पद : अध्याय 6

पद

(1) अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग अँग बास समानी।।प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे …

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शुक्रतारे के समान : अध्याय 5

शुक्रतारे के समान

आकाश के तारों में शुक्र की कोई जोड़ नहीं। शुक्र चंद्र का साथी माना गया है। उसकी आभा-प्रभा का वर्णन करने में संसार के कवि …

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तुम कब जाओगे अतिथि : अध्याय 3

तुम कब जाओगे अतिथि

आज तुम्हारे आगमन के चतुर्थ दिवस पर यह प्रश्न बार-बार मन में घुमड़ रहा है- तुम कब जाओगे, अतिथि ? तुम जहाँ बैठे निस्संकोच सिगरेट …

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दुःख का अधिकार : अध्याय 1

दुःख का अधिकार

मनुष्यों की पोशाके उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती है। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्जा निश्चित करती है। वह …

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मेघ आए : अध्याय 12

मेघ आए

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर …

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ग्राम श्री : अध्याय 11

ग्राम श्री

फैली खेतों में दूर तलक              मखमल की कोमल हरियाली,लिपटीं जिससे रवि की किरणें             चाँदी की सी उजली जाली!तिनकों के हरे हरे तन पर             हिल हरित …

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कैदी और कोकिला : अध्याय 10

कैदी और कोकिला

क्या गाती हो?क्यों रह-रह जाती हो?कोकिल बोलो तो ! क्या लाती हो?संदेशा किसका है?कोकिल बोलो तो! ऊँची काली दीवारों के घेरे में,डाकू, चोरों, बटमारों के …

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