वाली नहीं है। किसी भी समाधान में इस महत्त्वपूर्ण तथ्य को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता कि देश के प्रत्येक नागरिक को इन सुविधाओं को पाने का अधिकार है और उसे ये सुविधाएँ समतापरक ढंग से मिलनी चाहिए।

शब्द संकलन

स्वच्छता : मानव मल-मूत्र को सुरक्षित ढंग से नष्ट करने की सुविधा। इसके लिए शौचालयों का निर्माण किया जाता है और गंदे पानी की सफ़ाई के लिए पाइप लगाए जाते हैं। संक्रमण से बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी होता है।

कंपनी : कंपनी एक तरह की व्यावसायिक संस्था होती है जिसकी स्थापना कुछ लोग या सरकार करती है। जिन कंपनियों का संचालन और स्वामित्व निजी समूहों या व्यक्तियों के हाथ में होता है उन्हें निजी कंपनी कहा जाता है। उदाहरण के लिए टाटा स्टील एक निजी कंपनी है, जबकि इंडियन ऑयल सरकार द्वारा संचालित कंपनी है।

सार्वभौमिक पहुँच : जब हर व्यक्ति को कोई चीज पूरी तरह हासिल हो जाती है और वह उसका खर्च उठा सकता है तो इसे सार्वभौमिक पहुँच कहा जाता है। उदाहरण के लिए घर में नल में पानी आ रहा हो तो परिवार को पानी तक पहुँच मिल जाती है और अगर उसकी कीमत कम हो या वह मुफ्त उपलब्ध हो तो हर कोई उसका इस्तेमाल कर सकता है।

मूलभूत सुविधाएँ : भोजन, पानी, आवास, साफ़-सफ़ाई, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतें जो जिंदा रहने के लिए जरूरी होती हैं।

यह भी पढ़ें : हाशियाकरण से निपटना : अध्याय 6

अभ्यास

1. आपको ऐसा क्यों लगता है कि दुनिया में निजी जलापूर्ति के उदाहरण कम हैं?
Ans.
पानी जीवन तथा स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। जन सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। जलापूर्ति करना भी सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार जलापूर्ति के लिए कुछ धन प्राप्त करती है। परंतु सरकार द्वारा लिया जाने वाला शुल्क निजी कंपनियों के मुकाबले बहुत कम है। विश्व में जहां जलापूर्ति का कार्य निजी कंपनियां को दिया गया, वहां पर इसकी कीमतों में अचानक बहुत वृद्धि हुई। जिसको देना कई लोगों की क्षमता से बाहर हो गया। बोलीविया में इसके कारण दंगे तथा विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके कारण सरकार ने जलापूर्ति की जिम्मेदारी निज कंपनी से लेकर स्वयं ले ली।

2. क्या आपको लगता है कि चेन्नई में सबको पानी की सुविधा उपलब्ध है और वे पानी का खर्च उठा सकते हैं? चर्चा करें।
Ans.
चेन्नई में पानी की बहुत कमी है, सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं होता। जो अफसर चेन्नई के अन्ना नगर में रहते है उन जैसे क्षेत्रों में पानी की कमी नहीं है। परंतु अधिकांश क्षेत्रों में पानी की कमी है। मेलापुर क्षेत्र में नगरपालिका दो दिन में एक बार पानी उपलब्ध कराती है। बहुत से लोग अपने कार्यों को पूरा करने लिए टैंकरों से पानी खरीदते हैं, जिसके लिए उन्हें महीने में 500-600 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। मडीपाक्कम में तो चार दिन में एक बार पानी मिलता है। यहां के लोग पानी की बोतलें खरीद कर अपना गुजारा चलाते हैं। परंतु लोग ये बोतलें भी नहीं खरीद पाते, गर्मियों में तो पानी इतना कम हो जाता है कि कई परिवारों को पानी मिल ही नहीं पाता, उन्हें पानी के टैंकरों का कई घंटे इंतजार करना पड़ता है।

3. किसानों द्वारा चेन्नई के जल व्यापारियों को पानी बेचने से स्थानीय लोगों पर क्या असर पड़ रहा है? क्या आपको लगता है कि स्थानीय लोग भूमिगत पानी के इस दोहन का विरोध कर सकते हैं? क्या सरकार इस बारे में कुछ कर सकती है?
Ans.
चेन्नई में पानी की समस्या बहुत अधिक है। नगरपालिका सभी लोगों को पानी उपलब्ध नहीं करा पाती। जिसके कारण यह जिम्मेदारी निजी कंपनियों ने अपने हाथों में ले ली थी। ये कंपनियां समीप के गाँवों से पानी खरीदकर शहरों में बेचती हैं। कंपनियां किसानों को पैसे देकर उनकी जमीन से पानी निकालती है। जिसकी वजह से कुछ मामले में पानी की कीमत में भारी इज़ाफ़ा हुआ। इस कारण बहुत सारे लोगों के लिए पानी का खर्चा उठाना संभव नहीं हो पाया। इसलिए लोगों ने विरोध किए, विशाल प्रदर्शन हुए। बोलीविया आदि देशों में तो दंगे भी फेल गए जिसके दबाव में सरकार को जलापूर्ति व्यवस्था निजी कंपनियों के हाथों से छीनकर दोबारा अपने हाथों में लेनी पड़ी।

4. ऐसा क्यों है कि ज्यादातर निजी अस्पताल और निजी स्कूल कस्बों या ग्रामीण इलाकों की बजाय बड़े शहरों में ही हैं?
Ans.
प्राइवेट कम्पनी का मुख्य लक्ष्य होता है अधिक से अधिक मुनाफा कमाना। इसलिए जब कोई प्राइवेट कम्पनी अस्पताल खोलती है या स्कूल खोलती है तो वह अधिक से अधिक फीस रखती है। इतनी अधिक फीस देने वाले लोग गाँवों या कस्बों में इक्का दुक्का ही होते हैं, जबकि शहरों में ऐसे लोग बहुतायत में होते हैं। इसलिए ज्यादातर निजी अस्पताल और निजी स्कूल कस्बों ओर ग्रामीण इलाकों की बजाय बड़े शहरों में ही हैं।

अथवा

हमारी सरकार का यह कर्तव्य होता है कि वह लोगों को शिक्षा देना तथा उनके स्वास्थ्य की देखभाल पड़ता अपना परम कर्तव्य समझे। सरकार से पहले निजी कम्पनियां ये सब सुविधाएं बड़े शहरों में उपलब्ध करा रही है। ग्रामीण की अपेक्षा बड़े-बड़े शहरों में बड़े-बड़े स्कूल एवं अस्पताल खुल रहे हैं। स्कूल दिल्ली, बंबई, कोलकाता, चेन्नई, चंडीगढ़, गुड़गांव तथा हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में खुल रहे हैं। बड़े स्कूल तथा अस्पताल बड़े शहरों इसलिए खुलते हैं। क्योंकि इन शहरों में बड़े समृद्ध एवं अमीर लोग रहते हैं जो अधिक पैसा खर्च करने में सक्षम हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गरीब होते हैं। जो अधिक पैसा खर्च नहीं कर पाते तथा वे लोग अस्पताल तथा स्कूल की फीस अदा नहीं कर सकते। यही कारण है कि ज़्यादातर निजी अस्पताल और निजी स्कूल कस्बों या ग्रामीण इलाकों की बजाय बड़े शहरों में ही है।

5. क्या आपको लगता है कि हमारे देश में जनसुविधाओं का वितरण पर्याप्त और निष्पक्ष है? अपनी बात के समर्थन में एक उदाहरण दें। 
Ans.
हमारे देश में जनसुविधाओं का वितरण पर्याप्त और निष्पक्ष नहीं है। बड़े शहरों के धनी रिहायशी इलाकों में सभी सुविधाएँ मिल जाती हैं। लेकिन झुग्गी झोपड़ी में जनसुविधाओं का सख्त अभाव होता है। ग्रामीण इलाकों में तो जनसुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं होता है। आपको पब्लिक ट्रांसपोर्ट के कई साधन मुम्बई और दिल्ली जैसे महानगरों में मिल जाएंगे। लेकिन यदि आप झुमरीतिलैया या पतरातू की बात करेंगे तो वहाँ के लोगों को प्राइवेट गाड़ियों पर निर्भर रहना पड़ता है।

अथवा

सरकार का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है कि सबसे पहले उन्हें यह देखना चाहिए कि उनके द्वारा दी गई जनसुविधा क्या लोगों तक सार्थक रूप में पहुंची हुई है. अगर नहीं तो ये जनसुविधाएं लोगों को उपलब्ध कराए। लेकिन इस मोर्चे पर संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है। हमें आपूर्ति में कमी और वितरण में भारी असमानता दिखाई देती है। महानगरों और बड़े शहरों के मुकाबले कस्बों और गांवों में तो इन सुविधाओं की स्थिति और भी खराब है। संपन्न बस्तियों के मुकाबले गरीब बस्तियों में सेवाओं की स्थिति कमज़ोर है। कही बिजली की कमी है तो कहीं पानी की बूंदों के लिए भी लोग तरस जाते है। कही लोग पानी को व्यर्थ बहाते है। सड़के अच्छी न होने के कारण दुर्घटनाएं होती है। इसलिए किसी भी समाधान में इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि देश के प्रत्येक नागरिक को इन सुविधाओं को पाने का अधिकार हे और उसे ये सुविधाएं समतापरक ढंग से मिलनी चाहिए।

6. अपने इलाके की पानी, बिजली आदि कुछ जनसुविधाओं को देखें। क्या उनमें सुधार की कोई गुंजाइश है? आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए? इस तालिका को भरें।

क्या यह उपलब्ध है? उसमें कैसे सुधार लाया जाए?
पानी
बिजली
सड़क
सार्वजनिक परिवहन


Ans.

क्या यह उपलब्ध है?उसमें कैसे सुधार लाया जाए?
पानीपानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, परन्तु बस्तियों की तरफ इसकी कमी है।सार्वजनिक नलके और नल लगवाने चाहिए।
बिजलीबिजली की कमी नहीं है।झुग्गी बस्तियों में बिजली का कोई सार्वजनिक प्रबंध करना चाहिए।
सड़कसड़कों की व्यवस्था कही कही खराब हैसड़कों की निरंतर मरम्मत होनी चाहिए।
सार्वजनिक परिवहनसार्वजनिक परिवहन अपर्याप्त है।बसों, रिक्शा की हर रुट पर व्यवस्था की जानी चाहिए।

7. क्या आपके इलाके के सभी लोग उपरोक्त जनसुविधाओं का समान रूप से इस्तेमाल करते हैं? विस्तार से बताएँ।
Ans.
हां, निष्पक्ष रूप से हमारे इलाके में सभी जनसुविधाओं का सामान रूप से इस्तेमाल करते है तथा कही कोई भी किसी चीज की आपूर्ति कम लगे तो इलाके के नगर निगम के अधिकारी को सूचित किया जाता है।

8. जनगणना के साथ-साथ कुछ जनसुविधाओं के बारे में भी आँकड़े इक‌ट्ठा किए जाते हैं। अपने शिक्षक के साथ चर्चा करें कि जनगणना का काम कब और किस तरह किया जाता है।
Ans.
भारत में जनगणना हर दस वर्ष के बाद होती है। इस काम के लिए जनगणना विभाग थोड़े समय के लिए कुछ लोगों को काम पर रखता है। ये लोग घर घर जाकर आँकड़े इकट्ठा करते हैं। लोगों की संख्या और उम्र पूछने के साथ जनगणना कर्मचारी कई अन्य सवाल भी पूछते हैं, जैसे घर में टेलीविजन, मोबाइल फोन, साइकिल, स्कूटर आदि है या नहीं।

9. हमारे देश में निजी शैक्षणिक संस्थान स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान बड़े पैमाने पर खुलते जा रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा संस्थानों का महत्त्व कम होता जा रहा है। आपकी राय में इसका क्या असर हो सकता है? चर्चा कीजिए।
Ans.
हमारे देश में निजी शैक्षणिक संस्थान खुलते जा रहे हैं, जबकि सरकारी शिक्षा संस्थानों का महत्त्व कम होता जा रहा है। आने वाले समय में इसका असर यह होगा कि शिक्षा बहुत अधिक महंगी हो जाएगी क्योंकि ज्यादातर बच्चें निजी शैक्षणिक संस्थान की ओर ही बढ़ रहें है, जिसके कारण गरीब लोग इससे वंचित हो जाएगे। वे पहले से ही बच्चों को मुश्किल से पढ़ा पाते है। शिक्षा से वंचित होने के कारण समाज में सामाजिक, आर्थिक अंतर बढ़ता जायेगा जो समाज में टकराव का कारण बनेगा।

पाठ के बीच में पूछे जाने वाले प्रश्न-उत्तर

1: आपने ऊपर उल्लिखित चार स्थितियों को देखा है। अब बताइए कि चेन्नई में पानी की स्थिति कैसी है।
Ans.
चेन्नई में पानी की स्थिति हर जगह अच्छी नहीं है। कई जगह पानी भरपूर मात्रा में प्राप्त होता है, तो कही लोग पानी की एक बून्द के लिए भी तरस जाते है। जैसे रामगोपाल एक सरकारी अफसर है, जो चेन्नई के अन्ना नगर में रहते है, वहाँ के नलों में 24 घंटे पानी रहता है। जब पानी की आपूर्ति कम होती है तो वे जल निगम में पहचान के अफसर से बात करते है और फौरन उनके लिए पानी के टैंकर का इंतजाम हो जाता है। मैलापुर में सुब्रमण्यन के अपार्टमेंट में भी पानी की कमी है। यहां नगरपालिका दो दिन में एक बार पानी उपलब्ध कराती है। महीपाक्कम के एक मकान में शिवा पहली मंजिल में किराए पर रहता है जहाँ उसे चार दिन में एक बार पानी मिलता है। पद्मा एक घरेलू नोकरानी है। वह सैदापेट में काम करती है और पास ही एक झुग्गी बस्ती में रहती है। उसकी बस्ती में न तो शौचालय है और न ही पानी का कोई स्तोता इस तरह की 30 झुग्गियों के लिए कोने में एक ही नल है। इस प्रकार चेन्नई में पानी की स्थिति बहुत खराब है।

2: उपरोक्त वर्णन में से घरेलू इस्तेमाल के विभिन्न जल स्रोतों को चुनें।
Ans.
उपरोक्त वर्णन में से घरेलू इस्तेमाल में पानी का टैंकर, नगरपालिका का जल, पीने की बोतलें प्रयोग में लाई जाती है।

3: आपकी राय में सुब्रमण्यन और पद्मा के अनुभवों में क्या समानता है और क्या अलग है।
Ans.
समानता: दोनों ही पानी की कमी का सामना कर रहे है और दोनों के पास जितना भी पानी आता हे बोरवेल से आता है।

भिन्नता : बोरवेल का पानी खारा होने के कारण लोग उसे शौचालय और साफ सफाई के लिए इस्तेमाल करते है। लेकिन यहां बोरवेल का पानी सिर्फ 20 मिनट के लिए आता है, इस दौरान एक परिवार को ज्यादा से ज्यादा 3 बाल्टियां भरने का मोका मिलता है। इसलिए इसी पानी को लोग नहाने, धोने और पीने के लिए इस्तेमाल करते है।

4: क्या चेन्नई में सभी के लिए पानी का संकट है? क्या आप बता सकते है कि अलग-अलग मात्रा में पानी क्यों मिलता है ? दो कारण बताएं।
Ans.
नहीं, चेन्नई में सभी के लिए पानी का संकट नहीं है। सार्थक शब्दों में कहा जाए तो जो लोग अच्छी खासी नौकरी पर है. उन्हें पानी आसानी से मिल जाता हैं। इनके नतों में 24 घंटे पानी रहता है और आपूर्ति कम हो जाए तो टैंकर का भी उपलब्ध उसी समय हो जाता है लेकिन जो बेरोजगार है या मजदूर है उन्हें पानी के लिए कई दिन इंतजार करना पड़‌ता है। किसी को पानी की बोतलें खरीदनी पड़ती है तो किसी के यहां दिन में 20 मिनट के लिए बोरवेल से आए पानी में भी ज्यादा से ज्यादा 3 बाल्टियां भरने का मौका मिलता है।

5: जनसुविधाएं क्या होती है? जनसुविधाएं मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी सरकार पर क्यों होनी चाहिए?
Ans.
पानी की तरह कुछ अन्य सुविधाएं भी है जिनका हर व्यक्ति के लिए इंतज़ाम किया जाना चाहिए। जैसे :- बिजली, सार्वजनिक परिवहन, विद्यालय और कॉलेज भी अनिवार्य चीजे है। इन्हें जनसुविधाओं के नाम से जाना जाता है। किसी जनसुविधा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि एक बार निर्माण हो जाने के बाद उसका बहुत सारे लोग इस्तेमाल कर सकते है। संविधान में जीवन के अधिकार का जो आश्वासन दिया गया है वह देश के सभी लोगों को प्राप्त है। इसलिए सरकार की बहुत सारी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में से एक यह है कि वह सभी लोगों को इस तरह की जनसुविधाओं का मुहैया कराना चाहिए।

6: ऊपर के भाग में आए मुख्य विचारों पर चर्चा करें। जलापूर्ति में सुधार के लिए आपकी राय में क्या किया जा सकता है?
Ans.
पोतों एलेग्रे ब्राजील का एक शहर है। इस शहर में बहुत सारे लोग गरीब हैं, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया के दूसरे ज्यादातर शहरों के मुकाबले यहाँ शिशु मृत्यु दर बहुत कम है। यहाँ नगर जल विभाग ने सभी लोगों को स्वच्छ पेयजल मुहैया करा दिया है। शिशु मृत्यु दर में गिरावट के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। यहाँ पानी की औसत कीमत कम रखी गई है और गरीबों से केवल आधी कीमत ली जाती है। विभाग को जो भी फायदा होता है। उसका इस्तेमाल जलापूर्ति में सुधार के लिए किया जाना चाहिए। सरकार द्वारा लोगों को पानी के व्यर्थ न भरने के लिए जागरूक करना चाहिए। वर्षा जल संग्रहण के बारे में बताना चाहिए।

7: क्या आपको लगता है कि समुचित स्वच्छता सुविधाओं के अभाव से लोगों का जीवन प्रभावित होता है? कैसे ?
Ans.
समुचित स्वच्छता सुविधाओं के अभाव से लोगों का जीवन प्रभावित होता है, इससे वातावरण प्रदूषित होता है। हर घर में कोई ना कोई बीमार होता ही है। पानी में पनपते मच्छर हर किसी के लिए घातक सिद्ध हो सकते है।

8: आपको ऐसा क्यों लगता है कि इससे औरतों और लड़कियों पर ज्यादा गहरा असर पड़ेगा ?
Ans.
ऐसा इसलिए क्योंकि औरतें और लड़‌कियाँ घर पर रहती है उनका काम घर से जुड़ा होता है। पानी में ज्यादा काम करना पड़ता है जिससे सभी बीमारियों का ज्यादा असर औरतों और लड़‌कियों पर ही पड़ेगा।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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