पादप जगत : अध्याय – 2 , भाग – 3

कवक (Fungi)

वनस्पति विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत कवकों का अध्ययन करते हैं, कवक विज्ञान (Mycology) कहलाती है (नयी विचारधारा के अनुसार कवक-विज्ञान को Mycetology कहा जाना चाहिए)। * इन कवकों द्वारा पौधों में उत्पन्न रोगों के अध्ययन को ‘पादप-रोग विज्ञान’ (Plant Pathology) कहते हैं। मनुष्यों में कवकों द्वारा उत्पन्न रोगों का विवरण इस पुस्तक के भागः3 में किया गया है। पादप रोगों का वर्णन इस प्रकाशन की पुस्तक ‘कृषि एवं प्रौद्योगिकी’ में किया गया है।

कवक (fungi) पर्णहरिमरहित (achlorophyllous), संवहन ऊतक रहित (without vascular tissues = non-vascular), एवं केन्द्रक युक्त (nucleated) होते हैं। * इनमें जनन प्रायः बीजाणुओं द्वारा (by spores) होता है। * इनका शरीर शूकाय सदृश (thalloid) होता है अर्थात जड़, तना एवं पत्तियों में विभक्त नहीं रहता है।* पर्णहरिम की अनुपस्थिति के कारण ये सदैव परपोषित (heterotrophic) होते हैं तथा अपना जीवन परजीवी (parasites) या सहजीवी (Sym-biotic) अथवा मृतोपजीवी (saprophytes) की तरह व्यतीत करते हैं। इनमें संचित भोज्य पदार्थ ग्लाइकोजन (glycogen) एवं वसा के रूप में रहता है।*

वे परजीवी कवक जो पोषक पौधे की कोशा के बाह्य भाग पर उगते हैं और अपना भोजन पोषक पौधे से अपनी विशेष शाखाओं- चूषकांग (haustorium) द्वारा लेते हैं बाह्य परजीवी कहलाते हैं उदाहरण-एरिसाइफी (Erysiphe-Powdery Mildew)। वे परजीवी कवक जो पोषक पौधों के अन्दर ऊतकों में रहते हैं, अन्तः परजीवी कहलाते हैं उदाहरण-ऐल्बूगो।

• कुछ कवक, जैसे कि डैक्टिलेला, आर्थ्रोबॉट्रिस, प्रोटोजून्स व अन्य सूक्ष्म जन्तुओं [जैसे-सूत्रकृमि (eelworms), चक्रधर (roti- fers), आदि] को पकड़कर उनसे अपना भोजन ग्रहण करती हैं, इन्हें परभक्षी कवक (predaceous fungi) कहते हैं।

• कुछ कवक, शैवालों के साथ (लाइकेन में) सहजीवी के रूप में रहते हैं।*

• कुछ कवक सूत्र चीड़ (Pinus), इत्यादि की जड़ों की कोशाओं में फैले रहते हैं और भूमि से खनिज लवण व जल ग्रहण कर चीड़ को देते रहते हैं, चीड़ कवक को खाद्य-पदार्थ देता है जो सहजीवन (symbiosis) का अच्छा उदाहरण है। इस सहजीवन को कवकमूल (Mycorrhiza) कहते हैं (IAS)।*

➤  संरचना

कवक सूक्ष्म पौधे हैं तथा रचना में सरल होते हैं। इनकी शारीरिक रचना एककोशीय अथवा धागे जैसी रचनाओं, कवक- सूत्रों (hyphae) से होती है। इन सूत्रों का समूह कवक-जाल (mycelium) कहलाता है। कुछ कवक सूत्रों में पट (septum) नहीं होते, इन्हें अपटीय (aseptate or coenocytic) कवक-सूत्र कहते हैं, जैसे-फाइकोमाइसीट्स तथा कुछ में पट होते हैं, जैसे-ऐस्कोमाइसीट्स और बेसिडियोमाइसीट्स इन्हें पटीय (septate) कवक-सूत्र कहते हैं। कवक-सूत्रों (hyphae) की भित्ति कवक सेलुलोस (fungus cellulose), काइटिन (chitin) अथवा केलोस (callose) की बनी होती है। * कवक काइटिन (C₂H₄NO₂), की प्रकृति जन्तु काइटिन से भिन्न होती है। प्रत्येक कोशा में कोशाद्रव्य (cytoplasm), केन्द्रक, माइटोकान्ड्रिया, डिक्टियोसोम, राइबोसोम तथा रसधानी (vacu- oles) होते हैं। फाइकोमाइसीट्स के सूत्र संकोशिकी (coenocytic) होते हैं तथा ऐस्कोमाइसीट्स व बेसिडियोमाइसीट्स के सूत्र की कोशाएँ एककेन्द्रकी, द्विकेन्द्रकी अथवा बहुकेन्द्रकी होती हैं। कुछ कवक द्विरूपी (dimorphic) होती हैं, वे एककोशीय तथा कवक- सूत्रों, दोनों रूपों में रहती हैं, जैसे केन्डिडा एल्बीकेन्स, ब्लास्टोमाइसिस डर्मेटाइटिस ।

• म्यूकर, राइजोपस एवं ऐस्पर्जिलस नाइजर को काला फफूँद (black mold); पेनिसिलियम को नीले फफूँद अथवा हरे फफूँद (blue mold or green mold) तथा न्यूरोस्पोरा को लाल अथवा गुलाबी फफूँद (red or pink mold) कहते हैं।*

कवकों में प्रजनन वर्धी (vegetative), अलैंगिक (asexual) तथा लैंगिक (sexual) तीन प्रकार का होता है।

• वर्धीप्रजनन (vegetative reproduction), विखण्डन (Frag- mentation), विभाजन (Fission) एवं मुकुलन (Budding) द्वारा होता है।

• अलैंगिक प्रजनन बीजाणुओं-चलबीजाणु (Zoospores), अचल बीजाणु (Aplanospores) तथा कोनीडिया; नामक विशिष्ट रचनाओं की सहायता से होता है। ध्यातव्य है कि बीजाणुओं (spores) का निर्माण कवकों का विशिष्ट लक्षण है।*

• लैंगिक प्रजनन में दो विभिन्न प्रकार के जनकों के निषेच्य केन्द्रकों (Compatible nuclei) का संलयन (fusion) होता है। इसके फलस्वरूप लैंगिक बीजाणुओं (Sexual spores) एस्कोस्पोर्स, बैसिडियोस्पोर्स, जाइगोस्पोर्स तथा ओस्पोर्स का निर्माण होता है।*

➤ कवकों का आर्थिक महत्व

हमारे जीवन का कवकों से बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। कवकों की अनेक जातियाँ मनुष्य के लिये बहुत आर्थिक महत्व की हैं। कवकों की अनेक लाभदायक व हानिकारक क्रियाएँ हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है। यथा-

• लाभप्रद क्रियाएँ (Useful Activities)

(1) खाद्य-पदार्थ के रूप में (As food)- बहुत से कवक, जैसे छत्रक, गुच्छी, लाइकोपरडोन इत्यादि भोजन के रूप में प्रयोग में आते हैं। छत्रक व गुच्छी की खेती की जाती है। ये प्रोटीन एवं विटामिन के मुख्य साधन हैं। यीस्ट से बहुत से विटामिन, जैसे थायमीन, राइबोफ्लेविन, निकोटिनिक अम्ल एवं बायोटिन, आदि मिलते है। लेन्टिनस इडोडस अथवा शिटेक मशरूम से लेन्टिनेसिन पदार्थ प्राप्त होता है जो रक्त में कोलेस्टिरॉल की मात्रा कम करता है।*

(2) उद्योगों में (In industries) – (क) पनीर उद्योग में-कुछ कवक जैसे-पेनिसिलियम कोमोमबर्टी तथा पेनिसिलियम रौकफोर्टी इत्यादि पनीर बनाने के काम आते हैं।

(ख) डबलरोटी उद्योग में (In baking industry)- कुछ यीस्ट, जैसे-सैकैरोमाइसीज सेरेविसी डबलरोटी बनाने में काम आते हैं।

(ग) ऐल्कोहॉल उद्योग में (In alcohol industry)- यीस्ट द्वारा शर्करा (sugar) के विलयन का किण्वीकरण (fermentation) किया जाता है जिसमें एथिल एल्कोहॉल (ethyl alcohol) बनता है। यीस्ट में जाइमेस विकर (zymase enzyme) होता है जिसके द्वारा किण्वीकरण की क्रिया होती है। इस प्रकार यीस्ट का उपयोग विभिन्न प्रकार की शराब बनाने में किया जाता है।

C6H16O6 2C2H5OH + 2CO2

यीस्ट तथा एल्कोहॉलिक पेय
उत्पाद (Product)
यीस्ट (Yeast sp)
• बीयर (Beer)
सैकरोमाइसीज सेरेबीसी
• रम (Rum)
मै. मेरेबीसी
• स्कॉच तथा व्हिस्की
सै. सेरेवीसी
• शराब (Wine)
सै. इलीप्सोइडिअस

(घ) अम्ल (Acids), विकर (Enzymes), वसा (Fats), इत्यादि के निर्माण में-

• गैलिक अम्लपेनिसिलियम ग्लाउकम, ऐस्पर्जिलस गैलोमाइसिस के द्वारा
• सिट्रिक अम्लसिट्रोमाइसिस फेफीरियोज के द्वारा
• ग्लूकोनिक अम्लऐस्पर्जिलस नाइजर के द्वारा
• एमिलेसऐस्पिर्जिलस ओराइजी के द्वारा
• इनवरटेससैकेरोमाइसीज सेरेविसी के द्वारा
• वसा (Fats)ऐस्पर्जिलस निडुलान्स, ऐस्थर्जिलस सिडोवी, ऐस्पर्जिलस फिसेरी, पेनिसिलियम पिसकेरम, पेसिलियम जेवानिकस, एन्डोमाइसिस वरनेल्स के द्वारा

(3) भूमि की उर्वरता में (In soil fertility) : बहुत से कवक, गले-सड़े पदार्थों से भोजन लेकर जीवित रहते हैं। ऐसे कवक मृतोपजीवी कहलाते हैं। ये मृत शरीर के कार्बनिक पदार्थों का विघटन करके बहुत से लवण पदार्थ बनाते हैं जो पृथ्वी में मिलकर उसकी उर्वरता को बढ़ाते हैं। कुछ कवक प्रोटीन्स का विघटन करके अमोनिया मुक्त करते हैं।

(4) औषधि निर्माण में (In medicines) : बहुत से कवकों का उपयोग कुछ प्रतिजैविक (antibiotic) औषधियों के निर्माण में किया जाता है। ये बहुत से बीमारी फैलाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट कर देती हैं। कवकों से प्राप्त कुछ मुख्य औषधियाँ हैं-

औषधि का नाम
कवक का नाम जिससे निकलती है
• पेनिसिलिन
पेनिसिलियम नोटेटम, पेनिसिलियम क्राइसोजिनम
• इरगोट (Ergot)
क्लेदिसेप्स परप्यूरिआ
• कीटोमिन
कीटोमियम सिनॉयड्स
• सिफेलोस्पोरिन
सिफेलोस्पोरियम मिनिमम
• ग्रिसिओफल्विन
पेनिसिलियम ग्रिसिओफल्वम
• क्लेविसिन
ऐस्पर्जिलस क्लेवेटस

एलेक्जेन्डर फ्लेमिंग (1928) ने पेनिसिलिन को पेनिसिलियम नोटेटम से प्राप्त किया। इसके लिये उन्हें 1945 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।* औद्योगिक स्तर पर पेनिसिलिन को पेनिसिलियम क्राइसोजिनम से तैयार किया जाता है।*

(5) पौधों के पोषण में (In nutrition of plants) – बहुत से कवक कवकमूलों (mycorrhizae) का निर्माण करते हैं जिसके द्वारा बहुत से पौधे, जैसे- पाइनस, जैमिया आदि भूमि से पोषण पदार्थ लेते हैं।

(6) रोग फैलाने वाले कीटो के नियन्त्रण में (In control of insect pests) – कुछ कवक, जैसे एस्चरसोनिआ एलिरॉइड्स, इसोरिया फेरिनोसा एवं ऐम्पूसा स्पलकैरॉइस आदि पौधों पर कीड़े- मकौड़ों द्वारा रोग फैलाने की रोकथाम करने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं।

(7) फाइटोहॉर्मोन्स के निर्माण में (In formation of phytohormones) – जिबरेलिन्स, जो पौधों की लम्बाई में वृद्धि के लिए आवश्यक हैं, एक कवक फ्यूजेरियम मोनिलिफॉर्मी से तैयार किये जाते हैं।*

(8) लघु तत्वों के परीक्षण में- ऐस्पर्जिलस नाइजर कवक के कुछ प्रभेद (strains) अनेक लघु तत्वों के प्रति संवेदनशील होते हैं। यह अवस्तर (substrate) में उपस्थित Cu, Zn व Mo आदि तत्वों की अति सूक्ष्म मात्रा को भी इंगित कर देते हैं। जब ये तत्व कवक द्वारा शोषित कर लिये जाते हैं तो कवक के कोनिडिया का एक विशेष रंग हो जाता है।

(9) जीव-विज्ञान सम्बन्धी खोज में (In biological research) – कुछ कवक, जैसे-न्यूरोस्पोरा, खमीर (Yeast), ऐस्कोबोलस इत्यादि काफी समय से आनुवंशिकी कोशिका-विज्ञान (cytology) एवं उपापचय (metabolism) की खोजों में प्रयोग किये जाते हैं।

• हानिकारक कार्य (Harmful Activities)

कवकों के मुख्य हानिकारक प्रभाव निम्न प्रकार हैं-

1. कुछ कवक मनुष्यों में रोग उत्पन्न करते हैं। ऐस्पर्जिलस की प्रमुख जातियाँ, जैसे-ऐ. नाइजर, ऐ. फ्लावस मनुष्यों के फेफड़ों में एक प्रमुख रोग ऐस्पर्जिलोसिस फैलाती हैं। कुछ कवक गले, कान आदि में भी रोग उत्पन्न करते हैं। दाद (ringworm) रोग ट्राइकोफाइटोन एवं माइक्रोस्पोरम कवकों द्वारा होता है। कवक बीजाणु नम तथा क्षतिग्रस्त त्वचा से होकर मनुष्य के शरीर में प्रवेश करते हैं एवं अंकुरित होकर कवक तन्तुओं का निर्माण करते हैं जिसके फलस्वरूप त्वचा पर भद्दे लाल रंग के चकते पड़ जाते हैं जिनमें खुजली आती है।

2. बहुत से कवक इमारती लकड़ी के वृक्षों में रोग फैलाकर हानि पहुँचाते हैं, जैसे- आर्मिलेरिया मेलिया, सेब के वृक्ष में लाल गलन (red rot) नामक बीमारी फैलाता है। पॉलीपोरस लकड़ी के कटे हुए लट्ठों को नष्ट करता है।

3. कुछ कवक, जैसे- राइजोपास, म्यूकर, ऐस्पर्जिलस आदि खाद्य-पदार्थों को नष्ट कर देते हैं। * इनके बीजाणु वायु द्वारा खुले मुरब्बे, अचारों, जैली, रोटी, फलों, आदि में कवक-जाल फैलाकर उन्हें नष्ट करते हैं।* पेनिसिलियम एक्सपेन्सम, म्यूकर रेमोसस, ऐस्पर्जिलस ग्लावेन्स, ऐम्पर्जिलस नाइजर आदि माँस को नष्ट करते हैं।*

4. कुछ परजीवी कवक जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे- सेप्रोलेग्निया मरी हुई मछलियों पर पाये जाते हैं तथा उनमें रोग उत्पन्न करते हैं।

5. कुछ कवक कपड़े, कैमरों के लेंस, चमड़े के समान, इत्यादि को नष्ट करते हैं-

(क) कपड़ों को नष्ट करने वाले-एल्टरनेरिआ, ट्राइकोडर्मा, कीटोमियम ।

(ख) कागज को नष्ट करने वाले सिफेलोथिसियम, क्लेडोस्पोरियम, फ्यूजेरियम।

(ग) चमड़े के सामान को नष्ट करने वाले-ऐस्पर्जिलस नाइजर, पिसेलोमाइसिस ।

(घ) रबर के सामान को नष्ट करने वाले-ऐस्पर्जिलस, पेनिसिलियम ।

(ङ) कैमरे इत्यादि के लैंस को नष्ट करने वाले*-ऐस्पर्जिलस केन्डिडस, ऐस्पर्जिलस निडुलॉन्स, ऐस्पर्जिलस नाइजर, ऐक्टिनोमाइसिस, हेल्मिन्थोस्पोरियम।

6. बहुत से कवक, जैसे-ऐमेनिटा, जो गलती से ऐगैरिकस के बदले में खा लिये जाते हैं, जहरीले होते हैं, और खाने वाले की मृत्यु कर देते हैं।*

7. ऐफ्लाटॉक्सीन (Aflatoxins): कुछ कवक, जैसे- ऐस्पर्जिलस फ्लेवस, ऐस्पर्जिलस फ्यूमिगेटस, पेनिसिलियम इसलेन्डिसियम, ऐफ्लाटॉक्सीन नामक जहरीला पदार्थ उत्पन्न करते हैं, जो पालतू जानवरों के लिए हानिकारक है। ऐस्पर्जिलस फ्लेवस प्रायः संग्रहित बीजो, मूँगफली, डबलरोटी व डेरी उत्पादों पर उगता है। इस कवक द्वारा उत्पन्न ऐफ्लाटॉक्सीन में एक प्राकृतिक कैंसर जनक पदार्थ (carcinogen) होता है जो यकृत कैंसर उत्पन्न करता है।* ऐफ्लाटॉक्सीन कम आण्विक भार वाले यौगिक हैं। ये अधिक ऊष्मा जैसे खाना पकाने की प्रक्रिया (cooking conditions) में भी नष्ट नहीं होते।

(8) LSD (lysergic acid diethylamide) क्लैविसेप्स नामक कवक से LSD बनाया जाता है जो विभ्रमी (hallucinogenic) पदार्थ है।*

लाइकेन (Lichens)

लाइकेन (Lichens) एक प्रकार के मिश्र जीव (Composite organisms) हैं जो कि एक कवक (एस्कोमाइसिटीज अथवा बैसिडियोमाइसिटीज) तथा शैवाल (प्रायः सायनोबैक्टीरिया) की एक/ दो जातियों के साहचर्य के परिणामस्वरूप बनते हैं।* लाइकेन के कवक घटक को माइकोबायॉन्ट (mycobiont) तथा शैवाल घटक को फाइकोबायॉण्ट (phycobiont) कहते हैं। दोनो घटक परस्पर इस प्रकार रहते हैं कि एक ही सूकाय (thallus) बना लेते हैं और एक ही जीवधारी की तरह व्यवहार करते हैं।

लाइकेन विश्वव्यापी हैं। ये विभिन्न स्थानों तथा आधारों पर जैसे, पेड़ों के तनों, दीवारों, चट्टानों व मृदा आदि पर पाए जाते हैं। ये समुद्र के किनारों से लेकर पहाड़ों के ऊंचे शिखर तक स्थित होते हैं। परन्तु वर्षा प्रचुर उष्णकटिबन्धीय वनों में ये बहुतायत में पाए जाते हैं।

इनमें चट्टानों का क्षरण करके खनिजों को अलग करने की क्षमता होती है। इसलिए ये नंगी चट्टानों पर उग जाते हैं। इनकी मृत्यु व विघटन से वहां खनिज तथा कार्बनिक पदार्थों की तह बन जाती है जिस पर अन्य पौधे उग सकते हैं। इस प्रकार ये चट्टानों पर अन्य पौधों के लिए समुचित परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं। टुण्ड्रा प्रदेशों में तो लाइकेन अत्यधिक प्रचुरता में उपलब्ध होते हैं।

माइकोबायॉण्ट व फाइकोबायॉण्ट के बीच साहचर्य की प्रकृति (Nature of association between the mycobiont and the phycobiont): अधिकांश जीव वैज्ञानिकों का मत है कि लाइकेन थैलस एक प्रकार से परस्पर सहजीविता (mutualistic symbiosis) का उदाहरण है। शैवाल द्वारा कवक को भोजन (शर्करा) की आपूर्ति की जाती है। बदले में कवक द्वारा शैवाल को सुरक्षा, जल, नाइट्रोजनी पदार्थ एवं खनिज लवण प्रदान किए जाते हैं।*

➤  लाइकेन्स का आर्थिक महत्व

• लाइकेन विशेषकर क्रस्टोज लाइकेन, चट्टानों का क्षरण करके उन्हें मृदा में परिवर्तित कर देते हैं। इनकी मृत्यु के बाद इनके थैलस विघटित होकर कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं जो इन चट्टान के खनिज लवणों के साथ मिश्रित होकर मृदा बनाते हैं जिसमें अन्य पौधें उग सकते हैं।

• सल्फर डाइ-ऑक्साइड की सूक्ष्म मात्राओं का इनकी वृद्धि पर दुष्प्रभाव पड़ता है। अतः ये वायु प्रदूषण के अच्छे सूचक होते हैं। प्रदूषित क्षेत्रों में ये विलुप्त हो जाते हैं।*

• कुछ लाइकेन जैसे सिट्रेरिया आइसलैण्डिका तथा डर्मेटोकार्पन मिनिएटम जिन्हें स्टोन मशरूम (Stone mushroom) कहते हैं, खाने के काम आते हैं।*

• लाइकेन्स में विद्यमान लाइकेनिन (lichenin) व अन्य रासायनिक पदार्थों को दवाइयों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

पेल्टीजेरा से हाइड्रोफोबिया के लिए, इवार्निया से कफ के लिए तथा क्लैडोनिया से ज्वर के लिए औषधि प्राप्त की जाती है।*

• अनेक सुगंधियां (perfumes) भी लाइकेन्स से प्राप्त की जाती हैं; जैसे- रैमेलाइना से।

कवक-मूल (Mycorrhiza)

अनेक कवक, उच्च श्रेणी के पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में पाए जाते हैं। इस साहचर्य को कवक-मूल या माइकोराइजा (mycorrhiza) कहते हैं। * इस साहचर्य से पोषी पौधे तथा कवक, दोनों को लाभ होता है। एक ही कवक जाति विभिन्न जातियों के पौधों से तथा पौधों की एक ही जाति कवक की विभिन्न जातियों से परजीवी सम्बन्ध स्थापित कर सकती है।

कवक पौधों द्वारा प्रदत्त शर्कराओं का उपयोग करते हैं। कवक पौधे को कोई क्षति नहीं पहुंचाता। बल्कि कवक-तन्तु मृदा से पानी, नाइट्रोजन व खनिज पदार्थों को अवशोषित करके पौधों को पहुंचाते हैं।*

आर्किड (Orchids) जो कि अन्य पौधों पर अधिपादपी (epi- phytic) होते हैं, के बीजों का अंकुरण केवल कवकों की उपस्थिति में ही होता है। अनेक आर्किड कवकों की अनुपस्थिति में जीवित नहीं रह सकते । *

वनों में उगने वाले चीड़ व भोजपत्र के वृक्ष भी माइकोराइजा के अभाव में बौने रह जाते हैं। माइकोराइजा की उपस्थिति में इन पौधों की पोटैशियम, नाइट्रोजन व फॉस्फोरस अवशोषण क्षमता कई गुनी हो जाती है।*

यह भी पढ़ें : पादप जगत : अध्याय – 2 , भाग – 2

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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