मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 न केवल केंद्र में अपितु राज्यों में भी मानव अधिकार आयोगों की स्थापना का प्रावधान करता है।’ अब तक देश के तेईस राज्यों ने आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से मानव अधिकार आयोगों की स्थापना की है।
राज्य मानव अधिकार आयोग केवल उन्हीं मामलों में मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर सकता है, जो संविधान की राज्य सूची (सूची-II) एवं समवर्ती सूची के (सूची-III) अंतर्गत आते हैं। लेकिन यदि इस प्रकार के किसी मामले की जांच पहले से ही राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग या किसी अन्य विधिक निकाय द्वारा की जा रही है तब राज्य मानव अधिकार आयोग ऐसे मामलों की जांच नहीं कर सकता है।
आयोग की संरचना
राज्य मानव अधिकार आयोग एक बहुसदस्यी निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष तथा दो अन्य सदस्य होते हैं। इस आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश तथा सदस्य उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त या कार्यरत न्यायाधीश होता है। राज्य के जिला न्यायालय का कोई न्यायाधीश, जिसे सात वर्ष का अनुभव हो या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे मानव अधिकारों के बारे में विशेष अनुभव हो, वे भी इस आयोग के सदस्य बन सकते हैं।
इस आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल एक समिति की अनुशंसा पर करते हैं। इस समिति में प्रमुख के रूप में राज्य का मुख्यमंत्री होता है, इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष, राज्य का गृहमंत्री तथा राज्य विधानसभा में विपक्ष का नेता अन्य सदस्य के रूप में होते हैं। जब राज्य में विधान परिषद भी होती है तो विधान परिषद का अध्यक्ष एवं विधान परिषद में विपक्ष के नेता भी इस समिति के सदस्य होते हैं। इसके अलावा एक सदस्य के रूप में राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद राज्य ही उच्च न्यायालय के एक कार्यरत न्यायाधीश या जिला न्यायालय के एक कार्यरत न्यायाधीश को राज्य मानव अधिकार आयोग में नियुक्त किया जाता है।
आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु, दोनों में से जो भी पहले हो’, तक होता है। आयोग से कार्यकाल पूरा होने के बाद अध्यक्ष एवं अन्य सदस्य न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार के अधीन कोई सरकारी पद ग्रहण कर सकते हैं।
राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं, लेकिन उनके पद से केवल राष्ट्रपति हटा सकते हैं (न कि राज्यपाल)। राष्ट्रपति इन्हें उसी आधार एवं उसी तरह पद से हटा सकते हैं, जिस प्रकार वे राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को हटाते हैं। इस प्रकार वे अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को निम्न परिस्थितियों में पद से हटा सकते हैं:
1. यदि वह दिवालिया हो गया हो;
2. यदि आयोग में अपने कार्यकाल के दौरान उसने कोई लाभ का सरकारी पद धारण कर लिया हो;
3. यदि वह दिमागी या शारीरिक तौर पर अपने दायित्वों के निवर्हन के अयोग्य हो गया हो;
4. यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो तथा सक्षम न्यायालय द्वारा उसे अक्षम घोषित कर दिया गया हो; तथा
5. यदि किसी अपराध के संबंध में उसे दोषी सिद्ध किया गया हो तथा उसे कारावास की सजा दी गयी हो।
इसके अलावा, राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर भी पद से हटा सकते हैं। हालांकि, इन मामलों में, राष्ट्रपति मामले को जांच के लिये उच्चतम न्यायालय के पास भेजते हैं तथा यदि उच्चतम न्यायालय जांच के उपरांत मामले को सही पाता है तो वह राष्ट्रपति को इस बारे में सलाह देता है, उसके उपरांत राष्ट्रपति अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को पद से हटा देते हैं।
राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों के वेतन-भत्तों एवं अन्य सेवा-शर्तों का निर्धारण राज्य सरकार करती है। लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान इसमें किसी प्रकार का अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
इन सभी उपबंधों का उद्देश्य आयोग की स्वायत्तता, स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता को बनाये रखना है।
आयोग के कार्य
राज्य मानव अधिकार आयोग के कार्य निम्नानुसार हैं:
1. मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की प्रार्थना, जिसकी कि वह अवहेलना करता हो, की जांच स्व-प्ररेणा या न्यायालय के आदेश से करना।
2. न्यायालय में लंबित किसी मानवाधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।
3. जेलों व बंदीगृहों में जाकर वहां की स्थिति का अध्ययन करना व इस बारे में सिफारिशें करना।
4. मानवाधिकार की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक व विधिक उपबंधों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिशें करना।
5. आतंकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना, जिनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना।
6. मानव अधिकारों के क्षेत्र में शोध कार्य करना एवं इसे प्रोत्साहित करना।
7. मानव अधिकारों के प्रति लोगों में चेतना जागृत करना तथा लोगों को इन अधिकारों के संरक्षण हेतु प्रोत्साहित करना।
8. मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को सहयोग एवं प्रोत्साहन देना।
9. मानव अधिकारों को प्रोत्साहित करने के लिये यदि कोई अन्य कार्य आवश्यक हो, तो उसे संपन्न करना।
आयोग की कार्यप्रणाली
आयोग को अपने कार्यों को संपन्न करने के लिये व्यापक शक्तियां प्रदान की गयी हैं। इसे एक दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती हैं तथा यह उसी के समान अपनी कार्यवाही को संपन्न करता है। यह किसी मामले की सुनवाई के लिये राज्य सरकार या किसी अन्य अधीनस्थ प्राधिकारी को निर्देश दे सकता है।
हालांकि, राज्य मानव अधिकार आयोग किसी ऐसे मामले की सुनवाई नहीं कर सकता है, जो मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित हो तथा जिस मामले को एक वर्ष से अधिक का समय हो गया हो। दूसरे शब्दों में, आयोग केवल एक वर्ष की अवधि के भीतर के मामलों की ही सुनवाई कर सकता है। आयोग किसी मामले की जांच के दौरान उपरांत निम्न कदम उठा सकता है:
1. यह पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति या नुकसान के भुगतान के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश कर सकता है।
2. यह दोषी लोक सेवक के विरुद्ध बंदीकरण हेतु कार्यवाही प्रारंभ करने के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश कर सकता है।
3. यह संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को तत्काल अंतरिम सहायता प्रदान करने की सिफारिश कर सकता है।
4. आयोग इस संबंध में आवश्यक निर्देश, आदेश अथवा रिट के लिए उच्चतम अथवा उच्च न्यायालय में जा सकता है।
इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि आयोग का कार्य विशुद्ध रूप से सलाहकारी प्रकृति का है। इसे मानव अधिकारों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को सजा देने का कोई अधिकार नहीं है तथा यह पीड़ित व्यक्ति को अपनी ओर से कोई सहायता या मुआवजा नहीं दे सकता है। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है किए आयोग की सलाह को मानने के लिये राज्य सरकार या कोई अन्य प्राधिकारी बाध्य नही हैं। लेकिन इतना अवश्य है कि आयोग द्वारा दी गयी किसी सलाह के बारे में क्या कदम उठाया गया है, इस बारे में आयोग को एक माह के भीतर सूचना देना अनिवार्य है।
आयोग अपना वार्षिक या विशेष प्रतिवेदन राज्य सरकार को प्रेषित करता है। इस प्रतिवेदन को राज्य विधायिका के पटल पर रखा जाता है तथा यह बताया जाता है कि आयोग द्वारा दी गयी अनुशंसाओं के संबंध में राज्य सरकार ने क्या कदम उठाये हैं। यदि आयोग की किसी सलाह को राज्य सरकार द्वारा नहीं माना गया है तो इसके लिये भी तर्कपूर्ण उत्तर देना आवश्यक है।
मानव अधिकार न्यायालय
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (1993) में यह भी प्रावधान है कि मानव अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की तेजी से जांच करने के लिये देश के प्रत्येक जिले में एक मानव अधिकार न्यायालय की स्थापना की जायेगी। इस प्रकार के किसी न्यायालय की स्थापना राज्य सरकार द्वारा केवल राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर ही की जा सकती है। प्रत्येक मानव अधिकार न्यायालय में राज्य सरकार एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करती है या किसी ऐसे वकील को विशेष लोक अभियोजक बना सकती है, जिसे कम से कम सात वर्ष की वकालत का अनुभव हो।
यह भी पढ़ें : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग : 50
1 thought on “राज्य मानवाधिकार आयोग : 51”