किसी देश विशेष के जलवायु का अनुशीलन करने के लिए वहाँ के तापमान, वर्षा, वायुदाब और पवनों की गति तथा दिशा का ज्ञान होना अपरिहार्य है। जलवायु के इन अवयवों पर देश विशेष का अक्षांशीय विस्तार, उच्चावच एवं जल व स्थल के वितरण का काफी प्रभाव पड़ता है। कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर गुजरती है। इसका दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में तथा उत्तरी शीतोष्ण कटिबन्ध में अवस्थित है। भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित विशाल हिमालय पर्वत भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से अलग करता है और वहाँ से आने वाली शीतल पवनों को रोकता है। यही कारण है कि समस्त भारत में उष्ण कटिबंधीय जलवायु पायी जाती है। भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर अवस्थित है। हिन्द महासागर से बहने वाली मानसूनी हवाओं का भारत की जलवायु पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। कारण स्वरूप भारत की जलवायु को उष्ण मानसूनी जलवायु की संज्ञा दी जाती है।
भारत के जलवायु में अनेक प्रादेशिक विविधताएँ पायी जाती हैं। इन प्रादेशिक विविधताओं का जलवायु के उपवर्गों के रूप में विवेचन किया जा सकता है।
गर्मियों में पश्चिमी मरुस्थल में तापक्रम कई बार 50° सेल्सियस को स्पर्श कर लेता है। जबकि सर्दियों में लेह के आस-पास तापमान 45° सेल्सियस तक गिर जाता है, और उसी रात को तिरुवनन्तपुरम् अथवा चेन्नई में तापमान 20° या 22° सेल्सियस रहता है। उपर्युक्त उदाहरण पुष्टि करते हैं कि भारत में एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र के तापमान में ऋतुवत् अंतर पाया जाता है। इतना ही नहीं, यदि हम किसी एक स्थान से 24 घंटों का तापमान दर्ज करें, तो उसमें भी विभिन्नताएँ कम प्रभावशाली प्रतीत नहीं होती। उदाहरणतः केरल और अण्डमान द्वीप समूह में दिन और रात के तापमान में मुश्किल से 7° से 8° सेल्सियस का अंतर पाया जाता है, किंतु थार मरुस्थल में, यदि दिन का तापमान 50° सेल्सियस हो जाता है, तो वहाँ रात का तापमान 15° से 20° सेल्सियस के बीच आ पहुँचता है।
हिमालय में वर्षण मुख्यतः हिमपात के रूप में होता है, जबकि देश के अन्य भागों में वर्षण जल की बूँदों के रूप में होता है। इसी प्रकार केवल वर्षण के प्रकारों में ही अंतर नहीं है, बल्कि वर्षण की मात्रा में भी अंतर है। मेघालय की खासी पहाड़ियों में स्थित मॉसिनराम और चेरापूँजी में औसत वार्षिक वर्षा 1,080 सेमी. से ज्यादा होती है। इसके विपरीत राजस्थान के जैसलमेर में औसत वार्षिक वर्षा 12 सेमी. से कम होती है। उत्तरी-पश्चिमी हिमालय तथा पश्चिमी मरुस्थल में वार्षिक वर्षा 10 सेमी. से भी कम होती है, जबकि उत्तर-पूर्व में स्थित मेघालय में वार्षिक वर्षा 400 सेमी. से भी ज्यादा होती है।
जुलाई या अगस्त में, गंगा के डेल्टा तथा ओडिसा के तटीय भागों में हर तीसरे या पाँचवे दिन प्रचंड तूफान मूसलाधार वर्षा करते हैं। जबकि इन्हीं महीनों में मात्र एक हजार किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थिति तमिलनाडु का कोरोमंडल तट शांत एवं शुष्क रहता है। देश के अधिकांश भागों में, वर्षा जून और सितम्बर के बीच होता है, किंतु तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में वर्षा शरद ऋतु अथवा जाड़ों के आरम्भ में होती है।
इन सभी भिन्नताओं और विविधताओं के बावजूद भारत की जलवायु अपनी लय और विशिष्टता में मानसूनी है।
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Factor Efecting of Climate)
भारत की जलवायु को नियंत्रित करने वाले अनेक कारक हैं, जिनमें प्रमुख अधोलिखित हैं। यथाः
(i) अक्षांश : भारत की मुख्य भूमि का अक्षांशीय एवं देशांतरीय विस्तार लगभग समान है। कर्क रेखा पूर्व-पश्चिम दिशा में देश के मध्य भाग से गुजरती है। इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में और कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है।* उष्ण कटिबन्ध भूमध्य रेखा के अधिक निकट होने के कारण वर्ष भर ऊँचे तापमान तथा कम दैनिक और वार्षिक तापांतर का अनुभव करता है।* कर्क रेखा से उत्तर में स्थित भाग में भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक तथा वार्षिक तापांतर के साथ विषम जलवायु पायी जाती है।*
(ii) हिमालय पर्वतः उत्तर में ऊँचा हिमालय अपने सभी विस्तारों के साथ एक प्रभावी जलवायु विभाजक की भूमिका निभाता है।* यह ऊँची पर्वत श्रृंखला उपमहाद्वीप को उत्तरी पवनों से अभेद्य सुरक्षा प्रदान करती है। जमा देने वाली ये ठंडी पवनें उत्तरी ध्रुव रेखा के निकट पैदा होती हैं और मध्य तथा पूर्वी एशिया में आर-पार बहती हैं। इसी प्रकार हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारण बनता है।*
(iii) जल और स्थल का वितरण: भारत के दक्षिण में तीन ओर हिंद महासागर व उत्तर की ओर ऊँची व अविच्छिन्न पर्वत श्रेणी है। स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है और देर से ठंडा होता है। जल और स्थल के इस विभेदी तापन के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न वायुदाब प्रदेश विकसित हो जाते हैं। वायुदाब में भिन्नता मानसून पवनों के उत्क्रमण का कारण बनती है।*
(iv) समुद्र तट से दूरी : लंबी तटीय रेखा के कारण भारत के विस्तृत तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पायी जाती है।* भारत के अंदरूनी भाग समुद्र के समकारी प्रभाव से वंचित रह जाते हैं। ऐसे क्षेत्रों में विषम जलवायु पायी जाती है।* यही कारण है कि मुंबई तथा कोंकण तट के निवासी तापमान की विषमता और ऋतु परिवर्तन का अनुभव नहीं कर पाते। दूसरी ओर समुद्र तट से दूर देश के आंतरिक भागों में स्थित दिल्ली, कानपुर और अमृतसर में मौसमी परिवर्तन पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं।
(v) समुद्र तल से ऊँचाई : ऊँचाई के साथ तापमान घटता है।* विरल वायु के कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे होते हैं। उदाहरणतः आगरा और दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं। किंतु जनवरी में आगरा का तापमान 16° सेल्सियस जबकि दार्जिलिंग में यह 4° सेल्सियस होता है।
(vi) स्थलाकृतिः भारत का भौतिक स्वरूप अथवा उच्चावच तापमान, वायुदाब, पवनों की गति एवं दिशा तथा ढाल की मात्रा और वितरण को प्रभावित करता है। उदाहरणतः जून और जुलाई के बीच पश्चिमी घाट तथा असोम के पवनाभिमुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं जबकि इसी दौरान पश्चिमी घाट के साथ लगा दक्षिणी पठार पवनविमुखी स्थिति के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है और यह ‘छाया वृष्टि’ क्षेत्र कहलाता है। मेघालय के पठार की कीपनुमा आकृति के कारण मानसून पवनों द्वारा वहाँ संसार की सर्वाधिक वर्षा करायी जाती है। पुनश्च सम्पूर्ण राजस्थान एक विस्तृत मरुस्थल है और इसका कारण है अरावली पर्वत का मानसून पवनों की दिशा में समानान्तर अवस्थिति, जिससे वह मानसून पवनों की दिशा में अवरोध उत्पन्न कर वर्षा नहीं करा पाता है। जबकि उत्तर हिमालय पर्वत की अवस्थिति नमीयुक्त मानसून पवनों के विपरीत होने के कारण वह रोक कर सम्पूर्ण उत्तर भारत में वर्षा का हेतु बनता है।
(vii) मानसूनी हवाएँ : यह दो प्रकार की होती हैं। प्रथम दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन हवाएँ, जो समुद्र से स्थल की ओर प्रवाहित होती हैं और सम्पूर्ण भारत में प्रचुर वर्षा करती हैं। दूसरी शीतकालीन उत्तर-पूर्वी मानसूनी हवाएँ, जो स्थल से समुद्र की ओर प्रवाहित होती है और वर्षा करने में प्रायः असमर्थ होती हैं। बंगाल की खाड़ी से कुछ जलवाष्प ग्रहण करने के उपरान्त ये हवाएँ तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र में कुछ वर्षा करती हैं।
(viii) ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation) : भारतीय भू-भाग के ऊपर क्षोभमण्डल में वायु परिसंचरण में होने वाला बदलाव भारत के मानसून में अचानक होने वाले विस्फोट का एक महत्वपूर्ण कारक है। यह वायु परिसंचरण जेट वायुधारा संज्ञा से अभिहित की जाती है, जो भारतीय जलवायु को अधोलिखित प्रकार से प्रभावित करती है। यथा-
(क) पश्चिमी जेट वायुधारा: शीतकाल में, समुद्र तल से लगभग 8 किमी. की ऊँचाई पर पश्चिमी जेट वायुधारा अधिक तीव्र गति से समशीतोष्ण कटिबन्ध के ऊपर चलती है। यह जेट वायुधारा हिमालय की श्रेणियों द्वारा दो भागों में विभाजित हो जाती है। उत्तरी शाखा इस अवरोध के उत्तरी सिरे के सहारे चलती है जबकि दक्षिणी शाखा हिमालय श्रेणियों के दक्षिण में 20° से 35° N (नागपुर रायपुर अक्षांश) अक्षांश के ऊपर पूर्व की ओर चलती है। यही शाखा भारत की शीतकालीन मौसमी दशाओं को प्रभावित करती है। यह जेट धारा पश्चिमी विक्षोभ के रूप में भूमध्य सागरीय क्षेत्र से पश्चिमी सर्द प्रवाह को भारतीय उपमहाद्वीप में लाने के लिए जिम्मेदार है, जिससे भारत के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में वर्षा व ओलावृष्टि तथा पहाड़ी क्षेत्रों में हिमपात होता है और सम्पूर्ण उत्तरी मैदानों में शीत लहरें प्रवाहित होती है।
(ख) पूर्वी जेट वायुधारा : ग्रीष्मकाल में, सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध में होने के कारण ऊपरी वायु परिसंचरण में परिवर्तन हो जाता है। अर्थात् पश्चिमी जेट वायुधारा के स्थान पर पूर्वी जेट वायुधारा चलने लगती है, जो तिब्बत के पठार के गर्म होने से उत्पन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप पूर्वी ठण्डी जेट वायुधारा विकसित होती है जो 15° उत्तरी अक्षांश के आसपास प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर (क्षोभमण्डल) चलती है जो, दक्षिण पश्चिम मानसून पवनों के आगमन में सहायता करती है।
(ix) पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ तथा उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात : पश्चिमी विक्षोभ, जो भारतीय उपमहाद्वीप में जाड़े के मौसम में पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से प्रवेश करते हैं, भूमध्य सागर पर उत्पन्न होते हैं।* भारत में इनका प्रवेश पश्चिमी जेट प्रवाह द्वारा होता है। शीतकाल में रात्रि के तापमान में वृद्धि इन विक्षोभों के आने का पूर्व संकेत माना जाता है।*
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर में उत्पन्न होते हैं। इन उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों से तेज गति की हवाएँ चलती हैं और भारी वर्षा होती है। ये चक्रवात तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तटीय भागों पर टकराते हैं।* मूसलाधार वर्षा और पवनों की तीव्र गति के कारण ऐसे अधिकतर चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी होते हैं।
कुछ उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अरब सागर में भी पैदा होते हैं और भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेश को प्रभावित करते हैं।
(x) एल-निनो (EI-Nino) तथा ला-निना (La-Nina) धारा: एल-निनो पेरू तट के पश्चिम में 180 किमी. की दूरी से उत्तर-पश्चिम दिशा में चलने वाली एक गर्म जल की धारा है। जो प्रशान्त महासागर से होकर हिन्द महासागर में प्रविष्ट कर भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून को कमजोर करती है। इसे विपरीत धारा (Counter cur- rent) के नाम से भी जाना जाता है।
ज्ञातव्य है कि जिस वर्ष एल-निनो नहीं आता उस वर्ष भारतीय मानसून सामान्य रहता है। इसका कारण पेरू के तट से चलने वाली शीतल जल की धारा है, जिसे ला-निना (La-Nina) कहा जाता है। ला-निना भी एक प्रतिसागरीय धारा (Countre ocean current) है। इसका आविर्भाव पश्चिमी प्रशान्त महासागर में उस समय होता है जबकि पूर्वी प्रशान्त महासागर में एल-निनों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पश्चिमी प्रशान्त महासागर में एल-निनों द्वारा जनित अति सूखे की स्थिति को ला-निना बदल देती है तथा आर्द्र मौसम को जन्म देती है। ला-निना के आविर्भाव के साथ पश्चिमी प्रशान्त महासागर के उष्ण कटिबंधी भाग में तापमान में वृद्धि होने से तथा वाष्पीकरण अधिक होने से इण्डोनेशिया एवं समीपवर्ती भागों में सामान्य से अधिक जलवर्षा होती है। भारत में भी ग्रीष्मकालीन मानसून अधिक सक्रिय हो जाता है।
(xi) दक्षिणी दोलन (Southern Oscillation): उष्ण कटिबंधीय पूर्वी एवं पश्चिमी प्रशान्त महासागर में उच्च वायुदाब प्रणाली एवं न्यून वायुदाब प्रणाली में स्थानिक एवं कालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन कहते हैं। वस्तुतः यह मौसम विज्ञान से संबंधित वायुदाब में होने वाले परिवर्तन का प्रतिरूप है, जो हिन्द व प्रशान्त महासागरों के मध्य प्रायः दृष्टि गोचर होता है जब वायुदाब हिन्द महासागर में अधिक होता है तो प्रशान्त महासागर पर यह कम होता है और जब प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र पर अधिक होता है तथा हिन्द महासागर पर कम होता है।
हिन्द महासागर पर कम वायु दाब की स्थिति में भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून अधिक शक्तिशाली होता है। इसके विपरीत परिस्थिति में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के कमजोर होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है।
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FAQs
Q1. किसने कहा कि ‘विश्व की समस्त प्रकार की जलवायु भारत में पायी जाती है?
Ans. मार्सडेन
Q2. विश्व में सबसे अधिक वर्षा कहाँ होती है?
Ans. मॉसिनराम
Q3. भारत में सबसे कम वर्षा कहाँ होती है?
Ans. लेह
Q4. जैसलमेर में औसत वार्षिक वर्षा कितनी होती है?
Ans. 12 सेमी
Q5. ऊपरी अधोमण्डल में तीव्रगामी वायुधारा का क्या नाम है?
Ans. जेट-प्रवाह
Q6. भारत में जनवरी मास में वायु जेटस्ट्रीम की स्थिति क्या होती है?
Ans. हिमालय के दक्षिण की ओर पश्चिम से पूर्व दिशा में
Q7. जेट-प्रवाह की कौन-सी शाखा भारत में शीतकालीन चक्रवात लाने में सहायक होती है?
Ans. पश्चिमी
Q8. भारत के किस भाग में पश्चिमी विक्षोभों द्वारा शीत ऋतु में वर्षा होती है?
Ans. उत्तर-पश्चिमी भारत
Q9. भारत के कौन-से भाग में लौटती हुई मानसून द्वारा शीत ऋतु में वर्षा होती है?
Ans. कोरोमण्डल तट (तमिलनाडु)
Q10. प्रत्यावर्तित मानसून किस भाग से आर्द्रता ग्रहण करती है?
Ans. बंगाल की खाड़ी से
Q11. कोपेनहेगन की भारतीय जलवायु वर्गीकरण की पद्धति किन तत्वों पर आधारित है?
Ans. तापमान एवं वर्षा
Q12. गोवा, हैदराबाद, भुवनेश्वर तथा पटना में वर्षा जून के किस सप्ताह में प्रारम्भ होती है?
Ans. दूसरे सप्ताह में
Q13. देश में महाद्वीपीय जलवायु की स्थितियाँ कौन उत्पन्न करता है?
Ans. हिमालय
Q14. किस ऋतु में भारत के भीतरी भागों में दैनिक तापान्तर बहुत अधिक मिलता है?
Ans. शीत ऋतु
Q15. किस ऋतु में समताप रेखाएँ अक्षांश रेखाओं का अनुसरण करती है?
Ans. शीत ऋतु में
Q16. शीत ऋतु की प्रमुख विशेषता क्या है?
Ans. पश्चिमी विक्षोभ (शीतोष्ण चक्रवात)
Q17. पश्चिमी विक्षोभ किसके निकट उत्पन्न होते है?
Ans. पश्चिमी एशिया एवं भूमध्य सागर
Q18. शीतोष्ण चक्रवात को भारत की ओर उन्मुख करने में किसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है?
Ans. पश्चिमी जेट प्रवाह
Q19. शीतकाल में रात्रि के तापमान में वृद्धि किसका सूचक माना जाता है?
Ans. पश्चिमी विक्षोभों के आने का
Q20. भारत में पश्चिमी विक्षोभों, मानसून पूर्व, मानसून के समय एवं प्रत्यावर्तित मानसून के समय क्रमशः वर्षा का अनुपात कितना प्राप्त होता है?
Ans. क्रमशः 3%, 10%, 74% एवं 13%
Q21. भारत में औसत वार्षिक वर्षा प्राप्त होती है
Ans. 112 से 125 सेमी के बीच
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