भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन और स्वतंत्रता प्राप्ति

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन और स्वतंत्रता प्राप्ति

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने भारतीय जनता को साकारात्मक बदलाव और स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में एकजुट किया। यह समूह विभिन्न कालों में अनेक आंदोलनों और क्रांतियों के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता की मांग करता रहा है। स्वदेशी आंदोलन, असहमति आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और विभाजन के खिलाफ जन जागरूकता के क्षेत्र में ये आंदोलन भारतीय समाज को समृद्धि, न्याय, और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने का साहस प्रदान करते रहे हैं। इन आंदोलनों ने भारतीय राष्ट्रीय चेतना को उत्तेजना दिया और उन्हें स्वतंत्रता की प्राप्ति की दिशा में एक सामूहिक संघर्ष में जोड़ा।

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रथम चरण (1885-1905 ई.)

• भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारंभ 1885 ई. से माना जाता है, तब ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना हुई।

• भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रथम चरण की मुख्य घटना 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना थी। इसका प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 ई. को बम्बई स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में हुआ था, इस अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे।

• भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक ए.ओ. ह्यूम स्कॉटलैण्ड के निवासी थे। एलन ऑक्टेवियन ह्यूम एक प्रशासनिक अधिकारी, राजनैतिक सुधारक और ब्रिटिश भारत में शौकिया पक्षी विज्ञानी था। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे। हालांकि वह कांग्रेस के जन्मदाता था, परंतु उसने कभी भी इसकी अध्यक्षता नहीं किया।

• ए.ओ. ह्यूम कांग्रेस के महामंत्री पद पर 1885 से 1907 ई. तक बने रहे।

• भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पिता ए.ओ. ह्यूम को कहा जाता है।

• मुहम्मडन एंग्लो ओरिएन्टल डिफेन्स एसोसिएशन थियोडर बेक ने बनाया।

• कांग्रेस की ब्रिटिश समिति इंग्लैण्ड में ह्यूम, नौरोजी एवं वेडरबर्न ने बनाई।

• 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के बाद इस एक ऐसे गुट का प्रभाव बढ़ा, जिसे ‘उदारवादी गुट’ कहा जाता है। उदारवादियों में प्रमुख नेता थे-दादा भाई नौरोजी, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, फिरोजशाह मेहता, गोविन्द रानाडे, दीन शा वाचा, गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय आदि।

• उदारवादियों का उद्देश्य संवैधानिक तरीके से भारत को स्वतंत्रता दिलाना था तथा अंग्रेजी शासन की न्यायप्रियता में इन उदारवादियों की घोर आस्था थी।

• उदारवादी नेता अपनी मांगे -प्रतिवेदनों, प्रार्थना पत्रों एवं शिष्टमण्डलों के द्वारा सरकार के सम्मुख रखते थे। कांग्रेस के उग्रपंथी नेताओं ने उदारवादी नेताओं के इस लचीलेपन व्यवहार के कारण इसे ‘राजनीतिक भिक्षावृत्ति’ कहा।

• 1888 ई. में कांग्रेस प्रथम अधिवेशन में पारित मांगों को विनम्र निवेदन के साथ प्रत्येक अधिवेशन में दुहराती रही।

• कांग्रेस के उदारवादी नेताओं के आंशिक दबाव के परिणामस्वरूप 1892 ई. का भारतीय परिषद् अधिनियम पारित हुआ, जिसके द्वारा निर्वाचित स्थानीय निकायों को कुछ अधिकार प्रदान किए गए थे।

• भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाले प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष (1887 ई.) बदुरुद्दीन तैय्यबजी थे तथा प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष (1888 ई.) जॉर्ज यूल थे।

• लोक सेवा आयोग की स्थापना, भारत व इंग्लैण्ड में एक साथ परीक्षा कराने का सहमति, भारतीय व्यय की समीक्षा हेतु ‘बैलबाई आयोग’ की नियुक्ति तथा 1892 ई. का भारतीय परिषद् अधिनियम इस चरण (1885-1905 ई.) के राष्ट्रीय आंदोलन की प्रारंभिक उपलब्धियां थीं।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का द्वितीय चरण (1905-1919 ई.)

• राष्ट्रीय आंदोलन के इस चरण को नव राष्ट्रवाद अथवा उग्रवाद के उदय का काल माना जाता है। उसी समय स्वदेशी आन्दोलन तथा क्रांतिकारी आतंकवाद का सूत्रपात हुआ था। कांग्रेस के उग्रवादी नेताओं में प्रमुख थे-बाल गंगाधार तिलक, अरविन्द घोष, विपिनचन्द्र पाल, लाला लाजपत राय आदि।

• भारत में उग्रवाद के उदय का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है। इन्होंने उग्र राष्ट्रीय चेतना के विकास में धार्मिक रूढ़िवाद का आश्रय लिया था।

• तिलक ने 1884 ई. में गणपति महोत्सव, 1886 ई. में शिवाजी महोत्सव प्रारम्भ किए थे।

• स्वराज, स्वदेशी, बहिष्कार का नारा सर्वप्रथम तिलक ने ही दिया था।

• उग्रवादी नेताओं का विश्वास था कि भीख मांगने से कभी स्वतंत्रता नहीं मिल सकती, उसके लिए स्वावलम्बन, संगठन और संघर्ष की आवश्यकता होती है।

• भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के तृतीय चरण में ‘लाल, बाल, पाल’ उग्रवाद के तीन प्रमुख स्तम्भ कहलाते थे।

• भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का सूत्रपात 1897 ई. में महाराष्ट्र से हुआ था।

• राष्ट्रीय आंदोलन के द्वितीय चरण में क्रांतिकारी आतंकवाद के प्रमुख केन्द्र बंगाल, पंजाब एवं महाराष्ट्र थे। इस चरण में क्रांतिकारियों ने तिलक द्वारा दिए गए नारे ‘अनुनय विनय नहीं अपितु युयुत्सा’ को अपना आदर्श घोषित किया।

मुस्लिम लीग की स्थापना

• बंगाल विभाजन ने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक द्वेष उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

• 1 अक्टूबर, 1906 ई. को आगा खां के नेतृत्व में मुसलमानों का एक शिष्टमण्डल ने शिमला में वायसराय लॉर्ड मिण्टो से मिलकर मुसलमानों के लिए प्रथम निर्वाचन व्यवस्था की मांग की।

• ढाका के नवाब सलीमुल्लाह के नेतृत्व में 30 दिसंबर, 1906 ई. को ढाका में आयोजित एक बैठक में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।

• 1908 ई. में अमृतसर में हुए मुस्लिम लीग के अधिवेशन में मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन मण्डल की मांग की गई थी। इस मांग की पूर्ति शीघ्र ही 1909 ई. में भारतीय परिषद् अधिनियम (मार्ले मिण्टो सुधार अधिनियम) द्वारा हुई थी।

कामागाटामारू प्रकरण

• कामागाटामारू प्रकरण 1914 ई. में घटित हुआ था। इस प्रकरण के अंतर्गत 1914 ई. में भारतीयों के कनाडा प्रवेश को लेकर कुछ भारतीयों पर लगे प्रतिबन्धों के विरुद्ध आंदोलन हुआ। आंदोलन के नेताओं ने ‘शोर कमेटी’ की स्थापना की। नेताओं में प्रमुख थे-बलवन्त सिंह, हुसैन रहीम और सोहन लाल पाठक आदि।

कांग्रेस का सूरत अधिवेशन (1907 ई.)

• राष्ट्रीय आंदोलन की उग्रता के साथ-साथ कांग्रेस के उदारवादी नेताओं और उग्रवादी नेताओं के मध्य मतभेद व्यापक होते जा रहे थे। जिसके परिणामस्वरूप 1907 ई. के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस उदारवादी एवं उग्रवादी गुटों में विभक्त हो गई।

लखनऊ पैक्ट (1916 ई.)

• 1915 ई. में मुहम्मद अली जिन्ना के व्यक्तिगत प्रयास से बम्बई में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अधिवेशन साथ-साथ हुए। मुस्लिम लीग और कांग्रेस द्वारा नियुक्त समितियों ने मिलकर एक संयुक्त योजना बनाई, जो 1916 ई. के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में स्वीकृत हो गई, यही योजना ‘कांग्रेस-लीग योजना’ (लखनऊ पैक्ट) कहलाती है।

• लखनऊ पैक्ट द्वारा कांग्रेस ने पहली बार मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन मण्डल की मांग को औपचारिक रूप से स्वीकार कर ली, जो कालान्तर में कांग्रेस की भयंकर भूल सिद्ध हुई।

होमरूल लीग आन्दोलन (1916 ई.)

• सर्वप्रथम आयरलैण्ड में आयरिश नेता रेडमाण्ड के नेतृत्व में होमरूल लीग की स्थापना हुई थी।

• 28 अप्रैल, 1916 ई. को बाल गंगाधर तिलक द्वारा ‘महाराष्ट्र होमरूल लीग’ की स्थापना की गई, जिसका केन्द्र पूना में था।

• सितम्बर 1916 ई. में एनीबेसेन्ट द्वारा मद्रास में ‘अखिल भारतीय होमरूल लीग’ की स्थापना की गई।

• एनीबेसेन्ट ने अपने दैनिक पत्र ‘न्यू इंडिया’ तथा साप्ताहिक पत्र ‘कॉमनवेल्थ’ द्वारा होमरूल आंदोलन का प्रचार किया।

• बाल गंगाधर तिलक के पत्र ‘केसरी’ (मराठी) और ‘मराठा’ (अंग्रेजी) ने भी इस आंदोलन के प्रचार में अग्रणी कार्य किया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का तृतीय चरण (1919-1947 ई.)

• भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का तृतीय चरण ‘गाँधी युग’ के नाम से जाना जाता है।

• 1915 ई. में दक्षिण अफ्रीका से लौटकर मोहनदास करमचन्द गाँधी ने गोपालकृष्ण गोखले को अपना ‘राजनीतिक गुरु’ बनाया।

• भारत वापसी के समय प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था, गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के युद्ध प्रयासों में सहायता की, फलत: ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘केसर-ए-हिन्द’ सम्मान से सम्मानित किया।

• गाँधीजी ने भारत वापस आने पर 1915 ई. में अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के तट पर ‘साबरमती आश्रम’ स्थापित किया था।

• भारत में 1917-18 ई. के दौरान गाँधी जी ने चम्पारण किसान आंदोलन, खेड़ा किसान आंदोलन और अहमदाबाद मजदूर आंदोलन का सफल नेतृत्व किया था।

रौलेट एक्ट (1919 ई.)

• क्रांतिकारी राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के लिए सन् 1918 ई. में गठित सर सिडनी रौलेट समिति की सिफारिशों के आधार फरवरी 1919 ई. में केन्द्रीय विधान परिषद् द्वारा एक विधेयक पारित किया गया, जिसे ‘रौलेट एक्ट’ के नाम से जाना जाता है।

• इस एक्ट के द्वारा अंग्रेजी सरकार जिसको चाहे, जब तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रख सकती थी। यह कानून जनता की सामान्य स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष कुठाराघात था। इसीलिए भारतीय जनता ने इसको ‘काला कानून’ कह कर कटु आलोचना की।

• गाँधीजी ने रौलेट एक्ट की आलोचना करते हुए सत्याग्रह करने का निश्चय किया एवं सत्याग्रह सभा स्थापित की।

• 6 अप्रैल, 1919 ई. को गाँधी जी के अनुरोध पर देश भर में हड़तालों का आयोजन हुआ। सरकार ने गाँधीजी के पंजाब एवं दिल्ली में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 9 अप्रैल, 1919 ई. को गांधीजी के दिल्ली में प्रवेश करते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया, इससे जनता में आक्रोश बढ़ गया। अंतत: सरकार ने गांधीजी को बम्बई ले जाकर रिहा कर दिया, परन्तु आक्रोश कम नहीं हुआ और जलियांवाला बाग की घटना घटित हो गई।

यह भी पढ़ें : 1905 बंगाल विभाजन

निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन जरुर अच्छी लगी होगी। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

1 thought on “भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन और स्वतंत्रता प्राप्ति”

Leave a Comment