मूल संविधान में अधिकरण के संबंध में उपबंध नहीं हैं। संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम 1976 से एक नया भाग XIV- क जोड़ा गया। इस भाग को ‘अधिकरण’ नाम दिया गया। इसमें दो अनुच्छेद हैं- अनुच्छेद 323 क, जो कि प्रशासनिक अधिकरणों से संबंधित है तथा अनुच्छेद 323 ख, जो कि अन्य मामलों के अधिकरणों से संबंधित है।
प्रशासनिक अधिकरण
अनुच्छेद 323क, संसद को यह अधिकार देता है कि वह केंद्र व राज्य की लोक सेवाओं, स्थानीय निकायों, सार्वजनिक निगमों तथा अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती व सेवा शर्तों से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना कर सकती है। अन्य शब्दों में, अनुच्छेद 323 क संसद को यह अधिकार देता है कि वह सेवा मामलों से संबंधित विवादों को नागरिक न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायक्षेत्र से अलग कर, प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत कर सके।
अनुच्छेद 323 क का अनुकरण करते हुए, संसद ने प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम 1985 पारित किया। यह अधिनियम केंद्र सरकार को एक केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और राज्य प्रशासनिक अधिकरण के गठन का अधिकार देता है। यह अधिनियम किसी पीड़ित लोक सेवक को शीघ्र व कम खर्चीला न्याय प्रदान कराने के संबंध में एक नया अध्याय जोड़ता है।
केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट)
केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (सी.ए.टी.) अपनी प्रधान खंडपीठ दिल्ली व विभिन्न राज्यों में पूरक खंडपीठों के साथ 1985 में गठित हुआ। वर्तमान में इसकी 17 खंडपीठें हैं। इनमें से 15 मुख्य न्यायालयों की प्रधान पीठों में और, दो अन्य जयपुर व लखनऊ’ से संचालित हैं। ये पीठें मुख्य न्यायालयों की अन्य सीटों पर सर्किट बैठकें भी करती हैं।
केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले लोक सेवकों की भर्ती व सेवा संबंधी मामलों को देखता है। इसके अधिकार क्षेत्र में अखिल भारतीय सेवाओं, केंद्रीय लोक सेवाओं, केंद्र के अधीन नागरिक पदों और सैन्य सेवाओं के सिविल कर्मचारियों को सम्मिलित किया गया है। हालांकि सैन्य सेवाओं के सदस्य व अधिकारी, उच्चतम न्यायालय के कर्मचारी और संसद के सचिवालय कर्मचारियों को इसमें सम्मिलित नहीं किया गया है।
केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) एक बहुसदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष तथा सदस्य होते हैं। पहले कैट के एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा सदस्य होते थे। केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 में 2006 में संशोधन कर के कैट के सदस्यों की हैसियत उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बराबर कर दी गई है। वर्तमान (2013) में, कैट में अध्यक्ष का एक पद तथा सदस्यों के 65 पद स्वीकृत हैं।
वे न्यायिक व प्रशासनिक दोनों संस्थानों से लिए जाते हैं और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं। इनका कार्यकाल पांच वर्ष अथवा 65 वर्ष की उम्र तक (अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के मामले में) तथा 62 वर्ष (सदस्यों के मामले में) जो भी पहले हो, होता है।
केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, 1908 की सिविल प्रक्रिया संहिता कानून की प्रक्रियाओं से बाध्य नहीं है। ये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित हैं। ये सिद्धांत केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के व्यवहार को लचीला बनाते हैं। अभ्यर्थी को केवल 50 रु. का नाममात्र शुल्क देना होता है। वादी स्वयं अथवा अपने वकील के माध्यम से उपस्थित हो सकता है।
मूल रूप से किसी अधिकरण के आदेश के विरुद्ध कोई याचिका केवल उच्चतम न्यायालय में ही दी जा सकती है उच्च न्यायालय में नहीं। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने चंद्रकुमार मामले (1997) में निर्णय दिया कि उच्च न्यायालय के न्यायक्षेत्र पर यह प्रतिबंध असंवैधानिक है और न्यायिक समीक्षा संविधान की मूल संरचना है। केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के आदेशों के विरुद्ध,संबंधित उच्च न्यायालय की खंडपीठ में भी याचिका दायर की जा सकती है। इसके फलस्वरूप अब यह संभव नहीं है कि कोई पीड़ित लोक सेवक बिना संबंधित उच्च न्यायालय में गए बिना सीधे उच्चतम न्यायालय में याचिका दे सके।
राज्य प्रशासनिक अधिकरण
संबंधित राज्य सरकार की विशेष मांग पर प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम 1985 केंद्र को राज्य प्रशासनिक अधिकरण गठित करने की शक्ति प्रदान करता है।
अब तक (2013) आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलानाडु, पश्चिम बंगाल तथा केरल में राज्य प्रशासनिक अधिकरणों (सैट) की स्थापना की जा चुकी है। हालांकि मध्य प्रदेश, तमिलनाडु तथा हिमाचल प्रदेश अधिकरणों को समाप्त कर दिया गया है।
केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के ही समान राज्य प्रशासनिक – अधिकरण भी अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले, राज्य सरकार के कर्मचारियों की भर्ती व सेवा मामलों को देखता है।
राज्य प्रशासनिक अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति संबंधित राज्यपाल की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
इस अधिनियम में दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना का भी उपबंध है। संयुक्त अधिकरण उन राज्यों के प्रशासनिक अधिकरण के समान ही अधिकार क्षेत्र तथा शक्तियों का उपयोग करता है।
संयुक्त राज्य अधिकरण के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा संबंधित राज्यों के राज्यपालों की सिफारिश पर होती है।
तालिका 60.1 केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की पीठ के नाम एवं उनका न्याय क्षेत्र
क्रमांक | न्यायपीठ | पीठ का न्यायिक क्षेत्र |
1. | प्रधान न्यायपीठ, दिल्ली | दिल्ली |
2. | इलाहाबाद पीठ | उत्तर प्रदेश (लखनऊ पीठ के अंतर्गत आने वाले जिलों को छोड़कर) |
3. | लखनऊ पीठ | उत्तर प्रदेश (इलाहाबाद पीठ के अंतर्गत आने वाले जिलों को छोड़कर) |
4. | कटक पीठ | ओडीशा |
5. | हैदराबाद पीठ | आंध्र प्रदेश |
6. | बैंगलोर पीठ | कर्नाटक |
7. | मद्रास पीठ | तमिलनाडु व पुडुचेरी |
8. | एर्नाकुलम पीठ | केरल और लक्षद्वीप |
9. | बंबई पीठ | महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली, दमन व दीव |
10. | अहमदाबाद पीठ | गुजरात |
11. | जोधपुर पीठ | राजस्थान (जयपुर पीठ के अंतर्गत आने वाले जिलों को छोड़कर) |
12. | जयपुर पीठ | राजस्थान (जोधपुर, पीठ के अंतर्गत आने वाले जिलों को छोड़कर) |
13. | चंडीगढ़ पीठ | जम्मू व कश्मीर, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़ |
14. | जबलपुर पीठ | मध्य प्रदेश |
15. | पटना पीठ | बिहार |
16. | कलकत्ता पीठ | पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह |
17. | गुवाहाटी पीठ | असम, मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा |
तालिका 60.2 कैट की पीठों की सर्किट सिटिंग्स
क्रम संख्या | पीठ | सर्किट सिटिंग |
1. | इलाहाबाद पीठ | नैनीताल |
2. | कलकत्ता पीठ | पोर्ट ब्लेयर, गंगटोक |
3. | चंडीगढ़ पीठ | शिमला, जम्मू |
4. | मद्रास पीठ | पुडुचेरी |
5. | गुवाहाटी पीठ | शिलांग, ईटानगर, कोहिमा, अगरतला, इम्फाल |
6. | नवलपुर पीठ | इंदौर, ग्वालियर, बिलासपुर |
7. | बम्बई पीठ | नागपुर, औरंगाबाद, पणजी |
8. | पटना पीठ | राँची |
तालिका 60.3 न्यायाधिकरणों से सम्बन्धित अनुच्छेद, एक नजर में
अनुच्छेद | विषय-वस्तु |
323 A | प्रशासनिक न्यायाधिकरण |
323 B | अन्य मामलों के लिए न्यायाधिकरण |
अन्य मामलों के लिए अधिकरण
अनुच्छेद 323 ख संसद तथा राज्य विधायिका को निम्नलिखित मामलों से संबंधित मामलों में न्याय करने के लिए अधिकरण बनाने का अधिकार देता है:
1. कर संबंधी
2. विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात
3. औद्योगिक और श्रम
4. भूमि सुधार
5. नगर संपत्ति की अधिकतम सीमा
6. संसद व राज्य विधायिका के लिए निर्वाचन
7. खाद्य सामग्री
8. किराया और किराएदारी अधिकार
अनुच्छेद 323क तथा 323ख में तीन विभेद हैं:
1. जहां अनुच्छेद 323क के अंतर्गत केवल लोकसेवाओं से संबंधित मामलों के लिए अधिकरण गठित किया जाता है, अनुच्छेद 323ख में अन्य मामलों (उपरोक्त वर्णित) के लिए अधिकरण गठित किया जाता है।
2. अनुच्छेद 323क के अनुसार, केवल संसद ही अधिकरण का गठन करती है, परंतु 323ख के अंतर्गत संसद व राज्य विधायिका अपने अधिकार क्षेत्र से संबंधित अधिकरण का गठन कर सकते हैं।
3. अनुच्छेद 323क के अंतर्गत, केंद्र अथवा प्रत्येक राज्य अथवा दो या दो से अधिक राज्यों के लिए केवल एक ही अधिकरण का गठन किया जा सकता है। इसमें शासन क्रम का कोई प्रश्न नहीं है, जबकि अनुच्छेद 323ख के अंतर्गत अधिकरण का गठन एक पदानुक्रम में किया जा सकता है।
चंद्रकुमार मामले (1997) में उच्चतम न्यायालय ने इन दो अनुच्छेदों के उपरोक्त उपबंधों को, जिन्हें असंवैधानिक करार दिया गया, उन्हें उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायक्षेत्र से बाहर कर दिया गया है। हालांकि अब इन अधिकरणों के आदेशों के खिलाफ न्यायिक उपचार की व्यवस्था उपलब्ध है।
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