दुनिया के प्राचीनतम साहित्यिक स्रोतों में एक
शायद तुमने वेदों के बारे में सुना होगा। वेद चार हैं- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। सबसे पुराना वेद है, त्रऋग्वेद जिसकी रचना लगभग 3500 साल पहले हुई। त्रऋग्वेद में एक हजार से ज्यादा प्रार्थनाएँ हैं जिन्हें, सूक्त कहा गया है। सूक्त का मतलब है, अच्छी तरह से बोला गया। ये विभिन्न देवी-देवताओं की स्तुति में रचे गए हैं। इनमें से तीन देवता बहुत महत्वपूर्ण हैं: अग्नि, इन्द्र और सोम। अग्नि आग के देवता, इन्द्र युद्ध के देवता हैं और सोम एक पौधा है, जिससे एक खास पेय बनाया जाता था।
वैदिक प्रार्थनाओं की रचना ऋषियों ने की थी। आचार्य विद्यार्थियों को इन्हें अक्षरों, शब्दों और वाक्यों में बाँटकर, सस्वर पाठ द्वारा कंठस्थ करवाते थे। अधिकांश सूक्तों के रचयिता, सीखने और सिखाने वाले पुरुष थे। कुछ प्रार्थनाओं की रचना महिलाओं ने भी की थी। ऋग्वेद की भाषा प्राक् संस्कृत या वैदिक संस्कृत कहलाती है। तुम स्कूल में जो संस्कृत पढ़ती हो उससे यह भाषा थोड़ी भिन्न है।
संस्कृत और अन्य भाषाएँ
संस्कृत भाषा भारोपीय (भारत-यूरोपीय) भाषा-परिवार का हिस्सा है। भारत की कई भाषाएँ- असमिया, गुजराती, हिंदी, कश्मीरी और सिंधी, एशियाई भाषाएँ, जैसे फ़ारसी तथा यूरोप की बहुत-सी भाषाएँ, जैसे- अंग्रेज़ी, फ्रांसीसी, जर्मन, यूनानी, इतालवी, स्पैनिश आदि इसी परिवार से जुड़ी हुई हैं। उन्हें एक भाषा-परिवार इसलिए कहा जाता है क्योंकि आरंभ में उनमें कई शब्द एक जैसे थे। उदाहरण के लिए ‘मातृ’ (संस्कृत), माँ (हिंदी) और ‘मदर’ (अंग्रेजी) शब्द को देखो।
क्या तुम्हें इनमें कोई समानता नज़र आती है?
उपमहाद्वीप में दूसरे भाषा-परिवारों की भी भाषाएँ बोली जाती हैं। उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर प्रदेशों में तिब्बत-बर्मा परिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम, द्रविड़ भाषा-परिवार की भाषाएँ हैं। जबकि झारखंड और मध्य भारत के कई हिस्सों में बोली जाने वाली भाषाएँ ऑस्ट्रो-एशियाटिक परिवार से जुड़ी हैं।
उन भाषाओं की सूची बनाओ जिनके बार में तुमने सुन रखा है। उनके भाषा-परिवारी को पहचानने की कोशिश करा।
हम जिन किताबों को पढ़ते हैं वे लिखी और छापी गई हैं। ऋग्वेद का उच्चारण किया जाता था और श्रवण किया जाता था न कि पढ़ा जाता था। रचना के कई सदियों बाद इसे पहली बार लिखा गया। इसे छापने का काम तो मुश्किल से दो सौ साल पहले हुआ।
इतिहासकार ऋग्वेद का अध्ययन कैसे करते हैं?
इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ताओं की तरह ही अतीत के बारे में जानकारी इकट्ठी करते हैं। लेकिन भौतिक अवशेषों के अलावा वे लिखित स्रोतों का भी उपयोग करते हैं। चलो देखते हैं कि वे ऋग्वेद का अध्ययन कैसे करते हैं। ऋग्वेद के कुछ सूक्त वार्तालाप के रूप में हैं। विश्वामित्र नामक ऋषि और देवियों के रूप में पूजित दो नदियों (व्यास और सतलुज) के बीच यह संवाद एक ऐसे ही सूक्त का अंश है।
ऋग्वेद की पाण्डुलिपि का एक पन्ना।
भूर्ज वृक्ष की छाल पर लिखी यह पाण्डुलिपि कश्मीर में पाई गई थी। लगभग 150 वर्ष पहले ऋग्वेद को सबसे पहली बार छापने के लिए इसका उपयोग किया गया था। इसी पाण्डुलिपि को देखकर अंग्रेज़ी अनुवाद तैयार हुआ। यह पाण्डुलिपि पुणे, महाराष्ट्र के एक पुस्तकालय में सुरक्षित है।
विश्वामित्र और नदियाँ
विश्वामित्र – हे नदियों, अपने बछड़ों को चाटती हुई दो दमकती गायों की तरह, दो फुर्तीले घोड़ों की चाल से पहाड़ों से नीचे आओ। इन्द्र द्वारा दी हुई शक्ति से स्फूर्त तुम रथों की गति से सागर की ओर बह रही हो। तुम जल से परिपूर्ण हो और एक-दूसरे से मिल जाना चाहती हो।
नदियाँ – जल से ने परिपूर्ण हम देवताओं के बनाए रास्ते पर चलती हैं। एक बार निकलने पर हमें रोका नहीं जा सकता। हे ऋषि, तुम हमसे प्रार्थना क्यों कर रहे हो?
विश्वामित्र – हे बहनों, मुझ गायक की प्रार्थना सुनो। में रथों और गाड़ियों सहित बहुत दूर से आया हूँ। कृपा करके अपने जल को हमारे रथों और गाड़ियों की धुरियों के ऊपर न उठाओ ताकि हम आसानी से उस पार जा सकें।
नदियाँ – हम तुम्हारी प्रार्थना सुनेंगे, जिससे तुम सब सुरक्षित उस पार जा सको।
इतिहासकार यह बताते हैं कि यह प्रार्थना उस क्षेत्र में रची गई होगी जहाँ ये नदियाँ बहती हैं। वे यह भी सुझाते हैं कि जिस समाज में ऋषि रहते थे वहाँ घोड़ों और गायों को बहुत महत्त्व दिया जाता था। इसीलिए नदियों की तुलना घोड़ों और गायों से की गई है।
क्या तुम्हें लगता है कि रथ भी महत्वपूर्ण थे? अपने जवाब के लिए कारण बताओ। प्रार्थना की पंक्तियों को दुबारा पढ़कर यह बताओ कि उनमें परिवहन के लिए किन-किन साधनां का उल्लेख है।
ऋग्वेद की प्रार्थनाओं में अन्य दूसरी नदियों खासकर सरस्वती, सिन्धु और उसकी सहायक नदियों का भी जिक्र है। गंगा और यमुना का उल्लेख सिर्फ एक बार हुआ है।
मवेशी, घोड़े और रथ
ऋग्वेद में मवेशियों, बच्चों (खासकर पुत्रों) और घोड़ों की प्राप्ति के लिए अनेक प्रार्थनाएँ हैं। घोड़ों को लड़ाई में रथ खींचने के काम में लाया जाता था। इन लड़ाईयों में मवेशी जीत कर लाए जाते थे। लड़ाईयाँ वैसे ज़मीन के लिए भी लड़ी जाती थीं जहाँ अच्छे चारागाह हों या जहाँ पर जौ जैसी जल्दी तैयार हो जाने वाली फ़सलों को उपजाया जा सकता हो। कुछ लड़ाईयाँ पानी के स्रोतों और लोगों को बंदी बनाने के लिए भी लड़ी जाती थीं।
युद्ध में जीते गए धन का कुछ भाग सरदार रख लेते थे तथा कुछ हिस्सा पुरोहित को दिया जाता था। शेष धन आम लोगों में बाँट दिया जाता था। कुछ धन यज्ञ करने के लिए भी प्रयुक्त होता था। यज्ञ की आग में आहुति दी जाती थी। ये आहुतियाँ देवी-देवताओं को दी जाती थीं। घी, अनाज और कभी-कभी जानवरों की भी आहुति दी जाती थी।
अधिकांश पुरुष इन युद्धों में भाग लेते थे। कोई स्थायी सेना नहीं होती थी, लेकिन लोग सभाओं में मिलते-जुलते थे और युद्ध व शांति के विषय में सलाह-मशविरा करते थे। वहाँ ये ऐसे लोगों को अपना सरदार चुनते थे जो बहादुर और कुशल योद्धा हों।
लोगों की विशेषता बताने वाले शब्द
लोगों का वर्गीकरण काम, भाषा, परिवार या समुदाय, निवास स्थान या सांस्कृतिक परंपरा के आधार पर किया जाता रहा है। ऋग्वेद में लोगों की विशेषता बताने वाले कुछ शब्दों को देखो।
ऐसे दो समूह हैं जिनका वर्गीकरण काम के आधार पर किया गया है। पुरोहित जिन्हें कभी-कभी ब्राह्मण कहा जाता था तरह-तरह के यज्ञ और अनुष्ठान करते थे। दूसरे लोग थे – राजा ।
ये राजा वैसे नहीं थे जिनके बारे में तुम बाद में पढ़ोगी। ये न तो बड़ी राजधानियों और महलों में रहते थे, न इनके पास सेना थी, न ही ये कर वसूलते थे। प्रायः राजा की मृत्यु के बाद उसका बेटा अपने आप ही शासक नहीं बन जाता था।
पिछले अनुभाग को एक बार फिर पढ़ो और यह पता लगाने की कोशिश करो कि राजा क्या करते थे।
जनता या पूरे समुदाय के लिए दो शब्दों का इस्तेमाल होता था। एक था जन जिसका प्रयोग हिंदी व अन्य भाषाओं में आज भी होता है। दूसरा था विश् जिससे वैश्य शब्द निकला है। इस विषय पर तुम अध्याय 5 में विस्तार से पढ़ोगी।
ऋग्वेद में विश् और जनों के नाम मिलते हैं। इसलिए हमें पुरू-जन या विश्, भरत-जन या विश्, यदु-जन या विश् जैसे कई उल्लेख मिलते हैं।
तुम्हें इनमें से कोई नाम जाना-पहचाना लगता है?
जिन लोगों ने इन प्रार्थनाओं की रचना की वे कभी-कभी खुद को आर्य कहते थे तथा अपने विरोधियों को दास या दस्यु कहते थे। दस्यु वे लोग थे जो यज्ञ नहीं करते थे और शायद दूसरी भाषाएँ बोलते थे। बाद के समय में दास (स्त्रीलिंगः दासी) शब्द का मतलब गुलाम हो गया। दास वे स्त्री और पुरुष होते थे जिन्हें युद्ध में बंदी बनाया जाता था। उन्हें उनके मालिक की जायदाद माना जाता था। जो भी काम मालिक चाहते थे उन्हें वह सब करना पड़ता था।
जिस युग में उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में ऋग्वेद की रचना हो रही थी उसी समय दूसरी जगहों पर एक अलग तरह का विकास हो रहा था। देखो, वहाँ क्या हो रहा था।
खामोश प्रहरी – कहानी महापाषाणों की
ये शिलाखण्ड महापाषाण (महा: बड़ा, पाषाण : पत्थर) नाम से जाने जाते हैं। ये पत्थर दफ़न करने की जगह पर लोगों द्वारा बड़े करीने से लगाए गए थे। महापाषाण कब्रें बनाने की प्रथा लगभग 3000 साल पहले शुरू हुई। यह प्रथा दक्कन, दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्वी भारत और कश्मीर में प्रचलित थी।
कुछ महत्वपूर्ण महापाषाण पुरास्थल मानचित्र 2 में दिखाए गए हैं। कुछ महापाषाण ज़मीन के ऊपर ही दिख जाते हैं। कुछ महापाषाण जमीन के भीतर भी होते हैं।
कई बार पुरातत्त्वविदों को गोलाकार सजाए हुए पत्थर मिलते हैं। कई बार अकेला खड़ा हुआ पत्थर मिलता है। ये ही एकमात्र प्रमाण हैं जो ज़मीन के नीचे कब्रों को दर्शाते हैं।
महापाषाणों के निर्माण के लिए लोगों को कई तरह के काम करने पड़ते थे। हमने जो कार्यों की सूची बनाई है उन्हें क्रमबद्ध करो। गड्ढे खोदना, शिलाखंडों को ढो कर लाना, बड़े पत्थरों को तराशना और मरे हुए को दफ़नाना।
इन सब कब्रों में कुछ समानताएँ हैं। सामान्यतः मृतकों को खास किस्म के मिट्टी के बर्तनों के साथ दफ़नाया जाता था जिन्हें काले-लाल मिट्टी के बर्तनों (ब्लैक एण्ड रेड वेयर) के नाम से जाना जाता है। इनके साथ ही मिले हैं लोहे के औज़ार और हथियार, घोड़ों के कंकाल और सामान तथा पत्थर और सोने के गहने ।
क्या हड़प्पा के शहरों में लोहे का प्रयोग होता था?
ऊपरः इस तरह के महापाषाण को ताबूत शवाधान (सिस्ट) कहा जाता है। यहाँ दिखाए गए सिस्ट में एक पोर्ट-होल (बड़ा सुराख) है जो शायद पत्थरों से बने हुए कमरे में जाने का रास्ता था।
महापाषाण कब्रों से मिले लोहे के सामान
बाईं ओरः घोड़े के लिए सामान नीचे बाईं ओरः कुल्हाड़ियाँ
नीचेः एक कटार
लोगों की सामाजिक असमानताओं के बारे में पता करना
पुरातत्त्वविद् यह मानते हैं कि कंकाल के साथ पाई गई चीजें मरे हुए व्यक्ति की ही रही होंगी। कभी-कभी एक कब्र की तुलना में दूसरी कब्र में. ज्यादा चीजें मिलती हैं। मानचित्र 2 पर (पृष्ठ 12) ब्रह्मगिरि को खोजो। यहाँ एक व्यक्ति की कब्र में 33 सोने के मनके और शंख पाए गए हैं। दूसरे कंकालों के पास सिर्फ़ कुछ मिट्टी के बर्तन ही पाए गए। यह दफ़नाए गए लोगों की सामाजिक स्थिति में भिन्नता को दर्शाता है। कुछ लोग अमीर थे तो कुछ लोग गरीब, कुछ लोग सरदार थे तो दूसरे अनुयायी।
क्या कुछ कब्रगाहें खास परिवारों के लिए थीं?
कभी-कभी महापाषाणों में एक से अधिक कंकाल मिले हैं। वे यह दर्शाते हैं कि शायद एक ही परिवार के लोगों को एक ही स्थान पर अलग-अलग समय पर दफ़नाया गया था। बाद में मरने वाले लोगों को पोर्ट-होल के रास्ते कब्रों में लाकर दफ़नाया जाता था। ऐसे स्थान पर गोलाकार लगाए गए पत्थर या चट्टान चिह्नों का काम करते थे, जहाँ लोग आवश्यकतानुसार शवों को दफ़नाने दुबारा आ सकते थे।
इनामगाँव के एक विशिष्ट व्यक्ति की कब्र
मानचित्र 2 में (पृष्ठ 12) इनामगाँव यह भीमा की सहायक नदी घोड़ के किनारे एक जगह है। इस जगह पर 3600 से 2700 साल पहले लोग रहते थे। यहाँ वयस्क लोगों को प्रायः गड्ढे में सीधा लिटा कर दफ़नाया जाता था। उनका सिर उत्तर की ओर होता था। कई बार उन्हें घर के अंदर ही दफ़नाया जाता था। ऐसे बर्तन जिनमें शायद खाना और पानी हों, दफ़नाए गए शव के पास रख दिए जाते थे।
एक आदमी को पाँच कमरों वाले मकान के आँगन में, चार पैरों वाले मिट्टी के एक बड़े से संदूक में दफ़नाया गया था। बस्ती के बीच में बसा यह घर गाँव के सबसे बड़े घरों में एक था। इस घर में एक अनाज का गोदाम भी था। शव के पैर मुड़े हुए थे।
क्या तुम्हें लगता है कि यह किसी सरदार का शव था? अपने जवाब का कारण बताओ।
क्या बताते हैं हमें कंकालों के अध्ययन
छोटे आकार के आधार पर एक बच्चे के कंकाल को आसानी से पहचाना जा सकता है। लेकिन एक बच्चे और बच्ची के कंकाल के बीच कोई बड़ा फ़र्क नहीं होता।
क्या हम यह पता लगा सकते हैं कि कंकाल किसी पुरुष का था या स्त्री का?
कभी-कभी लोग कंकाल के साथ मिले सामानों के आधार पर इसका अंदाजा लगाते हैं। उदाहरण के लिए यदि कंकाल के साथ गहने मिलते हैं तो कई बार उसे महिला का कंकाल मान लिया जाता है। लेकिन ऐसी समझ के साथ समस्याएँ हैं। अक्सर पुरुष भी आभूषण पहनते थे।
कंकाल का लिंग पहचानने का बेहतर तरीका उसकी हड़ियों की जाँच है। चूंकि महिलाएँ बच्चों को जन्म देती हैं इसलिए उनका कटि-प्रदेश या कूल्हा पुरुषों से ज्यादा बड़ा होता है।
ये समझ कंकालों के आधुनिक अध्ययन पर आधारित है।
आज से लगभग 2000 साल पहले चरक नाम के प्रसिद्ध वैद्य हुए थे। उन्होंने चिकित्सा शास्त्र पर चरक संहिता नाम की किताब लिखी। वे कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में 360 हड्डियों होती हैं। यह आधुनिक शरीर रचना विज्ञान की 206 हड्डियों से काफी ज्यादा है। सम्भवतः चरक ने अपनी गिनती में दाँत, हड्डियों के जोड़ और कार्टिलेज को जोड़कर यह संख्या बताई थी।
तुम्हारे अनुसार शरीर के बार में उन्होंने इतनी विस्तृत जानकारी कैसे इकट्टा की होगी?
इनामगाँव के लोगों के काम-धंधे
इनामगाँव में पुरातत्त्वविदों को गेहूँ, जौ, चावल, दाल, बाजरा, मटर और तिल के बीज मिले हैं। कई जानवरों की हड्डियाँ भी मिली हैं। कई हड्डियों पर काटने के निशान से यह अंदाजा होता है कि लोग इन्हें खाते होंगे। गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, कुत्ता, घोड़ा, गधा, सूअर, साँभर, चितकबरा हिरण, कृष्ण-मृग, खरहा, नेवला, चिड़ियाँ, घड़ियाल, कछुआ, केकड़ा और मछली की हड्डियाँ भी पाई गई हैं। ऐसे साक्ष्य मिले हैं कि बेर, आँवला, जामुन, खजूर और कई तरह की रसभरियाँ एकत्र की जाती थीं।
यह भी पढ़ें: आरंभिक नगर: अध्याय-3
आओ याद करें
1. निम्नलिखित को सुमेल करो
कॉलम 1 | कॉलम 2 |
सूक्त | सजाए गए पत्थर |
रथ | अनुष्ठान |
यज्ञ | अच्छी तरह से बोला गया |
दास | युद्ध में प्रयोग किया जाता था |
महापाषाण | गुलाम |
Ans.
कॉलम 1 | कॉलम 2 |
सूक्त | अच्छी तरह से बोला गया |
रथ | युद्ध में प्रयोग किया जाता था |
यज्ञ | अनुष्ठान |
दास | गुलाम |
महापाषाण | सजाए गए पत्थर |
2. वाक्यों को पूरा करो
(क) मालिक की सेवा करने के लिए दासों का इस्तेमाल किया जाता था।
(ख) दक्कन, दक्षिण भारत, उत्तरपूर्वी भारत और कश्मीर में महापाषाण पाए जाते हैं।
(ग) ज़मीन पर गोले में लगाए गए पत्थर या चट्टान चिन्हों का काम करते थे।
(घ) पोर्ट-होल का इस्तेमाल पत्थरों से बने हुए कमरे में जाने के लिए होता था।
(ङ) इनामगाँव के लोग अनाज, फल और मांस खाते थे।
आओ चर्चा करें
3. आज हम जो किताबें पढ़ते हैं वे ऋग्वेद से कैसे भिन्न हैं?
Ans. आज हम जो किताबें पढ़ते हैं वे लिखी और छापी गई हैं, जबकि ऋग्वेद का उच्चारण और श्रवण किया जाता था। ऋग्वेद की रचना के सदियों बाद इन्हें लिखा गया था। ऋग्वेद छपने का काम मुश्किल से दो सौ साल पहले हुआ।
4. पुरातत्त्वविद् कब्रों में दफ़नाए गए लोगों के बीच सामाजिक अंतर का पता कैसे लगाते हैं?
Ans. पुरातत्त्वविद् दफ़नाए गए लोगों की कब्रों से प्राप्त वस्तुओं के आधार पर सामाजिक अंतर का पता लगाते हैं। जैसे-ब्रह्मगिरि में एक व्यक्ति की कब्र से 33 सोने के मनके और शंख पाए गए हैं, जबकि दूसरी कब्र के कंकाल के पास केवल मिट्टी के ही बर्तन मिले हैं। यह अंतर दफनाए गए लोगों की सामाजिक स्थिति में भिन्नता को दर्शाता है
5. एक राजा का जीवन दास या दासी के जीवन से कैसे भिन्न होता था?
Ans. एक दास या दासी का कष्टपूर्ण जीवन राजा के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन से पूर्णतः भिन्न होता था। दास या दासी वे स्त्री और पुरुष होते थे जिन्हें राजा द्वारा युद्ध में बंदी बनाया जाता था। उन्हें राजा की जायदाद माना जाता । था और उन्हें राजा की सभी आज्ञाओं का पालन करना पड़ता था।
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