ऊष्मागतिकी, भौतिक विज्ञान (Physics), की वह शाखा (Branch) है जो ऊष्मा (Heat) तथा यांत्रिक कार्य (Mechanical Work) में परस्पर संबंध का वर्णन करती है। यह मुख्यतः ऊष्मा तथा यांत्रिक कार्य के परस्पर रूपान्तरण से संबंधित है।
कार्य व ऊष्मा की तुल्यता (Equivalence of Work and Heat)
हम किसी भी वस्तु का ताप दो प्रकार से बढ़ा सकते हैं, वस्तु को सीधे ऊष्मा देकर अर्थात् गर्म करके अथवा वस्तु पर याँत्रिक कार्य (Mechanical Work) करके। यथा- साइकिल में हवा भरते समय पम्प का बैरल गर्म हो जाता है, वाहनों (Automobiles) में ब्रेक लगाने से ब्रेक ड्रम गर्म हो जाते हैं, दियासलाई (match) की तीली (Stick) रगड़ खाकर गर्म हो जाती है और जलने लगती है इत्यादि।
उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि ऊष्मा तथा कार्य (यांत्रिक ऊर्जा) दोनों ही से ताप-वृद्धि संभव है और ताप वृद्धि के बाद हम यह पता नहीं लगा सकते कि यह वस्तु को गर्म करके किया गया है या यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) व्यय करके अर्थात् यांत्रिक कार्य करके। गरम जल को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि उसे सीधे गर्म किया गया है। इस प्रकार ऊष्मा तथा कार्य दोनों एक दूसरे के तुल्य (Equal) हैं।
ऊष्मा तथा कार्य की तुल्यता का परिमाणात्मक अध्ययन (Quantitative Study) जूल नामक वैज्ञानिक ने विस्तृत रूप में किया तथा निष्कर्ष निकाला कि 4.18 * 103 जूल कार्य से उतनी ही ताप वृद्धि होती है जितनी कि 1 किलो कैलोरी ऊष्मा से। अर्थात् 1 किलोकैलोरी = 4.18 * 103 जूल या 1 कैलोरी = 4.18 जूल
अथवा, Q कैलोरी = 4.18Q जूल
अतः यदि Q कैलोरी ऊष्मा W जूल कार्य के तुल्य (equivalent) हो तो, W = 4.18Q.
इस प्रकार 4.18 एक ‘परिवर्तन-गुणक’ (Conversion- factor) है। इसे ‘ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक’ (Mechanical equivalent of Heat) कहते हैं तथा ‘J’ से प्रदर्शित करते हैं। अतः उपरोक्त समीकरण निम्नवत् भी लिखा जा सकता है-
W = JQ
जहां, J = 4.18 जूल/कैलोरी या 4.18 × 103 जूल/किलो कैलोरी।
➤ ऊष्मागतिक निकाय (Thermodynamic System)
निश्चित सीमाओं से परिबद्ध (bound) बहुत अधिक संख्या में अणुओं (molecules), परमाणुओं (atoms) के एक ऐसे समूह को जिनका एक निश्चित दाब (Pressure), आयतन (Volume) एवं ताप (Temperature) हो, ऊष्मागतिक निकाय कहते हैं। जैसे : सिलिंडर में भरी गैस, फुटबाल में भरी हवा आदि एक उष्मा गतिक निकाय हैं। ऊष्मागतिक निकाय से बाहर स्थित किसी भी वस्तु या निकाय को जिससे ऊर्जा या पदार्थ का आदान-प्रदान होता हो, परिवेश (Surrounding) कहते हैं।
➤ ऊष्मागतिकी का शून्यांकी नियम (Zeroth Law of Thermodynamics)
ऊष्मा का प्रवाह (Flow of Heat) अधिक ताप से कम ताप की ओर, तब तक होता रहेगा जब तक कि तापीय संतुलन स्थापित नहीं हो जाता।
इस प्रकार ऊष्मागतिकी के शून्यांकी नियम के अनुसार- “यदि दो निकाय (System) किसी तीसरे निकाय के साथ अलग-अलग तापीय साम्य में हैं तो वे परस्पर भी तापीय साम्य में होगा।”
उक्त चित्र में दो निकाय A व B एक रुद्धोष्म दीवार द्वारा पृथक हैं। इनमें से प्रत्येक एक तीसरे निकाय C से सुचालक दीवार द्वारा सम्पर्क में है। रुद्धोष्म दीवार में ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं होगा। सुचालक दीवार से निकायों में ऊष्मा का आदान-प्रदान हो सकता है, इस प्रकार यदि A व C तथा B व C भाग तापीय साम्य में हैं तो भाग A व भाग B भी आपस में तापीय साम्य में होंगे।
➤ कार्य व ऊष्मा में अंतर (Difference between Work and Heat)
ऊष्मा तथा कार्य दोनों ही परस्पर रूपान्तरित किये जा सकते हैं। परन्तु दोनों में मूल अंतर है। जब ऊर्जा (energy) एक पिण्ड (body) से दूसरे पिण्ड में तापान्तर के कारण स्थानान्तरित (Transfer) होती है, तब स्थानान्तरित होने वाली ऊर्जा (energy) ऊष्मा (Heat) कहलाती है। दूसरी ओर, जब ऊर्जा स्थानान्तरण पिण्डों के तापान्तर पर निर्भर नहीं करता, तब उनके बीच स्थानान्तरित होने वाली ऊर्जा (energy) किये गये कार्य (work) का परिणाम होती है। उदाहरणस्वरुप- जब एक गर्म वस्तु ठण्डी वस्तु के संपर्क में रखी जाती है, तो ऊर्जा गर्म से ठण्डी वस्तु में स्थानान्तरित होती है, यह ऊर्जा, ऊष्मा है। परन्तु जब कोई व्यक्ति किसी बर्तन में रखे ठण्डे जल को मथनी से मथता है, तो ऊर्जा व्यक्ति से कृत कार्य के कारण जल में स्थानान्तरित होती है और जल थोड़ा गर्म हो जाता है चाहे इसका प्रारंभिक वास्तविक ताप कुछ भी रहा हो। इस दशा में स्थानान्तरित ऊर्जा, व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य का परिणाम है।
➤ आंतरिक ऊर्जा (Internal Energy)
प्रत्येक निकाय असंख्य अणुओं से निर्मित है। आंतरिक ऊर्जा (Internal Energy) इन अणुओं की स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) एवं गतिज ऊर्जाओं (Kinetic Energy) का योग है। आंतरिक ऊर्जा केवल निकाय की अवस्था पर निर्भर करती है न कि इस बात पर कि यह अवस्था किस प्रकार प्राप्त की गई है। यदि कोई निकाय एक अवस्था से चलकर विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए पुनः अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ जाय तो उसकी आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन शून्य होगा।
➤ ऊष्मा गतिकी का प्रथम नियम (First Law of Thermodynamics)
यदि हम किसी निकाय (System) को Q ऊष्मा दें तो उसका कुछ भाग निकाय की आंतरिक ऊर्जा (Internal Energy) में वृद्धि (∆U) करने में तथा शेष भाग निकाय द्वारा कार्य (W) करने में व्यय होता है। अर्थात्
Q = ∆U + W अथवा ∆U = Q – W
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण नियम (Law of Conservation of Energy) का ही एक रूप है। परन्तु व्यवहार में यह देखा जाता है कि कार्य को तो ऊष्मा में पूर्णतः परिवर्तित किया जा सकता है, किन्तु ऊष्मा को पूर्णतः कार्य में नहीं परिवर्तित किया जा सकता है।
➤ विभिन्न प्रकार के ऊष्मा गतिक निकाय (Different Types of Thermodynamic Systems)
• चक्रीय प्रक्रम (Cyclic Process)
जब कोई निकाय विभिन्न अवस्थाओं से होता हुआ पुनः अपनी प्रारंभिक अवस्था (Initial State) में लौट आता है तो इसे चक्रीय प्रक्रम कहते हैं। इस प्रक्रम में निकाय की आंतरिक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता भले ही कार्य निकाय द्वारा किया जाय या निकाय पर किया जाय।
• समदाबी प्रक्रम (Isobaric Process)
ऐसा निकाय जिसमें प्रक्रम की अवधि में दाब (P) स्थिर रहता है, समदाबी प्रक्रम की संज्ञा से जाना जाता है। अर्थात् ∆P = 0
• समआयतनिक प्रक्रम (Isochoric Process)
ऐसा निकाय जिसमें आयतन (V) स्थिर रहता है अर्थात् ∆V = 0
• समतापी प्रक्रम (Isothermal Process)
ऐसा प्रक्रम जिसमें ताप (T) स्थिर रहता है अर्थात् ∆T = 0
• रुद्धोष्म प्रक्रम (Adiabatic Process)
ऐसा प्रक्रम जिसमें निकाय (System) व परिवेश (Surroundings) के बीच ऊष्मा स्थानान्तरण शून्य रहता है। अर्थात् Q = 0
• विलग निकाय (Isolated System)
वह निकाय जो न तो कोई कार्य कर सकता है और न हीं बाहर से ऊष्मा का आदान-प्रदान कर सकता है, ‘विलग निकाय’ कहलाता है। ऐसे निकाय के भीतर होने वाले किसी भी प्रक्रम के लिए Q = W = 0 अतः ऊष्मा गतिकी के प्रथम नियम ∆U = Q – W के अनुसार, निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन (∆U) शून्य होता है अर्थात् विलग निकाय की आंतरिक ऊर्जा स्थिर रहती है। इसे निकाय के भीतर होने वाले किसी भी प्रक्रम द्वारा नहीं बदला जा सकता।
➤ विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat)
किसी पदार्थ के 1 ग्राम द्रव्यमान का ताप 1 °C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं।
S = Q/(m×∆t)
जहां Q = गई ऊष्मा की मात्रा
m = पदार्थ का द्रव्यमान
तथा ∆t = ताप में हुई वृद्धि है
इसका मात्रक-कैलोरी/ग्राम° सेल्सियस या किलो कैलोरी /किग्रा °C या जूल/किग्रा 1 °C होता है।
द्रवों में जल की विशिष्ट ऊष्मा का मान अन्य द्रवों की तुलना में सर्वाधिक है। गैसों में व सभी पदार्थों में हाइड्रोजन गैस की विशिष्ट ऊष्मा का मान सबसे अधिक है। ठोसों, द्रवों व गैसों में तुलनात्मक रूप से ठोसों की विशिष्ट ऊष्मा सबसे कम, व गैसों की सबसे ज्यादा होती है।*
➤ ऊष्मा धारिता (Thermal Capacity)
किसी वस्तु के कुल द्रव्यमान का ताप 1°C बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को उस वस्तु की ऊष्मा धारिता कहते हैं।
किसी वस्तु की ऊष्मा धारिता (w) = Q/∆t = वस्तु को दी गई ऊष्मा / ताप वृद्धि
इसका मात्रक, जूल प्रति डिग्री सेल्सियस (J/°C या J°C-1) अथवा कैलोरी प्रति डिग्री सेल्सियस (K/°C) होता है।*
➤ विशिष्ट ऊष्मा तथा ऊष्मा धारिता में अंतर
• विशिष्ट ऊष्मा (specific heat) पदार्थ की प्रकृति (Nature of the Substance) पर निर्भर करती है जबकि ऊष्मा धारिता (Heat Capacity) वस्तु के द्रव्यमान (Mass) पर निर्भर करती है।
• ऊष्मा धारिता वस्तु का गुण है जबकि विशिष्ट ऊष्मा उस पदार्थ का गुण है जिससे वस्तु बनी है।
किसी वस्तु की ऊष्मा धारिता, उस वस्तु के द्रव्यमान व वस्तु के पदार्थ के विशिष्ट ऊष्मा के गुणनफल के बराबर होता है।*
➤ ऊष्मा गतिकी का द्वितीय नियम (Second Law of Thermodynamics)
यह नियम ऊष्मा के प्रवाहित होने की दिशा व्यक्त करता है। यह दो कथनों के रूप में व्यक्त किया जाता है- प्रथम, ऊष्मा का संपूर्ण रूप से यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) में परिवर्तन असंभव है और दूसरा, ऊष्मा कम ताप की वस्तु से अधिक ताप की वस्तु की ओर प्रवाहित नहीं हो सकती जब तक कि ऊर्जा के लिए वाह्य स्त्रोत (external source) का उपयोग न किया जाय।
ऊष्मा इंजन (Heat Engines) व प्रशीतक (Refrigerators) का निर्माण ऊष्मा गतिकी के द्वितीय नियम पर ही आधारित है।*
• ऊष्मा इंजन (Heat Engine)
कोई भी ऐसी चक्रीय युक्ति (Cyclic device) जो ऊष्मा का यान्त्रिक कार्य में अविरत रूप से (Continuously) रूपान्तरण करती है, ऊष्मा इंजन कहलाती है।
ऊष्मा इंजन के तीन मुख्य भाग होते हैं- (ⅰ) ऊष्मा स्त्रोत (Source of heat) जिससे कार्य करने हेतु ऊष्मा ली जाती है, (ii) कार्यकारी पदार्थ (Working Substance) जो कि स्रोत से ऊष्मा ग्रहण करता है व लक्षित कार्य (targeted work) करता है तथा (iii) सिंक (sink) जिसका ताप स्रोत के ताप से नीचा होता है।
व्यवहार में ऊष्मा का यांत्रिक कार्य में रूपान्तरण दो प्रकार के इंजनों द्वारा किया जाता है। (i) बाह्य दहन इंजन (external Combustion Engine) जैसे- भाप इंजन (Steam engine) व (ii) आंतरिक दहन इंजन (internal Combustion engine) जैसे- पेट्रोल इंजन, डीजल इंजन तथा गैस इंजन ।
• प्रशीतक (Refrigerator)
किसी भी शीतल (Cold) स्थान से ऊष्मा (Heat) लेने तथा तप्त स्थान को देने की युक्ति (Technique) को प्रशीतक (Re- frigerator) कहते हैं। वास्तव में यह उत्क्रम (Reverse) दिशा (direction) में कार्य करने वाला ऊष्मा इंजन ही है। परन्तु ऊष्मा इंजन के विपरीत प्रशीतक में कार्यकारी वस्तु शीतल वस्तु से ऊष्मा लेता है और इसे किसी गर्म वस्तु को दे देता है। इस प्रकार प्रशीतक में बाह्य ऊर्जा स्त्रोत (विद्युत मोटर) की सहायता से ऊष्मा को ठण्डी वस्तु से गरम (वायुमण्डल) में पहुँचाया जाता है।
वातानुकूलक (Air Conditioner)
वातानुकूलक भी प्रशीतक के सिद्धान्त पर ही कार्य करने वाला विद्युत चालित एक उपकरण है जिससे किसी भवन (Building) या कमरे (Room) का तापमान (Temperature), आर्द्रता (Humidity) व हवा की गति (Speed of air) नियंत्रित की जाती है।
प्रायः वातानुकूलक (ए०सी०) द्वारा कमरे का तापमान लगभग 20-25° सेल्सियस, वायु की नमी (Humidity) लगभग 60-70% तथा वायु की गति (0.0125-0.0416) मीटर प्रति सेकेण्ड रखी जाती है।* यह संयोजन मानव स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम दशा है। कुछ ए०सी० ऐसे भी बनाये जाते हैं जिनसे जाड़ों में गर्म हवा भी मिल सकती है।
➤ ऊष्मा गतिकी का तृतीय नियम (Third law of Thermodynamics)
ऊष्मा गतिकी के तृतीय नियम के अनुसार- “किसी पदार्थ या निकाय (System) के तापमान को परमशून्य (Absolute zero) तक नहीं घटाया जा सकता।” अर्थात् परम शून्य ताप एक आदर्श परिकल्पना (Ideal Hypothesis) या चरम अवस्था (Extream state) है जिसे किसी भी विधि से प्राप्त करना असंभव है।
ज्ञातव्य है निम्नतापिकी (Cryogenics) द्वारा 10-8 केल्विन तक का निम्न ताप प्राप्त किया जा चुका है जो कि परम शून्य ताप (Zero Kelvin) के काफी निकट है।
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