धर्मनिरपेक्षता की समझ : अध्याय 2

कल्पना कीजिए कि आप हिंदू या मुसलमान हैं और अमेरिका के किसी ऐसे भाग में रहते हैं जहाँ ईसाई कट्टरपंथी बहुत ताकतवर हैं। मान लीजिए कि अमेरिका का नागरिक होते हुए भी कोई आपको किराये पर मकान नहीं देना चाहता। आपको कैसा महसूस होगा? क्या आपको गुस्सा नहीं आएगा? अगर आप इस भेदभाव के खिलाफ़ शिकायत करें और जवाब में आपको कहा जाए कि यह देश तुम्हारा नहीं है, तुम भारत लौट जाओ, तो आपको कैसा लगेगा? क्या आपको बुरा नहीं लगेगा? आपका यह गुस्सा दो रूप ले सकता है। एक, हो सकता है आप प्रतिक्रिया में यह कहें कि जहाँ हिंदू और मुसलमानों की तादाद ज़्यादा है वहाँ ईसाइयों के साथ भी इसी तरह का बर्ताव होना चाहिए। यह बदला लेने वाली बात है। या फिर आप यह राय बना सकते हैं कि सबको इंसाफ़ मिलना चाहिए। इस सोच के आधार पर आप संघर्ष का रास्ता चुनकर इस बात के लिए आवाज उठा सकते हैं कि धर्म और आस्था के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह सोच इस मान्यता पर आधारित है कि धर्म से संबंधित किसी भी तरह का वर्चस्व खत्म होना चाहिए। यही धर्मनिरपेक्षता का मूलमंत्र है। इस अध्याय में हम यही चर्चा करेंगे कि भारतीय संदर्भ में इसका क्या अर्थ है।

इतिहास में हमें धर्म के आधार पर भेदभाव, बेदखली और अत्याचार के अनेक उदाहरण मिलते हैं। शायद आपने पढ़ा होगा कि हिटलर ने जर्मनी में यहूदियों पर किस तरह के अत्याचार किए। वहाँ कई लाख लोगों को केवल धर्म के आधार पर मार दिया गया था। लेकिन अब यहूदी धर्म को मानने वाले इजरायल में भी मुसलमान और ईसाई अल्पसंख्यकों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। सऊदी अरब में गैर-मुसलमानों को मंदिर या गिरजाघर बनाने की छूट नहीं है। न ही इन धर्मों के लोग वहाँ पूजा-अर्चना के लिए किसी सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठा हो सकते हैं।

इन सभी उदाहरणों में एक धर्म के लोग अन्य धार्मिक समुदायों के लोगों के साथ या तो भेदभाव कर रहे हैं या उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। भेदभाव की ऐसी घटनाएँ तब और ज्यादा बढ़ जाती हैं जब दूसरे धर्मों के स्थान पर राज्य किसी एक धर्म को अधिकृत मान्यता प्रदान कर देता है। जाहिर है कोई भी व्यक्ति अपने धर्म की वजह से न तो भेदभाव का शिकार होना चाहता है और न ही किसी दूसरे धर्म का दबदबा झेलना चाहता है। भारत में क्या राज्य धर्म के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव कर सकता है?

धर्मनिरपेक्षता क्या है?

पिछले अध्याय में आपने पढ़ा कि भारतीय संविधान में भारत मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। ये अधिकार न केवल राज्य की सत्ता से हमें बचाते हैं बल्कि बहुमत की निरंकुशता से भी हमारी रक्षा करते हैं। भारतीय संविधान सभी को अपने धार्मिक विश्वासों और तौर-तरीकों को अपनाने की पूरी छूट देता है। सबके लिए समान धार्मिक स्वतंत्रता के इस विचार को ध्यान में रखते हुए भारतीय राज्य ने धर्म और राज्य की शक्ति को एक-दूसरे से अलग रखने की रणनीति अपनाई है। धर्म को राज्य से अलग रखने की इसी अवधारणा को धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है।

इस अध्याय में तीन चित्र आप ही के उम्र के विद्यार्थियों ने बनाए हैं। उन्हें धार्मिक सहिष्णुता पर चित्र बनाने के लिए कहा गया था।

धर्म को राज्य से अलग रखना महत्त्वपूर्ण क्यों है?

जैसी कि पीछे चर्चा की गई है, धर्मनिरपेक्षता का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है धर्म को राजसत्ता से अलग करना। एक लोकतांत्रिक देश में यह बहुत जरूरी है। दुनिया के तकरीबन सारे देशों में एक से ज्यादा धर्मों के लोग साथ-साथ रहते हैं। जाहिर है हर देश में किसी एक धर्म के लोगों की संख्या ज़्यादा होगी। अब अगर बहुमत वाले धर्म के लोग राज्य सत्ता में पहुँच जाते हैं तो उनका समूह दूसरे धर्मों के खिलाफ़ भेदभाव करने और उन्हें परेशान करने के लिए इस सत्ता और राज्य के आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल कर सकता है। बहुमत की इस निरंकुशता के चलते धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हो सकता है। उनके साथ जोर-जबरदस्ती हो सकती है। यहाँ तक कि कई बार उनकी हत्या भी कर दी जाती है। बहुमत चाहे तो अल्पसंख्यकों को उनके धर्म के अनुसार जीने से रोक सकता है। धर्म के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव उन अधिकारों का उल्लंघन है जो एक लोकतांत्रिक समाज किसी भी धर्म को मानने वाले अपने प्रत्येक नागरिक को प्रदान करता है। लिहाजा बहुमत की निरंकुशता और उसके कारण मौलिक अधिकारों का हनन, वह अहम कारण है जिसके चलते लोकतांत्रिक समाजों में राज्य और धर्म को अलग-अलग रखना इतना महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

लोकतांत्रिक समाजों में धर्म को राज्य से अलग रखने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि हमें लोगों के धार्मिक चुनाव के अधिकार की रक्षा करनी है। इसका अर्थ यह है कि देश के किसी भी व्यक्ति को एक धर्म से निकलने और दूसरे धर्म को अपनाने या धार्मिक उपदेशों की अलग ढंग से व्याख्या करने की स्वतंत्रता होती है। आइए इस बात को और अच्छी तरह समझने के लिए छुआछूत की प्रथा पर विचार करें। संभव है आपको हिंदुओं के बीच प्रचलित यह प्रथा अच्छी न लगती हो। इसका मतलब है कि आप इसे बदलने की कोशिश भी करेंगे। लेकिन अगर राज्य की सत्ता ऐसे हिंदुओं के हाथ में है जो छुआछूत को सही मानते हैं तो क्या आप आसानी से इस प्रथा को बदल पाएँगे? अगर आप प्रभुत्वशाली धार्मिक समुदाय के सदस्य हैं तो भी आपको अपने समुदाय के ही दूसरे लोगों की ओर से भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता है। राज्य सत्ता पर नियंत्रण रखने वाले ऐसे सदस्य कहेंगे कि हिंदुत्व की केवल एक ही व्याख्या होती है और उसकी कोई और व्याख्या करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता क्या है?

भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारतीय राज्य धर्मनिरपेक्ष रहेगा। हमारे संविधान के अनुसार, केवल धर्मनिरपेक्ष राज्य ही अपने उद्देश्यों को साकार करते हुए निम्नलिखित बातों का खयाल रख सकता है कि-

1. कोई एक धार्मिक समुदाय किसी दूसरे धार्मिक समुदाय को न दबाए;

2. कुछ लोग अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों को न दबाएँ; और

3. राज्य न तो किसी खास धर्म को थोपेगा और न ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनेगा।

इस तरह के दबदबे को रोकने के लिए भारतीय राज्य कई तरह से काम करता है। पहला तरीका यह है कि वह खुद को धर्म से दूर रखता है। भारतीय राज्य की बागडोर न तो किसी एक धार्मिक समूह के हाथों में है और न ही राज्य किसी एक धर्म को समर्थन देता है। भारत में कचहरी, थाने, सरकारी विद्यालय और दफ्तर जैसे सरकारी संस्थानों में किसी खास धर्म को प्रोत्साहन देने या उसका प्रदर्शन करने की अपेक्षा नहीं की जाती है।

उपरोक्त चित्रकथा-पट्ट में स्कूल के भीतर किसी धार्मिक त्योहार का आयोजन सभी धर्मों के साथ एक जैसा व्यवहार करने की सरकारी नीति के खिलाफ़ होता। सरकारी स्कूल अपनी प्रातः कालीन प्रार्थनाओं या धार्मिक आयोजनों के जरिए किसी एक धर्म को बढ़ावा नहीं दे सकते। यह नियम निजी स्कूलों पर लागू नहीं है।

धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय धर्मनिरपेक्षता का दूसरा तरीका है अहस्तक्षेप की नीति। इसका मतलब है कि सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करने और धार्मिक क्रियाकलापों में दखल न देने के लिए, राज्य कुछ खास धार्मिक समुदायों को कुछ विशेष छूट देता है।

इस चित्रकथा-पट्ट में सिख युवक परमजीत को हैलमेट पहनने की जरूरत नहीं है। कारण यह कि भारतीय राज्य इस बात को मान्यता देता है कि पगड़ी पहनना सिख धर्म की प्रथाओं के मुताबिक महत्त्वपूर्ण है। लिहाजा इन धार्मिक आस्थाओं में दखलंदाजी से बचने के लिए राज्य ने कानून में रियायत दे दी है।

धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय धर्मनिरपेक्षता का तीसरा तरीका हस्तक्षेप का तरीका है। इसी अध्याय में पीछे आप छुआछूत के बारे में पढ़ चुके हैं। यह इस बात का उपयुक्त उदाहरण है कि किस तरह एक ही धर्म के लोग (‘ऊँची जाति’ के हिंदू) अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों (कुछ ‘निचली जातियों’) को दबाते हैं। धर्म के नाम पर अलग-थलग करने और भेदभाव को रोकने के लिए भारतीय संविधान ने छुआछूत पर पाबंदी लगाई है। इस उदाहरण में राज्य धर्म के नाम पर अलग-थलग करने और भेदभाव को बढ़ावा देने वाली उस प्रथा को खत्म करने के लिए धर्म में हस्तक्षेप कर रहा है जो ‘निचली जातियों’ के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है क्योंकि वे भी इसी देश के नागरिक हैं। इसी तरह माँ-बाप की संपत्ति में बराबर हिस्से के अधिकार का सम्मान करने के लिए राज्य को समुदायों के धर्म पर आधारित ‘निजी कानूनों’ में भी हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।

राज्य का हस्तक्षेप सहायता के रूप में भी हो सकता है। भारतीय संविधान धार्मिक समुदायों को अपने स्कूल और कॉलेज खोलने का अधिकार देता है। गैर-प्राथमिकता के आधार पर राज्य से उन्हें सीमित आर्थिक सहायता भी मिलती है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता दूसरे लोकतांत्रिक देशों की धर्मनिरपेक्षता से किस तरह अलग है?

ऊपर दिए गए तीनों उद्देश्य दुनिया के अन्य धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देशों के संविधान में दिए गए उद्देश्यों से मिलते-जुलते हैं। अमेरिकी संविधान में हुए पहले संविधान संशोधन के ज़रिए विधायिका को ऐसे कानून बनाने से रोक दिया गया है जो “धार्मिक संस्थानों का पक्ष लेते” हों या “धार्मिक स्वतंत्रता को रोकते” हों। इसका मतलब है कि विधायिका किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं कर सकती, न ही विधायिका किसी एक धर्म को ज़्यादा प्राथमिकता दे सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य और धर्म के पृथक्करण का मतलब है कि राज्य और धर्म, दोनों ही एक-दूसरे के मामलों में किसी तरह का दखल नहीं दे सकते।

संयुक्त राज्य अमेरिका में सरकारी स्कूलों के ज्यादातर बच्चे सुबह सबसे पहले ‘वफ़ादारी की शपथ’ (Pledge of allegiance) लेते हैं। इस शपथ में “ईश्वर की छत्रछाया” शब्द आते हैं। साठ साल से भी पहले ही वहाँ यह तय कर दिया गया था कि अगर यह शपथ किसी बच्चे की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाती है तो उसे इसको दोहराने की जरूरत नहीं है। इसके बावजूद वहाँ “ईश्वर की छत्रछाया” वाक्यांश को कई बार कानूनी चुनौती दी जा चुकी है। चुनौती देने वालों का कहना है कि यह वाक्यांश अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन में चर्च और राज्य के बीच किए गए पृथक्करण का उल्लंघन करता है। उपरोक्त चित्र में अमेरकिा के सरकारी स्कूल के बच्चे ‘वफादारी की शपथ’ लेते हुए दिखाई दे रहे हैं।

शायद आप समझ गए होंगे कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता और अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता के बीच एक अहम फ़र्क है। ऐसा इसलिए है कि अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता में धर्म और राज्य के बीच स्पष्ट अलगाव के विपरीत भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की छूट दी गई है। आप पढ़ चुके हैं कि किस तरह भारतीय संविधान ने छुआछूत को खत्म करने के लिए हिंदू धार्मिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप किया है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य धर्म से अलग तो है, लेकिन धर्म से उसका फ़ासला सैद्धांतिक है। इसका मतलब यह है कि संविधान में दिए गए आदर्शों के आधार पर राज्य किसी भी धर्म के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है। ये आदर्श वह कसौटी मुहैया कराते हैं जिसके ज़रिए इस बारे में फैसला लिया जा सकता है कि हमारा राज्य धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुरूप काम कर रहा है या नहीं।

भारतीय राज्य धर्मनिरपेक्ष है और धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए कई तरह से काम करता है। भारतीय संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकारों का आश्वासन देता है। ये मूलभूल अधिकार इन धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर आधारित हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भारतीय समाज में इन अधिकारों का उल्लंघन बंद हो गया है। बल्कि वास्तव में ऐसे उल्लंघनों की वजह से ही हमारे सामने संवैधानिक व्यवस्था की जरूरत बनी हुई है। इस तरह के अधिकारों के होने का ज्ञान हमें इन अधिकारों के उल्लंघन के प्रति संवेदनशील बनाता है। जब कभी ऐसा होता है तो हमें इसके खिलाफ़ सही कदम उठाने की क्षमता भी उसी से मिलती है।

शब्द संकलन

जोर-जबरदस्ती :  इसका मतलब है किसी को कोई चीज करने के लिए मजबूर करना। इस अध्याय के संदर्भ में यह शब्द राज्य जैसी किसी कानूनी सत्ता द्वारा ताकत के इस्तेमाल से है।

व्याख्या की स्वतंत्रता : सभी व्यक्तियों को अपने हिसाब से चीजों को समझने की छूट होती है। इस अध्याय में व्याख्या की स्वतंत्रता का मतलब है कि हरेक व्यक्ति अपने धर्म की समझ और अर्थ खुद तय कर सकता है।

हस्तक्षेप : प्रस्तुत अध्याय में इसका मतलब है संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप किसी मामले को प्रभावित करने के लिए राज्य की ओर से होने वाला प्रयास।

यह भी पढ़ें : भारतीय संविधान : अध्याय 1

अभ्यास

1. अपने आस-पड़ोस में प्रचलित धार्मिक क्रियाकलापों की सूची बनाइए। आप विभिन्न प्रकार की प्रार्थनाओं, विभिन्न देवताओं की पूजा विभिन्न पवित्र स्थानों, विभिन्न प्रकार के धार्मिक संगीत और गायन आदि को देख सकते हैं। क्या इससे धार्मिक क्रियाकलापों की स्वतंत्रता का पता चलता है?
Ans.
हमारे आस पास के पड़ोस में विभिन्न धर्मों से जुड़े लोग रहते है जो अपने धर्म से अलग अलग पवित्र स्थानों को पूजते है, विभिन्न देवीः देवताओं की पूजा करते है। जैसे कि:- हिंदू धर्म से जुड़े लोग मंदिर में पूजा और प्रार्थना करते है। मुस्लिम लोग मस्जिद में नमाज़ और इबादत करते है। क्रिश्चयन धर्म से जुड़े चर्च में प्रार्थना करते है। सिक्ख धर्म से जुड़े गुरुद्वारे में अरदास व कीर्तन करते है। अलग अलग धर्म से जुड़ी यह गतिविधियां दर्शाती है कि भारत में प्रत्येक व्यक्ति को धर्म अपनाने और उनको पुरी तरह से निभाने की स्वतंत्रता प्राप्त है।

2. अगर किसी धर्म के लोग यह कहते हैं कि उनका धर्म नवजात शिशुओं को मारने की छूट देता है तो क्या सरकार किसी तरह का दखल देगी या नहीं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण बताइए।
Ans.
हर व्यक्ति को भारत में अपने हिसाब से फैसले लेने की स्वतंत्रता दी गई है। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार किसी को भी किसी के बीच में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। लेकिन अगर यह बात किसी भी धर्म के नवजात शिशु की है, तो हमारे किसी भी संविधान या धर्म में कहीं भी यह नहीं लिखा कि हमें नवजात शिशु को मारने का अधिकार दिया हुआ है। अगर सरकार को कहीं से भी यह बात ज्ञात होती है तो सरकार इसके विरुद्ध कड़े कदम उठाएगी और वह व्यक्ति सजा का हकदार कम रहेगा। सरकार उस नवजात शिशु को बचाने में पूरा हस्तक्षेप करेगी।

3. इस तालिका को पूरा कीजिए-

उद्देश्ययह महत्त्वपूर्ण क्यों है?इस उद्देश्य के उल्लंघन का एक उदाहरण
एक धार्मिक समुदाय दूसरे समुदाय पर वर्चस्व नहीं रखता
राज्य न तो किसी धर्म को थोपता है और न ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनता है
एक ही धर्म के कुछ लोग अपने ही धर्म के दूसरे लोगों को न दबाएँ

Ans.

उद्देश्ययह महत्त्वपूर्ण क्यों है?इस उद्देश्य के उल्लंघन का एक उदाहरण
एक धार्मिक समुदाय दूसरे समुदाय पर वर्चस्व नहीं रखतायह धर्म की स्वतंत्रता है। धर्म की स्वतंत्रता धर्मः निरपेक्षता का सार है।इजरायल के यहूदी मुसलमानों और क्रिश्चयन के साथ बुरा व्यवहार करते है।
राज्य न तो किसी धर्म को थोपता है और न ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनता हैधर्मः निरपेक्ष राज्य को धर्म से अलग रखते है।राज्य छुआछूत जैसी सामाजिक समस्या को दूर करने के लिए धर्म में हस्तक्षेप करता है।
एक ही धर्म के कुछ लोग अपने ही धर्म के दूसरे लोगों को न दबाएँधर्म की स्वतंत्रता समानता के सिद्धांत पर आधारित है।हर धर्म में कहीं ना कहीं छुआछूत की समस्या पाई जाती है।

4. अपने स्कूल की छुट्टियों के वार्षिक कैलेंडर को देखिए। उनमें से कितनी छुट्टियाँ विभिन्न धर्मों से संबंधित है? इससे क्या संकेत मिलता है?
Ans.

हिंदू धर्म : लोहडी, होली, रक्षाबंधन, दीवाली, दशहरा, भैया दूज, बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि

मुस्लिम धर्म :  मोहर्रम, ईदः एः मिलाद, ईदः उलः फितर

सिक्ख धर्म :  लोहडी, होली, गुरुनानक जयंती

जैन धर्म :  महावीर जयंती

भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है और हर व्यक्ति सभी धर्मों का सामान आदर और सम्मान करता है।

5. एक ही धर्म के भीतर अलग-अलग दृष्टिकोणों के कुछ उदाहरण दे?
Ans.
भारत अनेक विभिन्नताओं वाला देश है। भारत में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते है। भारतीय संविधान में भारत में रहने वाले हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता दी गई है। सभी व्यक्तियों का धर्म को मानने, पूजा करने का अलग अलग तरीका होता है। यहां तक कि किसी मंदिर में अगर एक ही त्योहार मनाने के लिए कोई हिंदू परिवार जाता है तो उसे मनाने के लिए भी वे अलग तरीके अपनाते है। इस प्रकार एक ही धर्म के भीतर सबके अलग अलग दृष्टिकोण है।

6. भारतीय राज्य धर्म से फ़ासला भी रखता है और उसमें हस्तक्षेप भी करता है। यह उलझाने वाला विचार लग सकता है। इस पर कक्षा में एक बार फिर चर्चा कीजिए। चर्चा के लिए इस अध्याय में दिए गए उदाहरणों के अलावा आप अपनी जानकारी के अन्य उदाहरणों का भी सहारा ले सकते हैं।
Ans.
भारतीय संविधान ने धर्म निरपेक्ष की धारणा को ग्रहण किया है। प्रस्तावना में भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। भारत राज्य धर्म से आपको दूर भी रखता है, तथा आवश्यकता पड़ने पर उसमें हस्तक्षेप भी करता है। भारत का कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। राज्य धर्म से दूर रहता है। भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। परंतु अनुच्छेद 25 राज्य को यह अनुमति देता है कि वह एक धर्म की राजनीतिक गतिविधियों को नियंत्रित करें। राज्य सभी हिंदू संस्थाओं द्वारा चलाई जाने वाली कल्याणकारी गतिविधियों एवं सुधारों को अनुमति प्रदान कर सकता है। सिक्खों को अपने साथ किरपान लेकर चलने की अनुमति है। हालांकि धार्मिक स्वतंत्रता जनकल्याण, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के आधार पर प्रयोग की जा सकती है।

7. साथ में दिया गया यह पोस्टर ‘शांति’ के महत्त्व को रेखांकित करता है। इस पोस्टर में कहा गया है कि “शांति कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है… यह हमारी आपसी भिन्नताओं और साझा हितों को नज़रअंदाज़ करके नहीं चल सकती।” ये वाक्य क्या बताते हैं? अपने शब्दों में लिखिए। धार्मिक सहिष्णुता से इसका क्या संबंध है?

इस अध्याय में आप ही की उम्र के विद्यार्थियों ने भी धार्मिक सहिष्णुता पर तीन तस्वीरें बनाई हैं। धार्मिक सहिष्णुता को ध्यान में रखते हुए अपने साथियों को दिखाने के लिए खुद एक पोस्टर बनाइए।


Ans.
उपरोक्त वाक्यों से हमें पता चलता है कि शांति हम सभी को अच्छी लगती है। क्योंकि शांति होने पर ही राज्य में विकास के कार्य हो सकते हैं। इसीलिए प्रायः सभी धर्मों द्वारा शांति का प्रचारः प्रसार किया जाता है। क्योंकि शांति के बिना विकास संभव है। अतः विश्व के सभी धर्मों में शांति स्थापना के लिए आपसी सहयोग एवं सहिष्णुता होना आवश्यक है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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