जहां पहिया है : अध्याय 9

पुडुकोट्टई (तमिलनाडु): साइकिल चलाना एक सामाजिक आंदोलन है? कुछ अजीब-सी बात है-है न! लेकिन चौंकने की बात नहीं है। पुडुकोट्टई जिले की हज़ारों नवसाक्षर ग्रामीण महिलाओं के लिए यह अब आम बात है। अपने पिछड़ेपन पर लात मारने, अपना विरोध व्यक्त करने और उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते हैं। कभी-कभी ये तरीके अजीबो-गरीब होते हैं।

भारत के सर्वाधिक गरीब जिलों में से एक है पुडुकोट्टई। पिछले दिनों यहाँ की ग्रामीण महिलाओं ने अपनी स्वाधीनता, आजादी और गतिशीलता को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीक के रूप में साइकिल को चुना है। उनमें से अधिकांश नवसाक्षर थीं। अगर हम दस वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को अलग कर दें तो इसका अर्थ यह होगा कि यहाँ ग्रामीण महिलाओं के एक-चौथाई हिस्से ने साइकिल चलाना सीख लिया है और इन महिलाओं में से सत्तर हजार से भी अधिक महिलाओं ने ‘प्रदर्शन एवं प्रतियोगिता’ जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में बड़े गर्व के साथ अपने नए कौशल का प्रदर्शन किया और अभी भी उनमें साइकिल चलाने की इच्छा जारी है। वहाँ इसके लिए कई ‘प्रशिक्षण शिविर’ चल रहे हैं।

ग्रामीण पुडुकोट्टई के मुख्य इलाकों में अत्यंत रूढ़िवादी पृष्ठभूमि से आईं युवा मुस्लिम लड़कियाँ सड़कों से अपनी साइकिलों पर जाती हुई दिखाई देती हैं। जमीला बीवी नामक एक युवती ने जिसने साइकिल चलाना शुरू किया है, मुझसे कहा-“यह मेरा अधिकार है, अब हम कहीं भी जा सकते हैं। अब हमें बस का इंतजार नहीं करना पड़ता। मुझे पता है कि जब मैंने साइकिल चलाना शुरू किया तो लोग फ़ब्तियाँ कसते थे। लेकिन मैंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।”

फातिमा एक माध्यमिक स्कूल में पढ़ाती हैं और उन्हें साइकिल चलाने का ऐसा चाव लगा है कि हर शाम आधा घंटे के लिए किराए पर साइकिल लेती हैं। एक नयी साइकिल खरीदने की उनकी हैसियत नहीं है। फातिमा ने बताया कि-“साइकिल चलाने में एक खास तरह की आज़ादी है। हमें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। मैं कभी इसे नहीं छोड़ेंगी।” जमीला, फातिमा और उनकी मित्र अवकन्नी-इन सबकी उम्र 20 वर्ष के आसपास है और इन्होंने अपने समुदाय की अनेक युवतियों को साइकिल चलाना सिखाया है।

इस जिले में साइकिल की धूम मची हुई है। इसकी प्रशंसकों में हैं महिला खेतिहर मजदूर, पत्थर खदानों में मजदूरी करनेवाली औरतें और गाँवों में काम करनेवाली नर्से। बालवाड़ी और आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, बेशकीमती पत्थरों को तराशने में लगी औरतें और स्कूल की अध्यापिकाएँ भी साइकिल का जमकर इस्तेमाल कर रही हैं। ग्राम सेविकाएँ और दोपहर का भोजन पहुँचानेवाली औरतें भी पीछे नहीं हैं। सबसे बड़ी संख्या उन लोगों की है जो अभी नवसाक्षर हुई हैं। जिस किसी नवसाक्षर अथवा नयी-नयी साइकिल चलानेवाली महिला से मैंने बातचीत की, उसने साइकिल चलाने और अपनी व्यक्तिगत आज्जादी के बीच एक सीधा संबंध बताया।

साइकिल आंदोलन की एक अगुआ का कहना है, “मुख्य बात यह है कि इस आंदोलन ने महिलाओं को बहुत आत्मविश्वास प्रदान किया। महत्वपूर्ण यह है कि इसने पुरुषों पर उनकी निर्भरता कम कर दी है। अब हम प्रायः देखते हैं कि कोई औरत अपनी साइकिल पर चार किलोमीटर तक की दूरी आसानी से तय कर पानी लाने जाती है। कभी-कभी साथ में उसके बच्चे भी होते हैं। यहाँ तक कि साइकिल से दूसरे स्थानों से सामान ढोने की व्यवस्था भी खुद ही की जा सकती है। लेकिन यकीन मानिए, जब इन्होंने साइकिल चलाना शुरू किया तो इन पर लोगों ने जमकर प्रहार किया जिसे इन्हें झेलना पड़ा। गंदी-गंदी टिप्पणियाँ की गईं लेकिन धीरे-धीरे साइकिल चलाने को सामाजिक स्वीकृति मिली। इसलिए महिलाओं ने इसे अपना लिया।

साइकिल प्रशिक्षण शिविर देखना एक असाधारण अनुभव है। किलाकुरुचि गाँव में सभी साइकिल सीखनेवाली महिलाएँ रविवार को इकट्ठी हुई थीं। साइकिल चलाने के आंदोलन के समर्थन में ऐसे आवेग देखकर कोई भी हैरान हुए बिना नहीं रह सकता। उन्हें इसे सीखना ही है। साइकिल ने उन्हें पुरुषों द्वारा थोपे गए दायरे के अंदर रोज़मर्रा की घिसी-पिटी चर्चा से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया। ये नव-साइकिल चालक गाने भी गाती हैं। उन गानों में साइकिल चलाने को प्रोत्साहन दिया गया है। इनमें से एक गाने की पंक्ति का भाव है-‘ओ बहिना, आ सीखें साइकिल, घूमें समय के पहिए संग…’

जिन्हें साइकिल चलाने का प्रशिक्षण मिल चुका है उनमें से बहुत बड़ी संख्या में साइकिल सीख चुकी महिलाएँ अभी नयी-नयी साइकिल सीखनेवाली महिलाओं को भरपूर सहयोग देती हैं। उनमें यहाँ न केवल सीखने-सिखाने की इच्छा दिखाई देती है; बल्कि उनके बीच यह उत्साह भी दिखाई देता है कि सभी महिलाओं को साइकिल चलाना सीखना चाहिए।

1992 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बाद अब यह जिला कभी भी पहले जैसा नहीं हो सकता। हैंडल पर झंडियाँ लगाए, घंटियाँ बजाते हुए साइकिल पर सवार 1500 महिलाओं ने पुडुकोट्टई में तूफ्नान ला दिया। महिलाओं की साइकिल चलाने की इस तैयारी ने यहाँ रहनेवालों को हक्का-बक्का कर दिया।

इस सारे मामले पर पुरुषों की क्या राय थी? इसके पक्ष में ‘आर. साइकिल्स’ के मालिक को तो रहना ही था। इस अकेले डीलर के यहाँ लेडीज साइकिल की बिक्री में साल भर के अंदर काफी वृद्धि हुई। माना जा सकता है कि इस आँकड़े को दो कारणों से कम करके आँका गया। पहली बात तो यह है कि-ढेर सारी महिलाओं ने जो लेडीज़ साइकिल का इंतजार नहीं कर सकती थीं, जेंट्स साइकिलें खरीदने लगीं। दूसरे, उस डीलर ने बड़ी सतर्कता के साथ यह जानकारी मुझे दी थी-उसे लगा कि मैं बिक्री कर विभाग का कोई आदमी हूँ।

कुदिमि अन्नामलाई की चिलचिलाती धूप में एक अद्भुत दृश्य की तरह पत्थर के खदानों में दौड़ती-भागती बाईस वर्षीय मनोरमनी को लोगों ने साइकिल सिखलाते देखा। उसने मुझे बताया- “हमारा इलाका मुख्य शहर से कटा हुआ है। यहाँ जो साइकिल चलाना जानते हैं उनकी गतिशीलता बढ़ जाती है।”

साइकिल चलाने के बहुत निश्चित आर्थिक निहितार्थ थे। इससे आय में वृद्धि हुई है। यहाँ की कुछ महिलाएँ अगल-बगल के गाँवों में कृषि संबंधी अथवा अन्य उत्पाद बेच आती हैं। साइकिल की वजह से बसों के इंतजार में व्यय होने वाला उनका समय बच जाता है। खराब परिवहन व्यवस्था वाले स्थानों के लिए तो यह बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरे, इससे इन्हें इतना समय मिल जाता है कि ये अपने सामान बेचने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर पाती हैं।

तीसरे, इससे ये और अधिक इलाकों में जा पाती हैं। अंतिम बात यह है कि अगर आप चाहें तो इससे आराम करने का काफ़ी समय मिल सकता है।

जिन छोटे उत्पादकों को बसों का इंतजार करना पड़ता था, बस स्टॉप तक पहुँचने के लिए भी पिता, भाई, पति या बेटों पर निर्भर रहना पड़ता था। वे अपना सामान बेचने के लिए कुछ गिने-चुने गाँवों तक ही जा पाती थीं। कुछ को पैदल ही चलना पड़ता था। जिनके पास साइकिल नहीं है वे अब भी पैदल ही जाती हैं। फिर उन्हें बच्चों की देखभाल के लिए या पीने का पानी लाने जैसे घरेलू कामों के लिए भी जल्दी ही भागकर घर पहुँचना पड़ता था। अब जिनके पास साइकिलें हैं वे सारा काम बिना किसी दिक्कत के कर लेती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अब आप किसी सुनसान रास्ते पर भी देख सकते हैं कि कोई युवा-माँ साइकिल पर आगे अपने बच्चे को बैठाए, पीछे कैरियर पर सामान लादे चली जा रही है। वह अपने साथ पानी से भरे दो या तीन बर्तन लिए अपने घर या काम पर जाती देखी जा सकती है।

अन्य पहलुओं से ज्यादा आर्थिक पहलू पर ही बल देना गलत होगा। साइकिल प्रशिक्षण से महिलाओं के अंदर आत्मसम्मान की भावना पैदा हुई है यह बहुत महत्वपूर्ण है। फातिमा का कहना है “बेशक, यह मामला केवल आर्थिक नहीं है।” फातिमा ने यह बात इस तरह कही जिससे मुझे लगा कि मैं कितनी मूर्खतापूर्ण ढंग से सोच रहा था। उसने आगे कहा- “साइकिल चलाने से मेरी कौन सी कमाई होती है। मैं तो पैसे ही गँवाती हूँ। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं साइकिल खरीद सकूँ। लेकिन हर शाम मैं किराए पर साइकिल लेती हूँ ताकि मैं आजादी और खुशहाली का अनुभव कर सकूँ।” पुडुकोट्टई पहुँचने से पहले मैंने इस विनम्र सवारी के बारे में कभी इस तरह सोचा ही नहीं था। मैंने कभी साइकिल को आजादी का प्रतीक नहीं समझता था।

एक महिला ने बताया “लोगों के लिए यह समझना बड़ा कठिन है कि ग्रामीण महिलाओं के लिए यह कितनी बड़ी चीज है। उनके लिए तो यह हवाई जहाज उड़ाने जैसी बड़ी उपलब्धि है। लोग इस पर हँस सकते हैं लेकिन केवल यहाँ की औरतें ही समझ सकती हैं कि उनके लिए यह कितना महत्वपूर्ण है। जो पुरुष इसका विरोध करते हैं, वे जाएँ और टहलें क्योंकि जब साइकिल चलाने की बात आती है, वे महिलाओं की बराबरी कर ही नहीं सकते।”

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प्रश्न-अभ्यास

जंजीरें

1. “…उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए है, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते हैं…”

आपके विचार से लेखक ‘जंजीरों’ द्वारा किन समस्याओं की ओर इशारा कर रहा है?
Ans. लेखक ने जंजीरों के माध्यम से तमिलनाडु के पुडुकोट्टई जिले की महिलाओं की विभिन्न समस्याओं की ओर इशारा किया गया है। ये महिलाएँ रूढ़िवादिता, पिछडेपन एवं बंधनों से परिपूर्ण जीवन बिता रही थीं। ये महिलाएँ न तो स्वतंत्र निर्णय ले पाती थीं, न व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अनुभव कर पाती थीं। इन्हीं को लेखक ने जंजीरें माना हैं।

2. क्या आप लेखक की इस बात से सहमत है? अपने उत्तर का कारण भी बताइए।
Ans.
हाँ, में लेखक की बात से सहमत हूँ। पुडुकोट्टई जिले की अत्यंत पिछडी पृष्ठभूमि में रहने वाली महिलाओं को वह घिसी-पिटी जिंदगी बितानी पड़ रही थी, जिसे पुरुषों ने थोपा था। उन महिलाओं ने अपना पिछड़ापन भगाने तथा उस घिसी पिटी जिंदगी से निकलने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने साइकिल चलाना सीखा। इससे उनमें आत्मसम्मान जागा, खुशहाली बढ़ी तथा उनकी आत्मनिर्भरता में भी वृद्धि हुई।

पहिया

1. ‘साइकिल आंदोलन’ से पुडुकोट्टई की महिलाओं के जीवन में कौन-कौन से बदलाव आए हैं?
Ans.
साइकिल आंदोलन से पुडुकोट्टई की महिलाओं के जीवन में अनेक बदलाव आए: जैसे –

(i) ‘साइकिल आंदोलन’ से महिलाएँ अपनी स्वाधीनता व आज़ादी के प्रति जागृत हुई हैं।

(ii) ‘साइकिल आंदोलन’ ने उन्हें नवसाक्षर किया है, आर्थिक स्थिति सुधरी है।

(iii) ‘साइ‌किल आंदोलन’ ने उन्हें अधिकारों के प्रति जागृत किया है।

(iv) साइकिल आंदोलन’ ने उन्हें समाज में स्वयं के लिए बराबरी का दर्जा देने के लिए प्रेरित किया है, समय और श्रम की बचत हुई है।

(v) ‘साइ‌किल आंदोलन’ ने उन्हें आत्मनिर्भर व स्वयं के लिए आत्मसम्मान की भावना पैदा की है पुरुष वर्ग पर निर्भरता में कमी आई।

2. शुरूआत में पुरुषों ने इस आंदोलन का विरोध किया परंतु आर. साइकिल्स के मालिक ने इसका समर्थन किया, क्यों?
Ans.
इसका प्रमुख कारण था उनका स्वार्थ। वे इस गाँव के एकमात्र लेडीज साइकिल डीलर थे तो महिलाओं की इस जागृति में उनका साथ देना लाजमी होता है। महिलाओं ने जब आज़ादी का सम्मान करते हुए साइकिल आंदोलन को अपना हथियार बनाया तो, आर. साइकिल्स के मालिक की आय में वृद्धि होना स्वभाविक था। आज उनकी सालाना आय दुगुनी से तिगुनी हो चुकी है, तो वो इसका समर्थन अवश्य करेंगे।

3. प्रारंभ में इस आंदोलन को चलाने में कौन-कौन सी बाधा आई?
Ans.
फातिमा ने जब इस आंदोलन की शुरूआत की तो उसको बड़ी कठिनाइ‌यों का सामना करना पड़ा। उसे लोगों की फब्तियाँ (गंदी टिप्पणियाँ) सुननी पड़ी। फातिमा मुस्लिम परिवार से थी। जो बहुत ही रूढ़िवादी थे। उन्होंने उसके उत्साह को तोड़ने का प्रयास किया। पुरुषों ने भी इसका बहुत विरोध किया। दूसरी कठिनाई यह थी कि लेडीज साइकिल वहाँ पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं थी।

शीर्षक की बात

1. आपके विचार से लेखक ने इस पाठ का नाम ‘जहाँ पहिया है’ क्यों रखा होगा?
Ans.
तमिलनाडु के रूढ़िवादी पुद्धकोट्टई गाँव में महिलाओं का पुरुषों के विरूद्ध खड़े होकर साइकिल को अपनी जागृति के लिए चुनना बहुत बड़ा कदम था। पहिए को गतिशीलता का प्रतीक माना जाता है और इस साइकिल आंदोलन से महिलाओं का जीवन भी गतिशील हो गया। लेखक ने इस पाठ का नाम जहाँ पहिया है’ तमिलनाडु के पुडुकोट्टई गाँव के ‘साइकिल आंदोलन के कारण ही रखा होगा।

2. अपने मन से इस पाठ का कोई दूसरा शीर्षक सुझाइए। अपने दिए हुए शीर्षक के पक्ष में तर्क दीजिए।
Ans.
“औरतें विकास पथ की ओर” इसका नाम रखा जा सकता था। क्योंकि यहाँ औरतों ने अपने अधिकारों के प्रति जागृत होकर साइकिल को अपना हथियार चुना था। इसका मुख्य केंद्र तो स्वयं औरतें ही हैं। यदि वह साइकिल को न चुनकर अन्य किसी और चीज़ को चुनती तो कहानी का शीर्षक बदल जाता परन्तु उस कारण की चुनने वाली औरतें हैं। अपने अधिकारों, आज़ादी व गतिशीलता के लिए आवाज उठाने वाली औरतें हैं। उन्होंने स्वयं के विकास के लिए ये प्रयत्न किया, यानि वह जागरूक हो रही हैं. विकास पथ पर अग्रसर हो रही हैं। अगर आज वो साइकिल चलाना सीख कर अपने अधिकारों के लिय आवाज उठा रही हैं तो कुछ और करना उनके लिए असाध्य नहीं है। इसलिए इसका शीर्षक “औरतें विकास पथ की ओर” होना ज़्यादा उपयुक्त है।

समझने की बात

1. “लोगों के लिए यह समझना बड़ा कठिन है कि ग्रामीण औरतों के लिए यह कितनी बड़ी चीज़ है। उनके लिए तो यह हवाई जहाज उड़ाने जैसी बड़ी उपलब्धि है।”

साइकिल चलाना ग्रामीण महिलाओं के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है? समूह बनाकर चर्चा कीजिए।
Ans. शहरों में यातायात के जहाँ अनेक साधन होते हैं, वहीं महिलाओं की दिनचर्या तथा उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता ग्रामीण महिलाओं से बिल्कुल अलग होती है। ग्रामीण महिलाएँ पुरुष प्रधान समाज में उन्हीं के बनाए नियमों में बंधकर घिसी-पिटी जिंदगी जीने को विवश होती हैं। अब ऐसे में साइकिल चलाते हुए उन्हें बाहर निकलने, आर्थिक स्थिति सुदृद बनाने तथा व्यक्ति गत स्वतंत्रता में वृद्धि हो जाना उनके लिए हवाई जहाज उड़ाने से कम नहीं होगा। सचमुच यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। छात्र इस विषय पर स्वयं चर्चा करें।

2. “पुडुकोट्टई पहुँचने से पहले मैंने इस विनम्र सवारी के बारे में इस तरह सोचा ही नहीं था।” साइकिल को विनम्र सवारी क्यों कहा गया है?
Ans.
साइकिल को विनम्र सवारी इसलिए कहा गया है क्योंकि इसे चलाना बहुत ही आसान है और यह बहुत कम खर्वीती है। इसे स्त्री-पुरुष दोनों हीं चलाते हैं अर्थात यह स्त्री पुरुष का भेदभाव किए बिना उनका कहना मान लेती है।

साइकिल

1. फातिमा ने कहा.”… मैं किराए पर साइकिल लेती हूँ ताकि मैं आजादी और खुशहाली का अनुभव कर सकूँ।”

साइकिल चलाने से फातिमा और पुडुकोट्टई की महिलाओं को ‘आजादी’ का अनुभव क्यों होता होगा?
Ans. फातिमा के गाँव में पुरानी रूढ़िवादी परम्पराएँ थीं। वहाँ औरतों का साइकिल चलाना उचित नहीं माना जाता था। इन रुढ़ियों के बंधनों को तोड़कर स्वयं को पुरुषों की बराबरी का दर्जा देकर फातिमा और पुडुकोट्टई की महिलाओं को ‘आज़ादी का अनुभव होता होगा।

कल्पना से

1. पुडुकोट्टई में कोई महिला अगर चुनाव लड़ती तो अपना पार्टी-चिह्न क्या बनाती और क्यों?
Ans.
पुडुकोट्टई में कोई महिला अगर चुनाव लड़ती तो अपना पार्टी-चिह्न निश्चित रूप से साइकिल ही बनाती। इसका कारण यह है कि पुड्‌कोट्टई की महिलाओं ने साइकिल चलाने को आंदोलन रूप में लिया है। वहाँ की दस साल से बड़ी लड़कियों तथा महिलाओं में से तीन चौथाई से अधिक ने साइकिल चलाना सीख लिया है। यही जनसंख्या तो मतदान में भाग लेती है। ऐसे में साइकिल को पार्टी-चिह्न बनाने वालों की जीत निश्चित होती। इसके अलावा पहिया गतिशीलता का भी प्रतीक है।

2. अगर दुनिया के सभी पहिए हड़ताल कर दें तो क्या होगा?
Ans.
अगर दुनिया के सभी पहिए हड़ताल कर दें तो दुनिया भर का जीवन ठहर जाएगा। पहिया ही यातायात तथा लोगों के आवागमन का साधन है। इसके अभाव में सभी यहाँ-वहाँ ठहर जाएँगे।

3. “1992 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बाद अब यह जिला कभी भी पहले जैसा नहीं हो सकता।” इस कथन का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
Ans. 
1992 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के बाद यह जिला अब पहले जैसा नहीं हो सकता कंथन का अभिप्राय यह है कि सन् 1992 से पहले तक पुडुकोट्टई की महिलाएँ पुरुषों द्वारा थोपी गई जिंदगी जीने को विवश थी किंतु इस दिन वे अपने सभी बंधन तोड़कर बाहर निकल आईं। साइकिल सवार घंटियाँ बजाती 1500 महिलाओं में जागृति आ चुकी थी। अब वे रूढ़िवादी बंधनों में बंधकर नहीं जी सकतीं। साइकिल चलाना सीखने से उनमें जो आत्मनिर्भरता तथा आर्थिक समृद्धि तथा गतिशीलता आ गई थी, फलस्वरूप वे अब पीछे मुड़कर नहीं देख सकती है।

4. मान लीजिए आप एक संवाददाता है। आपको 8 मार्च 1992 के दिन पुडुकोट्टई में हुई घटना का समाचार तैयार करना है। पाठ में दी गई सूचनाओं और अपनी कल्पना के आधार पर एक समाचार तैयार कीजिए।
Ans.
पुडुकोट्टई, 9 मार्च 1992, (विशेष संवाददाता द्वारा) कल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पुड्‌कोट्टई जिला मुख्यालय से मात्र दो किमी दूर स्थित खेल परिसर में एक अद्‌भुत दृश्य देखने का मिला। यहाँ लगभग 1500 महिलाएँ साइकिल पर इंडियाँ लगाए, घंटियों बजाती जिधर से गुजरती, लगता था कि तूफान गुजर रहा है। कल की अबला महिलाएँ इस कदर छा जाएँगी. इस पर विश्वास करना कठिन हो रहा था साइकिल चलाने की यह तैयारी देखकर लोगों ने दाँतों तले उँगलियाँ दबा लीं। उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उस समय महिलाओं का जोश देखते हीं बनता था।

5. अगले पृष्ठ पर दी गयी ‘पिता के बाद’ कविता पढ़िए। क्या कविता में और फातिमा की बात में कोई संबंध हो सकता है? अपने विचार लिखिए।
Ans.
पिता के बाद दी गई कविता पढ़ने से ज्ञात होता है कि कविता में फातिमा की बात में संबंध हो सकता है। एक ओर जहाँ फातिमा साइकिल चलाना सीखकर खुशहाली और व्यक्तिगत आजादी का अनुभव करती है, वहीं दूसरी ओर इस कविता से पता चलता है कि लड़कियाँ हर स्थिति में खुश रहने का प्रयास करती है। वे उत्तरदायित्वों को जिम्मेदारी पूर्वक निभाने का होसला रखती हैं। पिता की अनुपस्थिति में वे परिवार की जिम्मेदारी का भी वहन कर सकती हैं। वे विपरीत परिस्थितियों में भी खुश रहने का प्रयास करती हैं।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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