अपवाह शब्द एक क्षेत्र के नदी तंत्र की व्याख्या अ करता है। भारत के भौतिक मानचित्र को देखिए। आप पाएँगे कि विभिन्न दिशाओं से छोटी-छोटी धाराएँ आकर एक साथ मिल जाती हैं तथा एक मुख्य नदी का निर्माण करती हैं, अंततः इनका निकास किसी बड़े जलाशय, जैसे- झील या समुद्र या महासागर में होता है। एक नदी तंत्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है उसे एक अपवाह द्रोणी कहते हैं। मानचित्र का अवलोकन करने पर यह पता चलता है कि कोई भी ऊँचा क्षेत्र, जैसे- पर्वत या उच्च भूमि दो पड़ोसी अपवाह द्रोणियों को एक दूसरे से अलग करती है। इस प्रकार की उच्च भूमि को जल विभाजक कहते हैं (चित्र 3.1)।
भारत में अपवाह तंत्र
भारत के अपवाह तंत्र का नियंत्रण मुख्यतः भौगोलिक आकृतियों के द्वारा होता है। इस आधार पर भारतीय नदियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है-
• हिमालय की नदियाँ तथा
• प्रायद्वीपीय नदियाँ
भारत के दो मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों से उत्पन्न होने के कारण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ एक-दूसरे से भिन्न हैं। हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी नदियाँ होती हैं। इनमें वर्ष भर पानी रहता है, क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है। हिमालय की दो मुख्य नदियाँ सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय श्रृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं।
इन नदियों ने पर्वतों को काटकर गॉर्जों का निर्माण किया है। हिमालय की नदियाँ अपने उत्पत्ति के स्थान से लेकर समुद्र तक के लंबे रास्ते को तय करती हैं। ये अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीव्र अपरदन क्रिया करती हैं तथा अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू का संवहन करती हैं। मध्य एवं निचले भागों में ये नदियाँ विसर्प, गोखुर झील तथा अपने बाढ़ वाले मैदानों में बहुत-सी अन्य निक्षेपण आकृतियों का निर्माण करती है। ये पूर्ण विकसित डेल्टाओं का भी निर्माण करती है (चित्र 3.3)।
अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती हैं, क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है। शुष्क मौसम में बड़ी नदियों का जल भी घटकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है। हिमालय की नदियों की तुलना में प्रायद्वीपीय नदियों की लंबाई कम तथा छिछली हैं। फिर भी इनमें से कुछ केंद्रीय उच्चभूमि से निकलती है तथा पश्चिम की तरफ बहती हैं। क्या आप इस प्रकार की दो बड़ी नदियों को पहचान सकते हैं? प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं तथा बंगाल की खाड़ी की तरफ बहती हैं।
हिमालय की नदियाँ
सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं। ये नदियाँ लंबी है तथा अनेक महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी सहायक नदियाँ आकर इनमें मिलती हैं। किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों को नदी तंत्र कहा जाता है।
सिंधु नदी तंत्र
सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है। पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी भारत में लद्दाख से प्रवेश करती है। इस भाग में यह एक बहुत ही सुंदर दर्शनीय गार्ज का निर्माण करती है। इस क्षेत्र में बहुत-सी सहायक नदियाँ जैसे जास्कर, नूबरा, श्योक तथा हुंज़ा इस नदी में मिलती हैं। सिंधु नदी बलूचिस्तान तथा गिलगित से बहते हुए अटक में पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है। सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम आपस में मिलकर पाकिस्तान में मिठानकोट के पास सिंधु नदी में मिल जाती हैं। इसके बाद यह नदी दक्षिण की तरफ बहती है तथा अंत में कराची से पूर्व की ओर अरब सागर में मिल जाती है। सिंधु नदी के मैदान का ढाल बहुत धीमा है। सिंधु द्रोणी का एकतिहाई से कुछ अधिक भाग भारत के जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल तथा पंजाब में तथा शेष भाग पाकिस्तान में स्थित है। 2,900 कि॰मी॰ लंबी सिंधु नदी विश्व की लंबी नदियों में से एक है।
गंगा नदी तंत्र
गंगा की मुख्य धारा ‘भागीरथी’ गंगोत्री हिमानी से निकलती है तथा अलकनंदा उत्तराखण्ड के देवप्रयाग में इससे मिलती हैं। हरिद्वार के पास गंगा पर्वतीय भाग को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है।
हिमालय से निकलने वाली बहुत सी नदियाँ आकर गंगा में मिलती हैं, इनमें से कुछ प्रमुख नदियाँ है – यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी। यमुना नदी हिमालय के यमुनोत्री हिमानी से निकलती है। यह गंगा के दाहिने किनारे के समानांतर बहती है तथा इलाहाबाद में गंगा में मिल जाती है। घाघरा, गंडक तथा कोसी, नेपाल हिमालय से निकलती हैं। इनके कारण प्रत्येक वर्ष उत्तरी मैदान के कुछ हिस्से में बाढ़ आती है, जिससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है, लेकिन ये वे नदियाँ है, जो मिट्टी को उपजाऊपन प्रदान कर कृषि योग्य भूमि बना देती है।
प्रायद्वीपीय उच्चभूमि से आने वाली मुख्य सहायक नदियाँ चंबल, बेतवा तथा सोन है। ये अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों से निकलती हैं। इनकी लंबाई कम तथा इनमें पानी की मात्रा भी कम होती है। ज्ञात कीजिए कि ये नदियाँ कैसे तथा कहाँ गंगा में मिलती हैं।
बाएँ तथा दाहिने किनारे की सहायक नदियों के जल से परिपूर्ण होकर गंगा पूर्व दिशा में, पश्चिम बंगाल के फरक्का तक बहती है। यह गंगा डेल्टा का सबसे उत्तरी बिंदु है। यहाँ नदी दो भागों में बँट जाती है, भागीरथी हुगली (जो इसकी एक वितरिका है), दक्षिण की तरफ बहती है तथा डेल्टा के मैदान से होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। मुख्य धारा दक्षिण की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है एवं ब्रह्मपुत्र नदी इससे आकर मिल जाती है। अंतिम चरण में गंगा और ब्रह्मपुत्र समुद्र में विलीन होने से पहले मेघना के नाम से जानी जाती है। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के जल वाली यह वृहद् नदी बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इन नदियों के द्वारा बनाए गए डेल्टा को सुंदरवन डेल्टा के नाम से जाना जाता है।
गंगा की लंबाई 2,500 कि॰मी॰ से अधिक है। चित्र 3.4 देखें, क्या आप गंगा नदी के अपवाह तंत्र को पहचान सकते हैं? अंबाला नगर, सिंधु तथा गंगा नदी तंत्रों के बीच जल-विभाजक पर स्थित है। अंबाला से सुंदरवन तक मैदान की लंबाई लगभग 1,800 कि॰मी॰ है, परंतु इसके ढाल में गिरावट मुश्किल से 300 मीटर है। दूसरे शब्दों में, प्रति 6 कि॰मी॰ की दूरी पर ढाल में गिरावट केवल 1 मीटर है। इसलिए इन नदियों में अनेक बड़े-बड़े विसर्प बन जाते हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत की मानसरोवर झील के पूर्व तथा सिंधु एवं सतलुज के स्त्रोतों के काफी नजदीक से निकलती है। इसकी लंबाई सिंधु से कुछ अधिक है, परंतु इसका अधिकतर मार्ग भारत से बाहर स्थित है। यह हिमालय के समानांतर पूर्व की ओर बहती है। नामचा बारवा शिखर (7,757 मीटर) के पास पहुँचकर यह अंग्रेजी के यू (U) अक्षर जैसा मोड़ बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में गॉर्ज के माध्यम से प्रवेश करती है। यहाँ इसे दिहाँग के नाम से जाना जाता है तथा दिबांग, लोहित, केनुला एवं दूसरी सहायक नदियाँ इससे मिलकर असम में ब्रह्मपुत्र का निर्माण करती है।
तिब्बत एक शीत एवं शुष्क क्षेत्र है। अतः यहाँ इस नदी में जल एवं सिल्ट की मात्रा बहुत कम होती है। भारत में यह उच्च वर्षा वाले क्षेत्र से होकर गुजरती है। यहाँ नदी में जल एवं सिल्ट की मात्रा बढ़ जाती है। असम में ब्रह्मपुत्र अनेक धाराओं में बहकर एक गुंफित नदी के रूप में बहती है तथा बहुत से नदीय द्वीपों का निर्माण करती है। क्या आपको ब्रह्मपुत्र के द्वारा बनाए गए विश्व के सबसे बड़े नदीय द्वीप का नाम याद है?
प्रत्येक वर्ष वर्षा ऋतु में यह नदी अपने किनारों से ऊपर बहने लगती है एवं बाढ़ के द्वारा असम तथा बांग्लादेश में बहुत अधिक क्षति पहुँचाती है। उत्तर भारत की अन्य नदियों के विपरीत, ब्रह्मपुत्र नदी में सिल्ट निक्षेपण की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसके कारण नदी की सतह बढ़ जाती है और यह बार-बार अपनी धारा के मार्ग में परिवर्तन लाती है।
प्रायद्वीपीय नदियाँ
प्रायद्वीपीय भारत में मुख्य जल विभाजक का निर्माण पश्चिमी घाट द्वारा होता है, जो पश्चिमी तट के निकट उत्तर से दक्षिण की ओर स्थित है। प्रायद्वीपीय भाग की अधिकतर मुख्य नदियाँ जैसे महानदी, गोदाबरी, कृष्णा तथा कावेरी पूर्व की ओर बहती हैं तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। ये नदियाँ अपने मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती है। पश्चिमी घाट से पश्चिम में बहने वाली अनेक छोटी धाराएँ हैं। नर्मदा एवं तापी, दो ही बड़ी नदियाँ हैं जो कि पश्चिम की तरफ बहती हैं और ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं। प्रायद्वीपीय नदियों की अपवाह द्रोणियाँ आकार में अपेक्षाकृत छोटी हैं।
नर्मदा द्रोणी
नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी के निकट है। यह पश्चिम की ओर एक भ्रंश घाटी में बहती है। समुद्र तक पहुँचने के क्रम में यह नदी बहुत से दर्शनीय स्थलों का निर्माण करती है। जबलपुर के निकट संगमरमर के शैलों में यह नदी गहरे गार्ज से बहती है तथा जहाँ यह नदी तीव्र ढाल से गिरती है. वहाँ ‘धुँआधार प्रपात’ का निर्माण करती है।
नर्मदा की सभी सहायक नदियाँ बहुत छोटी है, इनमें से अधिकतर समकोण पर मुख्य धारा से मिलती है। नर्मदा द्रोणी मध्य प्रदेश तथा गुजरात के कुछ भागों में विस्तृत है।
तापी द्रोणी
तापी का उद्गम मध्य प्रदेश के बेतुल जिले में सतपुड़ा की श्रृंखलाओं में है। यह भी नर्मदा के समानांतर एक भ्रंश घाटी में बहती है, लेकिन इसकी लंबाई बहुत कम है। इसकी द्रोणी मध्यप्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्य में है।
अरब सागर तथा पश्चिमी घाट के बीच का तटीय मैदान बहुत अधिक संकीर्ण है। इसलिए तटीय नदियों की लंबाई बहुत कम है। पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियाँ साबरमती, माही, भारत-पुजा तथा पेरियार है। उन राज्यों के नाम बताइए जहाँ ये नदियाँ बहती है।
गोदावरी द्रोणी
गोदावरी सबसे बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में पश्चिम घाट की ढालों से निकलती है। इसकी लंबाई लगभग 1,500 कि॰मी॰ है। यह बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। प्रायद्वीपीय नदियों में इसका अपवाह तंत्र सबसे बड़ा है। इसकी द्रोणी महाराष्ट्र (नदी द्रोणी का 50 प्रतिशत भाग), मध्य प्रदेश, ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश में स्थित है। गोदावरी में अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं, जैसे पूर्णा, वर्धा, प्रान्हिता, मांजरा, वेनगंगा तथा पेनगंगा। इनमें से अंतिम तीनों सहायक नदियाँ बहुत बड़ी हैं। बड़े आकार और विस्तार के कारण इसे ‘दक्षिण गंगा’ के नाम से भी जाना जाता है।
महानदी द्रोणी
महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ की उच्चभूमि से है तथा यह ओडिशा से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस नदी की लंबाई 860 कि॰मी॰ है। इसकी अपवाह द्रोणी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा ओडिशा में है।
कृष्णा द्रोणी
महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में महाबालेश्वर के निकट एक स्त्रोत से निकलकर कृष्णा लगभग 1,400 कि॰मी॰ बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। तुंगभद्रा, कोयना, घाटप्रभा, मुसी तथा भीमा इसकी कुछ सहायक नदियाँ हैं। इसकी द्रोणी महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में फैली है।
कावेरी द्रोणी
कावेरी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी श्रृंखला से निकलती है तथा तमिलनाडु में कुडलूर के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इसकी लंबाई 760 कि॰मी॰ है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं अमरावती, भवानी, हेमावती तथा काबिनि। इसकी द्रोणी तमिलनाडु, केरल तथा कर्नाटक में विस्तृत है।
इन बड़ी नदियों के अतिरिक्त कुछ छोटी नदियाँ है, जो पूर्व की तरफ बहती हैं। दामोदर, ब्रह्मनी, वैतरणी तथा सुवर्ण रेखा कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। अपने एटलस में इनकी स्थिति ज्ञात कीजिए।
झीलें
कश्मीर घाटी तथा प्रसिद्ध डल झील, नाववाले घरों तथा शिकारा से तो आप परिचित ही होंगे, जो प्रत्येक वर्ष हज़ारों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इसी प्रकार, आप अन्य झील वाले स्थानों पर भी गए होंगे तथा वहाँ नौकायान, तैराकी एवं अन्य जलीय खेलों का आनंद लिया होगा। कल्पना कीजिए की अगर कश्मीर, नैनीताल एवं दूसरे पर्यटन स्थलों पर झीलें नहीं होतीं, तब क्या वे उतना ही आकर्षित करते जितना कि आज करते हैं? क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि इन पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए किसी स्थान पर झीलों का क्या महत्त्व है? पर्यटकों के आकर्षण के अतिरिक्त, मानव के लिए अन्य कारणों से भी झीलों का महत्त्व है। पृथ्वी की सतह के गर्त वाले भागों में जहाँ जल जमा हो जाता है, उसे झील कहते हैं।
भारत में भी बहुत-सी झीलें हैं। ये एक दूसरे से आकार तथा अन्य लक्षणों में भिन्न हैं। अधिकतर झीलें स्थायी होती हैं तथा कुछ में केवल वर्षा ऋतु में ही पानी होता है, जैसे – अंतर्देशीय अपवाह वाले अर्धशुष्क क्षेत्रों की द्रोणी वाली झीलें। यहाँ कुछ ऐसी झीलें हैं, जिनका निर्माण हिमानियों एवं बर्फ चादर की क्रिया के फलस्वरूप हुआ है। जबकि कुछ अन्य झीलों का निर्माण वायु, नदियों एवं मानवीय क्रियाकलापों के कारण हुआ है।
एक विसर्प नदी बाढ़ वाले क्षेत्रों में कटकर गौखुर झील का निर्माण करती है। स्पिट तथा बार (रोधिका) तटीय क्षेत्रों में लैगून का निर्माण करते हैं, जैसे चिल्का झील, पुलीकट झील तथा कोलेरू झील। अंतर्देशीय भागों वाली झीलें कभी-कभी मौसमी होती है, उदाहरण के लिए राजस्थान की सांभर झील, जो एक लवण जल वाली झील है। इसके जल का उपयोग नमक के निर्माण के लिए किया जाता है।
मीठे पानी की अधिकांश झीलें हिमालय क्षेत्र में हैं। ये मुख्यतः हिमानी द्वारा बनी हैं। दूसरे शब्दों में, ये तब बनीं जब हिमानियों ने या कोई द्रोणी गहरी बनायी, जो बाद में हिम पिघलने से भर गयी, या किसी क्षेत्र में शिलाओं अथवा मिट्टी से हिमानी मार्ग बँध गये। इसके विपरीत, जम्मू तथा कश्मीर की वूलर झील भूगर्भीय क्रियाओं से बनी है। यह भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी वाली प्राकृतिक झील है। डल झील, भीमताल, नैनीताल, लोकताक तथा बड़ापानी कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण मीठे पानी की झीलें हैं।
इसके अतिरिक्त, जल-विद्युत उत्पादन के लिए नदियों पर बाँध बनाने से भी झील का निर्माण हो जाता है, जैसे- गुरु गोबिंद सागर (भाखड़ा-मंगल परियोजना)।
झीलें मानव के लिए अत्यधिक लाभदायक होती हैं। एक झील नदी के बहाव को सुचारु बनाने में सहायक होती है। अत्यधिक वर्षा के समय यह बाढ़ को रोकती है तथा सूखे के मौसम में यह पानी के बहाव को संतुलित करने में सहायता करती है। झीलों का प्रयोग जलविद्युत उत्पन्न करने में भी किया जा सकता है। ये आस-पास के क्षेत्रों की जलवायु को सामान्य बनाती है, जलीय पारितंत्र को संतुलित रखती हैं, झीलों की प्राकृतिक सुंदरता व पर्यटन को बढ़ाती हैं तथा हमें मनोरंजन प्रदान करती हैं।
नदियों का अर्थव्यवस्था में महत्त्व
संपूर्ण मानव इतिहास में नदियों का अत्यधिक महत्त्व रहा है। नदियों का जल मूल प्राकृतिक संसाधन है तथा अनेक मानवीय क्रियाकलापों के लिए अनिवार्य है। यही कारण है कि नदियों के तट ने प्राचीन काल से ही अधिवासियों को अपनी ओर आकर्षित किया है। ये गाँव अब बड़े शहरों में परिवर्तित हो चुके हैं। अपने राज्य के उन शहरों की एक सूची तैयार कीजिए जो नदी के किनारे स्थित हैं।
किंतु भारत जैसे देश के लिए, जहाँ कि अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, वहाँ सिंचाई, नौसंचालन, जलविद्युत निर्माण में नदियों का महत्त्व बहुत अधिक है।
नदी प्रदूषण
नदी जल की घरेलू, औद्योगिक तथा कृषि में बढ़ती माँग के कारण, इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इसके परिणामस्वरूप, नदियों से अधिक जल की निकासी होती है तथा इनका आयतन घटता जाता है। दूसरी ओर, उद्योगों का प्रदूषण तथा अपरिष्कृत कचरे नदी में मिलते रहते हैं। यह केवल जल की गुणवत्ता को ही नहीं, बल्कि नदी के स्वतः स्वच्छीकरण की क्षमता को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, दिए गए समुचित जल प्रवाह में गंगा का जल लगभग 20 कि॰मी॰ क्षेत्र में फैले बड़े शहरों की गंदगी को तनु करके समाहित कर सकता है। लेकिन लगातार बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाता तथा अनेक नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण इनको स्वच्छ बनाने के लिए अनेक कार्य योजनाएँ लागू की गयी हैं। क्या आपने कभी ऐसी कार्य योजनाओं के बारे में सुना है? नदी के प्रदूषित जल से हमारा स्वास्थ्य किस प्रकार प्रभावित होता है? ‘बिना स्वच्छ जल का मानव जीवन’, इस विषय पर विचार करें तथा अपनी कक्षा में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
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अभ्यास
1. दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए।
(i) वूलर झील निम्नलिखित में से किस राज्य में स्थित है?
(क) राजस्थान
(ख) पंजाब
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) जम्मू-कश्मीर
Ans. (घ) जम्मू-कश्मीर
(ii) नर्मदा नदी का उद्गम कहाँ से है?
(क) सतपुड़ा
(ख) अमरकंटक
(ग) ब्रह्मागिरी
(घ) पश्चिमी घाट के ढाल
Ans. (ख) अमरकंटक
(iii) निम्नलिखित में से कौन-सी लवणीय जलवाली झील है?
(क) सांभर
(ख) वूलर
(ग) डल
(घ) गोबिंद सागर
Ans. (क) सांभर
(iv) निम्नलिखित में से कौन-सी नदी प्रायद्वीपीय भारत को सबसे बड़ी नदी है?
(क) नर्मदा
(ख) गोदावरी
(ग) कृष्णा
(घ) महानदी
Ans. (ख) गोदावरी
(v) निम्नलिखित नदियों में से कौन-सी नदी भ्रंश घाटी से होकर बहती है?
(क) महानदी
(ख) कृष्णा
(ग) तुंगभद्रा
(घ) तापी
Ans. (घ) तापी
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए-
(i) जल विभाजक का क्या कार्य है? एक उदाहरण दीजिए।
Ans. कोई उच्चभूमि जैसे पर्वत जो दो पड़ोसी अपवाह द्रोणियों को अलग करता है उसे जल विभाजक कहा जाता है। उदाहरणतः सिंधु और गंगा नदी तंत्र के बीच का जल विभाजक। अंबाला इसके जल विभाजक पर स्थित है।
(ii) भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी कौन-सी है?
Ans. गंगा नदी की द्रोणी जो कि 2,500 कि0मी0 से अधिक लंबी है; भारत में सबसे बड़ी है।
(iii) सिंधु एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती है?
Ans. सिंधु नदी तिब्बत में मानसरोवर झील के पास से निकलती है। गंगा नदी गंगोत्री नामक हिमानी से निकलती है जो हिमालय की दक्षिणी ढलान पर स्थित है।
(iv) गंगा की दी मुख्य धाराओं के नाम लिखिए? ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं?
Ans. गंगा नदी की दो मुख्य धाराएँ भागीरथी और अलकनंदा हैं। ये उत्तराखंड के देवप्रयाग नामक स्थान पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं।
(v) लंबी धारा होने के बावजूद तिब्बत के क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र में कम गाद (सिल्ट) क्यों है?
Ans. तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी को सांपो कहा जाता है तथा तिब्बत में इसे बहुत कम पानी प्राप्त होता है इसलिए इसमें तिब्बत के क्षेत्रों में कम गाद पाई जाती है। इसके विपरीत जब यह नदी भारत में प्रवेश करती है तो यह ऐसे क्षेत्रों से गुजरती है जहाँ बहुत अधिक वर्षा होती है। यहाँ नदी बहुत अधिक पानी लेकर जाती है और इसी कारण इसमें गाद की मात्रा भी बढ़ जाती है। क्योंकि तिब्बत का मौसम ठण्डा व शुष्क है, इसलिए तिब्बत में इसे बहुत कम पानी प्राप्त होता है और इस क्षेत्र में गाद भी कम पाई जाती है।
(vi) कौन-सी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ गर्त से होकर बहती हैं? समुद्र में प्रवेश करने के पहले वे किस प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती हैं?
Ans. नर्मदा एवं तापी नदियाँ दो ऐसी नदियाँ हैं जो गर्त से होकर बहती हैं तथा ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं।
(vii) नदियों तथा झीलों के कुछ आर्थिक महत्त्व को बताएँ।
Ans. झील का महत्व: नदी के बहाव को नियंत्रित करके झील बाढ़ की रोकथाम में मददगार साबित होती है। झील की मदद से सूखे मौसम में भी नदी में पानी मिलता रहता है। झील से पनबिजली भी बनाई जा सकती है। पर्यटन को बढ़ावा देने में झील की अहम भूमिका होती है।
नदी का महत्व: नदियाँ सदियों से मानव सभ्यता का केंद्र बिंदु रही हैं। सभी महान सभ्यताओं का विकास नदी के आस पास ही हुआ था। आज भी दुनिया के कई बड़े शहर नदियों के किनारे स्थित हैं। नदी के पानी का इस्तेमाल कई कामों में होता है, जैसे कि सिंचाई, यातायात, पनबिजली, मछली पालन, आदि।
3. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(i) नीचे भारत की कुछ झीलों के नाम दिए गए हैं। इन्हें प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वर्गों में बॉटिए।
(क) वूलर
(ख) डल
(ग) नैनीताल
(घ) भीमताल
(ड.) गोबिंद सागर
(च) लोकताक
(छ) बारापानी
(ज) चिल्का
(झ) सांभर
(ञ) राणा प्रताप सागर
(ट) निजाम सागर
(ठ) पुलिकट
(ड) नागार्जुन सागर
(ड) हीराकुंड
Ans. प्राकृतिक: वूलर, डल, नैनीताल, भीमताल, लोकताक,बारापानी, चिल्का, सांभर, पुलिकट
मानव निर्मित: गोविंद सागर, राणा प्रताप सागर, निजाम सागर, नागार्जुन सागर, हीराकुंड
4. हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियों के मुख्य अंतरों को स्पष्ट कीजिए।
Ans.
हिमालय नदियाँ | प्रायद्वीपीय नदियाँ |
(i) हिमालय नदियाँ लम्बी होती है और ये लम्बे रस्ते तय करती है। (ii) इन नदियों को वर्षा के साथ -साथ हिम से भी जल मिलता है इसलिए ये बारहमासी नदियाँ होती है। (iii) हिमालय की प्रमुख नदियों में कई सहयक नदियाँ आकर मिलती है। (iv) ये नदियाँ अपने साथ भरी मात्रा में सिल्ट लेकर दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा बनती हैl जिसे सुंदरवन कहते है। (v) भारत में हिमालय की नदियाँ बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। | (i) ये नदियाँ अपेक्षाकृत छोटी होती है और छोटी दुरी तय करती है। (ii) इस नदियों का प्रवाह वर्षा पर निर्भर करती है। ये प्रायः मौसमी होती है। (iii) प्रमुख प्रायदुपीय नदियाँ जैसे महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी में छोटी सहयक नदियाँ आकर मिलती है। (iv) ये नदियाँ डेल्टा और ज्वारमुख का निर्माण करती है इनके डेल्टा छोटे होते है। (v) प्रायद्वीपीय नदियाँ बंगाल की खाड़ी और अरब सागर दोनों में गिरती |
5. प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की तुलना कीजिए।
Ans.
पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में अंतरः
पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ | पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ |
महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी पूर्व की ओर बहने वाली मुख्य नदियाँ हैं। | नर्मदा एंव तापी पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियाँ हैं। |
ये नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। | ये नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। |
इन नदियों का अपवाह तंत्र विकसित एंव आकर में बड़ा हैं। | इन नदियों का अपवाह तंत्र विकसित नहीं है। उनकी सहायक नदियाँ आकर में छोटी हैं। |
ये नदियाँ बहुत गहरी नहीं बहती। | ये नदियाँ गर्त से होकर बहती हैं। |
ये नदियाँ पूर्वी तट पर बहुत बड़े डेल्ट बनाती हैं। | ये नदियाँ डेल्ट नहीं बनाती। ये ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं। |
6. किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए नदियाँ महत्त्वपूर्ण क्यों हैं?
Ans. नदियाँ किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। कुछ बिन्दु जो नदियों की महत्ता को प्रदर्शित करते हैं वे नीचे दिए गए हैं :
- नदियों से हमें प्राकृतिक ताजा मीठा पानी मिलता है जो मनुष्य सहित अधिकतर जीव-जंतुओं के जीवन के लिए आवश्यक है।
- ये नई मृदा बिछाकर उसे खेती योग्य बनाती हैं जिससे बिना अधिक मेहनत के इस पर खेती की जा सके।
- नदियों के तटों ने प्राचीनकाल से ही आदिवासियों को आकर्षित किया है। ये बस्तियाँ कालांतर में बड़े शहर बन गए।
- ये जल के बहाव को नियंत्रित करने में सहायता करती हैं।
- ये भारी वर्षा के समय बाढ़ को रोकती हैं।
- ये शुष्क मौसम के दौरान पानी का एक समान बहाव बनाए रखती हैं।
- इनकी सहायता से जल-विद्युत पैदा की जाती है।
- ये आस-पास के वातावरण को मृदु बना देती हैं।
- ये जलीय परितंत्र को बनाए रखती हैं।
- ये प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि करती हैं।
- ये पर्यटन का विकास करने में सहायता प्रदान करती हैं और मनोरंजन करती हैं।
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