विद्युत् तथा परिपथ : अध्याय 9

हम विद्युत् का उपयोग अपने बहुत से कार्यों को आसान बनाने के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए हम विद्युत् का उपयोग कुएँ से पंप द्वारा जल बाहर निकालने अथवा जमीन की सतह से जल को छत पर रखी हुई टंकी में पहुँचाने के लिए करते हैं। अन्य कौन-कौन से कार्य हैं, जिनके लिए आप विद्युत् का उपयोग करते हैं? उनमें से कुछ को सूचीबद्ध कर अपनी नोटबुक में लिखिए।

क्या आपकी सूची में प्रकाश के लिए विद्युत् का उपयोग सम्मिलित है? सूरज छिपने के बाद भी विद्युत् हमारे घरों, सड़कों, दफ्तरों तथा फैक्ट्रियों को प्रकाशित करती है। यह रात में लगातार काम करने में हमारी सहायता करती है। विद्युत् हमें बिजली घर से प्राप्त होती है। फिर भी विद्युत् की आपूर्ति ठप्प हो सकती है या कई स्थानों पर अनुपलब्ध हो सकती है। ऐसी स्थिति में प्रकाश के लिए टॉर्च का उपयोग करते हैं। टॉर्च में एक बल्ब होता है। जब इसका स्विच दबाते हैं, तब यह प्रकाश देने लगता है। टॉर्च को विद्युत् कहाँ से मिलती है?

9.1 विद्युत्-सेल

टॉर्च के बल्ब को विद्युत्, विद्युत्-सेल मे से मिलती है। विद्युत्-सेल का उपयोग विद्युत्-स्रोत के रूप में अलार्म घड़ी, कलाई घड़ी, रेडियो, कैमरा तथा अन्य युक्तियों में किया जाता है। क्या आपने कभी विद्युत्-सेल को ध्यानपूर्वक देखा है? आपने यह देखा होगा कि इसके एक ओर धातु की टोपी तथा दूसरी ओर धातु की डिस्क (चक्रिका) होती है (चित्र 9.1)। क्या आपने विद्युत्-सेल के ऊपर एक धन चिह्न (+) तथा एक ऋण चिह्न (-) देखा है? विद्युत्-सेल में धातु की टोपी धनात्मक सिरा तथा धातु की डिस्क ऋणात्मक सिरा कहलाता है। सभी विद्युत् सेलों में दो सिरे होते हैं, जिनमें एक धनात्मक (टर्मिनल) सिरा तथा दूसरा ऋणात्मक होता है।

विद्युत्-सेल में संचित रासायनिक पदार्थों से सेल विद्युत् उत्पन्न करता है। जब विद्युत् सेल में संचित रासायनिक पदार्थ इस्तेमाल कर लिए जाते हैं तब विद्युत्-सेल, विद्युत् पैदा करना बंद कर देता है। तब उस विद्युत्-सेल को एक नए विद्युत्-सेल से बदलना पड़ता है।

चेतावनी:
आपने विद्युत् खंभों, विद्युत् उपकेंद्रों तथा अन्य स्थानों पर इस प्रकार का चिह्न देखा होगा। यह दर्शाता है कि विद्युत् का उपयोग उचित रूप से न किया जाए तो यह अत्यंत खतरनाक हो सकती है। यदि विद्युत् तथा विद्युत् युक्तियों को असावधानीपूर्वक बरता जाए तो यह गंभीर चोट अथवा मृत्यु तक का कारण बन सकती है। अतएव आपको कभी भी विद्युत् के तारों तथा सॉकेट आदि से प्रयोग करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। यह भी याद रखिए कि सुबाह्य जनित्र (पोर्टेबल जेनरेटर) द्वारा उत्पन्न विद्युत् भी इतनी ही खतरनाक है। विद्युत् संबंधित सभी क्रियाकलापों के लिए केवल साधारण बैटरी का ही उपयोग करना चाहिए।

टॉर्च के बल्ब में काँच का एक बाहरी आवरण, धातु की सतह पर चिपका होता है [ (चित्र 9.2 (a)]1 बल्ब के काँच के आवरण के अंदर क्या होता है?

क्रियाकलाप 1

एक टॉर्च लीजिए तथा इसके बल्ब के भीतर देखिए। आप अपने अध्यापक की सहायता से इस बल्ब को टॉर्च से बाहर भी निकाल सकते हैं। आप क्या देखते हैं? क्या आप काँच के बल्ब के मध्य एक पतला तार देखते हैं [चित्र 9.2 (b)]? अब टॉर्च का स्विच दबाइए तथा देखिए कि बल्ब का कौन-सा भाग दीप्त है।

प्रकाश उत्सर्जित करने वाले पतले तार को बल्ब का तंतु कहते हैं। यह तंतु दो मोटे तारों के बीच लगा होता है जिसे चित्र 9.2 (b) में दर्शाया गया है। ये मोटे तार तंतु को आधार प्रदान करते हैं। इन मोटे तारों में से एक मोटा तार बल्ब की सतह पर धातु के ढाँचे से जुड़ा हुआ होता है [चित्र 9.2 (b)]। दूसरा मोटा तार आधार केंद्र पर धातु की नोक से जुड़ा होता है। बल्ब के आधार पर धातु का ढाँचा तथा धातु की नोक, बल्ब के दो टर्मिनल हैं। ये दोनों टर्मिनल इस प्रकार लगाए जाते हैं कि ये एक-दूसरे को न छुएँ। घरों में उपयोग होने वाले विद्युत्-बल्बों की भी ऐसी ही संरचना होती है। इस प्रकार विद्युत्-सेल तथा विद्युत्-बल्ब दोनों में ही दो-दो टर्मिनल होते हैं। इनमें ये दो टर्मिनल क्यों होते हैं?

चेतावनी : विद्युत् सेल के दो टर्मिनलों से जुड़े तारों को स्विच तथा बल्ब जैसी युक्ति को बीच में जोड़े बिना आपस में कदापि न मिलाएँ। यदि आप ऐसा करेंगे, तो विद्युत् सेल के रासायनिक पदार्थ बड़ी तेज्जी से खर्च हो जाएँगे और सेल कार्य करना बंद कर देगा।

9.2 विद्युत्-सेल से जुड़ा हुआ बल्ब

आइए, विद्युत्-सेल का उपयोग करके एक बल्ब को दीप्तिमान करने का प्रयास करते हैं। किस प्रकार करते हैं?

क्रियाकलाप 2

विभिन्न रंगों के प्लास्टिक का आवरण चढ़े विद्युत्-तार के चार टुकड़े लीजिए। प्रत्येक तार के टुकड़े के दोनों सिरों से प्लास्टिक आवरण को हटा दीजिए। इस प्रकार दोनों सिरों पर धातु का तार अनावरित हो जाएगा। दो तारों के अनावरित भागों को विद्युत्-सेल तथा दूसरे दो को बल्ब से (चित्र 9.3 तथा 9.4 में दर्शाए गए अनुसार) जोड़ दीजिए।

बल्ब के साथ तारों को जोड़ने के लिए आप विद्युत्रोधी टेप (बिजली के मिस्त्रियों द्वारा उपयोग की जाने वाली) और सेल के लिए रबड़ बैंड या टेप का उपयोग कर सकते हैं।

अब बल्ब तथा विद्युत्-सेल को अलग-अलग छः भिन्न ढंगों से जोड़िए, जैसा कि चित्र 9.5 (a) से 9.5 (f) में दर्शाया गया है। प्रत्येक व्यवस्था में देखिए कि बल्ब दीप्त है या नहीं। प्रत्येक व्यवस्था के लिए ‘हाँ’ या ‘नहीं’ लिखिए।

अब उन व्यवस्थाओं को ध्यानपूर्वक देखिए जिनमें बल्ब दीप्त होता है। इन व्यवस्थाओं की तुलना दूसरी व्यवस्थाओं से कीजिए जिनमें बल्ब दीप्त नहीं होता है। क्या आप इस अंतर का कारण ज्ञात कर सकते हैं?

चित्र 9.5 (a) में विद्युत्-सेल के एक टर्मिनल से प्रारंभ करके, अपनी पेंसिल की नोक को तार के अनुदिश बल्ब तक लाइए। अब बल्ब के दूसरे टर्मिनल से प्रारंभ करके, विद्युत् सेल से जुड़े दूसरे तार के अनुदिश पेंसिल की नोंक को लाइए। इस कार्य को चित्र 9.5 की तरह शेष व्यवस्थाओं के लिए दोहराइए। क्या उन व्यवस्थाओं में बल्ब दीप्त होता है, जिनमें सेल के एक टर्मिनल से वापस दूसरे टर्मिनल तक पहुँचने में पेंसिल को ऊपर उठाना पड़ता है?

9.3 विद्युत्-परिपथ

क्रियाकलाप 2 में आपने विद्युत्-सेल के एक टर्मिनल को तार द्वारा बल्ब से होते हुए विद्युत्-सेल के दूसरे टर्मिनल से जोड़ा। ध्यान दीजिए कि चित्र 9.5 (a) तथा चित्र 9.5 (f) की व्यवस्थाओं में विद्युत् सेल के दो टर्मिनल, बल्ब के दो टर्मिनलों से जोड़े गए हैं। इस प्रकार की व्यवस्था विद्युत्-परिपथ का एक उदाहरण है। विद्युत्-परिपथ, विद्युत्-सेल के दो टर्मिनलों के बीच विद्युत्-प्रवाह (विद्युत्-धारा) के संपूर्ण पथ को दर्शाता है। बल्ब केवल तभी दीप्त होता है जब परिपथ में विद्युत्-धारा प्रवाहित होती है।

किसी विद्युत्-परिपथ में चित्र 9.6 में दर्शाए गए अनुसार, विद्युत्-धारा की दिशा विद्युत्-सेल के (+) टर्मिनल से (-) टर्मिनल की ओर होती है। जब बल्ब के टर्मिनलों को तार के द्वारा विद्युत्-सेल के टर्मिनलों से जोड़ा जाता है तो बल्ब के तंतु से होकर विद्युत्-धारा प्रवाहित होती है। यह बल्ब को दीप्तिमान करती है।

कभी-कभी विद्युत्-बल्ब, विद्युत्-सेल से जुड़े होने पर भी दीप्त नहीं होता। ऐसा बल्ब के फ़्यूज़ होने के कारण हो सकता है। फ़्यूज़ बल्ब को ध्यानपूर्वक देखिए। क्या इसका तंतु अक्षुण है?

विद्युत् बल्ब कई कारणों से फ़्यूज़ हो सकता है। इनमें से एक कारण है, बल्ब के तंतु का खंडित होना। बल्ब का तंतु खंडित होने के कारण, विद्युत्-सेल के टर्मिनलों के बीच विद्युत्-धारा का परिपथ टूट जाता है। इसलिए फ़्यूज़-बल्ब के तंतु से विद्युत्-धारा प्रवाहित न होने के कारण यह दीप्तिमान नहीं होता है।

क्या अब आप यह बता सकते हैं कि चित्र 9.5 (b), (c), (d) तथा (e) में आपके प्रयास करने पर भी बल्ब दीप्तिमान क्यों नहीं होता है?

अब हमें ज्ञात है कि विद्युत्-सेल का उपयोग कर, बल्ब को दीप्तिमान कैसे किया जाता है। क्या आप अपने लिए एक टॉर्च बनाना पसंद करेंगे?

क्रियाकलाप 3

एक टॉर्च-बल्ब तथा तार का एक टुकड़ा लीजिए। पहले की तरह तार के दोनों सिरों से प्लास्टिक आवरण को हटाइए। चित्र 9.7 में दर्शाए अनुसार तार के एक सिरे को बल्ब के धातु के ढाँचे के चारों ओर

लपेटिए। तार के दूसरे सिरे को रबड़ बैंड की सहायता से विद्युत्-सेल के ऋणात्मक टर्मिनल से जोड़िए। अब बल्ब के आधार की नोक अर्थात् इसके टर्मिनल को विद्युत्-सेल के धनात्मक टर्मिनल पर रखिए। क्या बल्ब दीप्तिमान होता है? अब बल्ब को विद्युत्-सेल के टर्मिनल से हटाइए। क्या बल्ब अभी भी प्रकाशित है? क्या यह टॉर्च को ‘ऑन’ व ‘ऑफ’ करने के समान नहीं है?

9.4 विद्युत्-स्विच

घर में तैयार की गई टॉर्च को ‘ऑन’ अथवा ‘ऑफ’ करने में विद्युत्-बल्ब को विद्युत-सेल की नोक से स्पर्श कराते अथवा हटाते हैं। यह एक साधारण विद्युत्-स्विच था, इसे उपयोग करना सुविधाजनक नहीं है। हम अपने उपयोग के लिए दूसरा सरल एवं सुविधाजनक स्विच बना सकते हैं।

क्रियाकलाप 4

आप दो ड्रॉइंग पिन, एक सुरक्षा पिन (या पेपर क्लिप) दो तार तथा थर्मोकोल या लकड़ी के बोर्ड से एक विद्युत्-स्विच तैयार कर सकते हैं। सुरक्षा पिन की रिंग में एक ड्रॉइंग पिन लगाकर इसे थर्मोकोल शीट पर गाड़ दीजिए, जैसा कि चित्र 9.8 में दिखाया गया है। यह सुनिश्चित कीजिए कि सुरक्षा पिन आसानी

से घूम सके। अब दूसरी ड्रॉइंग पिन को थर्मोकोल शीट पर इस तरह लगाएँ कि सुरक्षा पिन का स्वंतत्र सिरा इसे स्पर्श कर सके। इस प्रकार जुड़ा हुआ सुरक्षा पिन, इस क्रियाकलाप में आपका स्विच होगा।

अब विद्युत्-सेल बल्ब तथा स्विच को चित्र 9.9 में दर्शाए अनुसार जोड़कर परिपथ को पूरा कीजिए। सुरक्षा पिन को इस तरह घुमाएँ कि उसका स्वतंत्र सिरा दूसरे ड्रॉइंग पिन को छुए। आप क्या देखते हैं?

अब सुरक्षा पिन को ड्रॉइंग पिन से हटाइए। क्या बल्ब अब भी जलता रहता है?

जब सुरक्षा पिन दोनों ड्रॉइंग पिनों से स्पर्श करता है तब वह दोनों ड्रॉइंग पिनों के बीच के रिक्त स्थान को भरता है। तब इस स्थिति में स्विच को ‘ऑन’ कहते हैं (चित्र 9.10)। चूंकि सुरक्षापिन का पदार्थ विद्युत्-धारा को अपने में से प्रवाहित होने देता है, अतः विद्युत्-परिपथ पूरा हो जाता है, इस तरह बल्ब दीप्तिमान होता है।

इसके विपरीत, जब सुरक्षा पिन दूसरी ड्रॉइंग पिन से स्पर्श नहीं करती तो विद्युत् बल्ब दीप्तिमान नहीं होता। इस तरह ड्रॉइंग पिनों के बीच का रिक्त स्थान बंद नहीं होता है तथा परिपथ पूरा नहीं होता। इस दशा (स्थिति) में स्विच ‘ऑफ’ कहलाता है, जैसा कि चित्र 9.9 में दर्शाया गया है।

स्विच एक सरल युक्ति है जो परिपथ को जोड़ या तोड़ सकती है। घरों में स्विच का उपयोग बल्ब को दीप्तिमान करने तथा अन्य युक्तियों को चलाने के लिए करते हैं। यद्यपि घरों में उपयोग होने वाले स्विच इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं पर उनके डिज़ाइन जटिल होते हैं।

9.5 विद्युत्-चालक तथा विद्युत्-रोधक

हमने अपने सभी क्रियाकलापों में परिपथ को पूरा करने के लिए धातु के तार उपयोग किए थे। मान लीजिए परिपथ बनाने के लिए धातु के तारों के स्थान पर हम सूती धागे का उपयोग करते हैं।

क्या आप सोचते हैं इस अवस्था में भी बल्ब दीप्तमान होगा? विद्युत्-धारा के प्रवाह के लिए परिपथ में किस प्रकार के पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है। आइए इसका पता लगाते हैं।

क्रियाकलाप 5

क्रियाकलाप 4 के लिए प्रयुक्त विद्युत्-परिपथ से स्विच को अलग कीजिए। ऐसा करने से आपको चित्र 9.12 (a) के अनुसार दो स्वतंत्र तारों के सिरे मिल जाएँगे। इन तारों के दोनों सिरों को एक-दूसरे के समीप लाएँ ताकि ये एक-दूसरे को स्पर्श करें। क्या बल्ब जल उठता है? अब आप इस व्यवस्था को पदार्थों के परीक्षण के लिए प्रयोग में ला सकते हैं कि ये विद्युत्-धारा प्रवाहित करते हैं अथवा नहीं।

जाँच करने के लिए विभिन्न प्रकार के पदार्थों जैसे • सिक्के, कॉर्क, रबड़, काँच, चाबियाँ, पिन, प्लास्टिक का स्केल, लकड़ी का गुटका, ऐलुमिनियम की पत्ती, मोमबत्ती, सिलाई मशीन की सुई, थर्मोकोल, कागज तथा पेंसिल की लीड आदि एकत्रित कीजिए। चालक-परीक्षित्र के तारों के स्वतंत्र सिरों को प्रत्येक नमूने से बारी-बारी से स्पर्श करें [चित्र 9.12 (b)]। ध्यान रखिए कि दोनों तार एक-दूसरे को स्पर्श न करें। क्या हर बार बल्ब जलता है?

सारणी 9.1 के समान अपनी नोटबुक में एक सारणी बनाइए तथा अपने प्रेक्षणों को अंकित कीजिए।

सारिणी 9.1 : विद्युत्-चालक एवं विद्युत्-रोधक

पदार्थ के स्थान पर उपयोग की गई वस्तुपदार्थ जिसका यह बना हैबल्ब जलता है (हाँ/ नहीं)
चाबीधातुहाँ
रबड़ (इरेज़र)रबड़नहीं
स्केलप्लास्टिकनहीं
माचिस की तीलीलकड़ीनहीं
काँच की चूड़ीकाँचनहीं
लोहे की कीलधातुहाँ

आप क्या पाते हैं? परीक्षण के लिए उपयोग किए गए कुछ पदार्थों से तारों के स्वतंत्र सिरे लगाने पर बल्ब दीप्तिमान नहीं होता है। इसका अर्थ यह है कि ये पदार्थ विद्युत्-धारा को अपने अंदर से प्रवाहित नहीं होने देते। इसके विपरीत बल्ब के जलने से यह पता चलता है कि कुछ पदार्थ, अपने अंदर से विद्युत्-धारा का प्रवाह होने देते हैं। जो पदार्थ विद्युत्-धारा का प्रवाह होने देते हैं वे विद्युत्-चालक हैं। विद्युत्-रोधक अपने अंदर से विद्युत्-धारा को प्रवाहित नहीं होने देते। सारणी 9.1 की सहायता से उन पदार्थों के नाम बताइए जो विद्युत्-चालक हैं और उन पदार्थों के जो विद्युत्-रोधक हैं।

विद्युत्-चालक : लोहे की कील

विद्युत्-रोधक : रबड़

आपने क्या निष्कर्ष निकाला है? कौन-से पदार्थ विद्युत्-चालक हैं और कौन-से विद्युत्-रोधक ? अध्याय 2 के उन पदार्थों को स्मरण करें जो चमकदार होते हैं। क्या वे विद्युत्-चालक हैं?

अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि तारों को बनाने के लिए ताँबा, ऐलुमिनियम तथा अन्य धातुएँ क्यों प्रयुक्त की जाती हैं?

आइए क्रियाकलाप 4 को स्मरण करें जिसमें हमने स्विच के साथ एक परिपथ बनाया था (चित्र 9.9)। जब स्विच खुली स्थिति में था तब क्या दो ड्रॉइंग पिन थर्मोकोल शीट से जुड़े हुए नहीं थे? परंतु आप जानते हैं कि थर्मोकोल एक विद्युत्-रोधक है। रिक्त स्थान में जब वायु होती है तब क्या होता है? चूँकि स्विच के दो ड्रॉइंग पिन के बीच में जब केवल वायु थी तो बल्ब दीप्तिमान नहीं होता है। इसका तात्पर्य है कि वायु भी विद्युत्-रोधक है।

विद्युत् चालक तथा विद्युत्-रोधक हमारे लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। स्विच, विद्युत् प्लग, सॉकेट सुचालक पदार्थों से बनाए जाते हैं। दूसरी ओर विद्युत्-तारों, प्लग के ऊपर के भाग, स्विच तथा विद्युत्-उपकरणों के अन्य भाग जिन्हें लोग स्पर्श कर सकते हैं। इनको बनाने के लिए रबड़ तथा प्लास्टिक का उपयोग होता है।

चेतावनी : आपका शरीर विद्युत् का बहुत अच्छा चालक है। अतः विद्युत् उपकरणों का उपयोग करते समय सावधानी बरतिए।

सारांश

• विद्युत्-सेल विद्युत् का एक स्रोत है।

• विद्युत्-सेल में दो टर्मिनल होते हैं; एक धन टर्मिनल (+) तथा एक ऋण टर्मिनल (-)।

• विद्युत् बल्ब में एक फिलामेंट होता है जो इसके टर्मिनलों से जुड़ा होता है।

• विद्युत् धारा प्रवाहित होने पर विद्युत्-वल्ब दीप्त हो उठता है।

• बंद विद्युत्-परिपथ में विद्युत्-धारा, विद्युत् सेल के एक टर्मिनल से दूसरे टर्मिनल तक प्रवाहित होती है।

• स्विच एक सरल युक्ति है जो विद्युत्-धारा के प्रवाह को रोकने या प्रारंभ करने के लिए परिपथ को तोड़ता अथवा पूरा करता है।

• जिन पदार्थों से होकर विद्युत्-धारा प्रवाहित हो सकती है, वे विद्युत्-चालक कहलाते हैं।

• जिन पदार्थों से होकर विद्युत्-धारा प्रवाहित नहीं हो सकती, वे विद्युत्-रोधक कहलाते है।

यह भी पढ़ें: प्रकाश छायाएं एवं परावर्तन : अध्याय 8

अभ्यास

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

(क) एक युक्ति जो परिपथ को तोड़ने के लिए उपयोग की जाती है, बिजली का स्वीच कहलाती है।

(ख) एक विद्युत्-सेल में दो टर्मिनल होते हैं।

निम्नलिखित कथनों पर ‘सही’ या ‘गलत’ का चिह्न लगाइए।

(क) विद्युत्-धारा धातुओं से होकर प्रवाहित हो सकती है।  ( सही )

(ख) विद्युत्-परिपथ बनाने के लिए धातु के तारों के स्थान पर जूट की डोरी प्रयुक्त की जा सकती है।  ( गलत )

(ग) विद्युत्-धारा थर्मोकोल की शीट से होकर प्रवाहित हो सकती है।  ( गलत )

3. व्याख्या कीजिए कि चित्र 9.13 में दर्शाई गई व्यवस्था में बल्ब क्यों नहीं दीप्तिमान होता है?
Ans.
चित्र 9.13 में दर्शाई गई वयवस्था में बल्ब के दीप्तिमान नहीं होने के निम्नलिखित कारण सम्भव है:

उसका बल्ब फ्यूज हो सकता है।
उसका जोड़ ढीला हो सकता है।
सेल में संचित रासायनिक पदार्थ समाप्त हो चुका हो।

4. चित्र 9.14 में दर्शाए गए आरेख को पूरा कीजिए और बताइए कि बल्ब को दीप्तिमान करने के लिए तारों के स्वतंत्र सिरों को किस प्रकार जोड़ना चाहिए?
Ans.
बल्ब को दीप्तमान करने के लिए स्वतंत्र तार के एक सिरे को बल्ब के एक टर्मीनल से और दूसरे टर्मीनल को तार द्वारा विद्युत्-सेल से जोड़ना चाहिए।

5. विद्युत्-स्विच को उपयोग करने का क्या प्रयोजन है? कुछ विद्युत्-साधित्रों के नाम बताइए जिनमें स्विच उनके अंदर ही निर्मित होते हैं।
Ans.
विद्युत-स्विच विद्युत परिपथ को जोड़ और तोड़ सकती है। इसलिए इसका उपयोग बल्ब को दीप्तिमान करने तथा अन्य बिजली की उपकरणों को अपनी सुविधानुसार चलाने और बंद करने के लिए करते हैं। इससे बिजली की बचत भी होती है। टेलीविजन, टेबल-फैन, वाशिंग मशीन, जूसर आदि कुछ विद्युत साधित्रं हैं जिसमें स्विच उसके अंदर ही निर्मित होते हैं।

6. चित्र 9.14 में सुरक्षा पिन की जगह यदि रबड़ लगा दें तो क्या बल्च दीप्तिमान होगा?
Ans.
चित्र 9.14 में सुरक्षा पिन की जगह अगर रबड़ लगा दें तो बल्ब दीप्तिमान नहीं होगा। क्योंकि रबड़ विद्युत-रोधक वस्तु है। ये अपने अंदर से विद्युत धारा को प्रवाहित नहीं होने देता है।

7. क्या चित्र 9.15 में दिखाए गए परिपथ में बल्ब दीप्तिमान होगा?
Ans.
हां, क्योंकि चित्र में विद्युत परिपथ पूरा है।

8. किसी वस्तु के साथ “चालक परीक्षित्र” का उपयोग करके यह देखा गया कि बल्ब दीप्तिमान होता है। क्या इस वस्तु का पदार्थ विद्युत्-चालक है या विद्युत्-रोधक ? व्याख्या कीजिए।
Ans.
किसी वस्तु के साथ “चालक-परिक्षित्र” का उपयोग करने पर बल्ब का दीप्तिमान होना यह सिद्ध करता है कि इस वस्तु का पदार्थ विद्युत-चालक है।

9. आपके घर में स्विच की मरम्मत करते समय विद्युत् मिस्तरी रबड़ के दस्ताने क्यों पहनता है? व्याख्या कीजिए।
Ans.
रबर एक विद्युत रोधक होता है। जब विद्युत मिस्त्री हमारे घर स्विच की मरम्मत करने के लिए आता है तो वह रबड़ के दस्ताने इसलिए पहनता है ताकि उसे करंट ना लग जाए क्योंकि रबड़ के दस्ताने विद्युत रोधक होते हैं। वह अपने बचाव के लिए रबर के दस्ताने पहनता है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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