केंद्रशासित प्रदेश : 36

संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत का राज्य क्षेत्र तीन क्षेणियों में बांटा गया है- (अ) राज्य क्षेत्र (ब) केंद्रशासित प्रदेश और (स) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र, जो भारत सरकार द्वारा किसी भी समय अर्जित किए जाएं। वर्तमान में 28 राज्य, 7 केंद्रशासित प्रदेश हैं, किंतु कोई अर्जित राज्य क्षेत्र नहीं है।

सभी राज्य भारत की संघीय व्यवस्था के सदस्य हैं और वह केंद्र के साथ शक्ति के विभाजन के सहभागी हैं। दूसरी ओर, केंद्रशासित प्रदेश वह क्षेत्र है, जो केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में होता है इसलिए ऐसे प्रदेशों को केंद्रशासित क्षेत्र भी कहते हैं। इस प्रकार से ये प्रदेश संघीय प्रणाली से भिन्न हैं। जहां तक इन केंद्रशासित प्रदेशों एवं दिल्ली के संबंध की बात है तो भारत सरकार इस संबंध में पूर्णतः एकाकी है।’

केंद्रशासित प्रदेशों का गठन

ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1874 में कुछ अनुसूचित जिले बनाए गए। बाद में इसे मुख्य आयुक्तीय क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। स्वतंत्रता के बाद इन्हें भाग-ग तथा घ राज्यों की श्रेणी में रखा गया। 1956 में 7वें संविधान संशोधन अधिनियम व राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत इन्हें केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में गठित किया गया। धीरे-धीरे, कुछ केंद्रशासित प्रदेशों को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया। हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश व गोवा शुरुआत में केंद्रशासित प्रदेश थे लेकिन अब ये सभी पूर्ण राज्य हैं। दूसरी ओर पुर्तगालियों से लिए गए क्षेत्र (गोवा, दमन-दीव और दादरा और नगर हवेली) तथा फ्रांसीसियों से लिया गया क्षेत्र (पुदुचेरी) केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए।

वर्तमान में सात केंद्रशासित प्रदेश हैं, ये हैं (गठन के वर्ष के साथ) – (1) अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह-1956, (2) दिल्ली-1956, (3) लक्षद्वीप – 1956, (4) दादरा और नगर हवेली – 1961, (5) दमन व दीव – 1962 (6) पुदुचेरी तथा (7) चंडीगढ़-1966 । 1973 तक लक्षद्वीप को लकादीव, मिनीकॉय एवं अमिनदिवी द्वीप के नाम से जाना जाता था। 1992 में दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ के रूप में जाना जाने लगा। 2006 तक पुदुचेरी को पांडिचेरी के नाम से जाना जाता था।

केंद्रशासित प्रदेशों का गठन अनेक कारणों से किया गया ये कारण निम्नलिखित हैं:

1. राजनीतिक व प्रशासनिक सोच – दिल्ली एवं चंडीगढ़।

2. सांस्कृतिक भिन्नताएं – पुडुचेरी, दादरा और नागर हवेली।

3. सामरिक महत्व-अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप ।

4. पिछड़े एवं अनुसूचित लोगों के लिए विशेष बर्ताव व देखभाल-मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा व अरुणाचल प्रदेश-ये बाद में पूर्ण राज्य बन गए।

केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन

संविधान के भाग VIII के अंतर्गत अनुच्छेद 239-241 में केंद्रशासित प्रदेशों के संबंध में उपबंध हैं। यद्यपि सभी केंद्रशासित प्रदेश एक ही श्रेणी के हैं लेकिन उनकी प्रशासनिक पद्धति में समानता नहीं है।

प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा संचालित होता है, जो एक प्रशासक के माध्यम से किया जाता है। केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासक राष्ट्रपति का एजेंट या अभिकर्ता होता है, न कि राज्यपाल की तरह राज्य प्रमुख । राष्ट्रपति प्रशासक को पदनाम दे सकता है। वर्तमान में उप-राज्यपाल अथवा मुख्य आयुक्त अथवा प्रशासक हो सकता है। इस समय वे उप-राज्यपाल (दिल्ली- अंडमान निकोबार द्वीप समूह और पुडुचेरी में) या प्रशासक (चण्डीगढ़, दमन और दीव तथा लक्षद्वीप में) हैं। राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को राज्य से सटे केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासक नियुक्त कर सकता है। इस हैसियत में राज्यपाल अपनी मंत्रिपरिषद के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी (1963) और दिल्ली (1992) में विधानसभा गठित की गई और मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्री के अधीन कर दिया गया। शेष पांच केंद्रशासित प्रदेशों में इस तरह की राजनीतिक संस्था नहीं हैं परंतु केंद्रशासित प्रदेशों में इस तरह की व्यवस्था बनाने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि उन पर राष्ट्रपति व संसद का सर्वोच्च नियंत्रण कम हो गया है।

संसद, केंद्रशासित प्रदेशों के लिए तीनों सूचियों (राज्य के विषय भी) के विषयों पर विधि बना सकती है। संसद की इस शक्ति का विस्तार पुडुचेरी व दिल्ली तक है, जबकि इनकी अपनी विधायिकायें हैं। इसका अभिप्राय है कि किसी केंद्रशासित राज्य की अपनी विधायिका होने के बावजूद राज्य सूची के विषयों पर संसद की विधायिका शक्ति खत्म नहीं होती है। परंतु पुडुचेरी विधानसभा, राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बना सकती है। इसी तरह दिल्ली भी राज्य सूची (लोक व्यवस्था, पुलिस व भूमि को छोड़कर) व समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बना सकती है।

राष्ट्रपति, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव में शांति, विकास व अच्छी सरकार के लिए विनियम बना सकता है। पुदुचेरी में भी राष्ट्रपति विधि बना सकता है बशर्ते वहां विधानसभा विद्यटित हो या बर्खास्त हो। राष्ट्रपति द्वारा बनाई गई विधियों की शक्ति व प्रभाव संसद के अधिनियमों की ही तरह है और वह संसद के किसी अधिनियम को समाप्त या संशोधित कर सकता है।

संसद, किसी केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है या उसे निकटवर्ती राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन कर सकती है। दिल्ली ही एकमात्र ऐसा केंद्रशासित प्रदेश है, जिसका स्वयं का उच्च न्यायालय (1966 से) है। दादरा और नगर हवेली एवं दमन व दीव, बंबई उच्च न्यायालय के दायरे में हैं। उसी तरह अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, लक्षद्वीप और पुदुचेरी क्रमशः कलकत्ता, पंजाब एवं हरियाणा, केरल व मद्रास उच्च न्यायालय के दायरे में आते हैं।

संविधान में अधिगृहीत प्रदेशों के प्रशासन के लिए अलग से उपबंध नहीं हैं परंतु केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के संवैधानिक उपबंध अधिगृहीत क्षेत्रों के लिए लागू होते हैं।

दिल्ली के लिये विशेष उपबंध

1991 में 69वें संविधान संशोधन विधेयक में केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को विशेष हैसियत प्रदान की गई और इसे ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ का दिया गया और लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का प्रशासक नामित किया गया। दिल्ली के लिए विधानसभा व मंत्रिमंडल का गठन किया गया है। पूर्व में दिल्ली में महानगरीय परिषद और कार्यकारी परिषद थी।

विधानसभा की क्षमता 70 सदस्यीय निर्धारित की गई है, जो लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। चुनाव, भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा कराया जाता है। विधानसभा को राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बनाने का अधिकार है (राज्य सूची के तीन विषय-लोक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि को छोड़कर) परंतु संसद द्वारा बनाई गई विधि, विधानसभा द्वारा बनाई गई विधि से अधिक प्रभावी होती है।

मंत्रिमंडल की संख्या, विधानसभा की कुल संख्या का 10 प्रतिशत है। यानी मंत्रिमंडल की संख्या सात है- मुख्यमंत्री व छह अन्य मंत्री। राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है (न कि उप-राज्यपाल)। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री की सलाह पर करता है। मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पर होते हैं। मंत्रिमंडल, सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है।

तालिका 36.1 केंद्रशासित प्रदेशों की प्रशासनिक व्यवस्था पर एक नजर



केंद्रशासित प्रदेशकार्यपालिकाविधायिकान्यायपालिका
1. अंडमान व निकोबार द्वीपउप-राज्यपालकोलकाता उच्च न्यायालय के अधीन
2. चंडीगढ़प्रशासकपंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के अधीन
3. दादरा और नगर हवेलीप्रशासकमुंबई उच्च न्यायालय के अधीन
4. दमन व दीवप्रशासकमुंबई उच्च न्यायालय के अधीन
5. दिल्ली(क) उप-राज्यपाल
(ख) मुख्यमंत्री
(ग) मंत्रिपरिषद
विधानसभाअलग उच्च न्यायालय
6. लक्षद्वीपप्रशासककेरल उच्च न्यायालय के अधीन
7. पुदुचेरी(क) उप-राज्यपाल
(ख) मुख्यमंत्री
(ग) मंत्रिपरिषद
विधानसभामद्रास उच्च न्यायालय के अधीन

मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में उप-राज्यपाल द्वारा स्वविवेक से लिए गए निर्णयों को छोड़कर बाकी सभी कार्यों में सहयोग व सहायता करती है, लेकिन उप-राज्यपाल व मंत्रिमंडल में किसी मुद्दे पर टकराव होने पर उप-राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। ऐसी स्थिति में जब क्षेत्र का प्रशासन उपरोक्त उपबंधों के अनुसार नहीं हो पा रहा हो, तो राष्ट्रपति उपरोक्त उपबंधों को खारिज कर सकता है और क्षेत्र के प्रशासन के लिए आवश्यक उपबंध बना सकता है। दूसरे शब्दों में, संवैधानिक विफलता की स्थिति में राष्ट्रपति उस क्षेत्र में अपना शासन लागू कर सकता है। ऐसा उप-राज्यपाल द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर होता है। यह उपबंध अनुच्छेद 356 के समान है, जिसके तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।

संघीय क्षेत्रों (संघ शासित प्रदेशों) के लिए सलाहकार समितियां

भारत सरकार (कार्यवाही आवंटन) नियमावली, 1961 के अंतर्गत गृह मंत्रालय संघीय क्षेत्रों में विधायन वित्त एवं बजट सेवाएं तथा उप-राज्यपाल एवं प्रशासकों की नियुक्ति से संबंधि त सभी मामलों के लिए नोडल एजेन्सी है।

सभी पांच संघीय क्षेत्रों (अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दमन एवं दीव, दादरा एवं नागर हवेली तथा लक्षद्वीप), जहां कि विधायिका नहीं है, में गृह मंत्रालय की सलाहकार समिति (HMAC) एक फोरम है, जिसमें प्रशासनक एवं संबंधित संघीय क्षेत्र के सांसद के अलावा स्थानीय निर्वाचित निकायों, जैसे-जिला पंचायत तथा नगर परिषद/समिति के सदस्य नामित सदस्यों के रूप में भाग लेते हैं। गृह मंत्रालय की सलाहकार समिति की बैठक की अध्यक्षता केन्द्रीय गृह मंत्री तथा उनकी उनुपस्थिति में केन्द्रीय गृह राज्य-मंत्री करते हैं। समिति में संघीय क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित मामलों पर चर्चा की जाती है।’

विधानसभा के अवकाश के दौरान उप-राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। ये अध्यादेश विधानसभा के अधिनियम के ही समान होते हैं। इस प्रकार के अध्यादेश के लिए आवश्यक है कि विधानसभा का सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के भीतर विधानसभा इसे अपनी स्वीकृति दे दे। उप-राज्यपाल कभी भी इस अध्यादेश को वापस कर सकता है परंतु वह उस समय अध्यादेश प्रख्यापित नहीं कर सकता, जब विधानसभा को विघटित कर दिया गया हो या स्थगित कर दिया हो। इस तरह के अध्यादेश बिना राष्ट्रपति की स्वीकृति से न तो लाए जा सकते हैं और न ही वापस लिए जा सकते हैं।

तालिका 36.2 राज्य व केंद्रशासित प्रदेशों में तुलना

राज्य  केंद्रशासित प्रदेश
1. केंद्र से संघीय संबंध1. केंद्र से एकात्मक (एकिक) संबंध
2. केंद्र के साथ शक्ति का बंटवारा2. ये सीधे तौर पर केंद्र के प्रशासन व नियंत्रण में होते हैं
3. इन्हें स्वायत्तता है3. इन्हें कोई स्वायत्तता नहीं है
4. प्रशासनिक व्यवस्था में समरूपता4. प्रशासनिक व्यवस्था में समरूपत्ता नहीं होती
5. राज्यपाल कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं5. कार्यपालिका प्रमुख अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं- प्रशासक, उप-राज्यपाल या मुख्य आयुक्त
6. राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है6. प्रशासक राष्ट्रपति के अभिकर्ता की तरह हैं
7. राज्यों के मामले में संसद को राज्य सूची के विषयों पर कुछ आसामान्य परिस्थितियों को छोड़कर विधि बनाने का अधिकार नहीं है7. संसद को केंद्रशासित प्रदेशों में तीनों सूची के विषयों पर विधि बनाने का अधिकार

तालिका 36.3 संघीय क्षेत्रों से संबंधित अनुच्छेद, एक नजर में

अनुच्छेद विषय-वस्तु
239संघीय क्षेत्रों का प्रशासन
239Aकतिपय संघीय क्षेत्रों के लिए स्थानीय विधायिका अथवा मंत्रिपरिषद् का सृजन
239AAदिल्ली से संबंधित विशेष प्रावधान
239ABसंवैधानिक तंत्र के विफलता की स्थिति से संबंधित प्रावधान
239Bविधायिका की अनुपस्थिति में प्रशासक का अध्यादेश जारी करने की शक्ति
240कतिपय संघीय क्षेत्रों की विनिमय बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति
241संघीय क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय
242कूर्ग (Coorg) (निरस्त)

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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