रहीम के दोहे : अध्याय 8

कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।।।।।

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह ।।2।।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं सुजान ।।3।।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात।।4।।

धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह।
जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह ।।5।।

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प्रश्न – अभ्यास

दोहे से

1. पाठ में दिए गए दोहों की कोई पंक्ति कथन है और कोई कथन को प्रमाणित करनेवाला उदाहरण। इन दोनों प्रकार की पंक्तियों को पहचान कर अलग-अलग लिखिए।
Ans.
उदाहरण वाले दोहे –

(i) तरूवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान। कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं सुजान||

(ii) थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात। धनी पुरूष निर्धन भए, करें पाछिली बात ||

(iii) धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह। जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह ||

कथन वाले दोहे –

(1) कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।।

(2) जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह। रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह ॥

2. रहीम ने क्वार के मास में गरजनेवाले बादलों की तुलना ऐसे निर्धन व्यक्तियों से क्यों की है जो पहले कभी धनी थे और बीती बातों को बताकर दूसरों को प्रभावित करना चाहते हैं? दोहे के आधार पर आप सावन के बरसने और गरजनेवाले बादलों के विषय में क्या कहना चाहेंगे?
Ans.
रहीम ने आश्विन (क्वार) के महीने में आसमान में छाने वाले बादलों की तुलना निर्धन हो गए धनी व्यक्तियों से इसलिए की है, क्योंकि दोनों गरजकर रह जाते हैं। कुछ कर नहीं पाते। बादल बरस नहीं पाते निर्धन व्यक्ति का धन लौटकर नहीं आता। जो अपने बीते हुए सुखी दिनों की बात करते रहते हैं, उनकी बातें बेकार और वर्तमान परिस्थितियों में अर्थहीन होती हैं। दोहे के आधार पर सावन के बरसने वाले बादल धनी तथा क्वार के गरजने वाले बादल निर्धन कहे जा सकते हैं।

दोहों से आगे

नीचे दिए गए दोहों में बताई गई सच्चाइयों को यदि हम अपने जीवन में उतार लें तो उनके क्या लाभ होंगे? सोचिए और लिखिए-

(क) तरुवर फल सचहिं सुजान ।।

(ख) धरती की- सी यह देह।।

Ans. (क) इस दोहे के माध्यम से रहीम यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि वृक्ष अपने फल नहीं खाते और सरोवर अपना जत नहीं पीते उसी प्रकार सज्जन अपना संचित धन अपने लाभ के लिए उपयोग नहीं करते। उनका धन दूसरों की भलाई में खर्च होता है। यदि हम इस सब्चाई को अपने जीवन में उतार लें, अर्थात् अपना लें तो अवश्य ही समाज का कल्याणकारी रूप हमारे सामने आएगा और राष्ट्र सुंदर रूप से विकसित होगा।

(ख) इस दोहे के माध्यम से रहीम बताने का प्रयास कर रहे हैं कि मनुष्य को धरती की भांति सहनशील होना चाहिए। यदि हम सत्य को अपनाएँ तो हम जीवन में आने वाले सुख-दुख को सहज रूप से स्वीकार कर सकेंगे। अपने मार्ग से कभी विचलित नहीं होंगे। हम हर स्थिति में संतुष्ट रहेंगे। हमारे मन में संतोष की भावना आएगी।

भाषा की बात

1. निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित हिंदी रूप लिखिए- जैसे-परे-पड़े (रे, ड़े)

बिपति, मछरी , बादर , सीत

Ans.

रहीम की भाषाहिंदी के शब्द
बिपतिविपत्ति
मछरीमछली
बादरबादल
सीतशीत

2. नीचे दिए उदाहरण पढ़िए-

(क) बनत बहुत बहु रीत।

(ख) जाल परे जल जात बहि।

उपर्युक्त उदाहरणों की पहली पंक्ति में ‘ब’ का प्रयोग कई बार किया गया है और दूसरी में ‘ज’ का प्रयोग। इस प्रकार बार-बार एक ध्वनि के आने से भाषा की सुंदरता बढ़ जाती है। वाक्य रचना की इस विशेषता के अन्य उदाहरण खोजकर लिखिए।
Ans.
(क) दाबे व दबे

(ख) संपति-सचहिं सुजान।।

(ग) चारू चंद्र की चंचल किरणें (‘च’ वर्ण की आवृत्ति)

(घ) तर तमाल तरुवर बहु छाए। (‘त’ वर्ण की आवृत्ति)

(ङ) रघुपति राघव राजा राम (‘र’ वर्ण की आवृत्ति)

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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