लिंग निर्धारण

लैंगिक जनन (sexual reproduction) में एक सूत्री (haploid) नर व मादा युग्मक कोशाओं (gemetes) के संयुग्मन (union) से द्विसूत्री (diploid) युग्मनज अर्थात् जाइगोट (zygote) बनता है। जाइगोट के भ्रूणीय विकास से नयी सन्तान का शरीर बनता है। युग्मक कोशिकाएँ जननांगों (वृषणों-testes एवं अण्डाशयों-ovaries) में अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) द्वारा, युग्मकजनन (gemetogenesis) नामक प्रक्रिया में बनती है। लैंगिक जनन करने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं-(1) द्विलिंगी (hermaphrodite, bisexual or monoecious) जिनमें कि प्रत्येक सदस्य के शरीर में नर व मादा जननांग होते हैं। (अधिकांश उच्च पादप और कुछ निम्न जन्तु) तथा (2) एकलिंगी (unisexual or dioecious) जिनमें कि नर व मादा जननांग अलग- अलग सदस्यों में होते हैं, (अधिकांश उच्च जन्तु व कुछ पादप)।* उच्च जन्तुओं में तो प्रायः नर व मादा सदस्यों के शरीर-रचना एवं कार्यिकी तक में अन्तर होता है। इसे लिंग भेद (sexual dimorphism) कहते हैं।

प्राचीन काल से वैज्ञानिक उस प्रक्रिया की खोज में लगे रहे हैं जिसके कारण एकलिंगी जीवों में कोई सन्तान नर व मादा में विकसित होती है। मैक्कलंग (19.2) ने “लिंग निर्धारण का गुणसूत्रीवाद सिद्धान्त (Chromosomal Theory of Sex De- termination)” प्रस्तुत किया। इसके अनुसार, सन्तानों का लिंग-लक्षण गुणसूत्रों पर निर्भर करता है और, अन्य आनुवंशिक लक्षणों की भाँति, मेण्डेलियन के नियमों के अनुसार ही वंशागत होता है।

➤ मनुष्यों में लिंग निर्धारण (Sex Determination in Man)

मानव जाति में 23 जोड़ी अर्थात् 46 गुणसूत्र होते हैं।* इनमें से 22 जोड़ियों के गुणसूत्र स्त्रियों और पुरुषों में समान और अपने- अपने जोड़ीदार के समजात (homologous) होते हैं। अतः इन्हें सम्मिलित रूप से स्वजात गुणसूत्र अर्थात् आटोसोम्स (auto- somes) कहते हैं। 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र स्त्रियों और पुरुषों में समान नहीं होते। इन्हें विषमजात गुणसूत्र (heterosomes) या ऐलोसोम्स (allosomes) कहते हैं। स्त्रियों में ये गुणसूत्र भी समजात और कुछ लम्बे, छड़नुमा (rod like) होते हैं। इन्हें “X” संकेताक्षर द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रकार, स्त्रियों में 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र XX होते हैं और पूरे गुणसूत्र समूह (karotype) को 44A + XX द्वारा प्रदर्शित करते हैं। पुरुष में 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र समजात नहीं होते। इनमें एक तो स्त्रियों में X गुणसूत्र के ही समजात होते हैं, परन्तु इनका जोड़ीदार या साथी गुणसूत्र भिन्न प्रकार का, काफी छोटा और भिन्न आकृति का होता है। इस छोटे गुणसूत्र को “Y” द्वारा प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार, पुरुषों में 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र XY होते हैं और पूरे गुणसूत्र समूह को 44A + XY द्वारा प्रदर्शित करते हैं।

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि मनुष्य जाति में स्त्री और पुरुष का भेद, अर्थात् लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) 23वीं जोड़ी के गुणसूत्रों की विभिन्नता के कारण विकसित होती है। इसलिए 23वीं जोड़ी के गुणसूत्रों को लिंग गुणसूत्र (Sex chromosomes) कहते हैं। माता-पिता से जिस सन्तान को XY गुणसूत्र मिलते हैं वह पुत्र बनता है और जिसे XX गुणसूत्र मिलते हैं वह पुत्री। माता-पिता से सन्तान को कौन-से लिंग गुणसूत्र मिलते हैं, इसका निर्धारण लैंगिक जनन की प्रक्रिया में निम्नलिखित वर्णन के अनुसार होता है-

लैंगिक जनन में पुरुष तथा स्त्री के प्रमुख जननांगों, अर्थात् जनदों (gonads) में युग्मकजनन (gametogenesis) नामक प्रक्रिया के अन्तर्गत, अर्धसूत्री कोशा-विभाजन (meiotic cell livision) द्वारा विशेष प्रकार की कोशायें बनती हैं जिन्हें जनन कोशिकायें या युग्मक कोशायें अर्थात् गैमीट्स (sex cells or gametes) कहते हैं। अर्धसूत्री कोशा-विभाजन से बनी होने के कारण, गैमीट्स में गुणसूत्रों की संख्या, शरीर की कोशाओं में उपस्थित द्विगुण संख्या (diploid number-2X) की आधी अर्थात् एकगुण (haploid number-X) संख्या ही होती है। इस प्रकार, प्रत्येक युग्मक कोशा में जोड़ीदार सूत्रों में से एक-एक ही होता है।

स्त्रियों के जनद अण्डाशय (ovaries) होते हैं। इनमें होने वाले युग्मकजनन को अण्डजनन (oogenesis) कहते हैं। इसके फलस्वरूप गैमीट्स कोशायें गोल-सी होती हैं और इन्हें अण्डाणु (ova) कहते हैं। अर्द्धसूत्री विभाजन होने के कारण, प्रत्येक अण्डाणु में 22 ऑटोसोम्स तथा एक X लिंग गुणसूत्र (22 + X) होता है। अण्डाणुओं में लिंग गुणसूत्र की समानता के कारण स्त्रियाँ समयुग्मकी (homogametic) कहलाती हैं।

पुरुषों के जनद वृषण (testes) होते हैं। इनमें होने वाले युग्मकजनन को शुक्रजनन (spermatogenesis) कहते हैं। इसके फलस्वरूप बनी गैमीट्स कोशायें सूत्रवत् (filamentous) होती हैं और इन्हें शुक्राणु (sperms) कहते हैं। अण्डाणुओं के विपरीत, ये दो प्रकार के होते हैं, क्योंकि अर्धसूत्री कोशा-विभाजन में, 22 ऑटोसोम्स के साथ, इनमें से आधा में लिंग गुणसूत्रों में से X गुणसूत्र जाता है और आधों में Y गुणसूत्र। इस प्रकार, आधे शुक्राणु X-युक्त (22A + X) होते हैं और आधे Y-युक्त (22A + Y। शुक्राणुओं में लिंग गुणसूत्रों की इस विभिन्नता के कारण पुरुष विषमयुग्मकी (heterogametic) कहलाते हैं।

पुरुष के शुक्राणु वीर्य (semen) में होते हैं। सम्भोग के जरिये स्त्री की योनि में पहुँचने के बाद कोई एक शुक्राणु स्त्री की अण्डवाहिनी में (फैलोपियन नलिका में) उपस्थित अण्डाणु में घुस जाता है। अब शुक्राणु का केन्द्रक अण्डाणु के केन्द्र से मिल जाता है। जिससे अण्डाणु में गुणसूत्रों की सामान्यतः द्विसूत्री संख्या पुनः स्थापित हो जाती है। इस प्रक्रिया को अण्डाणु (ovum) का संसेचन या निषेचन (frtilization) कहते हैं। निषेचित अण्डाणु को अब युग्मनज अर्थात् जाइगोट (zygote) कहते हैं। यह एक नई सन्तान की प्रारम्भिक अवस्था होती है, क्योंकि इसके भ्रूणीय विकास (embryonic de- velopment) से ही वयस्क सन्तान का शरीर बनता है। यदि अण्डाणु का निषेचन X-युक्त शुक्राणु से होता है तो युग्मनज में लिंग गुणसूत्र XX होते हैं और इससे बनने वाली सन्तान पुत्री (daugh- ter) होती हैं। इसके विपरीत, यदि अण्डाणु का निषेचन Y-युक्त शुक्राणु द्वारा होता है तो युग्मनज में लिंग गुणसूत्र (XY) होते हैं और

इससे बनने वाली सन्तान पुत्र (son) होता है। उपरोक्त वर्णन के अनुसार, मनुष्य में सन्तान के लिंग-

निर्धारण के लिए पुरुष का Y गुणसूत्र जिम्मेवार होता है। अब क्योंकि पुरुष में Y-युक्त और X-युक्त शुक्राणु 1:1 के अनुपात में बनते हैं, मेण्डल पद्धति के अनुसार, समाज में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या में भी आदर्श रूप से यही अनुपात होना चाहिए। इसके अपवाद में, Y गुणसूत्र के X गुणसूत्र से छोटे होने के कारण, Y- युक्त शुक्राणु X-युक्त शुक्राणुओं से कुछ हल्के होते हैं और निषेचन में अण्डाणुओं तक पहुँचने में अधिक सफल हो जाते हैं जिससे समाज में लड़कों की संख्या प्रायः कुछ अधिक (100 लड़कियाँ: 103 या 106 लड़के) रहती है।

➤ अन्य जन्तुओं में लिंग निर्धारण

स्तनियों, अधिकांश कीटों, एवं उभयचरों, सभी एकलिंगी पादपों तथा कुछ मछलियों के गुणसूत्रों में वैसा ही लिंग-भेद होता है, जैसा कि मनुष्यों में। इसके विपरीत, पक्षियों, सरीसृपों, पतंगों व तितलियों (moths and butterflies) तथा कुछ अन्य उभयचरों और कुछ मछलियों में यह भेद उल्टा होता हैं, अर्थात् नर में लिंग गुणसूत्र समान (ZZ), परन्तु मादा में असमान (ZW) होते हैं। कुछ कीटों (टिड्डों व बग्स-bugs) में यही लिंग-भेद नर या मादा में लिंग- गुणसूत्रों में से एक की अनुपस्थिति से होता है। उदाहरणार्थ, यदि मादा XX है तो नर केवल X अर्थात्, XO (xero) होगा। अतः आधे शुक्राणु X होंगे और मादा सन्तान बनायेंगे तथा आधे लिंग क्रोमोसोमरहित (O) होंगे और नर सन्तान बनायेंगे।

➤ लिंग-सहलग्न गुण

(Sex-linked Characters) मानव में लैंगिक-लक्षणों के जीन्स मुख्यतः लिंग-गुणसूत्रों में होते हैं, लेकिन लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) इतनी जटिल और व्यापक होती हैं कि कई ऑटोसोमल जीन्स भी लैंगिक विभेदीकरण को प्रभावित करते हैं। इसी प्रकार लिंग गुणसूत्रों में, लैंगिक लक्षणों के अतिरिक्त, कुछ अन्य, गैर-लैंगिक व दैहिक (somatic) लक्षणों के जीन्स भी होते हैं। बस इन्हीं लक्षणों को लिंग- सहलग्न गुण या लक्षण कहा जाता है और इनकी वंशागति को लिंग-सहलग्न वंशागति (Sex linked inheritance)। ऐसी वंशागति की खोज मार्गन (T.H. Morgan, 1910-11) ने ड्रोसोफिला (Drosophila) मक्खी पर किये गये अपने प्रयोगों द्वारा की *। मानव में लगभग 120 दैहिक लक्षण लिंग-सहलग्न पाये गये हैं।

➤ लिंग-सहलग्न लक्षणों को हम तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं-

(A) X-सहलग्न (X- linked)- मानव में अधिकांश लिंग सहलग्न गुण X-सहलग्न ही होते हैं। अतः सामान्यतः लिंग-सहलग्नता का अर्थ X-सहलग्नता से ही लगाया जाता है।

(B) Y-सहलग्न (Y-linked)- वे जिनके जीन्स Y-गुणसूत्र के असमजात (nonhomologous) खण्ड होते हैं। अतः साथी X गुणसूत्र पर इनके ऐलील नहीं होते। स्पष्ट है कि ऐसे लक्षण केवल पुरुषों में होते हैं और इनके जीन्स पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिता से पुत्रों में ही जाते हैं। अतः इन्हें होलैन्ड्रिक जीन्स (holandric genes) और इनकी वंशागति को होलैन्ड्रिक वंशागति (holandric inheritance) कहते हैं। कर्णपल्लवों पर लम्बे-लम्बे और कुछ मोटे बालों की उपस्थिति एक ऐसा ही लक्षण है। इसे हाइपरट्राइकोसिस (hypertrichosis of ears) कहते हैं।

(C) XY-सहलग्न (XY-linked) – वे जिनके जीन्स X एवं Y गुणसूत्रों के समजात खण्डों पर एलील्स के रूप में होते हैं। स्पष्ट है कि इनकी वंशागति, पुरुषों एवं स्त्रियों में, सामान्य, ऑटोसोमल लक्षणों की भाँति होती है। इन्हें अधूरे लिंग-सहलग्न (incompletely sex-linked) लक्षण कहते हैं। पूर्ण वर्णान्धता (total colour blindness), नेफ्राइटिस (nephritis-गुर्दों का एक रोग) एवं कुछ अन्य रोग ऐसे ही आनुवंशिक लक्षण होते हैं।

➤ लिंग-सहलग्न वंशागति (Sex-linked Inheritance)

अप्रबल X-सहलग्न वंशागति (Recessive X-linked in- heritance)-मानव के कुछ आनुवंशिक रोगों के जीन-आदर्श रूप से X-लिंग गुणसूत्रों में होते हैं। इनमें से अधिकांश रोगों के जीन अप्रबल (recessive) होते हैं, अर्थात् इनके प्रबल (dominant) ऐलील सामान्य, रोगहीन दशा स्थापित करते हैं। अब, क्योंकि पुरुष में X गुणसूत्र केवल एक, लेकिन स्त्रियों में दो होते हैं, इन लक्षणों की वंशागति विशेष प्रकार की होती है। पहली बात यह है कि सुप्त होने के कारण ये रोग संकर (heterozygous) स्त्रियों में नहीं होते,* लेकिन सुप्त जीन के लिए शुद्ध नस्ली (homozygous) स्त्रियों में होते हैं जिनमें कि प्रत्येक X गुणसूत्र में रोग का अर्थात् सुप्त जीन होता है।* इसके विपरीत, पुरुषों में केवल एक ही X गुणसूत्र होने के कारण ऐसे लक्षण का केवल एक ही जीन उपस्थित होता है। (hemizygous condition)। अतः एक ही सुप्त जीन से रोग का विकास हो जाता है। इसीलिए, ऐसे रोग प्रायः पुरुषों से ही अधिक पाये जाते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात तो यह है कि पुत्रों को इन लक्षणों के जीन कभी पिता से नहीं मिल सकते है,* क्योंकि पुरुष का अकेला X गुणसूत्र सदैव पुत्रियों में जाता है। इन पुत्रियों से ही फिर ये जीन दूसरी पीढ़ी (F₂) के पुत्रों अर्थात् नातियों में जाते हैं। ऐसी वंशागति को क्रिस-क्रॉस (criss-cross) वंशागति कहते हैं। इसमें स्त्रियों की भूमिका रोग की जीनी वाहकों (genic carriers) के रूप में अधिक महत्वपूर्ण होती हैं।*

➤ वर्णान्धता की वंशागति (Inheritance of Colourblidness)

वर्णान्ध व्यक्ति लाल व हरे रंग का भेद नहीं कर पाते। इसीलिए, इस रोग को लाल-हरा अन्धापन (redgreen blind- ness) भी कहते हैं। इसे डैल्टोनिम्ज (daltonism) भी कहते हैं। स्पष्ट है कि वर्णान्ध व्यक्ति कलाकार, डिजाइनर, सज्जा कलाकार (decorator) या रेल, जहाज, कार आदि का ड्राइवर नहीं बन सकता। यह रोग सभी मानव प्रजातियों में पाया जाता है। गोरी जाति में लगभग 8% एवं काली प्रजाति में 4% मानव इससे प्रभावित होते हैं,* लेकिन इनमें स्त्रियाँ केवल 1/10 से 1/5 होती हैं।* इसका वर्णन सबसे पहले होरनर (Horner, 1876) ने किया। इसकी वंशागति चित्र में दिखायी गयी है। एक वर्णान्ध पुरुष एवं सामान्य नारी की F, सन्तानों में से केवल पुत्रियों में ही वर्णान्धता का जीन जाता है, क्योंकि यह पुरुष के X गुणसूत्र में स्थित है। इन पुत्रियों में वर्णान्धता विकसित नहीं होगी क्योंकि ये संकर हैं, अर्थात् इनमें पिता से प्राप्त एक सुप्त जीन है और माता से प्राप्त एक प्रबल जीन। अतः ये सुप्त जीन के वाहकों (carriers) का काम करेंगी। अब यदि वाहक पुत्री का विवाह सामान्य पुरुष से होता है तो इनके लगभग आधी सन्तानों में वर्णान्धता का जीन जायेगा, लेकिन केवल लड़कों में यह लक्षण विकसित होगा, लड़कियों में सुप्त रहेगा। इसके विपरीत, ऐसी किसी पुत्री का विवाह यदि वर्णान्ध पुरुष से होता है तो इनके सभी पुत्रियों में और आधे पुत्रों में वर्णान्धता का जीन जायेगा। ये पुत्र तो वर्णान्ध होंगे ही, परन्तु अब आधी पुत्रियाँ भी वर्णान्ध होंगी, क्योंकि इनके दोनों लिंग क्रोमोसोम में वर्णान्धता का जीन (सुप्त जीन) उपस्थित हैं। एक क्रोमोसोम का सुप्त जीन इन्हें पिता से, दूसरा का माता के जरिये नाना से प्राप्त होता है।

➤ हीमोफिलिया की वंशागति (Inheritance of haemophilia)

यह भी मनुष्य का एक लिंग सहलग्न रोग है। एक सामान्य व्यक्ति में, चोट पर औसतन 2 से 7 मिनट में रुधिर का थक्का (clot) जम जाता है जिससे रुधिर का बहना बन्द हो जाता है।* हीमोफिलिया के रोगियों में चोट पर काफी समय (1/2 से 24 घण्टे) तक, रुधिर में कुछ प्रोटीन्स की कमी के कारण, थक्का नहीं जमता और रुधिर बराबर बहता रहता है। इसीलिए इसे रक्तस्त्रावण रोग (bleeder’s disease) भी कहते हैं। शीघ्र उपचार न हो तो, अत्यधिक रक्तस्त्राव के कारण रोगी मर जाता है।

यह रोग प्रायः पुरुषों में ही पाया जाता है। इसकी वंशागति वैसी ही होती है जैसी वर्णान्धता की। पुरुषों को इसका जीन माता से प्राप्त होता है जो प्रायः संकर (hybrid or heterozygous) और रोग की वाहक होती हैं। इसके रोगी प्रायः बचपन में ही या संतान उत्पन्न करने से पहले ही मर जाते हैं, इसीलिए, शुद्ध नस्ली (homozygous) स्त्रियाँ, जो स्वयं इस रोग से प्रभावित हों, समाज में सामान्यतः नहीं मिलती। वस्तुतः प्रभावित वंशों में, स्त्रियों के माध्यम से, पीढ़ी-दर-पीढ़ी, कुछ पुरुष रोगी होकर समाप्त होते रहते हैं।

➤ प्रबल x-सहलग्न गुण (Dominant X-linked characters)

प्रबल X-सहलग्न गुण (Dominant X-linked char- acters)-मनुष्य के कुछ X सहलग्न आनुवंशिक लक्षण, जैसे- दाँतों का त्रुटिपूर्ण इनैमल (enamel), सुप्त नहीं, वरन् प्रबल (dominant) जीन्स के कारण होते हैं। ये पुरुषों एवं स्त्रियों, दोनों में ही समान रूप से विकसित होते हैं। स्त्रियों में, 2X गुणसूत्रों के कारण, पुरुषों की अपेक्षा उन लक्षणों की दुगुनी सम्भावना होती है।

➤ लिंग-प्रभावित लक्षण (Sex-influenced traits)

मानव में कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जिनके जीन तो ऑटोसोम्स पर होते हैं, परन्तु विकास व्यक्ति के लिंग से प्रभावित होता है। दूसरे शब्दों में, पुरुषों और स्त्री में जीनरूप (genotype) समान होते हुए भी दर्शरूप (phenotype) भिन्न होता है। मानवों में गंजापन (baldness) काफी होता है। यह विकीकरण (radiation) तथा थाईरॉइड ग्रन्थि की अनियमितताओं के कारण भी हो सकता है और आनुवंशिक भी।* आनुवंशिक गंजापन एक ऑटोसोमल ऐलीली जीन जोड़ी (B, b) पर निर्भर करता है। होमोजाइगस प्रबल जीनरूप (BB) हो तो गंजापन पुरुषों और स्त्रियों दोनों में विकसित होता है, लेकिन हिटरोजाइगस जीनरूप (Bb) होने पर यह स्त्रियों में नहीं केवल पुरुषों में विकसित होता है, क्योंकि इस जीनरूप में इसके विकास के लिए नर हॉरमोन्स का होना आवश्यक होता है। होमोजाइगस सुप्त जीनरूप (bb) में गंजापन नहीं होता।

➤ लिंग सीमित लक्षण (Sex-limited traits)

ऐसे आनुवंशिक लक्षणों के जीन भी ऑटोसोम्स में होते हैं। इनकी वंशागति सामान्य मेन्डेलियन पद्धति के अनुसार होती है, लेकिन इनका विकास पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है। गाय, भैंस आदि में दुग्ध का स्त्रावण, भेड़ों के कुछ जातियों में केवल नर में सींगों का विकास, मानव में दाढ़ी आदि के लक्षण ऐसे ही होते हैं।

यह भी पढ़ें : रुधिर वर्ग और इनकी वंशागति

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

1 thought on “लिंग निर्धारण”

Leave a Comment