
सीस स पगा न झंगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसे केहि ग्रामा।
धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह को नहिं सामा।।
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकिसों बसुधा अभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा ।।
ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।
हाय! महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए ।।
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।।
कछु भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देत ।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु।।
आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सों. “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने ।।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम. खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजौ न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हे।।”

वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात ।।
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज-समाज ।
हौं आवत नाहीं हुतौ, वाही पठयो ठेलि ।।
अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि ।।
वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधों पर्यो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि के मैं अब द्वारका आयो।।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, सोचत ही सब गाँव मझायो।
पूँछत पाँडे फिरे सब सों, पर झोपरी को कहुँ खोज न पायो।
कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत ।।
भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पै नींद न आवत ।।
कै जुरतो नहिं कोदो सवाँ, प्रभु के परताप तें दाख न भावत ।।
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प्रश्न-अभ्यास
कविता से
1. सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
Ans. सुदामा की दीनदशा को देखकर श्रीकृष्ण को अत्यन्त दुख हुआ। दुख के कारण श्री कृष्ण की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। उन्होंने सुदामा के पैरों को धोने के लिए पानी मंगवाया। परन्तु उनकी आँखों से इतने आँसू निकले की उन्ही आँसुओं से सुदामा के पैर धुल गए। उनसे कहने लगे तुम इतने दिन कहाँ रहे?
2. “पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
Ans. इस पंक्ति में निहित भाव यह है कि कृष्ण अपने बचपन के मित्र की ऐसी दीन-हीन दशा देखकर बहुत दुखी हुएते स्वयं राजा थे और उनका मित्र घोर गरीबी में जीवन जी रहा था कृष्ण एक सच्चे मित्र की तरह बहुत दुखी हुए और रो पड़ेउन्होंने उनके पैर धोने के लिए परात में पानी को छुआ तक नहीं और आँसुओं से ही पैर धो दिए
3. “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।”
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
Ans. (क) उपर्युक्त पंक्ति श्रीकृष्ण अपने बालसखा सुदामा से कह रहे हैं।
(ख) अपनी पत्नी द्वारा दिए गए चावल संकोचवश सुदामा श्रीकृष्ण की भेंट स्वरूप नहीं दे पा रहे हैं। परन्तु श्रीकृष्ण सुदामा पर दोषारोपण करते हुए इसे चोरी कहते हैं और कहते हैं कि चोरी में तो तुम पहले से ही निपुण हो।
(ग) बचपन में जब कृष्ण और सुदामा साथ-साथ संदीपन ऋषि के आश्रम में अपनी-अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। तभी एकबार जब श्रीकृष्ण और सुदामा जंगल में लकड़ियाँ एकत्र करने जा रहे थे तब गुरूमाता ने उन्हें रास्ते में खाने के लिए चने दिए थे। सुदामा श्रीकृष्ण को बिना बताए चोरी से चने खा लेते हैं। श्रीकृष्ण उसी चोरी का उपातंभ सुदामा को देते हैं।
4. द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
Ans. द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा का मन बहुत दुखी था। वे कुकृष्ण द्वारा अपने प्रति किए गए व्यवहार के बारे में सोच रहे थे कि जब वे कृष्ण के पास पहुंचे तो कृष्ण ने आनन्द पूर्वक उनका आतिथ्य सत्कार किया था। क्या वह संब दिखावटी थाट वे कृष्ण के व्यवहार से खीझ रहे थे क्योंकि केवल आदर सत्कार करके ही श्रीकृष्णा ने सुदामा को खाली हाथ भेज दिया था। वै तो कृष्णा के पास जाना ही नहीं चाहते थे। परन्तु उनकी पत्नी ने उन्हें भेज दिया। उन्हें इस बात का पछतावा भी हो रहा था कि माँगे हुए चावल भी हाथ से निकल गए और कृष्ण ने कुछ दिया भी नहीं।
5. अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
Ans. द्वारका से लौटकर सुदामा जब अपने गाँव वापस आएँ तो अपनी झोंपड़ी के स्थान पर बड़े-बड़े भव्य महलों को देखकर सबसे पहले तो उनका मन भ्रमित हो गया कि कहीं में घूम फिर कर वापस द्वारका ही तो नहीं चला आया। फिर भी उन्होंने पूरा गाँव छानते हुए सबसे पूछा लेकिन उन्हें अपनी झोंपड़ी नहीं मिली।
6. निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
Ans. निर्धनता के बाद श्रीकृष्ण की कृपा से सुदामा को धन-सम्पदा मिलती है। जहाँ सुदामा की टूटी-फूटी सी झोपड़ी रहा करती थी, वहाँ अब स्वर्ण भवन शोभित है। कहाँ पहले पैरों में पहनने के लिए चप्पल तक नहीं थी और अब पैरों से चलने की आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि अब घूमने के लिए हाथी घोड़े हैं. पहले सोने के लिए केवल यह कठोर भूमि थी और आज कोमल सेज पर नींद नहीं आती है, कहाँ पहले खाने के लिए कोदो (बावल) भी नहीं मिलते थे और आज प्रभु की कृपा से खाने को दाख (किशमिश मुनक्का) भी उप्लब्ध हैं। परन्तु वे अच्छे नहीं लगते।
कविता से आगे
1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए
Ans. श्री कृष्ण और सुदामा बचपन में ऋषि संदीपनि के गुरुकुल में साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करते थेये दोनों ही घनिष्ठ मित्र थेइसी तरह द्रुपद और द्रोण भी महर्षि भारद्वाज के आश्रम में साथ-साथ शिक्षा करते थेद्रुपद राजा के पुत्र थे तो द्रोण महर्षि भारद्वाज केये दोनों भी घनिष्ठ मित्र धेद्रुपद द्रोण से अकसर कहा करते थे कि जब में राजा बन जाऊँगा तो तुम्हें अपना आधा राज्य दे दूंगा और हम दोनों ही सुखी रहेंगेसमय बीतने के साथ द्रुपद राजा बने और द्रोण अत्यधिक गरीब हो गएवे द्रुपद के पास कुछ सहायता पाने के उद्देश्य से गएद्रुपद ने द्रोण को अपनी मित्रता के लायक भी न समझा और उन्हें अपमानित कर भगा दियाद्रोण ने पांडवों तथा कौरवों को धनुर्विद्या सिखानी शुरू कीउन्होंने अर्जुन से गुरु-दक्षिणा में द्रुपद को बंदी बनाकर लाने को कहाअर्जुन ने ऐसा ही कियाद्रोण ने उनके द्वारा किए गए अपमान की याद दिलाते हुए द्रुपद को मुक्त तो कर दिया पर अपमानित द्रुपद द्रोण की जान के प्यासे बन गएद्रुपद स्वयं यह काम नहीं कर सकते घेउन्होंने तपस्या करके एक वीर पुत्र तथा एक पुत्री की कामना कीद्रुपद की इसी पुत्री द्रौपदी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ जिन्होंने महाभारत के युद्ध में द्रोण का वध किया।
सुदामा कथानक से तुलना कृष्ण और सुदामा की मित्रता सच्चे अर्थों में आदर्श धीवहीं द्रोण तथा दुपद की मित्रता एकदम ही इसके विपरीत थीकृष्ण ने सुदामा की परोक्ष मदद करके अपने जैसा ही बना दिया। वहीं द्रुपद और द्रोण ने मित्रता को कलंकित किया तथा एक-दूसरे की जान के प्यासे बन गए। वे एक दूसरे को अपमानित करते रहे और जान लेकर ही शांति पा सके।
2. उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता पिता-भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए?
Ans. इसमें कोई संदेह नहीं कि समाज में लोगों की मानसिकता में काफी बदलाव आया हे आजकल उच्च पद पर पहुँचकर या समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बंधुओं से नजर फेर लेता हैऐसे लोगों के लिए सुदामा वरित बहुत बड़ी चुनौती खड़ा करता हैकिसी व्यक्ति को धनदोतत्, पद-प्रतिष्ठा आदि के मद में अपने निर्धन माता-पिता को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही हमें जन्म दिया हे अनेक दुख-सुख सहकर हमारा पालन-पोषण किया हैउन्होंने हमारी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध कर उच्च पद पर पहुँचने लायक बनाया हेते समय-समय पर मदद एवं अच्छी राय देकर हमारी सहायता करते हैंयदि उच्च पद पर पहुंचकर हम उन्हें भूलने जैसी कोई बात करते हैं तो यह व्यक्ति की कृतप्रता कही जाएगीहमें तो ऐसे में (उच्च पद प्राप्त करके) निर्धन माता-पिता तथा अपने बंधुओं की मदद उसी प्रकार करनी चाहिए जैसे कृष्ण ने सुदामा की थीउनकी मदद कर हमें अपनी पारिवारिक तथा सामाजिक जिम्मेदारियों का पूर्ण रूप से निर्वहन करना चाहिए।
अनुमान और कल्पना
1. अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
Ans. यदि कोई मित्र बहुत वर्षों के बाद हमसे मिलने आए तो हमें बहुत खुशी होगी। उसके प्रति हमारा यह कर्तव्य है कि हमें उसका आदर-सत्कार करना चाहिए तथा उसका कुशल-मंगल पूछना चाहिए।
2. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति। विपत्ति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत ।। इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
Ans. प्रस्तुत दोहे में रहीम दास जी ने सच्चे मित्र की पहचान बताते हुए कहा है कि जो हमारे विपत्ति की घड़ी में हमारा साथ दे वहीं हमारा सच्चा मित्र है। सुदामा चरित्र को पढ़ते हुए हम यह कह सकते हैं कि श्रीकृष्ण ने भी सच्ची मित्रता का परिचय देते हुए विपत्ति के समय अपने मित्र सुदामा की आर्थिक सहायता की। अतः हम यह कह सकते हैं कि रहीम द्वारा दिए गए सच्चे मित्र की परिभाषा तथा श्रीकृष्ण के अपने मित्र की सहायता करने में काफी समानता है।
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