जब एक ही आयाम और तरंगदैर्ध्य की दो प्रगतिशील तरंगें विपरीत दिशाओं में एक सीधी रेखा के साथ-साथ एक-दूसरे पर अध्यारोपित (Superimpose) करती हैं तो स्थिर तरंगें बनती हैं। इनकी कई अवस्थाएँ और स्थितियाँ होती हैं। यथा :
बद्ध माध्यम (Bound Medium)
“किसी ऐसे माध्यम को जिसकी एक निश्चित परिसीमा (Boundary) हो तथा जिसकी सीमाएँ अन्य माध्यमों से स्पष्ट पृष्ठों द्वारा पृथक् हों, ‘बद्ध माध्यम’ कहते हैं।” इस प्रकार का माध्यम केवल कुछ निश्चित आवृत्तियों से ही कंपन कर सकता है तथा ये आवृत्तियाँ उस माध्यम की अभिलाक्षणिक आवृत्तियाँ होती हैं। सितार का तार, बाँसुरी का वायु स्तम्भ (Air column of fluit), तबले की झिल्ली इत्यादि सभी बद्ध माध्यम हैं। बद्ध माध्यम की परिसीमा दो प्रकार की हो सकती है- कठोर अथवा दृढ़ (rigid) तथा कोमल अथवा मुक्त (Free) जैसे- सितार के तार के दोनों सिरे कठोर होते हैं। वायु स्तम्भ की नली का बंद सिरा कठोर व खुला सिरा कोमल होता है। जब कोई तरंग किसी माध्यम में गति करती है तो यदि माध्यम की कोई परिसीमा नहीं है तो तरंग सीधी चली जाती है। यदि माध्यम की कोई परिसीमा है तो तरंग वहाँ से परावर्तित हो जाती है।
अप्रगामी तरंगें (Stationary Waves)
जब दो एक जैसी अनुप्रस्थ (Transverse) अथवा अनुदैर्ध्य (Longitudinal) प्रगामी तरंगें (Progressive Wave) किसी बद्ध माध्यम में एक ही चाल से, परन्तु विपरीत दिशाओं में चलती हैं तो उनके अध्यारोपण से एक नई प्रकार की तरंग उत्पन्न हो जाती है, जो कि माध्यम में स्थिर प्रतीत होती है। इस तरंग को ‘अप्रगामी तरंग’ (Stationary Waves) कहते हैं। उदाहरणस्वरूप- किसी डोरी में भेजी गई तरंगें डोरी के सिरे से परावर्तित (Back) हो जाती है। परावर्तित व आपतित तरंगों के अध्यारोपण से डोरी में अप्रगामी तरंगें (Stationary Waves) बनती हैं। सितार, वायलिन, गिटार इत्यादि की डोरियों में अनुप्रस्थ अप्रगामी तरंगें (Transverse Stationary Waves) ही बनती हैं। इसी प्रकार किसी पाइप के वायुस्तम्भ में भेजी गई अनुदैर्ध्य तरंग पाइप के सिरे से परावर्तित हो जाती है तथा परावर्तित व आपतित तरंगों के अध्यारोपण से वायु स्तम्भ में अप्रगामी तरंगें बन जाती हैं। बाँसुरी, बिगुल, वीणा, सीटी इत्यादि के वायु-स्तम्भों में अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंगें (Longitudinal Stationary Waves) ही बनती हैं। ध्यातव्य है कि बद्ध माध्यम का होना अप्रगामी तरंग बनने की आवश्यक शर्त है।
निस्पंद तथा प्रस्पन्द (Nodes and Antinodes)
अप्रगामी तरंगों के उत्पन्न होने पर इसके माध्यम के कुछ बिन्दु स्थाई रूप से विरामावस्था में रहते हैं जिन्हें ‘निस्पंद’ (nodes) कहते हैं। जबकि कुछ बिन्दु अन्य बिंदुओं के सापेक्ष अधिकतम विस्थापित होते रहते हैं, इन बिंदुओं को ‘प्रस्पंद’ (Antinodes) कहते हैं।
स्वरक (Tone); स्वर (Note) तथा मूल स्वरक (Funda- mental Tone)-जब किसी ध्वनि स्रोत से उत्पादित ध्वनि (Sound) में अनेक आवृत्तियों की ध्वनि मिश्रित होती है तो इस ध्वनि को स्वर (Note) कहते हैं। यदि किसी स्वर में केवल एक आवृत्ति होती है तो इसे स्वरक (tone) कहते हैं। न्यूनतम आवृत्ति के स्वरक को मूल स्वरक (Fundamental Tone) कहते हैं। मूल स्वरक की आवृत्ति को मूल आवृत्ति कहते हैं। यदि किसी ध्वनि में मूल स्वरक के अतिरिक्त उससे ऊँची आवृत्ति के अन्य स्वरक भी विद्यमान हैं तो इसे अधिस्वरक (overtone) कहते हैं। बढ़ते हुए मान के क्रम में इन्हें क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय….. अधिस्वरक कहते हैं। किसी ध्वनि स्त्रोत से उत्पन्न उन सभी आवृत्तियों को जो मूल स्वरक की पूर्ण गुणक (multiple) होती हैं, संनादी (Harmonics) कहते हैं। यदि किसी स्वरक की मूल आवृत्ति n1 है तो इसे प्रथम संनादी (First Harmonics), 2n1 है तो द्वितीय संनादी व 3n1 है तो तृतीय संनादी कहते हैं। इस प्रकार nवें संनादी की आवृत्ति = nn1 l यदि n सम संख्या है तो इन्हें सम संनादी (even harmonics) व विषम संख्या है तो विषम संनादी (odd harmonics) कहते हैं।
प्रगामी तथा अप्रगामी तरंगों में अंतर (Difference between Progressive and Stationary Waves)
प्रगामी तरंगें | अप्रगामी तरंगें |
(i) ये तरंगें किसी ध्वनि स्त्रोत द्वारा उत्पन्न की जा सकती हैं। | (i) ये तरंगें समान आवृत्ति व समान आयाम की विपरीत दिशाओं में चलने वाली प्रगामी तरंगों के अध्यारोपण से बनती है। |
(ii) ये तरंगें माध्यम में एक निश्चित वेग से आगे बढ़ती रहती हैं। | (ii) ये तरंगें बद्ध माध्यम में स्थिर (Stationary) रहती हैं। |
(iii) इन तरंगों के संचरण द्वारा माध्यम में ऊर्जा का भी संचरण होता है। | (iii) इनसे माध्यम में ऊर्जा का संचरण नहीं होता। |
(iv) इन तरंगों के संचरण के समय माध्यम का प्रत्येक कण एक निश्चित आयाम से कंपन करता है। | (iv) इन तरंगों में निस्पंदों (Nodes) के अतिरिक्त माध्यम के सभी कण कंपन करते हैं। प्रत्येक कण का आयाम अलग-अलग होता है जो प्रस्पंदों पर अधिकतम व निस्पंदों पर न्यूनतम (शून्य) होता है। |
(v) माध्यम के प्रत्येक कण की कला भिन्न-भिन्न होती है। | (v) दो क्रमागत निस्पंदों के बीच समस्त कण समान कला में होते हैं परन्तु किसी निस्पंद के दोनों ओर के कणों में 180° (या π) का कलान्तर होता है। |
(vi) इन तरंगों में किसी भी क्षण माध्यम के सभी कण एक साथ अपनी साम्यावस्या से नहीं गुजरते। | (vi) इनमें, प्रत्येक आवर्तकाल में दो बार माध्यम के सभी कण एक साथ अपनी साम्यावस्थाओं से गुजरते हैं। |
(vii) अनुदैर्ध्य प्रगामी तरंगों में माध्यम के सभी कण क्रमानुसार दाब व घनत्व परिवर्तन की समान दशाओं से गुजरते हैं। | (vii) अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंगों से निस्पंदों पर दाब व घनत्व परिवर्तन सर्वाधिक तथा प्रस्पंदों पर न्यूनतम होता है। |
➤ स्वरमापी (Sonometer)
यह तनी हुई डोरी के कंपनों को प्रदर्शित करने वाला सबसे साधारण यंत्र है जो एक लंबे लकड़ी के एक खोखले बॉक्स का बना होता है। जिसे नाद-पट (Sound Board) कहते हैं।
प्रघाती तरंगें (Shock Waves)
यदि किसी माध्यम में गतिमान वस्तु के लिए मैक संख्या का मान एक से अधिक है तो गतिमान वस्तु (बंदूक की गोली, जेट वायुयान, राकेट आदि) अपने पीछे माध्यम में एक शंक्वाकार विक्षोभ (Conical Disturbance) छोड़ता जाता है। इस शंक्वाकार विक्षोभ को ही प्रघाती तरंग (Shock waves) कहते हैं। इसमें अत्यधिक ऊर्जा निहित होती है तथा इनसे अत्यंत तीव्र ध्वनि (शोर – Noise) उत्पन्न होती है। ये तरंगें ऊँचे भवनों इत्यादि के लिए विनाशकारी साबित होती हैं। यदि मैंक संख्या का मान एक से अधिक है तो गतिमान वस्तु की चाल पराध्वनिक (Supersonic) व 5 से अधिक होने पर वस्तु की चाल, अतिपराध्वनिक (Hyper- sonic) कहलाती है। ‘सुपरसोनिक’ व ‘हाइपर सोनिक विमान’ नामकरण इसी आधार पर हुआ है। (यदि मैक संख्या मान एक से कम हो तो वस्तु की चाल को ध्वनिक चाल कहते हैं)। इस प्रकार की प्रघाती तरंगों से संबद्ध वायुदाब में परिवर्तन के कारण ही तीक्ष्ण व प्रबल ध्वनि उत्पन्न होती है जिसे ध्वनि बूम (Sound Boom) कहते हैं। कई बार इससे खिड़कियों के शीशे भी चटख (Crack) जाते हैं। समुद्र में कभी-कभी मोटर बोट इत्यादि के ध्वनि से अधिक तीव्र गति से चलने पर भी प्रघाती तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं जिन्हें बो-तरंगे (Bow-waves) कहते हैं।
प्रगामी तरंग धारा (Progressive Wave Current)
जब किसी माध्यम में लगातार तरंगें उत्पन्न की जाती हैं तो माध्यम के कण अपने स्थान पर साम्य की स्थिति के दोनों ओर लगातार कंपन करने लगते हैं तथा विक्षोभ (Disturbance) आगे – बढ़ने लगता है। इस प्रकार माध्यम में उत्पन्न हुए विक्षोभ को प्रगामी तरंग धारा (Progressive wave current) कहते हैं।
ध्वनि तरंगों में विस्पंद (Beats in sound waves)
जब कभी दो ‘लगभग’ समान आवृत्ति और आयाम वाली ध्वनि की तरंगें एक साथ उत्पन्न की जाती हैं तो उनके अध्यारोपण से जो परिणामी ध्वनि उत्पन्न होती है उसकी तीव्रता बारी-बारी से घटती व बढ़ती है। ध्वनि की तीव्रता में होने वाले इस चढ़ाव व उतार को विस्पंद (Beats) कहते हैं। ध्वनि की तीव्रता में होने वाले एक उतार व एक चढ़ाव को एक विस्पंद कहते हैं। एक सेकेण्ड में उत्पन्न विस्पदों की संख्या को विस्पंद आवृत्ति (Frequency of beats) कहते हैं। यदि हम बिल्कुल समान आवृत्ति वाले दो स्वरित्र द्विभुजों को एक साथ बजाते हैं तो उनसे उत्पन्न परिणामी ध्वनि की तीव्रता में कोई उतार-चढ़ाव प्रतीत नहीं होता। परन्तु यदि हम द्विभुज की किसी एक भुजा पर थोड़ा सा मोम चिपका कर उसकी आवृत्ति को जरा सा कम कर दें, तब दोनों द्विभुजों को एक साथ बजाने पर परिणामी ध्वनि में स्पष्ट उतार-चढ़ाव सुनाई देता है। विस्पंद की घटना ध्वनि के व्यतिकरण का ही एक विशेष उदाहरण है।
विस्पंदों के उपयोग (Usage of Beats)
(i) यदि दो स्वरित्रों की आवृत्तियाँ लगभग बराबर हैं और एक की आवृत्ति ज्ञात है तो इसकी सहायता से दूसरे की आवृत्ति भी ज्ञात कर सकते हैं।
(ii) बाजे वाले (musicians) अपने बाजों (musical instru- ments) को समस्वरित (tune) करने के लिए विस्पंदों का ही प्रयोग करते हैं।
(iii) खानों (mines) में खतरनाक गैसों का पता लगाने में इसके लिए समान प्रकार के दो छोटे पाइप लेकर एक पाइप में शुद्ध वायु तथा दूसरे पाइप में खान (mine) की वायु प्रवाहित करते हैं। यदि खान की वायु शुद्ध है तो दोनों पाइप समस्वरित (tune) होते हैं, अतः विस्पंद सुनाई नहीं देता। परन्तु यदि खान में खतरनाक गैस जैसे- मीथेन आदि मिली हैं तो वायु का घनत्व कम हो जाता है तथा ध्वनि का वेग भी कम हो जाता है। ध्वनि का वेग घटने से उस पाइप द्वारा उत्पन्न स्वर की आवृत्ति बदल जाती है। अतः विस्पंद सुनाई देने लगते हैं।
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