संचार माध्यमों को समझना : अध्याय 6

टेलीविजन पर आपका पसंदीदा प्रोग्राम कौन-सा है? रेडियो पर आपको क्या सुनना अच्छा लगता है? प्रायः आप कौन-से अखबार या पत्रिकाएँ पढ़ते हैं? क्या आप इंटरनेट पर सर्फिग करते हैं? आपको उसमें सबसे उपयोगी क्या लगता है? क्या आप उस एक शब्द को जानते हैं, जो प्रायः सामूहिक रूप से रेडियो, टी.वी., अखबार, इंटरनेट और संचार के अन्य साधनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है? यह शब्द है ‘मीडिया’। इस पाठ में आप मीडिया, यानी संचार माध्यमों के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे। आप जानेंगे कि यह कैसे काम करता है और कैसे हमारे प्रतिदिन के जीवन को प्रभावित करता है। क्या आप किसी एक ऐसी चीज़ को याद कर सकते हैं, जो आपने इस सप्ताह, संचार माध्यमों से सीखी हो?

स्थानीय मेले की दुकान से लेकर टी.वी. के कार्यक्रम तक, जो आप देखते हैं; इन सबको संचार माध्यम यानी मीडिया कहा जा सकता है। मीडिया अंग्रेजी के ‘मीडियम’ शब्द का बहुवचन है और इसका तात्पर्य उन विभिन्न तरीकों से है, जिनके द्वारा हम समाज में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। मीडियम का अर्थ है, माध्यम, क्योंकि मीडिया का संदर्भ संचार माध्यमों से है, इसीलिए हर चीज़, जैसे – फ़ोन पर बात करने से लेकर टी.वी. पर शाम के समाचार सुनने तक को मीडिया कहा जा सकता है। टी.वी., रेडियो और अखबार-संचार माध्यमों के ऐसे रूप हैं, जिनकी पहुँच लाखों लोगों तक है, देश और विदेश के जनसमूह तक है, इसीलिए इन्हें जनसंचार माध्यम या ‘मास-मीडिया’ कहते हैं।

संचार माध्यम और तकनीक

आपके लिए संभवतः संचार माध्यमों के बिना अपने जीवन की कल्पना करना भी कठिन होगा। लेकिन केबल टी.वी. और इंटरनेट के विस्तृत उपयोग हाल ही में शुरू हुए हैं। इन्हें प्रचलन में आए अभी बीस वर्ष भी नहीं हुए हैं। जनसंचार माध्यमों के लिए प्रयोग में आने वाली प्रौद्योगिकी निरंतर बदलती रहती है।

अखबार, टेलीविजन और रेडियो लाखों लोगों तक पहुँच सकते हैं, क्योंकि इनमें एक विशिष्ट प्रकार की तकनीक का उपयोग किया जाता है। हम अखबारों और पत्रिकाओं की छपे हुए माध्यम के रूप में और टी.वी. तथा रेडियो की इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के रूप में भी चर्चा करते हैं। आपके विचार में समाचारपत्रों को छपे हुए माध्यम क्यों कहा जाता है? आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा कि ये नाम संचार माध्यमों द्वारा प्रयोग में लाई जा रही तकनीक से संबंधित हैं। नीचे दिए गए चित्रों से आपको पता चलेगा कि पिछले सालों में जनसंचार माध्यम के इस्तेमाल में लाई जा रही तकनीक किस प्रकार बदली है और आज भी बदलती जा रही है।

तकनीक तथा मशीनों को बदल कर अत्याधुनिक बनाने से संचार माध्यमों को अधिक लोगों तक पहुँचने में मदद मिलती है। इससे ध्वनि और चित्रों की गुणवत्ता में सुधार आता है, लेकिन तकनीक इससे भी अधिक कुछ करती है। यह हमारे जीवन के बारे में सोचने के ढंग में परिवर्तन लाती है। उदाहरण के लिए आज हमारे लिए टेलीविजन के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। टेलीविजन के कारण हम अपने-आपको विश्व-समाज का एक सदस्य समझने लगे हैं।

टेलीविजन में प्रदर्शित चित्र सेटेलाइट और केबल के विस्तृत जाल के माध्यम से अत्यंत सुदूर क्षेत्रों तक पहुँचाए जाते हैं। इसके कारण हम संसार के अन्य भागों के समाचार और मनोरंजक कार्यक्रम देख पाते हैं। आप टी.वी. पर जो कार्टून देखते हैं वे अधिकांशतः जापान या संयुक्त राज्य अमेरिका के होते हैं। अब हम चेन्नई या जम्मू में बैठकर अमेरिका में फ्लोरिडा के समुद्री तूफ़ान की छवियों को देख सकते हैं। टेलीविजन ने दुनिया को बहुत पास ला दिया है।

संचार माध्यम और धन

जनसंचार द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली विभिन्न तकनीकें अत्यंत खर्चीली हैं। ज़रा टी.वी. स्टूडियो के बारे में सोचिए, जहाँ पर समाचारवाचक बैठता है। इसमें लाइटें, कैमरे, ध्वनि रिकॉर्ड करने के यंत्र, संप्रेषण के लिए सेटेलाइट आदि हैं। इन सभी का मूल्य बहुत अधिक है।

समाचार के स्टूडियो में में केवल समाचारवाचक को ही वेतन नहीं दिया जाता, बल्कि और बहुत सारे लोग हैं जो प्रसारण में सहायक होते हैं। इसमें वे लोग सम्मिलित हैं, जो कैमरे व प्रकाश की व्यवस्था करते हैं। जैसा कि आपने अभी पढ़ा, जनसंचार माध्यम निरंतर बदलते रहते हैं। इसीलिए नवीनतम तकनीक जुटाने पर भी बहुत धन व्यय होता है। इन खचों के कारण जनसंचार माध्यमों को अपना काम करने के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। परिणामतः अधिकांश टी.वी. चैनल और समाचारपत्र किसी बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठान का भाग होते हैं।

जनसंचार माध्यम लगातार धन कमाने के विभिन्न तरीकों के बारे में सोचते रहते है। एक तरीका जिसके द्वारा जनसंचार माध्यम धन अर्जित करते हैं, विभिन्न वस्तुओं के विज्ञापन का है, जैसे- कारें, चॉकलेट, कपड़े, मोबाइल फ़ोन आदि। आपने ध्यान दिया होगा कि अपने प्रिय टेलीविजन कार्यक्रम को देखते हुए आपको ऐसे अनेक विज्ञापन देखने पड़ते हैं।

टेलीविजन पर क्रिकेट का मैच देखते हुए भी हर ओवर के बाद बार-बार वही विज्ञापन दिखाए जाते हैं। इस तरह प्रायः बार-बार आप उन्हीं छवियों को देखते हैं। जैसा कि आप आगे के अध्याय में पढ़ेंगे, विज्ञापनों की बार-बार आवृत्ति इस आशा से की जाती है कि आप बाहर जाकर विज्ञापित वस्तु खरीदेंगे।

संचार माध्यम और लोकतंत्र

लोकतंत्र में देश और संसार के बारे में समाचार देने और उनमें होने वाली घटनाओं पर चर्चा करने में संचार माध्यमों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, संचार माध्यमों से नागरिक जान सकते हैं कि सरकार किस प्रकार काम कर रही है। यदि लोग चाहें, तो इन समाचारों के आधार पर कार्रवाई भी कर सकते हैं। ऐसा वे संबंधित मंत्री को पत्र लिखकर, सार्वजनिक विरोध आयोजित करके, हस्ताक्षर अभियान आदि चलाकर सरकार से पुनः उसके कार्यक्रम पर विचार करने का आग्रह करके कर सकते हैं।

जानकारी देने के संबंध में संचार माध्यम की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए यह आवश्यक है कि जानकारी संतुलित होनी चाहिए। आइए, अगले पृष्ठ पर दिए गए एक ही समाचार के दो भिन्न रूपों को पढ़कर समझें कि संतुलित संचार माध्यम का क्या तात्पर्य है?

वास्तविकता तो यह है कि यदि आप इनमें से केवल एक समाचारपत्र पढ़ेंगे तो विषय का एक ही समाचार पक्ष जान पाएँगे। यदि आपने न्यूज ऑफ इंडिया पढ़ा होता, तो आपको विरोधियों की बातें व्यर्थ उत्पात लगतीं। उनका यातायात व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करना और अपने कारखानों से शहर में प्रदूषण फैलाते रहना, आपके मन में उनकी बुरी छवि अंकित करता। दूसरी ओर यदि आपने इंडिया डेली पढ़ा होता, तो आप जानते कि कारखाने बंद होने पर बहुत-से लोग अपनी रोजी-रोटी खो देंगे, क्योंकि पुर्नस्थापन के प्रयास अपर्याप्त हैं। इन दोनों में से एक भी विवरण संतुलित नहीं है। संतुलित रिपोर्ट वह होती है, जिसमें किसी भी विषय पर हर दृष्टिकोण से चर्चा की जाती है, फिर पाठकों को स्वयं अपनी राय बनाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है।

संतुलित रिपोर्ट लिख पाना, संचार माध्यमों के स्वतंत्र होने पर निर्भर करता है। स्वतंत्र संचार माध्यमों से तात्पर्य यह है कि उनके द्वारा दिए जाने वाले समाचारों को कोई भी नियंत्रित या प्रभावित न करे। समाचार का विवरण देने में कोई भी उन्हें निर्देशित न करे कि उसमें क्या सम्मिलित किया जाना है और क्या नहीं। लोकतंत्र में स्वतंत्र संचार माध्यमों का होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा, संचार माध्यमों द्वारा प्रदान की गई जानकारी के आधार पर ही हम नागरिकों के रूप में कार्रवाई करते हैं। इसीलिए, यह आवश्यक है कि यह जानकारी विश्वसनीय और तटस्थ हो।

तथ्य तो यह है कि संचार माध्यम स्वतंत्र नहीं हैं। इसके मुख्यतः दो कारण हैं। पहला कारण है- सरकार का उन पर नियंत्रण। जब सरकार, समाचार के किसी अंश, फ़िल्म के किसी दृश्य या गीत की किसी अभिव्यक्ति को जनसमुदाय तक पहुँचने से प्रतिबंधित करती है तो इसे सेंसरशिप कहा जाता है। भारत के इतिहास में ऐसे समय भी आए हैं जब सरकार ने संचार माध्यमों के ऊपर सेंसर लगाया। इसमें सबसे बुरा समय 1975-77 तक, आपातकाल का था।

सरकार यद्यपि फ़िल्मों पर तो निरंतर सेंसर रखती है, लेकिन वह संचार माध्यमों से दिखाए गए समाचारों में पूरी तरह ऐसा नहीं करती है। सरकार द्वारा सेंसरशिप न होने पर भी आजकल अधिकांश समाचारपत्र संतुलित विवरण देने में असफल रहते हैं। इसके कारण बहुत जटिल हैं। संचार माध्यमों के विषय में शोध करने वाले लोगों का कहना है कि ऐसा इसीलिए है, क्योंकि संचार माध्यमों पर व्यापारिक प्रतिष्ठानों का नियंत्रण है। कई बार किसी विवरण के एक पक्ष पर ही ध्यान केंद्रित कराना इनके हित में होता है। संचार माध्यमों द्वारा निरंतर धन की आवश्यकता और उसके लिए विज्ञापनों पर निर्भरता के कारण भी उन लोगों के विरोध में लिखना कठिन हो जाता है, जो विज्ञापन देते हैं। इसीलिए व्यापार से गहन जुड़ाव होने के कारण अब संचार माध्यमों को स्वतंत्र नहीं समझा जाता।

इसके अतिरिक्त संचार माध्यम किसी मुद्दे के खास पक्ष पर इसीलिए भी ध्यान केंद्रित करते हैं, क्योंकि उसे विश्वास है कि इससे विवरण रुचिकर हो जाएगा। इसी तरह यदि वे किसी विषय पर जन समर्थन बढ़ाना चाहते हैं, तो भी मुद्दे के एक पक्ष पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं।

टी.वी. हमारे साथ क्या करता है और हम टी.वी. के साथ क्या कर सकते हैं?

बहुत-से घरों में अधिकांश समय टी.वी. चलता ही रहता है। हमारे चारों ओर की दुनिया के बारे में हमारे बहुत से विचार, जो कुछ हम टी.वी. पर देखते हैं, उसी से बनते हैं। यह दुनिया को देखने वाली एक खिड़की की तरह है। आपके विचार में यह हमें कैसे प्रभावित करता है? टी.वी. में अनेक प्रकार के कार्यक्रम हैं- सास भी कभी बहू थी, जैसे पारिवारिक धारावाहिक, खेल कार्यक्रम, जैसे- कौन बनेगा करोड़पति, वास्तविक जीवन को दशनि वाले कार्यक्रम, जैसे- बिग बॉस, समाचार, खेल और कार्टून, आदि। हर कार्यक्रम के पहले, बीच में और अंत में विज्ञापन होते हैं, क्योंकि टी.वी. का समय बहुत महँगा होता है। इसीलिए केवल वे ही कार्यक्रम दिखाए जाते हैं, जो अधिकतम दर्शकों को आकर्षित कर सकें। आपके विचार से ऐसे कौन-से कार्यक्रम हो सकते हैं? उन चीज़ों के बारे में सोचिए, जो टी.वी. में दिखाई जाती हैं या नहीं दिखाई जातीं। टी.वी. हमें अमीरों के जीवन के बारे में अधिक दिखाता है या गरीबों के?

हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि टी.वी. का हम पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह दुनिया के बारे में हमारे दृष्टिकोण, हमारे विश्वासों, हमारे रुख और मूल्यों को कैसे बनाता है। हमें यह समझने की जरूरत है कि यह हमें संसार का अधूरा दृश्य ही दिखाता है। अपनी पसंद के कार्यक्रमों का आनंद लेते हुए भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि टी.वी. के पर्दे से हटकर भी एक उत्सुकता भरा बड़ा संसार है। दुनिया में ऐसा बहुत कुछ हो रहा है, जिसकी ओर टी. वी. ध्यान नहीं देता है। फ़िल्म स्टारों, सुप्रसिद्ध व्यक्तियों और धनाढ्य जीवन शैलियों से परे भी ऐसा संसार है, जहाँ हम सबको पहुँचना चाहिए और विभिन्न प्रकार से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए। हमें ऐसा सजग दर्शक बनना चाहिए, जो कार्यक्रमों का आनंद भी लें और देखे गए और सुने गए प्रसंगों पर प्रश्न भी उठाएँ।

मसौदा तय किया जाना

किन घटनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए, इसमें भी संचार माध्यमों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। और इसी के आधार पर वह तय कर देते हैं कि क्या समाचार में दिए जाने योग्य है, उदाहरण के लिए – आपके विद्यालय के वार्षिकोत्सव की खबर शायद समाचार में दिए जाने योग्य नहीं होगी, लेकिन यदि कोई प्रसिद्ध अभिनेता उसमें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित हो, तो संचार माध्यमों की रुचि इसे समाचारों में सम्मिलित करने में हो सकती है। कुछ खास विषयों पर ध्यान केंद्रित करके संचार माध्यम हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों को प्रभावित करते हैं और हमारा ध्यान उन मुद्दों की ओर आकर्षित करते हैं। हमारे जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने और हमारे विचारों को निर्मित करने में मुख्य भूमिका होने के कारण ही प्रायः यह कहा जाता है कि संचार माध्यम ही हमारा मसौदा या एजेंडा तय करते हैं।

अभी हाल ही में संचार माध्यमों ने कोला पेयों में कीटनाशकों का स्तर खतरे के स्तर तक बढ़े हुए होने की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने कीटनाशकों के अत्यधिक मात्रा में होने की रिपोर्ट प्रकाशित की थी और इस तरह हमें कोला पेयों को अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता व सुरक्षा मापदंडों के अनुसार नियमित रूप से नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस कराई। उन्होंने सरकार के दबाव के बावजूद निडरतापूर्वक घोषणा की कि कोला पीना सुरक्षित नहीं है। इस वृत्तांत को पेश करके संचार माध्यमों ने निश्चित रूप से हमारा ध्यान ऐसे विषय पर केंद्रित करने की कोशिश की है, जिस पर यदि उन की रिपोर्ट न आती, तो हमारा ध्यान भी न जाता।

कई बार ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं, जब संचार माध्यम उन विषयों पर हमारा ध्यान केंद्रित कराने में असफल रहते हैं, जो हमारे जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, उदाहरण के लिए – पीने का पानी हमारे देश की एक बड़ी समस्या है। प्रतिवर्ष हज़ारों लोग कष्ट सहते हैं और मर जाते हैं, क्योंकि उन्हें पीने के लिए सुरक्षित पानी नहीं मिलता, फिर भी संचार माध्यम हमें इस विषय पर बहुत कम ही चर्चा करते हुए दिखते हैं। एक सुविख्यात भारतीय पत्रकार ने लिखा है कि कैसे वस्त्रों को नया रूपाकार देने वाले डिज़ाइनरों ने ‘फ़ैशन वीक’ में धनवानों के समक्ष अपने नए वस्त्र प्रदर्शित करके सभी समाचारपत्रों के मुख्य पृष्ठ पर स्थान पा लिया, जबकि उसी सप्ताह मुंबई में अनेक झोपड़पट्टियों को गिरा दिया गया पर किसी ने इस पर ज़रा सा भी ध्यान नहीं दिया।

प्रजातंत्र के नागरिक के रूप में हमारे जीवन में संचार माध्यम बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि संचार माध्यमों के द्वारा ही हम सरकार के कामों से संबंधित विषयों के बारे में सुनते हैं। संचार माध्यम निश्चित करते हैं कि किन बातों पर ध्यान केंद्रित किया जाना है और इस तरह वह एजेंडा निश्चित कर देते हैं। यदि कभी सरकार चाहे, तो संचार माध्यम को किसी घटना की खबर छापने से रोक सकती है। इसे सेंसरशिप कहा जाता है। आजकल संचार माध्यम और व्यापार का घनिष्ठ संबंध होने से प्रायः संतुलित रिपोर्ट का प्रकाश में आना कठिन है। इसे ध्यान में रखते हुए हमारे लिए यह सजगता महत्त्वपूर्ण है कि समाचार से प्राप्त ‘तथ्यात्मक जानकारी’ भी प्रायः पूर्ण नहीं होती है और एकपक्षीय हो सकती है। अतः हमें समाचार के विश्लेषण के लिए निम्नलिखित प्रश्न पूछने चाहिए – इस रिपोर्ट से मुझे कौन-सी जानकारी मिल रही है? कौन-सी आवश्यक जानकारी नहीं दी जा रही है? यह लेख किसके दृष्टिकोण से लिखा गया है? किसका दृष्टिकोण छोड़ दिया गया है और क्यों?

स्थानीय संचार माध्यम

यह जान कर कि संचार माध्यम उन छोटे-छोटे मुद्दों में रुचि नहीं लेंगे, जिनका संबंध साधारण लोगों और उनके जीवन से है इसीलिए कई स्थानीय समूह स्वयं अपना संचार माध्यम प्रारंभ करने के लिए आगे आए हैं। कई लोग सामूहिक रेडियो द्वारा किसानों को विभिन्न फसलों के मूल्य के बारे में बताते हैं और उन्हें बीज तथा उर्वरकों के प्रयोग के बारे में परामर्श देते हैं। कुछ अन्य लोग काफ़ी सस्ते और आसानी से मिल जाने वाले वीडियो कैमरे इस्तेमाल करके विभिन्न निर्धन समाजों के वास्तविक जीवन की स्थितियों पर डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाते हैं और कभी-कभी तो इन गरीब लोगों को ही फिल्म बनाने के लिए कैमरे और तकनीकी ज्ञान का प्रशिक्षण भी देते हैं।

दूसरा उदाहरण खबर लहरिया नामक एक समाचारपत्र का है, जो उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले की आठ दलित महिलाओ द्वारा हर पंद्रह दिन में निकाला जाता है। स्थानीय बुंदेली भाषा में लिखित इस आठ पृष्ठ के समाचारपत्र में दलितों से संबंधित विषयों, स्त्रियों के प्रति हिंसा और राजनैतिक भ्रष्टाचार से संबंधित रिपोर्ट होती हैं। इस समाावारपत्र के पाठक हैं- किसान, दुकानदार, पंचायत के सदस्य, स्कूल के शिक्षक और वे महिलाएँ जिन्होंने अभी हाल ही में पढ़ना-लिखना सीखा है।

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अभ्यास

1. प्रजातंत्र में संचार माध्यम किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
Ans.
प्रजातंत्र में संचार माध्यमों की भूमिका

1. संचार माध्यमों से नागरिक जान सकते हैं कि सरकार किस प्रकार काम कर रही है।।

2. संचार माध्यम निश्चित करते हैं कि किन बातों पर जनता का ध्यान केन्द्रित किया जाना है। इस प्रकार संचार माध्यम जनमत निर्माण का एक सशक्त माध्यम है।

3. वह सरकार की नीतियों की समालोचना करते हैं।

4. वह जनता को सरकारी नीतियों अथवा कार्यों के पक्ष और विपक्ष हेतु मंच प्रदान करते हैं।

2. क्या आप इस रेखाचित्र को एक शीर्षक दे सकते हैं? इस रेखाचित्र से आप संचार माध्यम और बड़े व्यापार के परस्पर संबंध के बारे में क्या समझ पा रहे हैं?
Ans.
शीर्षक “संचार के माध्यम से व्यापार” संचार के माध्यम से उद्यमी अपने उत्पाद को बेचते हैं। किसी भी नए उत्पाद को बाजार में बेचने के लिए उत्पादकों को विज्ञापन का सहारा लेना पड़ता है। विज्ञापन देखकर ही उपभोक्ता वस्तुओं को खरीदते हैं। जिससे उत्पादकों की वस्तुओं की बिक्री बढ़ जाती है, जिससे उत्पादक अधिक धन बटोरते हैं। इस प्रकार उद्यमी संचार के माध्यम से साधारण दर्शक, श्रोता, पाठक वर्ग को मानसिक एवं आर्थिक रूप से अपने हितों के लिए शोषित करते हैं।

3. आप पढ़ चुके हैं कि संचार माध्यम किस प्रकार एजेंडा बनाते हैं। इनका प्रजातंत्र में क्या प्रभाव पड़ता है? अपने विचारों के पक्ष में दो उदाहरण दीजिए।
Ans.
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। मीडिया अक्सर एक ही पहलू को उजागर करती है। ऐसे में जनता को सही जानकारी नहीं मिल पाती है। कई बार जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों से भटका दिया जाता है। इसका लोकतंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके पक्ष में दो उदाहरण नीचे दिए गए हैं।

• मुम्बई में जब झोपड़पट्टी गिराई जा रही थी तो मीडिया ने फैशन शो पर ध्यान केंद्रित किया था। इससे गरीबों के जीवन पर आने वाली आपदा पर किसी का ध्यान ही नहीं गया।

• पेय जल की समस्या से आज अधिकतर गांव और शहर परेशान हैं। लेकिन मीडिया शायद ही इस मुद्दे पर बात करती हो। ऐसे में आम आदमी इस समस्या के समाधान के लिए कुछ नहीं कर पाता है।

4. कक्षा परियोजना के रूप में समाचारों में से कोई एक शीर्षक चुनकर उस पर ध्यान केंद्रित कीजिए और अन्य समाचारपत्रों में से उससे संबंधित विवरण छाँटिए। दूरदर्शन समाचार पर भी इस विषय पर प्रसारित सामग्री देखिए। दो समाचारपत्रों के विवरण की तुलना करके उनमें समानता और भिन्नता की रिपोर्ट लिखिए। निम्नलिखित प्रश्न पूछना सहायक हो सकता है-

(क) इस लेख में क्या जानकारी दी जा रही है?

(ख) कौन-सी जानकारी इसमें छोड़ दी गई है?

(ग) यह लेख किसके दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर लिखा गया है?

(घ) किसके दृष्टिकोण को छोड़ दिया गया है और क्यों?

Ans. शीर्षक-प्रदूषण के कारण कारखानों पर व्रजपात’ इस संदर्भ में दो समाचार-पत्र की रिपोर्ट नीचे दी गई है।

न्यूज़ ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट:

समाचार-पत्र का शीर्षक-प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों पर व्रजपात। विरोधोयों द्वारा चक्का जाम, यातायात रुका

कारखानों के मालिकों और मज़दूरो के हिंसात्मक विरोध ने आज शहर की गतिविधियों को रोक कर रख दिया। सडक़ों पर वाहनों के विशाल जाम लगने के कारण लोग समय से अपने काम पर नहीं पहुँच सके। कारखाना मालिक और मज़दूर सरकार के प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को बंद करने के निर्णय का विरोध कर रहे हैं। यद्यपि सरकार ने यह निर्णय कुछ जल्दबाजी में लिया है, परंतु विरोधियों को काफ़ी समय से यह पता था कि उनकी इकाइयाँ गैरकानूनी हैं। इस इकाइयों के एंड होने से शहर में प्रदूषण का स्तर काफ़ी कम हो जाएगा। शहर के गणमान्य नागरिक श्री जैन ने खा “हमारा शहर भारत के नए व्यावसायिक केंद्र के रूप में स्थापित होता जा रहा है। इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि शहर साफ़ और हरा-भरा रहे। प्रदूषण फैलने वाले कारखानों को हटाया जाना चहिए। विरोध करने के स्थान पर कारखानों के मालिकों व कामगारों को पुनर्स्थापन का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए।

इंडिया डेली की रिपोर्ट:

समाचार-पत्र का शीर्षक-कारखानों के बंद होने से घोर अशांति

शहर के आवासीय क्षेत्र में एक लाख कारखानों का बंद होना गंभीर समस्या का रूप ले सकता है। सोमवार को हज़ारों कारखाना मालिक व कामगार, कारखाना बंदी पर अपना कड़ा विरोध जताने के लिए सड़कों पर उत्तर आए। उन्होंने खा कि इससे उनकी रोजी रोटी चीन जाएगी। उनका कहना है कि गलती नगर निगम की है, क्योंकि वह आवासीय क्षेत्रों में लगातार नए कारखाने लगाने के लिए लाइसेंस देता रहा। उन्होंने यह भी खा कि उनके पुनर्स्थापन के लिए पर्याप्त प्रयत्न नहीं किए गए। कारखानों के मालिकों व मजदूरों ने कारखाने ‘बंद’ करनवाने के विरोध में शहर में एक दिन का ‘बंद’ प्रस्तावित किया है। एक कारखाने के मालिक श्री शर्मा ने कहा, “सरकार कहती है कि उसने हमारे पुनर्स्थापन के लिए बहुत कार्य किया है, लेकिन जिस प्रकार के क्षेत्र वह हमें दे रही हैं वहाँ किसी प्रकार की सुविधाएँ नहीं है। और पिछले पाँच वर्षों में वहाँ कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। “

(क) इस लेख में प्रदूषण के कारण एक लाख कारखानों के बंद होने से कारखानों के मालिक और मजदूरों के विरोध से संबंधित एक रिपोर्ट दिया गया है।

(ख) न्यूज ऑफ़ इंडिया ने कारखानों से फैलने वाले प्रदूषण के दुष्परिणामों के बारे में व्याख्या नहीं की है, जबकि इसदिया डेली की रिपोर्ट में कारखानों और मजदूरों का विरोध करना कितना उचित है तथा नगर निगम द्वारा कारखानों को कितना सुविधा दिया गया है और क्या-क्या कमी रह गई है इसके बारे में नहीं बतलाया गया है।

(ग) न्यूज ऑफ़ इंडिया के लिख प्रदूषण के कारण कारखानों के बंद होने से मजदूरों द्वारा विरोध करने से सड़कों पर लगने वाले जैम को ध्यान में रखकर रिपोर्ट तैयार किया गया है, जबकि इसदिया डेली में कारखानों के मालिकों और मजदूरों के प्रतिक्रिया के संबंध में रिपोर्ट तैयार की गई है।

(घ) इन दोनों रिपोर्ट में कुछ दृष्टिकोणों को छोड़ दिया गया है। न्यूज और इंडिया रिपोर्ट में प्रदूषण से होने वाले नुकसान के संदर्भ में जनता की प्रतिक्रिया के बारे में नहीं बताया गया है। इसदिया डेली रिपोर्ट में मजदूरों के रोजगार और उनके अपर्याप्त पुन स्त्रस्थापन को कोई महत्व नहीं दिया गया है।

5. विज्ञापनों के प्रकार (के बारे में (अकेले, जोड़ी या समूह में) प्रोजेक्ट बनाएँ। कुछ उत्पादों के बारे में वाणिज्यिक विज्ञापन एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य, सड़क सुरक्षा, जल व ऊर्जा को को बचाने की ज़रूरत के बारे में सामाजिक विज्ञापन बनाएँ।
Ans.
स्वयं से करें।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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