किशोरावस्था  की ओर : अध्याय 7

पिछले अध्याय में आपने पढ़ा कि जंतु किस प्रकार जनन करते हैं। मानव एवं बहुत से अन्य जंतु एक निश्चित आयु तक पहुँचने के बाद ही जनन कर सकते हैं। मानव किसी निश्चित आयु के बाद ही क्यों जनन कर सकते हैं?

इस अध्याय में आप मानव के शरीर में होने वाले उन परिवर्तनों के विषय में पढ़ेंगे जिनके उपरान्त वह जनन हेतु सक्षम हो पाता है। I

अध्याय 6 में आप मानव जननांगों के विषय में पढ़ चुके हैं। इस अध्याय में हम उन हार्मोनों के विषय में चर्चा करेंगे जो शिशु (बच्चे) में होने वाले उन परिवर्तनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिनके कारण बच्चा बड़ा होकर वयस्क हो जाता है।

7.1 किशोरावस्था एवं यौवनारम्भ

बूझो अपना 12वाँ जन्मदिन मना रहा था। मित्रों के चले जाने के पश्चात् बूझो और पहेली अपने माता-पिता के साथ बातें करने लगे। पहेली एक कन्या विद्यालय में पढ़ती है। वह हँसने लगी। उसने टिप्पणी की कि बूझो के कई मित्रों जिनसे वह एक वर्ष बाद मिली थी, की लंबाई एकाएक कितनी बढ़ गई है। उनमें से कुछ तो मूँछें आने से जोकर (कार्टून) नज़र आ रहे थे। उसकी माँ ने समझाया कि लड़के बड़े हो गए हैं।

वृद्धि जन्म के समय से ही होने लूगती है। परन्तु 10 या 11 वर्ष की आयु के बाद वृद्धि में एकाएक तीव्रता आती है और वृद्धि साफ़ दिखाई देने लगती है। शरीर में होने वाले परिवर्तन वृद्धि प्रक्रिया का एक भाग हैं। यह इस बात का संकेत है कि अब आप बच्चे नहीं रहे तथा युवावस्था में कदम रख रहे है।

वृद्धि एक प्राकृतिक प्रक्रम है। जीवन काल की चार अवधि जब शरीर में ऐसे परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप जनन परिपक्वता आती है, किशोरावस्था कहलाती है। किशोरावस्था लगभग 11 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर 18 अथवा 19 वर्ष की आयु तक रहती है। यह अवधि क्योंकि अंग्रेजी के “teens” (Thirteen से Eighteen या Nineteen वर्ष की आयु) तक होती है, किशोरों को ‘टीनेजर्स’ (Teenagers) भी कहा जाता है। लड़कियों में यह अवस्था लड़कों की अपेक्षा एक या दो वर्ष पूर्व प्रारम्भ हो जाती है। किशोरावस्था की अवधि व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होती है।

किशोरावस्था के दौरान मनुष्य के शरीर में अनेक परिवर्तन आते हैं। यह परिवर्तन यौवनारम्भ का संकेत हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन है, लड़के एवं लड़कियों की जनन क्षमता का विकास। किशोर की जनन परिपक्वता के साथ ही यौवनारम्भ समाप्त हो जाता है।

7.2 यौवनारम्भ में होने वाले परिवर्तन

लंबाई में वृद्धि

लंबाई में एकाएक वृद्धि यौवनारम्भ के दौरान होने वाला सबसे अधिक दृष्टिगोचर परिवर्तन है। इस समय शरीर की लंबी अस्थियों की, अर्थात् हाथ एवं पैरों की अस्थियों (हड्डियों) की, लंबाई में वृद्धि होती है और व्यक्ति लंबा हो जाता है।

क्रियाकलाप 7.1

निम्न चार्ट में लड़के व लड़कियों की आयु के साथ लंबाई में वृद्धि की औसत दर को दर्शाया गया है। कॉलम 2 और 3 में किसी व्यक्ति की लंबाई को प्रतिशत में दर्शाया गया है जो किसी आयु पर पहुँचने पर होती है। आयु को कॉलम 1 में दर्शाया गया है। उदाहरणतः 11 वर्ष की आयु तक एक लड़का अपनी पूर्ण लंबाई का 81% लक्ष्य प्राप्त करता है, जबकि एक लड़की अपनी पूर्ण लंबाई की 88% तक पहुँच जाती है। यह आँकड़े प्रतिनिधित्व मात्र हैं जो व्यक्तियों में भिन्न हो सकते हैं।

अपने मित्रों के लिए सारणी का प्रयोग करके उनकी पूर्ण लंबाई का अनुमान लगाइए। पता लगाइए कि आपकी कक्षा में कौन सबसे लंबा और कौन सबसे बौना हो सकता है।

पूर्ण लंबाई के लिए गणना (cm में):

वर्तमान लंबाई (cm) / वर्तमान आयु में पूर्ण लम्बाई का % (चार्ट में दिए गए मान के अनुसार) × 100

उदाहरण:

एक लड़का जिसकी आयु 9 वर्ष है तथा लंबाई 120 cm है। वृद्धि काल की समाप्ति पर उसकी अनुमानित लंबाई होगी –

120 / 75 x 100cm = 160cm

क्रियाकलाप 7.2

क्रियाकलाप 7.1 में दिए गए आंकड़ों का उपयोग करके एक ग्राफ बनाइए। आयु को ‘X-अक्ष’ पर तथा लंबाई में वृद्धि का प्रतिशत ‘Y-अक्ष’ पर लीजिए। अपनी आयु को ग्राफ पर विशिष्ट रूप से चिह्नित कीजिए। आप लंबाई के जिस प्रतिशत को प्राप्त कर चुके हैं उसका पता लगाइए। आप अन्ततः जिस लंबाई को प्राप्त कर सकेंगे उसका परिकलन कीजिए। आप अपने ग्राफ की तुलना निम्न ग्राफ से कीजिए (चित्र 7.1)।

प्रारंभ में लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से बढ़ती हैं। परन्तु लगभग 18 वर्ष की आयु तक दोनों अपनी अधिकतम लंबाई प्राप्त कर लेते हैं। अलग-अलग व्यक्तियों की लंबाई में वृद्धि की दर भी भिन्न-भिन्न होती है। कुछ यौवनारम्भ में तीव्र गति से बढ़ते हैं तथा बाद में यह गति धीमी हो जाती है, जबकि कुछ धीरे-धीरे वृद्धि करते हैं।

पहेली को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। शरीर के सभी अंग समान दर से वृद्धि नहीं करते। कभी-कभी किशोर के हाथ अथवा पैर शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा बड़े दिखाई देते हैं। परन्तु शीघ्र ही दूसरे भाग भी वृद्धि कर शारीरिक अनुपात को संतुलित कर देते हैं फलतः शरीर सुडौल हो जाता है।

आपने ध्यान दिया होगा कि किसी व्यक्ति की लंबाई उसके परिवार के किसी न किसी सदस्य के लगभग समान होती है। इसका कारण यह है कि लंबाई माता-पिता से प्राप्त जीन पर निर्भर करती है। परन्तु, वृद्धि के इन वर्षों में उचित प्रकार का संतुलित आहार आवश्यक है। यह अस्थियों, पेशियों एवं शरीर के अन्य भागों को सही ढंग से वृद्धि करने हेतु पर्याप्त पोषण करने में सहायता करता है। आप किशोर की पोषक आवश्यकताओं के विषय में इस अध्याय में आगे पढ़ेंगे।

शारीरिक आकृति में परिवर्तन

क्या आपने ध्यान दिया है कि आपकी कक्षा के छात्रों के कंधे एवं सीना निचली कक्षा के छात्रों की अपेक्षा अधिक चौड़े होते हैं? इसका कारण यह है कि वे यौवनारम्भ में प्रवेश कर चुके हैं जब वृद्धि के कारण कंधे फैल कर चौड़े हो जाते हैं। लड़कियों में कमर का निचला भाग चौड़ा हो जाता है।

वृद्धि के कारण लड़कों में शारीरिक पेशियाँ लड़कियों की अपेक्षा सुस्पष्ट एवं गठी दिखाई देती हैं। अतः किशोरावस्था के दौरान लड़कों एवं लड़कियों में होने वाले परिवर्तन अलग-अलग हैं।

स्वर में परिवर्तन

क्या आपने ध्यान दिया है कि कभी-कभी आपकी कक्षा के कुछ लड़कों की आवाज़ फटने लगती है? यौवनारम्भ में स्वरयंत्र अथवा लैरिन्क्स में वृद्धि का प्रारंभ होता है। लड़कों का स्वरयंत्र विकसित होकर अपेक्षाकृत बड़ा हो जाता है। लड़कों में बढ़ता हुआ ‘स्वरयंत्र’ गले के सामने की ओर सुस्पष्ट उभरे भाग के रूप में दिखाई देता है जिसे ऐडॅम्स ऐपॅल (कंठमणि) कहते हैं (चित्र 7.2)।

लड़कियों में ‘स्वरयंत्र’ अपेक्षाकृत छोटा होता है अतः बाहर से सामान्यतः दिखाई नहीं देता। सामान्यतः लड़कियों का स्वर उच्चतारत्व वाला होता है जबकि लड़कों का स्वर गहरा होता है। किशोर लड़कों में कभी-कभी स्वरयंत्र की पेशियों में अनियंत्रित वृद्धि हो जाती है और आवाज़ फटने या भरीने लगती है। यह स्थिति कुछ दिनों अथवा कुछ सप्ताह तक बनी रह सकती है जिसके बाद स्वर सामान्य हो जाता है।

स्वेद एवं तैलग्रंथियों की क्रियाशीलता में वृद्धि

किशोरावस्था में स्वेद एवं तैलग्रंथियों का स्राव बढ़ जाता है। इन ग्रंथियों की अधिक क्रियाशीलता के कारण कुछ व्यक्तियों के चेहरे पर फुंसियाँ और मुँहासे आदि हो जाते हैं।

स्वेदग्रंथि, तैलग्रंथि तथा लारग्रंथि जैसी कुछ ग्रंथियाँ अपना स्त्राव वाहियों द्वारा स्त्रावित करती हैं। अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हार्मोनों को सीधे रुधिर प्रवाह में निर्मोचित करती हैं। इसलिए इन्हें नलिका-विहीन ग्रंथियाँ भी कहते हैं।

जनन अंगों का विकास

पिछले अध्याय में चित्र 6.1 एवं 6.3 में दर्शाए गए मानव जननांगों का पुनरावलोकन कीजिए। यौवनारम्भ में नर जननांग, जैसे कि वृषण एवं शिश्न, पूर्णतः विकसित हो जाते हैं। वृषण से शुक्राणुओं का उत्पादन भी प्रारंभ हो जाता है। लड़कियों में अंडाशय साइज़ में वृद्धि हो जाती है तथा अंड परिपक्व होने लगते हैं। अंडाशय से अंडाणुओं का निर्मोचन भी प्रारंभ हो जाता है।

मानसिक, बौद्धिक प्राप्त होना एवं संवेदनात्मक परिपक्वता

किशोरावस्था व्यक्ति के सोचने के ढंग में परिवर्तन की अवधि भी है। पहले की अपेक्षा किशोर अधिक स्वतंत्र एवं अपने प्रति अधिक सचेत होता है। उनमें बौद्धिक विकास भी होता है तथा वे सोचने-विचारने में काफी समय लेते हैं। वास्तव में किसी व्यक्ति के जीवन में यह वह समय है जब उसके मस्तिष्क की सीखने की क्षमता सर्वाधिक होती है। कभी-कभी, यद्यपि, किशोर शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों के प्रति अपने आपको ढालने हेतु प्रयास करता हुआ स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है। परन्तु किशोर होने के नाते आपको समझना चाहिए कि असुरक्षित महसूस करने का कोई कारण नहीं है। ये परिवर्तन प्राकृतिक हैं जो शारीरिक वृद्धि के कारण उत्पन्न हो रहे हैं।

7.3 गौण लैंगिक लक्षण

आप अध्याय 6 में पढ़ चुके हैं कि वृषण एवं अंडाशय जनन अंग हैं। वे युग्मक अर्थात शुक्राणु एवं अंडाणु उत्पन्न करते हैं। युवावस्था में लड़कियों में स्तनों का विकास होने लगता है तथा लड़कों के चेहरे पर बाल उगने लगते हैं अर्थात् दाढ़ी-मूँछ आने लगती है। ये लक्षण क्योंकि लड़कियों को लड़कों से पहचानने में सहायता करते हैं अतः इन्हें गौण लैंगिक लक्षण कहते हैं। लड़कों के सीने पर भी बाल आ जाते हैं। लड़कों एवं लड़कियों दोनों में ही बगल एवं जाँघ के ऊपरी भाग अथवा प्यूबिक क्षेत्र में भी बाल आ जाते हैं।

किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन हार्मोन द्वारा नियंत्रित होते हैं। हार्मोन रासायनिक पदार्थ हैं। यह अंत:लावी ग्रंथियों अथवा अंत: स्त्रावी तंत्र द्वारा स्रावित किए जाते हैं। यौवनारम्भ के साथ ही वृषण पौरुष हार्मोन अथवा टेस्टोस्टेरॉन का स्त्रवण प्रारम्भ कर देता है। यह लड़कों में परिवर्तनों का कारक है जिनके बारे में आपने अभी-अभी पढ़ा है। उदाहरण के लिए चेहरे पर बालों का आना। लड़कियों में यौवनारम्भ के साथ ही अंडाशय स्त्री हार्मोन अथवा एस्ट्रोजन उत्पादित करना प्रारम्भ कर देता है जिससे स्तन विकसित हो जाते हैं। दुग्धस्रावी ग्रंथियाँ अथवा दुग्ध ग्रंथियाँ स्तन के अंदर विकसित होती हैं। इन हार्मोनों के उत्पादन का नियंत्रण एक अन्य हार्मोन द्वारा किया जाता है जो पीयूष ग्रंथि अथवा पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्त्रावित किया जाता है।

7.4 जनन प्रकार्य प्रारम्भ करने में हार्मोन की भूमिका

अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हार्मोन रुधिरप्रवाह में स्स्रावित करती हैं जिससे वह शरीर के विशिष्ट भाग अथवा लक्ष्य-स्थल तक पहुँच सकें। लक्ष्य-स्थल हार्मोन के प्रति अनुक्रिया करता है। हमारे शरीर में अनेक अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हैं। वृषण एवं अंडाशय लैंगिक हार्मोन स्स्रावित करते हैं। आपने अभी-अभी पढ़ा है कि यह हार्मोन गौण लैंगिक लक्षणों के लिए उत्तरदायी है। लैंगिक हार्मोन भी पीयूष ग्रंथि द्वारा स्त्रावित हार्मोन के नियंत्रण में हैं (चित्र 7.3)। पीयूष ग्रंथि अनेक हार्मोन स्त्रावित करती है। उनमें से एक हार्मोन अंडाशय में अंडाणु एवं वृषण में शुक्राणु के परिपक्व होने को नियंत्रित करता है।

7.5 मानव में जनन-काल की अवधि

जब किशोरों के वृषण तथा अंडाशय युग्मक उत्पादित करने लगते हैं तब वे जनन के योग्य हो जाते हैं। युग्मक की परिपक्वता एवं उत्पादन की क्षमता पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक अवधि तक रहती है।

स्त्रियों में जननावस्था का प्रारम्भ यौवनारम्भ (10 से 12 वर्ष की आयु) से हो जाता है तथा सामान्यतः 45 से 50 वर्ष की आयु तक चलता रहता है। यौवनारम्भ पर अंडाणु परिपक्व होने लगते हैं। अंडाशयों में एक अंडाणु परिपक्व होता है तथा लगभग 28 से 30 दिनों के अंतराल पर किसी एक अंडाशय द्वारा निर्मोचित होता है। इस अवधि में गर्भाशय की दीवार मोटी हो जाती है जिससे वह अंडाणु के निषेचन के पश्चात् युग्मनज को ग्रहण कर सके। जिसके फलस्वरूप गर्भधारण होता है। यदि अंडाणु का निषेचन नहीं हो पाता तब उस स्थिति में अंडाणु तथा गर्भाशय का मोटा स्तर उसकी रुधिर वाहिकाओं सहित निस्तारित हो जाता है। इससे स्त्रियों में रक्तस्त्राव होता है जिसे ऋतुस्त्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं। ऋतुस्राव लगभग 28 से 30 दिन में एक बार होता है। पहला ऋतुस्राव यौवनारम्भ में होता है जिसे रजोदर्शन कहते हैं। लगभग 45 से 50 वर्ष की आयु में ऋतुस्त्राव होना रुक जाता है। ऋतुस्त्राव के रुक जाने को रजोनिवृत्ति कहते हैं। प्रारंभ में ऋतुस्राव चक्र अनियमित हो सकता है तथा उसके नियमित होने में कुछ समय लग सकता है।

ऋतुस्त्राव चक्र का नियंत्रण हार्मोन द्वारा होता है। इस चक्र में अंडाणु का परिपक्व होना, इसका निर्मोचन, गर्भाशय की दीवार का मोटा होना एवं निषेचन न होने की स्थिति में उसका टूटना शामिल है। यदि अंडाणु का निषेचन हो जाता है तो वह विभाजन करता है तथा गर्भाशय में विकास के लिए स्थापित हो जाता है जैसा कि आप पिछले अध्याय में पढ़ चुके हैं (चित्र 6.8)।

7.6 संतति का लिंग-निर्धारण किस प्रकार होता है?

लड़का अथवा लड़की?

निषेचित अंडाणु अथवा युग्मनज में, जन्म लेने वाले शिशु के लिंग निर्धारण का संदेश होता है। यह संदेश निषेचित अंडाणु में धागे-सी संरचना अर्थात गुणसूत्रों में निहित होता है। गुणसूत्र प्रत्येक कोशिका के केंद्रक में उपस्थित होते हैं। सभी मनुष्यों की कोशिकाओं के केन्द्रक में 23 जोड़े गुणसूत्र पाए जाते हैं। इनमें से 2 गुणसूत्र (1 जोड़ी) लिंग-सूत्र हैं जिन्हें X एवं Y कहते हैं। स्त्री में दो X गुणसूत्र होते हैं जबकि पुरुष में एक X तथा एक Y गुणसूत्र होता है। युग्मक (अंडाणु तथा शुक्राणु) में गुणसूत्रों का एक जोड़ा होता • है। अनिषेचित अंडाणु में सदा एक X गुणसूत्र होता है। परन्तु शुक्राणु दो प्रकार के होते हैं जिनमें एक प्रकार में X गुणसूत्र एवं दूसरे प्रकार में Y गुणसूत्र होता है।

चित्र 7.4 को देखिए। जब X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु को निषेचित करता है तो युग्मनज में दो X गुणसूत्र होंगे तथा वह मादा शिशु में विकसित होगा। यदि अंडाणु को निषेचित करने वाले शुक्राणु में Y गुणसूत्र है तो युग्मनज नर शिशु में विकसित होगा।

अब आप जान गये हैं कि जन्म से पूर्व शिशु के लिंग का निर्धारण उसके पिता के लिंग गुणसूत्रों द्वारा किया जाता है। यह धारणा कि बच्चे के लिंग के लिए उसकी माँ उत्तरदायी है, पूर्णतः निराधार है एवं अन्यायसंगत है।

7.7 लिंग हार्मोन के अतिरिक्त अन्य हार्मोन

चित्र 7.3 का पुनः अवलोकन कीजिए। पीयूष ग्रंथि द्वारा स्स्रावित हार्मोन जननांगों को उनके हार्मोन उत्पन्न करने के लिए उद्दीपित करते हैं। आप पढ़ ही चुके है कि पीयूष ग्रंथि एक अंतःस्त्रावित ग्रंथि है जो मस्तिष्क से जुड़ी होती है।

पीयूष ग्रंथि, वृषण एवं अंडाशय के अतिरिक्त हमारे शरीर में थायरॉइड, अग्न्याशय एवं एड्रिनल (अधिवृक्क) जैसी कुछ अन्य अंतःस्रावी ग्रंथियाँ भी है (चित्र 7.5)।

बूझो और पहेली को याद है कि एक बार जब वह अपनी डॉक्टर बुआ के यहाँ गए थे तब उन्होंने वहाँ काका नाम के एक लड़के को देखा था जिसका गला बहुत फूला हुआ एवं उभरा हुआ था। उनकी बुआ ने उन्हें बताया कि काका ‘गॉयटर’ नामक व्याधि से ग्रस्त है जो थायरॉइड ग्रंथि का रोग है। काका की थायरॉइड ग्रंथि थायरॉक्सिन हार्मोन का उत्पादन नहीं कर रही थी। उनकी बुआ ने यह भी बताया कि उनके फूफाजी मधुमेह से पीड़ित हैं क्योंकि उनका अग्न्याशय इन्सुलिन हार्मोन का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं कर रहा है। बूझो एवं पहेली ने उनके दवाखाने में टँगे चार्ट में दर्शाए गये एड्रिनल ग्रंथि के विषय में पूछा। उनकी बुआ ने उन्हें बताया कि एड्रिनल ग्रंथि ऐसे हार्मोन स्त्रावित करती है जो रुधिर में नमक की मात्रा को संतुलित करता है। एड्रिनल एड्रिनेलिन नामक हार्मोन का स्त्रवण भी करती हैं। एड्रिनेलिन क्रोध, चिंता एवं उत्तेजना की अवस्था में तनाव के संयोजन का कार्य करता है।

थायरॉइड एवं एड्रिनल ग्रंथि पीयूष ग्रंथि द्वारा स्त्रावित हार्मोन के माध्यम से प्राप्त आदेश के अनुसार ही अपने हार्मोन का स्त्रवण करती है। पीयूष ग्रंथि वृद्धि हार्मोन भी स्स्रावित करती है जो व्यक्ति की सामान्य वृद्धि के लिए आवश्यक है।

7.8 कीट एवं मेंढक में जीवन-चक्र पूर्ण करने में हार्मोन का योगदान

आप मेंढक के जीवन-चक्र के विषय में तो पढ़ ही चुके हैं। टैडपोल को वयस्क मेंढक बनने के लिए अनेक चरणों से गुजरना पड़ता है (अध्याय 6)। लारवा से वयस्क बनने के इस परिवर्तन को कायांतरण (चित्र 6.10) कहते हैं। कीटों में कायांतरण का नियंत्रण कीट हार्मोन द्वारा होता है। मेंढक में थायरॉइड द्वारा स्त्रावित हार्मोन थायरॉक्सिन इसका नियमन करता है। थायरॉक्सिन के उत्पादन के लिए जल में आयोडीन की उपस्थिति आवश्यक है। यदि जल में जिसमें टैडपोल वृद्धि कर रहे हैं, पर्याप्त मात्रा में आयोडीन नहीं है तो टैडपोल वयस्क मेंढक में परिवर्धित नहीं हो सकते।

क्रियाकलाप 7.3

किसी पत्रिका अथवा डॉक्टर से सूचना एकत्र कर आयोडीनयुक्त नमक के उपयोग पर एक नोट तैयार कीजिए। आप इसकी जानकारी इंटरनेट पर भी देख सकते हैं।

7.9 जननात्मक स्वास्थ्य

व्यक्ति का कायिक एवं मानसिक विसंगतिमुक्त होना उस व्यक्ति का स्वास्थ्य कहलाता है। किसी भी आयु के व्यक्ति के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उसे संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। व्यक्ति को वैयक्तिक स्वच्छता एवं सफ़ाई का नियमित रूप से पालन एवं पर्याप्त शारीरिक व्यायाम भी करना चाहिए।

किशोरावस्था में, जब शरीर वृद्धि करता है तो उपरोक्त बातें और भी अधिक आवश्यक हो जाती हैं।

किशोर की पोषण आवश्यकताएँ

किशोरावस्था तीव्र वृद्धि एवं विकास की अवस्था है। अतः किसी भी किशोर को आहार नियोजन अत्यंत सावधानीपूर्वक करना चाहिए। आप पढ़ ही चुके हैं कि संतुलित आहार क्या है। स्मरण कीजिए कि संतुलित आहार का अर्थ है भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, विटामिन एवं खनिज का पर्याप्त मात्रा में समावेश। हमारा भारतीय भोजन जिसमें रोटी, चावल, दाल एवं सब्जियाँ होती हैं, एक संतुलित आहार है। दूध अपने आप में संतुलित भोजन है। फल भी हमें पोषण देते हैं। शिशुओं को माँ के दूध से सम्पूर्ण पोषण मिलता है जिसकी उन्हें जरूरत है।

लोह (आयरन) तत्त्व रुधिर का निर्माण करता है तथा लोह-प्रचुर खाद्य जैसे कि पत्तीदार सब्जियाँ, गुड़, मांस, संतरा, आँवला इत्यादि किशोर के लिए अच्छे खाद्य हैं।

अपने दोपहर एवं रात्रि के भोजन के खाद्य पदार्थों की जाँच कीजिए। क्या भोजन संतुलित एवं पोषक है? क्या इसमें ऐसे खाद्यान्न सम्मिलित हैं जो ऊर्जा प्रदान करते हैं तथा क्या इनमें दूध, मांस, नट एवं दालें भी शामिल हैं जो वृद्धि हेतु प्रोटीन प्रदान करते हैं? क्या इसमें वसा एवं शक्कर भी शामिल हैं जो ऊर्जा प्रदान करते हैं?

फल एवं सब्जियों का क्या स्थान है जो रक्षी भोजन हैं? चिप्स तथा पैक किए हुए अथवा डिब्बाबंद खाद्य यद्यपि स्वादिष्ट होते हैं परन्तु उन्हें नियमित भोजन के स्थान पर नहीं खाना चाहिए क्योंकि उनमें पोषक मात्रा पर्याप्त नहीं होती।

क्रियाकलाप 7.4

अपने मित्रों के साथ एक समूह बनाइए। उन खाद्य पदार्थों के नाम लिखिए जो आपने पिछले दिन (कल) नाश्ते, दोपहर के भोजन एवं रात्रिकालीन भोजन में खाए थे। उन खाद्य पदार्थों की पहचान कीजिए जो समुचित वृद्धि के लिए उत्तरदायी हैं। ‘जंक फूड’ की भी पहचान कीजिए जो आपने पिछले दिन खाया था।

क्रियाकलाप 7.5

चित्र 7.6 से प्रेरणा लेकर चार्ट अथवा पोस्टर बनाकर अपनी कक्षा में लगाइए जिससे आप किशोर की आहार संबंधी आवश्यकता के प्रति सचेत रहें। इसके लिए आप अपनी रचनात्मक शक्ति का प्रयोग कर इसे विज्ञापन के रूप में भी प्रदर्शित कर सकते हैं। आप इस विषय पर प्रतियोगिता का आयोजन भी कर सकते हैं।

व्यक्तिगत स्वच्छता

प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन एक बार स्नान करना चाहिए। यह किशोरों के लिए और भी आवश्यक है क्योंकि स्वेद ग्रंथियों की अधिक क्रियाशीलता के कारण शरीर से गंध आने लगती है। शरीर के सभी भागों को स्नान करते समय भली प्रकार धोकर करना चाहिए। यदि सफ़ाई नहीं रखी गई तो जीवाणु संक्रमण होने का खतरा रहता है। लड़कियों को ऋतुस्राव के समय सफ़ाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उन्हें अपने ऋतुस्राव चक्र का ध्यान रखते हुए ऋतुस्त्राव के लिए तैयार रहना चाहिए। हमेशा साफ़ सैनेट्री नैपकिन अथवा घर पर तैयार किए गए कपड़े के पैड इत्यादि का उपयोग करें। आवश्यकतानुसार हर 4-5 घंटे में नैपकिन अथवा घर पर तैयार किए गए पैड को बदलें।

शारीरिक व्यायाम

ताजी हवा में टहलना एवं खेलना शरीर को चुस्त एवं स्वस्थ रखता है। सभी युवा/किशोर लड़के एवं लड़कियों को टहलना, व्यायाम करना एवं बाहर खेलना चाहिए।

प्रांतियाँ एवं असत्य अवधारणाएँ करें और न करें

अध्याय 6 एवं इस अध्याय में आपने मनुष्य के जनन संबंधी वैज्ञानिक तथ्य एवं सिद्धांतों के विषय में पढ़ा। ऐसी बहुत सी असत्य अवधारणाएँ प्रचलित हैं जिन्हें आपको जानकार किशोर होने के नाते छोड़ना चाहिए। उदाहरण के लिए, किशोरों के शारीरिक परिवर्तन संबंधी अनुभवों को लेकर अनेक भ्रांतियाँ एवं असत्य अवधारणाएँ हैं। इनमें से कुछ को नीचे दिया जा रहा है। अब आप इस संबंध में तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि यह ‘मिथ’ अथवा असत्य धारणा है जिनका कोई आधार नहीं है।

1. ऋतुस्राव के समय यदि कोई लड़की किसी लड़के को देखती है तो वह गर्भवती हो जाती है।

2. संतान के लिंग के लिए उसकी माँ उत्तरदायी है।

3. ऋतुस्राव की अवस्था में लड़की का रसोई का काम करना निषिद्ध है।

आपको ऐसे अन्य अनेक कथन या मिथ मिलेंगे जिनका कोई आधार नहीं है। उनको उखाड़ फेंकिए/छोड़ दीजिए।

क्रियाकलाप 7.6

अपनी कक्षा में उन सहपाठियों के आँकड़े एकत्र कीजिए जो नियमित रूप से व्यायाम करते हैं तथा उनके आँकड़े भी एकत्र कीजिए जो व्यायाम नहीं करते। क्या आपको उनकी चुस्ती एवं स्वास्थ्य में कोई अंतर दिखाई देता है? नियमित व्यायाम के लाभ पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

नशीली दवाओं (ड्रग्स) का ‘निषेध’ करें

किशोरावस्था व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक रूप से अधिक सक्रियता का समय है जो वृद्धिकाल का एक सामान्य भाग है। अतः भ्रमित अथवा असुरक्षित न महसूस करें। यदि कोई व्यक्ति आपको यह बताता है कि किसी ‘ड्रङ्ग’ (नशीली दवा) के सेवन से आप अच्छा अथवा तनावमुक्त महसूस करेंगे, तो आपको इसके लिए ‘न’ ही कहना चाहिए जब तक वह दवा डॉक्टर द्वारा न दी गई हो। ड्रग्स नशीले पदार्थ हैं जिनकी लत पड़ जाती है। यदि आप इन्हें एक बार लेते हैं तो आपको इन्हें बार-बार लेने की इच्छा होती है। परन्तु कालांतर में यह हानिकारक है। यह स्वास्थ्य एवं खुशी दोनों को ही बरबाद कर देते हैं।

आपने AIDS के विषय में तो अवश्य ही सुना होगा जो HIV नामक खतरनाक विषाणु (वायरस) द्वारा होता है। यह वायरस एक पीड़ित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में ड्रग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सीरिंज द्वारा भी जा सकता है। वायरस का संक्रमण दूसरे माध्यमों जैसे कि पीड़ित (रोगी) माँ से दूध द्वारा उसके शिशु में हो सकता है। HIV से पीड़ित व्यक्ति के साथ लैंगिक संपर्क स्थापित करने द्वारा भी इस रोग का संक्रमण हो सकता है।

किशोर द्वारा गर्भधारण

आप संभवतः जानते होंगे कि हमारे देश में विवाह की विधिसंगत (कानूनी) आयु लड़कियों के लिए 18 वर्ष एवं लड़‌कों के लिए 21 वर्ष है। इसका कारण है कि टीन-आयु (किशोर) लड़कियाँ/माँ शारीरिक एवं मानसिक रूप से मातृत्व के लिए तैयार नहीं होतीं। बाल विवाह (कम उम्र में विवाह) तथा मातृत्व से माँ एवं संतान दोनों में ही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इससे युवा स्त्रियों के लिए व्यवसाय के अवसरों में भी कमी आती है क्योंकि वे मातृत्व की जिम्मेदारी उठाने के लिए सक्षम नहीं होतीं। अतः वह मानसिक पीड़ा से ग्रस्त रहती हैं।

आपने क्या सीखा

• यौवनारम्भ होने पर व्यक्ति जनन के सक्षम हो जाता है। 11 वर्ष की आयु से 19 वर्ष तक की अवधि किशोरावस्था कहलाती है।

• यौवनारम्भ का प्रारम्भ होने पर जनन अंगों में वृद्धि होती है तथा शरीर के विभिन्न स्थानों पर बाल आने लगते हैं। लड़कियों में स्तन विकसित हो जाते हैं तथा लड़कों के चेहरे पर दाढ़ी-मूँछें आ जाती हैं। किशोरावस्था में स्वरयंत्र की वृद्धि होने के कारण लड़कों की आवाज फटने लगती है।

• किशोरावस्था में लंबाई में वृद्धि होती है।

• यौवनारम्भ एवं जनन अंगों का परिपक्व होना हार्मोनों द्वारा नियंत्रित होता है।

• हार्मोन अंतःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित पदार्थ हैं जो रुधिर में सीधे पहुँचते हैं।

• पीयूष ग्रंथि हार्मोन स्रावित करते हैं जैसे कि वृद्धि हार्मोन, तथा अन्य ग्रंथियों वृषण, अंडाशय, थायरॉइड तथा एड्रिनेल को हार्मोन स्रावित करने के लिए उद्दीपित करते हैं। अग्न्याशय इन्सुलिन का, थायरॉइड थाइरॉक्सिन का तथा एड्रिनल एड्रिनेलिन हार्मोन का उत्पादन करते हैं।

• टेस्टोस्टेरॉन नर हार्मोन है तथा एस्ट्रोजन मादा हार्मोन है। गर्भाशय की दीवार निषेचित अंडाणु (युग्मनज) को ग्रहण के लिए अपने आपको तैयार करती है। निषेचन न होने की स्थिति में गर्भाशय की दीवार की आंतरिक सतह निस्तारित होकर शरीर से बाहर रक्त के साथ प्रवाहित हो जाती है। इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं।

• अजन्मे शिशु का लिंग निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि युग्मनज में XX गुणसूत्र हैं अथवा XY गुणसूत्र ।

• किशोरावस्था में संतुलित आहार करना तथा व्यक्तिगत स्वच्छता का पालन करना महत्त्वपूर्ण है।

यह भी पढ़ें : जंतुओं में जनन : अध्याय 6

अभ्यास

1. शरीर में होने वाले परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी अंत: स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित पदार्थ का क्या नाम है?
Ans.
हार्मोन।

2. किशोरावस्था को परिभाषित कीजिए।
Ans.
जीवन के जिस दौर में शरीर में ऐसे बदलाव होते हैं जिनसे व्यक्ति जनन परिपक्कता प्राप्त करता है, उस दौर को किशोरावस्था कहते हैं।

3. ऋतुस्राव क्या है? वर्णन कीजिए।
Ans.
महिलाओं में किसी एक अंडाशय से हर महीने एक परिपक्क अंडाणु बाहर निकलता है और फैलोपियन ट्यूब में पहुँचता है। उसके बाद गर्भधारण की तैयारी के लिए गर्भाशय की दीवार पर एक मोटी परत बन जाती है। यदि निषेचन नहीं होता है तो अंडाणु के साथ गर्भाशय की दीवार की इस मोटी परत को छोटे छोटे टुकड़ों में शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। इस के परिणामस्वरूप योनि से रक्तस्राव होता है, जिसे ऋतुस्राव (मॅस्टुएशन) कहते हैं।

अथवा

स्त्रियों में जनन अवस्था की शुरुआत यौवनारंभ (10 से 12 वर्ष) की आयु से प्रारम्भ होता है, जो सामान्य रूप से प्रत्येक 28 से 30 दिनों के अंतराल पर किसी एक अंडाश्य द्वारा निमोचित होता है। इस चक्र की एक अवस्था में गर्भाशय से रुचिर प्रवाह होता है। इसको मासिक धर्म अथवा ऋतुस्नाव कहते हैं। इस चक्र में लिंग हार्मोन गर्भाशय की दीवार को अंडे के चिपकाने के लिए तैयार करते हैं। जब गर्भ धारण नहीं होता तो दीवार की तरह टूट जाती है और डिस्चार्ज हो जाती है। पहला ऋतुस्ताव यौवनारंभ में आरम्भ होता है, जिसे रजोधर्म कहते है। प्रारम्भ में ऋतुस्नाव अनियमित हो सकता है तथा उसके नियमित होने में कुछ समय लग सकता है।

4. यौवनारम्भ के समय होने वाले शारीरिक परिवर्तनों की सूची बनाइए।
Ans.
यौवनारंभ के समय होने वाले शारीरिक परिवर्तन

• लम्बाई में वृद्धि
• आकृति में बदलाव
• आवाज में बदलाव
• लैंगिक अंगों में परिपक्वता
• स्वेद और तैल ग्रंथियों की अधिक क्रियाशीलता
• मानसिक, बौद्धिक एवं भावनात्मक परिपक्वत्ता

5. दो कॉलम वाली एक सारणी बनाइए जिसमें अंत: स्रावी ग्रंथियों के नाम तथा उनके द्वारा स्रावित हार्मोन के नाम दर्शाए गए हों।
Ans.

अंतःस्त्रावी ग्रंथिस्त्रावित हार्मोन
पीयूष ग्रंथिथाइरोट्रापिक हार्मोन (TTH), वृद्धि हार्मोन
थाइरॉइडथॉइराक्सिन
अधिवृक्क (एड्रिनल)एड्रीनलीन
अग्याशयइन्सुलिन
वृषणटेस्टोस्टेरोन
अंडाशयएस्ट्रोजन

6 लिंग हार्मोन क्या हैं? उनका नामकरण इस प्रकार क्यों किया गया? उनके प्रकार्य बताइए।
Ans.
जो हॉर्मोन लैंगिक अंगों के काम को प्रभावित करते हैं और लैंगिक परिपकता के कारक होते हैं, उन्हें लैंगिक हॉर्मोन कहते हैं। इन हॉर्मोन के टार्गेट अंगों के कारण यह नाम दिया गया है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुष का लैंगिक हॉर्मोन है। यह शुक्राणु के उत्पादन को प्रभावित करता है और लड़कों में गौण लैंगिक लक्षणों के विकास को प्रभावित करता है। एस्ट्रोजेन महिला का लैंगिक हॉर्मोन है। यह अंडाणु के निर्मोचन को प्रभावित करता है और लड़‌कियों में गोण लैंगिक लक्षणों के विकास को प्रभावित करता है।

7. सही विकल्प चुनिए

(क) किशोर को सचेत रहना चाहिए कि वह क्या खा रहे हैं, क्योंकि

(i) उचित भोजन से उनके मस्तिष्क का विकास होता है।

(ii) शरीर में तीव्रगति से होने वाली वृद्धि के लिए उचित आहार की आवश्यकता होती है।

(iii) किशोर को हर समय भूख लगती रहती है।

(iv) किशोर में स्वाद कलिकाएँ (ग्रंथियाँ) भलीभाँति विकसित होती है।

Ans. (ii) शरीर में तीव्रगति से होने वाली वृद्धि के लिए उचित आहार की आवश्यकता होती है।

(ख) स्त्रियों में जनन आयु (काल) का प्रारम्भ उस समय होता है जब उनके :

(i) ऋतुस्राव प्रारम्भ होता है।

(ii) स्तन विकसित होना प्रारम्भ करते हैं।

(iii) शारीरिक भार में वृद्धि होने लगती है।

(iv) शरीर की लंबाई बढ़ती है।

Ans. (i) ऋतुस्राव प्रारम्भ होता है।

(ग) निम्न में से कौन सा आहार किशोर के लिए सर्वोचित है :

(i) चिप्स, नूडल्स, कोक

(ii) रोटी, दाल, सब्जियाँ

(iii) चावल, नूडल्स, बर्गर

(iv) शाकाहारी टिक्की, चिप्स तथा लेमन पेय

Ans. (ii) रोटी, दाल, सब्जियाँ

8. निम्न पर टिप्पणी लिखिए

(1) ऐडॅम्स ऐपॅल
Ans. यौवनारंभ में स्वर यंत्र अथवा लैरीन्कस में वृद्धि का प्रारंभ होता है। लड़कों का स्वरयंत्र विकसित होकर अपेकक्षाकृत बड़ा हो जाता है। लड़कों में बढ़ता हुआ स्वरयंत्र गले के सामने की ओर सुस्पष्ट उभरे भाग के रूप में दिखाई देता है जिसे ऐडॅम्स ऐपॅल अधवा कंठमणि कहते हैं।

(ii) गौण लैंगिक लक्षण
Ans. जिन लक्षणों के कारण नर और मादा में भिन्नता दिखाई देती है उन्हें गोण लैंगिक लक्षण कहते हैं। लड़कों में गौण लैंगिक लक्षणः चेहरे पर दाढ़ी मूँछ, भारी आवाज और छाती पर बाल

• लड़कियों में गौण लैंगिक तक्षणः स्तनों का बड़ा होना और पतली आवाज

• लड़के और लड़कियों में कुछ समान लक्षणः बगलों में और प्यूबिक क्षेत्र में बाल

(iii) गर्भस्थ शिशु में लिंग निर्धारण
Ans. मनुष्य के युग्मक (गैमेट) में 23 क्रोमोसोम होते हैं, यानि कायिक कोशिकाओं में क्रोमोसोम की संख्या के आधे। इस तरह से एक शुक्राणु में 23 वाँ क्रोमोसोम या तो X होगा या Y होगा। लेकिन अंडाणु में 23 वाँ क्रोमोसोम हमेशा X क्रोमोसोम होगा।

• यदि X क्रोमोसोम वाले शुक्राणु से अंडाणु का निषेचन होता है तो उसके बाद बनने वाले जाइगोट से लड़की का जन्म होगा।

• यदि Y क्रोमोसोम वाले शुक्राणु से अंडाणु का निषेचन होता है तो उसके बाद बनने वाले जाइगोट से लड़‌के का जन्म होगा।

अथवा

सभी मनुष्यों की कोशिकाओं के केंद्रक में 23 जोड़े गुणसूत्र पाए जाते है। इनमें से दो गुणसूत्र लिंग – सूत्र है जिन्हें X एवं Y कहते हैं। स्त्री में दो X गुणसूत्र होते हैं जबकि पुरुष में एक X अथवा एक Y गुणसूत्र होता है। युग्मक (अंडाणु तथा शुक्राणु) में गुणसूत्रों का एक जोड़ा होता है। अनिषेचित अंडाणु में सदा एक × गुणसूत्र होता है। परन्तु शुक्राणु दो प्रकार के होते तो जिनमें एक प्रकार में x गुणसूत्र एवं दूसरे प्रकार में Y गुणसूत्र होता है। जब X गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु को निषेचित करता है तो युग्मनज में दो x गुणसूत्र होंगे तथा वह मादा शिशु में विकसित होगा यदि अंडाणु को निषेचित करने वाले शुक्राणु में ४ गुणसूत्र है तो युग्मनज नर शिशु में विकसित होगा। जन्म से पूर्व शिशु के लिंग का निर्धारण उसके पिता के लिंग गुणसूत्रों द्वारा किया जाता है। यह धारणा कि बच्चे के लिंग के लिए उसकी माँ उत्तरदायी है. पूर्णत निराधार हे एवं अन्यायसंगत है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

Leave a Comment