आत्मत्राण : अध्याय 7

पाठ प्रवेश

तैरना चाहने वाले को पानी में कोई उतार तो सकता है, उसके आस-पास भी बना रह सकता है, मगर तैरना चाहने वाला जब स्वयं हाथ-पाँव चलाता है तभी तैराक बन पाता है। परीक्षा देने जाने वाला जाते समय बड़ों से आशीर्वाद की कामना करता ही है, बड़े आशीर्वाद देते भी हैं, लेकिन परीक्षा तो उसे स्वयं ही देनी होती है। इसी तरह जब दो पहलवान कुश्ती लड़ते हैं तब उनका उत्साह तो सभी दर्शक बढ़ाते हैं, इससे उनका मनोबल बढ़ता है, मगर कुश्ती तो उन्हें खुद ही लड़नी पड़ती है।

प्रस्तुत पाठ में कविगुरु मानते हैं कि प्रभु में सब कुछ संभव कर देने की सामर्थ्य है, फिर भी वह यह कतई नहीं चाहते कि वही सब कुछ कर दें। कवि कामना करता है कि किसी भी आपद-विपद में, किसी भी द्वंद्व में सफल होने के लिए संघर्ष वह स्वयं करे, प्रभु को कुछ न करना पड़े। फिर आखिर वह अपने प्रभु से चाहते क्या है?

रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिंदी में अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपूर्व योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा’ को अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम है।

आत्मत्राण

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
           केवल इतना हो (करुणामय)
           कभी न विपदा में पाऊँ भय।

दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
          पर इतना होवे (करुणामय)
          दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
          कोई कहीं सहायक न मिले
          तो अपना बल पौरुष न हिले;

हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
          तो भी मन में ना मानूँ क्षय ।।

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
          बस इतना होवे (करुणायम)
          तरने की हो शक्ति अनामय।

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
         केवल इतना रखना अनुनय-
         वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
         नत शिर होकर सुख के दिन में
         तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
        उस दिन ऐसा हो करुणामय,
        तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।

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प्रश्न-अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
Ans.
कवि ईश्वर-भक्त है, प्रभु में उसकी गहरी आस्था है इसलिए कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि वह उसे जीवन रूपी मुसीबतों से जूझने की, सहने की शक्ति प्रदान करे तथा वह निर्भय होकर विपत्तियों का सामना करे अर्थात् विपत्तियों को देखकर डरे नहीं, घबराए नहीं। उसे जीवन में कोई सहायक मिले या न मिले, परंतु उसका आत्म-बल, शारीरिक बल कमज़ोर न पड़े। कवि अपने मन में दृढ़ता की इच्छा करता है तथा ईश्वर से विपत्तियों को सहने की शक्ति चाहता है।

2. ‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
Ans.
इस पंक्ति में कवि यह कहना चाहता है कि हे परमात्मा! चाहे आप मुझे दुखों व मुसीबतों से न बचाओ परंतु इतनी कृपा अवश्य करना कि दुख व मुसीबत की घड़ी में भी मैं घबराऊँ नहीं अपितु उन चुनौतियों का डटकर मुकाबला करूँ। उसकी प्रभु से यह प्रार्थना नहीं है कि प्रतिदिन ईश्वर भय से मुक्ति दिलाएँ तथा आश्रय प्रदान करें। वह तो प्रभु से इतना चाहता है कि वे शक्ति प्रदान करें। जिससे वह निर्भयतापूर्वक संघर्ष कर सके। वह पलायनवादी नहीं है, न ही डरपोक है, केवल ईश्वर का वरदहस्त चाहता है।

3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
Ans.
विपरीत परिस्थितियों के समय कोई सहायक अर्थात् सहायता न मिलने पर कवि प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! विपरीत परिस्थितियों में भले ही कोई सहायक न हो, पर मेरा बल और पौरुष न डगमगाए तथा मेरा आत्मबल कमजोर न पड़े। कविपूर्ण आत्म-विश्वास के साथ सभी बाधाओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति माँगता है।

4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
Ans.
अत में कवि ईश्वर से यह अनुनय करती है कि सुख के समय विनत होकर हर पल ईश्वर के मुख को ध्यान में रख सके, ईश्वर स्मरण कर सके तथा दुख रूपी रात्रि में जब संपूर्ण विश्व उसे अकेला छोड़ दे और अवहेलना करे, उस समय उसे अपने प्रभु पर, उनकी शक्तियों पर तनिक भी संदेह न हो। उसकी प्रभु पर आस्था बनी रहे।

5. ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
Ans.
कविता के शीर्षक ‘आत्मत्राण’ द्वारा बताया गया है कि चाहे जैसी भी परिस्थितियाँ जीवन में आएँ, हम उनका सामना सहर्ष एवं कृतार्थ होकर करें। कभी किसी भी परिस्थिति में आत्मबल, आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता न खोकर दीन-दुखी अथवा असहाय की भाँति रुदन न करें। ‘आत्मत्राण’ शीर्षक से एक ऐसी प्रार्थना का प्रकटीकरण या उदय होना प्रतीत होता है, जिससे मुसीबत, दुख तथा हानि के समय स्वयं की रक्षा की जा सके। इसके लिए आत्मविश्वास और प्रार्थना दोनों से ही बल मिलता है और स्वयं की रक्षा होती है इसलिए इसका शीर्षक ‘आत्मत्राण’ रखा गया है।

6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
Ans.
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हम निम्न प्रयास करते हैं

  1. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए सही दिशा चुनते हैं और जी-जान से परिश्रम करते हैं।
  2. जीवन में आने वाली बाधाओं से न तो घबराते हैं न पीछे हटते हैं।
  3. दूसरों को सहयोग और सलाह भी देते हैं।
  4. अपने प्रयासों की समीक्षा करते रहते हैं, सुधार करते हैं तथा छोटी-से-छोटी सफलता को भी स्वीकार करते हैं।
  5. जब तक इच्छा पूरी न हो जाए धैर्य व सहनशीलता से कार्य करते हैं।

7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
Ans.
हाँ, कवि की यह प्रार्थना अन्य प्रार्थना-गीतों से अलग है, क्योंकि इस प्रार्थना-गीत में कवि ने किसी सांसारिक या भौतिक सुख की कामना के लिए प्रार्थना नहीं की, बल्कि उसने हर परिस्थिति को निर्भीकता से सामना करने का साहस ईश्वर से माँगा है। वह स्वयं कर्मशील होकर आत्म-विश्वास के साथ विषय परिस्थितियों पर विजय पाना चाहता है। इन्हीं बातों के कारण यह प्रार्थना-गीत अन्य प्रार्थना-गीतों से अलग है।

(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए-

1. नत शिर होकर सुख के दिन में
   तव मुख पहचानें छिन-छिन में।
Ans.
इन पंक्तियों का भाव है कि कवि सुख के समय, सुख के दिनों में भी परमात्मा को हर पल श्रद्धा भाव से याद करना चाहता है तथा हर पल उसके स्वरूप को पहचानना चाहता है। अर्थात् कवि दुख-सुख दोनों में ही सम भावे से प्रभु को याद करते रहना चाहता है तथा उसके स्वरूप की कृपा को पाना चाहता है।

2 हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर बंचना रही
   तो भी मन में ना मानें क्षय।
Ans.
भाव-कवि चाहता है कि यदि उसे जीवन भर लाभ न मिले, यदि वह सफलता से वंचित रहे, यदि उसे हर कदम पर हानि पहुँचती रहे, तो भी वह मन में निराशा और विनाश के नकारात्मक भावों को स्थान न दे। उसके मन में ईश्वर के प्रति आस्था, आशा और विश्वास बनी रहे। कवि ईश्वर से निवेदन करता है कि हानि-लाभ को जीवन की अनिवार्य अंग मानते हुए, वे निराश न हो और उन्हें ऐसी शक्ति मिलती रहे कि वे निरंतर संघर्षशील रहे।

3. तरने की हो शक्ति अनामय
    मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
Ans.
कवि इस संसार रूपी भवसागर, माया के दुष्कर सागर को स्वयं ही पार करना चाहता है। वह ईश्वर से अपने दायित्वों रूपी बोझ को हल्का नहीं कराना चाहता तथा वह प्रभु से सांत्वना रूपी इनाम को भी पाने का इच्छुक नहीं है। वह तो ईश्वर से संसाररूपी सागर की सभी बाधाओं को पार करने की अपार शक्ति व जीवन में संघर्ष करने का साहस चाहता है।

1. रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीतों की रचना की है। उनके गीत-संग्रह में से दो गीत औटए और कक्षा में कविता-पाठ कीजिए।
Ans.
छात्र स्वयं करें।

2 अनेक अन्य कवियों ने भी प्रार्थना गीत लिखे हैं, उन्हें पढ़ने का प्रयास कीजिए; जैसे-

(क) महादेवी वर्मा-क्या पूजा क्या अर्चन रे!

(ख) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला दलित जन पर करो करुणा।

(ग) इतनी शक्ति हमें देना दाता
     मन का विश्वास कमजोर हो न
     हम चलें नेक रस्ते पर हम से
     भूल कर भी कोई भूल हो न

इस प्रार्थना को ढूँढ़कर पूरा पढ़िए और समझिए कि दोनों प्रार्थनाओं में क्या समानता है? क्या आपको दोनों में कोई अंतर भी प्रतीत होता है? इस पर आपस में चर्चा कीजिए।

Ans.  ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ और ‘आत्मत्राण’ दोनों ही कविताएँ प्रार्थना हैं जो पारंपरिक प्रार्थनाओं से हटकर हैं। दोनों ही प्रार्थनाओं में दुख से उबारने या दुख हर लेने की प्रार्थना न करके प्रभु के प्रति अटूट विश्वास बनाए रखने की शक्ति पाने की प्रार्थना की गई है। दोनों ही प्रार्थनाओं का भाव एक समान है किंतु इतनी शक्ति हमें देना दाता में कवि स्वयं नेक रास्ते पर चलने की अभिलाषा भी प्रकट करता है।

1. रवींद्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय होने का गौरव प्राप्त है। उनके विषय में और जानकारी एकत्र कर परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
Ans.
छात्र स्वयं करें।

2. रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
Ans.
छात्र स्वयं करें।

3. रवींद्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। पुस्तकालय की मदद से उसके विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए।
Ans.
छात्र स्वयं करें।

4. रवींद्रनाथ ठाकुर ने अनेक गीत लिखे, जिन्हें आज भी गाया जाता है और उसे रवींद्र संगीत कहा जाता है। यदि संभव हो तो रवींद्र संगीत संबंधी कैसेट व सी.डी. लेकर सुनिए।
Ans.
छात्र स्वयं करें।

रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1941)

6 मई 1861 को बंगाल के एक संपन्न परिवार में जन्मे रवींद्रनाथ ठाकुर नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय है। इनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। छोटी उम्र में ही स्वाध्याय से अनेक विषयों का ज्ञान अर्जित कर लिया। बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए विदेश भेजे गए लेकिन बिना परीक्षा दिए ही लौट आए।

रवींद्रनाथ की रचनाओं में लोक संस्कृति का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित होता है। प्रकृति से इन्हें गहरा लगाव था। इन्होंने लगभग एक हप्तार कविताएँ और दो हज्जार गीत लिखे हैं। चित्रकला, संगीत और भावनृत्य के प्रति इनके विशेष अनुराग के कारण रवींद्र संगीत नाम की एक अलग धारा का ही सूत्रपात हो गया। इन्होंने शांति निकेतन नाम की एक शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की। यह अपनी तरह का अनूठा संस्थान माना जाता है।

अपनी काव्य कृति गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए रवींद्रनाथ ठाकुर की अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं-नैवैद्य, पूरबी, बलाका, क्षणिका, चित्र और सांध्यगीत, काबुलीवाला और सैकड़ों अन्य कहानियाँ; उपन्यास-गोरा, घरे बाइरे और रवींद्र के निबंध।

शब्दार्थ और टिप्पणियाँ

विपदा – विपत्ति/मुसीबत

करुणामय – दूसरों पर दया करने वाला

दुःख ताप – कष्ट की पीड़ा

व्यथित – दुखी

सहायक – मददगार

पौरुष – पराक्रम

क्षय – नाश

त्राण – भय निवारण / बचाव / आश्रय

अनुदिन – प्रतिदिन

अनामय – रोग रहित / स्वस्थ

सांत्वना – ढाँढ़स बंधाना, तसल्ली देना

अनुनय – विनय

नत शिर – सिर झुकाकर

दुःख रात्रि – दुख से भरी रात

वंचना – धोखा देना / छलना

निखिल – संपूर्ण

संशय – संदेह

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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