क्रिया किसे कहते हैं ?
क्रिया : जिस शब्द से किसी कार्य का होना या करना समझा जाय, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे-खाना, पीना, पढ़ना, सोना, रहना, जाना आदि ।
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धातु : क्रिया के मूल रूप (मूलांश) को धातु कहते हैं। ‘धातु’ से ही क्रिया पद का निर्माण होता है इसीलिए क्रिया के सभी रूपों में ‘धातु’ उपस्थित रहती है। जैसे- चलना क्रिया में ‘चल’ धातु है। पढ़ना क्रिया में ‘पढ़’ धातु है। प्रायः धातु में ‘ना’ प्रत्यय जोड़कर क्रिया का निर्माण होता है।
पहचान : धातु पहचानने का अक सरल सूत्र है कि दिये गए शब्दांश में ‘-ना’ लगाकर देखें और यदि ‘ना’ लगने पर क्रिया बने तो समझना चाहिए कि वह शब्दांश धातु है।
धातु के दो भेद हैं- मूल धातु, यौगिक धातु ।
(i) मूल धातु : यह स्वतन्त्र होती है तथा किसी अन्य शब्द पर निर्भर नहीं होती, जैसे-जा, खा, पी, रह आदि ।
(ii) यौगिक धातु : यौगिक धातु मूल धातु में प्रत्यय लगाकर, कई धातुओं को संयुक्त करके अथवा संज्ञा और विशेषण में प्रत्यय लगाकर बनाई जाती है। यह तीन प्रकार की होती है-
1. प्रेरणार्थक क्रिया (धातु) : प्रेरणार्थक क्रियाएँ अकर्मक एवं सकर्मक दोनों क्रियाओं से बनती हैं। ‘आना’/’लाना’ जोड़ने से प्रथम प्रेरर्णाथक एवं ‘वाना’ जोड़ने से द्वितीय प्रेरणार्थक रूप बनते हैं। जैसे-
मूल धातु | प्रेरणार्थक धातु |
उठ-ना | उठाना, उठवाना |
दे-ना | दिलाना, दिलवाना |
कर-ना | कराना, करवाना |
सो-ना | सुलाना, सुलवाना |
खा-ना | खिलाना, खिलवाना |
पी-ना | पिलाना, पिलवाना |
2. यौगिक क्रिया (धातु) : दो या दो से अधिक धातुओं के संयोग से यौगिक क्रिया बनती है। जैसे-रोना-धोना, उठना- बैठना, चलना-फिरना, खा लेना, उठ बैठना, उठ जाना ।
3. नाम धातु : संज्ञा या विशेषण से बनने वाली धातु को नाम धातु कहते हैं। जैसे-गाली से गरियाना, लात से लतियाना, बात से बतियाना; गरम से गरमाना, चिकना से चिकनाना, ठंडा से ठंडाना।
क्रिया के भेद :
कर्म के अनुसार या रचना की दृष्टि से क्रि या के दो भेद हैं- (i) सकर्मक क्रिया, (ii) अकर्मक क्रिया
1. सकर्मक क्रिया (Transitive Verb): जिस क्रिया के साथ कर्म हो या कर्म की संभावना हो तथा जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़ता हो, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-
(i) राम फल खाता है । (खाना क्रिया के साथ फल कर्म है)
(ii) सीता गीत गाती है। (गाना क्रिया के साथ गीत कर्म है)
(iii) मोहन पढ़ता है। (पढ़ना क्रिया के साथ पुस्तक कर्म की संभावना बनती है)
2. अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb): अकर्मक क्रिया के साथ कर्म नहीं होता तथा उसका फल कर्ता पर पड़ता है। जैसे-
(i) राधा रोती है। (कर्म का अभाव है तथा रोती है क्रिया का फल राधा पर पड़ता है)
(ii) मोहन हँसता है। (कर्म का अभाव है तथा हँसता है क्रिया का फल मोहन पर पड़ता है)
पहचान : सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान ‘क्या’ और ‘किसको’ प्रश्न करने से होती है। यदि दोनों का उत्तर मिले, तो समझना चाहिए कि क्रिया सकर्मक है और यदि न मिले तो अकर्मक । जैसे-
1. राम फल खाता है। (प्रश्न करने पर कि राम क्या खाता है, उत्तर मिलेगा फल । अतः ‘खाना’ क्रिया सकर्मक है ।)
2. बालक रोता है। (प्रश्न करने पर कि बालक क्या रोता है, कोई उत्तर नहीं मिलता, बालक किसको रोता है कोई उत्तर नहीं मिलता। अतः ‘रोना’ क्रिया अकर्मक है ।)
क्रिया के कुछ अन्य भेद निम्नवत् हैं
1. सहायक क्रिया (Helping Verb): सहायक क्रिया मुख्य क्रिया के साथ प्रयुक्त होकर अर्थ को स्पष्ट एवं पूर्ण करने में सहायता करती है। जैसे-
(i) मैं घर जाता हूँ। (यहाँ ‘जाना’ मुख्य क्रिया है और ‘हूँ’ सहायक क्रिया है)
(ii) वे हँस रहे थे। (यहाँ ‘हँसना’ मुख्य क्रिया है और ‘रहे थे’ सहायक क्रिया है)
2. पूर्वकालिक क्रिया (Absolutive Verb): जब कर्ता एक क्रि या को समाप्त कर दूसरी क्रिया करना प्रारम्भ करता है तब पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहा जाता है। जैसे-राम भोजन करके सो गया ।
यहाँ भोजन करके पूर्वकालिक क्रिया है, जिसे करने के बाद उसने दूसरी क्रिया (सो जाना) सम्पन्न की है।
3. नामबोधक क्रिया (Nominal Verb): संज्ञा अथवा विशेषण के साथ क्रिया जुड़ने से नामबोधक क्रिया बनती है। जैसे-
संज्ञा | + | क्रिया | = | नामबोधक क्रिया |
1. लाठी | + | मारना | = | लाठी मारना |
2. रक्त | + | खौलना | = | रक्त खौलना |
विशेषण | + | क्रिया | = | नामबोधक क्रिया |
1. दुःखी | + | होना | = | दुःखी होना |
2. पीला | + | पड़ना | = | पीला पड़ना |
4. द्विकर्मक क्रिया (Double Transitive Verb): जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं उसे द्विकर्मक क्रिया कहा जाता है। जैसे-
(i) अध्यापक ने छात्रों को हिन्दी पढ़ाई। (दो कर्म-छात्रों, हिन्दी)
(ii) श्याम ने राम को थप्पड़ मार दिया। (दो कर्म-राम, थप्पड़)
‘कर्म + को/से’ को अप्रधान/गौण कर्म एवं ‘कर्म-को/से’ को प्रधान कर्म कहते हैं; जैसे-पहले वाक्य में ‘छात्रों को’ अप्रधान कर्म एवं ‘हिन्दी’ प्रधान कर्म है।
5. संयुक्त क्रिया (Compound Verb): जब कोई क्रिया दो क्रियाओं के संयोग से निर्मित होती है, तब उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे-
(i) वह खाने लगा।
(ii) मुझे पढ़ने दो।
iii) वह पेड़ से कूद पड़ा।
(iv) मैंने किताब पढ़ ली।
(v) वह खेलती-कूदत्ती रहती है।
(vi) आप आते-जाते रहिए।
(vii) चिड़ियां उड़ा करती हैं।
(viii) अब त्यागपत्र दे ही डालो।
6. क्रियार्थक संज्ञा (Verbal Noun): जब कोई क्रिया संज्ञा की भांति व्यवहार में आती है तब उसे क्रियार्थक संज्ञा कहते हैं। जैसे-
(i) टहलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
(ii) देश के लिए मरना कीर्तिदायक है।
क्रिया के सम्बन्ध में ‘वाच्य’ और ‘काल’ भी विचारणीय हैं:
1. वाच्य (Voice): वाच्य क्रिया का रूपान्तरण है जिसके द्वारा यह पता चलता है कि वाक्य में कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है। वाच्य के तीन भेद हैं-
(i) कर्तृवाच्य (Active Voice): क्रिया के उस रूपान्तरण को कर्तृवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध होता है। यह वाच्य सकर्मक और अकर्मक दोनों से बनता है। जैसे-
1. राम ने दूध पिया।
2. सीता गाती है।
3. मैं स्कूल गया।
(ii) कर्मवाच्य (Passive Voice): क्रिया के उस रूपान्तरण को कर्मवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध होता है। यह वाच्य सकर्मक क्रिया से बनता है, जैसे-
1. लेख लिखा गया।
2. गीत गाया गया।
3. पुस्तक पढ़ी गई।
(iii) भाववाच्य (Impersonal Voice): क्रिया का वह रूपान्तर भाववाच्य कहलाता है, जिससे वाक्य में ‘भाव’ (या क्रि या) की प्रधानता का बोध होता है। यह वाच्य अकर्मक क्रिया से बनता है। जैसे-
1. मुझसे चला नहीं जाता।
2. उससे चुप नहीं रहा जाता।
3. सीता से हँसा नहीं जाता।
वाच्य के प्रयोग : वाक्य में क्रिया किसका अनुसरण कर रही है-कर्ता, कर्म, या भाव का- इस आधार पर तीन प्रकार के ‘प्रयोग’ माने गए हैं-
(i) कर्तरि प्रयोग: जब वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार हाँ, तब कर्तरि प्रयोग होता है। जैसे-
1. राम पुस्तक पढ़ता है। (क्रिया कर्तानुसारी है)
2. सीता आम खाती है। (क्रिया कर्तानुसारी है)
(ii) कर्मणि प्रयोग: जब वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार हों, तब कर्मणि प्रयोग होता है। जैसे-
1. राधा ने गीत गाया। (क्रिया कर्म के अनुसार पुलिंग है)
2. मोहन ने किताब पढ़ी। (क्रिया कर्म के अनुसार स्त्रीलिंग है)
(iii) भावे प्रयोग : जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष, कर्ता अथवा कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार न होकर सदैव पुलिंग, एकवचन और अन्य पुरुष में हो तब भावे प्रयोग होता है। जैसे-
1. राम से रोया नहीं जाता।
2. सीता से रोया नहीं जाता।
3. लड़कों से रोया नहीं जाता।
इन तीनों वाक्यों में कर्ता के बदलने पर भी क्रिया अपरिवर्तित है तथा वह पुलिंग, एकवचन और अन्य पुरुष में है अतः ये भावे प्रयोग हैं।
2. काल (Tense): क्रिया के जिस रूप से कार्य व्यापार के समय तथा उसकी पूर्णता अथवा अपूर्णता का बोध होता है, उसे काल कहते हैं।
काल के तीन भेद होते हैं-
(i) वर्तमान काल (Present Tense): वर्तमान काल में क्रिया व्यापार की निरन्तरता रहती है। इसके पांच भेद हैं:
सामान्य वर्तमान (Imperfect/Simple Present/ Present Indefinite) | यह पढ़ता है। |
तात्कालिक वर्तमान (Present Continuous) | यह पढ़ रहा है। |
पूर्ण वर्तमान (Present Perfect) | वह पढ़ चुका है। |
संदिग्ध वर्तमान (Doubtful Present) | वह पढ़ता होगा। |
संभाव्य वर्तमान (Present Conjunctive) | वह पढ़ता हो। |
(ii) भूतकाल (Past Tense): भूतकाल में क्रिया व्यापार की समाप्ति का बोध होता है। इसके छः भेद हैं :
सामान्य भूत (Simple Past/Past Indefinite) | सीता गयी। |
आसन्न भूत (Recent Past) | सीता गयी है। |
पूर्ण भूत (Past Perfect) | सीता गयी थी। |
अपूर्ण भूत (Past Imperfect/Continuous) | सीता जा रही थी। |
संदिग्ध भूत (Doubtful Past) | सीता गयी होगी। |
हेतुहेतुमद्द्भूत (Conditional Past) | सीता जाती। (क्रिया होने वाली थी, पर हुई नहीं) |
(iii) भविष्यत् काल (Future Tense): भविष्य में होने वाली क्रिया का बोध भविष्यत् काल से होता है। इसके तीन भेद हैं:
सामान्य भविष्यत् (Simple Future/ Future Indefinite) | राम पढ़ेगा। |
संभाव्य भविष्यत् (Future Conjunctive) | सम्भव है राम पढ़े। |
हेतुहेतुमद् भविष्यत् (Conditional Future) | छात्रवृत्ति मिले, तो राम पढ़े। (इसमें एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया के होने पर निर्भर है) |
क्रिया का पद-परिचय (Parsing of Verb): क्रिया के पद- परिचय में क्रिया, क्रिया का भेद, वाच्य, लिंग, पुरुष, वचन, काल और वह शब्द जिससे क्रिया का संबंध है, बतानी चाहिए। जैसे-
1. राम ने पुस्तक पढ़ी।
पढ़ी- क्रिया, सकर्मक, कर्मवाच्य, स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्य पुरुष, सामान्य भूत, कर्म पुस्तक से सम्बन्धित ।
2. मोहन कल जायेगा ।
जायेगा– क्रिया, अकर्मक, कर्तृवाच्य, पुलिंग, एकवचन, अन्य पुरुष, सामान्य भविष्यत्, कर्ता मोहन से सम्बन्धित ।
विशेषण (Adjective) किसे कहते हैं ?
परिभाषा : संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं।
जो शब्द विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहा जाता है और जिसकी विशेषता बताई जाती है, उसे विशेष्य कहा जाता है। जैसे- मोटा लड़का हँस पड़ा। यहाँ ‘मोटा’ विशेषण है तथा ‘लड़का’ विशेष्य (संज्ञा) है।
विशेषण के भेद-विशेषण मूलतः चार प्रकार के होते हैं-
1. सार्वनामिक विशेषण (Demonstrative Adjective): विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम को सार्वनामिक विशेषण कहा जाता है। इनके दो उपभेद हैं-
(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण : जो सर्वनाम बिना रूपान्तर ( के मौलिक रूप में संज्ञा के पहले आकर उसकी विशेषता बतलाते हैं उन्हें इस वर्ग में रखा जाता है। जैसे-
1. यह घर मेरा है।
2. वह किताब फटी है।
3. कोई आदमी रो रहा है।
(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण : जो सर्वनाम रूपान्तरित होकर संज्ञा शब्दों की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें यौगिक सार्वनामिक विशेषण कहा जाता है। जैसे-
1. ऐसा आदमी नहीं देखा।
2. कैसा घर चाहिए ?
3. जैसा देश वैसा भेष ।
2. गुणवाचक विशेषण (Adjective of Quality): जो शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम के गुण-धर्म, स्वभाव का बोच कराते हैं, उन्हें गुणवाचक सर्वनाम कहते हैं। गुणवाचक विशेषण अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जैसे-
कालबोधक | नया, पुराना, ताजा, मौसमी, प्राचीन। |
रंगबोधक | लाल, पीला, काला, नीला, बैंगनी, हटा। |
दशाबोधक | मोटा, पतला, युवा, वृद्ध, गीला, सूखा । |
गुणबोधक | अच्छा, भला, बुरा, कपटी, झूठा, सच्चा, पापी, न्यायी, सीधा, सरल । |
आकारबोधक | गोल, चौकोर, तिकोना, लम्बा, चौड़ा, नुकीला, सुडौल, पतला, मोटा। |
3. संख्यावाचक विशेषण (Adjective of Number): जो शब्द संज्ञा अथवा सर्वनाम की संख्या का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहा जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं-
(i) निश्चित संख्यावाचक : इनसे निश्चित संख्या का बोध होता है। जैसे- दस लड़के, बीस आदमी, पचास रुपये ।
निश्चित संख्यावाचक विशेषणों को प्रयोग के अनुसार निम्न भेदों में विभक्त किया जा सकता है-
गणनावाचक | एक, दो, चार, आठ, बारह । |
क्रमवाचक | पहला, दसवां, सौवां, चौथा । |
आवृत्तिवाचक | तिगुना, चौगुना, सौगुना । |
समुदायवाचक | चारों, आठों, तीनों। |
(ii) अनिश्चित संख्यावाचक : इनसे अनिश्चित संख्या का बोध होता है। जैसे-
1. कुछ आदमी चले गए।
2. कई लोग आए थे।
3. सब कुछ समाप्त हो गया।
4. परिमाणबोधक विशेषण (Adjective of Quantity): जिन विशेषणों से संज्ञा अथवा सर्वनाम के परिमाण का बोध होता है, उन्हें परिमाणबोधक विशेषण कहते हैं। इनके भी दो भेद हैं-
निश्चित परिमाणबोधक | दस किलो घी, पांच क्विंटल गेहूं । |
अनिश्चित परिमाणबोधक | बहुत घी, थोड़ा दूध । |
प्रविशेषण (Adverb): वे शब्द जो विशेषणों की विशेषता बतलाते हैं, प्रविशेषण कहे जाते हैं। जैसे-
1. वह बहुत तेज दौड़ता है।
यहां ‘तेज’ विशेषण है और ‘बहुत’ प्रविशेषण है क्योंकि यह तेज की विशेषता बतला रहा है।
2. सीता अत्यन्त सुन्दर है।
यहाँ ‘सुन्दर’ विशेषण है तथा ‘अत्यन्त’ प्रविशेषण है।
विशेषणार्थक प्रत्यय : संज्ञा शब्दों को विशेषण बनाने के लिए उनमें जिन प्रत्ययों को जोड़ा जाता है, उन्हें विशेषणार्थक प्रत्यय कहते हैं। जैसे-
प्रत्यय | संज्ञा शब्द | विशेषण |
ईला | चमक | चमकीला |
इक | अर्थ | आर्थिक |
मान | बुद्धि | बुद्धिमान |
ई | धन | धनी |
वान | दया | दयावान |
ईय | भारत | भारतीय |
विशेषण की तुलनावस्था : इन्हें तुलनात्मक विशेषण भी कहा जाता है। विशेषण की तीन अवस्थाएं तुलनात्मक रूप में हो सकती हैं- मूलावस्था (Positive Degree), उत्तरावस्था (Comparative Degree) एवं उत्तमावस्था (Superlative Degree)। जैसे-
मूलावस्था | उत्तरावस्था | उत्तमावस्था |
लघु | लघुतर | लघुतम |
कोमल | कोमलतर | कोमलतम |
उच्च | उच्चतर | उच्चतम |
सुन्दर | सुन्दरतर | सुन्दरतम |
बृहत् | बृहत्तर | बृहत्तम |
महत् | महत्तर | महत्तम |
विशेषण का पद-परिचय (Parsing of Adjective) : वाक्य में विशेषण पदों का अन्वय (पद-परिचय) करते समय उसका स्वरूप-भेद, लिंग, वचन, कारक और विशेष्य बताया जाता है। जैसे-
काला कुत्ता मर गया।
काला- विशेषण, गुणवाचक, रंगबोधक, पुलिंग, एकवचन, विशेष्य – कुत्ता ।
मुझे थोड़ी बहुत जानकारी है।
थोड़ी बहुत-विशेषण, अनिश्चित संख्यावाचक, स्त्रीलिंग, कर्मवाचक, विशेष्य-जानकारी ।
अव्यय (Indeclinables) किसे कहते हैं ?
परिभाषा : ऐसे शब्द जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि कारण कोई विकार नहीं आता, अव्यय कहलाते हैं।
ये शब्द सदैव अपरिवर्तित, अविकारी एवं अव्यय रहते हैं। इनका मूल रूप स्थिर रहता है, कभी बदलता नहीं। जैसे- आज, कैब, इधर, किन्तु, परन्तु, क्यों, जब, तब, और, अतः, इसलिए, आदि ।
अव्यय के भेद : अव्यय के चार भेद हैं :
1. क्रिया विशेषण (Adverb) : जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है।
अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण चार प्रकार के होते हैं :
(a) स्थानवाचक:
स्थितिवाचक | यहाँ, वहाँ, भीतर, बाहर। |
दिशावाचक | इधर, उधर, दाएं, बाएं। |
(b) कालवाचक:
समयवाचक | आज, कल, अभी, तुरन्त । |
अवधिवाचक | रात भर, दिन भर, आजकल, नित्य । |
बारंबारतावाचक | हर बार, कई बार, प्रतिदिन । |
(c) परिमाणवाचक:
अधिकताबोधक | बहुत, खूब, अत्यन्त, अति । |
न्यूनताबोधक | जरा, थोड़ा, किंचित्, कुछ। |
पर्याप्तिबोधक | बस, यथेष्ट, काफी, ठीक। |
तुलनाबोधक | कम, अधिक, इतना, उतना । |
श्रेणीबोधक | बारी-बारी, तिल-तिल, थोड़ा-थोड़ा । |
(d) रीतिवाचक:
ऐसे, वैसे, जैसे, मानो, धीरे, अचानक, कदाचित्, अवश्य, इसलिए, तक, सा, तो, हाँ, जी, यथासम्भव ।
2. सम्बन्धवोधक (Preposition) : जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते हैं, उन्हें संबंध बोधक कहते हैं। जैसे-वह दिन भर काम करता रहा। मैं विद्यालय तक गया था। मनुष्य पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता ।
अर्थ के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय के चौदह प्रकार हैं-
स्थानवाचक | आगे, पीछे, निकट, समीप, सामने, बाहर |
दिशावाचक | आसपास, ओर, तरफ, दायाँ, बायाँ |
कालवाचक | पहले, बाद, आगे, पश्चात, अब, तक |
साधनवाचक | द्वारा, माध्यम, सहारे, जरिए, मार्फत |
उद्देश्यवाचक | लिए, वास्ते, हेतु, निमित्त |
व्यतिरेकवाचक | अलावा, अतिरिक्त, सिवा, बगैर, बिना, रहित |
विनिमयवाचक | बदले, एवज, स्थान पर, जगह पर |
सादृशवाचक | समान, तुल्य, बराबर, योग्य, तरह, सरीखा |
विरोधवाचक | विरोध, विरुद्ध, विपरीत, खिलाफ |
साहचर्यवाचक | साथ, संग, सहित, समेत |
विषयवाचकं | संबंध, विषय, आश्रय, भरोसे |
संग्रहवाचक | लगभग, भर, मात्र, तक, अन्तर्गत |
तुलनावाचक | अपेक्षा, बनिस्बत, समक्ष, समान |
कारणवाचक | कारण, परेशानी से, मारे, चलते |
3. समुच्चयबोधक (Conjunction) : दो वाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते हैं। जैसे- सूरज निकला और पक्षी बोलने लगे ।
यहां ‘और’ समुच्चयबोधक अव्यय है।
समुच्चयबोधक अव्यय मूलतः दो प्रकार के होते हैं :
(i) समानाधिकरण
(ii) व्यधिकरण
पुनः समानाधिकरण समुच्चयबोधक के चार उपभेद हैं :
संयोजक | और, व, एवं, तथा । |
विभाजक | या, वा, अथवा, किंवा, नहीं तो । |
विरोध-दर्शक | पर, प्ररन्तु, लेकिन, किन्तु, मगर, बल्कि, वरन् । |
परिणाम-दर्शक | इसलिए, अतः, अतएव । |
व्यधिकरण समुच्चयबोधक के भी चार उपभेद हैं :
कारणवाचक | क्योंकि, चूँकि, इसलिए कि। |
उद्देश्यवाचक | कि, जो, जोकि, ताकि । |
संकेतवाचक | जो….तो, यदि…. नो, यद्यपि तथापि । |
स्वरूपवाचक | कि, जो, अर्थात, यानी । |
4. विस्मयादिबोधक (Interjection): जिन अव्ययों से हर्ष, शोक, घृणा, आदि भाव व्यंजित होते हैं तथा जिनका संबंध वाक्य के किसी पद से नहीं होता, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं, जैसे- हाय ! वह चल बसा ।
इस अव्यय के निम्न उपभेद हैं :
हर्षबोधक | वाह!, आहा!, धन्य ! शाबाश!, जय! |
शोकबोधक | हाय!, हा! आह !, अह!, ऊह! काश! त्राहि-त्राहि ! |
आश्चर्यबोधक | ऐं!, क्या!, ओहो !, हैं ! |
स्वीकारबोधक | हाँ !, जी हाँ !, अच्छा !, जी!, ठीक! |
अनुमोदनबोधक | ठीक!, अच्छा !, हाँ हाँ! हो! |
तिरस्कारबोधक | छिः !, हट !, धिक् !, दुर् ! |
सम्बोधनबोधक | अरे !, रे!, री!, भई!, अजी!, हे!, अहो! |
निपात : मूलतः निपात का प्रयोग अव्ययों के लिए होता है। लेकिन ये शुद्ध अवयव नहीं होते। इनका कोई लिंग, वचन नहीं होता । निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समूह या पूरे वाक्य को अन्य (अतिरिक्त) भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं होते । पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ प्रभावित होता है। निपात नौ प्रकार के होते हैं_
स्वीकृतिबोधक | हाँ, जी, जी हाँ। |
नकारबोधक | जी नहीं, नहीं। |
निषेधात्मक | मत । |
प्रश्नबोधक | क्या । |
विस्मयादिबोधक | क्या, काश । |
तुलनाबोधक | सा। |
अवधारणाबोधक | ठीक, करीब, लगभग, तकरीबन । |
आदरबोधक | जी। |
बलप्रदायक | तो, ही, भी, तक, भर, सिर्फ, केवल । |
हिन्दी में अधिकांशतः निपात उस शब्द या शब्द-समूह के बाद आते हैं, जिनको वे विशिष्टता या बल प्रदान करते हैं, जैसे-
रमेश ने ही मुझे मारा था। (अर्थात् रमेश के अलावा और किसी ने नहीं मारा था ।)
रमेश ने मुझे ही मारा था। (अर्थात् मुझे ही मारा था और किसी को नहीं ।)
रमेश ने मुझे मारा ही था। (अर्थात् मारा ही था गाली आदि नहीं दी थी ।)
इस प्रकार निपात वाक्यों में नया अथवा गहन भाव प्रकट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अव्यय का पद-परिचय (Parsing of Indeclinables): वाक्य में अव्यय का पद-परिचय देने के लिए अव्यय, उसका भेद, उससे संबंध रखने वाला पद-इतनी बातों का उल्लेख करना चाहिए। जैसे- वह धीरे-धीरे चलता है।
धीरे-धीरे- अव्यय, क्रिया विशेषण, रीतिवाचक, क्रिया चलता न की विशेषता बताने वाला ।
यह भी पढ़ें- लिंग ,वचन तथा कारक की परिभाषा
निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट क्रिया ,विशेषण तथा अव्यय जरुर अच्छी लगी होगी। इसके बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में क्रिया ,विशेषण तथा अव्यय की परिभाषा तथा उसके भेद के बारे में उदाहरण देकर समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
FAQs
Q1. ‘आलस्य’ शब्द का विशेषण क्या है ?
Ans. आलसी
Q2. ‘मानव’ शब्द से विशेषण बनेगा-
Ans. मानवीय
Q3. ‘उत्कर्ष’ का विशेषण क्या होगा ?
Ans. उत्कृष्ट
Q4. ‘आदर’ शब्द से विशेषण बनेगा-
Ans. आदरणीय
Q5. ‘संस्कृति’ का विशेषण है-
Ans. सांस्कृतिक
Q6. ‘पशु’ शब्द का विशेषण क्या है ?
Ans. पाशविक
जूमेंट सामान्य
Q7. रचना की दृष्टि से क्रिया के कितने भेद हैं?
Ans. 2
Q8. क्रिया का मूल रूप कहलाता है-
Ans. धातु
Q9. काम का नाम बताने वाले शब्द को क्या कहते हैं?
Ans. क्रिया
Q10. ‘मैं खाना खा चुका हूँ इस वाक्य में भूतकालिक भेद इंगित कीजिए।
Ans. पूर्ण भूत
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