कुछ राज्यों के लिए विशेष उपबंध : 33

संविधान के भाग 21 में अनुच्छेद 371 से 371-झ तक दस राज्यों के संबंध में विशेष उपबंध किये गये हैं। इन राज्यों के नाम हैं-महाराष्ट्र, गुजरात, नागालैंड, असम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश एवं गोवा। इसका उद्देश्य इन राज्यों के पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करना या इन राज्यों के जनजातीय लोगों के आर्थिक एवं सांस्कृतिक हितों की रक्षा करना या इन राज्यों के कुछ अशांत इलाकों में कानून एवं व्यवस्था की स्थापना करना या इन राज्यों के स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा करना है।

वैसे मूल संविधान में इन राज्यों के लिये इस प्रकार के कोई उपबंध नहीं थे। इन उपबंधों को संबंधित राज्यों की विशेष आवश्यकताओं के मद्देनजर या राज्यों के पुनर्गठन के समय उत्पन्न समस्याओं को हल करने के लिये कई संविधान संशोधनों के द्वारा शामिल किया गया है।

महाराष्ट्र एवं गुजरात के लिए उपबंध

अनुच्छेद 371 राष्ट्रपति को प्राधिकृत करता है कि वह महाराष्ट्र एवं गुजरात के राज्यपालों को कुछ विशेष शक्तिया दें, जो इस प्रकार हैं:

1. (i) विदर्भ, मराठवाड़ा एवं शेष महाराष्ट्र तथा (ii) सौराष्ट्र, कच्छ एवं शेष गुजरात के लिये पृथक विकास बोड़ों की स्थापना।

2. यह उपबंध करना कि इन बोडों के कार्यों का वार्षिक प्रतिवेदन राज्य विधानसभा में पेश किया जायेगा।

3. उक्त वर्णित क्षेत्रों में विकास व्यय हेतु विधियों का साम्यापूर्ण आवंटन और

4. उक्त वर्णित क्षेत्रों में तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिये पर्याप्त सुविधायें उपलब्ध कराने के निमित्त उचित व्यवस्था करना एवं उक्त वर्णित क्षेत्रों के युवाओं के लिये राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की व्यवस्था करना।

नागालैंड के लिए उपबंध

अनुच्छेद 371-क के अंतर्गत, नागालैंड राज्य के लिये निम्न प्रावधान किये गये हैं:

1. संसद द्वारा निम्न मामलों के संबंध में बनाया गया अधिनियम तब तक नागालैंड पर लागू नहीं होगा,

जब तक राज्य विधानसभा इसका अनुमोदन न कर दे:

(i) नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथायें,

(ii) नागा रूढ़िजन्य विधि और प्रक्रिया

(iii) सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय नागा रूढ़िजन्य विधिा के अनुसार होते हैं।

(iv) भूमि और उसके संपत्ति स्त्रोतों का स्वामित्व और अंतरण।

2. नागालैंड जब तक स्थानीय नागाओं द्वारा किये गये उपद्रव समाप्त नहीं हो जाते, तब तक राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने का विशेष दायित्व राज्यपाल पर है। अपने इन दायित्वों के निवर्हन में राज्यपाल, राज्य की मंत्रिपरिषद से परामर्श कर सकता है लेकिन वह स्वविवेक से निर्णय लेने का अधिकारी है तथा उसका निर्णय ही अंतिम एवं मान्य होगा। राज्यपाल के इस विशेष दायित्व को यदि राष्ट्रपति चाहे तो समाप्त कर सकता है।

3. राज्यपाल का यह दायित्व है कि वह केंद्र सरकार द्वारा राज्य के विकास हेतु विशेष कार्य हेतु दिये गये धन का उचित आवंटन एवं व्यय सुनिश्चित करे, जिसमें इस कार्य से संबंधित अनुदान मांगे भी शामिल होंगी।

3. राज्यपाल का यह दायित्व है कि वह केंद्र सरकार द्वारा राज्य के विकास हेतु विशेष कार्य हेतु दिये गये धन का उचित आवंटन एवं व्यय सुनिश्चित करे, जिसमें इस कार्य से संबंधित अनुदान मांगे भी शामिल होंगी।

4. राज्य के त्वेनसांग जिले के लिये 35 सदस्यीय एवं क्षेत्रीय परिषद की स्थापना की जायेगी। राज्यपाल को इस परिषद के गठन, सदस्यों के चयन की रीति’, उनकी योग्यता, कार्यकाल, वेतन एवं भत्ते, परिषद के कार्य एवं उसकी कार्यप्रणाली, परिषद के लिये अधिकारियों एवं अन्य लोगों की नियुक्ति एवं उनकी सेवा-शर्तों तथा परिषद के कार्य संचालन से संबंधित अन्य प्रकार के नियम विनियमों को बनाने का अधिकार होगा।

5. नागालैंड के निर्माण से 10 वर्ष की अवधि या आगे भी राज्यपाल के विवेकानुसार इस क्षेत्रीय परिषद के गठन के संबंध में त्वेनसांग जिले के बारे में निम्न उपबंध लागू होंगे:

(i) त्वेनसांग जिले के शासन का संचालन राज्यपाल द्वारा किया जायेगा।

(ii) राज्यपाल केंद्र से राज्य के विकास के लिये प्राप्त विधि से त्वेनसांग जिले और शेष नागालैण्ड के विकास हेतु उचित धन का आवंटन सुनिश्चित करेगा।

(iii) नागालैंड विधानसभा द्वारा बनाया गया कोई भी अधिनियम त्वेनसांग जिले पर तब तक लागू नहीं होगा, जब तक कि इस जिले की क्षेत्रीय परिषद राज्यपाल को इस बारे में अनुशंसा न करे।

(iv) राज्यपाल त्वेनसांग जिले में शांति, विकास एवं सुशासन के लिये उचित विनियम बना सकता है। तथापि इस प्रकार के किसी विनियम को संसद के अधिनियम या किसी अन्य ऐसे कानून, जो जिले पर लागू होता है, के द्वारा संशोधित या समाप्त किया जा सकता है।

(v) राज्य मंत्रिपरिषद में त्वेनसांग जिले के लिये एक मंत्री होगा। वह नागालैंड विधानसभा में त्वेनसांग जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायकों में से ही चुना जायेगा।

(vi) त्वेनसांग जिले के संबंध में अंतिम निर्णय राज्यपाल अपने विवेकानुसार ही लेगा।

(vii) नागालैंड विधानसभा में त्वेनसांग जिले के विधायकों का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष तरीके से न होकर, क्षेत्रीय परिषद द्वारा किया जायेगा।

असम एवं मणिपुर के लिए उपबंध

असम

अनुच्छेद 371-ख’ के अंतर्गत, असम का राज्यपाल राज्य विधानसभा के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गये सदस्यों से या ऐसे सदस्यों से, जिन्हें वह उचित समझता है, एक समिति का गठन कर सकता है।’

मणिपुर

अनुच्छेद 371-गः मणिपुर के संबंध में निम्न विशेष प्रकार के उपबंध करता है:

1. राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि वह चाहे तो राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से मणिपुर विधानसभा के लिये चुने गये सदस्यों से एक समिति का गठन कर सकता है।

2. राष्ट्रपति, इस समिति का उचित कार्य संचालन सुनिश्चित करने हेतु राज्यपाल को विशेष उत्तरदायित्व भी सौंप सकता है।

3. राज्यपाल, राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को प्रतिवेदन भेजेगा।

4. राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में केंद्र सरकार, राज्य सरकार को आवश्यक दिशा-निर्देश दे सकती है।

आंध्र प्रदेश के लिए उपबंध

अनुच्छेद 371-ग एवं 371- घ में आंध्रप्रदेश 10 के संबंध में निम्न विशेष प्रकार के उपबंध किये गये हैं-

1. राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के लिये शिक्षा एवं रोजगार के अवसरों में समान अवसर उपलब्ध कराने के लिये उचित व्यवस्था कर सकता है। वे राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के लिये विभिन्न प्रकार के उपबंध भी बना सकते हैं।

2. उक्त उद्देश्य के लिये राष्ट्रपति को राज्य सरकार के सहयोग की आवश्यकता होती है, जिससे कि राज्य के विभिन्न भागों में स्थानीय काडर के लिये लोक सेवाओं को संगठित किया जा सके तथा किसी भी स्थानीय काडर में आवश्यकतानुसार सीधी भर्ती की जा सके। वे यह भी निर्धारित कर सकते हैं कि किसी भी शैक्षिक संस्थान में राज्य के किस भाग के छात्रों को प्रवेश में वरीयता दी जायेगी। वे इस प्रकार के किसी काडर या किसी शैक्षिक संस्थान में राज्य के किसी विशेष क्षेत्र के लोगों के लिये विशेष आरक्षण की व्यवस्था भी कर सकते हैं।

3. राष्ट्रपति, राज्य में सिविल सेवा के पदों पर कार्यरत अधिकारियों की शिकायतों एवं विवादों के निपटान हेतु विशेष प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना कर सकता है। यह अधिकरण लोक सेवाओं में भर्ती, आवंटन, पदोन्नति आदि से संबंधित शिकायतों एवं विवादों की सुनवाई करेगा।” यह अधिकरण राज्य उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर कार्य करेगा। केवल उच्चतम न्यायालय के अतिरिक्त किसी अन्य न्यायालय के प्रति यह अधिकरण अपने कार्यों एवं निर्णयों के प्रति जवाबदेह नहीं होगा। जब राष्ट्रपति को यह लगता है कि अब इस अधिकरण का कार्य समाप्त हो चुका है या अब इसकी आवश्यकता नहीं है तो वे इस अधिकरण को समाप्त भी कर सकता है।

अनुच्छेद 371-ङ संसद को यह अधिकार देता है कि यदि वह चाहे तो राज्य में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना कर सकती है।

सिक्किम के लिए उपबंध

36वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 के द्वारा राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 371-च जोड़ा गया, जिसमे उल्लिखित है कि-

1. सिक्किम विधानसभा का गठन कम से कम 30 सदस्यों से होगा।

2. लोकसभा में सिक्किम को एक सीट दी जायेगी तथा पूरे सिक्किम को एक संसदीय क्षेत्र माना जायेगा।

3. सिक्किम जनसंख्या के विभिन्न अनुभागों के अधिकार एवं हितों की रक्षा के लिये संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वहः

(i) सिक्किम विधानसभा की अधिकांश सीटें इन समुदाय के सदस्यों द्वारा भरी जायेंगी।

(ii) विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण में यदि इस समुदाय की किसी सीट में बदलाव होता है तो भी वह अकेला इस सीट से चुनाव लड़ सकता है।

4. राज्य के राज्यपाल का यह विशेष दायित्व है कि वे सिक्किम में शांति स्थापित करने की व्यवस्था करें तथा राज्य की जनसंख्या के समान सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये संसाधनों एवं अवसरों का उचित आवंटन सुनिश्चित करें। अपने इस दायित्व के निर्वहन में राज्यपाल, राष्ट्रपति द्वारा उसे प्रदान की गयी विशेष शक्तियों के अंतर्गत स्वविवेक से निर्णय ले सकता है।

5. राष्ट्रपति यदि चाहें तो वे भारतीय संघ के राज्यों के लिये बनाये गये किसी नियम को सिक्किम के विशेष संदर्भ में विस्तारित (प्रतिषेध या संशोधन के द्वारा) कर सकते हैं।

मिजोरम के लिए उपबंध

अनुच्छेद 371-छ मिजोरम के लिये निम्न विशेष उपबंध करता है-

1. संसद द्वारा बनाया गया कोई नियम मिजोरम राज्य पर तब तक लागू नहीं होगा, जब तक की राज्य की विधानसभा ऐसा करने का निर्णय न करे-

(1) मिजो लोगों की सामाजिक एवं धार्मिक प्रथायें;

(ii) मिजो रूढ़िजन्य विधि और प्रक्रिया;

(iii) सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय मिजो रूढ़िजन्य विधि के अनुसार हो; एवं

(iv) भूमि का स्वामित्व और अंतरण।

2. मिजोरम विधानसभा में कम से कम 40 सदस्य होंगे।

अरुणाचल प्रदेश एवं गोवा के लिए उपबंध

अरुणाचल प्रदेश

अनुच्छेद 371-ज में अरुणाचल प्रदेश के लिये निम्न विशेष उपबंध किये गये हैं:

1. अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल पर राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थापना करने का विशेष दायित्व है। अपने इस दायित्व का निवर्हन करने में राज्यपाल, राज्य मंत्रिपरिषद से परामर्श करके व्यक्तिगत निर्णय ले सकता है तथा उसका निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जायेगा। यदि राष्ट्रपति चाहें तो राज्य के राज्यपाल के इस विशेषाधिकार पर रोक लगा सकते हैं।

2. अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में कम से कम 30 सदस्य होंगे।

गोवा

अनुच्छेद 371-झ में गोवा के लिये यह विशेष उपबंध किया गया है कि राज्य की विधानसभा में कम से कम 30 सदस्य होंगे।

कर्नाटक एवं हैदराबाद के लिए प्रावधान

अनुच्छेद 371 जे के अंतर्गत राष्ट्रपति इस बात के लिए अधिकृत है कि वह कर्नाटक के राज्यपाल के लिए विशेष दायित्व निश्चित करें:

(i) हैदराबाद- कर्नाटक क्षेत्र के लिए अलग विकास बोडों की स्थापना 15

(ii) इस बात का प्रावधान करना कि बोर्ड के संचालन से संबंधी प्रतिवेदन हर वर्ष राज्य विधान सभा के समक्ष रखा जाएगा।

(iii) क्षेत्र में विकासात्मक खर्चों के लिए निधि का समत्वपूर्ण आवंटन ।

(iv) क्षेत्र में क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए क्षेत्र के शैक्षणिक तथा व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में सीटों का आरक्षण।

(v) क्षेत्र के लोगों के लिए राज्य सरकार के पदों में आरक्षण

अनुच्छेद 371 जे (जो कि हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करता है) भारतीय संविधान में 98 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2012 द्वारा संविधान में समाहित किया गया। विशेष प्रावधान का लक्ष्य क्षेत्र की विकासात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए समत्वपूर्ण विधि आवंटन की एक संस्थागत प्रणाली की व्यवस्था करना है। साथ ही मानव संसाधन संवर्द्धन तथा क्षेत्र में नौकरियों में स्थानीय लोगों को रोजगार देने तथा शैक्षणिक एवं व्यावसायिक संस्थानों में आरक्षण प्रदान करना है।

2910 में कर्नाटक की विधानसभा तथा विधान परिषद ने कर्नाटक राज्य के हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए विशेष प्रावधान करने के लिए अलग-अलग संकल्प जारी किए। कर्नाटक सरकार ने भी क्षेत्र के लिए विशेष प्रावधान करने की जरूरत पर सहमति जताई। इन संकल्पों से यह अपेक्षा की गई कि इस अत्यंत पिछड़े क्षेत्र में विकास की गति बढ़ाई जा सकेगी तथा अन्तर-जिला तथा अन्तर-क्षेत्रीय विषमताओं को कम करने के लिए समावेशी विकास को प्रोत्साहन दिया जा सकेगा।

तालिका 33.1 कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान से संबंधित अनुच्छेद, एक नजर में

अनुच्छेदविषय-वस्तु
371महाराष्ट्र तथा गुजरात राज्यों के लिए विशेष प्रावधान
371Aनागालैंड राज्य के लिए विशेष प्रावधान
371Bअसम राज्य के लिए विशेष प्रावधान
371Cमणिपुर राज्य के लिए विशेष प्रावधान
371Dआंध्र प्रदेश राज्य के लिए विशेष प्रावधान
371Eआंध्र प्रदेश में केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना
371F सिक्किम राज्य के लिए विशेष प्रावधान
371G मिजोरम राज्य के लिए विशेष प्रावधान
371Hअरुणाचल प्रदेश राज्य के लिए विशेष प्रावधान
371I गोवा राज्य के लिए विशेष प्रावधान
371Jकर्नाटक राज्य के लिए विशेष प्रावधान

यह भी पढ़ें : जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा : 32

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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