जलवायु किसे कहते हैं?
पृथ्वी पर किसी विस्तृत क्षेत्र में औसत मौसम के परिवर्तन को उस स्थान की जलवायु कहते हैं।
किसी भी जलवायु में तापमान, वायुदाब, वर्षा, आर्द्रता एवं वायु की गति आदि का योग होता है।
जर्मन भूगोलवेत्ता व्लादिमीर कोपेन ने 1928 ई. में जलवायु का वर्गीकरण तापमान, वर्षा एवं वनस्पति के घटकों के आधार पर किया।
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विश्व की जलवायु का वर्गीकरण
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन जलवायु :
• विस्तार 0° से 10° उत्तरी दक्षिणी अक्षांश तक।
• यह भूमध्यरेखीय जलवायु या सेल्वास या गर्म पेटी भी कहलाती है।
• तापमान – 27°C
• वर्षा 200 सेमी. से अधिक।
• विस्तार क्षेत्र- अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, गिनी तट, पूर्वी द्वीप समूह तथा फिलीपीन्स।
• इस जलवायु में जैव विविधता वाले उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन पाये जाते हैं जैसे-चन्दन, रबर, महोगनी, एबोनी, सिनकोना आदि।
उष्ण कटिबंधीय तथा उपोष्ण रेगिस्तानी जलवायु :
• विस्तार- 15° से 30° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश तक
• तापमान- 30°C से 40°C
• वर्षा – 25 सेमी. तक
• विस्तार क्षेत्र- एशिया के थार, सिन्ध, अरब प्रायद्वीप, अफ्रीका के सहारा तथा कालाहारी, अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थलीय भाग।
• वनस्पति- कंटीली झाड़ियाँ, बबूल, कैक्टस आदि
उष्ण कटिबंधीय सवाना जलवायु :
• विस्तार-10° से 30° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश तक
• तापमान-20°C से 30°C
• वर्षा – 25 सेमी. से 100 सेमी.
• विस्तार क्षेत्र-दक्षिणी अमेरिका में वेनेजुएला, कोलम्बिया, गुयाना, ब्राजील, पराग्वे।
• वनस्पति-बड़े-बड़े घास के मैदान, जैसे- अफ्रीका में सवाना।
मानसूनी प्रदेश जलवायु :
• विस्तार – 10° से 30° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश तक
• इस क्षेत्र की मुख्य विशेषता मानसून द्वारा वर्षा होना है।
• विस्तार क्षेत्र- भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, अफ्रीका का पूर्वी तटीय भाग, अमेरिका का दक्षिणी-पूर्वी तट तथा ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी भाग।
• वनस्पति- साल, सागौन, पतझड़ वन।
मध्य अक्षांशीय रेगिस्तानी जलवायु :
• विस्तार-35° से 50° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश तक
• यहाँ सर्दी अधिक पड़ती है।
• ये महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में मिलती हैं। जैसे- गोबी, तारिम, तुर्किस्तान, केन्द्रीय ईरान आदि रेगिस्तान ।
• इस प्रकार के रेगिस्तान दक्षिणी गोलार्द्ध में केवल पेटागोनिया (अर्जेण्टीना) है।
उष्ण कटिबन्धीय और उपोष्ण स्टेपीज जलवायुः
• ये क्षेत्र खाद्यान्न की दृष्टि से सर्वोत्तम हैं।
• इनमें घास एवं शाक वनस्पति की प्रचुरता होती है।
भूमध्यसागरीय जलवायु :
• विस्तार – 30° से 45° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर
• तापमान – ग्रीष्म काल 25°C तथा शीतकाल- 10°C
• विस्तार क्षेत्र – चिली, साइप्रस, अल्जीरिया, कैलिफोर्निया, रोम, केपटाउन, लॉस एंजिल्स, पर्थ, सेण्टियागो, सेन फ्रांसिस्को।
• वनस्पति-जैतून, ओक, कार्क के वृक्ष, अंगूर एवं नीबू प्रजातीय फल।
चीन सदृश्य जलवायु :
• विस्तार- 25° से 45° उत्तरी तथा दक्षिणी आक्षांश तक
• तापमान 19°C
• वर्षा 120 सेमी.
• इन क्षेत्रों में सालोंभर वर्षा होती है।
पश्चिमी यूरोपियन सदृश्य जलवायु :
• विस्तार – 45° से 65° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर
• तापमान – 15°C से 18°C ग्रीष्मकाल में तथा 2°C से 10°C शीतकाल में
• अधिकांश वर्षा शीतोष्ण चक्रवातीय प्रकार की होती है। शीतकाल में यहाँ पर अधिक वर्षा होती है।
टैगा जलवायु :
• विस्तार – 50° से 65° उत्तरी अक्षांश
• तापमान – 10°C ग्रीष्मकाल में तथा 0°C से नीचे तक शीत काल में
• वर्षा 50 सेमी.
• विश्व का शीत ध्रुव कहा जाने वाला बर्खायांस्क यहीं स्थित है।
• विस्तार क्षेत्र-मध्य कनाडा, स्वीडन, दक्षिणी फिनलैण्ड, पोलैण्ड, पश्चिमी रूस तथा साइबेरिया में है।
• वनस्पति-चीड़, स्प्रूस, चीड़, टैगा वनस्पति को बोरियल वनस्पति भी कहते हैं।
• यहाँ फर वाले जानवर भी बहुत अधिक मिलते हैं।
टुण्ड्रा जलवायु :
• विस्तार – 66° उत्तरी अक्षांश के उत्तर में।
• तापमान – अत्यधिक ठण्डी तथा ब्लिजार्ड पवनें चलती हैं।
• वर्षा-30 सेमी.
• विस्तार क्षेत्र – नार्वे, फिनलैण्ड, रूस का उत्तरी भाग, साइबेरिया का उत्तरी भाग, उत्तरी कनाडा एवं अलास्का में है।
• वनस्पति-लाइकेन एवं मॉस हैं।
उच्च भूमि जलवायु :
• यह पर्वतीय भागों में पाई जाती है।
• यहाँ पर ऊँचाई के अनुसार तापमान घटता बढ़ता रहता है।
• ऊँचाई के साथ-साथ वनस्पति की प्रकृति में विभिन्नता पाई जाती है।
जलमंडल
• जल चक्र (Water cycle) : महाद्वीपों, महासागरों एवं महाद्वीपों के बीच जल का आदान-प्रदान वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन, संघनन तथा वर्षण के माध्यम से निरन्तर चलता रहता है। पृथ्वी तल पर होने वाली संरचण की इस प्रक्रिया को जलीय चक्र कहते हैं। इस चक्र की क्रियाशीलता के लिए आवश्यक ऊर्जा की प्राप्ति सूर्य से होती है।
• पृथ्वी पर उपस्थित जलराशि का तात्पर्य जलमंडल से है।
• पृथ्वी पर उपस्थित जल की कुल मात्रा का 97.5% जल महासागरों में है, जो खारा है अर्थात् जलराशि का मात्र 2.5% भाग ही स्वच्छ जल या मीठा जल है।
• पृथ्वी के 70.8% भाग पर जल और 29.2% भाग पर स्थल है।
• उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल और जल का प्रतिशत क्रमशः 60 और 40 है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में यह 19 और 81 है।
• महासागरों की औसत गहराई 3,800 मी. एवं एवं स्थल की औसत ऊँचाई 840 मी. है।
• जलमंडल के अंतर्गत महासागर (Oceans), सागर (Seas), खाड़ियाँ (Bays) आदि सम्मिलित हैं।
• जलमंडल का वह भाग जिसकी कोई निश्चित सीमा न हो महासागर कहलाता है।
• जलमंडल का वह भाग जो तीन ओर से जल से घिरा हो और एक ओर महासागर से मिला हो, समुद्र कहलाता है।
• जलमंडल का वह भाग जिसके दोनों किनारे स्थल से घिरे होते हैं एक ओर टापुओं का समूह होता है और दूसरी ओर का मुहाना समुद्र से मिला होता है, खाड़ी कहलाता है।
• समुद्र का स्थलीय भाग में प्रवेश कर जाने पर जो जल का क्षेत्र बनता है, उसे खाड़ी कहते हैं।
• महासागरीय नितल के चार प्रमुख उच्चावच मंडल पाए जाते हैं। ये हैं-
1. महाद्वीपीय मग्नतट (Continental shelf) : महाद्वीप के किनारे वाला वह भाग, जो महासागरीय जल में डूबा रहता है। महाद्वीपीय मग्नतट कहलाता है। इसकी औसत चौड़ाई 80 किमी., गहराई 150-200 मी. तथा ढाल 1° या उससे कम होता है। इन मग्नतटों पर प्रमुख मत्स्य क्षेत्र जैसे उत्तरी सागर में डॉगर बैंक एवं न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट ग्रैंड बैंक आदि पाए जाते हैं।
2. महासागरीय गर्त (Oceanic Deeps) : ये महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं, जो महासारीय नितल के लगभग 7% भाग पर फैले हैं। इनके ढाल खड़े होते हैं। आकार की दृष्टि से गर्त दो प्रकार के होते हैं।
(i) कम क्षेत्रफल वाले, किन्तु अधिक गहरे खड्ड को गर्त (deeps) कहते हैं, तथा
(ii) लंबे खड्ड को खाई (trench) कहते हैं।
प्रमुख गर्त
गर्त | गहराई (मी.) | स्थिति |
---|---|---|
मेरियाना | 11,022 | प्रशांत महासागर |
मिंडनाओ | 10,500 | प्रशांत महासागर |
टोंगा | 9,000 | प्रशांत महासागर |
प्यूरिटोरिको | 8,392 | अटलांटिक महासागर |
सुण्डा | 8,152 | पूर्वी हिन्द महासागर |
रोमशे | 7,254 | दक्षिण अटलांटिक महासागर |
3. महाद्वीपीय मग्न ढाल (Continental Slope) : जलमग्न तट तथा गहरे सागरीय मैदान के बीच तीव्र ढाल वाले भाग को महाद्वीपीय मग्नढाल कहा जाता है। इसकी ढाल प्रवणता 2° से 5° तथा गहराई 200 से 300 मी. तक होती है। इसका सर्वाधिक विस्तार अटलांटिक महासागर में (12.4%) पाया जाता है। यह समस्त सागरीय क्षेत्र के 8.5% भाग पर पाए जाते हैं।
4. गहरे सागरीय मैदान (Deep sea plains) : यह मैदान महासागरीय नितल का सर्वाधिक विस्तृत मण्डल होता है, जिसकी गहराई 3000 से 6000 मी. तक होती है। यह महासागीय क्षेत्रफल के लगभग 75.9% भाग पर विस्तृत है। इसका सर्वाधिक विस्तार प्रशांत महासागर में (80.3%) पाया जाता है। सागरीय मैदानों में कटक, ज्वालामुखी पर्वत एवं गायोट जैसी विषमताएँ मिलती हैं।
पृथ्वी पर जल का वितरण
जलाशय | आयतन (दस लाख घन किमी.) | कुल का प्रतिशत |
---|---|---|
महासागर | 1,370 | 97.25 |
हिमानियाँ एवं हिमटोपी | 29 | 2.05 |
भूमिगत जल | 9.5 | 0.68 |
झीलें | 0.125 | 0.01 |
मृदा में नमी | 0.065 | 0.005 |
वायुमंडल | 0.013 | 0.001 |
नदी-नाले | 0.0017 | 0.0001 |
जैवमंडल | 0.0006 | 0.00004 |
उच्चावच की आकृतियाँ
1. नितल पहाड़ियाँ (Abyssal Hills) : समुद्र में जिसकी ऊँचाई 1000 मी. से अधिक होती है, समुद्र पर्वत या पहाड़ियाँ कहलाते हैं। सपाट शीर्ष वाले समुद्री पर्वतों को गायोट (Guyot) कहा जाता है।
2. अन्तः सागरीय कन्दरा (Submarine Canyons) : महाद्वीपीय मग्नतट तथा मग्नढाल पर संकरी, गहरी तथा खड़ी दीवार से युक्त घाटियों को महासागर के अन्दर होने के कारण अन्तः सागरीय कन्दराएँ या कैनियन कहते हैं।
जैसे : हडसन कैनियन, कांगो कैनियन, बेरिंग कैनियन एवं प्रिबिलॉफ कैनियन आदि।
3. महासागरीय कटक (Oceanic Ridges) : ये पर्वतों की दो श्रृंखलाओं से बने होते हैं। महासागरों के मध्य प्रसार के कारण अगाध सागरीय मैदान के ऊपर ये कटक पाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर ये समुद्री जल स्तर के ऊपर द्वीप बनते हैं जैसे-एजोर्स द्वीप । इन कटकों का सर्वाधिक विस्तार अटलांटिक एवं हिन्द महासागरों में पाया जाता है।
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निष्कर्ष
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट जलवायु एवं जलमंडल जरुर अच्छी लगी होगी। जलवायु एवं जलमंडल के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!