हमारे चारों ओर वायु : अध्याय 11


अध्याय 6 में हमने यह सीखा है कि सभी जीवों को वायु की आवश्यकता होती है। लेकिन क्या आपने कभी वायु को देखा है? आपने कभी नहीं देखा होगा, लेकिन निश्चय ही वायु की उपस्थिति कई तरीकों से अनुभव की होगी। इसे आप तब अनुभव करते हैं जब पेड़ों की पत्तियाँ खड़खड़ाती हैं या कपड़े सुखाने वाले तार पर लटके कपड़े धीरे-धीरे हिलते हैं। पंखे के चालू होने पर खुली पुस्तक के पृष्ठ आवाज़ करने लगते हैं। वायु के बहने के कारण ही आपकी पतंग का उड़ना संभव होता है। क्या आपको अध्याय 3 का क्रियाकलाप 3 याद है जिसमें आपने रेत और बुरादे को निष्पावन द्वारा अलग किया था? निष्पावन की प्रक्रिया बहती वायु में अधिक प्रभावी होती है। आपने ध्यान दिया होगा कि तूफ़ानों के समय वायु बहुत तेज गति से चलती है। कभी-कभी तो यह पेड़ों को भी उखाड़ देती है तथा छतों के ऊपरी हिस्सों को भी उडाकर ले जाती है।

क्या आप कभी फिरकी से खेले हैं (चित्र 11.1)?

क्रियाकलाप 1

आइए, चित्र 11.2 में दिए गए निर्देशों के अनुसार हम अपनी एक फिरकी बनाते हैं। फिरकी की डंडी को पकड़िए और उसे एक खुले क्षेत्र में भिन्न-भिन्न दिशाओं में रखिए। इसे थोड़ा आगे-पीछे कीजिए।

देखिए, क्या होता है? क्या फिरकी घूमती है? फिरकी को कौन घुमाता है? क्या इसे वायु नहीं घुमा रही है? क्या आपने वातसूचक को घूमते हुए देखा है (चित्र 11.3)? यह उस दिशा में रुक जाता है जिसमें कि उस स्थान पर वायु चल रही होती है।

11.1 क्या वायु हमारे चारों ओर हर जगह उपस्थित है?

अपनी मुट्ठी बंद करें। इसके अंदर क्या है? कुछ नहीं? इसका पता लगाने के लिए निम्नलिखित क्रियाकलाप कीजिए।

क्रियाकलाप 2

काँच की एक खुली हुई खाली बोतल लीजिए। क्या यह वास्तव में बिल्कुल खाली है या इसके अंदर कुछ है? अब इसे उल्टा कीजिए। क्या अब इसके अंदर कुछ है?

अब बोतल के खुले मुख को पानी से भरी हुई बाल्टी में चित्र 11.4 के अनुसार डुबोएँ। बोतल को ध्यान से देखिए। क्या पानी बोतल के अंदर प्रवेश करता है? अब बोतल को थोड़ा-सा तिरछा कीजिए। क्या अब पानी बोतल में प्रवेश करता है? क्या आप बोतल में से कुछ बुलबुले बाहर आते देखते हैं या बुदबुदाहट सुनाई देती है? क्या अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि बोतल के अंदर क्या था?

हाँ! आप सही हैं। यह वायु है जो कि बोतल में उपस्थित थी। बोतल पूरी तरह से किसी भी प्रकार खाली नहीं थी। वास्तव में इसे उलटने पर भी यह पूरी तरह से वायु से भरी हुई थी। इसलिए आप देखते हैं कि जब बोतल उल्टी स्थिति में होती है, पानी बोतल में प्रवेश नहीं करता क्योंकि वायु के निकलने के लिए कोई जगह नहीं होती। जब बोतल को तिरछा करते हैं तो वायु बुलबुलों के रूप में बाहर आती है और वायु के निकलने से खाली हुए भाग में पानी भर जाता है।

यह क्रियाकलाप दर्शाता है कि वायु स्थान घेरती है। यह बोतल के पूरे स्थान में भर जाती है। यह हमारे चारों ओर उपस्थित है। वायु का कोई रंग नहीं होता। हम इसके आर-पार देख सकते हैं। यह पारदर्शी होती है।

हमारी पृथ्वी वायु की एक पतली परत से घिरी हुई है। इस परत का विस्तार पृथ्वी की सतह से कई किलोमीटर ऊपर तक है तथा इसे वायुमंडल कहते हैं।

जैसे-जैसे हम वायुमण्डल में पृथ्वी के तल से ऊपर की ओर जाते हैं, वायु विरल होती जाती है। क्या अब आप विचार कर सकते हैं कि पर्वतारोही ऊँचे पर्वतों पर चढ़ते समय ऑक्सीजन का सिलिंडर अपने साथ क्यों ले जाते हैं (चित्र 11.5)?

11.2 वायु किससे बनी है?

अठारहवीं शताब्दी तक लोग सोचते थे कि वायु केवल एक ही पदार्थ है। प्रयोगों से यह सिद्ध हो गया है कि वास्तव में ऐसा नहीं है। वायु अनेक गैसों का एक मिश्रण है। यह मिश्रण किस प्रकार का है? आइए, एक-एक करके इस मिश्रण के मुख्य अवयवों के बारे में पता लगाते हैं।

जलवाष्प

हमने पहले पढ़ा है कि वायु में जलवाष्प विद्यमान होती है। हमने यह भी देखा है कि जब वायु किसी ठंडे पृष्ठ के संपर्क में आती है तो इसमें उपस्थित जलवाष्प ठंडी होकर संघनित हो जाती है तथा जल की बूँदें ठंडे पृष्ठ पर दिखाई देती हैं। प्रकृति में जलचक्र के लिए वायु में जलवाष्प का उपस्थित होना अनिवार्य है।

ऑक्सीजन

क्रियाकलाप 3

अपने शिक्षक की उपस्थिति में एक समान लंबाई की दो मोमबत्तियाँ मेज़ पर लगाएँ और उन्हें जला लें। इनमें से एक मोमबत्ती पर काँच का एक गिलास उल्टा करके रख दें। दोनों मोमबत्तियों को ध्यान से देखें। क्या दोनों मोमबत्तियाँ लगातार जलती रहती हैं या बुझ जाती हैं? आप देखेंगे कि जो मोमबत्ती गिलास से ढकी थी वह कुछ देर बाद बुझ जाती है जबकि दूसरी मोमबत्ती जलती रहती है। इसका क्या कारण हो सकता है? विचार करें।

ऐसा प्रतीत होता है कि गिलास से ढकी मोमबत्ती इसलिए बुझ जाती है क्योंकि वायु का वह घटक जो मोमबत्ती के जलने में सहायक है वह सीमित है और मोमबत्ती जलने से कुछ देर बाद समाप्त हो जाता है। जबकि दूसरी मोमबत्ती को लगातार वायु मिलती रहती है। वायु का वह घटक जो जलने में सहायक है वह ऑक्सीजन कहलाता है।

नाइट्रोजन

मोमबत्ती के बुझने के बाद भी क्या आपने यह देखा कि वायु का एक बड़ा भाग अब भी गिलास में शेष रह जाता है? यह सूचित करता है कि वायु के कुछ अवयव जलने में सहायक नहीं होते। वायु का एक बड़ा भाग (जो मोमबत्ती के जलने में उपयोग नहीं हुआ) नाइट्रोजन कहलाता है।

कार्बन डाइऑक्साइड

एक बंद कमरे में जब कोई पदार्थ जल रहा होता है तो शायद आपने घुटन महसूस की होगी। यह घुटन कमरे में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिक मात्रा एकत्र होने के कारण हुई जो कि लगातार किसी वस्तु के जलने के कारण बनती है। हमारे चारों ओर की वायु का एक छोटा अवयव कार्बन डाइऑक्साइड होता है। यह सलाह दी जाती है कि फसलों के अवशेष व सूखी पत्तियों को नहीं जलाना चाहिए। क्योंकि इससे वायु प्रदूषित होती है।

धूल तथा धुआँ

मैं ईंधन तथा पदार्थों के जलने से धुआँ भी उत्पन्न होता है। धुएँ में कुछ गैसें एवं सूक्ष्म धूल कण होते हैं जो प्रायः हानिकारक होते हैं। इस कारण आप कारखानों में लंबी चिमनियाँ देखते हैं। ये चिमनियाँ हानिकारक धुएँ तथा गैसों को हमारी नाक से तो दूर ले जाती हैं • लेकिन आकाश में उड़ते हुए पक्षियों के बिलकुल नज़दीक ले जाती हैं!

वायु में धूल के कण सदैव उपस्थित रहते हैं।

क्रियाकलाप 4

अपने विद्यालय/घर में धूप वाला एक कमरा खोजिए। सारे दरवाज़े तथा खिड़कियाँ बंद कर दें तथा पर्दे आदि डालकर कमरे में पूरा अंधेरा कर दें। जिस दिशा से सूर्य का प्रकाश आ रहा है, उस ओर के दरवाजे या खिड़की को बिलकुल थोड़ा-सा खोलें जिससे सूर्य का प्रकाश एक पतली-सी झिरी के द्वारा कमरे के अंदर आ सके। अंदर आती हुई सूर्य की किरणों को सावधानीपूर्वक देखिए।

क्या आप यह देखते हैं कि सूर्य की किरणों में कुछ छोटे-छोटे चमकीले कण तेज़ी से घूम रहे हैं (चित्र 11.7)? ये कण क्या हैं?

अत्यधिक सर्दियों में आपने पेड़ की पत्तियों से छनकर आते हुए सूर्य के प्रकाश किरणपुंज को देखा होगा, जिसमें धूल-कण नृत्य करते प्रतीत होते हैं।

यह दर्शाता है कि वायु में धूल के कण भी उपस्थित होते हैं। वायु में धूल के कण समय तथा स्थान के साथ बदलते रहते हैं।

जब हम नाक से साँस लेते हैं तो हम वायु अंदर लेते हैं। धूल के कणों को श्वसन-तंत्र में जाने से रोकने के लिए हमारी नाक में छोटे-छोटे बाल तथा श्लेष्मा उपस्थित होते हैं।

क्या आप उस पल को याद कर सकते हैं जब आपके अभिभावक ने आपको मुँह से साँस लेने के कारण डाँटा हो? अगर आप मुँह से साँस लेंगे तो हानिकारक धूल के कण आपके शरीर में प्रवेश कर जाएँगे।

इससे हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि वायु में कुछ गैसें, जल-वाष्प तथा धूल के कण विद्यमान होते हैं। वायु में मुख्यतः नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, थोड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड तथा इससे भी कम मात्रा में अन्य गैसों का मिश्रण होता है। तथापि वायु की संरचना में स्थानीय भिन्नता हो सकती है। हम देखते हैं कि वायु में नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। वास्तव में ये दोनों गैसें मिलकर वायु का 99% भाग बनाती हैं। शेष 1% में कार्बन डाइऑक्साइड, कुछ अन्य गैसें एवं जलवाष्प होती हैं (चित्र 11.9)।

11.3 पानी तथा मिट्टी में रहने वाले जीवों और पौधों को ऑक्सीजन कैसे मिल पाती है?

क्रियाकलाप 5

किसी धातु या काँच के बर्तन में थोड़ा पानी लीजिए। इसको धीरे-धीरे गर्म करें। पानी के उबलने से पहले सावधानीपूर्वक पात्र के अंदर की सतह को देखिए।

ये बुलबुले पानी में घुली हुई वायु के कारण बनते हैं। जब आप पानी गर्म करते हैं तो घुली हुई वायु बुलबुलों के रूप में बाहर आती है। आप पानी को यदि और गर्म करते हैं तो पानी वाष्प में परिवर्तित हो जाता है और अंततः उबलने लगता है। हमने अध्याय 5 तथा 6 में पढ़ा है कि जो जीव पानी में रहते हैं, वे श्वसन के लिए पानी में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।

जो जीव गहरी मिट्टी के अंदर रहते हैं, उन्हें भी साँस लेने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, क्या ऐसा नहीं है? वे सभी श्वसन क्रिया के लिए आवश्यक वायु कहाँ से प्राप्त करते हैं?

क्रियाकलाप 6

एक बीकर या काँच के गिलास में सूखी मिट्टी का एक ढेला लीजिए। इसमें पानी डालिए और अवलोकन कीजिए कि क्या होता है (चित्र 11.11)? क्या आप मिट्टी से बुलबुले निकलते हुए देखते हैं? ये बुलबुले संकेत करते हैं कि मिट्टी में वायु होती है।

जब मिट्टी के ढेले पर पानी डाला जाता है तो उसमें विद्यमान वायु विस्थापित हो जाती है जो बुलबुलों के रूप में दिखाई देती है। मिट्टी के अंदर पाए जाने वाले जीव एवं पौधों की जड़ें श्वसन के लिए इसी वायु का उपयोग करते हैं।

मिट्टी के जीव गहरी मिट्टी में बहुत-सी माँद तथा छिद्र बना लेते हैं। इन छिद्रों के द्वारा वायु को अंदर व बाहर जाने के लिए जगह उपलब्ध हो जाती है। लेकिन जब भारी वर्षा हो जाती है तो इन छिद्रों एवं माँदों में वायु की जगह पानी भर जाता है। इस स्थिति में ज़मीन के अंदर रहने वाले जीवों को साँस लेने के लिए ज़मीन पर आना पड़ता है। क्या यही कारण है कि केंचुए केवल भारी वर्षा के समय पर ही जमीन से बाहर आते हैं? क्या आपने कभी यह सोचा है कि सारे जीवों के द्वारा ऑक्सीजन का उपयोग करने के बावजूद वायुमंडल की ऑक्सीजन समाप्त क्यों नहीं होती? वायुमंडल में ऑक्सीजन को प्रतिस्थापित कौन करता है?

11.4 वायुमंडल में ऑक्सीजन कैसे प्रतिस्थापित होती है?

अध्याय 7 में हम प्रकाश संश्लेषण के बारे में पढ़ चुके हैं। इस प्रक्रिया में पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं तथा इसके साथ ही ऑक्सीजन उत्पन्न होती है। पौधे श्वसन में ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं, परंतु उपयोग की गई ऑक्सीजन की तुलना में वे अधिक ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। इसलिए हम यह कहते हैं कि पौधे ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं।

यह वास्तविकता है कि जंतु पौधों के बिना जीवित नहीं रह सकते। पौधों एवं जंतुओं के द्वारा श्वसन तथा

पौधों के द्वारा प्रकाश संश्लेषण से बना रहता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पौधे तथा जंतु एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

अब हम यह अनुभव कर सकते हैं कि पृथ्वी पर जीवन के लिए वायु अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्या वायु के कुछ अन्य उपयोग भी हैं? क्या आपने पवन-चक्की के बारे में सुना है? चित्र 11.12 को देखिए।

वायु पवन चक्की को घुमाती है। पवन चक्की का उपयोग ट्यूबवैल से पानी निकालने तथा आटा-चक्की को चलाने में होता है। पवन चक्की विद्युत भी उत्पन्न करती है। वायु नावों को खेने में, ग्लाइडर, पैराशूट तथा हवाई जहाज़ को चलाने में सहायता करती है। पक्षी, चमगादड़ तथा कीड़े वायु की उपस्थिति के कारण ही उड़ पाते हैं। वायु बहुत-से पौधों के बीजों तथा फूलों के पराग-कणों को इधर-उधर फैलाने में सहायक होती है। जलचक्र में वायु एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

यह भी पढ़ें : चुम्बकों द्वारा मनोरंजन : अध्याय 10

सारांश

• वायु प्रत्येक स्थान पर मिलती है। हम वायु को देख नहीं सकते हैं परन्तु इसे अनुभव कर सकते हैं।

• गतिशील वायु को पवन कहते हैं।

• वायु जगह घेरती है।

• जल तथा मिट्टी में वायु उपस्थित होती है।

• वायु नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प तथा कुछ अन्य गैसों, का मिश्रण है। इसमें कुछ धूल-कण भी हो सकते हैं।

• ऑक्सीजन ज्वलन में सहायक तथा श्वसन के लिए आवश्यक है।

• वायु की वह परत, जो पृथ्वी को घेरे हुए हैं, उसे वायुमंडल कहते हैं।

• पृथ्वी पर जीवन के लिए वायुमंडल आवश्यक है।

• जलीय-प्राणी श्वसन के लिए जल में घुली वायु का उपयोग करते हैं।

• वायु से ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान के लिए पौधे तथा जंतु एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।

अभ्यास

1. वायु के संघटक क्या हैं?
Ans.
नाइट्रोजन 76% और ऑक्सीजन 23% गैसें है जो मिलकर वायु का 99% भाग बनाती हैं। शेष 1% में कार्बन डाइऑक्साइड, कुछ अन्य गैसें, जलवाष्प तथा धूल के कण होते हैं।

2. वायुमंडल की कौन-सी गैस श्वसन के लिए आवश्यक है?
Ans.
ऑक्सीजन गैस श्वसन के लिए आवश्यक है।

3. आप यह कैसे सिद्ध करेंगे कि वायु ज्वलन में सहायक होती है।
Ans.
जब हम जलती हुई मोमबत्ती को किसी बड़े काँच के गिलास से ढक देते हैं तो मोमबत्ती तुरंत बंद बुझ जाती है ऐसा जलती हुई मोमबत्ती के वायु से संपर्क टूट जाने के कारण होता है। वायु का एक घटक ऑक्सीजन किसी भी पदार्थ के जलने में सहायक है। अतः हम कह सकते हैं कि वायु ज्वलन में सहायक है।

4. आप यह कैसे दिखाएँगे कि वायु जल में घुली होती है?
Ans.
जब किसी पात्र में जल उबाला जाता हैं इसके भीतर छोटे – छोटे बुलबुले दिखाई देते हैं। ये बुलबुले पानी उबलने से पहले दिखाई देते हैं। ये निश्चित ही वायु के बुलबुले होते हैं इससे प्रकट होता हैं कि जल में वायु घुली होती हैं।

5. रुई का ढेर जल में क्यों सिकुड़ जाता है?
Ans.
रूई का ढेर जल में सिकुड़ जाता हैं क्योंकि जल में इसकी साड़ी हवा निकल जाती हैं। इसकी परतें आपस में चिपक जाती हैं, इसलिए ढेर सिकुड़ जाता हैं।

6. पृथ्वी के चारों ओर की वायु की परत वायुमंडल कहलाती है।

7. हरे पौधों को भोजन बनाने के लिए वायु के अवयव कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है।

8. पाँच क्रियाकलापों की सूची बनाइए, जो वायु की उपस्थिति के कारण संभव है।
Ans.
(i) निष्पावन  (ii) बादल की सरंचना (iii) श्वसन
(iv) प्रकाश सश्लेष्ण (v) वाष्पोत्सर्जन (vi) पक्षियों का तोड़ना

9. वायुमंडल में गैसों के आदान-प्रदान में पौधे तथा जंतु एक-दूसरे की किस प्रकार सहायता करते हैं?
Ans.
प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में पौधें कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। जन्तु ऑक्सीजन को श्वसन के रूप में ग्रहण करते हैं और कार्बन डाईऑक्साइड को छोड़ने हैं जो पुनः भोजन के निर्माण के लिए पैधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के लिए इस्तेमाल की जाती हैं।

इस प्रकार वायुमंडल में पौधे और जंतु, गैसों के आदान – प्रदान एक – दुसरे की सहायता करते हैं।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

1 thought on “हमारे चारों ओर वायु : अध्याय 11”

Leave a Comment